क्या अनामिका बापस आएगी!

                                      

   1.

“दरवाजा खोल.. अंकित “

“मैं कहता हूँ ..खोल दरवाजा”

बहुत देर से दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे घनश्याम लेकिन अंकित दरवाजा नहीं खोल रहा था। घनश्याम मकानमालिक थे और अंकित उनके यहां किरायेदार है और 6 महीने से किराया नही दे पाया था इसीलिए आज घनश्याम बहुत नाराज थे और उनकी ये नाराजगी समझ कर ही अंकित डर की वजह से गेट नहीं खोल रहा था.

“ठीक है मत खोल ..मैं भी देखता हूँ कब तक गेट नही खोलता तू यही बैठा रहूँगा दरवाजे के बाहर ” घनश्याम बरामदे में पड़े एक स्टूल पर बैठ गए.

“अरे ..कभी मेरी भी तो सुना  करो ..इतनी गुस्सा अच्छी नहीं.. हालात तो समझो उसकी..अच्छा मैँ ही ऊपर आती हूँ”

घनश्याम की पत्नी अंकित से खास स्नेह रखती थीं खुद का कोई बच्चा ना होने के कारण उसे खुद के बेटे जैसा मानती थीं

“खबरदार, जो ऊपर आयीं ..अभी -अभी तो तुम्हारा पैर ठीक ही हुआ है..वही नीचे रहो..तुम्हारी शह से ही, इसके कान पर जूं नहीं रेंगती मेरे  कुछ भी कहने की”

घनश्याम ने डांटते हुए रोक दिया सरोज को,शरीर से गोल मटोल सरोज ने अपना पैर सीढ़ी पर रखा ही था कि पीछे हटा लिया, हाल ही में पैर में फ्रेक्चर होने की वजह से उन्हें दो महीने बेड रेस्ट  पर रहना पड़ा और अभी चलना फिरना शुरू ही किया था

“ठीक है नहीं आती ,पर तुम तो आओ नीचे” सरोज ने मनुहार करते हुए कहा

“तुमने सुना नहीं शायद ..जब तक ये दरवाजा नहीं खोलेगा ..मुझे मेरे किराये के पैसे नहीं देगा ..नहीं आऊंगा”

खीजते हुए घनश्याम को देख सरोज फुसफुसा कर बोलीं

“शर्म नहीं आती तुम्हें,एक तो उसकी माँ नहीं रहीं और ऊपर से नौकरी चली गयी..और तुम हो…कि पैसे चाहिए”

“पता है भागवान …लेकिन उनको गए पाँच महीने बीत गए हैं..तुम्हे तो कोई भी पागल बना दे..जरा प्यार से  ये लड़का बात क्या कर लेता है तुमसे, तुम तो बेकार में ही भावुक हुई 

जाती हो ..ये नहीं समझ आता कि ये बेबकूफ़ समझता है तुम्हें” झुंझलाए से घनश्याम गले मे पड़े गमछे  से पसीना पोछते हुए बोले…

“हे राम बड़ी गर्मी है यहाँ”.. आज की रात और रह ले..कल तुझे  बाहर न  निकाला तो कहना” 

बोलते हुए घनश्याम जीने से नीचे उतर आए.पचपन छप्पन साल उम्र रही होगी .घनश्याम की..एक छोटी सी कपड़े की दुकान थी उनकी और स्वभाव से चिड़चिड़े और गुस्सैल थे वही उनकी पत्नी सरोज गेंहुए रंग की गोल मटोल सी शांत और भावुक महिला थीं..

अगले ही दिन घनश्याम एक तगड़े से आदमी को साथ ले आये जिसे देखकर सरोज ने प्रश्नवाचक निगाहों से घनश्याम की ओर देखा लेकिन  घनश्याम ने अनदेखा कर दिया…और सीधे सीढ़ियों से ऊपर चले गए .

“देख ये रहा कमरा… तोड़ इसे और जो भी सामान है निकाल कर फेंक  दे”

उसी तगड़े से आदमी को आर्डर सुना वो वहीं स्टूल पर बैठ गए…सरोज भी सीढिया चढ़ आ गयीं थीं..

“सुनो जी..ये ठीक नहीं ..वो अभी है भी नहीं और किसी के घर को उसकी अनुपस्थिति में खोलना.नहीँ  ठीक नहीं” सरोज हर सम्भव कोशिश कर रही थीं लेकिन घनश्याम अपनी जिद पर थे

“किसी का घर नहीं है ये सिवाय मेरे ..समझीं तुम..और तुम आयीं क्यों ऊपर ?..पूरे पांच हज़ार रुपये खर्च हुए हैं तुम्हारे पैर पर अब तक , लेकिन तुम्हे कोई फर्क नहीं” 

इतने में ही दरवाजा टूट गया..और अंकित का सामान फेंका जाने  लगा अंकित ने सड़क से आते हुए जब ये देखा तो दौड़ता हुआ आया लेकिन सब नज़ारा देख ठिठक कर रह गया…कुछ नही बोला सामान के नाम पर कुछ खास था भी नहीं.. कुछ बर्तन ,एक छोटा सा सिलेण्डर,कुछ डिब्बे ..अंकित अपने कमरे में गया और बचे हुए कपड़े समेट एक चादर में बाँध कर पोटली बना ली और सरोज के पैर छूने झुका तो बिना बोले ही उन्होंने अपनी विवशता जताई..लाल बड़ी सी बिंदी के थोड़ा नीचे दोनों तरफ छोटी सी दो आंखों में उसने अपने लिए ममता देखी 

“आप ने हमेशा मेरी माँ ना होते हुए भी मेरी माँ का फ़र्ज़ निभाया..लेकिन मैं आपके लिए कुछ ना कर सका..आपसे मिलने आता रहूँगा और फ़ोन भी करूँगा” और ये बोल अंकित तेज़ कदमों से बाहर निकल गया ,सरोज ने घनश्याम की तरफ देख कर कहा

“आज के बाद मुझसे बात मत करना ..हमेशा पैसा पैसा करते रहते हो ..हुम्”  और नीचे उतर गयीं..

.

….घर के पास ही सारा सामान सड़क के किनारे रख अंकित ये सोच अफसोस में था कि अगर थोड़ी मनुहार कर ली होती तो घर के अंदर होता इस वक़्त ,ज्यादा पढ़ा लिखा इंसान कोई छोटा काम भी नहीं कर सकता और उसे झुकना भी नहीं आता.. क्या जरूरत थी इतना पढ़ने की पोस्ट ग्रेजुएट हिस्ट्री में…अपने समय का कॉलेज टॉपर और हालात ये कि दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं..यू तो एक प्राइवेट इंटर कॉलेज में जॉब चल रही थी उसकी.कि माँ का देहांत हो गया…घर गया तो पूरे महीने गम और अवसाद से बाहर  ही ना आ पाया..और जब बापस हिमाचल आया तो, बिना सूचना इतनी लंबी छुट्टी के कारण उसे जॉब से बाहर निकाल दिया गया.और अब यहाँ बोर्ड के एग्जाम के बाद कॉलेज बन्द हैं…

“प्लीज बात कीजिये ना..आप..मुझे लाना है.. गोल्ड मेडल हिस्ट्री में “

ये आवाज उसके कानों में पड़ी तो नजर उधर ही घूम गयी ..जरा सी दूरी पर एक लड़की फ़ोन पर बात कर रही थी ..हिस्ट्री का नाम सुना तो उसके ठीक सामने चला गया..थोड़ी सी हील वाली सेंडिल और नीलेंथ स्कर्ट के साथ वाइट टॉप ..कमर से थोड़े ऊपर तक खुले बाल  और मोबाइल हाथ मे लिए वो किसी से मनुहार कर रही थी…यूँ खुद की ओर एक लड़के को घूरते देखा तो हाथ के इशारे से पूछा “क्या है “

और अंकित “ना” में सिर हिलाते हुए बापस हो लिया..

“एक्सक्यूज़ मी..यस यू ..मिस्टर ..व्हाट्स रॉंग विद यू”?

“अ ..अ ..नथिंग” अंकित ने अपनी झेंप छुपाते हुए कहा

“वरन्ट यू स्टेरिंग एट मी”?

“आइ एम सॉरी..इट सीमड लाइक दैट, बट.. एक्चुअली “हिस्ट्री बर्ड “ड्रेगड मी देयर इन फ्रंट ऑफ यू”

“सो आर यू टू ,लुकिंग फ़ॉर टीचर”?

“नो आई एम ..अ .अ टीचर इटसेल्फ”

“सो?”

कोई प्रतिउत्तर नही मिला उसे अंकित से, तो उसने बोलना जारी रखा..

“तो आप पढ़ाने में इंट्रेस्टेड हैं “?

अंकित ने स्वीकृति में सिर  हिलाया 

“ओके ग्रेट..सो क्या क्वालिफिकेशन हैं आपकी”?

“पोस्ट ग्रेजुएट इन हिस्ट्री एंड हेविंग टू इयर्स ऑफ टीचिंग एक्सपीरियंस “

“हम्म”

“मुझे गोल्ड मैडल चाहिए हिस्ट्री में..आप को लगता है ..इस लेवल का पढा पायेंगे आप”?

“मैं अपने कॉलेज का  टॉपर रहा हूँ ..आप चाहे तो इसी वक्त मुझसे कोई भी क्वेश्चन पूछ सकती हैं” थोड़े से गर्व के साथ जब अंकित ने कहा तो ..वो बस मुस्कुरा भर दी..

“ठीक है कब से स्टार्ट करेंगे”

“जब से आप कहें …मेरा क्या मैं तो अभी से स्टार्ट कर सकता हूँ” अंकित ने बड़े जोश से कहा 

“ठीक है,साथ ही चलिए फिर,घर दिखा दूँ?

बड़ा खुश होते हुए वो साथ चलने को तैयार हो गया लेकिन जैसे ही अपने सामान का ख्याल आया ..ठिठक गया..अचानक ऐसे भाव अंकित के चेहरे पर आये देख उसने पूछा

“क्या हुआ,एनी प्रॉब्लम?

“न…नहीं..नहीं… कोई प्रॉब्लम नहीं आप मुझे एड्रेस दीजिये,मैं कल खुद आ जाऊँगा”

“में घर ही जा रही हूँ, आप को ख़ुद एड्रेस ढूंढने में प्रॉब्लम होगी..क्योंकि कोई लैंडमार्क नहीं है मेरे घर के पास..चलिए ना प्लीज़

“अ..वो” ..कुछ ना बोलकर वो कभी अपने सामान और कभी उसे देखता फिर कुछ सोचकर बोला “बस एक मिनट”

और जाकर मकानमालिक की डोर बेल बजा दी.और मन ही मन कहा ‘हे भगवान आंटी  जी ही गेट खोलें’..हाँ आंटी ने ही गेट खोला

“आंटी जी …मुझे जॉब मिल गयी प्लीज़ आप अंकल जी को बोलिये ना ..मुझे सामान रख लेने दे”..फिर कुछ सोचने के बाद “अच्छा में उनसे खुद बात कर लूँगा आप बस्स थोड़ी देर मेरा सामान देख लेंगी ना”

“कितना रेंट है ..आप के रूम का” उसकी आवाज सुन अंकित ने देखा तो वो वहीं खड़ी थी और शायद  सब सुन चुकी थी

“देखिए आप” अंकित अचकचा कर रह गया

“मुझे बताइये ना,एडवांस तो देना ही है,तो में उस अनुसार आपको एडवांस दे दूंगी”

” दो  हज़ार”..एक महीने का किराया….ना जाने कैसे बता गया अंकित ..जबकि ये सब उसके उसूलों के खिलाफ है कि वो अपनी तकलीफे किसी और को दिखाए.

“ओ के ,ये लीजिये और जल्दी आइये मैं वहाँ.. उस पेड़ के नीचे आपका वेट कर रही हूँ” उसने तीन हज़ार रुपये अंकित को थमाते हुए कहा अंकित ने  दो  हज़ार रुपये आंटी के हाथ पर रख दिये और बिना बोले ही वहां से निकल आया ……..

…..अंकित अब उसके साथ चल रहा था..कभी कभी हवा के कारण उसके बाल अंकित को छू जाते तो उसे अच्छा लगता, दोनों काफी देर तक चुप रहे तो 

“कौन सी क्लास की स्टूडेंट हैं आप ?अंकित ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा

“बी.ए. ऑनर्स (हिस्ट्री) लास्ट सेमेस्टर “

“ओह, बहुत बढ़िया”

“आपने मुझे अपना नाम नहीं बताया”?

“आपने पूछा ही नहीं.. उसने हँसकर कहा,अनामिका..अनामिका नाम है मेरा”

“नाइस नेम,माइन इज अंकित”

फिर दोनों  चुप हो गए और थोड़ी देर बाद वो बोली “ये लीजिये घर आ गया..”

एक बेहतरीन और छोटा ..लेकिन ,खूबसूरत बंगला ..जैसे ही उन दोनों ने गेट पर कदम रखा ,गेट खुद व खुद खुल गया….और अंकित की आंखे चौंधिया गयीं……..

2-

खूबसूरत झूमर ठीक सिर के ऊपर जगमगा रहा था,डिज़ाइन ऐसी कि जैसे पानी की बूंदे ठीक उसके ऊपर गिरने वाली हों,सफेद कलर से पेंट किया हुआ पूरा बंगला दूधिया रोशनी से  नहाया हो जैसे…

“क्या लेना पसंद करेंगे, चाय या कॉफी ?”

अनामिका ने अगर ना टोका होता तो शायद उसी रोशनी में अभी और खोया रहता.

“चाय”…उसने जवाब दिया और वो मुस्कुराते हुए, सामने बनी एक लंबी गैलरी में चली गयी, 

खूबसूरत झूमर के नीचे पड़े ,सेविन  सीटर सोफे से उसने यूँ ही अंदाज लगाया कि बड़ा परिवार हो शायद ,सोफे के पीछे एक घुमावदार  चौड़ी सी सीढिया ऊपर की ओर जाते हुए थीं..ऊपर  कुछ बन्द गेट दिखे ..बेड रूम होंगे शायद ,और सीढ़ियों के पीछे  एक लंबी सी गैलरी जहां अनामिका गयी है अभी ..तो किचन है वहाँ.. मन ही मन यूँ घर का निरीक्षण करने पर उसने हल्की सी डांट  लगा दी खुद को..

“शुगर कितनी  लेंगे आप “? अनामिका ने चाय की ट्रे गोल कांच की टेबल पर रखते हुए पूछा

“दो चम्मच” उसे आश्चर्य हुआ कि अनामिका के आने का तनिक भान तक ना हुआ

“दो च… म्मच मतलब टू स्पूनस ..आर यू श्योर? उसने अपनी आंखें बड़ी करते हुए पूछा

“मुझे मीठा बहुत पसंद है” उसे फौरन लगा कि कम बताना चाहिए था

“हम्म” उसने कप में चीनी मिलाते हुए कहा,अंकित की नजर उसकी उंगलियों पर जा पड़ी,कितनी पतली और खूबसूरत हैं..

तभी अंदर से उसे कुछ लोगों के बातचीत करने की आवाज सुनाई दी…शायद दो या तीन लोग आपस मे बात कर रहे हो जैसे,उसे लगा कोई बाहर आने को है शायद, अनामिका के पेरेंट्स हों शायद या कोई भी परिवारीजन ,वो खुद को संभाल के बैठ गया और गेट की तरफ ताकने लगा

“क्या हुआ” अनामिका ने पूछा 

“शायद आपके पेरेंट्स या कोई फैमिली मेंबर अ ..वो मुझे लगा”  उसने लॉबी की तरफ बने एक गेट की तरफ इशारा करते हुए कहा 

“पेरेंट्स…हा हा हा..वो .तो कजिन की शादी में गये हुए हैं ..घर मे तो कोई नहीं सिवाय मेरे” उसने हँसते हुए कहा

“ओह ,लेकिन मुझे कुछ आवाज सी सुनाई दी अभी” अंकित ने अचरज से कहा क्यूँकि उसने साफ आवाज सुनी थी 

“आप को ऐसे ही लगा होगा, तो …कल से क्लास स्टार्ट करें”

“जी बिल्कुल..वैसे क्या सबसे ज्यादा मुश्किल लगता है आपको हिस्ट्री में”?अंकित ने कप उठाते हुए पूछा,उसने मन ही मन कहा ,शायद वो आवाजें  सुनना मन का वहम ही हो

“जी ..रिलेटिड डेट्स ..कभी लगता है सारी डेट्स याद हो गयी हैं तो कभी ये आपस मे ऐसी मिक्स होती हैं कि मेरा सारा कॉन्फिडेंस ही लूज़ हो जाता है”

“कमाल है,मैंने तो सुना लड़किया डेट्स याद रखने में बहुत एक्सपर्ट होती हैं,यहां तक कि किसी ने कब और कौन सी बात कही सब याद रहता है उन्हें” अंकित ने मुस्कुरा कर कहा, तो अनामिका बोली

“ये सब बेकार की बातें हैं, किसने कहा आपसे?याद रहती हैं तो रहती हैं,और नही, तो नहीं ..इसमे भला लड़के या लड़की होने का  क्या कनेक्शन?”

“हम्म..बात तो ठीक है, बिल्कुल सही कहा आपने ,तो ..और क्या प्रॉब्लम होती है हिस्ट्री में”

“राजा या बादशाह तो मुझे याद रहते हैं, लेकिन उनके डायनेस्ट्री से जुड़े छोटे लोग,दूसरी डायनेस्ट्री में मिक्स कर देती हूं मैं अक्सर” बड़े नाटकीय भरे अंदाज में उसने कहा तो अंकित को हँसी आ गई

“और आसान क्या लगता है”?

“बाकी की पूरी हिस्ट्री मुझे याद रहती है”

“ठीक है,पहले हम डायनेस्ट्री पर ही काम करेंगे,ताकि आप बिना वीजा किसी को भी,किसी और की डायनेस्ट्री में ना भेजें” 

उसके इस तरह कहने पर अनामिका जोर से हंस दी,तेज़ रोशनी में उसकी हँसी और उसके मोतियों से दांत ,अंकित को बहुत खूबसूरत दिखे 

“ठीक ,तो कल से आपकी क्लास स्टार्ट, इसी वक्त, क्या.. यहीं? अंकित ने अटकते हुए पूछा

“यहाँ कोई प्रॉब्लम है आपको”अनामिका बोली

“नहीं ..नहीं.. वो आप अकेली है तो शायद आपको या आपके पेरेंट्स को ऑकवर्ड आई मीन अ ..अ”

“आप ज्यादा सोचते हैं..बेफिक्र रहिये किसी को कोई प्रॉब्लम नहीं… आप को तो कोई प्रॉब्लम नहीं ना? आप भरोसे के लायक हैं ना”? उसने तनिक शरारत भरे अंदाज़ में मुस्कुराते हुए पूछा

“बिल्कुल.. कैसी बात कर दी आपने,में यकीनन बहुत शरीफ हूँ “

अंकित मन ही मन ये सोचकर डर गया कि, उसे कहीं अनामिका ने खुद को देखते हुए जान तो नहीं लिया…

“आपने फीस नहीं बताई”

“प्लीज़ मुझे शर्मिंदा ना करें,जिस तरह से आपने मुझे सही वक़्त पर बचाया इसका एहसान तो जिंदगी भर ना चुका पाऊँगा, आपकी हरसंभव मदद करके, मुझे खुशी ही होगी”

“फिर भी”

“बाद में देखते हैं”  अंकित ने बात लम्बी ना खींचने की वजह से ये बोल दिया,और लगभग दौड़ते हुए घर की ओर भागा जितने समय वो अनामिका के साथ रहा,उसे अपनी परेशानी  याद भी न रही,कहीं 

आंटी,अंकल जी को ना मना पाई तो उसे कहीं रहने का इंतज़ाम करना होगा,और जेब मे वही अनामिका के दिये हुए हज़ार रुपये और कुछ चिल्लड़ ही पड़े हैं ,हे ईश्वर अंकल जी मान गए हों,अब वो खुद को संयत महसूस कर रहा है,कुछ काम करेगा ..कुछ भी..लेकिन अब खाली बैठ केवल दुख  नहीं मनाएगा, ना जाने क्यों आज सा उत्साह खुद में उसने, मां की मौत के बाद पहली बार महसूस किया है…दौडता हुआ अंकित घर के बाहर पहुंच कर रुक गया…कोई सामान बाहर न दिखा उसे,जल्दी से डोर बेल बजाई तो घनश्याम जी ने दरवाजा खोला,चश्मा नाक पर टिकाये वो उसे बड़े गुस्से में दिख रहे थे

“अंकल जी वो… मेरा सामान,अ ..आंटी जी कहाँ हैं”?अंकित ने डरते डरते पूछा

“और कहाँ होंगी,खाना बना रहीं हैं अपने लाडले के लिए”  वो खीजते हुए बोले और अंदर  चले गए लेकिन जाते हुए जो बड़बड़ाए अंकित ने सुन लिया

‘ना जाने क्या जादू किया है, इस लड़के ने सरोज पर’..इतने में आंटी आ गयी हाथ मे थाली लिए हुए,

“ये ले, खाना खा ले अंकित,तेरा  सारा सामान उसी मुस्टंडे से तेरे कमरे में रखा दिया है”

यूँ  ही साड़ी के पल्लू से वो अपना मुंह पोछते हुए बोली,अंकित को आज आंटी जी ऐसी लगी जैसे मानो उसकी मां की आत्मा उनमे आ बसी हो…ममता थी आंटी जी को उससे ,ये वो जानता था लेकिन इतनी… ये आज ही पता लगा…वो उन्हें बहुत देर देखता रहा ,

“ये भी तो बता दो कि उस मुस्टंडे को पैसे मैंने अपनी जेब से दिए हैं,जो मैं किराये के साथ बसूलूँगा ” घनश्याम ने जब तेज़ आवाज में भीतर से कहा, तो दोनों को हँसी आ गयी

“हाँ ..हाँ अंकल जी,बस देर लगेगी पर सारा पैसा दूँगा”     

अंकित ने ये बोलते हुए, रोटी का एक़ टुकड़ा तोड़ ,बहुत प्यार से आंटी के मुंह मे खिलाया और थाली ले  अपने कमरे में दौड़ गया,

…. सामान लगाते लगाते तय किया कि उसे जल्दी से कोई जॉब जॉइन करनी है कैसी भी बस जल्दी से जल्दी …और सामान रख वो मार्केट की तरफ न्यूज़पेपर लेने दौड़ गया…….

एम्प्लॉयमेट न्यूज़ पेपर में से दो जॉब अपने मुताबिक निकालकर अंकित ने अलग रख लिए,और अनामिका के लिए नोट्स बनाते -बनाते सो गया

अगली सुबह जल्दी उठ ,दोनों जगह इंटरव्यू दिए ..पर हुआ कुछ नहीं, इंटरव्यू देकर सीधे ही शाम को अनामिका के घर गया तो दरवाजे पर पैर रखने से पहले ही गेट खुल गया…और सफेद ड्रेस पहने अनामिका सामने ही खड़ी दिखी…बिल्कुल सफेद.. गुलाब जैसी …खूबसूरत

“अरे,अंकित जी..आइये ..आइये…आप बैठिए ,मैं कुछ खाने को ले आती हूँ आपके लिए” उसने चहकते हुए कहा

“अरे ,प्लीज़ आप मेरे लिए परेशान मत होइए” अंकित ने कहा, लेकिन वो अनसुना   कर अंदर चली गयी..और जितनी जल्दी गयी उतनी ही जल्दी चाय की ट्रे के साथ बापस भी आ गयी,

“ये लीजिये…यूरोपियन हिस्ट्री के नोट्स, अभी इसे देख भर लीजिये, ताकि कुछ समझ ना आ रहा हो तो अभी क्लियर कर दूँ, मुझे यकीन है आप इसे दो से तीन बार अगर पढ़ लेती हैं तो ये आप को याद हो जाएगा”  उसने कुछ  पेपर्स अनामिका को थमाते हुए कहा

“यूरोपीयन हिस्ट्री.. सबसे मुश्किल टॉपिक लगा मुझे ,मैंने इसे बाद के लिए रखा था” 

उसने मुँह बनाते हुए जवाब दिया

“हम्म,फिर तो ठीक ही जा रहे हैं”

“क्या मतलब”

“मतलब ये कि ,सबसे कठिन सबसे पहले”

“मैंने तो सुना था,सबसे सरल ,सबसे पहले”

“गलत सुना फिर तो आपने” उसने चाय का कप उठाते हुए कहा

“आं…”आंखे बड़ी.. कर वो अंकित की ओर आश्चर्य से मुंह खोले देखने लगी 

“हाँ ..ठीक वैसे ही ..जैसे मैंने सुना था ‘कि लड़कियों को डेट्स और टाइम याद रहते हैं और आपने मुझे ठीक किया था…तो …सबसे कठिन ,सबसे पहले ” उसने बिस्किट मुंह मे रखते हुए कहा

“हम्म,ठीक है,ओ .के.” और वो मुस्कुराते हुए नोट्स पढ़ने लगी बिना आवाज,और बिना ओंठ हिलाये,अंकित ने आज पहली बार जाना कि उसकी आंखें काली हैं और नोज की शेप देख उसे अपनी मां की कही बात याद आ गयी

##,”अंकी …जब तेरे लिए कोई लड़की पसंद करूँगी तो उसे ये नथ दूंगी”

उन्होने अपनी लाल और हरे दानों वाली नथ, उसे दिखाते हुए कहा था

“माँ.. अब आजकल की लड़कियां ये नथ पहनना कहाँ पसंद करती हैं “

उसने जैसे मजाक बनाते हुए कहा

“तुझे क्या पता लड़कियों के बारे में..हर लड़की नथ में खूबसूरत दिखती है” 

माँ ऐसे बोली जैसे उन्हें हर लड़की के बारे में पता हो और वो उनकी मासूमियत देख उनसे लिपट गया था

….

उसके दिमाग में ऐसे ही कौंध गया ‘तो क्या अनामिका को भी नथ पहनना पसंद होगा’ ?

**आप शरीफ तो हैं ना** अनामिका की कही बात जैसे ही याद आयी वो सारे ख्याल झटक,संभल कर बैठ गया,वो अब तक अपनी निग़ाहें पेपर्स पर टिकाये थी

“मानना पड़ेगा अंकित जी,इट्स जस्ट… अमेजिंग.मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि, दिस टॉपिक कुड बी देट मच ईजी ..आपने इसे एक कहानी के रूप में लिखकर कितना आसान बना दिया है” अपनी आंखें गोल कर वो चहकती हुई बोली…उसे यूँ खुश देखकर अंकित को अच्छा लगा

“तो..मुझे लगता है आज के लिए इतना ही काफी है,बच्चों की तरह एक घण्टे की क्लास का तो कोई मतलब नहीं”

“सही कहा आपने…क्या हुआ,कुछ परेशान से दिख रहे हैं आप”?

“आपसे मेरे हालात छिपे नहीं हैं …आज जॉब के लिए गया दो जगह ..लेकिन कहीं कुछ भी नहीं हुआ”

“शायद मैं आपकी कुछ मदद कर पाऊं” और उसने न्यूज़पेपर  का एक छोटा सा टुकड़ा अंकित को थमा दिया,

“ये…क्या है”

“राव इंडस्ट्री का एड्रेस है ये,बताने की जरूरत नहीं कि कितनी बड़ी कम्पनी है ये,इसके मालिक ,एम.एन.राव ..बहुत सज्जन और जमीन से जुड़े इंसान हैं, अगर आप उन्हें इम्प्रेस कर सके,तो जॉब तो मिलेगी ही, साथ ही आपको उनसे बहुत सीखने को भी मिलेगा..एक पर्सनल असिस्टेंट की वेकेंसी है “

“हम्म सुना है मैंने इस कम्पनी के बारे में..लेकिन मैं.. कैसे”

“क्यों…?

“मेरे पास कोई एक्सपीरियंस नहीं”

“मैंने कहा ना,एक बार जाइये तो,उन्हें इस वक़्त असिस्टेंट  की बहुत जरूरत है, बस राव सर को इम्प्रेस कर लीजिए ….प्लीज़ मेरे कहने से” 

उसने इतने विश्वास और रिक्वेस्ट के साथ कहा तो अंकित को मानना पड़ा

उसने हाँ में सिर हिलाया और तेज़ कदमों से वहाँ से निकल आया”

2.

“राव इंडस्ट्रीज “के ठीक सामने खड़ा था अंकित..सारी ताकत बटोर गेट के अंदर कदम रखा ,नाम और अड्रेस फॉर्मेलिटीज पूरी करने के बाद रिसेप्शन एरिया में गया तो कुछ ही लोग चलते-फिरते दिखे ,और सामने ही,आंखों पर चश्मा लगाए,प्रोफेशनल एटीट्यूड के साथ एक़ लड़की कुछ फाइलों में उलझी हुई सी..शायद यही मदद कर सके,

“एक्सक्यूज़ मी,मुझे राव सर से मिलना है”

“वाट्स योर नाम,डू यु हेब एनअप्पोइन्टमेन्ट”? उसने एक नज़र अंकित को देखा और फिर कुछ टाइप करने लगी

“आई डोन्ट हेब एनी अप्पोइन्टमेन्ट,स्टिल आई वांट टू मीट हिम”

“व्हॉट”? उसने चिढ़ते हुए कहा इतने में एक साठ-बासठ साल की उम्र के एक दुबले पतले लेकिन स्मार्ट से आंखों पर सुनहरी फ्रेम का चश्मा पहने राव सर ,फ़ोन पर बात करते हुए उस डेस्क के  पास आये,

“राखी, फैक्स  नहीं किया क्या अभी तक..श्रीवास्तव को?”

“आइ एम सॉरी सर,बस्स करने ही वाली थी कि ,ये…ये आपसे बिना अपॉइंटमेंट मिलना चाहते थे”

राखी ने इशारा कर बताया तो राव सर ने अंकित से खुद पूछ लिया “हाँ कहिए …वैसे कहाँ से आये हैं आप?”

“सर् …बस्स दो मिनट बात करनी थी” अंकित ने रिक्वेस्ट की,लेकिन राव सर फ़ोन पर किसी को जवाब देने लगे

‘हाँ ..हाँ श्रीवास्तव जी,इतने भी क्या अधीर हो रहें हैं आप,बस्स करने ही वाली हैं राखी आपको फेक्स…हाँ सही कहा ..हा ..हा आपने ,बहुत जरूरत है पर्सनल असिस्टेंट की..कल रखवाए हैं इंटरव्यू ,देखो ..कोई अच्छा सा कैंडिडेट मिले…”

फिर अंकित की तरफ देखकर उन्होंने अंदर आने का इशारा किया और केविन में चले गए…पीछे पीछे अंकित भी,

…..वो जिस कमरे में रहता है उससे तो तीन गुना बड़ा राव सर का केविन ही था,उनकी सीट के ठीक पीछे एक नेचुरल सीन की पूरी दीवार पर उभरी हुई सीनरी बनी थी जोकि बहुत खूबसूरत थी,झरने से बहता हुआ पानी बिल्कुल असली सा लग रहा था,बाई तरफ जहां एक बड़ा सा असली फूलों का फूलदान लगा था,तो दूसरी तरफ गौतम बौद्ध का बड़ा सा स्टेचू ,राव सर अब भी फ़ोन पर बात कर रहे थे,बड़ी सी टेबल पर कुछ फाइलें और एक कंप्यूटर भी रखा था,और वहीं पड़ी चार खूबसूरत कुर्सियों में से एक पर वो बैठा था,कुर्सियों के पीछे फिर एक बड़ा सा सोफा और छोटी सी टेबिल…

“आपने बताया नहीं, कहाँ से आये हैं आप ?” राव सर ने अपना फोन रखते हुए कहा

“सर,एक वेकेंसी है आपके यहाँ.. पर्सनल असिस्टेंट की..मैं.. आपका असिस्टेंट बनना चाहता हूँ”

“व्हाट नॉनसेंस.. ये क्या तरीका हुआ,कल से इंटरव्यूज हैं आप तरीके से आइये, आप ऐसे कैसे ? ..मुझे लगा आप किसी कंपनी से आये हैं” राव सर ने गुस्से में कहा

“सर प्लीज़ अब जब ऐसे अंदर आने का मौका आपने दे ही दिया है तो बस दो मिनट दे दीजिए,मै खुद चला जाऊंगा”

“ठीक है बोलिये “उन्होंने एक गहरी सांस लेते हुए कहा

“कल बहुत केंडिडेट आएंगे मेरा नम्बर आते आते या तो आप पहले  ही एक राय बना लेंगे,या फिर बोझिल हो जाएंगे तब तक,और मुझे बोलने का मौका नहीं मिलेगा,में हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुऐट हूँ ,दो साल का इंग्लिश मीडियम स्कूल में इंटरमीडिएट तक बच्चों को पढ़ाने का अनुभव है,मतलब मुझे इंग्लिश आती है लोगों के बीच काम कर सकता हूँ, मैं घड़ी के मुताविक काम नहीं करूंगा बल्कि बिना टाइम देखे काम करूंगा,जो सैलरी मिलेगी  वो बड़ी खुशी से स्वीकार करूंगा, अनुभव जरूरी है लेकिन जहाँ काम की काबलियत, जुनून ईमानदारी के साथ हो तो अनुभव से भी बढकर होता है में जल्दी सीखता हूँ तो ट्रेनिंग की भी जरूरत नही है ,मुझे ये जॉब चाहिए ही चाहिए  सर”

“हम्म..हो गया…समय पूरा हो गया..और आपकी बात भी,अब आप जा सकते हैं” 

उन्होंने बड़े शांत भाव से कहा,ये सुनकर अंकित निराश हो गया,और सिर झुकाए बाहर जाने लगा जैसे ही गेट पर पहुंचा कि राव सर ने आवाज लगा दी

“रुकिए,अगर मेरा ख्याल भी रखना पड़े तो ,रख पाएंगे ? 

राव सर ने मुस्कुराते हुए कहा तो अंकित के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी,उन्होंने कहना जारी रखा,

“पांच दिन ट्रायल पर रखूंगा तुम्हे,और अगर तुम खरे नहीं उतर पाए तो, ऐसे ही मुस्कुराते हुए बापस जाओगे , क्या ये वादा कर सकते हो?”

“बिल्कुल सर्, लेकिन मुझे यकीन है..ऐसी नौबत नहीं आयेंगी”

“वेलकम इन राव इंडस्ट्रीज मिस्टर अंकित..”

“थैंक यू वेरी मच सर ,मुझपर भरोसा करने के लिए भी बहुत धन्यबाद” 

उसने बहुत खुश होकर हाथ मिलाया 

” आपकी सैलेरी  पांच दिन बाद तय करुंगा, कल 9 बजे आप, यहीं मिलेंगे मुझे…बाकी फॉर्मेलिटीज राखी बताएंगी आपको, उससे मिलते हुए जाना..गुड़ लक”

“बाहर आकर राखी से बात की अंकित ने, और लगभग दौड़ते हुए  मेंन गेट से बाहर आ गया…. फिर दो मिनट चुपचाप खड़ा रहा उसे यकीन नहीं हो रहा था,कि उसे अभी अभी जॉब मिली है,मन ही मन अपनी माँ को याद करते हुए ,उसने सोचा कि मिठाई लेनी चाहिए दुकान पर जाकर खुद में बुदबुदाया’क्या लूं, ना जाने अनामिका को क्या पसंद हो’

“लड्डू” अनामिका की आवाज सुनाई दी हो जैसे पीछे मुड़कर देखा कोई नहीं दिखा, उसने सोचा मन कि आवाज है सो दो जगह लड्डू ही पैक करा लिए ,एक सरोज आंटी के लिए और दूसरा अनामिका के लिए  ,एक बार को दिमाग मे आया कि पैसे नहीं बचेंगे,लेकिन मिठाई लेनी ही थी सो लेकर दौड़  गया अनामिका के घर हर बार  की तरह गेट खुद खुल गया,और खुशी से आवाज दी 

“अनामिका.. जी “

“हे..लगता है गुड़ न्यूज़ है” उसने चहकते हुए कहा,वो आज भी सफेद ड्रेस पहने थी..

“हम्म,अनामिका जी,समझ नहीं आता कैसे आपका शुक्रिया अदा करूँ, मुझे जॉब मिल गयी है,सब सपने जैसा लग रहा है,ये देखिए आपके लिए मिठाई लाया था”

“आप डिसर्विंग हैं अंकित जी,मुझे तो पहले ही पता था, कि आप के लिए ये जॉब हासिल करना आसान होगा…बैठिये ,मैं अभी आयी” वो अंदर चली गयी…और अंकित ने लॉबी के पास वाले कमरे से कुछ आवाजें सुनी, 

^^आप समझाते क्यों नहीं इसे, ये बिल्कुल ठीक नहीं…मैँ …मेरी भी कहाँ सुनती है वो…तब क्या करे…क्या पता^^

और इन आवाजों को सुनकर  अंकित उस कमरे की ओर बढ़  गया,और उसने दरवाजा खोल दिया और अंदर देखा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं  हुआ….                                  

3.

पूरे कमरे में धुप्प अंधेरा था,कुछ नहीं दिख रहा था,उसने जोर से कहा “कौन है यहाँ….मै पूछता हूँ..कौन है यहाँ…जवाब दो”

“यहाँ बस्स मैं.. और आप ..हम दो ही हैं अंकित जी” अंकित ने जब पीछे मुड़कर देखा तो अनामिका हाथ मे लड्डू की प्लेट लिए खड़ी थी

“मेरा यकीन कीजिये अनामिका जी,मैंने अभी-अभी दो लोगों को बात करते सुना है…यहीं ..इसी कमरे से आवाजें आ रहीं थीं”  उसने अपने दोनों हाथ कमरे की तरफ़ इशारा कर, आंखे फैलाते हुए  कहा ,अनामिका  ने कमरे में जाकर लाइट का स्विच ऑन कर दिया

पूरा कमरा रोशनी से भर गया,ना कोई आलमारी, ना कोई बेड ,सीधी सपाट दीवारों पर कुछ पेटिंग्स लगी थीं,और चार खूबसूरत आरामदायक कुर्सी एक मेज के साथ फर्श पर लगे थे,…यहाँ कोई छिप भी नहीं सकता,कोई और दरवाजा तक ना था..अंकित अपनी आंखों से ये सब देख ही रहा था,कि अनामिका ने उसका हाथ पकड़कर उसे कमरे के अंदर हल्का खींच सा लिया और बोली

“देखिए,अच्छी तरह देख लीजिए..कोई था ,तो कहाँ गया..मैंने आपको पहले भी कहा था,यहाँ सिवाय मेरे ,कोई नहीं” उसका हाथ अब तक अंकित के हाथ मे था,कमरे की आवाजों वाली बात तो दरनिकार हो गयी थी,अब उसे अनामिका के हाथ की छुअन से अपनी धड़कने बढ़ी महसूस हो रही थी अपने होंठ भीचे..वो उसे अपलक तब तक देखता रहा जब तक अनामिका ने अपना हाथ हटा नहीं लिया

“अंकित जी,क्या आप किसी की कमी महसूस करते हैं.. अपने जीवन में”. उसने अपनी नजर अंकित के चेहरे पर गढाते हुए पूछा

“जी..जी…हाँ ..बो अपनी माँ की, हाल ही में उनका निधन हो गया…क्यों ..आप ऐसे क्यों पूछ रहीं हैं  ?” खुद को वो अब भी संयत महसूस नहीं कर पा रहा था

“क्योंकि जब हम किसी की कमी महसूस करते हैं,तब ही ..ऐसा कुछ भी महसूस करते हैं”

“पता नहीं… लेकिन माफी चाहूँगा ऐसे बिना आपकी इज़ाज़त यूँ मुझे दरवाजा नहीं खोलना चाहिए था,ये एटीकेट्स में नहीँ आता,आइ एम सॉरी” उसने अपनी नजरें झुकाते हुए कहा,

“सॉरी किसलिए,अपनों को तो फिक्र होती ही है,आप मेरे अपने ही तो हैं” उसने मुस्कुराते हुए कहा

“मैं… आपका ..अ …प…ना”उसने अटकते हुए बात दोहरा दी

“क्यों…नहीं हैं क्या”? वो अब तक मुस्कुरा रही थी

अंकित को लगा उसके दिल की धड़कन दो सौ की स्पीड से दौड़ रही है,बहुत से भावनाएं एक साथ आयीं पर ये ना समझ आये कि कहे क्या 

“वो अ …अ …अनामिका जी..मुझे कुछ याद आ गया..बहुत जरूरी काम करना है,कल मिलता हूँ आपसे” और बाहर की ओर  दौड़ गया,

बेतहाशा भागते हुए उसी पेड़ के पास आकर रुक गया जहाँ पहली मुलाकात में अनामिका ने उसका इंतजार किया था जब वो आंटी जी को सामान रखने के लिए मना रहा था और बड़बड़ाने लगा

 ‘ गधा है तू अंकित. बेबकूफ है सो भी एक नम्बर का,’वो खुद कह कह रही थी,आप मेरे अपने हैं’ और तू वहाँ से भाग खड़ा हुआ, ना जाने क्या सोच रही होगी वो मेरे ऐसे व्यवहार से ,स्साला.. हद्द है जहिलपने की …! खीजते हुए घर की ओर आया और डोरबेल बजाई,सरोज  ने दरवाजा खोला,पूजा की थाली हाथ मे लिए थी ,शायद पूजा करते करते घंटी की आवाज सुन ऐसे ही आ गयी थी, मुस्कुराते हुए अंकित की बलाइय्या लेने लगी 

“ईश्वर तुझे तरक्की दे,बहुत खुश रखे”

“आपको डांस करना आता है, आंटी” अंकित ने बड़े खुश होकर पूछा

“डांस…अब आजकल के बच्चों जैसा तो नहीं, लेकिन कहीं महिला संगीत होता है या जागरण तो थोड़ा यूँ ही हाथ पैर हिला देती हूं, देख ना कितनी तो मोटी हैं तेरी आंटी” उन्होंने अपने कमर पर हाथ रखते हुए कहा

“मोटे होंगे आपके दुश्मन, क्या अपने अंकित की जॉब लगने की खुशी में नहीं नाचेंगी” 

ये कहते हुए अंकित ने पूजा की थाली हाथ से लेकर साइड में रखी और उनका हाथ पकड़ नाचने लगा “अरे सच मे क्या, बता ना कहाँ लगी है “बड़ी खुश होकर आंटी ने ठुमकते हुए पूछा

“यहीं राब इंडस्ट्री में …माँ” अपने आप उसके मुंह से सरोज के लिए ‘माँ ‘शब्द निकल गया जिसे सुन सरोज भावुक हो गयीं और अंकित को गले लगाकर बोलीं, 

“बहुत तरक्की कर खुश रह जीता रह…मेरे बच्चे”

दोनों को ऐसे डांस करते देख घनश्याम,सरोज के  सामने आकर बोले

“बहुत बढ़िया,देखती जाओ….पूरी तरह पागल कर देगा ये लड़का तुम्हे “

“अररे  तुम तो बस एक ही रथ पर सवार रहते हो,सुनो तो उसे नौकरी मिली है” सरोज ने नाचते हुए कहा

“नौकरी …इस समय ? जरा सुनूं तो कहा मिली है”

“अंकल जी, राव इंडस्ट्री में, पर्सनल अस्सिटेंट की जॉब है”अंकित ने बहुत विन्रम होकर कहा

“लेकिन,तुम तो टीचर हो न “?

