क्या अनामिका बापस आएगी? पार्ट -4

पार्ट - 4

by Sonal Johari

Summery

वो सबके बीच आ गई नाचते नाचते . उसके पैर जादुई तरीके से थिरक रहे थे ..उनकी फुर्ती देखते ही बनती थी ..एक अजीब समा बंध गया था .. लोग उसे अपलक देख रहे थे .. और उसके नृत्य से मुग्ध होने लगे थे.. अब वो नाचते -नाचते अपनी सुध -बुध खो बैठी थी.. एक अनजाना डर मधुर के मन में कौंधा और अब तक उसके पैर जमीन से ऊपर उठ चुके थे ..

जमीन पर गिरते ही होश में आया हो जैसे …सामने कोई आकृति सी दिखी ,अपनी पलकें बार -बार झपका कर देखने की कोशिश की पर कुछ नहीं दिखा ,रोशनी भी काफी हल्की थी..वो परझाई सामने आयी …”आंटी….आप?” अंकित के मुंह से निकला वो भौचक सा उन्हें देखता रहा,आंटी अभी तक हांफ रही थी..उन्होने हाँफते हुए पुछा

.”क्या था ये…,मै पूछती हूँ.. छत से क्यों कूद रहा था तू”?अगर खाना लेकर सही वक्त पर नहीं आती तो ..तो .हे ईश्वर.. या तो तू..हॉस्पिटल में होता…. या ….नहीं …नहीं…बता मुझे,… क्या परेशानी है तुझे”,…उन्होंने अंकित के दोनों कंधे पकड़कर जोर से झिंझोड़ते हुए पूछा ..इतने में राधेश्याम आ गए ..पास ना जाकर थोड़ी दूरी पर खड़े रहे…उन्हें देखकर सरोज बोली

“बोल…क्या घर के किराए की फिक्र है? अरे ..तुझे बेटा माना है मैंने ..जब तक तेरी मां जीवित है,तुझे इस घर से कोई नहीँ निकाल सकता…बोल… कोई और परेशानी है तो बता मुझे”

उन्होंने अपनी आंखें अंकित पर टिकाते हुए पूछा

“मुझे… कोई परेशानी नहीं.. बस्स मुझे लगा कि,मैं किसी को रोक रहा था और …और

“और …क्या”

“फिर मुझे लगा किसी ने मुझे पीछे की ओर खींच लिया …नहीं पता में यहाँ कैसे आ गया…सच”

अंकित ने उठने की कोशिश करते हुए कहा तो सरोज बोलीं

“मैंने पकड़ कर खींचा तुझे …तू तो जैसे कूदने पर आमादा था ….उनकी सांस अब तक तेज़ चल रही थी

“क्या ???कूदने जा रहा था…छत से? मुझे सच मे कुछ याद नहीं.. लेकिन …लेकिन आप ने मुझे बचा लिया माँ” अंकित ने सरोज का हाथ पकड़ते हुए कहा ,तो सरोज उसके माथे पर हाथ रखते हुए बोली “हम्म ..समझ गयी”

“क्या…” अंकित ने अपने कपड़े झाड़ते हुए पूछा

“तुझे दिमागी बुखार हुआ है,कल ही सबेरे तुझे डॉ शाहदुल्ला को दिखाउंगी”

“डॉ शाहदुल्ला..?”

“हाँ… एक से एक दिमागी बुखार के बिगड़े केस उन्होनें ठीक किये हैं,तुझे तो चुटकी बजाते ठीक कर देंगे वो, अब ..चल नीचे ..जब तक ठीक ना हो जाये मैं तुझे अकेले नहीं रहने दूँगी” और वो अंकित की बांह पकड़ ले जाने लगीं

“सुनिए तो…मैं यहीं ठीक हूँ ,अंकल जी नाराज होंगे…आप तो जानती ही हैं “अंकित ने हाथ छुटाते हुए कहा, तो वो बोली

“मैं भी देखती हूँ, कैसे वो कुछ बोलते हैं..तू चल नीचे”