“जी,लेकिन भगवान….”बात पूरी भी ना कर पाया अंकित कि बीच मे ही उन्होंने टोकते हुए पूछा

“सैलरी कितनी मिलेगी”?

“वो ..पांच दिन बाद तय होगी”

“और पांच दिन बाद एक नया बहाना बना देना,सरोज की तरह मुझे पागल मत समझो..ये बाल यूँ ही धूप में सफेद नहीं हुए” उन्होंने चिढ़ते हुए जवाब दिया

“आप तो …”सरोज ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने बीच मे ही हाथ का इशारे से रोक दिया ,और बोले

“सरोज ,मैं बाज़ार जा रहा हूँ …पनीर लेने ..तुम मसाला तैयार कर देना.आज सब्जी मैं खुद बनाऊंगा”

उनके बाहर जाते ही सरोज ने अंकित की ओर देखकर कहा “ये ना…,मेरी सुनते ही नहीं”

“आंटी जी, मुझसे अंकल जी.. से बिल्कुल शिकायत नहीं” उसे हँसता देख सरोज ने उसके बालो में हाथ फेरते हुए कहा “माँ ही बोल ना”

“हाँ… हाँ ..मां ..मुझे कोई शिकायत नहीं किसी से” और हँसते हुए सीढिया चढ़ अपने कमरे में पहुंच गया

बिस्तर पर लेट गया ……

#आप मेरे अपने ही तो हैं# आप मेरे अपने ही तो हैं# अनामिका की कही ये बात अंकित के दिमाग में लगातार टेप रिकॉर्डर की तरह बज रही थी और अंकित मुस्कुराता हुआ बस  करवटें बदलता जा रहा था ,और ऐसे ही करवटें  बदलते -बदलते थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गयी 

xxxx

राव इंडस्ट्री पहुंचा ही था अंकित को देख ,राखी ने आवाज लगा दी  “अंकित सर्, एक मिनट…कुछ डिटेल्स फिल करनी हैं,बस्स दो मिनट लगेंगे”उसने रिक्वेस्ट करते हुए कहा तो अंकित बोला

“हाँ मेम पूछिये”

“पूरा नाम”

“अंकित “

“सर् ..सरनेम बताइये”

“मैं सरनेम लगाता ही नहीं,लगाना भी नहीं चाहिए”

“ओह्ह इम्प्रेसिव ,अच्छा हाइट बताइये अपनी”

“हाइट क्यों”?

“यहाँ का रूल है, सर”

“ओके,फाइब फ़ीट इलेवन”

“हम्म,बॉडी वेट?”

“सेवेंटी नाइन”

“उम्र”

“29”

गेँहूए रंग के स्मार्ट और खूबसूरत और काबिल अंकित को राखी मुस्कुराते हुए देखने लगी,अपनी ओर राखी को ऐसे देखते हुए अंकित थोड़ा असहज हो गया और बोला 

“मेंम,कुछ और पूछना है क्या आपको”

“अ ..अ ..नहीं… लेकिन बताना है,राव सर ,को शुगर की प्रॉब्लम है,तो कुछ मीठा मत खाने देना,आज आपका पहला दिन है,मुबारक हो”

“थैंक यू”

अंकित जब अंदर पहुंचा ही था, कि राव सर आ ग़ये,

“गुड़ मॉर्निंग सर”

“वेरी गुड़ मोर्निग अंकित,सबसे पहले कॉफी मंगा लो” उन्होंने बैग  रखते हुए कहा

“अंकित ने कॉफी मंगा,उन्हें फीकी कॉफी दी,और अपनी कॉफी में शुगर डालने लगा अभी एक चम्मच ही डाली थी,कि नजर राव सर की तरफ चली  गयी जो, उसे ही देख रहे थे,

“हा हा जनाब ,यूँ मेरे सामने अपने कप में आप ऐसे शुगर डालेंगे तो क्या मैँ खुद को रोक पाऊंगा” वो  जोर से हँस रहे थे

“माफ कीजिये सर,आज के बाद मीठी कॉफी कभी नहीं पिऊंगा,और आपके सामने तो बिल्कुल नहीं”

“बहुत अच्छे,अच्छा सुनो, टाइम कम है,और आपने पहले ही कहा है कि ट्रेनिंग नहीँ चाहिए,तो पकड़ो इस फ़ाइल को.इसमे सारे बागानों की डिटेल है,ध्यान से पढो …उसके बाद संपतलाल के साथ चले जाना और खुद देखकर आना..”

“यस सर”

“मैं चाहता हूँ, तुम्हें चीज़े अच्छे से पता हो,एक हिंट देता हूँ ,कि वहां जाकर बस बाग़ान देखना भर नहीं… समझ गये ना”

“जी बिल्कुल सर्”

“ठीक है जाओ फिर,खत्म करो ये काम आज के आज”

और अंकित संपतलाल के साथ बागान देखने चला गया,गाड़ी से उतर जब ..फलों से लदे पेड़ देखकर बड़ी खुशी से वो बोला 

“देखो  संपतलाल ,ये पेड़ फलों के साथ कितने खूबसूरत दिख रहे हैं,हैं ना? कुछ बोलो ना,कोई उत्तर न पाकर जब वो पीछे पलटा तो  देखा.. कोई नहीं था, संपतलाल ने थोड़ी दूर से अपना हाथ उसकी ओर देखकर  हिलाया ये जताने कि वो वहाँ है,संपतलाल पगडंडी पर आया ही नहीं, बल्कि वही रुक गया और  बीड़ी पीने लगा 

अंकित बापस मुड़ा अपना काम पूरा करने में लग गया ,उसे बराबर लगा कि कोई साथ साथ चल रहा है,लेकिन जब पीछे मुड़कर देखता तो कोई ना दिखता,काम खत्म कर जब जाने लगा तो उसे यकीं हो गया कि कोई उसके पीछे -पीछे  चल रहा है,और इस बार वो अचानक एक झटके से पीछे मुड़ा तो अपनी आंखों पर यकीन ना हुआ…

“अ ….अनामिका  आप..यहाँ “??? उसके मुँह से निकल गया,वही थी खुले बालों और सफेद सूट में बिल्कुल उसके पीछे…जब उसने यूँ अंकित को मुंह खोले अपनी ओर ताकते हुए देखा तो बोली “क्यों…यहाँ मेरे आने पर बैन  लगा है”? 

“नहीं ..नहीं मेरा मतलब वो नहीं था,यहाँ अचानक, आप ऐसे दिखेंगी …लगा नहीं था”

“तो …अब क्या आपको ,इन्फॉर्म करके आना-जाना चाहिए मुझे”? उसने अपनी एक आइब्रो उचकाते हुए कहा

“मुझे लगा कि कोई मेरे पी छ.. छे ” बोलते बोलते अंकित संभल  गया,और खुद में बुदबुदाया ..संभल जा बेटा अंकित..कल ही गलत साबित कर चुकी है तुझे…सोचेगी कि इसे कभी आवाज सुनाई देती है तो कभी कुछ दिखता है..नहीं नहीं मुझे ऐसी कोई बात नहीं बोलनी

“मेरा बस… ये मतलब था,कि मैं आपके पास ही आ रहा था यहाँ से”

“क्लास के लिए”

“जी”

“नहीं ..आज क्लास नहीं …मुझे कुछ काम है,आप कल आइये ” बड़े उखड़े मन से अनामिका ने उत्तर दिया तो अंकित ने कहा”ठीक है”

और वो तेज़ी से निकल गयी,अंकित को  ये बड़ा अजीब लगा वो उसे तब तक देखता रहा जब तक कि वो आंखों से ओझल ना हो गयी

“अंकित…जी…कल क्या कर रहे हैं आप?”

नजर घुमा कर देखा तो राखी अपने दोनों हाथ पीछे खींचे उसी की ओर थोड़ी झुकी हुई खड़ी थी,और अपने चश्मे में से चमकती आंखों से उसकी ओर  ताक रही थी,

“अरे ..आप…यहाँ “.

अपने सामने यूँ राखी को देखा तो  बोल गया

“जी…मेरे घर का रास्ता यही से है” उसने हाथ से इशारा कर बताया

“ओह,अच्छा …ठीक है” बोलकर वो चल दिया,अभी अंकित ने एक कदम आगे रखा ही था ,कि राखी ने कहा,

“मैंने आपसे कुछ पूछा, आपने जवाब नहीं दिया”

“क्या?…अच्छा कल … कल क्या वही ऑफिस आऊंगा”

“बकवास जोक  “

“मतलब ?”

“मतलब ये,कि कल संडे है, और संडे की छुट्टियों की शुरुआत सन 1890,से इंडिया में शुरू हो चुकी है श्रीमान अंकित..”  वो अभी भी अपने हाथ पीछे की ओर किये मुस्कुरा रही थी

“अरे हाँ, कल तो संडे है,सॉरी भूल गया था, बस्स कुछ कपड़े ववड़े धो डालूंगा ..और क्या”

“कल नीरू के साथ मैं ‘मॉल रोड ‘ जा रही हूँ ,आप साथ चलेंगे “?

“तुम लोगों के साथ ,मैं क्या करूँगा?अंकित ने टालना चाहा

“क्यों ..नीरू मेरी फ्रेंड है ,कोई बॉयफ़्रेंड तो नहीं..जो आपको कुछ सोचना पड़े,चलिए ना, किसी भी चीज के बारे में लोगों के अलग अलग नजरिये ट्रिप को शानदार बना देते हैं ,चलिए ना प्लीज़”

राखी को यूँ मनुहार करते देख,अंकित मना नहीं कर पाया और “हां “में सिर हिलाते हुए पूछा 

“तो कल कहाँ आना है ये बताइये”

“यहीं… ठीक दस बजे”

“ओके”

“अंकित सर,कांटेक्ट नंबर दीजिये,अगर लेट हुए या कुछ और तो आपको कॉल कर दूंगी, और आपकी डिटेल फिल करते वक़्त भी आपका नम्बर लेना भूल गयी थी”

“राखी मेम, मेरे पास मोबाइल नहीं, एक लैंडलाइन नम्बर है वो भी मेरे मकानमालिक का है”

“राव इंडस्ट्री के पी. ए.,और मोबाइल नहीं “वो जोर से हँसी और बोली “ओके ,कोई बात नहीं ,लैंडलाइन नम्बर ही दीजिये”

“सही कहा आपने ,अगले महीने शायद ले लूँगा”

अंकित ने लैंडलाइन नम्बर दिया और ऑफिस चला गया केविन की तरफ नजर गयी तो देखा राव सर अभी तक  वहीं थे किसी फाइल में सिर घुसाए किसी उधेड़बुन में थे

“सर…अंदर आ सकता हूँ” अंकित के पूछने से जैसे होश में आये हों

“आओ ..आओ, अंकित तुम्हे पूछने की जरूरत नहीं, कैसा रहा सब”

“बहुत बढ़िया”उसने फाइल लौटाते हुए कहा

“तो…क्या देखा”?

“सर वो जो तराई वाला बाग़ान है,जिसे इस फ़ाइल में न.3 के रूप में बताया गया है,मुझे उसमे बहुत संभावना दिखती है”

“संभावना ?.. और बाग़ान न.3 में ? अंकित ..सबसे कम प्रॉफिट उसी बाग़ान का है”

“सर.. मैंने  बस्स उसी बाग़ान का सेब खाया ,बहुत ही रसभरा,लेकिन पेड़ों की अपेक्षा फल कम हैं,क्योंकि मिट्टी की क्वालिटी अच्छी नहीं है और उस पर अगर थोड़ा काम हो जाये तो रिजल्ट बहुत बेहतर आ सकते हैं”

“तो …क्या ये कहना चाहते हो कि तुम्हे  मिट्टी के टाइप की नॉलेज है”?

“कोई कोर्स तो नहीं किया, लेकिन अच्छी नॉलिज जरूर है,मेरे दादा जी और अब पिता  भी एक किसान हैं ,खेती करना हमारे  खून में है बस्स इसीलिए ..”

“हम्म…अच्छा ..ठीक है तुम्हारी बात पर यकीन कर मैं किसी स्पेशलिस्ट को वहाँ ले जाऊंगा…अच्छा तुम ध्यान से सुनो, इस आफिस में कितने लोग है और उनका प्रोफाइल क्या है? और फिलहाल कौन से डीलर के साथ हमारी क्या बातचीत चल रही है और डील क्या है? …तुम्हे कल शाम तक पता होना चाहिए…कर पाओगे”?

“यस सर्

“मेरे यकीन को बनाये रखना,मैं चाहता हूँ जल्दी से जल्दी तुम्हे इतना पता हो कि ऑफिस के बारे में कोई बात करुं तो तुम ऊपर की ओर ना ताको”

“मैं समझ गया सर”

***

शिमला ,स्केंडल पॉइन्ट,मॉल रॉड

“आप बता सकते हैं ,ये क्या है”राखी ने पूछा

“स्केंडल पॉइंट ,नाम है ना इसका” 

“हम्म, लेकिन ये नाम क्यों पड़ा ,क्या ये पता है?

“नहीं, तुम्हें पता है तो तुम बताओ”

“सुना जाता है ,पटियाला के एक महाराज थे उनका अफेयर ब्रिटिशर की  बेटी के साथ था,जिससे नाराज होकर ब्रिटिशर ने उन्हें इस पॉइंट के आगे जाने के लिए बैन कर दिया था

“ओह्ह ..इंटरेस्टिंग… फिर?

“फिर क्या,वो महाराज जो थे,बैन से चिढ़कर यहां से लगभग पैंतालीस किलोमीटर की दूरी पर उन्होंने एक जगह ही बना  डाली, जिसे ‘चैल ‘के नाम से जाना जाता है”

“बहुत अच्छे,क्या ये बात सच है”?

“कौन जाने,बस्स ऐसा सुना जाता है”

“कुछ भी सही,है काफी इम्प्रेसिव और इंटरेस्टिंग …राखी मेम ,आप संडे को यही टूर गाइड का पार्ट टाइम जॉब क्यों नही करतीं आं ” अंकित ने जब मजाक के मूड में राखी को बोला, तो अपना बैग उसने अंकित को मारते हुए कहा “यू”

“अहा हा हा..अरे …मैं तो मजाक कर रहा था…चलिए कुछ खा लेते हैं फिर चलते हैं”

और नीरू के कहने पर तीनों रसगुल्ले खाने पर एकमत होकर,खाने चले गए !

***

अंकित ने घर आकर जैसे ही डोरबेल बजायी ..अचानक उसे शरीर मे कंपन महसूस हुआ,इतने में सरोज ने दरवाजा खोला और अंकित चकरा कर सरोज के ऊपर निढाल हो गया,

“अंकित …अंकित…तू ठीक है ना बेटा” सरोज ने उसे संभालते हुए पूछा ,तब तक अंकित संभल गया 

सरोज के पीछे ही राधेश्याम खड़े थे,गुस्से में आगबबूला होते हुए बोले

“ मैंने क्या कहा था,कि अभी तो शुरुआत है,आज शराब पीकर आया है…कल देखो क्या करता है” 

“हाँ माँ, ठीक हूँ अब ” अंकित ने राधेश्याम की  बात को अनसुना कर ,अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा

“तूने शराब पी है” सरोज ने जरा सख्ती से पूंछा

“कैसी बात करती हैं आप,ना तो मैंने आज तक शराब पी है ना ही पिऊँगा, वो तो बस्स …चक्कर आ गया था इसलिए …मेरा सिर दुख रहा है”

“ला जरा देखूं तो” सरोज ने अंकित के माथे पर हाथ रखा तो घबराकर बोली 

“अरे तुझे बड़ी तेज़ बुखार है,यही रह तू मैं तुझे ऊपर नहीं जाने दूँगी”

“नहीं …ठीक हूँ ,आप बेकार ही इतना  परेशान है..शायद थकान की वजह से …मैं ठीक हूँ “

और इतना बोल अंकित सीढिया चढ़ गया अपने कमरे में बेड पर लेट अंकित को यूँ ही ख्याल आया कि अनामिका ने इतना बेरुखी वाला व्यवहार उससे इसीलिए किया क्योंकि वो उसके घर से अजीब तरीके से निकल आया था जो कि बिल्कुल ठीक नहीं था .. यही सब सोचते सोचते उनींदा हो गया कि किसी की  तेज़ पैरों की आवाज महसूस की…करवट बदल कर देखा तो उसे लगा कोई उसी के पास चला आ रहा था,लेकिन शरीर मे बिल्कुल हिम्मत नहीं कि उठ कर देखता ,एक खूबसूरत सी प्रतिमा …सफेद झिलमिल से खूबसूरत लहंगे में खुले बालों के साथ ,सिर पर दुप्पटा ओढ़े ,बिल्कुल उसके पास आकर बैठ गयी

“अनामिका ….तुम ….यहाँ… इस वक़्त ?” उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था

 “ये …ये कैसे हो सकता है”,

लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया,बल्कि मुस्कुराई खूबसूरत होंठो के बीच एकदम सफेद दांत मानो मोती चमक उठे हों… अचानक वो उठ कर चल दी …उसे यूँ जाते देख …अंकित भी अपने बिस्तर से उठ उसके पीछे पीछे चल दिया अब वो आगे आगे और अंकित पीछे पीछे … अचानक ना जाने क्या हुआ …उसके चेहरे पर एकाएक गुस्सा दिखने लगा ,खूबसूरत हँसी गायब हो गयी,… और वो ना जाने कहाँ चली गयी ,अंकित ने उसे रोकने को अपना पैर आगे बढ़ाया ही था कि लगा किसी ने उसे पकड़ लिया है और झटके से उसे पीछे की ओर खींच लिया, और अगले ही पल अंकित फर्श परपड़ाथा

4.

जमीन पर गिरते ही होश में आया हो जैसे …सामने कोई आकृति  सी दिखी ,अपनी पलकें बार -बार  झपका कर देखने की कोशिश की पर कुछ नहीं दिखा ,रोशनी भी काफी हल्की थी..वो परझाई  सामने आयी …”आंटी….आप?” अंकित के मुंह से निकला वो भौचक सा उन्हें देखता रहा,आंटी अभी तक हांफ रही थी..उन्होने हाँफते हुए पुछा

.”क्या था ये…,मै पूछती हूँ.. छत से क्यों कूद रहा था तू”?अगर खाना लेकर सही वक्त पर नहीं आती तो ..तो .हे ईश्वर.. या तो तू..हॉस्पिटल में होता…. या ….नहीं …नहीं…बता मुझे,… क्या परेशानी है तुझे”,…उन्होंने अंकित के दोनों कंधे पकड़कर जोर से झिंझोड़ते हुए पूछा ..इतने में राधेश्याम आ गए ..पास ना जाकर थोड़ी दूरी पर खड़े रहे…उन्हें देखकर सरोज बोली 

“बोल…क्या घर के किराए की फिक्र है? अरे ..तुझे बेटा माना है मैंने ..जब तक तेरी मां जीवित है,तुझे इस घर से कोई नहीँ निकाल सकता…बोल… कोई और परेशानी है तो बता मुझे”

उन्होंने अपनी आंखें अंकित पर टिकाते हुए पूछा

“मुझे… कोई परेशानी नहीं.. बस्स मुझे लगा कि,मैं किसी को रोक रहा था और …और

“और …क्या”

“फिर मुझे लगा किसी ने मुझे पीछे की ओर खींच लिया …नहीं पता में यहाँ कैसे आ गया…सच”

अंकित ने उठने की कोशिश करते  हुए कहा तो सरोज  बोलीं

“मैंने पकड़ कर खींचा तुझे …तू तो जैसे कूदने पर आमादा था ….उनकी सांस अब तक तेज़ चल रही थी

“क्या ???कूदने जा रहा था…छत से? मुझे सच मे कुछ याद नहीं.. लेकिन …लेकिन आप ने मुझे बचा लिया माँ” अंकित ने सरोज का  हाथ पकड़ते हुए कहा ,तो सरोज  उसके माथे पर हाथ रखते हुए बोली “हम्म ..समझ गयी”

“क्या…” अंकित ने अपने कपड़े झाड़ते हुए पूछा

“तुझे दिमागी बुखार हुआ है,कल ही सबेरे तुझे डॉ शाहदुल्ला को दिखाउंगी” 

“डॉ शाहदुल्ला..?”

“हाँ… एक से एक दिमागी बुखार के बिगड़े केस उन्होनें ठीक किये हैं,तुझे तो चुटकी बजाते ठीक कर देंगे वो, अब ..चल नीचे ..जब तक ठीक ना हो जाये मैं तुझे अकेले नहीं रहने दूँगी” और वो अंकित की बांह पकड़ ले जाने लगीं

“सुनिए तो…मैं यहीं ठीक हूँ ,अंकल जी नाराज होंगे…आप तो जानती ही हैं “अंकित ने हाथ छुटाते हुए कहा, तो वो बोली

“मैं  भी देखती हूँ, कैसे वो कुछ बोलते हैं..तू चल नीचे”

और अंकित को पकड़ ले जाने लगीं ,बैठी हो तो उठने में ही जिन्हें कई बार तो मिनट तक का वक़्त लग जाता है ,वही सरोज ,एक हाथ से अपनी साड़ी की प्लीट्स थोड़ा ऊपर पकड़े और दूसरे हाथ से अंकित को  ऐसे खींचे हुए ले जा रहीं थी जैसे वो चार या पांच साल का बच्चा हो …उसे बेड पर लिटा वो ठंडे पानी की पट्टी रखने लगीं, राधेश्याम मूक दर्शक बनें सब देख रहे थे,वही आंगन में टहलने लगे ,सरोज ने कुछ कहना चान्हा तो उन्होंने हाथ का इशारा कर उन्हें आश्वस्त किया कि वो जो कर रहीं हैं,उससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं

….सुबह ही सरोज ,अंकित को डॉ शाहदुल्ला को दिखा लाई और थोड़ी देर में ही अंकित को सामान्य लगने लगा,जैसे कुछ हुआ  ही ना हो,और वो ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा ,तभी सरोज ने टोक दिया “कहाँ जा रहा हैं, कहीं जाने की जरूरत नहीं..आराम कर आज”

“मां …नई जॉब लगी है ,जाना जरूरी है,…आपने इतना ख्याल रखा है,कि बिल्कुल नहीं लग रहा …कोई परेशानी थी भी …जाने दीजिए ना… जल्दी आ जाऊंगा”

“अच्छा …बहुत जरूरी है क्या? एक मिनट रुक तो  ..” और सामने आकर उसकी जेब मे एक हजार रूपए रख दिये,अंकित ने रुपये देखे तो भावविभोर होकर उसने सरोज की ओर देखा और रुपये लौटाते हुए बोला “आप बहुत अच्छी हैं, लेकिन मुझे पैसों की जरूरत नहीं है”

“खबरदार,जो कुछ बोला,चुपचाप रख ले,और  हाँ जल्दी आना शाम का खाना तेरे साथ ही खाऊँगी” सरोज ने झूठ मुठ का डाँटते हुए बोला 

“ठीक है माँ” अंकित ने कहा और बाहर निकल गया 

***

ऑफ़िस पहुँचा तो देखा,गैलरी में राखी चुपचाप अकेली खड़ी थी तो उस ओर ही चला गया,राखी को सिगरेट पीते देख बापस लौटने लगा तो राखी ने आवाज दे दी

“अंकित,क्यों बापस जा रहे हो …आओ ना” 

जब से वो दोनों नीरू के साथ मॉल रोड घूमने गए ,तब से,फॉर्मेलिटी खत्म हुई और दोंनो “आप’ से “तुम “पर आ गए थे 

“कुछ नहीं ऐसे ही”

“कोई लड़का सिगरेट पी रहा होता,तब भी यूँ ही चले जाते”

उसने धुँआ छोड़ते हुए पूछा

“शायद नहीं..”

“वही तो …लड़के सिगरेट पिये तो कोई प्रॉब्लम नहीं, लड़की पी ले तो… प्रॉब्लम ..सब स्त्री सशक्तिकरण की बात ही करते हैं  सिर्फ ” उसने ताने वाली हँसी के साथ कहा

“.हम्म …स्त्री सशक्तिकरण … मतलब…उठाइये तलवार और काट दीजिये  वो बेड़िया जो आपको आगे  बढ़ने से रोकती हैं, आप को ,आपकी  बिल्कुल निजी इच्छाओं को मारने पर मजबूर करती हैं ..और इसमें खुद के पैरों पर खड़े होना सबसे बड़ी भूमिका निभाता है,शशक्त कीजिये खुद के मन को..ताकि वो बिना डर आपको जीना सिखाये… लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है …कि तुम जैसी ही जाने कितनी पढ़ी लिखी लड़कियो ने इसका मतलब ये समझा है, कि बस जो लड़का सामने पड़े उसे  मार दो  उसी तलवार से…

राखी उसे यूँ रौ में बोलते हुए देख रही थी  

रही बात सिगरेट पीने की ..तो ये बुरी लत जरूर है ,लेकिन पाप नहीं …समझदार हो, पीना चाहो तो बेशक पियो, लेकिन इसके पीछे अगर ये सोच है,लड़के पी सकते है तो लड़कियां  क्यों नहीं…तो खुद की इंसल्ट के अलावा कुछ नहीं… क्योंकि भगवान ने  दुनियाभर की खूबियों के साथ  लड़कियों को इस दुनिया मे  भेजा है,तो मुठ्ठीभर लोगों के बोलने या सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ता…वो बेहतर थीं …और हमेशा रहेंगी “

और जब अंकित गंभीर हो गया तो माहौल को हल्का बनाने के लिए उसने  टोका

“हम्म …अच्छा बोल लेते हैं,संडे को फ्री सेमिनार क्यों नहीं आयोजित करते ..पार्ट टाइम जॉब के लिए भी अच्छा रहेगा” अहा हा हा …दोंनो हँस दिए, 

“अरे ..मैं लेट हो गया, कहीं सर ना आ गए हो और “हाँ …तुमने पूछा था ना कि ..कोई लड़का यहां होता तो मैं आता लौटता या नहीं.’तो सुनो में आता ही नहीं तुम्हे जानता हूं इसलिए आया और तुम अपने मे ही खुश दिखी तो सोचा ना विघ्न डालू, इसलिए लौट रहा था…समझी “

राखी ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई और  अंकित के जाने तक उसे राखी देखती रही…

***

राव सर आज भी किसी फाइल में उलझे दिख रहे थे, पहले फाइल देखते,फिर कैलक्यूलेटर पर कुछ हिसाब लगाते… पास ही एक प्लेट में फ्रूट्स सैलेड रखा था,देखने से लगता था,काफी देर से ऐसे ही पड़ा है

“सर…गुड मॉर्निंग”

“अंकित,…वेरी गुड मॉर्निंग…आओ बैठो”

“सॉरी सर ..थोड़ा लेट हो गया”

“अरे नहीं भई… मैं ही जल्दी आ गया हूँ  अभी तो 9:05 ही हुए हैं…अच्छा मैं गया था, एक एग्रीकल्चर  अफसर के साथ..वो तराई वाले  बाग़ान में..”

वो मुस्कुराते हुए बोल रहे थे ..और काफी खुश दिख रहे थे

“तुम्हारी बात सच निकली..सोचता हूँ तुम्हारी सेलरी आज ही फिक्स कर दूं  ,क्या कहते हो”

उन्होंने चश्मे में से आंखे अंकित पर टिका दी..और अंकित बस्स मुस्कुराने लगा

“हम्म…अभी ..तीस हजार सेलेरी ,ऑफर करता हूँ  तुम्हें…आगे तुम्हारी उम्मीदों से बेहतर बढेगी,… तुम खुश तो हो ना”?

“बहुत खुश हूं सर,थैंक यू सो मच” अंकित ने खुशी से कहा 

“ठीक है…जॉबलेस कब से हो”

“लगभग  5 महीनों से”

“ठीक है ,सादिक को बोलता हूँ… दस हज़ार कैश देगा तुम्हे ,ऑफिस के बाद मिलते हुए जाना उससे” और वो उठकर मीटिंग के लिए जाने लगे,अंकित तो बहुत खुश हो गया,कैसे जान गए सर कि उसे पैसों की जरूरत है,बस्स थैंक यू …थैंक यू सर बोलता रहा,तो राव सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

“मेहनत करो…बहुत संभावनाएं दिखती हैं तुममे, मुझे …और हां अब मेरे  शेड्यूल पर काम करो कल से”

“ठीक है सर” थोड़ा झुक कर अंकित एक तरफ हो गया और राव सर बाहर निकल गए…अंकित के दिमाग में अपनी माँ की कही बात याद आयी…जब तुम्हें  लगे कि,तुम्हें  वो मिला जिसके तुम लायक नहीं …तो समझ लेना किसी और की दुआएं तुम्हारे लिए काम कर रही हैं…अंकित ने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा जिसकी दुआओं ने मेरे लिए काम किया उसे खुश रखना ईश्वर ..और शुक्रिया अनामिका…और सोचा क्यों न आंटी  के लिए कुछ लिया जाए यही सोच काम खत्म कर ,एडवांस ले,वो मार्केट चला गया,

***

राधेश्याम के लिए शर्ट और सरोज के लिए साड़ी खरीद अंकित घर गया और सरोज को साड़ी थमा दी और शर्ट ये बोलते हुए दी “माँ आप ही उन्हें दे दीजिए ,मुझसे तो नाराज रहते हैं, और ये एक महीने का किराया भी” साड़ी और शर्ट  हांथो में लिए आंटी भावविभोर हो उसकी ओर देखे जा रही थी,पर कुछ बोलते ना बना तो अंकित ने झुक कर उनके पाँव छुए और कहा

“सब आपकी  दुआओं का असर है”

***

हर बार की तरह कदम रखते ही दरवाजा खुद खुल गया,वो सामने ही बैठी थी…कुछ पढ़ने में मगन…बाल बिखेरे जिंनमे से पानी की नन्ही नन्ही बूंदे…कालीन पर गिर रहीं थीं… शायद अभी धुले है बाल उसने,सफेद ड्रेस जिसपर हल्की सी नीली रंग की आभा भी थी, और इस ड्रैस में बिल्कुल वैसी  ही लग रही थी जैसी सपने में आई थी….वहीं  दरवाजे पर खड़े होकर सुध-बुध भूले उसे निहारता रहा,

“अंकित जी,आज बाहर खड़े रहने का ही इरादा है क्या”?

अनामिका की आवाज से चौंकने के साथ ही झेंप गया अंकित….और अंदर जाकर पास ही के सोफे पर बैठ गया,धुले बाल और उनसे गिरती नन्हीं सी बूंदे पहली बार देखी हो ऐसा नहीं था, लेकिन ना जाने कौन सा समा बंध जाता है …अनामिका के आस पास होने भर से…

“आप बैठिये…में चाय ले आती हूँ “

“रहने दीजिए ना,जरूरत नहीं है”

“चाय जरूरत के लिए ही पी जाती है क्या “उसने मुस्कुराते हुये कहा तो …जैसे उसकी जान में जान आयी हो ..शुक्र है …आज नाराज नहीं

“मेरा मतलब था ,बेकार ही खुद को परेशान करेंगी आप”

“इसमे क्या परेशानी… बस्स अभी आयी” उसके जाते ही अंकित के मन मे एक बात कौंधी क्या अब तक अनामिका के माता पिता शादी से बापस नहीं आये…आये तो पूंछूगा..इतने में वो आ गयी …हाथ मे ट्रे लिए ..हमेशा की तरह चाय के साथ कुछ न कुछ लेकर ..ना जाने इतनी जल्दी ये चाय और नाश्ता इतनी कैसे तैयार कर लेती है

“अनामिका जी,…अ …अ ..आपके पेरेंट्स नहीं आये अब तक”

“आपको बताया था,वो कजिन की शादी में गए है,हमारे यहाँ शादियां बड़ी धूमधाम से होती हैं, हफ्ते भर तक तो..बस्स रीति रिवाज ही चलते रहते हैं”

उसने चाय का कप अंकित को देते हुए कहा 

“अच्छा…” अनामिका को ऐसे खुद से , खुश होकर बात करते देख बड़ी अजीब सी शांति मिली अंकित को,हाथों में लिए पेपर उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला

“ये देखिए साउथ इंडिया की हिस्ट्री  नोट्स…मुझे विश्वास है ये आपको इंटरेस्टिंग लगेंगे…

“हम्म…लगता तो है…आपकी जॉब कैसी जा रही है”

उसने पेज उलटते हुए पूछा

“बताने ही वाला था,बहुत अच्छी…मेरी सेलेरी भी फिक्स कर दी गयी है,आपने सच कहा था,राव सर बहुत अच्छे इंसान हैं… ये सब आपकी वजह से है ,समझ नहीं आता,आपका एहसान कैसे उतारूंगा”

“अर्रे वाह! फिर तो पार्टी बनती है” इसने चहकते हुए कहा

“हाँ… हॉँ क्यों नहीं… आप ही बताइए  कब और कैसे पार्टी लेंगी ..मुझे तो बडी खुशी होगी”

“डिनर कराएंगे …अच्छे से हॉटेल में ” उसने अंकित के चेहरे पर नजर टिकाते हुए पूंछा

“बहुत ही खुशी से…भला… इतनी खूबसूरत लड़की (फिर संभालते हुए) …मेरा मत …अ …मतलब आप मेरे साथ डिनर करने चले, इससे बेहतर मेरे लिए क्या हो सकता  है

“ठीक है,अभी तो कुछ दिन ही हुए हैं,आपको बता दूँगी कब चलना है”

“कुछ ही दिन…फिर खुद में बुदबुदाया”कुछ दिन में तो ये हालत हो गयी है…”हाँ सही कहा आपने…जब भी मन हो बता दीजिए “…

इतना बोल बापसी की इजाज़त ली और बापस घर आ गया

4.

ऑफिस पहुंचा ही था कि राखी सामने से आती दिखायी दी,रोज़ प्रोफेशनल सूट में रहने वाली, आज ..लाल रंग की साड़ी पहने थी,

“अंकित,आज सर ऑफिस नहीं आएंगे” बड़ी खुश दिख रही थी,

“ओह्ह…ठीक है अच्छा”और जैसे ही अपने केविन की ओर बढ़ा राखी उसके सामने आ कर खड़ी हो गयी,

“कैसी लग रही हूँ”

“हॉँ…अच्छी लग रही हो,क्यों क्या हुआ” उसने ढीले रवैये से कहा 

और राखी ने बड़े नाटकीयता से एक गुलाब का फूल उसकी ओर बढ़ा दिया …

***

“राखी …क्या है ये “अंकित ने अचकचाते हुए पूंछा

“ये..इसे गुलाब कहते है”उसने मुसकुराते हुए कहा

“वो तो दिख रहा है….लेकिन मुझे क्यो”

“ओह गोड,तुम भी ..अच्छा सीधे सुनो,आई थिंक आई एम फालिंग फॉर यू”

“क्या…क्या बकवास है ये…जरा साइड मे  तो आओ” अंकित ने कहा और दोनों एक केविन मे आ गए

“बकवास नही है ये… मैं सच मे तुम्हारे लिए अट्रैक्शन फील…..”

अंकित बीच मे टोकते हुए ,

“तुम्हें पता भी है ? क्या बोले जा रही हो,तुम्हें पता ही क्या है… मेरे बारे मे” अंकित ने आवेश मे पूंछा

“मन की बातें मन ही तय करता है…दिमाग नही, और कई बार तो एक नजर ही काफी होती है..ये तय करने के लिए कि आप….”

अंकित बीच मे टोकते हुए ,“मुझे लगा था तुम इंटेलिजेंट हो,लेकिन तुम तो हद दर्जे की इमोशनल, निकली ,न जाने कौन सी बात से तुम्हें ऐसा लगा… मुझे नहीं समझ आ रहा”

“कमी क्या है मुझमे..सो कहो?” राखी ने उदास होते हुए पुंछा

“ब्स्स इसी सवाल की कमी रह गयी थी..अरे “ना” का मतलब हमेशा ये नहीं होता कि आप मे कोई कमी है …ये भी तो हो सकता है कि सामने वाला खुद को तुम्हारे लाइक ना मानता हो,.. मैं खुद को नहीं मानता तुम्हारे लाइक ,तुम सुंदर हो,काबिल हो..तहजीब से भरी हो. तुम मजबूत पिल्रर हो इस कंपनी की.और मुझे देखो॰ ना वर्तमान का पता ना..भविष्य का”

“कोई है क्या, तुम्हारी ज़िंदगी मे “?

“अगर कहूँ है तो तुम खुद की तुलना करोगी उससे…अगर कहूँ नहीं है तो तुम गलतफहमी मे रहोगी…बड़ी बात ये…कि मेरे मन मे तुम्हारे लिए  ऐसा कुछ नही …कुछ है, तो वो है बेहद इज्ज़त… तुमने  मुझे इतनी महत्वता दी..इससे बढ़कर क्या हो सकता है…लेकिन अब…मैं ये जॉब छोड़ दूंगा…यहाँ रहकर तुम्हें दुख नही दे सकता”

राखी ने जॉब छोड़ने की बात सुनकर चौंक गयी..

“और राव सर का क्या? जानते हो तुम्हें हाँ बोलने के बाद उन्होंने मुझसे क्या कहा? बोले,”इस टाइम पी ए.के तौर पर एक फ्रेशर को रखना बिलकुल ठीक नहीं लेकिन अंकित मे ना जाने क्या है जो मुझे उस पर विश्वास करने को मजबूर करता है,…तुम्हारी वजह से वो दुगना काम करते है,बहुत हद तक मुझे और सादिक़ को एक्सट्रा काम करना पड़ता है ,ताकि तुम अच्छी तरह ट्रेंड हो जाओ, और तुम… बदले मे ये दोगे उन्हे… शर्म नही आती ?

“और तुम्हारा क्या” अंकित ने बड़ी संवेदना के साथ पूंछा

“मैं कौन सी मीराबाई हुई जा रही हूँ,तुम्हारे लिए ? आठ दिन भी नही हुए तुम्हें जाने ..वो तो बीच मे वेलेंन्टाइन डे आ गया आज.. तो सोचा..अच्छा भला लड़का है… दोस्ती गहरी हो जाये …ब्स्स”

“ओह गॉड…तो तुमने पहले एसे क्यूँ नही कहा” अंकित ने अपने सिर के बालों को ऊपर की ओर खींचते हुए कहा

“तुम कहने दो, तब ना ..तुम्हें तो ब्स्स मौका मिलना चाहिए लैक्चर देने का “ माथे पर दोनों हाथ रख सोफ़े पर बैठते हुए राखी बोली

“ओह सॉरी…..तो अब”

“अब क्या.. चलो तुम्हें शेड्यूल बनाना सिखाऊँ…पर उससे पहले मुझे शर्मा जी की कॉफी पिलवाओ…दिमाग का दही कर दिया तुमने…साड़ी पहन कितनी खुश थी मैं…सोचा कोई तारीफ करे…तुमसे तो सामने से भी पूंछा लेकिन “ब्स्स सड़ा सा कोमप्लेमेंट…हुम्म !”