और अंकित को पकड़ ले जाने लगीं ,बैठी हो तो उठने में ही जिन्हें कई बार तो मिनट तक का वक़्त लग जाता है ,वही सरोज ,एक हाथ से अपनी साड़ी की प्लीट्स थोड़ा ऊपर पकड़े और दूसरे हाथ से अंकित को ऐसे खींचे हुए ले जा रहीं थी जैसे वो चार या पांच साल का बच्चा हो …उसे बेड पर लिटा वो ठंडे पानी की पट्टी रखने लगीं, राधेश्याम मूक दर्शक बनें सब देख रहे थे,वही आंगन में टहलने लगे ,सरोज ने कुछ कहना चान्हा तो उन्होंने हाथ का इशारा कर उन्हें आश्वस्त किया कि वो जो कर रहीं हैं,उससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं

….सुबह ही सरोज ,अंकित को डॉ शाहदुल्ला को दिखा लाई और थोड़ी देर में ही अंकित को सामान्य लगने लगा,जैसे कुछ हुआ ही ना हो,और वो ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा ,तभी सरोज ने टोक दिया “कहाँ जा रहा हैं, कहीं जाने की जरूरत नहीं..आराम कर आज”

“मां …नई जॉब लगी है ,जाना जरूरी है,…आपने इतना ख्याल रखा है,कि बिल्कुल नहीं लग रहा …कोई परेशानी थी भी …जाने दीजिए ना… जल्दी आ जाऊंगा”

“अच्छा …बहुत जरूरी है क्या? एक मिनट रुक तो ..” और सामने आकर उसकी जेब मे एक हजार रूपए रख दिये,अंकित ने रुपये देखे तो भावविभोर होकर उसने सरोज की ओर देखा और रुपये लौटाते हुए बोला “आप बहुत अच्छी हैं, लेकिन मुझे पैसों की जरूरत नहीं है”

“खबरदार,जो कुछ बोला,चुपचाप रख ले,और हाँ जल्दी आना शाम का खाना तेरे साथ ही खाऊँगी” सरोज ने झूठ मुठ का डाँटते हुए बोला

“ठीक है माँ” अंकित ने कहा और बाहर निकल गया

***

ऑफ़िस पहुँचा तो देखा,गैलरी में राखी चुपचाप अकेली खड़ी थी तो उस ओर ही चला गया,राखी को सिगरेट पीते देख बापस लौटने लगा तो राखी ने आवाज दे दी

“अंकित,क्यों बापस जा रहे हो …आओ ना”

जब से वो दोनों नीरू के साथ मॉल रोड घूमने गए ,तब से,फॉर्मेलिटी खत्म हुई और दोंनो “आप’ से “तुम “पर आ गए थे

“कुछ नहीं ऐसे ही”

“कोई लड़का सिगरेट पी रहा होता,तब भी यूँ ही चले जाते”

उसने धुँआ छोड़ते हुए पूछा

“शायद नहीं..”

“वही तो …लड़के सिगरेट पिये तो कोई प्रॉब्लम नहीं, लड़की पी ले तो… प्रॉब्लम ..सब स्त्री सशक्तिकरण की बात ही करते हैं सिर्फ ” उसने ताने वाली हँसी के साथ कहा

“.हम्म …स्त्री सशक्तिकरण … मतलब…उठाइये तलवार और काट दीजिये वो बेड़िया जो आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं, आप को ,आपकी बिल्कुल निजी इच्छाओं को मारने पर मजबूर करती हैं ..और इसमें खुद के पैरों पर खड़े होना सबसे बड़ी भूमिका निभाता है,शशक्त कीजिये खुद के मन को..ताकि वो बिना डर आपको जीना सिखाये… लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है …कि तुम जैसी ही जाने कितनी पढ़ी लिखी लड़कियो ने इसका मतलब ये समझा है, कि बस जो लड़का सामने पड़े उसे मार दो उसी तलवार से…

राखी उसे यूँ रौ में बोलते हुए देख रही थी

रही बात सिगरेट पीने की ..तो ये बुरी लत जरूर है ,लेकिन पाप नहीं …समझदार हो, पीना चाहो तो बेशक पियो, लेकिन इसके पीछे अगर ये सोच है,लड़के पी सकते है तो लड़कियां क्यों नहीं…तो खुद की इंसल्ट के अलावा कुछ नहीं… क्योंकि भगवान ने दुनियाभर की खूबियों के साथ लड़कियों को इस दुनिया मे भेजा है,तो मुठ्ठीभर लोगों के बोलने या सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ता…वो बेहतर थीं …और हमेशा रहेंगी “

और जब अंकित गंभीर हो गया तो माहौल को हल्का बनाने के लिए उसने टोका

“हम्म …अच्छा बोल लेते हैं,संडे को फ्री सेमिनार क्यों नहीं आयोजित करते ..पार्ट टाइम जॉब के लिए भी अच्छा रहेगा” अहा हा हा …दोंनो हँस दिए,

“अरे ..मैं लेट हो गया, कहीं सर ना आ गए हो और “हाँ …तुमने पूछा था ना कि ..कोई लड़का यहां होता तो मैं आता लौटता या नहीं.’तो सुनो में आता ही नहीं तुम्हे जानता हूं इसलिए आया और तुम अपने मे ही खुश दिखी तो सोचा ना विघ्न डालू, इसलिए लौट रहा था…समझी “

राखी ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई और अंकित के जाने तक उसे राखी देखती रही…

***

राव सर आज भी किसी फाइल में उलझे दिख रहे थे, पहले फाइल देखते,फिर कैलक्यूलेटर पर कुछ हिसाब लगाते… पास ही एक प्लेट में फ्रूट्स सैलेड रखा था,देखने से लगता था,काफी देर से ऐसे ही पड़ा है

“सर…गुड मॉर्निंग”

“अंकित,…वेरी गुड मॉर्निंग…आओ बैठो”

“सॉरी सर ..थोड़ा लेट हो गया”

“अरे नहीं भई… मैं ही जल्दी आ गया हूँ अभी तो 9:05 ही हुए हैं…अच्छा मैं गया था, एक एग्रीकल्चर अफसर के साथ..वो तराई वाले बाग़ान में..”

वो मुस्कुराते हुए बोल रहे थे ..और काफी खुश दिख रहे थे

“तुम्हारी बात सच निकली..सोचता हूँ तुम्हारी सेलरी आज ही फिक्स कर दूं ,क्या कहते हो”

उन्होंने चश्मे में से आंखे अंकित पर टिका दी..और अंकित बस्स मुस्कुराने लगा

“हम्म…अभी ..तीस हजार सेलेरी ,ऑफर करता हूँ तुम्हें…आगे तुम्हारी उम्मीदों से बेहतर बढेगी,… तुम खुश तो हो ना”?

“बहुत खुश हूं सर,थैंक यू सो मच” अंकित ने खुशी से कहा

“ठीक है…जॉबलेस कब से हो”

“लगभग 5 महीनों से”

“ठीक है ,सादिक को बोलता हूँ… दस हज़ार कैश देगा तुम्हे ,ऑफिस के बाद मिलते हुए जाना उससे” और वो उठकर मीटिंग के लिए जाने लगे,अंकित तो बहुत खुश हो गया,कैसे जान गए सर कि उसे पैसों की जरूरत है,बस्स थैंक यू …थैंक यू सर बोलता रहा,तो राव सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

“मेहनत करो…बहुत संभावनाएं दिखती हैं तुममे, मुझे …और हां अब मेरे शेड्यूल पर काम करो कल से”

“ठीक है सर” थोड़ा झुक कर अंकित एक तरफ हो गया और राव सर बाहर निकल गए…अंकित के दिमाग में अपनी माँ की कही बात याद आयी…जब तुम्हें लगे कि,तुम्हें वो मिला जिसके तुम लायक नहीं …तो समझ लेना किसी और की दुआएं तुम्हारे लिए काम कर रही हैं…अंकित ने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा जिसकी दुआओं ने मेरे लिए काम किया उसे खुश रखना ईश्वर ..और शुक्रिया अनामिका…और सोचा क्यों न आंटी के लिए कुछ लिया जाए यही सोच काम खत्म कर ,एडवांस ले,वो मार्केट चला गया,

***

राधेश्याम के लिए शर्ट और सरोज के लिए साड़ी खरीद अंकित घर गया और सरोज को साड़ी थमा दी और शर्ट ये बोलते हुए दी “माँ आप ही उन्हें दे दीजिए ,मुझसे तो नाराज रहते हैं, और ये एक महीने का किराया भी” साड़ी और शर्ट हांथो में लिए आंटी भावविभोर हो उसकी ओर देखे जा रही थी,पर कुछ बोलते ना बना तो अंकित ने झुक कर उनके पाँव छुए और कहा

“सब आपकी दुआओं का असर है”

***

हर बार की तरह कदम रखते ही दरवाजा खुद खुल गया,वो सामने ही बैठी थी…कुछ पढ़ने में मगन…बाल बिखेरे जिंनमे से पानी की नन्ही नन्ही बूंदे…कालीन पर गिर रहीं थीं… शायद अभी धुले है बाल उसने,सफेद ड्रेस जिसपर हल्की सी नीली रंग की आभा भी थी, और इस ड्रैस में बिल्कुल वैसी ही लग रही थी जैसी सपने में आई थी….वहीं दरवाजे पर खड़े होकर सुध-बुध भूले उसे निहारता रहा,

“अंकित जी,आज बाहर खड़े रहने का ही इरादा है क्या”?