राखी कि इस रवैये पर अंकित के चेहरे पर मुस्कान आ गयी ,सारा तनाव घटता सा महसूस हुआ,उसने  राखी का मूड अच्छा करने को बोला

“आज तो मेरे मन मे और भी इज्ज़त बढ़ गयी तुम्हारी.,.साड़ी ही क्या, ऐसी कौन सी ड्रेस है जिसमे तुम खूबसूरत ना लगो..तुम हर ड्रेस मे खूबसूरत लगोगी “

“लेकिन माँ बोलती है ,कि लड़कियां साड़ी मे ज्यादा खूबसूरत दिखती हैं”

“ऐसा है मैडम…माओं का अपना नजरिया होता है,और हम लड़कों का अलग”

राखी का मूड अच्छा करने को, जब उसने ने शरारत से मुस्कुराते  हुए कहा तो …सोफ़े पर रखा कुशन उठा कर राखी ने अंकित को दे मारा और बोली

“…अं कि  त……कमीने …अहा हा हा.“

“आहा हा हा हा हा और दोनों  हँस  दिये….”अच्छा चलो कॉफी ही क्या, कुछ अच्छा सा साथ मे खिलवाता भी हूँ…” और दोनों कॉफी पीने ऑफिस से निकल गए

***

अनामिका के घर की ओर मुड़ा ही था…कि लगा कोई पीछे ही चल रहा है पलट कर देखा तो वही थी

अंकित :-अररे आप ?’

अनामिका :-“हम्म…कुछ काम से बाहर गयी थी..वहीं से बापस आ रही थी,..ऑफिस से आकर नोट्स बनाना बहुत थकाऊ लगता होगा ना ? .”

अंकित :-“जब कोई काम पसंद हो ,तो थकान नही लगती अनामिका जी,नोट्स देखे आपने?“

अंकित को यूँ उसका साथ चलना पसंद आ रहा था…आज सुट पहने थी लेकिन था सफ़ेद ही,

एक बार को तो अंकित के मन मे आया कि पूंछ ले..कि हमेशा सफ़ेद कपड़े ही क्यो पहनती है,अचानक उसके दुपट्टे का एक सिरा जमीन को छू गया,अंकित ने देखा तो बोला 

“आपका दुपट्टा जमीन को छू रहा है संभालिए, कहीं गंदा ना हो जाये,सफ़ेद रंग की यही परेशानी है,बड़ी जल्दी गंदा हो जाता है”

अनामिका:-“ये गंदा नही होगा…सफ़ेद रंग मुझे बेहद पसंद है…हाँ कुछ नोट्स रिवाइस किए थे खिलजी मुझे बिल्कुल पसंद नही”

अंकित:- (मुस्कुराते हुए ) शायद आप भावुक होकर देख रही हैं…ऐसे तो शायद ही कोई पसंद आए आपको…ये देखिये कि उसी ने सबसे पहले आर्मी को ड्रेस कोड दिया… और सेलेर्री देना भी शुरू किया..ब्स्स हिस्ट्री के अनुसार देखिये”

अनामिका:-“हम्म…सही कह रहे हैं आप”

अंकित:- “अच्छा…(पेपर बढ़ाते हुए) ये बाकी के नोट्स…कल ही मिलता हूँ आपसे”

अनामिका:-“ये क्या बात हुई …घर तक आकर बापस जा रहे हैं…कम से कम चाय तो पीजिए”

अंकित:-“चाय कल…मुझे कुछ जरूरी काम है बाजार से प्लीज़…जाना है”

अनामिका ने सिर हिला “हम्म”मे स्वीकृति दी,तो अंकित तेज़ी से मुडा और बाजार के लिए निकल  गया,घर के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद ही रहा था कि नजर, एक शो रूम के बाहर सफ़ेद गाउन पहने डमी पर चली गयी, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसके दिमाग मे अनामिका की कही बात घूमने लगी

“सफ़ेद कलर मुझे बहुत पसंद है”क्यो ना इसे खरीद लूँ ,उसके लिए

और उसके दिमाग ने कहा :पागल हुआ है क्या ? कैसे देगा,घर से बाहर तो करेगी ही साथ मे

 बुरा भला बोलेगी सो अलग…

अंकित:-नहीं दूँगा,अपने पास ही रख लूँगा बाद मे कभी दे दूँगा लेकिन खरीद लेता हूँ…बहुत मन है

दिमाग:- कर बेबकूफी

अंकित:-अच्छा..पैसे तो पूछ लूँ …उसमे तो कोई हर्ज़ नही “ और दिमाग कुछ कहता इससे पहले ही चार से पाँच सीढ़ियाँ फलांगता वो शोरूम मे घुस गया

“जी सर कहिए”

“वो जो व्हाइट गाउन आपने बाहर लगाया हुआ है,क्या प्राइस है उसका?”

“सर…बहुत बेहतरीन पसंद है आपकी..इसकी प्राइस केवल 2700/-रुपये है”

दिमाग:-2700/-रुपये …पूरा महिना पड़ा है,पहले भी आंटी और अंकल जी के लिए शॉपिंग कर चुका है तू जब सेलेरी मिल जाये तब खरीद लेना यार

अंकित:-तब तक ये बिक जाएगी…

दिमाग:-तो और कोई आ जाएगी…कोई कमी है क्या ड्रेसेस की ?

“सर पैक करा दूँ”

दिमाग:मना कर दे

“सर ये डिजाइनर है.. ब्स्स ये एक ही है…जल्द ही बिक जाएगा .है ही बेहद खूबसूरत

अंकित :-“(उत्साहित होकर) जी पैक कर दीजिये”

दिमाग:-“पूरा महिना…अंकित”

अंकित:-“सम्भाल लूँगा यार…चुप रेह ब्स्स …अब”

बड़ी खुशी खुशी पैकेट हाथ मे लिए शोरूम से बाहर निकला ही था … कि एक लड़के से टकरा गया

और उस लड़के के हाथ से उसका पर्स नीचे गिर गया… अंकित ने माफी मांगते हुए पर्स उठाया और उस लड़के की ओर बढ़ा दिया… और नज़र पर्स मे लगे फोटो पर चली गयी…

अंकित:-  (आश्चर्य से मुँह खोलते हुए ) अ…. ना… मिका…..?

अंकित के हाथ से पर्स लेकर फोटो चूमते हुए “सोरी आं…..”

 फिर अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला

” संभाल के दोस्त “…और जाने लगा… 

अंकित उसे  आश्चर्य से मुंह खोले देख रहा था… उसके निकल जाने के बाद भी स्तब्ध सा वहीं खड़ा रहा ,आस पास से लोग उससे टकराते हुए निकल रहे थे…न जाने कब तक ऐसे ही रहता, वो तो एक बहुत छोटी सी बच्ची उससे टकरा कर गिर गयी और रोने लगी… और उसके रोने  से जैसे चेतना बापस आई हो,

दिमाग ने कहा “अबे भाग…उसके पीछे” और अंकित उसी दिशा मे दौड़ गया जिस दिशा मे लड़का गया था…. कुछ मिनट दौड़ने के बाद भी उस लड़के का नामोनिशान तक ना दिखा …

हताश अंकित, अपना पैर जमीन मे मारते हुए बोला “.लड़का..गया कहाँ ? जमीन निगल गयी या आसमान खा गया. उसे…आह”

 थोड़ी देर बाद ..खुद को ढेलता सा घर लौटा वो, सफ़ेद ड्रेस का पैकेट जो गर्व से अपने सीने से लगा कर ला रहा था खरीदते वक़्त ,वही सब्जी वाले थैले के साथ लटकाए हुए था,जब घर मे घुसा तो 

सरोज बोली “अंकित…. (मुसकुराते हुए ) आ गया… हाथ मुंह धो ले..पता है लड्डू बनाए हैं”

“माँ…कुछ नही खाना आज मुझे” सब्जी का थैला उन्हे पकड़ाते हुए बोला और सीढ़िया चढने लगा

“कुछ नही खाना…क्या मतलब…तेरी तबीयत तो ठीक है…सच बता मुझे”

उन्होने चिंता से पूंछा

“हाँ हाँ…ब्स्स ऑफिस मे खाना खा लिया था..पेट मे भारीपन है…ब्स्स सोऊंगा… सुबह तक खुद ठीक हो जाएगा..चिंता की कोई बात नहीं आप परेशान ना हो” उसने पीछा छुटाने को बोला और अपने कमरे मे जा… धम्म !! से बिस्तर पर लेट गया..

और मन ही मन सोचने लगा ,आखिर कौन था वो लड़का…अनामिका की ज़िंदगी मे कोई है..और इस हद्द तक है …वो पहले ही किसी से प्रेम करती है…आज शाम तक ये खुशनुमा लगने वाली ज़िंदगी अब मुझे नर्क सी लग रही है…कुछ समझ नही आ रहा क्या करूँ,…..

(बैठते हुए ) क्या क….रुँ 

दिमाग:” रुक थोड़ा…. बौखला मत”

अंकित:” अब बचा ही क्या है”

दिमाग:”तुझे इतना भी बुरा क्यूँ लग रहा है”

अंकित :-“ये भी बोलने की जरूरत है क्या…प्यार करने लगा हूँ मैं उससे”

दिमाग:-“ये भी तब पता लगा जब वो लड़का मिला ?”

अंकित:-“एहसास तो था लेकिन इस कदर वो …आज ही पता लगा…लेकिन अनामिका ने मुझे ये बताया क्यो नही”?

दिमाग :-“तुझे क्यूँ बताएगी वो… ये भी तो सोच..तू है ही कौन उसका”

अंकित :- “हम्म हम्म …मेरा सिर मानो फटा जा रहा है..कुछ समझ नही आ रहा”

दिमाग:-“एक बात तो सोच …वो उस दिन तेरा हाथ पकड़ कर क्या बोली थी”

अंकित :“क्या”

दिमाग : “आप मेरे अपने ही तो है… याद आया?

अंकित :“अररे हाँ…”(खुशी से ) और ( दुखी होते हुए ) आज जो देखा उसका क्या ?

दिमाग :- “एकतरफा प्रेमी भी तो हो सकता है ?”

(खुशी से )“ सही है..हाँ यही होगा …नहीं तो इतने दिनो मे एक बार तो दिखता उसके घर पर या उसके घर के आस पास  दो बार वो घर के बाहर दिखी और द्दोनों बार अकेली”

दिमाग :”हम्म…लेकिन सोच …अगर उसने तुझसे पहले, प्रपोज कर दिया तो ?

अंकित :-“तो “

दिमाग :-“तो ये कि उसके चान्सेस ज्यादा है”

अंकित :-“कैसे भला”

दिमाग :-“उसकी बॉडी देखी ही होगी… मस्कुलर है वो  “

अंकित :-“बॉडी होने से क्या होता है,समझदारी की, अच्छाई की कोई कीमत नही?

दिमाग :-“शक्ल और बॉडी पहली नजर मे दिखती है…लेकिन समझदारी दिखते दिखते ही दिखती है…और चल मान ले सब तेरे अनुसार हो गया, अनामिका ने तुझे हाँ बोल दी….जब उस लड़के को पता लगेगा वो गुस्से मे तुझसे लड़ने आ धमका या उसने कुछ अनामिका को बोला तो ?

अंकित :-“मार दूंगा साले को ” 

गुस्से मे दाँत भीचते हुए उसने ग्लास उठा कर जमीन पर दे मारा जिसकी आवाज आंटी ने सुन ली…

“अंकित तू ठीक है ना….. “उन्होने नीचे से ही आवाज लगा कर पूंछा

“हाँ हाँ आंटी जी ठीक हूँ …बेड से गिलास गिर गया” ये माँ भी न कभी कभी लाड़ की अति कर देती हैं

दिमाग-“मुद्दा अभी आंटी नही, कुछ और है

“हम्म… तो “

दिमाग :-“तो क्या.. हाथापाई हुई तो… तुझमे उसका एक हाथ सहने की क्षमता नहीं .झींगे जैसा शरीर है तेरा,चोट तो ठीक हो भी जाएगी..लेकिन तुझे जो अनामिका की संवेदना मिलेगी उसका क्या”

अंकित :-“संवेदना क्यो”

दिमाग:-“अब हारने वाले को संवेदना ही मिलती है..मेरे भाई … अनामिका में कोई कमी तो नहीं , कोई भी लड़की …एक ऐसा लड़का ही चुनेगी जिसके साथ उसे सिक्योर फील हो“

अंकित:-“सही बात है …. बॉडी ना हम्म .बॉडी..यूं …(चुटकी बजाते हुए) यू बना लूँगा… और रही बात शक्ल की (शीशे मे देखते हुए) शक्ल बहुत बेहतर है मेरी …”

दिमाग:“तुझे कहीं आकर्षण मात्र तो नहीं ”

“हरगिज नहीं… जरूरी तो नहीं जल्दी मे लिया गया हर फैसला गलत हो ,ये जीवन या तो उसके साथ या किसी के साथ नही”

“राखी को लेक्चर आप ही दे रहे थे ना “

“हां…लेकिन कितना भी वक़्त बीत जाये मैं उसके लिए कुछ महसूस नही कर सकता.जो भावनाए अनामिका के लिए है वो किसी के लिए ना तो हुई हैं ना होंगी …मुझे अनामिका चाहिए”

 “हम्म..और कैसे ..ऐसे ही नोट्स बना- बना कर”

“न…..हीं बहुत हो गयी पढ़ाई…अब सिर्फ पढ़ाई नहीं”

“जिम जॉइन करने का वक़्त भी तो नहीं  …कैसे करेगा?“

“शाम को तो वक़्त नही..सुबह एक घंटे पहले उठकर जिम जॉइन कर सकता हूँ”

“और जिम जॉइन उसी मार्केट मे कर..हो सकता है वो लड़का जिम मे या उसी मार्केट मे दिखे”

“सही कहा…उसी मार्केट मे जिम जॉइन करूंगा और अगर कहीं दिख गया वो लड़का, तो मारूंगा उसे “

“अनामिका हेरोइन है उस हीरो मिलना चाहिए विलन नहीं “

“हम्म …पर एक दो हाथ मारना बनता है 

( उसने पांचों उंगलिया मिलाकर पंच बनाते हुए कहा)

“ये ठीक है …जिम कब जॉइन करेगा ”

“कल सुबह ही करूँगा”

 “ठीक अब समय देख”

“2 बजे हैं “

“जल्दी उठना है ना,सो जा”

“हाँ सो जाता हूँ”

और अंकित ऐसे खुद से बात करते करते बिस्तर पर लेट गया…कुछ देर करवट बदली फिर सो गया

***

सुबह 6 बजे ,गोल्ड जिम

दरवाजे पर कदम रखा ही था..कि नजरे उसी लड़के को ढूँढने लगी..

इतने मे एक लड़का उसके सामने आकर बोला,”कहिए सर…”

अंकित :- “जिम जॉइन करनी थी “

“आइये मेरे साथ” कहकर लड़का अंडर मुड़ गया,काँच के बने एक टेम्परेरी केविन मे ले गया ,जहां सेंडो बानियाँन पहने मस्क्युलर लड़के की तरफ अंकित देखता रहा और मन ही मन उसकी जगह खुद को इमेजिन करने लगा

“कहिए सर…मेरा नाम अनवर है , कौन सी मैम्बरशिप चाहिए … 3 महीने की,6 महिने की या साल भर की”

अंकित :-“कोई आइडिया नही मुझे….आप ही बताओ…ब्स्स मस्क्युलर दिखना चाहता हूँ”

अनवर :-“हम्म…कितने”?

अंकित :-“ब्स्स शर्ट भी पहना हूँ तो सामने वाले को लगे कि इसके एव्स बने हुए हैं”

अनवर :- “शर्ट पहने हुए मस्कुलर दिखना है  “?

अंकित :- (शर्माते हुए हाँ मे सिर हिलाता है )

अनवर :-“ ओह्ह …( मुसकुराते हुए… जैसे सब समझ गया हो ) लेकिन उसमे टाइम लगेगा..फिर इस पर निर्भर करता है कि आप कितना वर्कआउट करते हैं..और डाइट कैसी लेते हैं….लेकिन 3 से 4 महिने मे आपको फर्क दिखना शुरू हो जाएगा खुद मे”

अंकित :- “3 से 4 महीने अच्छा ….ठीक है ..6 महिने का कितना पैसा देना होगा”

अनवर:- “आपके लिए बेस्ट ऑफर है मेरे पास 1950/-रुपये का अंकित ने 1000 रुपये देने के लिए निकाले ,,दिमाग :-मत दे इतने, 500 ही दे ना,अनमिका ने अगर इस बीच डिनर के लिए बोल दिया तो क्या ढाबे पर खिलाएगा

अंकित:- “हम्म… (500 रुपये अनवर को देते हुए) ये लीजिये एडवांस”

अनवर:-(पैसे लेते हुए ) ठीक है कल से शुरू करते हैं इसी टाइम

अंकित :- “आज से क्यो नहीं ?”

अनवर :- “आज से ही …ठीक है आइये”

***

उसके घर मे कदम रखा ही था,कि सामने से आती दिख गयी अपने रेशमी बालों को उँगलियों से संवारती हुई..

अनामिका :-“अंकित …आइये …आप बैठिए मैं कुछ खाने को ले आती हूँ “

अंकित :- अररे मुझे कुछ नहीं खाना …आप बस्स बैठ जाइए मेरे सामने ( फिर बात संभालते हुए )…वो अ…मेरे कहने का मतलब ..देखू जरा पढ़ाई कैसी जा रही है आपकी”

अनामिका :-“ब्स्स अभी आई …आप बैठिए तो”

अंकित मन मे “बताओ क्या करे इसका?”थोड़ी ही देर मे कॉफी लेकर आ जाती  है अनामिका, और कप उसकी ओर बढ़ाते हुए बोलती है

“किस टॉपिक के नोट्स लाये है आज “

अंकित का दिमाग :- “ले और कर पढ़ाई की बात …”

“तो और क्या करता?”

“कम से कम अब तो कुछ और बोल “

“क्या बोलू “?

“कॉफी की तारीफ ही कर दे “

अंकित :-“अनामिका जी आप कॉफी बहुत अच्छी बनाती हैं.. मुझसे इतनी अच्छी कभी नहीं बनती”

अनामिका :-“आप पानी मिला देते होंगे”

अंकित :- “अ… हाँ … बिल्कुल ठीक ऐसा ही है“ उसने जैसे अपनी गलती मानते हुए कहा और अनामिका उसे कॉफी बनाने की विधि बताने लगी

अनामिका :-“पहले जितनी कॉफी बनानी है उतना कप दूध उबलने रखना है फिर @@@@फिर @@@@और .@@@

अंकित का दिमाग :- इससे पहले कि ये तुझे आलू मटर कि सब्जी की रेसेपी बताए …टॉपिक बदल दे

ब्स्स बन गयी कॉफी …अनामिका ने बात खत्म की और अंकित ने बिना सुने ही

“वाह ! ऐसे बनाती हैं आप? तभी … “

“और खाना कौन बनाता है आपके लिए ?“ उसने भोलेपन से पूंछा तो 

अंकित का दिमाग उसी पर हँस दिया “बहुत अच्छे ..सही जा रही है…  कुछ भी बोल ये है ,तेरे टाइप की ही… हा हा हा … और

अंकित को मुस्कुराते देख अनामिका  बोली

“आप मुस्कुरा रहे हैं क्या हुआ ?”

“कुछ नहीं …ब्स्स माँ की याद आ गयी… वो तो रही नही … मेरी मकान मालिक मुझे अपना बेटा ही मानती हैं …अधिकतर वही खाना बनाती है मेरे लिए  

अनामिका:- ओह”

अंकित :-“अच्छा चलता हूँ… “

दिमाग :- “कुछ बोल तो दे “

“ क्या बोलू ..क्या अच्छा लगता है ऐसे”?

“तमीज़ से तारीफ करना कोई बुरी बात तो नहीं…और उस मस्कुलर को मत भूल “

“हम्म … अनामिका आपके अ…. अ ..”

“बोलिए …”

“अ … बाल काफी अच्छे है… आपके … ब्स्स… यही ” बड़ी मुश्किल से अंकित कह पाया

अनामिका :- “ओहह …अच्छा…शुक्रिया” उसने मुस्कुराते हुए कहा

शुक्र है नाराज नही हुई … अंकित ने निकलते हुए कहा

अभी कुछ कदम ही चल पाया था कि वही लड़का अनामिका के घर से कुछ दूरी पर दिखा फोटो खींचते हुए … उसे देखते ही अंकित गुस्से से भर गया और पूरी ताकत से उसी ओर दौड़ गया.

***

पूरी ताकत से दौड़ता अंकित उस लड़के के पास पहुंचता इससे पहले ही वो कार में बैठ निकल गया,धूल उड़ाती गाड़ी पल भर में आँखो से ओझल हो गयी,ढलती शाम में कार का नम्बर देखना मुश्किल था ,तो अंकित को कार का नम्बर भी नही दिखा, गुस्से से पैर पटकता और खुद पर झल्लाता हुआ अंकित वही सड़क पर बैठ खुद को संयत कर …बापस लौट आया ।

***

रात को अपने बेड पर, मन ही मन,”जरा सा …बस्स जरा सा तेज़ और दौड़ा होता तो …पकड़ लेता उसे …शै मेन,गाड़ी का नंबर भी नही देख पाया,अनामिका के घर के बाहर कर क्या रहा था, देखा नहीं फ़ोटो ले रहा था,अनामिका की फ़ोटो खींच रहा होगा …छोड़ूंगा नहीं इसे,अनामिका घर मे अकेली है…..अब तो बहुत दिन हो गए इसके पेरेंट्स आये नहीं… कल पूँछूँगा.उससे,..अच्छा खासा हाथ मे आते आते रह गया, कोई बात नहीं ..मुझे यकीन है  दिखेगा जरूर…और जिस दिन दिखा,

(मुट्ठी बांधकर) मुँह पर ही मारूंगा …बहुत मारूंगा …

इन्ही विचारो में डूबता उतराता सो गया….

अगले दिन जिम करने के बाद , ऑफिस पहुंच गया

5.

राव इंडस्ट्री का ऑफिस

ठीक सामने राखी बहुत बिजी दिखी …नीरू को कुछ सलाह दे रही थी…अंकित सीधा उसके पास जाकर

“गुड़ मोर्निंग, आज सुबह सुबह ही बिजी हो “

“हे अंकित,गुड़ मॉर्निंग …पता है हम एक नया क्लॉज़ ऐड कर रहे हैं,एच आर के नियम में “

अंकित:-अच्छा …क्या?

राखी:-“ये …कि कोई भी कैंडिडेट जिसका बैकग्राउंड टीचिंग है,एक महीने की इंटर्नशिप  करनी होगी ,इसी ऑफिस में, चाहे किसी भी पोस्ट पर आए….बाय गॉड …एक और टीचर  नहीं झेल सकती में इस ऑफिस में…सबको लेक्चर देने की आदत होती है

अंकित:-हा हा हा ओह्ह ..बहुत परेशान किया मैंने तुम्हें,माफ करना यार”

राखी :–माफ कर सकती हूं,एक शर्त पर…

अंकित:– शर्त बोलो

राखी:–शर्मा कैफ़े की कॉफी पिलवाओ 

अंकित :–(कुछ सोचते हुए) कॉफी अभी ? अ  अ …शाम को चले..कुछ फैक्स करने हैं अभी”

राखी :–“ओह्ह हाँ सही कहा  …काम करो तुम,…अच्छा शाम को नहीं… मुझे शाम को सांस लेने की भी फुरसत नहीं ,आज तो देर तक रुकना भी है, और तुम जल्दी निकलते हो…एक काम करते हैं…कल चलते हैं”

अंकित:–“ठीक है ..कल.पक्का”

राखी :– “अच्छा सुनो ,राव सर आ गए है आज जल्दी,…रोज़ फ्रूट्स सैलेड मंगाते हैं,पर कभी नहीं खा पाते,ये काम तुम्हे करना है,

“मुझे कैसे “

“रिक्वेस्ट करके ,या बोल कर जैसे भी …तुम जानो… अब जाओ और प्रूब करो कि तुम्हे काम करना आ गया है ,और मुझे मुक्ति मिले …एक्स्ट्रा काम करने से”

राखी ने हाथ जोड़कर नाटकीयता से कहा,तो अंकित को हँसी आ गयी,वो हँसता हुआ केविन में जाता है तो सैलेड की प्लेट देखकर

“वाओ,सैलेड ,गुड़ मोर्निग सर,अगर आप इज़ाज़त दे तो खा लू”?

और इससे पहले कि राव सर कुछ बोलें, अंकित ने खाना शुरू कर दिया,उसे ऐसे खाता देख राव ने अपनी फाइल साइड में रखी,और उन्होंने  भी खाना शुरू कर दिया,

अपना प्लान को काम करते देख अंकित खुश हो गया

राव सर:-“क्या शेड्यूल है  आज का”?

अंकित:–आपके दोस्त और बिजनेस फ्रेंड के यहाँ एक सेमिनार है,और उसके बाद तीन मीटिंग्स

राव सर:–“श्रीवास्तव के यहाँ ना “?

” जी”

“हाँ फ़ोन आ गया था मुझे,उससे मेरी बड़ी जमती है,जल्दी ही लौट पाना मुश्किल है,मीटिंग कैसे होंगी”

“इसीलिए… पहली मीटिंग मैंने 2 बजे रखी है सर”

“हम्म…बहुत अच्छे”(मुस्कुराते हुए बोले )

“थैंक यू सर्.. अभी आता हूँ …कुछ फैक्स करने हैं”

“और सैलेड?”उन्होंने प्लेट की ओर इशारा करते हुए कहा 

“बस्स,हो गया सर”कहते हुए अंकित ,केविन से बाहर आ गया

***

सफेद शर्ट जानबूझकर पहनी अंकित ने, और पहुंच गया अनामिका के घर,

सामने ही बैठी कुछ पेपर उलट-पलट रही थी,पास ही पड़े सोफे पर बैठ गया,

“हेलो अनामिका जी ,क्या  पढ़ रही हैं”?

“हेलो,आइये…बस्स कुछ पुराने नोट्स में पृथ्वीराज चौहान के नोट्स दिखे तो पढ़ने लगी…मुझे पूरी हिस्ट्री में बस्स यही एक इंसान पसंद आया”

“अच्छी बात है कोई तो पसंद आया आपको हिस्ट्री में,वैसे क्या पसंद है आपको इसमें”?

“बहादुर होना,आपको तो पता ही होगा,कि कैसे जब संयोगिता ने  पृथ्वीराज के पुतले के गले मे माला डाली तो उसके पीछे छिपे पृथ्वीराज ने संयोगिता का हाथ पकड़ा ,घोड़े पर बिठाया और सबके सामने  उन्हें ले आये…कितना रोमेंटिक है ना”?

अनामिका का यू खुशी से चहकना अंकित के चेहरे पर भी स्माइल ले आया ,और मन ही मन उसने कहा ,”बात तो ये पृथ्वीराज जी की कर रही है,लेकिन इसका , उन्हें ,इतना पसंद करना…मुझे जलन हो रही है

“कहाँ पृथ्वीराज…और कहाँ

“हाँ …हाँ जानता हूँ,लेकिन …ऐसा मन कर रहा है,घोड़ा खरीद लूं”

“और दौड़ाएगा कहां…सड़क पर”?

“तो…अब कच्ची सड़क तो बनने से रही”

“वही तो…अब जमाना गाड़ी का है,कार खरीदने की सोच”

“कार”?

“हाँ …अच्छी सेलेरी है,ले सकता है अब”

“हम्म”

“अनामिका जी….आपके पेरेंट्स नही आये अब तक”उसने अनामिका से पूंछा

“आप को बड़ी फिक्र है,मेरे पेरेंट्स की,कुछ दिन और लगेंगे ,उन्हें कुछ काम है  वहाँ” अंकित को लगा चिढ़ गयी है तो  संभालने को बोला

“इधर चोरी- चकारी बहुत होने लगी है,आप अकेली रहती हैं ना,इसीलिए पूंछा”

“यहाँ बिना मेरी मर्ज़ी कोई नहीं आ सकता,आप तो ये  बताइये कॉफी   बनाना आया या नहीं “?

  अनामिका के इस जवाब से अंकित को तसल्ली हुई ,सोचा कि जब वो आता है तब जिस तरह से दरवाजा खुलता है वो इस बात  का सुबूत है कि सिक्योरिटी मजबूत है.. हम्म..मतलब वो मस्कुलर नहीं आ  सकता) …”अ …जी नहीं बहुत कोशिश की,नहीं बनी…”

अनामिका:–“तो दूसरा तरीका बताऊ कॉफी बनाने का?

अंकित का मन ‘ये तुझे कॉफी सिखाकर ही मानेगी…

“तो मना कर दूँ?…नहीं बताने दे ,,ऐसे ही …कम से कम सामने तो रहेगी..

“हम्म ये भी सही है…”

अंकित:-“जी जी जरूर …बताइये”

अनामिका:–हम्म ..देखिए …एक कप में ,एक चम्मच कॉफ़ी पाउडर और चीनी ले लीजिये फिर @@@@@@@

अंकित का मन :-आंखे खूबसूरत है इसकी और चमकीली भी …

हम्म और माँ की दी हुई नथ इस पर खूबसूरत लगेंगी…हम्म  बेशक लगेगी

अनामिका:-फिर  थोड़ा फेंटना है @@@ और जब @@

फिर @@बस्स बन गयी 

अंकित:–“वाह ! क्या बनी है,बहुत टेस्टी ..बहुत ही..” 

अनामिका:-“आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे सच में टेस्ट की हो”

अंकित :–“आप ने बताई ही इतनी अच्छी तरह…वैसे आपको कॉफी के अलावा और क्या पसंद है?

अनामिका:–“मुझे नॉनवेज ,बहुत  पसंद है”

अंकित का मन :-“ये नॉनवेज खाती है यार…तुझे नॉनवेज खाने वाली लड़कियां बिल्कुल पसंद नहीं”

“अंकित:–इसकी बात अलग है ..ये अनामिका है,इसे इतना प्यार दूँगा कि ये नॉनवेज छोड़ देगी

“हम्म…ये भी. सही है”

“और फिर नॉनवेज खाना कोई पाप तो नहीं”

“हम्म …सही जा रहा है”

अंकित:-“मेरे ऑफिस के पास ही शर्मा कॉफ़ी शॉप है,बहुत ही टेस्टी कॉफी है उसकी ..”

अनामिका:–“अच्छा.’..

अंकित:-“ हाँ …वो तो भला हो राखी का जो मुझे वहाँ ले गयी …उसे भी कॉफी का बड़ा शौक है,…”

“राखी…”अनामिका ने अपनी गर्दन थोडी तिरझी कर पूछा 

“हाँ…मेरे ऑफिस में ही है …एच. आर हेड है,उसे भी  कॉफ़ी का बड़ा शौक है…आज जाने को बोल रही थी…लेकिन मुझे यहां आना था,तो अब कल लंच टाइम में चले जायेंगे” …बड़ा खुश होकर वो बोले जा रहा था कि दिमाग ने उस पर ब्रेक लगाया

“अबे रुक जा…ये क्या कर दिया …राखी का नाम क्यो ले लिया

“उससे क्या होगा…ये समझदार है”

“समझदार  तो तू भी है,लेकिन जब से वो …मस्कुलर देखा है …चैन और नींद हराम है…तेरी

“अरे ..हाँ …सच मे… ये तो गलती हो गयी…अब”

“अब क्या…और बोल..नहीं बोलेगा तो नहीं …और बोलेगा तो .इतना कि… “

अंकित:–“अनामिका जी,अब मुझे चलना चाहिए …(नोट्स देते हुए ) इसे अच्छे से याद करना मत भूलिए…एग्जाम के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट  हो सकते हैं ये”

अनामिका ने  चुपचाप नोट्स ले लिए …बोली कुछ नहीं ..हाँ में सिर हिला उसे जाने की इजाज़त जरूर दे दी

“ये तो कुछ बोल ही नहीं रही…

दिमाग:-“बोलेगी भी क्यों…गधा जो है तू…अच्छा खासा सब ठीक जा रहा था …लेकिन….

अंकित :-“सही है …गधा ही हूँ मैं…कुछ कोशिश करता हूँ…”

“अनामिका जी,अगर आप चाहे तो…. मैं आपको शर्मा की कॉफी शॉप की कॉफी पिलवाने ले…. जा सकता हूँ” उसने झिझकते हुए कहा

बदले में अनामिका ने बस्स हाँ में सिर हिला दिया …लेकिन बोली कुछ नहीं

और खुद पर झल्लाता हुआ अंकित बापस घर लौट आया…

***

अभी दरवाजा तक पहुंच भी ना पाया था कि घनश्याम सिगरेट फूंकते वहीं दिख गए …उसे देखा तो मानो आंखों से अंगारे बरसाते  हुए, बोले “क्यो …पांच महीने में एक महीने का किराया देकर …हो गए फुरसत…खाना भी हम खिलाये …और रखे भी हम.वो भी फ्री..फिर दरवाजा भी हम ही …खोलें” 

“बस्स अंकल जी ,जैसे ही ये महीना पूरा होगा ,मेरी सेलेरी मिलते ही सबसे पहले आपको सारा किराया दे दूँगा…आप चिंता ना करें”

इससे पहले घनश्याम कुछ और बोल पाते ,अंकित बचते हुए  तेज़ी से अंदर चला गया और सीधे अपने कमरे में दाखिल हो गया….विचारों में उलझा- उलझा  सो  गया…….

…अगली सुबह म्यूजिक लगा कर जिम जाने के लिए तैयार हो रहा था …कि सरोज को खुद के दरवाजे पर खड़ा पाया…दरवाजे की चौखट पकड़े हांफ रही थी…अंकित ने फुर्ती से उनका हाथ पकड़ ,बेड पर बिठाया और ग्लास में पानी दिया …और  साथ ही म्यूज़िक सिस्टम भी बन्द कर दिया…

“आप ठीक तो हैं”

उन्होंने हाँ  में सिर हिलाया ..और हाथ से, कुछ देर रुकने का इशारा किया…

“क्या जरूरत थी आपको ऊपर आने की…मुझे आवाज क्यो नहीं दी…?

“तू ….आजकल जो ये कानफोड़ू बाजा बजाता है…कितना भी चीखू…. कहाँ आवाज आती है …तुझे अहह …अहह”

वो रुक -रुक कर बोली ,थोड़ा संयत हो गयी थी ,अंकित को फौरन अपनी गलती का एहसास हुआ…अचानक मन मे आया कि कहीं ये बीमार हुई और  आवाज लगाई तो कैसे सुनेगा वो?

“आप सही कहती हैं,अब से म्यूजिक नहीं बजेगा …आप बिल्कुल  फिक्र ना करें” उसने स्वीकार करते हुए सरोज को आश्वस्त किया

“बजा… खूब बजा… मैंने कब मना किया …लेकिन धीमी आवाज़ में ” उंगलियों को ऐसे घुमा कर बोली जैसे वोल्युम का बटन इस वक़्त हाथ मे पकड़े हो..

“ठीक है माँ,ये बताओ हुआ क्या,क्यो आना पड़ा”?

“तेरे ऑफिस  से फ़ोन है ,किसी संपत  लाल का”

“क्या ….संपत लाल  का फोन ऑफिस से …बडे ताज्जुब की बात है…आप यही बैठिये में देखता हूँ”?

सरोज ने हाँ में सिर हिलाया और अंकित तेज़ी से नीचे सीढ़ियां उतरते हुए रिसीवर के पास पहुंचा 

“हेलो…हाँ संपत लाल,हाँ अंकित बोल रहा हूँ कहो,….क्या …?… क्या बकवास कर रहे हो …कब ?…ये ये  नहीं हो सकता…मैं… अभी …हाँ अभी आता हूँ”

और अंकित तेजी से सीधे ऑफिस की ओर दौड़ गया….

6.

राव इंडस्ट्री के बाहर  मीडिया के भीड़ लगी थी,बड़ी मुश्किल से अंकित भीतर जा पाया,सामने ही राव सर नाईट सूट में एक पुलिस इंस्पेक्टर के साथ खड़े थे,उसे देखा तो हाथ का इशारा देकर बुला लिया…

“सर …संपत लाल  का फ़ोन आया था….वो कह रहा था कि…” अंकित ने डरते हुए बड़ी मुश्किल से पूछा

“सही सुना तुमने ….राखी नहीं रही…”उन्होंने अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा 

“क्या ….ये नहीं हो सकता सर्… कैसे हो सकता है ऐसा”

राव सर ने उसे अंदर जाने का इशारा किया और अंकित भारी कदमों से अंदर गया तो सामने ऑफिस का लगभग सब स्टाफ़ मौजूद था,पास पहुंचा तो दृश्य देख कर हिल गया,राखी निस्तेज जमीन पर नीचे पड़ी थी,उसकी आंखें अब भी खुली थी …थोड़ी दूरी पर ही उसके माता -पिता सदमे की अवस्था मे थे….

“रा…खी ….(सुबकते हुए) …ये क्या हो गया,कैसे हो गया …हम तो आज कॉफी पीने जाने वाले थे…आंखे खोलो …उ…ठो” अंकित बहुत दुख में बोला

“अंकित सर….संभालिये खुद को” नीरू ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

“नीरू …कैसे हुआ ये सब”

“मुझे खुद हैरत है….कि ये सब कैसे हो गया….मुझे कुछ नहीं पता…बस्स संपत का फ़ोन आया था…और” नीरू रोने लगती है 

“हम्म  संपत… सम्पत …कहाँ है “अंकित ,संम्पत को ढूंढ़ते हुए बाहर आता है  तो देखता है कि संम्पत ,राव सर और उस इंस्पेक्टर के पास खड़ा कुछ बता रहा है,अंकित भी वही खड़ा होकर संम्पत की बात सुनने लगा

“ऐसे नहीं… सिलसिलेवार बताओ कि  क्या हुआ था कल”

इंस्पेक्टर ने अपना काला चश्मा उतारते हुए पूँछा

“राब सर कल लगभग साढ़े पांच बजे ऑफिस  से निकलते हुए बोले कि ‘संम्पत ,राखी को कुछ काम है वो लेट घर जाएगी,ऑफिस में ही रहना और उसके जाने के बाद ही जाना…”

संपत थूक गटकते हुए चुप हो गया..

“फिर क्या हुआ” इंस्पेक्टर ने गरजते हुए पूंछा

“मैने लगभग पौने सात बजे ,राखी मैडम से पूंछा कि वो कब जाएंगी,उन्होंने कहा लगभग बीस मिनट और लगेंगे…मैं पड़ोस की बनी बिल्डिंग में चला गया,उस बिल्डिंग के गार्ड  दाताराम के साथ  मैं कभी -कभी बीड़ी पी लेता हूँ,…सोचा, तब तक उसी के पास बैठ लूं,थोड़ी देर में बापस आया तो मैडम की सीट पर अंधेरा था,मैंने राखी मैडम को आवाज दी ….लेकिन कोई जवाब नहीं मिला….

“फिर”?

“फिर मैंने …मेंन स्विच से लाइट जलाई तो देखा वो सीट पर नहीं थी…तो यही लगा कि वो चली गयी होंगी.. फिर मैंने ताला लगाया और मैं भी चला गया….जब सुबह तड़के राब सर और राखी के पिताजी, ने मेरे कमरे पर आकर दस्तक दी ..तब हम यहाँ आये,देखा तो ….राखी मैडम ….अपनी मेज…. के पीछे ही “संपत लाल  का गला रुंध आया 

“साले …यहाँ… नौकरी करने आता है..या…पड़ोसी से गप्पे हांकने ..” उसने सम्पत पर हाथ उछाला ही था कि राव सर उसे रोकते हुए बोले

“नवीन ……माइंड योर बिहेवियर”

“सॉरी सर…वो जरा…” इंस्पेक्टर नवीन ने जब अपनी तेज़  आवाज को संयत किया 

“मैं संपत को, इसके बचपन से जानता हूँ,इस पर शक करने का मतलब बस्स समय की बर्वादी है, इसका ये व्यवहार सामान्य है..क्योंकि अब हादसा हो गया है ,इसलिए इसकी गलती नजर आती है..राखी की डेस्क आगे से बंद (कबर्ड ) है …इसीलिए उसके पीछे कुछ नही दिखता …जब तक कि आप बिल्कुल पास ना चले जाओ ..

“जी …राव सर मुझे आपका बयान भी चाहिए होगा”

“हम्म…आप तो जानते है,कल मौसम खराब था,क्योंकि राखी कई बार पहले भी… मेरे, आऊट हाउस  में रुक चुकी है…उन्हें लगा वही रुक गयी होगी…..राखी के पिता ने मुझे कई बार फ़ोन किया लेकिन उनका फ़ोन कनेक्ट नहीं हुआ,..फिर उन्हें चिंता हुई ,और लगभग साढ़े तीन या चार  बजे के आसपास  वो मेरे घर आ गए…फिर मैं उनके साथ आउट हाउस आया …वहाँ सिर्फ संम्पत था..उससे पूछने के बाद हम यहाँ आये….देखा…तो राखी….और फिर आपको फ़ोन कर दिया”

अपनी बात पूरी करने के बाद राव सर वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए,

“हम्म …” और अंकित की ओर इशारा कर  “ये कौन है”

“ये अंकित है ,मेरे पी. ए., हाल ही मैं जॉइन किया है,राखी इन्हें  ट्रेंड कर रही थी”

“मुझे इनका भी बयान  लेना है” इंस्पेक्टर नवीन ने कहा

“आप को जो करना है कीजिये,बस्स जल्द से जल्द राखी की मौत का पता पता लगाइए,      

फिर अंकित से..”.इन्हें बयान देने के बाद घर चले जाना और सबको भी जाने को बोल देना …कल देखते हैं”

अंकित ने हाँ में सिर हिलाया और इंस्पेक्टर उसे एक साइड में ले गया पूछ -ताछ करने ….