अनामिका की आवाज से चौंकने के साथ ही झेंप गया अंकित….और अंदर जाकर पास ही के सोफे पर बैठ गया,धुले बाल और उनसे गिरती नन्हीं सी बूंदे पहली बार देखी हो ऐसा नहीं था, लेकिन ना जाने कौन सा समा बंध जाता है …अनामिका के आस पास होने भर से…

“आप बैठिये…में चाय ले आती हूँ “

“रहने दीजिए ना,जरूरत नहीं है”

“चाय जरूरत के लिए ही पी जाती है क्या “उसने मुस्कुराते हुये कहा तो …जैसे उसकी जान में जान आयी हो ..शुक्र है …आज नाराज नहीं

“मेरा मतलब था ,बेकार ही खुद को परेशान करेंगी आप”

“इसमे क्या परेशानी… बस्स अभी आयी” उसके जाते ही अंकित के मन मे एक बात कौंधी क्या अब तक अनामिका के माता पिता शादी से बापस नहीं आये…आये तो पूंछूगा..इतने में वो आ गयी …हाथ मे ट्रे लिए ..हमेशा की तरह चाय के साथ कुछ न कुछ लेकर ..ना जाने इतनी जल्दी ये चाय और नाश्ता इतनी कैसे तैयार कर लेती है

“अनामिका जी,…अ …अ ..आपके पेरेंट्स नहीं आये अब तक”

“आपको बताया था,वो कजिन की शादी में गए है,हमारे यहाँ शादियां बड़ी धूमधाम से होती हैं, हफ्ते भर तक तो..बस्स रीति रिवाज ही चलते रहते हैं”

उसने चाय का कप अंकित को देते हुए कहा

“अच्छा…” अनामिका को ऐसे खुद से , खुश होकर बात करते देख बड़ी अजीब सी शांति मिली अंकित को,हाथों में लिए पेपर उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला

“ये देखिए साउथ इंडिया की हिस्ट्री नोट्स…मुझे विश्वास है ये आपको इंटरेस्टिंग लगेंगे…

“हम्म…लगता तो है…आपकी जॉब कैसी जा रही है”

उसने पेज उलटते हुए पूछा

“बताने ही वाला था,बहुत अच्छी…मेरी सेलेरी भी फिक्स कर दी गयी है,आपने सच कहा था,राव सर बहुत अच्छे इंसान हैं… ये सब आपकी वजह से है ,समझ नहीं आता,आपका एहसान कैसे उतारूंगा”

“अर्रे वाह! फिर तो पार्टी बनती है” इसने चहकते हुए कहा

“हाँ… हॉँ क्यों नहीं… आप ही बताइए कब और कैसे पार्टी लेंगी ..मुझे तो बडी खुशी होगी”

“डिनर कराएंगे …अच्छे से हॉटेल में ” उसने अंकित के चेहरे पर नजर टिकाते हुए पूंछा

“बहुत ही खुशी से…भला… इतनी खूबसूरत लड़की (फिर संभालते हुए) …मेरा मत …अ …मतलब आप मेरे साथ डिनर करने चले, इससे बेहतर मेरे लिए क्या हो सकता है

“ठीक है,अभी तो कुछ दिन ही हुए हैं,आपको बता दूँगी कब चलना है”

“कुछ ही दिन…फिर खुद में बुदबुदाया”कुछ दिन में तो ये हालत हो गयी है…”हाँ सही कहा आपने…जब भी मन हो बता दीजिए “…

इतना बोल बापसी की इजाज़त ली और बापस घर आ गया

ऑफिस पहुंचा ही था कि राखी सामने से आती दिखायी दी,रोज़ प्रोफेशनल सूट में रहने वाली, आज ..लाल रंग की साड़ी पहने थी,

“अंकित,आज सर ऑफिस नहीं आएंगे” बड़ी खुश दिख रही थी,

“ओह्ह…ठीक है अच्छा”और जैसे ही अपने केविन की ओर बढ़ा राखी उसके सामने आ कर खड़ी हो गयी,