राखी की बॉडी को पोस्ट मार्टम के लिए ले जाया गया और …

अपना बयान देने के बाद अंकित बापस अपने घर आ गया …

***

उदास और परेशान अंकित पहुंच गया अनामिका के घर ,वो बाहर ही खड़ी दिख गयी ,अंकित को देखते ही बोली 

“आइये…बैठिये …में बस्स अभी आयी ” बोलकर चली गयी और कॉफ़ी ले कर लौटी

“आपको पता लगा…”? अंकित ने बड़ी धीमी आवाज में पूछा

“हम्म….न्यूज में देखा ….बहुत बुरा हुआ ” अनामिका ने अफसोस जताते हुए कहा

“राखी एकमात्र दोस्त थी मेरी…वो मुझसे छोटी थी,फिर भी बेहद होशियार …हमेशा मेरी मदद करती रहती…वो भी बिना किसी अपेक्षा के …कल उसने कॉफ़ी के लिए बोला था,लेकिन मैं …कितना बुरा हूँ… जो मैंने उसे मना कर दिया…हम आज कॉफी पर जाने वाले थे”

अंकित ने अपने आँसू पोछते हुए कहा

“सब्र रखिये…क्या हो सकता है”

थोड़ी देर चुप रहने के बाद….

“अनामिका जी,मैं कॉफ़ी नहीं पिऊंगा”

अंकित ने अपने हाथों को आपस मे कसकर पकड़ते हुए कहा

“क्यों… भला”

“राखी को कॉफी बहुत पसंद थी…में उसे भुला नहीं पा रहा”

अंकित ने दुखी स्वर में कहा

“आप उसे भुलाना चाहते ही क्यों हैं..वो आपकी दोस्त थी …उसे दोस्त बनाये रखिये,भुलाना क्यों “? अनामिका ने सवेंदना जताते हुए कहा

अंकित :–(कुछ तय करते हुए) हम्म …सही कहा आपने, मैंने इस तरह सोचा ही नहीं… आपकी इस बात से तो तसल्ली मिली…चलता हूँ..एक दो दिन नहीं आ पाउँगा”

“जब आपको ठीक लगे,तब आइये…”

और अंकित वहाँ से चला आया…फिर 3 दिन तक नहीं गया अनामिका के पास..ऑफिस में पूजा कर दी गयी ..शुरू में माहौल  जरूर सामान्य नहीं रहा,लेकिन काम चलता रहा।

अंकित नोट्स बना -बना कर  …4 से 5 दिन में एक बार  अनामिका को देकर आता रहा… लेकिन कोई खास बातचीत नहीं हुई…इसी बीच ..राखी केस की फाइनल रिपोर्ट आ गयी कि, किसी डर या डरावनी चीज़ को  देखने से कार्डियक अटैक से मौत हुई थी राखी की… 

बीस-पच्चीस  दिन बीत गए…अंकित को सेलेरी भी मिल जाती है और वो बकाया सारा किराया अपने मकान मालिक को दे देता है ….जैसा आमतौर पर होता है…..जिंदगी बापस पटरी पर आ जाती है….

***

अंकित अनामिका के घर  के अंदर जा पाता इससे पहले ही वो बाहर आकर बोली..

.”एक बात पूछूँ ?”उसने मुस्कुराते हुए कहा

“हाँ …हाँ ..बिल्कुल पूछिये”

“आप ने डिनर के लिये कहा था …याद है ?

“(बहुत खुश होकर) जी…बिल्कुल…अच्छी तरह याद है”

“तो ठीक है …चलिए?

“अभी…”?

“बिल्कुल अभी”

अंकित मन में…” येहहहह….उहूहू…यसस्स”

“और वो मस्कुलर “? हा हा हा …हुँ… वो तो गया…इसे आज ही प्रपोज़ कर दे अंकित …हाँ सही …बहुत हुआ…आज ही कर दूंगा

अंकित :–(अपनी खुशी छिपाते हुए) ठीक है चलिए”

“बस्स …दो मिनट …आप बैठिये में तैयार होकर आती हूँ”

अंकित अंदर बैठ जाता है और अनामिका का इंतज़ार .. बहुत खुश और बेसब्र होकर करते हुए… बार बार टाइम देखता है…और मन मे कहाँ ले जाएगा …किसी भी अच्छे रेस्टोरेंट …शानदार डिनर कराऊँगा …फिर अच्छा सा मौका देखकर प्रपोज़ कर दूंगा …हाँ ठीक रहेगा…

कुछ ही मिनट में अनामिका कुछ ड्रेसेस हाथ में पकड़े अंकित के सामने आती है और अंकित से कहती है “देखो कुछ समझ नहीं आ रहा…में चाहती थी कि व्हाइट नई ड्रेस हो…लेकिन … क्या फिर कभी चलें ? उसने पूछा और अंकित मानो आसमान से नीचे आ गिरा …

अंकित अपने मन में …”ये क्या है यार…इतना अच्छा मौका हाथ से नहीं जाने दे सकता मैं…तो .अब ? मुझे लगता है जो ड्रेस मैंने इसके लिए खरीदी..वो मुझे इसे गिफ्ट कर देनी चाहिए …कहीं नाराज हो गयी तो? सीधा जीरो पर चला जायेगा…और नहीं  बताया तो ?…ये मौका हाथ से चला जायेगा …और  इसी बीच कहीं वो मस्कुलर आ गया तो .??? नहीं नहीं “

अनामिका सामने खड़ी उसे देख रही थी …और अंकित ऊपर से तो सामान्य मगर उसके अंदर असमंजस की बड़ी सी लड़ी…. उलझी हुई थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे ..कि एकाएक उसने मानो निर्णय ले लिया……

7.

“अ ….अ अनामिका… वो अ” अंकित  बहुत कोशिश के बाबजूद भी कह नहीं पा रहा था

“क्या… कहिए ना “ अनामिका ने मुस्कुराते हुए पूछा तो जैसे हिम्मत मिली और वो बोल गया कि

“जी… मैंने एक व्हाइट ड्रेस खरीदी है…काफी दिन हुए ”

“ड्रेस… क्या मेरे लिए “ उसने पास आते हुए पूछा

“जी…ब्स्स यूं ही .. दिखी … अच्छी लगी…  तो ले ली “ वो जल्दी से बोल गया

“अच्छा…तो दी क्यो नहीं..अभी कहाँ है”? अंकित की अपेक्षा के बिलकुल बिपरीत उसने मुस्कुराते हुए पूछा

“मेरे कमरे पर “ अंकित ने जवाव दिया… और मन ही मन अफसोस किया कि पहले ही ये बताने की हिम्मत क्यों  नहीं जुटा पाया

“तो देर किस बात की…जाइए ले आइये “ वो अब भी मुस्कुरा रही थी

“अभी…?” जैसे मानो सुनने के बाद भी यकीन ना हो रहा हो अंकित को

“जी….बिल्कुल अभी… जल्दी ले आइये.. डिनर पर नही चलना ? “कहकर वो अंदर जाने को मुड गयी

“ब्स्स अभी लाया “  कहता हुआ अंकित अपने घर की ओर दौड़ गया,उसे लगा जैसे वो मानो हवा मे तैर रहा हो..कुछ ही पल मे घर पहुँच गया…दरवाजा खुला था घर का, यूँ तूफानी गति से दौड़ते हुए घर मे घुसा, कि सरोज कुछ बोल पाती इससे पहले…अंकित अपने कमरे मे पहुंच गया…कबर्ड मे से ड्रेस को निकाला ..बड़े प्यार से उसे छुआ..और एक बैग मे रख.. दौड़ते हुए नीचे दरवाजे तक पहुंचा गया

“क्या हुआ….. अंकित…. सब ठीक तो है “ हाथ मे जल का लोटा उठाए वो पूजा घर से उठ कर बाहर आ गयी थी …उसे देख …

“हाँ हाँ …माँ सब ठीक है …. ब्स्स जल्दी मे हूँ “ भागते हुए उसने जवाव दिया …और दौड़ गया अनामिका के घर की ओर

जैसे ही अंकित पहुंचा… अनामिका ने ड्रेस लेने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया और अंकित ने उसके हाथ मे पैकेट थमा दिया… वो वोली “ब्स्स दो मिनट”  और अंदर चली गयी… और अंकित अपने हाथ आपस मे मलते हुए चहलकदमी करने लगा … मन ही मन ये दुआ करते हुए कि उसकी लायी हुई ड्रेस अनामिका को पसंद आ जाए और फिट भी …दो मिनट भी ना हुए होंगे कि वो सामने आ गयी..और अंकित के मन मे आया :कहीं ऐसा तो नही ड्रेस फिट ना आई हो और अगले ही सेकंड नजरों ने देख लिया ..उसकी लायी हुई वही ड्रेस पहनी थी अनामिका … बहुत खूबसूरत लग रही थी 

अंकित ने अपने मन में कहा   …मैंने सोचा भी नही था….. कि ये ड्रेस इतना जचेंगी इस पर…अभी वो अपलक निहार ही रहा था, कि अनामिका ने… पास आते हुए कहा

“ अंकित … ये ड्रेस बहुत सुंदर है…मुझे बहुत पसंद आई… बहुत  अच्छी पसंद है आपकी“ 

और इतना बोलते हुए अपना हाथ अंकित की ओर बढ़ा दिया… अंकित ने अपना हाथ थोड़ा आगे बढ़ाया और रुक कर इशारे से पूछा {क्या अपना हाथ तुम्हारे हाथ पर रख दूँ ?} वो मुस्कुराई और पलक झपका कर “हाँ“ मे गर्दन हिलाई….

अंकित ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया..जैसे मानो एक तूफान ने हिलोर मारा हो. अंकित के अंदर,..और वो ऊपर की तरफ जाने वाली सीढ़ियों पर, कदम रखती हुई बढ़ने लगी .  उसके कदमों से ताल मिलाता अंकित ,उसके पीछे- पीछे…जल्दी ही वो दोनों एक खूबसूरत  टैरेस पर थे…

हल्की ठंडी हवा चल रही थी ..सुंदर सी चाँदनी पूरी टैरेस पर बिखरी हूई थी..एक मेज पर डिनर तैयार था..और कैंडल जो एक खूबसूरत जालीनुमा डिजाइन वाले कवर से ढकी थी..उसके भीतर से छन छन कर आ रही रोशनी एक अलग ही खूबसूरती बिखेर रही थी..बादल उसे, इतने खूबसूरत…  सो भी रात मे कभी नही दिखे… और ना ही चाँद इतना खूबसूरत…जैसे चाँद की रोशनी उन बादलों से होकर सीधे अनामिका पर पड़ रही हो और उसे इतना खूबसूरत दिखा रही हो…

एक अच्छे मेजबान की तरह अनामिका ने आगे बढ़कर ,कुर्सी को …थोड़ा खिसका कर 

ऐसे ठीक किया मानो पहले गलत तरीके से रखी हो और अंकित से बैठ जाने को कहा,

“मैं आपको डिनर कराने बाहर ले जाने वाला था ना…हम बाहर जा रहे थे ना”? उसने बैठते हुए कहा

“हम कहीं भी जाते… बाहर बहुत लोग होते…मुझे भीड़ -भाड़ बिल्कुल पसंद नहीं….मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है….क्या ये सब आपको अच्छा नही लगा ? वो भी बिना कोई बाहरी आड्म्बर “

“बेहद …बेहद…इतना खूबसूरत नजारा मैंने अपने जीवन मे ना कभी देखा.. ना महसूस किया …अनामिका जी ……आपकी मेहनत जो आपने इस डिनर के लिए की है,जगह की पसंद और ये शाम .. वाह … मेरे पास तारीफ के लिए शब्द नही “  अंकित ने खुशी से भरकर ..आसमान की ओर दोनों हाथ फैलाते हुए ज़बाव दिया

“जी… नही….  सिर्फ अनामिका कहिए “ उसने अंकित की ओर खाने की प्लेट बढ़ाते हुए कहा

“अ ….ना…मि… का ” उसने शर्माते हुए कहा और प्लेट पकड़ कर अपने सामने रख ली

अंकित का मन “अब कब?? इससे बेहतर मौका कब मिलेगा…बता दे अपने मन की बात…हम्म

अंकित:- मैं कुछ कहना चाहता हूँ …

अनामिका:-“हम्म कहिए ना” उसने खाने का निवाला मुँह मे रखते हुए कहा

अंकित:- “ आप बहुत खूबसूरत हैं ,…जाने कब से… मुझे खुद एहसास नही हुआ, कि मैं कब ,तुमसे इतनी मोहब्बत करने लगा,मैं तुम्हें चाहता हूँ…और जीवन के अंतिम झण तक तुम्हें चाहूँगा….”

कहते हुए अंकित अपनी कुर्सी से उठ कर कर नीचे अपने घुटनों पर बैठ गया 

“मैं तुमसे प्यार करता हूँ ,अनामिका….बहुत…बहुत …अगर तुम स्वीकार कर लो तो इस धरती पर मुझसे ज्यादा कोई खुसनसीब नही होगा” अंकित अनामिका की ओर अपने जवाव की उम्मीद मे देखना लगा,और अनामिका  जो खड़ी- खड़ी उसकी ओर ही देख रही थी ..धीमे कदमों से चलते हुए बढ़ीऔर. पास आकर अपने दोनों हाथ उसकी ओर बढ़ाते हुए बोली “ना प्यार करती होती … तो डिनर ऐसे  टैरेस पर रखती ?..मैं भी बहुत चाहती हूँ तुम्हें” उसने मुसकुराते हुए कहा तो अंकित एक बच्चे की तरह खुश होकर बोला “सच” …

“हाँ….बिल्कुल सच….तुम्हारे बोलने का ही इंतज़ार कर रही थी” कहते हुए अनामिका और नजदीक आ गई अंकित के और दोनों एक दूसरे के गले लग गए …इतने नजदीक आकर जो भावनाओ का वेग उमड़ा तो एक खूबसूरत चुम्मन … दोनों के प्रेम का गवाह बन गया…और चाँद मानो शरमा कर बादलों के पीछे छुप गया !

***

अंकित अपने ऑफिस से घर की ओर आ रहा था कि उसकी नजर थोड़ी दूरी पर सामने रुकी कार पर चली गयी ,दो लड़के उसी मस्कुलर लड़के को कार में बैठा कर ड्राइवर को कुछ हिदायत दे रहे थे…उसे देख अंकित का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और अंकित टैक्सी लेकर उस कार के पीछे लग गया.. जल्दी ही कार एक बड़े से बँगलेनुमां घर के आगे रुकी … और ड्राइवर उस मस्कुलर को संभालता हुआ अंदर ले जाने लगा… और अंकित उसके पीछे-पीछे जाने लगा… 

मस्कुलर को घर में छोड़ ड्राइवर बापस हो गया ,भाग्यवश कोई और नहीं दिख रहा था घर में इसलिए अंकित आराम से अंदर चला गया…और बिना एक मिनट गवाएं अंकित ने पांचों उंगलियां इकट्ठा कर एक जोरदार पंच बना उसके मुँह पर दे मारा

“बता…अनामिका के पीछे क्यों पड़ा है…तेरे पास उसकी फोटो कैसे आई….बोल”

अंकित ने गुस्से में दांत भीचतें हुए कहा ,लेकिन पंच खाने के बाद भी जैसे होश मे नहीं आया मस्कुलर …बेहद नशे की हालत में बोला

“कौन हो तुम …. अंदर कैसे आए “?

“बस्स इतना जान ले … कि अनामिका सिर्फ मेरी है “ गुस्से मे बोलते हुए उसने एक जोरदार पंच और रसीद कर दिया मस्कुलर को…

इतने मे घर से ही किसी की आवाज आई और अंकित बाहर की ओर तेज़ी से निकल गया….फिर पहचानी सी आवाज सुन उसके कदम रुक गए और उसने  दरवाजे की दरार से झांक कर देखा तो … एक बार फिर आश्चर्य से उसकी आंखे फैल गयी

8

“राव सर्… यहाँ ” उसका मुंह खुला का खुला रह गया,उसने अपना हाथ माथे पर रखा ..और ये सोच कर कि कहीं धोका ना हो गया हो देखने में,फिर  से देखा तो राव सर ही थे..वो उस मस्कुलर को कह रहे थे,”आज भी शराब पीकर आये हो …कैसे समझाऊँ तुम्हें”

.फिर से  अनगिनत प्रश्न मन मे आने लगे अंकित के,…राब सर यहाँ कैसे ? इससे सर का क्या कनेक्शन ,राव सर इसके साथ पहले कभी क्यों नही दिखे… या ये कभी ऑफिस में दिख सकता था …इतने दिनों में सर ने अपने परिवार का कोई जिक्र कभी नहीं किया…इन्ही सब प्रश्नों में डूबता उतराता अंकित घर पहुंचा दरवाजा खोलते ही सरोज बड़ी खुशी से बोली ..

“अंकित देख तो जरा…”इतना बोलकर उन्होंने किचन की ओर इशारा किया…घनश्याम… उसे देख किचन से बाहर निकल आये थे…हाथ मे सब्जी से सना हुआ चमचा पकड़कर …और बोले

“अंकित…जल्दी हाथ ..मुंह धोकर तैयार हो जाओ..मलाई कोफ्ते बनाये हैं आज स्पेशली तुम्हारे लिए..”बड़े खुश दिख रहे थे,.. पहली बार अंकित ने..घनश्याम को खुद,से इतने प्यार से बात करते देखा तो, एक बार को तो उसे ,यकीन नहीं हुआ..लेकिन बहुत अच्छा लगा..

“अच्छा…बस्स पांच मिनट में आया ” इतना ही बोल वो अपने कमरे के लिए सीढिया चढ़ गया…

खाना खाने के बाद जब वो सोने गया तो उसके मन मे आया कि अब राव सर को पता लग जायेगा कि उसने मस्कुलर के साथ मारपीट की है तो कल का दिन उस ऑफिस में अंतिम दिन होगा…

या ऐसा भी हो सकता है कि बेहद नशे की हालत में था मस्कुलर ,तो शायद उसे ना पहचान पाए… जो होगा वो देख लेगा , यही सब ..सोचते सोचते अंकित…सो गया…

***

अंकित  पूरी तरह से खुद को तैयार कर चुका था कि ये उसका ऑफिस में अंतिम दिन है …बचे काम निपटा देने चाहिए..ये सोचकर काम करने में जुट  गया ऑफिस में कहीं भी एक्सटेंशन पर फ़ोन आता तो वो चौकन्ना हो जाता ..कि राव सर का फ़ोन तो नहीं आया..वो अभी उसे बुलवाकर बोलेंगे कि ऑफिस से निकल जाओ…ठीक है निकल जाऊँगा… लेकिन अनामिका को कोई भी तकलीफ दे,ये नहीं सहूँगा…बोल दूँगा ये ना सिर्फ  उसकी फोटो लिए घूमता है बल्कि घर के बाहर जाकर उसके फ़ोटो खींचता है… इसी सोच में उलझा था कि इतने में नीरू सामने खड़े  दिखी ..

.”अंकित,आपको राव सर बुला रहे हैं…और आपका एक्स्टेंशन फोन काम क्यों नही कर रहा..कितनी बार ट्राई किया”

नीरू को अपनी सीट छोड़कर यूँ चलकर अंकित को बुलाने आना अच्छा नहीं लगा..अंकित ने देखा तो सच में रिसीवर अलग पड़ा था..

“ठीक है जा रहा हूँ…सॉरी.. तुम्हे यहाँ तक आना पड़ा ” अंकित चाहता था वो जल्द से जल्द सामने से चली जाए ..ताकि वो सीधे अपना बैग उठाकर राव सर के पास जाए …और जब वो निकल जाने को बोलें  तो सीधे वहीं से निकल जाए…

“अररे कोई बात नहीं” नीरू ने झूठी मुस्कान के साथ कहा,और चली गयी..अंकित ने भी बैग उठाया और राव सर के सामने पहुंच गया.

“गुड़ मॉर्निंग सर्… अंकित ने बड़े रूखे मन से कहा

“गुड़ मॉर्निंग …अंकित ये बताओ …क्या राखी ने तुम्हारी कोई मदद की “? कुछ लिखते हुए ,बिना उसकी ओर देखे बोले वो

“बिल्कुल की सर..बहुत की”

“हम्म…तो तुम्हे नहीं लगता …तुम्हे रुचिका की मदद करनी चाहिए..वो यहाँ अभी अभी आयी है. ऑफिस के सारे मेम्बर्स को आपस मे एक परिवार की तरह मिलजुल कर रहना चाहिए…”

“मैं समझ गया सर”

“हम्म…कोई मीटिंग है क्या अभी …”

“जी…सर …मेहता सर आने वाले होंगे…

“ठीक है …तुम साथ रहना “

“जी सर “…अंकित ने राहत  की सांस ली…वो जैसा सोच रहा था वैसा बिल्कुल नहीं हुआ वो केविन से बाहर आया तो रुचिका अपनी सीट पर नीरू के साथ पिज़्ज़ा खाते दिखी… वो सीधे डेस्क तक ही पहुंच गया मुस्कुराया तो रुचिका ने उसकी ओर पिज़्ज़ा बढा दिया 

“सॉरी …मैं पिज़्ज़ा नहीं खाता” उसने बड़ी नर्मता  से कहा 

“थोड़ा सा तो लीजिये प्लीज़” रुचिका ने आग्रह किया तो उसने एक छोटा सा टुकड़ा उठा लिया

“कैसा लग रहा है आपको यहाँ इस  ऑफिस में ” उसने यूँ ही पूछ लिया

‘सब अच्छे हैं…अच्छा लग रहा हैं… बस्स आप को छोड़कर”

उसने हँसते हुए कहा तो अंकित बोला

“हम्म…मैं खड़ूस जो हूँ “दोनों हँसने लगे इतने में अंकित को ऑफिस के ठीक बाहर अनामिका दिखीं  तेज़ी से बाहर निकला वो,आकर देखा…नहीं दिखी ..थोड़ी दूर चलकर भी देखा…लेकिन नहीं दिखी …उसने खुद से कहा ‘कहाँ चली गयी अभी तो यही देखा था मैंने उसे …शायद अनामिका का प्यार मेरे सिर चढ़कर बोल रहा है …इसलिये हर जगह वो ही दिख रही है , उसने खुद को सिर के पीछे एक हल्की सी चपत लगाई और मुस्कुराते हुए अंदर आ गया… 

9.

आज अनामिका  के घर का दरवाजा खुला दिखा तो सीधे ही अंदर  चला गया और नजर ऊपर गयी तो हल्की चीख निकल गयी उसके मुंह से …झूमर पर अनामिका उल्टी लटकी थी …उसकी चीख सुनी तो नीचे उतर आई ..

“क्या हुआ …चीखे क्यों “?

“तुम.. तुम …ऊपर लटकी हुई थी “

“तो…? इसने चीखने जैसा क्या है…जिम्नास्टिक के लिए कौन सी बड़ी बात है ये, बल्कि यहाँ से तो शुरुआत करते हैं  हम ” उसने चिढ़ते हुए कहा

“तुम जिम्नास्टिक भी करती हो “उसने हँसते हुए पूछा

“अभी तुमने जाना ही क्या है ” उसने अंकित के चेहरे पर नजर टिका मुस्कुराते  हुए कहा

“हम्म…बहुत अच्छे” अंकित ने उसका उत्साहवर्धन करने को ताली बजाते हुए कहा

“तुम बैठो …अभी आयी ” बोलते हुए वो अंदर चली गयी ..और जल्दी ही एक ट्रे में कॉफ़ी संग पिज़्ज़ा ले कर लौटी 

ट्रे देखते ही अंकित बोला ..”मैं पिज़्ज़ा नहीं खाऊंगा… एक तो खाता नहीं ऊपर से ..रुचिका का मन रखने को खाना पड़ा आज ऑफिस में”

“रुचिका “?

“हाँ …राखी की जगह आयी है…काफी तेज़  और खूबसूरत है..और हां थोड़ी सी फ़्लर्ट भी तुम्हारी तरह ” और जोर से हँस  दिया

अंकित का मन :तू जला रहा है उसे 

अंकित: मैंने सुना था..जलन, बहुत खूबसूरत फीलिंग है लेकिन तब ही, जब इसे आप अपनी आंखों से देख सको 

अंकित का मन : और पॉजिटिव भी हो

अंकित “हाँ …तो मैं कौन सा नेगेटिव कर रहा हूँ

अंकित का मन ” देख …बुरा लग रहा है उसे शायद उसे”

अंकित “ऐसा? …अरे यार

अंकित:- …हे अनामिका …क्या हुआ”

“सोच रही थी “

“क्या”

“तुम्हारे प्यार में शिद्दत तो है ना”?

“शिद्द्त ? तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे दूंगा .”अंकित ने गंभीर होते हुए कहा

“पता है ना …जो कह रहे हो “?

“अच्छी तरह से …जब चाहे आजमा लेना…तुम कहो तो अभी दे दूं अपनी जान “

“नहीं… नहीं “

“अब चलूं” उसने जाने को पूंछा

“हम्म ” हाँ में सिर हिलाते हुए

“क्या हम्म….गले कौन लगेगा “? अंकित अपनी बाहें फैलाते हुए बोला तो अनामिका उसके गले लग गयी 

***

सुबह जिम से लौटने के बाद अंकित ऑफिस के लिए तैयार हो हुआ और निकल गया…लेकिन मन में उथल पुथल मची हुई थी ना सही कल लेकिन राव सर को पता लग ही जायेगा और वो मुझे ऑफिस से निकाल देंगे…चाहे लाख अच्छे हो वो लेकिन पक्ष तो उसी मस्कुलर का लेंगे .. क्या पता कौन है ..लगता तो उनका बेटा है ,मुझे जल्दी  ही कोई इंतजाम करना होगा अपनी जॉब का,

‘आहह ‘! विचारों में उलझे  अंकित को सामने पड़ा पत्थर नहीं दिखा और मुंह के बल गिर पड़ा …और दर्द से कराह उठा…एक ,दो बार उठने की कोशिश की पर नहीं उठ पाया…कि किसी ने उसकी  मदद  के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया  

नजर उठाकर देखा तो रुचिका मुस्कुराती हुई सामने खड़ी थी..

“आप ..”

“जी हां मैं… लाइये हाथ दीजिये…दीजिये”

अंकित ने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ा दिया और रुचिका ने अपनी ताकत लगाते हुए अंकित को उठने में मदद की..और पूछा

“आप ठीक तो हैं”?

“अहह… हाँ ..ठीक हूँ “अंकित ने अपने कपड़े झाड़ते हुए कहा

“मुझे तो नहीं लगता…आपके घुटने से खून बह रहा है..देखिये”

रुचिका ने अंकित के घुटने की ओर इशारा करते हुए कहा

“अररे हाँ… लेकिन बहुत नहीं है.. कोई चिंता की बात नहीं” उसने अपने घुटने पर हाथ रखते हुए  कहा

“मुझे लगता है आपको डिस्पेंसरी चलना चाहिये.. चलिये गाड़ी में  बैठिए” रुचिका ने आगे बढ़कर अपनी कार का दरवाजा खोल दिया और अंकित को बैठने का इशारा किया

“आप ऑफिस जाइये..मेरी वजह से आप भी लेट हो जाएंगी”

“आप मेरी जगह होते तो, मुझे ऐसे हाल में छोड़ कर चले जाते”? वो ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी 

अंकित ने मन मे कहा ..हरगिज नहीं ..इंसानियत भी कोई चीज है 

“मुझे लगता है आपको ,..आपका जवाब मिल गया होगा ,बैठिये जल्दी से

और अंकित बगल वाली सीट पर बैठ गया..जैसे ही उसने सीट बेल्ट बांधी रुचिका ने गाड़ी डिस्पेंसरी की ओर मोड़ दी…डिस्पेंसरी पहुंचे अंकित को डॉ ने एक इंजेक्शन लगाया और  चोट पर मरहमपट्टी कर दी। 

“आप ना होती तो जाने कब तक वही पड़ा रहता मैं”अंकित ने रुचिका को बोला

“ऐसा भी कुछ नहीं कर दिया मैंने… खैर ये बताइये घर जाएंगे या ऑफिस ? रुचिका  बोली

“घर का तो कोई मतलब नहीं.. ऑफिस ही चलते हैं” अंकित ने उठते हुए कहा और कार की तरफ मुड़ गया..पीछे पीछे रुचिका भी मुड़ गयी और बोली

“मैं आपसे रिक्वेस्ट करूँगी कि आप आज आराम करें… आराम करेंगे तो जल्दी ठीक हो जाएंगे “

“रुचिका जी,मेरा ऑफिस जाना बहुत जरूरी है …कल कुछ इम्पोर्टेन्ट मीटिंग्स हैं.. जिनकी तैयारी करनी है”

“इसीलिए तो कह रही हूँ, आज आराम कीजिये ताकि कल आराम से मीटिंग कर लें… बाकी आपकी मर्जी ” रुचिका ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा और अंकित को बैठ जाने का इशारा किया..अंकित को रुचिका की बात ठीक लगी,क्यों ना आज का दिन अनामिका के साथ बिताया जाए ..हम्म ये ठीक रहेगा… आज ऑफिस में कोई ऐसा काम भी नहीं जो उसके ना जाने से रह जाये …

“मुझे लगता है आप ठीक कह रही हैं…प्लीज़ राव सर को बता देना आप कि…

“आप फिक्र मत कीजिये मैं उन्हें जरूर बता दूंगी…आप बैठिये मैं आपको घर तक छोड़ देती हूँ”

“नहीं …उसकी जरूरत नहीं, एक दोस्त  रहता है यहीं उसी को बुला लूंगा ,आप जाइये”

उसने रुचिका को भेजने के लिए झूठ बोल दिया

“अच्छा …ठीक है ” बोलकर उसने गाड़ी बढ़ा ही पायी थी कि अंकित ने उसे हाथ का इशारा दे रोक दिया…

“रुचिका जी…माफी चाहूंगा…मैंने कभी आपसे ठीक से बात तक नहीं की… वो असल मे राखी की जगह किसी को देखना अच्छा नहीं लग रहा था,लेकिन उसमें किसी का क्या दोष ?…कभी कभी होता है ना,सब पता होता है फिर भी हम बच्चों सी हरकतें करने लगते हैं “

“आप काफी इमोशनल हैं (मुस्कुराते हुए) .मैं आपकी जगह होती तो शायद …कभी बात ही ना कर पाती ,सब आपकी तरह अच्छे नहीं होते ना…अपना ख्याल रखिये. ” और स्टार्ट गाड़ी में एक्सीलेटर बढ़ा ,कार को सड़क पर दौड़ा दिया…अंकित कुछ सेकंड  तक रुचिका की गाड़ी को सड़क पर दौड़ते  देखता रहा और फिर  अनामिका के घर की ओर मुड़ गया…

10

आज बाहर ही खड़ी थी उसे देखते ही मुस्कुराती हुई सामने आकर खड़ी हो गयी. बोली..

“तुम इस वक़्त “?

अंकित ने खुशी से चमकती हुई उसकी आंखे देखी ,तो बड़ा खुश हो गया 

“हम्म,तुमसे मिलने का बहुत मन था”

“अच्छा…सच “?

“हम्म… चलो कहीं बाहर चलते हैं “उसने अनामिका का हाथ पकड़ते हुए कहा

“बाहर “?

“हाँ बाहर …किसी खूबसूरत जगह …चलो ना”

“खूबसूरत जगह …कैसी “

“खूबसूरत …उम्म …जहाँ प्यारी हवा हो…दूर दूर तक कोई ना हो,तुम हो और मैं …बस्स .

..और वहाँ से ये खूबसूरत पहाड़ियां और खूबसूरत दिखे …”

“अच्छा”

“हाँ …घंटों वही बैठेंगे हम…फिर शाम को खाना और बापस …या फिर …बापस जाना भी क्यों …हम्म”

उसने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा 

“जहाँ मैं ले चलूँ,वहां चलोगे “?

“तुम तो कहीं भी ले चलो ..मना कर दूँ तो कहना…इस दुनिया तो क्या ..इस दुनियां के पार भी तुम्हारे साथ चलूँगा”

“अच्छा”?

“हाँ”

“फिलहाल तो इसी दुनिया मे आओ”  और अनामिका,अंकित का हाथ पकड़कर उसे बंगले के पीछे ले जाने लगी …जैसे ही बंगले के पीछे गए दोनो…अंकित खुशी से अपनी एड़ी पर घूम गया.. खुशबूदार हल्की ठंडी हवा…नीले पहाड़ मानो किसी ने अभी अभी रंग भरा हो …एक छोटा और खूबसूरत तालाब और उसमें तैरती एक प्यारी सी बत्तख…अंकित खुशी से झूमता हुआ बोला

 “इतनी खूबसूरत जगह यहां होगी ..मैंने सोचा भी ना था “

अनामिका वहीं खड़ी होकर अंकित को ऐसे खुश होते देख रही थी और हँस रही थी

“अनामिका ये जगह तो कमाल है ” वो दोनों हाथ हवा में फैलाये आसमान  की ओर देख रहा था

“यहां आओ ना …मेरे पास बैठो “अनामिका बोली तो अंकित भागता हुआ उसके पास आकर बैठ गया …

“सच कहूँ… बड़ी बेसब्री से तुम्हारे पेरेंट्स का इंतजार कर रहा हूँ…वो जल्दी से आये और मैं उनसे हमारी शादी की बात करूं”अंकित अपना सिर अनामिका की गोद में रखते हुए बोला

“शादी इतनी जल्दी क्यों… ये वक़्त लौट कर नहीं आएगा …इसका अपना मज़ा है…नहीं है क्या”?

“हम्म ..तुम भी ठीक कहती हो… तुम्हें खुश रख पाऊँ .और तुम्हारे पेरेंट्स भी खुश हों मुझसे मिलकर…इसलिए  तरक्की करना भी जरूरी है”

अनामिका ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया ,,तो अंकित उसे अपनी चोट दिखाते हुए बोला 

“देखो कितनी चोट लगी आज मुझे” अनामिका ने उसके घुटने  को देखने के लिए हाथ बढ़ाया ..अभी उसका हाथ. दूर ही था…कि अंकित के मुंह से निकला 

“अहह …बहुत दर्द है” 

अनामिका ने उसके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा 

“बड़े ड्रामेबाज हो तुम…चलो खाना खाते हैं”

“तुम में बहुत खूबियां हैं …तुम खाना भी बहुत अच्छा बनाती हो”अंकित ने तारीफ की तो अनामिका मुस्कुरा भर दी..बातें करते करते शाम हो गयी ..अंकित ने अनामिका की चिंता करते हुए रुकना चाहा… तो अनामिका ने उसे मना कर दिया और वो अपने घर की ओर चल दिया………

अभी बस्स सड़क पर आ ही पाया था कि थोड़ी दूर से ही उसे रुचिता की गाड़ी दिखी …रुचिता ने उसे देखा तो गाड़ी उसी ओर मोड़ दी …साथ मे नीरू भी थी …जो उसे देख गाड़ी से नीचे उतर, उसके पास आ गयी थी …बोली

“रुचिका ने बताया आपको चोट लगी है …कैसे हो अब “? 

“बस्स जरा सी चोट लगी है…ठीक हूँ.. आप लोग तो बेकार में परेशान हैं मेरे लिए”

“आप यहाँ? वो भी.इस रोड पर …क्या कर रहे हैं” 

रुचिका ने गाड़ी में बैठे बैठे ही पूछा

“क्यों इस रोड पर क्या प्रॉब्लम है “अंकित ने पूछा

“अरे …आपको नहीं पता “

“क्या…”?

“इस रोड के अंदर …” @@@ एक बड़ी तेज़ “पी पी “ की आवाज ने  कान और सिर को भेंद दिया …वो फिर भी अपनी आवाज को तेज करके बोल रही थी  ..लेकिन अंकित को कुछ सुनाई नही दे रहा था…उसने अपने दोनों हाथ कान पर रखे और डमरू की तरह उन्हें रुचिका के सामने ये जताते हुए हिला दिया कि उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा…”पी पी “करती हॉर्न की आवाज और नजदीक आ गयी थी… तीनो ने एक साथ अपने कानों पर हाथ रखकर रोड की  तरफ देखा तो इससे पहले कोई कुछ समझ पाता..उस ट्रक ने पूरी स्पीड से रुचिका की कार में टक्कर दे मारी …एक जोरदार ` धड़ाक` की आवाज के साथ रुचिका की गाड़ी हवा में उछल गयी और हवा में ही पलटते हुए दूर सड़क पर जा गिरी..

.

“रु…….चि…….का ” चीखती हुई नीरू रुचिका की कार की ओर भागी …और अंकित उस ट्रक की ओर ..कि नीरू ने अंकित को बुलाने के लिए जोर से चीखते हुए उसे आवाज दी

“अंकि…त …जल्दी …जल्दी ” और अंकित रुचिका की कार की तरफ पूरी ताकत से दौड़ गया…


11

अंकित  पास पहुंच तो देखा…रुचिका की कार उल्टी पड़ी थी सड़क पर  .. उसके पहिये अब भी घूम रहे थे…रुचिका की आंखे बंद थी और उसका सिर स्टेरिंग पर था…आगे बढ़ा ही था,कि नीरू ने उसे रोकते हुए कहा”अंकित हमें पुलिस को कॉल करनी चाहिए …ये पुलिस केस है “

“क्या बकवास कर रही हो…जब तक पुलिस आएगी ,इसके जीवित रहने की उम्मीद खत्म हो जाएगी”

“हम बेकार में पुलिस केस में फंस सकते हैं ” डर और घबराहट में उसकी आँखों से आंसू निकलने लगे

“तुम डरो मत …बस्स  बाहर रोड से किसी टैक्सी को रोको …जा… ओ “अंकित ने चीखते हुए कहा और रुचिका को कार से निकालने की कोशिश करने लगा ..थोड़ी देर स्तब्ध खड़ी रही नीरू ….फिर जैसे चेतना आयी हो, …अंकित की मदद करने लगी … मिनटों की कड़ी मशक्कत के बाद रुचिका को कार से निकाल पाया दोनों ने ,रुचिका के हाथ और पैरों से खून बह रहा था …जहाँ नीरू ने उसका सिर पकड़ा, वही अंकित ने उसे पैरों से पकड़ा और …सड़क तक लाये, टैक्सी लेकर हॉस्पिटल पहुंचे …डॉक्टर ने देखते ही आई. सी .यू. में भर्ती कर लिया 

नीरू ने ,राब सर और रुचिका के पेरेंट्स को फ़ोन कर दिया..कुछ मिनट ही बीते होंगे कि रुचिका  के पेरेंट्स हॉस्पिटल आ गए 

अधीर और दुख में डूबी रुचिका की मां को अंकित ने आगे बढ़के  संभाला…

“हाँ सुधीर …हम पहुंच गए हॉस्पिटल …हाँ …हाँ करता हूँ तुम्हे फ़ोन”

फ़ोन पर बात करते हुए रुचिका के पापा पहुंचे..सुधीर का नाम सुन ,अंकित ने प्रश्नवाचक निग़ाह से नीरू की ओर देखा तो वो दबती हुई आवाज में बोली

“सुधीर …रुचिका का भाई “

“क्या हुआ मेरी बेटी को? कहाँ है वो..कितनी चोट लगी है?

फिर अंकित का हाथ पकड़कर  “आप ही लेकर आये उसे यहाँ …बताइये क्या हुआ था” रुचिका के पिता ने आँसू भरी आंखों के साथ अंकित से पूछा

“अं…. कि… त..”.राव सर ,संपत लाल के साथ आ गए थे 

“क्या हुआ?…रुचिका कैसी है?…हुआ कैसे ये सब .”? राव सर ने एक सांस में इतने सवाल पूछ डाले

“सर..मुझे आज सुबह थोड़ी सी चोट लगी थी . तो ..”

अंकित ने कहना शुरू ही किया कि

“मुझे सिर्फ ये जानना है,रुचिका  का एक्सीडेंट कैसे हुआ” ?राव  सर ने अंकित को बीच में टोकते हुए रोक दिया

“नीरू और रुचिका ऑफिस से बापस आते वक्त मेरा हालचाल लेने को रास्ते मे रुक गए, हम बात ही कर रहे थे कि तेज़ ट्रक ने रुचिका की कार में तेज टक्कर मार दी …और हम उसे हॉस्पिटल ले आये…वो आई.सी.यू. में है”

जहाँ ये घटना सुन रुचिका की माँ और तेज़ रोने लगी, वही उसके पिता निढाल से सिर पर हाथ रख कुर्सी पर बैठ गए

“नीरू …तुम ठीक हो ?” राब सर ने नीरू से पूछा

“अंकित की चोट देखने मैं कार से बाहर निकल गयी थी …इसलिए मुझे कोई चोट नहीं आयी” नीरू ने जवाब दिया

“हम्म….” 

इतने में इंस्पेक्टर नवीन आ गए और केस का व्यौरा जानना चाहा तो  राव सर ने उन्हें ,अंकित से सुनी हुई बात बता दी …पूरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर नवीन के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गयी 

“ये स्साले… ट्रक वाले भी टिका कर चलते हैं”

“टिका कर …मतलब”? राव सर ने अपनी तीन उंगलियों को माथे पर रगड़ते हुए पूछा

“हा हा हा… टिकाकर मतलब…शराब पीकर ” नवीन ने अपने हाथ का अंगूठा होंठो पर लगाते हुए कहा

“मैं आपसे पूछता हूँ,कि क्या आप बिना गाली बात नही कर सकते “? राव सर ने चिढ़ते हुए पूछा

“सर …आप जैसे कुछ इक्के दुक्के लोगों को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो हम पुलिस वालों को गालियां ना देता हो…फिर हमें सोलह घंटे तो कभी -कभी तो चौबीस घंटे काम करना पड़ता है…अपराधियो से ही वास्ता पड़ता है हमारा”..

राव सर:–“हम्म…हम्म”

इंस्पेक्टर नवीन;-“-और फिर सोच कर देखिये ,अगर मैं किसी अपराधी से पूंछू “बताइये ,भाई कलुआ,आपने चोरी क्यों की”…तो क्या लगता है आपको…कलुआ जवाब देगा ?

और सूट भी तो नहीं करता …अब ये देखिये जरा  (नवीन अभिनय करता हुआ बोला) बता कलुआ ,स्साले तूने चोरी की क्यों …कितना सूट करता है ना ” नवीन ने अपनी बात खत्म करने के साथ जो स्माइल दी ,तो राव सर बुरी तरह खीज़ गए और ये बोलते हुए कि

“गलती हो गयी मुझसे …क्यों पूछा मैंने आपसे  ” वहाँ से हट कर दूर बैठ गए…

इंस्पेक्टर नवीन:- लो बोलो… ये क्या बात हुई…जब जवाब सुनने का धैर्य नहीं, तो सवाल पूछते क्यों हैं लोग? ….फिर बुदबुदाते हुए, ‘कभी कभी तो मुझे इस साले बुड्ढे पर शक होता है..ऊपर से सामान्य दिखने वाला ये बुड्ढा. कहीं अंदर से रंगीन मिज़ाज़ तो नहीं …हम्म  …पता लगाना पड़ेगा” फिर अंकित की तरफ देखते हुए 

“और मिस्टर कृष्ण कन्हैया….(फिर एक तिरछी नजर नीरू पर डालते हुए) तो हुआ क्या था…

अंकित ने सारी घटना सुनाते हुए कहा कि

“आप कम से कम महिलाओं का सम्मान तो कर ही सकते हैं …या वो भी नहीं”  

“मुझे मत सिखाओ…वैसे तुमने ,जरूर ट्रक का नंबर नोट किया होगा…क्या नम्बर था”?

“नहीं …मैं नोट नहीं कर पाया नंबर ” ,अंकित ने नजर नीचे किये ही जवाब दिया 

“क्या बकवास करते हो, में कैसे यकीन करूँ इस बात पर,बच्चा -बच्चा जानता है कि एक्सीडेंट की हालत में गाड़ी का नम्बर सबसे पहले नोट किया जाता है,….

“जानता हूँ..इस्पेक्टर …लेकिन उस वक़्त मुझे कुछ समझ ही ना आया …सिवाय रुचिका को बचाने के”अपनी गलती मानते हुए अंकित बोला

“नम्बर नोट नहीं किया…या बताना नहीं चाहते ” इंस्पेक्टर नवीन ने उसे घूरते हुए कहा

“आप कहना क्या चाहते हैं “? अंकित ने गुस्से में कहा

“बस्स इतना कि …मुझे चलाने की कोशिश भी मत करना ” इंस्पेक्टर नवीन ने दांत भींचते हुए.. अपनी उंगली को अंकित की आंखों के बिल्कुल पास लाते हुए कहा.

“साइलेंस प्लीज़…पेसेंट इस आउट ऑफ डेंजर नाउ ..बट.” डॉक्टर ने कहा तो सबके चेहरे पर एक साथ राहत और खुशी आ गयी,तभी इंस्पेक्टर सबसे आगे आते हुए …”क्या पेशेन्ट को होश आ गया है…क्या वो बयान देने के हालत में हैं “?

“जी नहीं…उन्हें होश नहीं आया… वही कहने जा रहा था…पेशेंट ने  मौत से जंग जीती है अभी, ..लेकिन इसके सिवाय, अभी हम कुछ नहीं बोल सकते ..हम कुछ टेस्ट और  रिपोर्ट के आने के बाद ही कुछ कह पाएंगे..तब तक आप लोग धैर्य बनाये रखिये ..एक्सक्यूज़ मी ..”

इतना बोल डॉक्टर बापस अंदर चले गए और रुचिका की माँ साड़ी के पल्लू को मुंह पर रख कर रोने लगीं..

“मेरी शक की लिस्ट में तेरा नाम सबसे ऊपर है..जल्द ही मिलूँगा तुझसे”…इंस्पेक्टर नवीन  ने अंकित से गुस्से से कहा और वहाँ से…चला गया

“बहिन जी,भाई साहब …धैर्य रखिये …सब ठीक हो जाएगा ..मैं हर तरह से आप लोगों की मदद को तैयार हूँ…रुचिका के इलाज में जितना पैसा लगेगा …कम्पनी देगी”

राव सर ने रुचिका की मां से कहा, और अंकित के पास आकर बोले 

“अंकित …कल कितनी मीटिंग्स हैं”

“जी चार हैं सर”

“ठीक है तुम चारों मीटिंग अटेंड करोगे कल …में नहीं आ पाऊंगा  …और हाँ ..तुम दोनों ध्यान से सुनो, रुचिका एक्ससिडेंट के बारे में ऑफिस में किसी को कुछ पता नहीं लगना चाहिए…नीरू, तुम आराम से लंच के बाद आ जाना ऑफिस” नीरू ने स्वीकृति में सिर हिलाया 

“सर …मैं कैसे ….मीटिंग्स”? अंकित ने अचकचाते हुए कहा तो, राव सर  उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले

“ऐसे मौको पर ही अपनी काबलियत दिखानी होती है…मुझे भरोसा है तुम पर ….चलो संपत ” और राव सर संपत के साथ चले गए..

12

अंकित चारो मीटिंग अच्छी तरह से करने के बाद घर पहुंचा …और वहां से अनामिका में घर पहुंच गया ..पहले ही तय कर चुका था कि रुचिका के बारे में कुछ नहीं बताएगा अनामिका को,,.अंदर पहुँचा तो देखा, सामने सीढियों से उतरती वो …सफेद ड्रेस पर पड़ती नीली आभा में …यूँ मालूम हुई जैसे पहाड़ो से नदी निकलती है…अंकित उसे तब तक अपलक देखता रहा जब तक कि वो उसके ठीक सामने नहीं आ गयी….

अनामिका:–“ऐसे क्या देख रहे हो …हम्म” 

अंकित:-“नहीं .कुछ नहीं…बस्स ये कि तुम कितनी खूबसूरत हो….अच्छा चलो ….जल्दी चलो “

अंकित उसका हाथ पकड़ कर बोला

अनामिका:–“कहाँ ….कहाँ चलना है”

अंकित -:–“शॉपिंग करने चलो …मेरी जेब के सारे पैसे खर्च कर दो”

अनामिका:–“अच्छा “

अंकित:–“हाँ… हाँ…. फिर  मैं तुम्हारे सारे शॉपिंग के बैग उठाकर पीछे पीछे  चलूँगा,और तुम एक प्रिन्सेज़ की तरह आगे आगे “

अनामिका:-(मुस्कुराती हुई) अच्छा …तो तुम फिर पूरे महीने क्या करोगे “?

अंकित:–“मैं अपनी कम्पनी से एडवांस ले लूंगा…”अंकित बडे खुश होते हुए कहा 

अनामिका:–मन ही मन ये नहीं कहोगे,कि कैसी प्रेमिका है मेरी,जिसने सारे पैसे खर्च करा दिए …जेब खाली करा दी “

अंकित:–“नहीं बिल्कुल नहीं ..तुम्हे पता नहीं है हम लड़कों का, एक तरफ जेब खाली होने का रोना भी रोते रहेंगे …और मन ही मन ये सोच कर खुश भी होते रहेंगे कि कोई है,जो हम और हमारे पैसों पर इतना हक़ रखता है”

अनामिका:–अच्छा 

अंकित:– हम्म….चलो ना (अंकित मनुहार करते हुए बोला)

अनामिक :–सुनो अंकित, मेरे पापा को ये पूरा शहर अच्छे से जानता है,किसी ने अगर तुम्हारे साथ मुझे देख लिया तो बहुत मुश्किल हो जाएगी ?..बताओ …मैं जरूरी हूँ या शॉपिंग ? 

उसने अंकित को पूछते हुए कहा

अंकित:- “…. बेशक तुम..”..(फिर कुछ सोचते हुए ) ठीक कहती हो…एक काम करो तुम मुझे एक लिस्ट बना कर दो मैं सब सामान ले कर आऊँगा…तुम्हारे लिए …”

अनामिका के हामी भरते ही … अंकित  ने अपनी जेब से एक छोटा सा पैकेट निकालकर अनामिका को सौंपते हुए कहा 

“मेरी माँ  इसे अपनी बहू को देना चाहती थी पता नहीं तुम्हे नथ पहनना पसंद भी होगा या नहीं लेकिन …” इससे पहले कि अपनी बात पूरी कर पाता अंकित…अनामिका ने  वो नथ पहन ली..लाल हरे दानों वाली नथ पहने वो बेहद खूबसूरत दिख रही थी ,

“कैसी दिख रही हूँ” उसने कहा और उठकर जाने लगी तभी अंकित ने उसका हाथ पकड़ा और अपने पास बैठाते हुए बोला

“यहीं मेरे सामने बैठो …मन करता है ..तुम्हे देखता रहूँ”

अनामिका:–“ओह्ह बड़े आये…देखता रहूँ…हा हा “

वो हँसती हुई उठकर तेज़ी से सोफे के पीछे चली गयी …अंकित “अरे ..अरे ” करता हुआ उसके पीछे .अनामिका वहां से भागती हुई गेलेरी में …और फिर सीढ़ियों पर, 

अंकित उसके पीछे -पीछे  जा रहा था और  सीढयों पर रोककर उसे बाहों में कसते हुए बोला ” अब”?

“सरेंडर…” अनामिक ने कहा ,और अपना  सिर, अंकित के सीने पर टिका दिया….

 दोनों मुस्कुरा उठे…

13.

राव इण्डस्ट्री

————–

अंकित.. मीटिंग में हुई बातचीत पर काम कर ही रहा था…कि नीरू घबराई सी, पास आकर बोली “अंकित…एक बुरी खबर है” 

अंकित ने हाथ मे पकड़ी हुई फाइल  एक तरफ रख दी और किसी अन्जाने डर से उसके चेहरे पर  चिंता की लकीरें खिंच गयी ……….

“क्या हुआ ” अंकित ने अपनी सांस रोकते हुए पूँछा

” रुचिका…” फिर मुंह पर हाथ रख रोने लगती है ..अंकित ने उसके पास जाकर पूँछा

“मुझे बताओ नीरू…बड़ी घबराहट हो रही है ..रुचिका ठीक है ना”?

“नहीं…. अंकित …वो कोमा में चली गयी है…डॉ कहते हैं…उन्हें नहीं पता …उसे कब तक होश आएगा” दोनो हाथों से अपना मुंह ढँक कर उसने जोर से सिसकी ली

“शै …”अंकित के मुंह से निकला  …अंकित अपनी दोनों हाथो की उंगलियों को आपस मे फॅसा अपने होंठों पर रखते हुए कुछ देर चुप खड़ा रहा उसकी आँखों मे आंसू भर आये..फिर दोनों हाथों का पंच बना अपनी डेस्क पर मारते हुए कहा…”कुछ  सेकंड …बस्स कुछ सेकेंड और मिल जाते तो.. वो कमीना मेरे हाथों से बचता नहीं..ओह्ह …इतनी बड़ी बेबकूफी कैसे हो गयी मुझसे “अंकित ने झुंझलाते हुए कहा 

“आप दोनों को सर ने बुलाया है इसी वक्त ” संपत आकर बोला …तो दोनो ने खुद को संयत किया और राव सर के केविन तक पहुँचे…”क्या तुम दोंनो को पता लगा रुचिका  के बारे ?

उन्होंने पूछा तो दोनों ने हामी में सिर हिलाया…राव सर ने आगे कहा “मैं उसे प्यार से सुरुचि कहता था..बेहद होशियार… मेरे ही रिक्वेस्ट पर यहाँ आयी थी…आह …अंकित… ट्रक का नम्बर ना लेकर गलती हुई है तुमसे, जहाँ एक तरफ वो हॉस्पिटल में हैं वहीं दूसरी तरफ तुम पुलिस के शक के घेरे में”

अंकित और नीरू कुछ देर शांत खड़े रहे …थोड़ी देर की खामोशी के बाद  राव सर ने कहा

“ईश्वर ने चाहा तो जल्द ही सही होगी वो…मैंने तुम दोनो को रुचिका के ऑक्सीडेंट के बारे मे किसी को भी बताने के लिए इसलिए रोका था…कि मैं नहीं चाहता ऑफिस में बेकार की बातें बने…और काम प्रभावित हो…वैसे भी जो करना है ,डॉ को करना है…तुम लोगों का क्या सुझाव है इस बारे में “

“आप ठीक कहते हैं सर” दोनो ने एकसाथ कहा 

“हम्म…ठीक है,… नीरू तुम जाओ …अंकित कैसी रही मीटिंग्स “?

“सब अच्छी हुई सर…लेकिन मुझे गोपाल दास के साथ हुई मीटिंग सबसे बेहतर लगी”

“वो …जिनका जैम और जैली है”?

“जी सर”

“उसमे क्या खास लगा तुम्हें “

“इंडिया ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गोपाल एक बहुत पॉपुलर ब्रांड बन चुका है…”फिर फाइल सौंपते हुए 

“ये देखिये सर..पिछले दो सालों में इनकी ग्रोथ लगातार बढ़ रही है साथ ही…उनके साथ काम करने के रूल और रेगुलेशन बहुत आसान हैं”

“हम्म …अगर तुम्हें इतना ही विश्वास जनक लगा तो डील करनी चाहिए थी.. क्यों नहीं की”? राव सर फाइल के पन्ने पलटते हुए बोले

“इतनी बड़ी डील करते हुए…. मुझे बड़ा डर लगता  है सर”

“(हँसते हुए ) हम्म …ठीक है ,तुम्हारे डर पर भी काम करते हैं…एक काम करो गोपाल दास के साथ मीटिंग फिक्स करो मेरी “

“जी सर..” कहने के बाद भी जब अंकित वहीं खड़ा रहा तो उन्होंने  पूछा

“कुछ और कहना चाहते हो क्या? …बोलो”

“सर …वो नवीन ने मुझसे कहा कि उसे, सबसे ज्यादा शक मुझ पर ही है …मैं “

“परेशान मत होओ अंकित…..इस ऑफिस में काम करने बाले किसी भी सख़्श को एम्प्लॉयर नहीं मानता मैं, बल्कि परिवार का हिस्सा मानता हूँ…तुम बस्स काम पर ध्यान लगाओ…इतना ध्यान रखना कि उससे कोई भी बात अकेले में मत करना …मेरे सामने ही करना …बाकी मैं देखता हूँ”

“बहुत धन्यवाद सर” बोलकर अंकित बाहर निकल आया

***

राव इंडस्ट्री ,

अगले दिन ,अंकित राव सर के कहे अनुसार एक लेटर टाइप कर रहा था… 

“अंकित …बिना एच. आर.काम नहीं चलेगा ..लेकिन अभी मैं ये भी नहीं चाहता,कि कोई नया एच. आर .आये, इसीलिए मैंने एक जान पहचान वाले लड़के को बुलाया है …ताकि काम मिल जुल कर हो जाये ,तुम ,नीरू और वो लड़का मिलजुलकर काम संभाल लें..

“ठीक है सर”

“तुम उस पर नजर बनाए रखना …अब तक तो उसे आ जाना चहिये था” कलाई पर बंधी घड़ी की ओर देखते हुए राव सर बोले

तभी एक चौतीस पैंतीस साल का युवक पहुंचता है.छरहरे बदन का बेहद औसत नाक नक्श का जिसकी लम्बाई पांच फीट और ग्यारह इंच की रही होगी ..देखने से अनुभवी लगता था…आते ही मुस्कुराहट के साथ बोला

” सर,…में आई कमिन “?

“हाँ हाँ …आओ तुम्हारा ही इंतज़ार था …अंकित.. ये हैं सूरज और सूरज ये हैं अंकित

 ये तुम्हे नीरू से भी मिला देंगे, फिलहाल तो मैंने डेस्क पर कुछ फ़ाइल रखवा दी हैं…उन्हें देख  लो ….फिर अंकित से “अंकित ,मीटिंग से आकर मिलता हूँ तुमसे…तुम ये लेटर ड्राफ्ट कर दो “

राव सर के जाने के बाद सूरज डेस्क पर जाकर अपना मोबाइल निकाल कर उस पर गेम खेलने लगता है …अंकित जब बाहर आता है तो सूरज को गेम खेलते देख उसे हँसी आ जाती है ,लेकिन उससे कुछ ना बोल वो अपने केविन में आ जाता है ,थोड़ी देर बाद 

“क्या आपके पास लाइटर है “

अपने काम मे मशगूल अंकित ने जब नजर उठाई तो सामने सूरज केविन के गेट पर खड़ा था

“माफ करना दोस्त,लाइटर तो नहीं मेरे पास ” अंकित ने बड़ी नर्मता से कहा और अपने काम मे लग गया …

“हम्म…तो सिगरेट तो होगी …लाओ वही दो …लाइटर कहीं और से ले लूँगा”

सूरज ने ऐसे कहा जैसे वो अंकित को सालों से जानता हो 

“सिगरेट भी नहीं मेरे पास ” अंकित ने जवाव दिया

“मतलब ….तुम सिगरेट नहीं पीते “? उसने आश्चर्य से कहा

“जी…हाँ …नहीं पीता ” बड़ा सटीक जवाब दिया उसने

“अब ये मत कहना कि तुम अल्कोहल भी नहीं लेते  “?

“कहना क्या…जो सच है सो है….नहीं लेता ” अंकित बड़े उखड़े मन से बोला

“बहुत सही…मतलब शराफत का कीड़ा लगा है तुम्हें” सूरज मजाक उड़ाने वाली मुस्कुराहट से बोला

अंकित ने उसे एक नजर  देखा और अति व्यस्त होने का दिखावा करते हुए काम मे लग गया

“ना शराब …ना सिगरेट …ये भी कोई जीना हुआ?..हम्म …इससे तो मौत अच्छी .स्साला..” 

सूरज के ऐसे बोलने पर अचानक अंकित के चेहरे पर हँसी आ गयी…एक पल पहले ही जहाँ वो ये चाहता था कि सूरज वहां से चला जाय वहीं अब वो, फुर्ती से अपनी कुर्सी से उठा और उसे रोक लिया 

“सुनो सूरज,मेरे पास तो नहीं लेकिन मैं करता हूँ कुछ ..यहीं रुको ..”

एक कुलीग से सिगरेट और लाइटर लाकर उसने सूरज को पकड़ाते हुए कहा…चलो ,बाहर चलकर पीना ..

बाहर आकर सूरज ने एक सिगरेट जलाई  .

“तो जो सिगरेट या शराब ना पिये उसकी जिंदगी बेकार…हुम्म “अंकित ने मुस्कुराते हुए पूछा

“अमा यार मेरे खयाल से तो है बेकार ..जिंदगी है… तो हर चीज़ का मजा लेना चाहिए “उसने कश खींचते हुए कहा..अंकित को उसकी बातें अच्छी लग रही थी, तो बड़े ध्यान से सुन रहा था

“जहाँ तक मुझे लगता है ,तुम्हें ये शराफत का कीड़ा इसलिए है कि तुम चाहते हो कि ,कोई अच्छी लड़की मिले तुम्हें …तुम शादीशुदा तो नहीं”

“नहीं ..अभी नहीं” अंकित ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

“तो कोई मेहबूबा तो होगी ही ” उसने पूछा

अंकित को लगा बता दे फिर तुरंत ये खयाल आया कि अभी अनामिका अकेली है,सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं होगा, सो बोला “नहीं वो भी नहीं “

“फिर क्यों साधु बने घूमते हो..मेरी मानो ,ऐसे लड़कों को लड़कियां लल्लू समझती हैं …इन्ही आदतों की वजह से तुम अकेले हो ,यकीन करो …..लो (अपनी सिगरेट देते हुए ) एक कश ले लो …जन्नत महसूस होगी “

अंकित ने हँसते हुए मना कर दिया …तो उसने बोलना चालू रखा

“तो क्या नॉनवेज भी नहीं खाते”? उसने पूछा और अंकित के ना में सिर हिलाने पर 

“हम्म…मेरी मानो …छत से कूद ही  जाओ …जिंदगी खराब है तुम्हारी …मेरे भाई ” उसकी ये बात सुन अंकित बहुत देर तक हँसता रहा ..

“अपने बारे में कुछ बताइये ” अंकित ने पूछा

“क्या बताएं …ट्रेजडी हो गयी हमारे साथ …पूछो करने वाला कौन “?

“कौन ?”

“हमारे पिता …बीमार थे …एक दिन अपने पास बुलाकर पूछा “मेरी बात मानोगे “? भला कौन मना करता है ? मैंने भी  हाँ में सिर हिला दिया …तभी तकिये के नीचे  से एक लड़की की फ़ोटो निकाल मेरे हाथ मे थमा दी, और बोले शादी कर लो इससे …

“फिर “? अंकित ने पूछा 

“फिर क्या…खेल गए मेरे ज़ज़्बातों से …अपने जीते जी, हमें यहां नरक में फॅसा कर ,खुद बुढ़ऊ निकल लिए स्वर्ग में..

ये पेरेंट्स भी ना .बड़े राजनीतिक होते हैं कब कौन सा दांव खेलना है… उन्हें पता है” उसने एक सिगरेट और जलाते हुए ..बड़ा मजाकिया अंदाज में कहा,अंकित को उसकी बातों में बहुत मजा आ रहा था,बोला “तो क्या आप खुश नहीं आप अपनी वाइफ के साथ ” 

“खुश? …उसने मुझे स्वर्ग और नर्क यही दिखा दिया है ,मुझे दुख और सुख..सब एक समान लगे हैं ….मेरे भाई” सूरज के यूँ फिल्मी अंदाज में बोलने पर अंकित अपना पेट पकड़ जोर से हँसने लगा  हा हा हा 

और सूरज ने उसका साथ दे दिया …दोनो बहुत देर तक बातें करते रहे और हँसते रहे…

14

अनामिका ने उसका मन रखने को थोड़े से सामान की लिस्ट दे दी थी… लेकिन अंकित तीन चार महीने का राशन उठा लाया …आज पहले से दरवाजा खुला था …सोफे पर उसकी कुछ किताबें रखी थी …अंकित के मन मे आया ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि आजकल ये लड़की पढ़ाई करती ही ना हो उसके प्यार में पड़…नहीं …नहीं ये तो बहुत गलत हो जाएगा…

वो आती दिखी …अपने बालों को मोड़ जूड़ा बनाती हुई ..अंकित ने उसे रोक दिया 

“खुले रहने दो ना …वो मुस्कुराई और बालों को छोड़ दिया …गोल गोल घूमते हुए वे खुले और बिखर गए …उसने उन्हें हल्के से पीछे की ओर धकेल दिया …और कुछ बाल मनमानी सी करते हुए उसके चेहरे पर आ गए … अंकित के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

“आज खुश दिख रहे हो” उसने पूछा

“हम्म …एक नया लड़का आया है सूरज , बहुत मजाकिया है …

“तुमसे जरा सा सामान मंगाया था,पूरा मार्केट उठा लाये तुम तो”

“मेरा वश चले दुनिया तुम्हारे कदमों रख दूँ…. अभी देखी ही कहाँ है तुमने चाहत मेरी “

“ओह्ह ….हा हा हा बस्स भी करो ” वो हँसने लगी और कॉफी ले आयी … कॉफी में चीनी डालने लगी”

अंकित उसे रोकते हुए…”अरे …अरे बस्स आधा चम्मच …कम चीनी लेता हूँ अब….

सुनो…तुमने पढ़ाई बन्द कर दी क्या ? “कॉफी सिप करते हुए अंकित ने पूछा

“नहीं तो …मुझे याद है गोल्ड मेडल चाहिये मुझे “

“बहुत अच्छे …में तो घबरा ही गया था…मैं चाहता हूँ ..तुम किसी रिसर्च वर्क से जुडो  ताकि लोग भी जाने मेरी आनामिका कितनी होशियार है..मैं पैसे कमाऊंगा तुम नाम कमाना “.और अनामिका के हाँ में सिर हिलाते ही ….चलो तुम्हारी टेरेस पर चलें” कहते हुए वो सीढ़िया चढ़ने लगा…मौसम बहुत सुहावना था…अंधेरा होने लगा था …उसके बाल उड़ उड़ कर अंकित को छू रहे थे …उसे हल्की गुदगुदी का एहसास हो रहा था बोला  “जानती हो …जब तुम पहली बार मिली थी …ये मुझे ऐसे ही छू रहे थे…पहली नज़र बालों पर ही गयी थी तुम्हारे…इनका खास 

ख्याल रखा करो …बहुत खूबसूरत हैं और मुझे बहुत पसंद भी हैं” वो मुस्कुरा दी और अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया 

“हमेशा मुझसे पूछती हो …कितना प्यार करते हो…अनामिका …तुम कितना करती हो “?

“बेहद …” उसने आंखे बंद किये ही जवाब दिया 

“हे …तुम सूरज से मिलोगी ..चलो ना अनामिका ..तुम्हे उससे मिलकर बहुत अच्छा लगेगा “

“..पता नहीं कौन कैसा हो …मैं नहीं मिल सकती किसी से “

“क्यों भला ..मैं हूँ फिर तुम्हें सोचने की क्या जरूरत”?

“तुम क्यों नहीं समझते “वो चिढ़ती सी बोली …दोनों थोड़ी देर चुप रहे …

“मैं बताता हूँ ना, कि कैसे समझाना है मुझे…. ये जो तुम्हारे सामने पड़ा है …क्या है ये “? अंकित ने कहा

“ये ?( उसने हाथ मे उठाते हुए पूछा )

अंकित :-“हम्म ये”

अनामिका:-“पत्थर है”

अंकित:- “भारी होगा?

अनामिका:- “हूँ… है तो

अंकित:–‘इसे उठाओ और मेरे सिर पर दे मारो ‘

अनामिका:–“ये क्या …तुम भी ? उसने आँखे दिखाते हुए कहा

अंकित:– “क्या मैं भी  ?..जब समझ मे कुछ आता नहीं तो ये सिर किस काम का… बोलो ..ऐसे ही समझाना पड़ेगा ना”

अनामिका:– हा हा हा तुम भी ….

अंकित:-“ बताओ ना क्या करुँ

अनामिका:-“”हा हा ओह्ह ..कितनी प्यारी बातें करते हो तुम ….मन करता है तुम्हे ले जाऊँ कहीं दूर सबसे

अंकित :–“ये तुम्हे प्यारी बाते लग रही हैं?(बनावटी गुस्से से) हद्द है ..हुम्म  तुम ले जाओगी मुझे..मुझे ? बिना दिमाग वाले अंकित को “?

वो बेतहाशा हँस रही थी ..हँसते हँसते उसने अपना सिर  फिर उसके कंधे पर रख दिया ….अंकित भी थोड़ी देर बाद हँसने लगा ..हल्की ठंडी हवा से उसके बाल उड़ उड़ कर अंकित को छूने लगे….

***

राव सर ने इंस्पेक्टर नवीन को देर शाम अपने ऑफिस में बुला लिया था.. वो सादा ड्रेस में राव सर के सामने बैठा था …और राव सर का  मंगाया नॉनवेज डिनर  जो कि सिर्फ नवीन के लिए था…उसे बड़े चाव से खा रहा था …

“पुलिस की मदद करनी चाहिए जैसा कि लोग कहते हैं” राव सर ने कहा

चिकन के लेग पीस को दांतों से दवाते हुए नवीन के मुँह से “हम्म” निकला

“नवीन…पता है तुम्हें … एक  दूर की रिश्तेदारी में तुम मेरे भतीजे भी लगते हो ” 

राव सर बहुत मीठे शब्दों का प्रयोग कर रहे थे

नवीन :–“हम्म” 

राव सर :-“तो अंकित के पीछे क्यों समय बर्वाद करते हो…इस केस को दूसरे एंगल से क्यों नही देखते …

नवीन :-“अंकित कहता है …ट्रक का नंबर नोट नही किया उसने…आपको लगता है ऐसा हो सकता है “? उँगलियों पर लगे चावलों को जीभ से चाटते हुए बोला

राव सर:–“वो कर सकता है ऐसा… बल्कि तुम भी होते तो ऐसा ही करते …पुलिस के नजरिये से ना देख कर सामान्य इंसान की तरह सोचो …तो लगेगा …स्वाभाविक है..समय रहते वो, उसे ना बचाता तो मर जाती रुचिका, ….समय ही खराब करना है अंकित पर शक करके ” 

राव सर ने बड़े विश्वास से कहा

“आप उसे बचाने में इतना जोर क्यों लगा रहे हैं ” नवीन ने चिकन करी में मिले चावलों का गोला सा बना मुंह मे रखते हुए कहा

राव सर:–“क्योंकि पिछले पैंतीस सालों के अनुभव है मुझे ,इंसान को पहचानने का,जानता हूँ वो बेक़सूर है …तुम दोंनो ही …जरूरी हो मेरे लिए… अंकित से ध्यान हटेगा तुम्हारा ,तब तो असली गुनाहगार सामने आएगा …और अंकित मेरे ऑफिस के लिए बहुत जरूरी है ….जहां तक मुझे यकीन है… तुम भी जानते हो,कि अंकित  बेबकुफ़ भले ही है ,लेकिन है.. बेक़सूर  “

नवीन :–“हम्म ” बीयर की बोतल उठा नवीन ने मुँह में उड़ेल ली

राव सर:–“एक लड़की की जान बचाने  का ये सिला मिलना चाहिए उसे ?”

नवीन:–“हम्म…मुझे भी लगता तो यही है ..कि किसी ट्रक वाले ने  ज्यादा नशे में होने के कारण रुचिका की गाड़ी में टक्कर दे मारी …लेकिन फाइल बन्द कैसे करें”? 

 “ऐसे” राव सर  एक छोटा सा बैग उसकी ओर खिसकाते हुए कहा 

नवीन ने बैग खोला उसकी आँखे चमक गईं, बैग नोटों की गड्डियों से भरा हुआ था…लगभग पचास – साठ हजार रुपये होंगे…

“इतने काफी होंगे ना ? ” राब सर ने पूछा 

नवीन :-“हम्म…अब रिश्तेदार हैं आप.. .तो इतने में चला लूंगा काम “

नवीन ने बीयर बोतल उठाकर ,मुंह से लगाई और एक बार में ही खाली कर के मेज पर धमक दी…  रुपयों का बैग उठाया और बाहर निकल गया …

उसके जाते ही राव सर ने तेज़ आवाज में कहा 

“बाहर आ जाओ  …वो  चला गया”

राव सर के केविन के अंदर बने दूसरे केविन से एक हट्टा कट्टा नौजवान बाहर आकर राव सर के सामने बैठ गया ………

और दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए 

15

“आप को नहीं लगता..आपने कुछ महंगा सौदा कर लिया”

उसने मुस्कुराते हुए पूछा

“नहीं …बल्कि सस्ता…अंकित दूर की कौडी साबित होगी. “

बड़े इत्मीनान से राव सर ने पानी का गिलास उठाया और घूंट भरते हुए कहा

“मतलब “उसने भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा

“मतलब ये …उसे मैं जो भी काम सौंपता हूँ ..ना सिर्फ वो उसे बेहतरीन तरीके से करता है , बल्कि एक नई उम्मीद भी लेकर आता है हमेशा ..मेरे काम को वो बहुत अच्छी तरह से बढ़ा सकता है.”

“इतना भरोसा  है आपको  उस पर ” उसने मुस्कुरा कर कहा

“नहीं… खुद पर…और मत भूलो ..एक  अच्छा जौहरी ही सच्चे हीरे की कीमत जानता है… 

उन्होंने कुर्सी से उठते हुए कहा …और दोंनो  ऑफिस से बाहर निकल गए

***

वो आज बाहर ही थी..पौधे लगा रही थी..बालों को हल्का सा बांधे… ढीले कपड़े पहने..लंबी बाहों वाली ड्रेस कभी हथेलियों तक आ जाती तो दांतो से पकड़ ..उसे ऊपर की ओर खींचती…तो कभी ठीट बाल जो चेहरे पर आ जाते… तो उन्हे सिर झटक पीछे कर देती …मिट्टी में सनी भी कितनी खूबसूरत लग रही है ..वहीं उसके घर की सीढ़ियों पर बैठ वो हथेली पर अपना चेहरा टिका उसे निहारने लगा…

मिट्टी में खाद मिलाकर उठी और थोड़ी दूरी पर रखा हुआ गमला उठाया, शायद भारी वजन के कारण लड़खड़ा गयी ..इससे पहले कि गिरती ,अंकित ने दौडकर उसे और सीमेन्ट के गमलें दोनों को संभाल लिया…अंकित को देख वो खुश हो गयी ..अंकित अपने एक हाथ मे उसे थामे था.. दूसरे में सीमेंट के बने गमले को …कुछ पल यूँ ही एक दूसरे को देख बीत गए …वो चिहुंक कर खुश होते हुए बोली

“तुम कब आये “

अभी बस्स कुछ ही मिनट पहले “

“हाथ नहीं दुख रहे तुम्हारे ” उसने पूछा

“तुम फूलों सी नाजुक  और हल्की…सारी जिंदगी ऐसे ही उठाये रख सकता हूँ” 

“और इस गमले को भी ” उसने गमले की ओर इशारा करते हुए कहा …तो अंकित ने मुस्कुराते हुए गमले को नीचे रख दिया और बोला

“ओह्ह..जब तुम सामने होती हो ना …मुझे कुछ नहीं दिखता ” और झुककर उसने अनामिका के होठों को चूम  लिया ..

“बताया क्यों नहीं …कब से आये थे ? उसने हटते हुए कहा

“बता देता ..तो ये खूबसूरत नजारा कैसे देख पाता “

“खूबसूरत …फिर अपने दोनो हाथ उसे दिखाते हुए “देखो जरा …मिट्टी लगे ये हाथ क्या खूबसूरत हैं इनमें”

“तुम नहीं समझोगी “

“क्यों …ऐसा भी क्या है”?

“कहा ना ….नहीं समझोगी”

“बताओ भी..”

“बस्स यही ..तुम कैसे भी हाल में हो… मुझे सुंदर ही दिखती हो .”

वो अनामिका की आंखों में देखते हुए बोला ..और कुछ पल दोनों एक दूसरे को अपलक ऐसे ही देखते रहे..फिर वो बोली..

“अच्छा रुको…बस्स पांच मिनट में आई ” 

और अंदर मुड गयी …अंकित भी उसके पीछे – पीछे अंदर चला गया..

जब तुम ऐसे बोलती हो ना …मुझे बिल्कुल घबराहट नहीं होती”  वो सोफे पर बैठते हुए बोला..

“घबराहट होनी भी क्यों चाहिए “? उसने पलटते हुए पूछा

“”इंतज़ार करने के ख्याल से घबराहट होना लाज़िमी है लेकिन,…मुझे तुम्हारा इंतज़ार नहीं करना पड़ता ,जब तुम बोलती हो..पांच मिनट में आई …लेकिन आ तुम चार मिनट में ही जाती हो….बस्स हमेशा ऐसी ही रहना शादी के बाद भी..रहोगी ना”? 

वो मुस्कुरा  दी तो अंकित ने कहना जारी रखा”मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूँ.और जल्द ही एक खुशनसीब पति भी बंनने वाला हूँ…चेंज करने जा रही हो ना ?

अनामिका:-“हम्म”

अंकित:-“मिट्टी लगे ये हाथ .बिखरे बाल …तुम ऐसे  भी खूबसूरत लग रही हो ..यकीन करो..मेरी आँखों से देखो”

अनामिका:–ऐसे भी ? (आँखे बड़ी करते हुए ).लड़के कभी खूबसूरती  नोटिस करना नहीं भूलते …ना..”? शरारत से मुस्कुराते हुए बोली वो

अंकित:–“कभी नहीं.. कम से कम मैं तो कभी नहीं…. हो सकता है कुछ अपवाद हो…इसीलिए मैं कहूंगा ..की सौ में निन्यानबे परसेंट तुम ठीक कह रही हो.”

बड़े खुश होते हुए बोला और अपने बनाये हुए नोट्स देखने लगा ,अनामिका उसकी ओर बड़ी प्रभावित होकर ..प्यार से कुछ देर अपलक देखती रही..फिर दौडती हुई उसकी ओर आयी …अंकित ने देखा तो उठकर अपनी बाहें खोल दी ..और अनामिका उनमे समां गई … कुछ पल ऐसे ही बीत गए

“तुम ठीक तो हो ..अंकित ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए पूछा तो उसने हाँ में सिर हिलाया…तो अंकित बोला 

“चिंता रहती है… मुझे तुम्हारी हमेशा …समझ नहीं आता क्या करूँ” 

अनामिका :–“तुम भी …अच्छा रुको ..अभी आयी “

अनामिका बोली और अंदर चली गयी थोड़ी ही देर में बापस आयी तो एक आसमानी कलर की साड़ी पहने हुए…

“बिल्कुल परी लग रही हो…बात क्या है आज”? अंकित ने खुशी से पूंछा

“बात ये है ..आज हम घूमने जा रहे हैं ” 

“सच”?

“हाँ ..हाँ..” उसने बाहर निकलते हुए बोला

“मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा” अंकित बोला और उसके पीछे हो लिया…

……

अभी थोड़ी दूर ही निकल पाए होंगे कि सामने सड़क पर सूरज आता दिखा..अंकित ने उसे देखा तो बोला 

“अनामिका वो देखो ..सूरज ..वो जिसकी मैं बात कर रहा था” उसने उंगली का इशारा सूरज की ओर कर उसे बताया

अनामिका:-“हम्म …अच्छा” 

अंकित :-“क्या अच्छा… चलो मिलाता हूँ”

और अनामिका कुछ बोलती… इससे पहले ही अंकित ने  सूरज को आवाज लगा दी और इशारे से पास बुला लिया..सूरज ने अंकित को देखा तो दौड़ा आया

“अरे यार तुम यहाँ कहाँ ?” उसने सिगरेट का कश खींचते हुए कहा

“बस्स ऐसे ही ..अच्छा इनसे मिलो…”कुछ आगे बोल पाता…इससे पहले ही तेज़  हवा का एक बबंडर सा उठा और देखना तो दूर..खड़े रह पाना मुश्किल हो गया तीनो का…

“हे ये क्या हो गया अचानक ” …सूरज ने अपना चेहरा ढकते हुए कहा 

” तूफान आने वाला  है शायद.हमें किनारे चलना चाहिए “

बोलते हुए अंकित ने अनामिका का हाथ पकड़ा और सूरज आगे आगे चलने की  कोशिश करने लगा …कदम तो आगे बढ़ाता लेकिन तेज़ हवा की वजह से बढ़ नही पाते ..हवा  इतनी तेज़ कि आंखे खोलना मुश्किल …और कुछ पलों में ही तेज़ बारिश शुरू हो गयी तीनों आगे बढने लगे..दो चार कदम ही बढ़ा पाए होंगे कि सूरज का पैर फिसला और वो गहरे खड्डे  जा गिरा ..अंकित ने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ा ..और उसे बाहर की ओर खींचने लगा …लेकिन कोई फायदा नहीं… बादल घिर आने की वजह से अंधेरा भी हो गया था ..अंकित के पैर फ़िसलन की वजह से ठीक से नहीं टिक नहीं पा रहे थे ..और वो सूरज को ऊपर नहीं खींच पा रहा था.. कुछ याद हो आया हो जैसे उसे  बोला, 

“अनामिका तुम तो जिम्नास्टिक हो …इसे बाहर निकालने में मेरी मदद करो ..”

अंकित अपने दोंनो हाथो से पूरी ताकत से उसे खींचने में लगा था. ..अनामिका ने आगे बढ़कर सूरज का एक हाथ पकड़ा ..और दूसरा अंकित ने और जल्दी ही सूरज  खड्डे से बाहर निकल आया ..जमीन पर लेटा वो दर्द से कराहने लगा …उसे ऐसी हालत में देख अनामिका बोली 

“अंकित ..तुम इन्हें इनके घर तक ले जाओ…मैं यहीं से बापस जा रही हूँ”  

कुछ देर की कोशिश के बाद ..एक टैक्सी रोक पायी अंकित ने ..और सूरज को उसमे बिठा दिया

“तुम ऐसे में कहाँ जाओगी चलो साथ चलो ” अंकित ने कहा 

“नहीं …मेरा घर जाना जरूरी है ..अब ” उसने बोला और जाने लगी

“कितनी मुश्किल से हम घूमने निकल पाए थे अनामिका..इतनी बारिश में अकेली मत जाओ …मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ”..उसने उसे रोकते हुए बोला

“कोई बात नही ….पास ही तो है अंकित … ..तुम सूरज को संभालो.”बोलते हुए वो तेज़ी से वहाँ से चली गयी 

अंकित सूरज को डिस्पेंसरी ले गया और वहाँ से ड्रेसिंग कराने  के बाद उसके घर छोड़ आया…थोड़ी देर में बारिश भी बन्द हो गयी थी …

16.