“कैसी लग रही हूँ”

“हॉँ…अच्छी लग रही हो,क्यों क्या हुआ” उसने ढीले रवैये से कहा

और राखी ने बड़े नाटकीयता से एक गुलाब का फूल उसकी ओर बढ़ा दिया …

***

“राखी …क्या है ये “अंकित ने अचकचाते हुए पूंछा

“ये..इसे गुलाब कहते है”उसने मुसकुराते हुए कहा

“वो तो दिख रहा है….लेकिन मुझे क्यो”

“ओह गोड,तुम भी ..अच्छा सीधे सुनो,आई थिंक आई एम फालिंग फॉर यू”

“क्या…क्या बकवास है ये…जरा साइड मे तो आओ” अंकित ने कहा और दोनों एक केविन मे आ गए

“बकवास नही है ये… मैं सच मे तुम्हारे लिए अट्रैक्शन फील…..”

अंकित बीच मे टोकते हुए ,

“तुम्हें पता भी है ? क्या बोले जा रही हो,तुम्हें पता ही क्या है… मेरे बारे मे” अंकित ने आवेश मे पूंछा

“मन की बातें मन ही तय करता है…दिमाग नही, और कई बार तो एक नजर ही काफी होती है..ये तय करने के लिए कि आप….”

अंकित बीच मे टोकते हुए ,“मुझे लगा था तुम इंटेलिजेंट हो,लेकिन तुम तो हद दर्जे की इमोशनल, निकली ,न जाने कौन सी बात से तुम्हें ऐसा लगा… मुझे नहीं समझ आ रहा”

“कमी क्या है मुझमे..सो कहो?” राखी ने उदास होते हुए पुंछा

“ब्स्स इसी सवाल की कमी रह गयी थी..अरे “ना” का मतलब हमेशा ये नहीं होता कि आप मे कोई कमी है …ये भी तो हो सकता है कि सामने वाला खुद को तुम्हारे लाइक ना मानता हो,.. मैं खुद को नहीं मानता तुम्हारे लाइक ,तुम सुंदर हो,काबिल हो..तहजीब से भरी हो. तुम मजबूत पिल्रर हो इस कंपनी की.और मुझे देखो॰ ना वर्तमान का पता ना..भविष्य का”

“कोई है क्या, तुम्हारी ज़िंदगी मे “?

“अगर कहूँ है तो तुम खुद की तुलना करोगी उससे…अगर कहूँ नहीं है तो तुम गलतफहमी मे रहोगी…बड़ी बात ये…कि मेरे मन मे तुम्हारे लिए ऐसा कुछ नही …कुछ है, तो वो है बेहद इज्ज़त… तुमने मुझे इतनी महत्वता दी..इससे बढ़कर क्या हो सकता है…लेकिन अब…मैं ये जॉब छोड़ दूंगा…यहाँ रहकर तुम्हें दुख नही दे सकता”

राखी ने जॉब छोड़ने की बात सुनकर चौंक गयी..

“और राव सर का क्या? जानते हो तुम्हें हाँ बोलने के बाद उन्होंने मुझसे क्या कहा? बोले,”इस टाइम पी ए.के तौर पर एक फ्रेशर को रखना बिलकुल ठीक नहीं लेकिन अंकित मे ना जाने क्या है जो मुझे उस पर विश्वास करने को मजबूर करता है,…तुम्हारी वजह से वो दुगना काम करते है,बहुत हद तक मुझे और सादिक़ को एक्सट्रा काम करना पड़ता है ,ताकि तुम अच्छी तरह ट्रेंड हो जाओ, और तुम… बदले मे ये दोगे उन्हे… शर्म नही आती ?