राव इंडस्ट्री

सूरज सिर पर छोटी सी पट्टी बांधे ऑफ़िस आया था ..अंकित ने उसके पास जाकर एक सिगरेट का पैकेट थमा दिया…और बोला 

“कैसे हो अब “

“बेहतर हूँ यार ..जरा सी तो चोट ही लगी है” सूरज ने सिगरेट निकालते हुए कहा

अंकित:-“जरा सी …कल तो तुम्हारी हालत देखने लायक थी तुम तो ऐसे कराह रहे थे जैसे ना जाने कितनी चोट लगी है…अंकित ने हँसते हुए कहा 

सूरज :-“अमा यार ..हालत तो ये सोचकर खराब हुई कि मेरे बाद मेरी बेटी का क्या होगा.. बीबी की तो कोई चिंता नहीं “

अंकित”:-“अच्छा …बीबी की क्यों नहीं “?

सूरज :-“वो मेरे बिना और मैं उसके बिना ज्यादा खुश हैं” 

अंकित :-“काश ..मैं तुम्हारी इस मामले में कोई मदद कर पाता ..लेकिन” 

सूरज :-“छोड़ो यार …ऊपर वाले ने मदद नहीं की.. तो …”

अंकित:-“अनामिका ना होती तो तुम्हें निकाल भी ना पाता मैं… उससे मिला भी नहीं पाया “

सूरज :-“कौन ?किससे ?”

अंकित :-“ वही जिसने तुम्हें खड्ढे से निकलने में मदद की ..”

सूरज :–मुझे तो ..बस्स यमराज दिखते रहे  ” 

अंकित :–हा हा …क्या यार .अच्छा .तुम परेशान थे ना इसलिए ..वैसे भी सब बड़ी जल्दी हुआ ..

अंकित सर…आपको राव सर बुला रहे हैं ” तभी संपत ने आकर बोला 

‘हम्म ‘ बोलते हुए अंकित राव सर के केविन की ओर भागा 

बड़े खुश दिख रहे थे राव सर ..उसे देखते ही बोले “अंकित …गोपाल दास से डील पक्की कर ली है मैंने .”

अंकित:–“बहुत मुबारक हो सर “

राव सर :–“तुम्हे भी भई… बहुत मुबारक हो..बहुत दिनों से

हमारा एक ड्रीम प्रोजेक्ट है उस पर राहुल काम भी कर रहा है..जगह भी चुन ली है मैंने.. जल्द ही इस पर काम शुरू करेंगे.. 

17

राव सर :–इतना कह देने से काम नहीं चलने वाला..अंकित तुम्हे उस प्रोजेक्ट में काम करना होगा ..मेहनत करनी होगी…हम शॉपिंग मॉल बनायेंगे “

“लेकिन सर मुझे इसका कोई अनुभव नहीं ” अंकित ने कहा 

तो राव सर बोले “क्या तुम्हें पर्सनल अस्सिस्टेंट का अनुभव था अंकित”?

अंकित चुप हो गया, तो राव सर बोले ,”अंकित.. ना सही इस बिज़नेस की नॉलेज लेकिन कम से कम ये तो बताओगे प्लान कैसा है …जो योजनाएं हम बनाये उस पर अपनी राय रखो …और बेहतर कैसे हो …इस पर सुझाव दो..ऐसा तो कर पाओगे?

अंकित :- “बहुत खुशी से सर “

राव सर :– ठीक है,में तुम्हे मिलाता हूँ राहुल से..

उन्होंने एक्स्टेंशन पर फ़ोन किया “राहुल …जरा मेरे केविन में आओ “

ऑफिस के ही एक दूसरे  केविन में बैठा वो काम कर रहा था …जल्दी ही राव सर के सामने आ कर बैठ गया…उसे देख अंकित अपनी सीट से उठ कर खड़ा हो गया …राव सर बोले 

“ये हैं राहुल …मेरे भतीजे …अमेरिका से हाल ही में लौटे है..आर्किटेक्ट हैं ये ही उस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं.. मुझे यकीन है तुम राहुल के साथ रहे तो ये ज्यादा बेहतर तरीके से और उत्साहित होकर काम कर पायेगा ” 

राव सर की कोई बात अंकित के कानो में नहीं पहुंची बस्स उसके चेहरे पर गुस्से ,नफरत और आश्चर्य के भाव आ गए थे …राहुल को देखकर ..

एकाएक सब याद हो आया ..अंकित के दिमाग मे जैसे पूरी रील चल गई हो …उसका बाज़ार में मिलना ..टकराना ..अनामिका का फोटो गिर जाना.. फिर उसका अनामिका के घर के बाहर खड़े होकर फ़ोटो क्लिक करना …और घर मे जाकर उसके मुँह पर पंच मारना …

उसने अपने मन मे कहा …तो ये मस्कुलर ..राव सर का भतीजा है…अब मुझे ये पहचान लेगा और राव सर मुझे जॉब से तो निकालेंगे ही साथ ही साथ जो मुझसे प्रभावित रहते हैं ..जब इस राहुल से  सुनेंगे कि मैंने मारपीट की है इसके साथ ..तो हो सकता है जॉब से निकालने के साथ ..बुरा भला भी कहें… ठीक है ..जो होगा देखा जाएगा …

“क्या सोच रहे हो अंकित… राहुल कब से तुमसे हाथ मिलाना चाह रहा है…कहाँ खोये हो ?”

राव सर ने कहा तो, अंकित अपनी सोच से बाहर आया देखा तो हाथ बढ़ाये वो मस्कुलर यानी राहुल उसी की ओर देख रहा था …

“कुछ नहीं सर..कुछ भी नहीं सॉरी वो जरा ” हड़बड़ाते हुए अंकित के मुँह से निकला…. और उसने अपना हाथ बढ़ा कर राहुल के हाथ पर रख दिया ……बड़े गर्मजोशी से हेंडशेक किया..

18

“हेलो “… अंकित के मुंह से निकला

“हम्म …अंकित …बहुत सुना है तुम्हारे बारे मे …अंकल  बहुत तारीफ करते हैं तुम्हारी ” राहुल ने कहा 

उन दोनों को हाथ मिलाते देखकर राव सर बहुत खुश होते हुए बोले “बहुत बढ़िया… मुझे यकीन है ..तुम दोंनो मिलकर काम करोगे ,तो ..युवाशक्ति अच्छे नतीजे लेकर ही आएगी “

जवाब में दोंनो मुस्कुरा भर दिए ..जहाँ राहुल ये बोलकर कि ‘कल मिलते हैं ‘चला गया…वहीं अंकित को राव सर ने एक लेटर टाइप कराने के लिए रोक लिया …एक मामूली सा लेटर टाइप करने में भी बहुत टाइम लग गया अंकित को क्योंकि. राहुल को देखने के बाद वो मानसिक तनाव में आ गया था बाद में राव सर ने उसे कुछ पेपर्स देते हुए कहा

“अंकित …जरा ये पेपर्स राहुल के केविन में रख दोगे क्या ?? 

“क्यों नहीं सर …जरूर ” कहते हुए उसने पेपर्स उनके हाथ से ले लिए ..और राहुल के केविन में जाकर जैसे ही पेपर्स टेबिल पर रखे.. उसकी नजर टेविल पर रखे एक फ़ोटो फ्रेम पर चली गयी…हाथ मे फोटो फ्रेम उठाते ही उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया..

वो बुदबुदाया “मुझे तो लगा बस्स आकर्षित  होगा ये अनामिका की ओर… लेकिन इसने तो बकायदा अनामिका का फोटो अपने टेबिल पर सजा रखी है…मतलब ..कहीं ये सीरियस तो नहीं? …(दांत भीचते हुए) कमीना..

अपने केविन में आकर अंकित विचारों में उलझ गया 

“जितनी बार मैं खुद को सम्भालता हूँ ..उतनी ही बार एक नयी उलझन 

अंकित का मन :-“बेकार में ही परेशान है तू यार ..उसने पहचान नहीं पाया तुझे..और राव सर ने एक और काम में शामिल कर तुझ पर भरोसा जताया है ..फिर दिक्कत कहाँ है ?

अंकित :-दिक्कत ही दिक्कत है..ये राहुल का बच्चा ..सीरियस है उसके लिए “

अंकित का मन :-सौ बातों की एक बात ..अनामिका प्यार करती है .तुझसे..इससे बड़ी बात क्या हो सकती है?

 ‘ हम्म ..जानता हूँ.. लेकिन क्या करूँ….. उसका रुतवा …पैसेवाला होना …और राव सर जैसे इंसान से जुड़े होना ….मुझे डर लग रहा है ..कहीं… “

अंकित का मन :- बेकार में परेशान मत हो अंकित…वो कितना प्यार करती है तुझसे…कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता  “

अंकित :- “हम्म..हम्म …सही है…बस्स बेचैनी और घबराहट है मुझे..क्यों ना अनामिका के पास ही चला जाये शायद उससे मिलकर मुझे सुकून मिले ” और इतना सोचते ही राव सर को ये बोल “कि कुछ पर्सनल काम है ..जल्दी लौट आऊंगा “अंकित …अनामिका से मिलने पहुँच गया ..

19.

यूँ ही बैठी वो शून्य में ताक रही थी,अंकित ने उसे देखा तो बोला “अनामिका ,तुम ठीक तो हो ..?

“हे…आज इतनी जल्दी …मैं तो खुश हूँ… तुम तो ठीक हो ना ? बताओ क्या लाऊँ .. क्या खाओगे ? उसने चहकते हुए पूछा 

“कुछ नहीं …बस्स यहाँ आकर मेरे पास बैठो …जरूरी बात करनी है “

“हाँ.. हाँ ..बोलो ना ” अंकित जहाँ सोफे पर बैठा था ..वो उसी के पैरों के पास  जमीन पर पास बैठते हुए बोली

“हरेक बच्चे की तरह तुम भी अपने पेरेंट्स से बेहद प्यार करती होगी ..है ना”?

“हाँ बिल्कुल …करना भी चाहिए ” उसने अंकित के घुटने पर हाथ रखते हुए कहा 

“हाँ ..बिल्कुल करना चाहिए ” अंकित ने सहमति में सिर हिलाया

“तो अगर कल को ..तुम्हारे पेरेंट्स ..तुम्हारे लिए एक ऐसे लड़के को पसंद करे..जिसके पास ज्यादा पैसा हो…जो बाहर से पढ़ कर आया हो ..और जो एक प्रतिष्ठित परिवार से हो …तो क्या तुम मान लोगी उनकी बात ? छोड़ सकती हो ऐसे हालात में मुझे? 

“क्यों पूछ रहे हो ऐसे “?

“इसलिए कि मेरी जिंदगी का हिस्सा भर नहीं हो तुम ..बल्कि जिंदगी हो ..मेरी हर खुशी ..उम्मीद ..सब तुमसे है ..बताओ ना ..अनामिका ” 

“रुको अभी आयी …”अंदर की तरफ मुड़ते हुए वो बोली 

“कहाँ जा रही हो …पहले जवाब दो …मेरी बात का “लेकिन अनसुना कर वो अंदर चली गयी और कुछ सेकेंड में ही बापस आयी तो हाथ मे एक छोटा सी डिब्बी लिए हुए ..और लाकर उसने अंकित के हाथ पर रख दिया उस डिब्बी को..

“क्या है ये ” ?बोलते हुए, अंकित ने… उसे खोला और चौकते हुए अनामिका की ओर देखा ” ये ..ये तो सिंदूर है..अनामिका “

“तुम्हारी बेचैनी और आशंकाओ का इससे बेहतर जवाब नहीं है मेरे पास अंकित…लो भर दो मेरी मांग ..” कहते हुए उसने अपना सिर उसकी ओर कर दिया 

“ओह अनामिका …तुमने तो ..निरुत्तर कर दिया मुझे …एक ही झटके में मेरी सारी आशंका और डर खत्म…अब मुझे किसी का डर नहीं …किसी का नहीं ” फिर उसे गले लगाकर 

“बहुत प्यार करता हूँ तुमसे …बहुत…और हाँ सिंदूर सबके सामने भरूँगा …चलता हूँ “

“इतनी जल्दी ..रुको ना “

“नहीं ..मिलता हूँ ना शाम को ..”

“नहीं अंकित ..अभी रुको “

“कहा ना मिलता हूँ ..शाम को …तुम अपना ख्याल रखो बस्स..बहुत हुआ …शादी करनी है तुमसे जल्दी से मुझे  ..”

और बो दौड़ता सा निकल गया …”अंकित रुक जाओ ना “अनामिका बोली लेकिन अंकित ने इशारे से कहा शाम को आ रहा हूँ …और दौड़ता सा चला गया ….

20

अभी ऑफिस पहुंचा भी नहीं था कि राव सर ऑफिस से, निकलते दिखे ..अंकित को देखा तो उसी की ओर आ गए “अंकित …बेफिक्र हो जाओ अब तुम्हे नवीन कुछ नहीं कहेगा

***

“हाँ ..मैंने उसे समझाया …और वो मान भी गया…कभी मिले भी, तो इस बारे में उससे बात मत करना बस्स “

“बहुत बहुत शुक्रिया सर ,आप का ये एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा” उसने बड़े दिल से ये बात बोली तो राव सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा 

“इसमे एहसान की कोई बात नहीं ..बल्कि तुमने रुचिका की जान बचाकर हम सब पर एहसान किया है ” 

“नहीं सर..ऐसा भी कुछ नहीं किया मैंने ” अंकित बोला तो राव सर मुस्कुरा दिए ..

” ठीक है भई… अच्छा मैं चलता हूँ..कल मिलता हूँ तुमसे ..”

अंकित साइड में हट गया और राव सर गाड़ी में बैठ निकल गए

अंकित अपने केविन में आया और सीट पर आंखे बंद कर बैठ गया …अनामिका के कहे हुए शब्द उसके कानों में मानो बज रहे हों ..बहुत मखमली एहसास को जी रहा था ..चेहरे पर आई मुस्कान और देर भी बनी रहती …अगर एक्स्टेंशन पर फ़ोन नहीं आया होता ..उसने रिसीवर उठाया ..उधर से राहुल बोल रहा था..

“अंकित ..जरा आओ ना बस ….थोड़ी देर के लिए “

“हम्म ..”बोलकर उसने रिसीवर रख दिया 

खिले चेहरे पर विषाद के भाव आ गए अंकित के….वो खुद में बुदबुदाया  ‘कोई फर्क नहीं पड़ता अब मुझे ..तुमसे राहुल ..कोई नहीं …मैं पहले ही जीत चुका हूँ…तुम्हारा एकतरफा प्यार ..एकतरफा ही रहेगा…बल्कि मुझे तो तुमसे हमदर्दी होनी चाहिए ..हम्म ” वो मुस्कुराया और राहुल के केविन की तरफ चला गया …राहुल ..दो बड़े चार्ट मेज़ पर फैलाये ..मुंह में पेन का कैप फॅसा ..एक हाथ मे पेन और दूसरे हाथ में बड़ा सा स्केल लिए खड़ा था…जैसे ही अंकित अंदर पहुंचा उसने मुँह में से पेन का कैप, फूंक मार बाहर निकाला और बोला “अंकित …आओ बैठो …बहुत मेहनत के बाद मैंने ये दो फाइनल ..डिजाइन बनाई हैं .(दो मॉडल की तरफ इशारा कर के ) ये बताओ कि दोंनो डिजाइनों में से कौन सी डिजाइन ज्यादा अच्छी है ..बस्स फर्क ये है कि ..इस डिजाइन में (एक मॉडल की ओर इशारा करते हुए ) लोगों के बैठने के लिए जगह कम है बल्कि इसमें (दूसरी डिजाइन की ओर इशारा कर के) ज्यादा जगह है 

अंकित मन ही मन ” ये पूछ ना … कि मुझे तेरी शक्ल पसंद है या नहीं …तब मैं बताता कि दुनिया की हर चीज़ पसंद है मुझे .. बस तेरी शक्ल  नहीं ….काश… कह पाता”

राहुल ने उसे चुप देखा तो बोला “क्या सोच रहे हो..बेझिझक बताओ ना कौन सी बेहतर है”

अंकित ने यूँ ही ..अपने हाथ पे बंधी घड़ी को खोला और और फिर से बांध लिया ये जताने को जैसे बहुत गहनता से डिजाइन के बारे में सोच रहा है ..लेकिन   ठीक से देखा भी नहीं  और  एक डिजाइन पर उंगली रख दी, बोला “मुझे ये ज्यादा बेहतर लग रही है “

राहुल के चेहरे पर मुस्कान आ गयी ..”वाह ..मुझे भी ये डिजाइन ज्यादा पसंद है .लोग ज्यादा बैठने वाली जगह को पसंद करेंगे …फाइनल डिसीजन तो अंकल ही लेंगे …बहुत बढ़िया यार”

“तो चलूँ.. मीटिंग की तैयारी करनी है ” अंकित ने उठते हुए कहा

“हाँ ..ठीक है …अच्छा सुनो अंकित …जब भी तुम्हे देखता हूँ..लगता हैं हम पहले  भी मिल चुके हैं”

अंकित ने सोचा अगर ना बताया तो ये सोचता रहेगा ..बता देने से शायद इसका भृम भी खत्म हो जाये और ये सोचे भी ना कि इसे, इसके घर मे जाकर पीट आया हूँ ….सो उसने ..बोला “जी…काफी दिनों पहले .. मार्केट में ,हम टकरा गए थे एक दूसरे से .आपका वॉलेट गिर गया था..और…” अंकित की बात बीच मे काटते हुए वो बोला

“और उस वॉलेट को तुमने उठा कर मुझे दिया था ..याद आया ” वो खुश होते हुए बोला 

“जी” अंकित ने बोला और ….जाने लगा

“वॉलेट के गिरने से कोई दिक्कत नहीं ..लेकिन उसमें अनामिका की फ़ोटो जो थी.. आह..”उसने मुस्कुराते हुए कहा,और फ्रेम लगी अनामिका की फ़ोटो हाथ मे लेकर उसे अपने सीने से लगा लिया 

ये शब्द सुन कर और उसे अनामिका की फ़ोटो उसे, ऐसे सीने से लगाये देखकर… अंकित के तन बदन में आग लग गयी वो तेज़ी से पीछे पलटा ..उसके मन ने रोका ‘नहीं अंकित …इग्नोर कर ..जरूरत नहीं है बेकार में “”बहुत हुआ …जवाब दे गया है मेरा धैर्य.. “अंकित बुदबुदाया

“क्या रिश्ता है अनामिका से तुम्हारा”? अंकित ने पूछा

“तुम ऐसे ..कैसे पूछ रहे हो ?” उसने तनिक आवेग में आते हुए पूछा

“क्यों ना पूछूँ ..वो जिंदगी है मेरी ..प्यार करता हूँ उससे मैं”

अंकित ने भी आवेग में जवाब दिया

राहुल :-“क्या …क्या बकवास करते हो “? 

अंकित:-“बकवास तो तुम कर रहे हो ..बहुत हुआ ..बहुत किया बर्दाश्त मैंने ..अब नहीं” गुस्से में अंकित की आंखे लाल हो आयी

राहुल :-“बर्दाश्त तो मैं कर रहा हूँ …तुझे.. “बोलते हुए वो कुछ कदम  चलकर अंकित के पास तक आया ..और अपने हाथ को उसने पंजे की तरह इस्तेमाल करते हुए अंकित का जबड़ा पकड़ लिया ..और पीछे की ओर धकेलता हुआ दीवार तक ले गया ..दीवार से सटाकर अपना चेहरा बिल्कुल अंकित के चेहरे पास लाते हुए 

बोला ” अगर कुछ वक्त पहले भी तूने ये बोला होता ना …तो तुझे यहीं मसल देता …और मसल तो अब भी सकता हूँ लेकिन अंकल को खास लगाव है तुझसे …और अंकल से मुझे … …बात रिश्ते की पूछी ही है.. तो सुन …तुझ जैसे जाने कितनों को छोड़ कर ,उसने (फिर अपना बाएं हाथ की उंगली में पहनी अंगूठी दिखाते हुए )ये अंगूठी ..सबके सामने पहनाई थी मुझे ..समझा…” 

और एक झटके के साथ उसे छोड़ते हुए वो बापस अपनी सीट पर बैठ गया… टेबिल के ड्रॉर में से बीयर की बोतल निकाली और एक घूंट पीने के बाद अंकित की ओर देखकर बोला

“बेफिक्र रह ..बच्चा नहीं हूँ मैं …जो ये बात अंकल तक पहुँचाऊँ ..पहली गलती है तेरी, इसलिए छोड़ता हूँ ..आगे से मुझे अपना ये एटिट्यूड मत दिखाना …समझा”

अंकित जो उससे दो दो हाथ करने के मूड में था ..जैसे ही राहुल की उंगली में पड़ी अंगूठी देखी …उसके बाद.राहुल की कही कोई भी बात उसके कानों में नहीं गयी .अंगूठी देखने के बाद ….सदमे में अंकित बिल्कुल जड़ हो गया …कानों में ‘बीप्प ‘ ….की आवाज और आंखों में अगूंठी की तस्वीर छप गयी हो जैसे…तेज़ कदमों से चलता हुआ अपने केविन में गया और पूरी ताकत से अपने दोनों हाथ टेबिल पर दे मारे

“साला …नौटंकी क्या है ये ……सिंदूर देकर मुझसे कहा मांग भर दो …और ये  कमीना कहता है ‘कि अनामिका ने उसे अगूंठी पहनाई  है’…फिर अपनी  दोनों हथेलियां  देखते हुए 

‘अनामिका …अगर सच मे तुमने इसे अंगूठी पहनाई है …तो आज …..आज गयीं तुम मेरे हाथो से …मार दूँगा मैं आज तुम्हें ‘…

दाँत भीचता ..लाल आंखों के साथ वो केविन से बाहर निकला ‘ धड़ाक’ की आवाज के साथ केविन का गेट मारा …और गुस्से में लगभग दौड़ता सा बाहर निकल गया ……….

21

अंकित को  बाहर निकलते देखकर सूरज उसके पास दौड़ते हुए आया ..”कहाँ जा रहे हो ..इतनी जल्दी में यार”

“सूरज … ..बाद में बात में  बात करता हूँ”

“हुआ क्या है…. यार ? “

“कहा ना…. बाद…. में ” अंकित ने दांत भीचते हुए कहा..जैसे  ही  सूरज ने उसकी गुस्से में लाल आंखे देखी तो चुप हो गया ,भागता हुआ अंकित अनामिका के घर पहुंचा …देखा दरवाजा बंद था …पैर वहीं रखे ..जहाँ कदम रखते ही दरवाजा खुल जाता लेकिन इस बार दरवाजा नहीं खुला  …तो गुस्सा और बढ़ गया एक बार …दूसरी  बार ..वही प्रक्रिया अपनाई लेकिन नहीं खुला दरवाजा ..वो जोर से चीखा 

“अ …ना.. मि …का …दरवाजा खोलो ..मैं कहता हूँ …खोलो दरवाजा …” 

कई बार उसने डरवाजे पर पैर रखा… कई आवाजे लगायी लेकिन ना तो अनामिका का जवाब मिला ना दरवाजा खुला …हताश अंकित वहीं उसके दरवाजे के बाहर सीढियों पर बैठ गया …और बहुत देर तक बैठा रहा..पहले गुस्सा बढा फिर हताशा और चिढ़ …और आखिर में उसने खुद को ये बोलकर समझाया कि किसी काम से शायद कहीं गयी हो..मुझे उससे तसल्ली और आराम से बात करनी चाहिए…और इंतजार करते करते ..लगभग दो घण्टे  बीत जाने के बाद  बापस घर आया और सोच विचार में डूबा सो गया …

सुबह उठा तो खुद से ही बोला अच्छा रहा अनामिका उस वक़्त मुझे नहीं मिली ..ना जाने गुस्से में क्या करता मैं.. और उसे भी लगता कि अंकित को भरोसा तक नहीं मुझ पर…. नही नहीं ..बहुत गलत हो जाता… आज जाकर राहुल से ही पूछुंगा शांति से …लेकिन कल तो इतनी बड़ी बात हो गयी है..हाँ 

ठीक है इस बारे में उससे कोई बात नहीं करूंगा ..शांति और प्यार से अनामिका से ही पूछ लूँगा आज शाम को जब मिलने जाऊंगा …हाँ यही ठीक रहेगा…मन ही मन ये तय करके वो ऑफिस चला गया..

.***

जाते ही राव सर ने बुला लिया ..कुछ एक लेटर टाइप कराकर …उन्होंने राहुल को भी  वही बुला लिया वो अपने हाथ में एक फोल्ड किया हुआ बड़ी सी फ़ोटो  पकड़े हुए था..राव सर उससे बोले

“राहुल …काम कहाँ तक पहुंचा …

“समझिये हो  गया… कल या परसों  से ही उस बंगले को तोड़ना शुरू कर देंगे …बस्स ये समंझ नहीं आ रहा बाहर की साइड क्या करे …कौन सा डिजाइन बनवाऊं..” 

“हम्म .जरा दिखाओ तो ..कौन सी जगह की बात कर रहे हो “? 

“जी “ कहते हुए उसने वो तस्वीर  खोल कर उनकी टेबिल पर रख दी ……इतने में राव सर का फ़ोन बजा और वो केविन से बाहर निकल गए..

ये …ये तो अनामिका का बंगला है ..अंकित के मुंह से निकला…वो  आंखे फैलाये ..आश्चर्य से कभी उस तस्वीर को देखता तो कभी राहुल को…

“अंकल ने भी ना..पागलों की फौज इकट्ठी कर रखी है इस ऑफिस में ” राहुल खीज़ता हुआ बुदबुदाया

“ये तस्वीर तुम्हारे पास कैसे …ये तो अनामिका का घर है ना” ?अंकित ठीक राहुल के सामने आकर बोला 

राहुल :–” हाँ तो…हम मॉल बना रहे हैं वहाँ ..इस बंगले को तोड़ कर  …और ये बात तुम्हे पता तो है ..तो फिर ये सब… “

अंकित :-“क्या ..तुम लोग ऐसा कैसे कर सकते हो “?

राहुल :-“क्यों ..क्यों नहीं कर सकते …हमने खरीदी है ये जगह “

अंकित :- ( सोचते हुए ..अगर ये बंगला बिक चुका है तो उसने बताया क्यों नहीं ) राहुल ..उसके पेरेंट्स भी अभी बाहर हैं..वो अकेली है “

राहुल :-“कौन अकेला है …किसकी बात कर रहे हो “? राहुल ने झुंझलाते हुए कहा 

अंकित :-“अनामिका अकेली है …अभी …” 

राहुल :-” पागलपन की भी कोई हद होती है ” वो झुँझलाया

अंकित :- “अब मैं समंझा ..तो असल वजह ये है ..तुम लोगों की  नजर उसके बंगले पर है ” 

राहुल :-“बस्स बहुत हुआ पागलपन ..अंकित …निकल जाओ यहाँ से” राहुल ने अंकित को धक्का मारते हुए कहा 

“जब तक मैं जीवित हूँ ..उसका और उसके परिवार का कोई कुछ…. नहीं ….बिगाड़ …सकता समझे …तुम” और ये बोलने के साथ ही अंकित ने राहुल का कॉलर पकड़ लिया …राहुल गुस्से से भर गया …आंखे लाल ही गयी ..चेहरा कांपने लगा और उसने

“तुम्हारी इतनी …हिम्मत ..” बोलने के साथ… ही अपने सीधे हाथ से अंकित के गाल पर एक झापड़ रसीद कर दिया ,झापड़ पड़ने से गुस्से में अपना आपा खो बैठा अंकित …और एक जोरदार पंच रसीद कर दिया राहुल के मुंह पर .

.”इसी मुंह से नाम लेता है ना …तू उसका “

“कल तुझे छोड़कर …गलती कर दी मैंने …” दाँत भीचते हुए राहुल बोला, और बोलने के साथ ही उसने जोरदार पंच अंकित के मुंह पर मारा ..बेलेंस ना रख पाने से अंकित जमीन पर गिर गया ..और राहुल ने पास जाकर उसे कॉलर पकड़ते हुए  उठाया …तभी

“क्या हो रहा है …मैं पूछता  हूँ ….हो क्या रहा है ….ये ” राव सर ने ऊंची आवाज में पूछा ..वो केविन में बापस आ गए थे…दोंनो चुपचाप और शांत हो गए थे …लेकिन उन दोनों को देखकर राव सर आसानी से समंझ गये ..कि दोनों के बीच मारपीट हुई है “हुआ क्या है …कोई बताएगा मुझे …तुम लोग यूँ बच्चों की तरह …हद्द है ..(फिर अपनी सीट पर बैठकर वो कुछ पल चुप रहे फिर  बोले) राहुल …अंकित …यहाँ सामने आकर बैठो ..जल्दी 

दोंनो कुर्सियों पर बैठ गए ..राव सर अंकित की ओर देखकर बोले

“अंकित तुम बताओ …बात क्या है “?

“सर ..बात ये है कि मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ..और वो मुझसे …लेकिन कल राहुल ने कहा कि वो उसी लड़की से अगूंठी पहन चुका है..मुझे यकीन है कि ये झूठ है”?

राहुल : अंकल ….सुन रहे हैं आप ? राहुल खीजते हुए बोला तो राव सर ने उसे शांत रहने का इशारा किया..और अंकित से बोले

राव सर :-“हम्म.. आगे “? राव सर अंकित को बहुत गंभीरता से सुन रहे थे

अंकित:-“लेकिन मैंने अभी-अभी देखा .(फिर.मेज पर पड़े बंगले की फ़ोटो की ओर इशारा करते हुए ) ये जिस बंगले पर रॉड रोलर चलाने की बात कर रहा है..वो अनामिका का है 

राव सर:- “तो तुम जानते हो अनामिका को ? हाँ ..अनामिका का ही है ये बंगला .तो 

राहुल :–“हुम् ..सिर्फ जानता ही नहीं है …अंकल ..ये ..उससे प्यार करने का दम भरता है…कल भी हमारी झड़प हो चुकी है …मैंने  सोचा जाने दूँ.इसीलिए नहीं बताया आपको(दाँत भीचते  हुए )लेकिन इसने तो “

राव सर :-(राहुल को रोकते हुए ) एक मिनट राहुल …हाँ तो अंकित ..मुद्दे पर आओ ..बात पूरी करो “

अंकित :-“क्या वो बंगला आप खरीद  चुके है …अनामिका के पेरेंट्स से “?

राहुल :-मैं  पूछता हूँ.. ये हमसे सवाल करने वाला होता कौन है ” राहुल ने झुँझलाकर कहा तो राव सर ने उसे इशारे से फिर से चुप करा दिया 

राव सर :-“हाँ ..खरीदा है. …जो बात है…सीधे -सीधे बोलो ..अंकित,.क्या..तुम्हें उस बंगले में इंट्रेस्ट है?”

अंकित :-“मुझे नहीं पता था ..कि आपने ख़रीद लिया है बंगला ….बस्स मैं इतना जानता हूँ अनामिका अभी अकेली है उसके पेरेंट्स बाहर गए हैं..उसका ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी है ..

राब सर :–‘राहुल की ओर देखकर कहा” जरा अनामिका का फोटो तो लाना …राहुल

राहुल :- (झींकते हुए ) “अंकल…. ये उसी की बात कर रहा है ..”

राव सर :- “राहुल…फ़ोटो लाओ ” उन्होंने सख़्त लहजे में कहा तो राहुल अपने केविन से अनामिका की फ़ोटो ले आया …राव सर ने फ़ोटो अंकित को  दिखाते हुए पूछा

“तुम इसी के बारे में बात कर रहे हो ना…

अंकित :-“जी …”

राव सर :- “और तुमने कहा ..ये अभी अकेली है “?

अंकित :- “जी “

राव सर:- “तो ये भी बता दो.अंतिम बार कब मिले थे तुम इससे”?

अंकित :- “कल सुबह “

राब सर :- (आंखे फैलाते हुए आश्चर्य से ..तेज़ आवाज में) क्या बकते हो …..इतना बेहूदा मजाक”

राहुल :– (आवेश में आकर कुर्सी से उठते हुए…अंकित से) “क्या बकवास किये जा रहा है …(फिर राव सर से ) मैं आपको वही समझाने की कोशिश कर रहा हूँ अंकल.. कुछ गड़बड़ है इस लड़के के साथ “

अंकित :- (कुर्सी से उठकर ..असमंजस की स्थिति में )सर आप  ऐसे क्यों  ..मुझे कुछ समझ..”

राहुल :–“क्या पागलपन है ये.. अंकित…(चीखते हुए ) अनामिका…. को मरे हुए पां…..च …..महीने बीत गए हैं ..सुना …पांच महीने …”

अंकित :-“क्या ..? क्या बकते हो …कल मिला हूँ मैं उससे ..और “

“बस्स …बस्स …बहुत हुआ …अब एक शब्द भी नहीं ” अपनी उँगली बिल्कुल अंकित की आंखों के पास ले जाते हुए राहुल बहुत  गुस्से में बोला..फिर दूर जाकर खड़ा हो गया

अंकित मुँह खोले …अचरज से कभी राव सर की ओर देखता तो कभी राहुल की ओर ,राव सर ‘धम्म से कुर्सी पर बैठ गए…और टेबिल पर अपनी दोनों कोहनियां टिकाकर दोनों  हाथ सिर पर रख लिए …वहीं राहुल ऊपर की ओर मुंह करके गहरी गहरी सांसे लेने लगा..कुछ पलों के लिए राव सर के केविन में सन्नाटा छाया रहा …फिर खामोशी तोड़ते हुए राव सर ने बहुत धीमी आवाज में कहा

“अंकित ..अनामिका को इस दुनिया से गये पांच महीने का वक़्त हो चुका है …तुमने कहा तुम उसे प्रेम करते हो …हो सकता है …उसे देखने का भर्म हुआ हो तुम्हें  …..रही बात बंगले की ..तो हो सकता है ,तुम्हे हमारे खिलाफ किसी ने भड़काया है ..किसी का बुरा नहीं किया आज तक मैंने.. ये बंगला बाकायदा खरीदा है .माणिक चंद से …..अनामिका की आकस्मिक मौत हमारे लिए बहुत बडा सदमा था …अगर वो जीवित होती तो …आज राहुल की पत्नी के रूप में हमारी जिंदगी में होती …उस बंगले को लेकर लोगों में डर है..कोई भी रहना नहीं चाहेगा वहाँ …अनामिका को सम्मान देने के लिए ही हम वहाँ मॉल बना रहे हैं…….

अंकित पीछे की ओर चलता हुआ दीवार के सहारे टिक गया..और राव सर ने आगे कहा 

“….मुझे आज भी अफसोस है ..कि काश कन्हैया लाल ने अपनी परेशानी मुझे बताई होती ..तो शायद मैं उनकी मदद कर पाता ..उन्हें इतना बड़ा कदम नहीं उठाना पड़ता “(फिर रुककर ..अंकित के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए )..फिलहाल तुम घर जाओ…आराम करो …कल मिलते हैं.”

“मैं उन्हें कभी माफ नहीं करूंगा आखिर..अनामिका का क्या दोष था ” खीजते हुए राहुल ने, टेबिल पर घूसा मारते हुए कहा …तो राव सर ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया ..

“झूठ बोलने की भी एक सीमा होती है …हद्द है “

अंकित बोला और केविन से निकल ऑफिस के बाहर आकर …दीवार के सहारे लगकर  बैठ गया  …गुस्से और दुख में उसके आंखों से आंसू निकलने लगे..कि सहानुभूति भरा स्पर्श उसने अपने कंधे पर महसूस किया ..देखा तो सूरज खड़ा था …

“सूरज …तुम …पता है ..दौलत की  चमक हर चमक से बड़ी होती है..इंसान कितना नीचे गिर सकता है ..कि एक जिंदा इंसान को मरा भी साबित करने में कोई कसर नहीं छोडता है”

“हुआ क्या ..मुझे बताओ .…साफ तो नहीं सुन पाया ..लेकिन इतना पता है तुम्हारी तेज़ बहस हो रही थी अंदर उन दोनों से”

“हम्म…वो राहुल ..मुझे लगा ..कि अनामिका पर उसकी नजर है ..लेकिन नहीं ..असली नजर उसके बंगले पर है ..मुझे कुछ समंझ नहीं आ रहा क्या करूँ”

“मैं तुम्हारी मदद करूँगा .हर हाल में तुम्हारा साथ दूँगा.. मुझे ..पूरी बात तो बताओ मेरे दोस्त ” 

“ठीक है ..तुम्हारे अलावा है ही  कौन  मेरा …सूरज सुनो …अपनी माँ को खो देने के गम से उबर नहीं पा रहा था ….. ..ना मेरे पास नौकरी थी ना पैसा ….और अभी लगभग दो महीने पहले…मेरे मकानमालिक ने भी मुझे घर से बाहर फेंक दिया था ..मैं अपने सामान के साथ बाहर बैठा था ..कुछ समंझ नहीं आ रहा था क्या करूँ कि तभी उसकी आवाज सुनी @@@@@ मुझे जॉब मिली@@राखी की मौत के बाद कुछ दिन गैप लगा ..नहीं तो मैं उससे हर रोज मिलता रहा@@@@@ मार्केट में राहुल से मेरी @@@@@कल जब मैंने उसे अनामिका की तस्वीर @@@@@और आज @@” …सूरज को अब तक की सारी बात बताकर एक गहरी सांस लेते  हुए अंकित चुप हो गया …

“हम्म …(बहुत गंभीरता से सुन रहे सूरज ने अपने होंठो पर उँगली को मारते हुए कहा )मसला आसान तो नहीं …लेकिन हम भी तह तक जाएंगे …जान भी दे दूंगा अगर देनी पड़ी …लेकिन तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा ”  जवाब में अंकित ने बस्स सिर हिलाया  वो अभी भी शून्य में देख रहा था …

सूरज :- कल जब तुम उनसे मिलने गए ..तो मिली नहीं ना ..भाभी जी “?

सूरज का यूँ अनामिका को ‘भाभी ‘बुलाना ,अंकित के चेहरे पर मुस्कान ले आया …और भावविभोर हो उसने सूरज को गले लगा लिया …

अंकित :-“नहीं… बहुत देर इंतज़ार भी किया ..लेकिन..शायद किसी काम से कहीं गयी होगी…इसकी तो कोई फिक्र नहीं” 

सूरज: – “लेकिन अब फिक्र करनी पड़ेगी फ़ोन किया क्या तुमने “

अंकित :-“अर्रे हाँ.. फ़ोन तो किया ही नहीं …कभी किया जो नहीं “

“क्यों भला ” सूरज ने पूछा

“जरूरत नही पड़ी ..हर रोज़ मैं मिलता हूँ उससे .. सुबह जिम …फिर ऑफिस और फिर शाम को उससे मिलना”

अंकित फोन मिलाता है लेकिन नहीं मिलता कई बार कोशिश के बाद भी फ़ोन नहीं लगता…

सूरज :-“ क्या हुआ ?

अंकित :-“फ़ोन नहीं लग रहा …मैं जा रहा हूँ उससे मिलने “

सूरज :- “चलो मैं भी साथ चलता हूँ…”

अंकित के स्वीकृति देते ही दोनों अनामिका के घर की ओर निकल पड़े …जैसे ही सड़क से नीचे उतरे सूरज ने आश्चर्य से पूछा “यहाँ …”?

“हाँ यहीं …बोलते हुए अंकित आगे आगे चलने लगा और सूरज पीछे- पीछे ..

22

पीछे -पीछे चल रहे सूरज ने जैसे ही रोड से उतरकर पैर रखा एक ‘चर्र ‘ की आवाज ने ध्यान आकर्षित कर लिया ..नीचे सूखी पत्तियां थी ..ऊंचे पेड़ इतने घने थे कि बाहर की रोशनी तक नहीं आ पा रही थी.. जिस वजह से धुप्प अंधेरा छाया था..बेहद झाड़ खंखाड फैले थे .. सूरज ने अंकित की ओर देखा तो वो बदहवास सा आगे बढ़ा जा रहा था ..इतने में ही किसी चीज में  पैर उलझा सूरज का ,और वो नीचे गिर पड़ा ..गिरते ही नजर सामने पड़ी तो… दो चमकती आंखे उसे, खुद को घूरते हुए दिखी ..बहुत गौर से देखने पर भी उसे नहीं समंझ आया कि है क्या …अंकित को आवाज दी ..लेकिन वो दूर निकल गया था …सो हिम्मत कर के उठा और तेज़ चलते हुए आगे बढ़ गया …अंकित के पास पहुंचते ही ..”अंकित ..तुम्हें पक्का पता है ,भाभी य…हाँ रहती है..”उसने पीछे की तरफ देखकर ..डरते हुए पूछा

“तुम्हें नहीं लगता… ये बेतुका प्रश्न है ” अंकित ने जवाब दिया..

अंकित का हाल देख ,आगे बात ना बढ़ाना ही सूरज ने ठीक समझा..और बोला

“अंकित तुम बेकार में ही परेशान हो यार …बंगला बिका भी है तो भाभी को पता होगा..वैसे भी ये उनका पारिवारिक मामला है ..हो सकता है झिझक के कारण तुम्हे ना बताया हो “

“हम्म ..हो सकता है ..मुझे बस्स चिंता अनामिका की है एक बार उसे देख लूं तो चैन आ जाये “..

अंकित ने जवाब दिया और कुछ देर और पैदल चलने के बाद अंकित रुक गया और खुश होते हुए बोला “लो पहुंच गए “

सूरज आंखे फाड़े उस बंगले को देख रहा था …देखने से लगता था कि यहां शायद ही कोई रह रहा हो..वारिश और वक़्त की मार से उतरा हुआ बंगले का रंग रोगन….जींगुरों की कानफोड़ू आवाज और रोशनी के नाम पर जुगनू की चमक तक नहीं….अजीव सा दमघोटू माहौल …सूरज ने घबराकर अंकित का हाथ पकड़ लिया “अंकित चल यहाँ से …ये जगह मुझे ठीक नहीं लग रही यार “

“क्या यार  ..मैं उससे मिले बिना …कहीं नहीं जाऊंगा ” अंकित ने सूरज का हाथ हटाते हुए कहा ..और जहाँ पैर रखता था हमेशा वहीं पैर रख दिया ..और दरवाजे की ओर देखने लगा ..जब नहीं खुला तो उसने ,फिर वही प्रक्रिया दोहराई …सूरज बड़े ध्यान से ये सब देख रहा था …फिर घबराहट में उसने एक सिगरेट जलाई और पीने लगा .अंकित के कई बार दोहराने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला ..गुस्से और हताशा में वो तेज़ी से चिल्लाया “अ …ना…मि …का…”

गूंजती हुई आवाज गु म हो गयी…एक बार ,दो बार ,तीन बार …लेकिन अनामिका का कोई उत्तर नहीं  …अंकित ने अंधेरे में वही पड़ा  एक भारी सा पेड़ का तना उठाया और दरवाजे में दे मारा 

“ये क्या कर रहे हो अंकित “? सूरज ने घबराहट में पूछा 

“वो… मुसीबत में है …सूरज …उसे बचाना होगा ” दरवाजे पर चोट करते हुए अंकित बोला..उस ‘सायं …सांय से करते वातावरण में दर्जनों चमकती हुई आंखे सूरज को दिखी ..तो वो डर गया …अपनी सिगरेट फेंकी और अंकित को खींचते हुए बोला

“गेट तोड़ देने से भाभी नहीं मिलेगी …जरा देखो तो ..यहाँ का हाल ..तुम्हे लगता है वो अंदर होंगी “

“वो यही रहती है ” अंकित ने कहने के साथ ही एक जोरदार टक्कर दरवाजे में फिर मारी ..लेकिन दरवाजा नहीं खुला

“दरवाजा टूट भी जाये, तो इतने अंधेरे में ढूंढोगे कैसे …चलो ..पुलिस को लेकर आएंगे कल दिन में ” सूरज ने उसके हाथ से वो मोटा से तना फ़ेंकते हुए कहा,तो अंकित ने दरवाजे में तेज़ी से धक्का देते हुए कहा”मैं कहीं नहीं जाऊंगा …सूरज …तुम्हे जाना है …तो तुम जाओ ”  

अंकित की हालत से बाक़िफ़  सूरज ने उसे अपने डर के बारे में  ना बताते हुए ,पूरी ताक़त से पकड़ा और पीछे की ओर धकेलता सा  बाहर की ओर खींचने लगा 

“मैंने कहा छोड़ दो…. मुझे …सूरज ” सूरज की पकड़ से छूटने की कोशिश करता अंकित चीखते हुए बोला …लेकिन तनाब और कमजोरी के चलते खुद को छुटा नहीं पाया …उसके कई बार बोलने पर भी सूरज ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की और उसे वहाँ से निकाल रोड तक ले आया ..जल्दी ही टैक्सी पकड़ दोनों उसमे बैठे …तो अंकित ने गुस्से से सूरज की ओर देखा लेकिन उसे काँपता …और घबराया हुआ  देख …वो शांत हो गया और पूंछा 

” तुम इतने घबराये क्यों  हो ..क्या हुआ “?

“पूछ तो ऐसे रहे हो …जैसे कुछ पता ना हो ” फिर अंकित के हालात को याद करते हुए खुद ही बोला

“बस्स ठंड लग रही है …एक बोतल लें लेता हूँ”

“कुछ नहीं हो सकता तुम्हारा..जाओ…लो जाकर ” अंकित चिढ़ता हुआ सिर झटककर बोला

सूरज ने बीयर शॉप से एक बोतल ली और दोंनो अंकित के घर आ गए और..बेड पर बैठते ही अंकित हताशा में अपने सिर के बालों को खींचते हुए बोला 

“मेरी कुछ समंझ में नही आ रहा …कुछ नहीं …अनामिका कहाँ हो तुम … कहाँ ढूंढू… मैं तुम्हें ” 

फिर अचानक उठकर जाने  लगा 

“कहाँ जा रहे हो ” सूरज ने पूछा

अंकित :–“पुलिस स्टेशन “

सूरज :–तुम्हें लगता है..इस वक़्त पुलिस मदद करेगी हमारी इतनी रात गए”?

अंकित :–“पुलिस स्टेशन हमेशा खुला रहता है “

सूरज :–“काम करने वाले हैं तो आदमी ही हैं यार ..झुठी तसल्ली और कुछ लेक्चर के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला ..बेहतर है हम सुबह तक का इंतजार करें “

अंकित :- “कहीं सुबह तक उन लोगों ने उसे कुछ कर दिया तो “?

सूरज :-“पहले ये बताओ हम आज जहाँ गए थे ..पक्का यकीन है तुम्हें ..वो वहीं रहती है “

अंकित :- “तुम्हारी परेशानी क्या है सूरज …तुमने अगर ये सवाल फिर पूछा तो… मुझसे बुरा कोई ना होगा ” अंकित चिढ़ते  हुए बोला

सूरज :–“माफ करना यार ( कुछ सोचते हुए )भगवान करे मैं गलत होऊ लेकिन अभी जो देखा है ..”

अंकित :-क्या देखा है …बताओ ?

सूरज :- “नाराज ना होओ तो एक बात पूंछू”?

अंकित :- “हम्म” 

सूरज :-“कहीं भाभी ने सच मे अगूंठी तो नहीं पहना दी ..राहुल को”

अंकित :-“दुबारा ये बात मन मे भी मत लाना…सारी दुनिया कहे तो भी नहीं मानूँगा..झूठ बोलता है वो”

सूरज :-“मारने तो तुम भी चले थे उनको, ये सुनकर …वो तो अच्छा ये रहा कि नहीं मिलीं “

अंकित :-“हम्म शर्मिंदा हूँ …बहुत गुस्सा आ गया था मुझे”

सूरज  :-“एक बात बताओ कौन से कॉलेज में है वो ,क्या पता है”

अंकित :-“एस. एम.आई.टी. कॉलेज ऑफ हिस्ट्री”

सूरज :- हम्म अच्छा….तुम कपड़े बदल लो मैं कुछ खाने को बना देता हूँ…खा लो और सो जाओ मैं यही रुकूँगा आज “

अंकित :-“कुछ मत बनाओ आंटी खाना रख गयी होंगी ..तुम खा लो और सो जाओ …मुझे नींद कहा ..ना जाने किस हाल में होगी वो.”

सूरज ने देखा तो खाना रखा हुआ था ,उसने जबर्दस्ती अंकित को थोड़ा खाना खिलाया और फिर अपनी जेब से शराब की बोतल निकाल उस् की ओर बढ़ाते हुए बोला 

“लो दो घूँट भर लो …आराम मिलेगा “

अंकित :-“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे शराब देने की …सूरज”

सूरज :-शराब नहीं है… पी लो (बोलने के साथ ही उसने एक हाथ से अंकित का चेहरा पकड़कर जबर्दस्ती  दूसरे हाथ से बोतल उसके मुंह मे उड़ेल दी ) अंकित खुद को छुड़ाते  हुए गुस्से में बोला

“कितना भरोसा करता हूँ तुम पर,और तुमने जबर्दस्ती मुझे शराब पिला दी “

सूरज ;-“तो भरोसा बनाये भी रखो , अगर तुम्हारा ये हाल ना होता, तो नहीं पिलाता ….तुम्हारे लिए आराम करना बेहद जरूरी है ..कल ढूंढना नही है क्या भाभी को “?

बची हुई बोतल सूरज ने ख़ाली कर दी,और सोने की तैयारी करने लगा ..कुछ देर चुप रहने के बाद अंकित बोला 

“अनामिका ने बहुत रोका था मुझे…लेकिन मैं नहीं रुका ..काश रुक गया होता…ना जाने क्या कहना चाहती थी “

सूरज:-“अंकित …तकिया है क्या यार …सिरहाने रखने को ?”

अंकित:-“उसने बहुत रोका…लेकिन मैं रुका नहीं”

सूरज :–“कोई बात नहीं ..मिले तब पूंछ लेना ..अब सो जाओ… कल बहुत काम करना है…ये बताओ तकिया मिलेगा क्या?”

अंकित:–“मैं उसके बिना नहीं जी पाऊँगा”

सूरज :-“हम्म ..समंझ गया …पहली बार पी है ना”

अंकित :-“उसने बहुत रोका …लेकिन मैं रुका नहीं”

सूरज:–” तो अभी भी कौन सा रुक रहा है तू …मेरे भाई “

अंकित :-“उसके बिना जी नहीं पाऊँगा”

सूरज :-(चादर से सिर ढकते हुए ) “तू कंटीन्यू रख …मैं सो जाता हूँ”

अंकित:-” मै रुका नहीं …ना जाने क्या कहना चाहती थीं तुम …नहीं जी पाऊंगा तूम्हारे बिना …नहीं जी ….पा..ऊँगा  …नहीं …..अनामिका ….अना ….मि ….का …..मैं …क्यों…रुका  नहीं ….अना ….मि …..का….न …ही  …..जी ….पा …पा …ऊँगा…..अहह …. न …नहीं ….

23

सुबह जल्दी से तैयार होकर सूरज ,अंकित को सोता छोड़ घर से निकल गया…अंकित भी जब उठा तो बिना वक़्त गवाए सीधे पुलिस स्टेशन पहुँच गया …जब पहुंचा तो सामने इंस्पेक्टर नवीन ही बैठा मिला …अंकित को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट  आ गयी .

बोला “आइये पी.ए.साहब ..कैसे आना हुआ “?

अंकित :–(मन ही मन सोचते हुए ..इसे भी यहीं मिलना था अब किसी और इंस्पेक्टर के बारे में पूँछू तो चिढ़ जाएगा ..इसे ही बताना पड़ेगा )”नवीन सर ..मुझे आपकी मदद  चाहिए ..”

नवीन :–“मदद ….सो भी मेरी …कहो ” हँसते  हुए बोला 

अंकित :-(अनामिका का फोटो दिखाते हुए) “ये दो दिन पहले तक अपने घर मे थी ..लेकिन अब नहीं है…मुझे डर है इनके साथ कोई हादसा ना हो जाये ..कृपया जल्दी ढूंढने में मेरी मदद करेंगे ?.”

नवीन :-“कहीं देखी हुई सी लग रही है कौन है ये “?

अंकित :-“मेरी प्रेमिका  है ..प्लीज़ सर मदद कीजिये ना..

नवीन :-“झगड़ा किया होगा आपस मे …चली गयी होगी और हमारे पास पच्चीस काम और भी  हैं …अब हम घर के झगड़े भी सुलझाएं ? जाओ यहाँ से “

अंकित :-“एक मिनट के लिए भूल जाइए ..कि आप इंस्पेक्टर हैं..आपने भी किसी से प्यार किया होगा…हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ है …इसकी जान खतरे में है …प्लीज़ मेरी मदद कीजिये “

नवीन :-(एकदम गंभीर बनते हुए )”हम्म …तेरी बात पसंद आई मुझे …मदद करूँगा तेरी …अच्छा  ला फ़ोटो दिखा …”

अंकित ने फ़ोटो दिया तो गौर से देखने के बाद उसके माथे पर बल पड़ गए …फिर अपना निचला होठ चबाते हुए “कहीं देखा है मैंने इसे …लेकिन याद नहीं आ रहा …चलो छोड़ो …ये बताओ किसी पर शक है तुम्हे “

अंकित :-“हाँ …राहुल पर “? 

नवीन :–“कौन राहुल “?

अंकित :– (गुस्से में ) “राव सर का भतीजा “

नवीन :–(चुटकी बजाते हुए …जैसे याद आ गया हो ) अररे हाँ …याद आया …ये तो राहुल की होने वाली पत्नी का फोटो है …और इसकी तो .मौत …उन दिनों यहां नही था मै …बाद में अखवारों में फ़ोटो देखी थी इसकी….एक मिनट… तुम तो कह रहे थे ये तुम्हारी प्रेमिका है …क्या सुबह से कोई और नहीं मिला तुम्हें “

अंकित :-“(उत्तेजित होते हुए )झूठ है ये सब …बकवास है.उन लोगों ने ही गायब कराया है इसे…अच्छी भली है ..और ..जीवित है 

नवीन :–“क्या ? जीवित है “

अंकित :-“परसों मिला हूँ मैं इससे “

नवीन :–“कहाँ पर मिले हो”

अंकित :-“उसके घर पर “

नवीन :- ” घर …वो ..वो मोड़ वाला बंगला “? 

अंकित :- “हाँ “

नवीन :-“क्या बकवास है ये ?…उस तरफ कोई जाता तक नहीं ..”

अंकित :-“मैं सच कह रहा हूँ”

नवीन :-“मुझे यकीन नहीं  …लेकिन तुम्हारी बात और इस विश्वास की खातिर तफ्तीश करता हूँ…मदद का वादा जो किया है …एक दिन की मोहलत दो …राव सर हों या उनका भतीजा ..गुनाहगार हैं तो बचेंगे नहीं …ये एक दोस्त का वादा है ,…राव …हम्म ..शक तो उस पर था मुझे  (बुदबुदाते हुए )कोई भला एम्प्लोयी के लिए रिश्वत देगा …लेकिन जब उसने मुझे नोटों का बैग  दिया  …तो लगा मेरी गलतफहमी होगी  …लेकिन अब  …..हम्म ..

अंकित :- “क्या… क्या दिया आपको “?

नवीन :–“कुछ नहीं …कल मिलो मुझसे इसी वक्त “

अंकित :-“बहुत धन्यवाद आपका ..कल मिलता हूँ”

***

 अंकित जब बापस आया तो …सूरज को बैठे हुए पाया 

.सूरज :-” कहाँ गए थे तुम “

अंकित :-“पुलिस स्टेशन “..

सूरज :- “कुछ हुआ “?

अंकित :- “नवीन मिला..बहुत  प्यार से बात की उसने मुझसे”

सूरज :- “तुमने तो बताया था …सुरुचि के केस के वक़्त बहुत चिड़ा हुआ था वो तुमसे “

अंकित :-“हम्म …आज मैंने उसे उसके प्रेम का वास्ता दिया …तो दोस्त बनाते हुए उसने मदद का वादा किया है कल तक का समय लिया है ….तुम कहाँ गए थे “?

सूरज :-“भाभी के कॉलेज गया था “

अंकित :- “कुछ पता लगा “?

सूरज :–” (दुखी होते हुए “)हम्म” 

अंकित :–” क्या …तो बताओ ना “

सूरज  :–“भाभी बहुत होशियार थी “

अंकित : -” थीं नहीं …हैं “

सूरज :–“पहली और दूसरी दोनो सालों में उन्होंने टॉप किया था “

अंकित :–“हम्म “

सूरज :–“कॉलेज के बहुत बच्चों की फीस वो भर दिया करती थी ..मदद करती रहीं थी सबकी “

अंकित :–(खीजते हुए )”तुम पता करने क्या गए थे? उसके बारे में या उसके ऐकडेमिक बैकग्राउंड के बारे में”? 

सूरज :-” पता तो लगा है लेकिन पहले वादा करो कि तुम धैर्य से काम लोगे ?”

अंकित :-” हाँ …हाँ बोलो भी …”

सूरज :-” लगभग हर प्रोफेसर से मिला होऊंगा …सब उनकी तारीफ करते हुए यही कहते हैं कि वो लगभ पांच महीने पहले इस दुनिया से चली गयी हैं “

अंकित :- “(गुस्से में ) सू….र…ज “

सूरज  :- “मैं नहीं वो सब कहते हैं…यहां तक कि हर स्टूडेंट …वो सबकी मदद करती रही थी इसलिए उन्हे सब जानते हैं “

अंकित :-“राब ने रिश्वत खिलाई होगी “

सूरज :-” रिश्वत एक को खिलाई जा सकती है…दो को …चलो सबको खिला दी …लेकिन उनको तो नहीं जो कॉलेज पासआउट हैं …”

अंकित :- ” क्या …? 

सूरज :–” हाँ …इतनी बड़ी बात ..तुम्हे क्या लगता है कमी छोडूंगा मैं  तफ्तीश करने में ? …धीरज जो इसी कॉलेज से पासआउट है ..उससे मिल कर आ रहा हूँ…वो भी यही कहता है ..और कल जब मैं तुम्हारे साथ वहां गया था जहाँ तुमने कहा  भाभी रहती है …तो माफ करना …वो जगह सामान्य नहीं थी …डर लग रहा था मुझे वहाँ ..वो डरावनी जगह थी ..ना जाने तुम्हें सब क्यों नहीं दिखा ..मेरी तो अंतड़ियां काँप गयी ..मुझे लगता  है …मुझे लगता है कि सब ठीक कह रहे हैं “

अंकित :-“सू…र …ज ….” अंकित ने सूरज को मारने के लिए अपना हाथ उछाला और ना जाने क्या सोच रुक गया 

सूरज :–“रुक क्यों गए मार लो मुझे …जो तुम्हारा हाल है …जितना चाहो मुझे पीट लो ..उफ्फ तक करुँ तो कहना …तुम्हारी हालत समझता हूँ …लेकिन क्या करूँ …कुछ समंझ नहीं आ रहा …एक काम करो अंकित, तुम डॉ लाल से मिल लो वो बड़े अच्छे मनोचिकित्सक है…मुझे यकीन है कुछ ऐसा है …जो हमारी समझ से बाहर है “

अंकित ने सुरज को घूरते हुए देखा और बदहवास सा घर से निकल गया…..

सूरज :- “कहाँ जा रहे हो अंकित …अ …..कि….त.. रुको  मैं .कहता हूँ रुको …………लेकिन अंकित नहीं रुका …..

नवीन अनामिका केस की फाइल चेक करने के बाद ..राव सर से मिलने पहुंच गया …राव सर, ऑफिस से निकलने की तैयारी में थे ,कुछ जरूरी फाइल और पेपर बैग में रख रहे थे ..नवीन को देखा तो ठिठक गए और बोले

“नवीन …तुम …अचानक…कैसे आना हुआ “?

नवीन :-“क्यों मेरा आना आपको अच्छा नहीं लगा “?

राव सर:-(फीकी सी मुस्कान के साथ ) पुलिस वालों का आना किसे अच्छा लगता है “?

नवीन :-“हा.. हा.. हा …अह… अह …बात तो ठीक है (कुर्सी पर बैठते हुए )यूँ ही आज चौक वाली रोड से होकर गुजर रहा था…एक केस के सिलसिले में …तो नजर उस बंगले पर चली गयी ..आप की याद आ गयी सोचा मिलता चलूँ ..एक कप चाय भी हो जाएगी ..”      

राव सर:-“हम्म ..(संपत की ओर देखकर ) जरा कहो किसी से  केंटीन में,.. कि दो कप चाय भेजे और साथ में कुछ खाने को …संपत के हटते ही नवीन खोजी आंखों से इधर उधर ताकते हुए बोला 

“सुना है राहुल..आपका भतीजा आ गया है विदेश से …कुछ मॉल -वॉल का काम शुरु करने वाले हैं आप यहाँ …बंगले पर”

राव सर :- (सारी फाइल रखने के बाद बैग साइड में रखते हुए )

“हम्म सही सुना है …एक दो दिन में काम शुरू करेंगे “

नवीन :-“क्या आप बता सकते हैं कि किससे खरीदा है आपने ये बंगला “? 

राव सर :-“हाँ ..क्यों नहीं ..माणिक चंद से…तुम क्यों पूछ रहे हो ?”

नवीन   :-“ऐसे ही….मॉल की जरूरत क्या है ? …अच्छे खासे रहने की जगह है “

राव सर:- “इतना बड़ा हादसा हुआ है …वहाँ रहना तो दूर कोई झांकना तक नहीं चाहता …राहुल तो बड़ी मुश्किल से संयत होने भी लगा था …लेकिन … “

नवीन :-(राव सर के चेहरे पर नजर गढाते हुए )” लेकिन क्या”?

राव सर :” अंकित …बड़ा तमाशा कर दिया उसने …उसे लगता है अनामिका जीवित है …ना सिर्फ इतना बल्कि वो उससे प्रेम करता है और कहता है दो दिन पहले मिला है उससे “

नवीन :-” हो सकता है मिला हो…” 

तब तक चाय आ गयी…. और बड़ी फुर्ती से नवीन ने कप उठा कर चाय में एक सिप कर लिया ..राव सर उसे घूर कर देखते रहे और बड़े संजीदा होकर बोले..

राव सर :-” नवीन …मौत हुई है उसकी…”

नवीन :-“क्या पता कोई रसूख वाला..पैसे के लिए झूठ बोल रहा हो ..लड़की को गायब कर दिया हो “

राव सर :-” और लड़की क्यों गायब करेगा  कोई “?

नवीन :-” प्रोपर्टी के  लिए लोग अपने संबंधी लोगों तक को  मार देते हैं ….ये तो फिर भी लड़की को  गायब कराना है ….’ 

राव सर :-“मुझे ऐसा क्यों लगता है ..अंकित मिला है तुमसे …”

नवीन :-” अगर मिला भी है तो …क्या बुराई है इसमें ?…सबको अधिकार है.. कानूनी मदद का “

राव सर :-” ये ना तो कानून है …और ना ही मदद …बस्स पागलपन है ..महीनों हो गए अनामिका की मौत को …तुम तो पुलिस में हो …फाइल उठा कर देखा होता “

नवीन :-“प्रोपर्टी के लिये लोग सालों साल घपला करते हैं …ये तो बस्स महीनों की बात है …वो दो दिन पहले ही मिला है उससे …पागल तो है नहीं अंकित …जो उसकी बात को झुठला दिया जाए …रही बात फाइल की..? बन्द फाइल को खोलने में देर कितनी लगती है..?

राव सर :-“ये तुम कह रहे हो? ..तुम वही हो ना ? जिसे रुचिका केस में अंकित सीधे -सीधे अपराधी लग रहा था”?

नवीन :-“शक था मुझे उस पर…शक करना हमारी ड्यूटी का हिस्सा है….जैसे (घूरते हुए ).. इस वक़्त… मुझे आप पर शक है”

राव सर:-(आवेग में आते हुए ) “तुम पागल हो चुके हो …सच कहते हैं लोग पुलिस वाले किसी के सगे नहीं हो सकते …निकल जाओ यहाँ से ..मैंने कहा नि…क…लो “

नवीन :-“मैं भी रुकने नहीं आया यहाँ..जल्द लौटूंगा..बंगले पर स्टे के आर्डर के साथ  समझे चाचा जी 

अपना अपना कैप मेज से उठाया और तेज़ी से  चलता हुआ  बाहर निकल गया …उसके बाहर निकलते ही राव सर ‘धम्म ‘ से कुर्सी पर बैठ गए ,खुद को संयत करने के लिए ,उन्होंने उंगलियों को बालों में फेरते हुए आंखे बंद कर ली ..

24

नवीन ,अनामिका केस की फाइल पढ़ ही रहा था …कि अंकित हाँफता हुआ पहुंच गया उसके पास .मेज़ पर दोनो हाथ रख नवीन की ओर झुक गया और बोला

“कुछ …पता लगा नवीन सर “?

नवीन :-“क्या हुआ तुम्हें …तबियत खराब लग रही है तुम्हारी “

अंकित :-(बुझी आवाज में )”तबियत …हुम् ….मुझे मेरी जिंदगी खराब लग रही है …एक -एक पल नरक के समान बीत रहा है …आप बताइए ना…कुछ पता लगा ? “

नवीन :-(अंकित  के कंधे पर हाथ रखते हुए )”अंकित,हिम्मत मत हारो मैं गया था राव से मिलने ..केस थोड़ा पेचीदा है ..तहकीकात करने में थोड़ा वक्त लगेगा ..भरोसा रखो कोई कसर नहीं छोडूंगा “

अंकित :-(नवीन का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए)”तब तक उसे कुछ हो गया ..तो …उन लोगों ने उसे कहीं कोई नुकसान पहुंचाया तो …..तो क्या होगा “?

नवीन :-“भावुकता से नहीं …दिमाग से सोचो ..कुछ करना ही होता तो उन्हे …तो अब तक क्यों जीवित रखते ..तुम उससे कैसे मिल पाते ?……सोचने वाली बात ये है कि पांच महीने पहले जो लड़की अखवारों में मर चुकी है …तुम्हारे अनुसार जिंदा है ….कल उस बंगले की सर्च कराता हूँ”

अंकित :-“अभी क्यों नहीं ? …अभी चलिये मेरे साथ …चलिये “

नवीन :-(अचकचाते हुए ) “मैं पुलिस में जरूर हूँ …लेकिन ऐसे पुराने बंगले ..और अंधेरे से मुझे पता नहीं क्यों…वो …वो “

अंकित :-“क्या ?

नवीन :-(मुँह फेरते हुए ) “मैं सहज महसूस नहीं करता …कल जाऊंगा दिन में टीम के साथ …वैसे भी आज जब देखा दूर से तो, ….वो सिवाय एक पुराने और सुनसान बंगले के कुछ और नजर नहीं आया…मुझे नहीं लगता कुछ हो सकता है वहाँ..फिर भी ….जाऊंगा तुम्हारी खातिर “

नवीन की ये बात सुन अंकित चिढ़ गया और हाथ झटकते हुए वहाँ से निकल गया …

“अंकित ..सुनो तो …”नवीन ने आवाज दी ..लेकिन उसने अनसुना कर दिया …

***

अंकित पहली बार अनामिका के घर की ओर चलते -चलते थक गया था … अपने दोनों हाथ घुटनों पर रख कर कुछ देर हांफता रहा फिर आगे बढ़ा ..रोड से नीचे जाने वाले रास्ते पर कदम रखा … सूखी पत्तियों की आवाज ने पहली बार उसका ध्यान खींचा …एक पल वो ठहरा और आगे बढ़ गया ..बेहद अंधेरा और दमघोंटू वातावरण लगा उसे ..जो रास्ता उसे दूधिया रोशनी से डूबा लगता था..आज बेहद सुनसान… वो बुदबुदाया ‘सब सूरज की बातों का असर है ‘ सिर झटक कर आगे बढ़ा… अनामिका के घर के बाहर तो ,वही फिर पैर रखा …फिर नियत जगह से  दाएं ..और बाएं ..थोड़ी दूरी पर  …ये सोच कि शायद जगह भूल तो नहीं गया ..कई बार दोहराने के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो …अँधेरे में नजरें गढ़ा..  मोटी  तने की कल वाली लकड़ी उठा ली ..अभी दरवाजे में मारी भी ना होगी कि तेज़ कानफोड़ू झींगुरों की आवाज ने ध्यान भंग कर दिया ..फिर लगा जैसे उसके पीछे से कोई गुजरा हो …

वो तेज़ आवाज में बोला “अनामिका …अनामिका …”कोई उत्तर नहीं…उसने लकड़ी नीचे फेंक दी …और सिर उठाकर बंगले को ऊपर तक देखा …हमेशा रोशनी में जगमगाता ये बहुत वीरान और डरावना लगा…फिर खुद से बोला ‘दुखी हूं ना ..हर चीज़ बुरी लग रही है’ ….फिर उठा ली मोटी तने वाली लकड़ी और दे मारी दरवाजे में …कई वार… लगातार… एक ही जगह चोट पड़ने से दरवाजा खुल गया ..उसने लकड़ी नीचे फेंकी पूरी ताकत झोकते हुए दरवाजा खोल दिया ..

अंदर धुप्प अंधेरा ,बस्स चांद की रोशनी ही थी जो खुली खिड़कियों से अंदर आ रही थी …उसी के सहारे वो आंखों पर पूरा जोर दे देकर देख रहा था …”अनामि…का “…..कहाँ हो तुम ” …देखो.. मैं …अंकित ….तुम्हारा अंकित आया है …” ऊपर लटकते झूमर पर नजर डाली …हमेशा रोशनी बिखेरता झूमर मानों मुंह बायें खड़ा हो ….फिर खुद से ही बोलते हुए …सब इतना सुनसान क्यों लग रहा है …किचिन …हां किचिन में देखता हूँ …किचिन में मानो किसी ने धूल झोंक दी हो …जाले और गंदगी  से भरा हुआ..’ये ये क्या …अभी दो तीन पहले उसने मुझे खाना खिलाया था …हांफता सा बाहर आया सीढिया देखी तो उसे याद हो आया …यही …यहीं ..उसे बाहों में लिया था मैंने वो उसी सीढी पैर रख कर उसे महसूस करने लगा .

‘अनामिका …कहाँ …हो ….तुम …कहाँ…. हो “

वहाँ से आगे बढ़ा और टैरेस पर चला गया …जोर से बोला ‘यहाँ …मैंने तुम्हें प्रपोज किया था अनामिका …तुमने कितने प्यार से मेरे लिए खाना बनाया था….यहाँ…यहाँ  टेबिल रखी थी ..यहाँ तुम बैठी थी…टेबिल …यहीं होगी (इधर उधर देखते हुए) टेबिल नहीं दिखती तो .. 

झाड़ और कबाड़ हटाते हुए देखता है …लेकिन कहीं नहीं दिखती …हताशा में उसकी आंखों से आँसू निकल आते हैं..ये सब है क्या …ना टेबिल …ना .. कुर्सी …अररे ….मैं भी कैसा पागल हूँ… उसने नीचे रख दी होगी ..हाँ यही होगा …फिर टैरेस से नीचे की ओर झाँकते हुए वहाँ …वहाँ …मैं तुम्हारे साथ बैठा था…तालाब के पास ..,

फिर सीढियों से उतरते हुए नीचे आता है ..और बंगले के पीछे की तरफ जाकर सबसे पहले तालाब तक जाता है ..हाथ से पानी छूने के लिए वो तालाब में हाथ डालता है लेकिन पानी की एक बूंद तक नहीं ..उसका आश्चर्य से मुँह खुल जाता है..”.ये …ये..क्या ..ये तो पानी से भरा हुआ था ..बत्तख थी इसमें …ना जाने कहाँ गए या शायद अंधेरे में …नहीं चाँद की रोशनी तो है …शायद मन ही दुखी है मेरा ….कि एकाएक नजर गमले पर चली जाती है …दौड़ते हुए गमले को उठा लेता है…उसे ऊपर की ओर उठा कर ..दूसरे हाथ को ऐसे मोड़ता है जैसे अनामिका को उठा लिया हो…फिर मुस्कुरा कर 

“देखो अनामिका.. सारी जिंदगी तुम्हे ऐसे ही उठाये रख सकता हूँ”…

‘हऊ ..ऊ ..ऊ ‘ करती सियारों की रोने की आवाज से अंकित की ध्यान भंग हुआ …लेकिन ना उसे डर ना कोई घबराहट ..जोर से बोला “मार डालो मुझे ..बिना उसके ये जिंदगी है भी किस काम की

‘अनामिका …ओह्ह …कहाँ हो तुम …कहाँ.. हो ….लौट आओ…. नहीं जी पाऊँगा. तुम्हारे बिना …नहीं जी पाऊँगा…’

फिर नजर ..मिट्टी पर पड़ते ही…वो मिट्टी के पास गया .

‘तुमने उस दिन गमले में मिट्टी भर नहीं पाई थी ..मैं भर देता हूँ …और गमले में मिट्टी भरने लगा …निराशा …हताशा ..और आशंका का मिला जुला रूप हुआ…और आंखों से आँसू बह निकले..और अंकित फफक -फफक कर रोने लगा ..कुछ पल में. बेहोशी छाने लगी …और वहीं गिर गया ..कि अचानक सामने से एक तेज़ रोशनी उसे अपनी ओर आते दिखी …देखने की कोशिश की तो लगा कि.रोशनी उसी की ओर बढ़ती आ रही थी..आंखे खोले रखने की हिम्मत नहीं बची अंकित में, और उसने आँखे बंद कर ली …

***

पंखे के चलने की आवाज  की कानों में पड़ी …उसने धीरे से आंखे खोल दी …देखा सामने ..सूरज का चेहरा दिखा …अंकित ने उठने की कोशिश की तो सूरज ने उसके कंधो को पकड़ते हुए बापस लिटा दिया “लेटे रहो अंकित ..बहुत कमजोरी है तुम्हें …”

अंकित :-“मैं तो …मैं.. तो  वहाँ अनामिका के घर के बाहर था …यहाँ कैसे “?

सूरज :-“कितना रोका तुम्हे …गुस्से में तो किसी की सुनते ही नहीं तुम…मैं तो कपड़े भी पहने हुए नहीं था  …टी शर्ट …पहनकर …चप्पल पैरों में डाली… तब तक तो तुम मानो उड़ गए …पीछे पीछे मै पहुँचा पुलिस स्टेशन …नवीन ने बताया तुम अभी अभी निकले हो …

अंकित:-(अपने सिर पर हाथ रखते हुए)…”आह …फिर “?

सूरज :-“क्या दर्द है …(अंकित के ‘ना ‘  में सिर हिलाने पर ) फिर क्या …समझ गया मैं तुम वहीं गए होंगे …मैंने बोला उससे कि कुछ सिपाहियों को मेरे साथ भेज दो …लेकिन उसने मना कर दिया …मुझसे भी वहाँ जाने को मना करने लगा …

अंकित :-” हम्म …फिर ..?”

सूरज :-“फिर क्या …वहाँ बहुत अँधेरा होता है…टोर्च तो काम करने से रही …मशाल जला कर ले गया …और देखो…सही निकला मैं,वहीँ बेहोश पड़े थे तुम “

अंकित :-“तेज़ रोशनी देखी थी जो मेरे पास आती जा रही थी..फिर कुछ याद नहीं”

सूरज :-“मशाल लेकर मैं ही आ रहा था …वही दिखी होगी ..अंकित …मैंने वो दरवाजा खुला हुआ देखा यार …तुमने… खोला ना “?

अंकित :-(शून्य में देखते हुए )” हम्म…लेकिन वो नहीं दिखी …नहीं दिखी “

“सब ठीक हो जाएगा यार ” सूरज ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

अंकित :-“तुमने कहा वहाँ ,तुम्हें डर लगा था …फिर कैसे गए “?

सूरज :-“कोई भी डर…तुम्हारी जान और हमारी दोस्ती से बढ़कर नहीं “

“तुम्हारे जैसे दोस्त बड़े नसीब से मिलते हैं… पता नहीं कुछ कर भी पाऊँगा तुम्हारे लिए …या नहीं “

अंकित बढ़ा और उसने सूरज को गले लगा लिया 

सूरज :-“ऐसा क्यों बोल रहे हो …कोई बिजनेस है क्या…तुमने जब मेरी जान बचाई मैंने तो शुक्रिया भी नही बोला …याद है “?

अंकित :-(आंखों में चमक लाते हुए )” हे सूरज …तुमने देखा था ना उसे …

सूरज :-“किसे “?

अंकित :-“अररे …अनामिका को यार और किसे ?…जब तुम खड्ढे में गिरे थे .उसने तुम्हें बाहर निकालने में मदद की थी” 

सूरज :-“मैं सच कहता हूँ.. यार  मैंने झलक तक नहीं देखी थी भाभी की …पहले भी कई बार याद करने की कोशिश कर चुका हूं”

अंकित:-“तुम उस वक़्त परेशान थे …इसलिए नहीं देख पाया होगा तुमने …वो ना होती तो शायद मैं तुम्हें उस दिन खड्ढे में से निकाल नहीं पाता “

अंकित को संजीदा देखकर सूरज ने बात बदलते हुए कहा

“जब मैं तुम्हें लेकर आया तो तुम्हारी मुँह बोली माँ ने जोर दिया कि तुम्हें यहाँ ले आऊं …और ये कोई डॉ शाहदुल्ला का क्लीनिक है ..हा हा हा ..

अंकित :-(मुस्कुराते हुए ) तुम भी यार …अच्छे डॉ हैं ये ,पहले भी मां ला चुकी हैं यहाँ …और ..’मुँह बोली ‘..क्या …माँ सिर्फ माँ होती हैं …सरोज आंटी मेरी माँ ही हैं …है कहाँ वो ?”

सूरज :-(उंगली से सड़क की ओर इशारा करते हुए ) वो देखो …वो आ रही हैं “

अंकित बुदबुदाते हुए …ये बात पहले मेरे दिमाग मे क्यों नहीं आयी …जैसे ही सरोज अंकित के पास आई ..अंकित उनका हाथ पकड़ते हुए बोला 

“माँ एक बात बताओ …याद है आपको जब अंकल ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया था …

सरोज :-(नजरें चुराती हुई सी )“उन्हें माफ कर दे अंकित,अपनी इस गलती को मान लिया है उन्होंने अंकित :-“अररे …मुझे उनसे कोई नाराजगी नहीं …आप सुनिए तो …याद है जब आपके हाथ पर मैंने दो हज़ार रुपए रखे थे ..

सरोज :-“हाँ ..हाँ …याद है.(.फिर अंकित के सिर पर हाथ फेरते हुए) तुझे पैसे चाहिए …बोल ना कितने पैसे चाहिए”

अंकित :-“पैसे नहीं माँ .वो लड़की …वो जिसने आप के सामने पूछा था कि ‘कितना किराया है’ फिर उसने तीन हज़ार रुपए दिए थे मुझे, जिनमे से दो  हज़ार आपको दे दिए थे …वो लड़की आपने देखी थी ना “

सरोज :-(सूरज की ओर देखकर फिर अंकित से )कौन सी लड़की ?मैंने तो किसी को नहीं देखा था “

अंकित :-(आवाज तेज़ करते हुए)”कैसी बात कर रहीं हैं आप ? ठीक से याद कीजिये ना …वो बिल्कुल मेरे पास खड़ी थी …अररे आपके सामने ही तो उसने मुझे पैसे दिए थे”

सरोज :-“तूने पैसे दिए थे ..सच है …एक हज़ार रुपये तेरे पास बचे थे… देखा था …तू दरवाजे की ओर मुँह करके बात कर रहा था अजीब सा तो लगा …फिर लगा तू परेशान है इसलिए ..

अंकित ,सूरज की ओर आश्चर्य से देखकर बोला “ये बोले क्या जा रही हैं यार ..इनके बिल्कुल ठीक सामने थी वो “

सरोज दुखी होते हुए ,साड़ी का पल्लू मुँह पर रख कर “मैंने किसी को नहीं देखा …किसी को नहीं ” सूरज ने अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “आराम से यार “

और सरोज वहाँ से उठ कर चली गयीं ….थोड़ी देर सूरज ,अंकित को डिस्चार्ज करा के घर ले आया ..शॉल ओढ़े और सिर पर पट्टी बाँधे अंकित को दरवाजा खोलते ही सरोज दिखीं, तो अंकित ने उनसे ये बोलते हुए कि “माँ ..माफ कर दो मुझे..इतनी तेज आवाज में बात नहीं करनी चाहिए थी मुझे ..दरवाजे की ओट की वजह से नहीं देख पायी होंगी आप..जो हुआ भूल जाइए ” 

सरोज :-(अंकित के सिर पर हाथ फेरते हुए ) “मैं तुझसे बिल्कुल नाराज नहीं हूं..बस्स ये तेरी हालत नहीं देखी। जाती मुझसे…अच्छा तुम दोंनो ऊपर जाओ मैं कुछ अच्छा सा बना कर लाती हूँ”

दोनो अंकित के कमरे में आ गए …और अंकित अपना सिर पकड़कर बैठ गया ..

अंकित :-“सिगरेट है क्या”?

सूरज :-” हाँ… है ..क्यों”?

अंकित :-“लाओ एक दो ..तो जरा “

सूरज :-“(आश्चर्य से)तुम पिओगे ?(अंकित के हाँ में सिर हिलाते ही ) हरगिज़ नहीं …मैं तुम्हें इस राह पर नहीं मुड़ने दूँगा ..

अंकित :-“तुम देते हो या दुकान से लाऊँ अभी “

सुरज :-“ठीक है ..(सिगरेट जला कर देते हुए) लेकिन देखो बस्स आज …आदत नहीं पड़नी चाहिए “

पहला कश लेते ही अंकित को खाँसी आ जाती है और सूरज उसकी पीठ पर हाथ फेर ,उसे दिलासा देते हुए कहता है “मैं तुम्हें देवदास नहीं बनने दूँगा,सब ठीक हो जाएगा.यार… फिक्र मत करो “

अंकित :-“तुम्हारी शादी को कितना वक्त हुआ होगा”?

सूरज :-“हुए होंगे चार या पांच साल ..क्यों”

अंकित:-“तुम्हें शुरू से ही पता था..कि ये शादी ठीक नहीं …और आज भी वही लगता है …इसका मतलब जानते हो ?”

सूरज :-(मुँह खोले हुए )”क्या कहना  चाहते हो “?

अंकित:-“यही …कि वक़्त के साथ कभी कुछ ठीक नहीं होता …कभी नहीं ..हम ही हार मानकर ..मजबूरी का नाम लेकर समझौता कर लेते हैं …फिर सारी जिंदगी तिल – तिल मरते रहते हैं”

सूरज के चुप होने पर अंकित ने कहना जारी रखा 

“तुम्हे दुःख नहीं पहुंचाना चाहता.. बल्कि समझाना चाहता हूँ”

सूरज :-“बात ठीक है तुम्हारी ….सच मे ठीक है .लेकिन फिलहाल तुम्हारे केस में अब तक जो सामने आया है …सिवाय सब्र के और हो भी क्या सकता है..”