“और तुम्हारा क्या” अंकित ने बड़ी संवेदना के साथ पूंछा

“मैं कौन सी मीराबाई हुई जा रही हूँ,तुम्हारे लिए ? आठ दिन भी नही हुए तुम्हें जाने ..वो तो बीच मे वेलेंन्टाइन डे आ गया आज.. तो सोचा..अच्छा भला लड़का है… दोस्ती गहरी हो जाये …ब्स्स”

“ओह गॉड…तो तुमने पहले एसे क्यूँ नही कहा” अंकित ने अपने सिर के बालों को ऊपर की ओर खींचते हुए कहा

“तुम कहने दो, तब ना ..तुम्हें तो ब्स्स मौका मिलना चाहिए लैक्चर देने का “ माथे पर दोनों हाथ रख सोफ़े पर बैठते हुए राखी बोली

“ओह सॉरी…..तो अब”

“अब क्या.. चलो तुम्हें शेड्यूल बनाना सिखाऊँ…पर उससे पहले मुझे शर्मा जी की कॉफी पिलवाओ…दिमाग का दही कर दिया तुमने…साड़ी पहन कितनी खुश थी मैं…सोचा कोई तारीफ करे…तुमसे तो सामने से भी पूंछा लेकिन “ब्स्स सड़ा सा कोमप्लेमेंट…हुम्म !”

राखी कि इस रवैये पर अंकित के चेहरे पर मुस्कान आ गयी ,सारा तनाव घटता सा महसूस हुआ,उसने राखी का मूड अच्छा करने को बोला

“आज तो मेरे मन मे और भी इज्ज़त बढ़ गयी तुम्हारी.,.साड़ी ही क्या, ऐसी कौन सी ड्रेस है जिसमे तुम खूबसूरत ना लगो..तुम हर ड्रेस मे खूबसूरत लगोगी “

“लेकिन माँ बोलती है ,कि लड़कियां साड़ी मे ज्यादा खूबसूरत दिखती हैं”

“ऐसा है मैडम…माओं का अपना नजरिया होता है,और हम लड़कों का अलग”

राखी का मूड अच्छा करने को, जब उसने ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा तो …सोफ़े पर रखा कुशन उठा कर राखी ने अंकित को दे मारा और बोली

“…अं कि त……कमीने …अहा हा हा.“

“आहा हा हा हा हा और दोनों हँस दिये….”अच्छा चलो कॉफी ही क्या, कुछ अच्छा सा साथ मे खिलवाता भी हूँ…” और दोनों कॉफी पीने ऑफिस से निकल गए

अनामिका के घर की ओर मुड़ा ही था…कि लगा कोई पीछे ही चल रहा है पलट कर देखा तो वही थी

अंकित :-अररे आप ?’

अनामिका :-“हम्म…कुछ काम से बाहर गयी थी..वहीं से बापस आ रही थी,..ऑफिस से आकर नोट्स बनाना बहुत थकाऊ लगता होगा ना ? .”

अंकित :-“जब कोई काम पसंद हो ,तो थकान नही लगती अनामिका जी,नोट्स देखे आपने?“

अंकित को यूँ उसका साथ चलना पसंद आ रहा था…आज सुट पहने थी लेकिन था सफ़ेद ही,

एक बार को तो अंकित के मन मे आया कि पूंछ ले..कि हमेशा सफ़ेद कपड़े ही क्यो पहनती है,अचानक उसके दुपट्टे का एक सिरा जमीन को छू गया,अंकित ने देखा तो बोला

“आपका दुपट्टा जमीन को छू रहा है संभालिए, कहीं गंदा ना हो जाये,सफ़ेद रंग की यही परेशानी है,बड़ी जल्दी गंदा हो जाता है”

अनामिका:-“ये गंदा नही होगा…सफ़ेद रंग मुझे बेहद पसंद है…हाँ कुछ नोट्स रिवाइस किए थे खिलजी मुझे बिल्कुल पसंद नही”

अंकित:- (मुस्कुराते हुए ) शायद आप भावुक होकर देख रही हैं…ऐसे तो शायद ही कोई पसंद आए आपको…ये देखिये कि उसी ने सबसे पहले आर्मी को ड्रेस कोड दिया… और सेलेर्री देना भी शुरू किया..ब्स्स हिस्ट्री के अनुसार देखिये”

अनामिका:-“हम्म…सही कह रहे हैं आप”

अंकित:- “अच्छा…(पेपर बढ़ाते हुए) ये बाकी के नोट्स…कल ही मिलता हूँ आपसे”

अनामिका:-“ये क्या बात हुई …घर तक आकर बापस जा रहे हैं…कम से कम चाय तो पीजिए”

अंकित:-“चाय कल…मुझे कुछ जरूरी काम है बाजार से प्लीज़…जाना है”

अनामिका ने सिर हिला “हम्म”मे स्वीकृति दी,तो अंकित तेज़ी से मुडा और बाजार के लिए निकल गया,घर के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद ही रहा था कि नजर, एक शो रूम के बाहर सफ़ेद गाउन पहने डमी पर चली गयी, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसके दिमाग मे अनामिका की कही बात घूमने लगी