अंकित :-“.एक ही फलसफा रहा है मेरी जिंदगी का ‘जब तक एक काम खत्म ना हो ,दूसरे काम को हाथ मत लगाओ ..चाहे वो पढ़ाई हो या जिंदगी.. मैंने यही नियम अपनाया है”

सूरज :-“अब तो सब कहते हैं… कि भाभी …”

अंकित:-“सब से कोई मतलब नहीं मुझे ..प्यार मैं करता हूँ उससे …सब नहीं….अगर किसी ने उसे गायब कराया है,तो चाहे जो हो.वो ..छोड़ूंगा नहीं उसे …खुद गायब हुई है ..तब तो सामने आना ही होगा उसे, जवाब देना होगा मेरे सवालों का.

(आवाज तेज़ करते हुए ) कोई मज़ाक है क्या ..अंकित की जिंदगी ?..कि कोई आया मेरे जज़्बातों के साथ खेला और चला गया ..कहाँ गयी होगी आसमान में? …तो उतरेगी नीचे… अगर जमीन में होगी तो ,खड्डा खोद कर निकालूँगा.. मर गयी होगी ,तो रो लूंगा .. लेकिन जब तक ये चैप्टर बंद नहीं कर दूँगा चैन  से नहीं बैठूंगा 

सब में समझौता  किया है मैंने.. चाहे पढाई का फ़ील्ड हो..चाहे नौकरी हो .. जानते हो क्यों?..क्योंकि सौ परसेंट नहीं दिया अपनी ओर से कभी…लेकिन इस रिश्ते को …अनामिका को ..सौ परसेंट दिया है …और बदले में सौ परसेंट ही चाहिए मुझे …एक परसेंट कम नहीं…

फिर सूरज को पाँच सौ रुपए पकड़ाते हुए “.सूरज ..एक या दो बोतल खरीद कर दे जाओ मुझे ..ताकि सो सकू और तुम अपने घर जाओ बीबी ..बच्चों को देखो ..मेरी फिक्र मत करो ..जब तक उससे मिल नहीं लूँगा.. ..देख नहीं लूँगा  तब तक…हार नहीं मानूँगा….ना ही मरूँगा…”

बात पूरी कर अंकित ने सिगरेट फ़ेंकी उसे अपने पैर से बुझाया और तेज़ कदमों से बाहर निकल गया ………….सूरज बड़े ध्यान से उसे सुनता रहा और अंकित के पीछे पीछे दौड़ गया…….

25

सूरज लगभग भागता हुआ सा अंकित के पीछे -पीछे आया और बिल्कुल उसके पास आते हुए अपने घुटनों पर झुककर.हाँफता सा बोला “रुक जाओ अंकित ..कहाँ जा रहे हो “

“तुम क्यों आ रहे हो..मेरे पीछे …कहा ना बोतल खरीद कर रख दो और जाओ ” अंकित ने रुक कर जवाब दिया और फिर चलने लगा 

“कल तुम कुछ और थे …आज तो साले …आग फेंक रहे हो तुम ..हुआ क्या ऐसा “? 

सूरज  ने आश्चर्य से पूछा…दौड़ने की वजह से अब भी हाँफ रहा था..अंकित रूका और रास्ते मे बनी एक मुँडेर पर बैठ गया और बोला 

“तो क्या करूँ बताओ ?…ये तो तय है उसे ढूंढूंगा, लेकिन कैसे कहाँ ..कुछ समंझ नहीं आ रहा ..लगता है इसमें वक़्त लगेगा ..और तुम्हें अपना घर तो देखना पड़ेगा ना यार ” अंकित ने अपना दाहिना हाथ सिर के बालों में फसांते हुए कहा

सूरज :- (उसी मुंडेर पर अंकित के पास बैठते हुए )”हद्द है इतना सब हो गया ..तुम अभी भी मानने को तैयार नहीं ?

सूरज :-“कैसे मानूं बताओ ना…एक दिन की बात होती तो सपना  समंझ कर भूल भी जाता..लेकिन..दो महीने..सुना.. दो महीने ..ना जाने कितने सपने देख डाले इस दौरान…कितना वक्त साथ गुजारा…मेरी जिंदगी का अस्तित्व ही उस से है .. एक ही मकसद है अब …कहीं भी हो ..ढूंढ निकालूँगा उसे “

सूरज कुछ देर चुप रहने के बाद “एक बात मानोगे मेरी ..डॉ लाल के पास चलो ..”

अंकित :-(तेज़ आवाज में) “मुझे किसी डॉ लाल या पीले के पास नहीं जाना.. …एक बार और मत बोलना ऐसा कुछ…(हाथ जोड़कर) मुझे अकेला छोड़ दो …जाओ अपने बीबी बच्चों के पास”?

सूरज :-(ताव में आते हुए )”नहीं जाऊँगा ..कहीं नहीं जाऊँगा ..तुम्हें यूँ अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला “

अंकित :-“अकेला ?अकेला ही तो हूँ ..और कौन है साथ मेरे ?..तुम्हें  भी तो यकीन नहीं …ना मुझ पर .ना मेरी बात पर.”

सूरज :-“समझते क्यों नहीं …अर् रे सोचो ना… किसी ने तो देखा होता …किसी ने नहीं देखा ताज्जुब नहीं लगता तुम्हें …? ना सरोज आँटी ने…ना मैंने ..ना ही किसी और ने ..”

अंकित :-“(आसमान की ओर देखकर )“मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता .. …ना देखा हो किसी ने …मैंने तो देखा है …मैंने प्रेम किया उससे…उसने मुझसे …ये जो दुनिया कहती फिरती है चाहत सच्ची हो तो मिल कर रहती है…जैसा आप दूसरे को देते हैं बदले में वैसा ही मिलता है…तो क्या ये सारी बातें बस्स कहने भर को है?…जब मेरे प्यार में कोई कमी नहीं तो क्यों नहीं मिलेगी मुझे? …बताओ ना यार ” 

एक गहरी साँस छोड़ते हुए सूरज ने अपने माथे पर हाथ फेरा और कुछ पल चुप रहकर बोला 

“ठीक है..यही सही …जब तक सच सामने नहीं आ जाता ..जब तक तुम्हे पूरी तरह  तसल्ली नहीं मिल जाती……मैं  तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा …अब ठीक है “

अंकित ने मुंडेर से उतरकर, मुस्कुराते हुए सूरज को गले लगाया और बोला “हाँ ये ठीक है” 

सूरज :-“तो क्या सोचा है..फिर”?

अंकित :-“पता नहीं ….दिमाग जैसे बन्द है”

सूरज:-“भाभी के किसी रिश्तेदार का पता या फ़ोन नम्बर तो होगा नहीं ना?

अंकित:-” नहीं …यार ..किसी का नहीं ..बहुत बड़ी गलती कर दी …पूछा ही नहीं कभी”

सुरज:-“हम्म चलो ..इस्पेक्टर नवीन के पास चलते हैं”

अंकित :-“मुझे नहीं लगता नवीन मदद कर पायेगा”

सूरज:-“कुछ और समंझ में भी तो नहीं आ रहा अभी..

.(फिर रुककर  ) वैसे एक जान पहचान वाला है तो सही …वो किसी विधायक के यहाँ काम करता है …ऊँचे रसूख वाला कोई मदद कर सकता है हमारी”

अंकित :-“ठीक है चलो फिर “?

सूरज :-“आज बाहर है वो …नहीं मिलेगा …”

सूरज ने जब नजर उठाकर अंकित की ओर देखा वो निढाल सा सड़क पर ही बैठ गया …सूरज को उसकी दशा पर बड़ा तरस आया ..अपना हाथ उसकी और बढ़ाकर बोला “चलो …हाथ दो “

अंकित :-“कहाँ ..”? 

सूरज :-“अरे उठो तो …दिमाग को खुराक मिलेगी तो कुछ सोच पायेगा ना”

सूरज ने अंकित का हाथ पकड़कर उसे उठाते हुए कहा …दोंनो उठे और सूरज उसे टैक्सी में बिठा ले गया,टैक्सी में बैठ थोड़ी देर बाद अंकित ने उससे हाथ के इशारे से इस भाव मे पूछा कि ‘कहाँ ले जा रहे हो ‘..लेकिन सूरज ने उसे अपने हथेली दिखाते हुए तसल्ली से बैठे रहने का इशारा किया …थोड़ी देर में टैक्सी एक जगह रुकी और टैक्सीवाले को पैसे देकर सूरज, अंकित का हाथ पकड़ते हुए उसे साथ ले गया ..प्रवेश द्वार पर दोंनो जब पहुंचे तो अंकित ने देखा दरवाजे के ऊपर लिखा था “मैक्स डिस्कोथैक ” .जब उसकी नजर सूरज पर पड़ी तो वो अपनी गर्दन हिलाते हुए झूम रहा था और मुस्कुराते हुए अंकित से बोला 

“अच्छा सोचा ना मैंने ..आजा …चल अंदर चले “

सूरज से अपना हाथ छुटाकर,  खीजते हुए अंकित बोला 

“ये सब है क्या ?..एक तरफ अनामिका नहीं मिल रही है…दूसरी तरफ कोई  रास्ता नहीं सूझ रहा है ..कि कैसे करूँ क्या करूँ… ..बिल्कुल दिमाग नहीं है क्या तुम्हारे पास,..एक- एक मिनट भारी पड़ रहा है…और तुम मुझे यहाँ .ले आये हो..

सूरज मुँह खोले जीभ को अपने ऊपर वाले साइड के दांतो पर टिका कर पहले तो अंकित को देखता रहा फिर बोला

“मेरे भाई भरोसा तो रख …जो हमारे समंझ में आया हम करके देख चुके हैं..अब एक ही रास्ता फिलहाल समंझ आ रहा है और वो ये कि, कोई दबदबे वाला आदमी जिसकी बात पुलिस भी माने और बाकी के लोग भी,…तो .उसके लिए भी कल चल रहे हैं ना .. ..वो सेक्रेटरी है यार …मिलना हो गया तो समझो सारी मुश्किल हल …ये सब पुलिस वुलिस सब भाग भाग कर  काम करेंगे और भाभी मिल जाएगी …दिमाग को भी शांत करना जरूरी है ना ,इसलिए यहाँ लाया हूँ तुम्हें …. “

अंकित के पास कुछ भी बोलने को ना रहा और उसे शांत देख सूरज ने उसका हाथ पकड़ा और अंदर की तरफ खींच कर ले गया ..डाँस करने के लिए बोला ,लेकिन अंकित के मना कर दिया,तो सूरज ने  उसे एक सॉफ्ट ड्रिंक बनवा कर दे दी और खुद जाकर फ्लोर पर डांस करने लगा ..अंकित बहुत देर उदास बना रहा फिर सूरज को डांस करते देख उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी ..कुछ ही मिनट हुए होंगे कि अंकित का मन उचटने लगा वहाँ से ..और दोनों बाहर निकल आये …सूरज अंकित के साथ चलने लगा ..कुछ देर दोनों चुप रहे ..

अंकित :-“पता है सूरज …एक बार मैंने अनामिका से कहा कि मुझे यहीं अपने पास रुक जाने दो …जानते हो उसने क्या कहा “?

सूरज :-“हम्म… क्या “?

अंकित :-“बोली कि घर पर कोई नहीं है …तुम्हारा रुकना संस्कारों के खिलाफ माना जायेगा ..कितनी सुलझी हुई सोच है ना “

सूरज :-“हम्म ..”

अंकित :-“ऐसा लगता है मानो सदियां बीत गयीं हैं उससे मिले..काश मैंने उसकी बात मानकर सिंदूर भर दिया होता ..तो शायद वो  जवाबदेही की जिम्मेदारी महसूस करती ..और कम से कम मुझे बता कर तो जाती ..

“सूरज :-(गर्दन हामी में हिलाते हुए ) “हम्म”

अंकित :-“सूरज… मैं उसके बिना नहीं जी पाऊँगा …नहीं .जरूर वो किसी मुसीबत में है और मैं यहाँ चैन से हूँ”

सूरज :-“कहाँ चैन से हो तुम …कितने तो ..परेशान हो यार .. “

अंकित :-(आवेग में) “परेशान होने से वो मिल तो नहीं गयी …जहाँ उसके बिना एक पल जीना नहीं चाहता था …वहीँ कितने दिनों से उसके बिना जिये जा रहा हूँ …धिक्कार है ऐसी जिंदगी पर”

बोलते हुए उसने अपने पैर को सड़क पर लगे खम्बे पर तेज़ी से मारा..सूरज ने उसे पकड़ा और सड़क से दूर , एक पत्थर पर बिठाते हुए बोला

“पागल हो गए  हो क्या ? कैसी बातें कर रहे हों..अभी कुछ देर पहले तो बड़े जोश में थे..”

अपनी दोनों हथेलियां सूरज की ओर खोलते हुए अंकित झुंझलाते हुए बोला

“तो क्या करूँ …बताओ ना ..करूँ क्या…कभी तो इतना गुस्सा आता  है ..कि अगर सामने आ जाये ना …तो  दो तमाचे  गालों पर जड़ दूँ  …उसके बाद  पूंछू कि बताओ कहाँ गयी थी? ….फिर …माफ़ी मंगवा लूँ और ये हामी भी भरवा लूँ कि अगली बार कहीं भी जाये मुझे बता कर जाए ….. लेकिन …जब उसका चेहरा आँखों के सामने आता है…. तो…तो  सारी गुस्सा पता नहीं कहाँ उड़ जाती है….”

सूरज :-“अब क्या बोलूं यार थोड़ा धैर्य रखो ..मिल जाएंगी ..और अभी दिन भी कितने हुए हैं..वक़्त लगता है यार “

अंकित :-“दिन ?….मुझसे पूछो ये जिंदगी नर्क है उसके बिना….एक- एक पल सालों सा लग रहा है , नहीं …नहीं ..बस्स बहुत हुआ …कल हम उस …क्या बताया था तुमने …?”

सूरज :-“वो विधायक का सेक्रेटरी “?

अंकित :-“हाँ वही कल उससे मिलते हैं…काम बना तो ठीक  वरना  मीडिया और अनशन का सहारा लूँगा …”

सूरज :-“ठीक है …जो तुम्हे ठीक लगे करो…मैं साथ हूँ तुम्हारे”

अंकित :-(हँसते हुए )”सबसे पहले तुमसे मिलवाऊंगा उसे …कहूँगा.. ये देखो तुम्हारा लाडला देवर ..और मेरा जिगरी यार”

सूरज :-“हा हा हा “

अंकित :-“मेरे दुख का साथी ..सच मे सूरज ….तकदीर तो अच्छी है मेरी ..तुम जैसा दोस्त मिला ..अनामिका जैसी प्यारी और काबिल लड़की का प्यार मिला … ये अच्छी तकदीर ही तो है…  बस्स अभी शायद तकदीर परीक्षा ले रही है …अच्छा तुम्हें अनामिका के हाथो का खाना खिलवाऊंगा.. “

सूरज :-“अच्छा खाना बनाती हैं क्या भाभी  “?

अंकित :-“उँगलियाँ भी खा जाओगे तुम साथ में ..इतना अच्छा पकाती है”

सूरज :-(मुस्कुराते हुए) “अच्छा …ठीक है भई  देखेंगे “

अंकित :-“एक बार मैंने उससे बोला कि इतनी टेस्टी कॉफी कैसे बना लेती हो ..? तो उसने कई बार मुझे कॉफी बनाने का तरीका बताया “

सूरज :-“फिर..तुम्हें आया बनाना ? “

अंकित :-” आता तो तब ना .. जब ध्यान से सुनता ..हा हा ..

सूरज :-“हा हा हा “

अंकित :-“पूछता ही इसलिए था कि वो मेरे सामने बैठकर बोले और मैं, उसे कुछ पल और देख सकूँ…तब तक उसे प्रपोज़ नहीं किया था …तो बस्स उसे देखता रहता ..क्या करूँ है ही इतनी प्यारी  ..बहुत खूबसूरत है ….आह ..बहुत ही ….(फिर चाँद की ओर उँगली कर  )..बिल्कुल ऐसी ही  …जिस वक्त उसने कहा कि मांग भर दो मेरी ….मैं पागल इतना  खुश हो गया था.. कि उसे ये नहीं बता पाया कि तुम आज रोज़ से भी ज्यादा सुंदर दिख रही हो …बिल्कुल चाँद जैसी  …आह .. “

फिर एकदम शान्त होकर शून्य में निहारने लगा उसे ऐसे देख सूरज ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला “चलें ?”

अंकित “हम्म..”

सूरज ने आगे बढ़कर टैक्सी रोकी तो अंकित बोला “सूरज …मैं सोच रहा हूँ … जब यहाँ तक आ ही गये हैँ तो क्यों ना पुलिस स्टेशन चलें ..”

सूरज :-“तुम ही तो कह रहे थे यार …कि नवीन मदद नहीं कर पायेगा “

अंकित :-” सो तो अब भी कहता हूँ ..लेकिन क्या पता कुदरत को हम पर तरस आ जाये शायद …शायद कोई मदद या सुराग ही मिल  जाये ..एक बार और पूछने में हर्ज़ ही क्या है “

सूरज :-“ठीक है …चलो चलते हैं “

दोनों टेक्सी में बैठे और पुलिस स्टेशन पहुंच गए ..

***

पुलिस स्टेशन में नवीन बैठा मिला ,उसने जैसे ही अंकित और नवीन को देखा ..तो बोला

“अरे ..अंकित …आओ …आओ ..अच्छा हुआ तुम खुद ही आ गए वरना मैं खुद आने वाला था तुम्हारे पास ” मेज़ पर रखे अपने पैरों को उसने नीचे करते हुए कहा 

तो अंकित बड़ा उत्साहित होकर बिल्कुल उसके पास जाते हुए बोला 

“क्या पता लगा सर्.. बताइये ना “

“ऐसा है अंकित …तुम्हारे लिए अच्छा यही रहेगा कि तुम सच्चाई स्वीकार कर लो,(अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए ) अनामिका इस दुनिया मे नहीं है ..”

अंकित :-(चीखते हुए ) ” बकवास …बिल्कुल बकवास ..झूठ है ये”

इंस्पेक्टर नवीन :-“उसकी मौत का अंदाज़ा तो पहले ही था मुझे.. लेकिन तुम्हारी बातों में आकर ..और तुम्हे ,अपने दिए गए वचन की खातिर फिर से तफ्तीश की मैंने …..मुझे लगता है तुम्हारी मुलाकात किसी अनामिका की हमशक्ल से हुई होगी …अनामिका से नहीं “

सूरज :-“जान सकता हूँ इतने विश्वास से किस आधार पर कह रहे हैं आप “?

इंस्पेक्टर नवीन :-” बिल्कुल …  पुलिस को अनामिका की डेड बॉडी मिली थी..

अंकित दीवार से लगकर हाँफने लगा और उसके मुँह से ‘नहीं ..नहीं …ये नहीं हो सकता “

नवीन ने कहना जारी रखा “….और ये बात डेड बॉडी की फ़ोटो सहित ,इस फाइल में दर्ज है …

नवीन ने अपनी बात पूरी भी ना कर पाई थी कि ‘धड़ाम ‘की आवाज हुई ,चौंक कर ,इंस्पेक्टर नवीन और सूरज  ने पलटकर देखा तो अंकित बेसुध होकर नीचे  जमीन पर पड़ा था …….

26

सूरज दौड़ते हुए अंकित के पास पहुंचा और उसका सिर अपनी गोद मे रख लिया फिर उसे हिलाते हुए

 “अंकित …अंकित…तुम ठीक तो हो…आँखें खोलो अंकित”

 नवीन पानी का गिलास उठा कर लाया और अंकित के मुंह पर छीटें मारते हुए 

“अंकित …अंकित  …..”

 अंकित बिना आंखे खोले बड़बड़ाया  “अ   ना  मि  का ….अ   ना  मि  का

 सूरज ने सुलगती आँखों से इंस्पेक्टर नवीन की ओर देखा और गुस्से में बोला .

 “क्या कहा था तुमने ? दोस्ती की खातिर तुमने तफ्तीश की ? यही ना?…ऐसे बताते हैं .दोस्त को ? जबकि पता है किस कदर दीवाना है ये अनामिका के लिए ….कोई इंसानियत भी है तुममे …या नहीं… कुछ हुआ ना इसे…तो बता रहा हूँ नवीन …सारी इंस्पेक्टरी भुला दूँगा मैं तुम्हारी …दूर हटो …”

नवीन को शायद अपनी गलती का एहसास था इसलिए कुछ नहीं बोला रास्ता  देते हुए दूर हट गया …सूरज ने अंकित को उठाया और टैक्सी में लिटा कर हॉस्पिटल ले गया …डॉ ने बताया कि अंकित की  बेहोशी की वजह ..कमजोरी और तनाव है …और अंकित को इंजेक्शन लगा कर थोड़ी देर हॉस्पिटल में रखा..फिर डिस्चार्ज  कर दिया….सूरज …अंकित को उसके घर ले गया …जैसे ही अंकित अपने कमरे में पहुँचा बोला

“सूरज ..वो  इंस्पेक्टर झुठ बोलता है “

 सूरज भी बहुत थक गया था …बिस्तर पर लेटते हुए बोला .

 “.तुम तय कर लो अंकित …मानना क्या है…”?

 अंकित :-“मतलब “?

 सूरज :-“मतलब ये कि एक बार कहते हो मुझे किसी के कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता… फिर जब कोई कुछ बोलता है तो तुम अपना होश खो बैठते हो …बच्चा -बच्चा जानता है कि नवीन पाँच सौ रुपये तक मे बिक सकता है…फिर उसके बोलने से क्या फर्क पड़ता है “

अंकित :-“हाँ …सही कहते हो तुम “

लेटते हुए बोलता है .. और फिर जल्दी ही उसे नींद आ जाती है ….थोड़ी देर बाद ही उसे अपने माथे पर किसी के हाथ की छुअन  का एहसास होता है,आंखे खोल कर देखता है .

 “हे… ….अनामिका……….तुम….(आश्चर्य और खुशी से उसके मुँह से निकलता है और वो उठकर बैठते हुए) “कहाँ चली गयी थी तुम …तुम ठीक तो हो…कितना ढूंढा मैंने तुम्हें …

 (वो उठी और बाहर चली गयी …अंकित उसके पीछे जाते हुए)

 “कहाँ चली गयी थी …बताओ ना..मैं बता नहीं सकता …कितना खुश हूँ तुम्हें देखकर … “

 वो पलटी और अंकित के गले लगकर बोली

 “मैं भी बहुत खुश हूँ ..अंकित ..बहुत “

 “तुम ठीक तो हो “

 “हम्म”वो सिर हिलाकर बोली

 “बताओ ना कहाँ चली गयी थी…जानती हो सब क्या कहते हैं”

 “क्या “?

 “.तुमने बताया नहीं ..कहाँ थी तुम ..जिस से भी पूँछा सब ये ही बोले कि तुम इस दुनियां में …खैर छोड़ो क्या फर्क पड़ता है ….तुम यहाँ तक कैसे पहुँची  क्या आँटी ने दरवाजा खोला ..पता है वो भी यही कहती थी कि….मैं भी क्या बोले जा रहा हूँ …ये बताओ क्या राहुल ने तुम्हें…बस्स एक बार नाम बताओ तुम उसका … छोड़ूंगा नहीं ?

 “अंकित …सही कहते हैं …लोग “

 “क्या …क्या मतलब .”?

 “मतलब ये …कि मैं जीवित नहीं हूँ…”

 “क्या …”(मुँह खोल कर ) क्या बाहियाद मजाक है ये “?

 “मैं सच कह रही हूँ …अंकित …जब तुमने मुझे पहली बार देखा था …मैं तब भी जीवित नहीं थी …”

 “क्या बकवास किये जा रही हो “

 फिर उसने पास आकर अंकित के हाथों को पकड़ते हुए कहा

 “मैं सच कह रही हूँ …अंकित”

 अंकित:-“मेरा दिल बैठा जा रहा है …कह दो ये सब झूठ है”

अनामिका :-“काश होता… लेकिन सच है…बिल्कुल सच …”

 अंकित:-“मैं कैसे मान लूं “

 अनामिका :-” ऐसे, कि तुम्हारे सिवा किसी ने नहीं देखा मुझे…अगर जीवित होती तो सब देख पाते…उस बंगले में ना रह रही होती …जहाँ कोई देखना तक नहीं चाहता “

 अंकित आँखे फाड़े और मुँह खोले उसे ताक रहा था ..बहुत देर चुप रहा फिर बोला :-

“वो …वो तुम्हारे पेरेंट्स का बाहर होना …”

 अनामिका :-“झूठ था..वो हैं ही नहीं …हम सब एकसाथ ही मरे थे सामूहिक आत्महत्या में”

 अंकित :-“क .क..कैसे ..”?

अनामिका :-“मेरे पिता जिनका नाम कन्हैया लाल था, उन्हें जुआं खेलने की लत लग गयी वो राव अंकल के यहाँ ही काम करते थे,सब अच्छा चल रहा था,लेकिन धीरे -धीरे वो कर्ज़ में डूबने लगे …प्रोपर्टी के नाम पर जो भी था सब बिक गया… लेकिन उनकी आदत नहीं छूटी ..हमारा घर, वो बंगला, जहाँ तुम आते रहे …वो भी गिरवीं रख गया…राव अंकल से भी उन्होंने लोन लिया था..लेकिन कर्ज़ सिर के ऊपर हो गया था..उनकी इस हालत का पता राहुल को लग गया था…उसकी कुछ माफिया लोगों से जान पहचान थी …जिससे मेरे पिता को और पैसा उधारी पर मिल गया….इस सिलसिले में उसका घर आना -जाना भी हुआ ….फिर ….

 अंकित :-“फिर “?

अनामिका:-“फिर एक दिन वो मेरे घर से जाने के लिए निकल रहा था और में कॉलेज से घर आ रही थी …तभी उसने मुझे देखा…… उसने मेरे पिता से कहा कि वो शादी करना चाहता है मुझसे ,जब उन्होंने मना किया तो उसने मेरे पिता की सच्चाई  सबके सामने लाने की धमकी दी साथ ही  जो पैसों की मदद  की थी मेरे पिता की, उसका दबाव  भी डाला, मेरे पिता इस सबसे बाहर निकलने का उपाय सोच ही रहे थे कि एक दिन…एक दिन वो राव अंकल के साथ घर आ गया ..राव अंकल ने ..राहुल के लिए मेरा हाथ माँगा..मेरे पिता जानते थे राहुल अच्छा लड़का नहीं है ..मेरे लायक नहीं है…लेकिन वो राहुल के सामने लाचार थे..और राव अंकल की बहुत इज़्ज़त करते थे …मैंने उस वक़्त उन्हें अकेले में ले जाकर कहा

“ना तो मैं अभी शादी के लिए तैयार हूँ… नाही राहुल को पसंद करती हूँ” उस दिन उन्होंने मुझे अपनी मजबूरी बताई और उनकी बात मानने की प्रार्थना की …साथ ही कहा कि वो जल्दी ही इस समस्या का कोई हल निकालेंगे ..और मेरी शादी उससे नहीं होने देंगे बस्स अभी हाँ कर दूँ …मैं कैसे इनकार करती ? …राव अंकल अपने साथ दो अंगूठी लाये थे ..वहीँ हमने एकदूसरे को अंगूठियां पहना दी…(सुबकने लगती है )

अंकित :-“.(दाँत भीचते हुए ) तभी …तभी …उसने कहा कि …..मक्कार कहीं का “

अनामिका :-“फिर उस दिन के बाद वो जब तब मुझसे राह चलते बात करने की कोशिश करता या हक जमाते हुए घर आ जाता …लेकिन मुझे उससे एक शब्द बोलने का भी मन ना करता…उल्टा दिन रात मैं परेशान रहने लगी …वो शादी के लिए मेरे पिता  और मुझ पर दवाव बनाने लगा ..जब इससे भी बात ना बनी तो …उसके कहने पर वो गुंडे मेरे पिता को धमकाने लगे ..सारे दिए गए कर्ज़ की मांग करने लगे …फिर …फिर …कोई उपाय ना मिलने से मेरे पिता इतने हताश हो गए..कि एक शाम बाज़ार से खाना लाये उसमे जहर मिलाया …मुझे और मेरी माँ को खिला दिया …उसके बाद अपनी मजबूरी बताई…राहुल से मेरी शादी हो उससे अच्छा उन्होंने मेरा जाना बेहतर समझा …और बाद में खुद भी वही खाना खाकर अपनी जान दे दी ….एकसाथ तीन मौतों वाला मेरा प्यारा घर हॉन्टेड बंगला ‘बन गया …..”

अपनी पूरी बात कहने के बाद वो चुप हो गयी …और अंकित भी फिर कुछ याद करते हुए बोला

“बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ …बहुत बुरा …(गुस्से में ) मैं राहुल को छोडूंगा नहीं “

 अनामिका :-“उसकी कोई जरूरत नहीं “

 अंकित :-“क्यो”?

 अनामिका :-“वो जुर्म के रास्ते इतना बढ़ चुका है..कि हर दिन तिल -तिल मर रहा है…उसे उसके किये की सज़ा खुद ही मिल रही है.. नहीं तो मैं उसे जरूर मार देती”

अंकित :-“(कुछ याद करते हुए )तो फिर एक बात बताओ..राखी .राखी को तुमने ही मारा ना”?

 अनामिका:-“नहीं .तुमसे उसकी बहुत तारीफ सुनी थी…इसीलिए मैं उसे देखने जरूर गयी थी ..लेकिन उसकी मौत में मेरा कोई हाथ नहीं ,कार्डियक अटैक से मौत हुई थी उसकी “

 अंकित :-“रुचिका …क्या उसके एक्सीडेंट में तुम्हारा हाथ था”?

 अनामिका :- ( हामी में सिर हिला देती है )

 अंकित :-“क्यों किया तुमने ऐसा… वो आज ना जीवित है ना मरी हुई है…क्या बिगाड़ा था उसने तुम्हारा..बोलो …”

 अनामिका :-“मैं उस वक़्त तुम्हारे साथ ही थी एक साये की तरह ..रुचिका स्कूल के समय मेरी क्लासमेट रह चुकी थी..और अंत तक मेरी अच्छी दोस्त बनी रही थी …कोई जाती दुश्मनी नहीं उससे मेरी..लेकिन उस दिन..सही वक्त पर अगर उसका एक्सीडेंट ना होता तो वो शायद मेरे बारे में तुम्हें सब बता देती ..मैं तुम्हें किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी..

 सामने से आ रहे ट्रक की स्पीड को मैंने ही बढाकर उसे रुचिका की कार से टकरा दिया था…”

अंकित :-(गुस्से में ताली बजाते हुए )” क्या बात है…फिर मुझे क्यों नहीं मार दिया..हाँ …मुझे मारने का तो ये नायाब तरीका निकाला ना तुमने…जीते जी मारने का इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है ..प्रेम का नाटक किया मेरे साथ ..मतलब जब मैं बेवकूफ अपनी मन की बातें किया करता था तुमसे..तब ..तब  तुम तो मेरा  मजाक बनाती होगी ना ..अररे क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा.मुझे ही क्यों चुना तुमने..(चीखते हुए ) बोलो”?

अनामिका:-“तुम्हें तब देखा था जब तुम बस से उतरे थे ,यहाँ आये थे..अपनी माँ के गम के डूबे हुए …मुझे मेरे जैसे लगे थे..लेकिन मैं तो भटकती हुई महज एक आत्मा थी ..जैसे ही ये बात याद आयी ..मैंने देखकर भी अनदेखा कर दिया तुम्हें.. फिर उस दिन जब तुम अपने घर के बाहर, बेघर बैठे थे..ना तो तुम्हारे पास एक रुपया था..ना ही खाने का ठिकाना ..तब मैं खुद को नहीं रोक पायी.और.तुम्हारे सामने आ गयी …जैसे मैं भटक रही हूँ.. वैसे ही मेरे पेरेंट्स भी ..उन्होंने बहुत मना किया मुझे …लेकिन तुम्हारा दुख नहीं देखा गया मुझसे …उस दिन जब तुमने मेरे घर पर कुछ आवाजे सुन कर एक कमरे का दरवाजा खोल दिया था ..तुमने उनकी ही आवाजे सुनी थी …

 अंकित :-“ओह्ह …( निढाल सा अंकित जमीन पर बैठ गया )

 अनामिका :-“अंकित …रुचिका की फिक्र मत करो …जल्दी ही होश आएगा उसे…वो ठीक हो जाएगी “

 अंकित :-” तुम्हें कैसे पता …(फिर सर पर हाथ मारते हुए) ओह्ह मैं तो भूल गया था.कि तुम तो ..तुम तो …(उसकी आँखों से आंसू बह निकले )

 अनामिका :-“भविष्य नहीं देख सकती मैं…बस्स कुछ ऐसे परिवर्तन देखे हैं उसमे ..जो अभी कोई और नहीं देख पाया है”

 अंकित :-“अच्छा ..एक बात बताओ ,तुम अपने बारे में.. … पहले ना सही …कम से कम तब तो बता ही सकती थी जब मैं तुमसे प्यार करने लगा था…”

अनामिका:-“शुरुआत में .. तुम्हें मार कर अपने साथ ले जाना चाहती थी ..लेकिन उस दिन तुम्हें, तुम्हारी माँ ने बचा लिया …और वक़्त बीतने के साथ मैं खुद तुमसे गहराई से प्रेम करने लगी …और ऐसा नहीं कर पाई …मैं तुम्हें खोना भी नहीं चाहती थी …जानती थी जिस दिन ,तुम्हें मेरी सच्चाई का पता लगेगा ..उस दिन मैं तुम्हें और तुम्हारे प्यार ,दोनों को खो दूँगी …”

 अंकित:-“अच्छा ..इतना ही प्रेम करने लगी थी तो बिना बताए क्यों छोड़ गयी…बोलो ..तब नहीं आया मेरा ख्याल”?

 अनामिका:-“आया था ..लेकिन जब तुमने वो उदाहरण देकर मुझसे पूछा ‘कि कोई अमीर और संपन्न घर का लड़के से मेरे पेरेंट्स मेरी शादी करना चाहें तो क्या करूँगी ” उसी दिन समंझ गयी थी मैं… जल्दी ही तुम मेरी सच्चाई जानने वाले हो ..मैं उस पल का सामना नहीं करना चाहती थी..जब तुम मुझे छोड़ देते…लेकिन…

 अंकित:-“लेकिन ..क्या”?

 अनामिका:-“लेकिन ये… कि हर किसी ने तुम्हें मेरे बारे में बताया,इसके बाबजूद …ना तो तुम्हारा प्यार मेरे लिए कम हुआ…ना ही विश्वास ..तुम्हारे इतने  प्यार को देखकर ही तो आयी हूँ अंकित …नहीं रहा गया मुझसे”

दोनों कुछ देर चुप रहे फिर एकाएक अंकित जोश में आते हुए बोला 

“ठीक है …यही सही ..प्यार है …तो है …जैसे तुम तब थी अब भी वैसे ही रहो ..संभाल लूँगा मैं सब …किसी को कुछ नहीं बताऊँगा …जरूरत भी क्या है बताने की”?

अनामिका:-(दुखभरी आवाज  में ) काश ! ऐसा हो पाता ?

 अंकित :-“अब इसमें क्या दिक्कत है ..पहले भी तो रह रही थीं ना ,बल्कि अब तो और भी अच्छा है तुम्हें उस बंगले में रहने की भी जरूरत नहीं है,जो उस डरावनें जंगल में बना है”

अनामिका-“वो मेरा प्यारा घर है अंकित…लोग जो सोचते और देखते हैं वो उनके मन  की धारणा है..”

अंकित :-“ठीक है ..बापस लेता हूँ अपने शब्द…जहाँ ठीक लगे तुम्हें वही रहो ..लेकिन बनी रहो मेरी जिंदगी में…मैं छोड़ दूँगा ये शहर,राव सर की नौकरी  ..सब ..बस्स तुम बनी रहो “

अनामिका:-“नहीं अंकित …अब संभव नहीं …अब नहीं रह सकती पहले की तरह ..तुम्हारे बेशुमार प्यार और विश्वास की खातिर ..और तुमने ये जो हालत कर ली है अपनी, उसकी खातिर ही तुम्हें सच बताने आयी हूँ बस्स… मुझे जाना होगा “

अंकित :-(आगे आकर अनामिका का हाथ कसकर पकड़ते हुए) “नहीं जाने दूँगा मैं तुम्हें …हरगिज नहीं “

अनामिका :-“समझो ना अंकित …अब सब तो है तुम्हारे पास .. सूरज जैसा जान लुटाने वाला दोस्त ,सरोज जैसी माँ..इतनी अच्छी नौकरी, राव सर का तुम पर विश्वास …जानते हो …रुचिका केस से तुम्हें बचाने के लिए उन्होंने नवीन को रिश्वत तक दी है …अंकित सब कुछ तो है तुम्हारे पास …जल्दी ही मुझे भी भूल जाओगे …सब ठीक हो जाएगा”

 अंकित :-“क्या…राव सर ने मुझे बचाने की खातिर नवीन को रिश्वत दी थी “

 अनामिका -:”हाँ …”

 अंकित :-“..मैं उनकी लम्बी उम्र की कामना करता हूँ….लेकिन सुनो अनामिका …ये सब तुम्हारा ही दिया हुआ है …मैं तो जैसे मरा ही हुआ था … ना तुम आती…ना मैं जिंदा होता..ना नौकरी करता ना उत्साह आता…या तो तुम …या कुछ नहीं…. कोई उपाय तो होगा …..मैं एक पल भी तुम्हारे बिना जीना नहीं चाहता…कुछ करो ना …प्लीज़ “

अनामिका :-“एक उपाय है “

अंकित :-“(उत्साहित होकर )  .जल्दी बोलो .. क्या उपाय  है “

अनामिका:-“मैं तुम्हारी दुनिया मे नहीं आ सकती लेकिन तुम मेरी दुनिया मे आ सकते हो”

अंकित :-“ठीक है ..बल्कि बहुत ठीक है …”

अनामिका :-“सोच लो …अंकित …जान दे पाओगे अपनी “.?

अंकित :-“अब भी यकीन नहीं तुम्हें मुझ पर..मेरी जान तुममे बसती है..वो दुनिया जहाँ तुम नहीं हो …वो तो वैसे भी नर्क है मेरे लिए ..(फिर मुस्कुराते हुए ) बस्स इतना करना कि मरते वक्त दर्द ना हो…एक पल भी आँखों से ओझल मत होना ..ले चलो अपने साथ “

उसी समय सूरज उसे पुकारता हुआ बाहर आया,ठिठक कर रुक गया .उसे देख अंकित बोला

“अनामिका …मैं सूरज से तुम्हें मिलवाना चाहता हूँ…ये पागल जान दिए मरा जाता है मुझे …बहुत खयाल रखा इसने मेरा ..और जानती हो तुम्हें भाभी भी बुलाता है “

सूरज आँखे फाड़े कभी शून्य में उस ओर देखता जिस ओर मुँह करे अंकित बात कर रहा था…तो कभी अंकित की ओर …उसे कुछ ना दिखा… तो अंकित से बोला 

” किससे बात कर रहे हो ..कोई तो नहीं यहाँ …और …”

बात पूरी भी ना कर पाया था कि वो झिलमिलाती सफेद ड्रेस में उसके सामने मुस्कुराती हुई  खड़ी हो गयी ,सूरज ने बार -बार अपनी पलकें झपकाई और वो अवाक सा उसकी ओर देखने लगा …वो बोली

“सूरज …तुमने मेरे अंकित का बहुत ख्याल रखा ..इसलिए जल्दी ही तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूँगी मैं”

सूरज के मुँह से कोई शब्द नहीं निकला ..अंकित उसके पास आया और उसे गले लगाते हुए बोला”कहा था ना,सबसे पहले तुमसे मिलवाऊंगा..ये अनामिका,तुम्हारी भाभी..है ना खूबसूरत “

 मुँह खोले सूरज अब भी अवाक ही ख़ड़ा था ..अंकित की बात सुन उसने स्वीकृति में बस्स सिर हिला दिया ..अनामिका ने अपना हाथ अंकित की ओर बढ़ाते हुए कहा “चलें “

अंकित ने “हम्म “कहते हुए अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया ..वो तेज़ी से आगे बढ़े ..छत के कोने तक जैसे ही अंकित पहुंचा …सूरज  जैसे अपने होश में आया तेज़ी से उसका नाम पुकारते हुए, उसकी और दौड़ा ….

उसी  पल…अनामिका ने अंकित को हवा में उछाला.. और वो जमीन पर जा गिरा वो उसके पास गई .. हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ा और दूर आसमान में ले गयी …अंकित ने पूछा 

“क्या ..मै अब भी जीवित हूँ “? अनामिका ने मुस्कुराते हुए जमीन की ओर उँगली से इशारा किया ..जहाँ अंकित का मृत शरीर पड़ा था…..और उसके सिर से खून बह रहा था ..

सूरज ने जब अंकित को नीचे पड़ा देखा तो भागते हुए नीचे भागा.. उसे भागते देख सरोज और घनश्याम भी बाहर की ओर दौड़े ..अब वो अंकित के मृत शरीर के पास खड़े थे ..आस पास के लोग भी जुटने लगे थे …

 अंकित ने मुस्कुराते हुए अनामिका की ओर देखा और कहा

 “अब  हमें कोई अलग नहीं कर सकता अनामिका .. कोई  नहीं”

 अनामिका ने भी मुस्कुराते हुए स्वीकृति में सिर हिलाया और अंकित के गले लग गयी !

●●●●●●●●【  समाप्त 】 ●●●●●●●●

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