“सफ़ेद कलर मुझे बहुत पसंद है”क्यो ना इसे खरीद लूँ ,उसके लिए

और उसके दिमाग ने कहा :पागल हुआ है क्या ? कैसे देगा,घर से बाहर तो करेगी ही साथ मे

बुरा भला बोलेगी सो अलग…

अंकित:-नहीं दूँगा,अपने पास ही रख लूँगा बाद मे कभी दे दूँगा लेकिन खरीद लेता हूँ…बहुत मन है

दिमाग:- कर बेबकूफी

अंकित:-अच्छा..पैसे तो पूछ लूँ …उसमे तो कोई हर्ज़ नही “ और दिमाग कुछ कहता इससे पहले ही चार से पाँच सीढ़ियाँ फलांगता वो शोरूम मे घुस गया

“जी सर कहिए”

“वो जो व्हाइट गाउन आपने बाहर लगाया हुआ है,क्या प्राइस है उसका?”

“सर…बहुत बेहतरीन पसंद है आपकी..इसकी प्राइस केवल 2700/-रुपये है”

दिमाग:-2700/-रुपये …पूरा महिना पड़ा है,पहले भी आंटी और अंकल जी के लिए शॉपिंग कर चुका है तू जब सेलेरी मिल जाये तब खरीद लेना यार

अंकित:-तब तक ये बिक जाएगी…

दिमाग:-तो और कोई आ जाएगी…कोई कमी है क्या ड्रेसेस की ?

“सर पैक करा दूँ”

दिमाग:मना कर दे

“सर ये डिजाइनर है.. ब्स्स ये एक ही है…जल्द ही बिक जाएगा .है ही बेहद खूबसूरत

अंकित :-“(उत्साहित होकर) जी पैक कर दीजिये”

दिमाग:-“पूरा महिना…अंकित”

अंकित:-“सम्भाल लूँगा यार…चुप रेह ब्स्स …अब”

बड़ी खुशी खुशी पैकेट हाथ मे लिए शोरूम से बाहर निकला ही था … कि एक लड़के से टकरा गया

और उस लड़के के हाथ से उसका पर्स नीचे गिर गया… अंकित ने माफी मांगते हुए पर्स उठाया और उस लड़के की ओर बढ़ा दिया… और नज़र पर्स मे लगे फोटो पर चली गयी…

अंकित:- (आश्चर्य से मुँह खोलते हुए ) अ…. ना… मिका…..?

अंकित के हाथ से पर्स लेकर फोटो चूमते हुए “सोरी आं…..”

फिर अंकित के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला

” संभाल के दोस्त “…और जाने लगा…

अंकित उसे आश्चर्य से मुंह खोले देख रहा था… उसके निकल जाने के बाद भी स्तब्ध सा वहीं खड़ा रहा ,आस पास से लोग उससे टकराते हुए निकल रहे थे…न जाने कब तक ऐसे ही रहता, वो तो एक बहुत छोटी सी बच्ची उससे टकरा कर गिर गयी और रोने लगी… और उसके रोने से जैसे चेतना बापस आई हो,

दिमाग ने कहा “अबे भाग…उसके पीछे” और अंकित उसी दिशा मे दौड़ गया जिस दिशा मे लड़का गया था…. कुछ मिनट दौड़ने के बाद भी उस लड़के का नामोनिशान तक ना दिखा …

हताश अंकित, अपना पैर जमीन मे मारते हुए बोला “.लड़का..गया कहाँ ? जमीन निगल गयी या आसमान खा गया. उसे…आह”

थोड़ी देर बाद ..खुद को ढेलता सा घर लौटा वो, सफ़ेद ड्रेस का पैकेट जो गर्व से अपने सीने से लगा कर ला रहा था खरीदते वक़्त ,वही सब्जी वाले थैले के साथ लटकाए हुए था,जब घर मे घुसा तो

सरोज बोली “अंकित…. (मुसकुराते हुए ) आ गया… हाथ मुंह धो ले..पता है लड्डू बनाए हैं”

“माँ…कुछ नही खाना आज मुझे” सब्जी का थैला उन्हे पकड़ाते हुए बोला और सीढ़िया चढने लगा

“कुछ नही खाना…क्या मतलब…तेरी तबीयत तो ठीक है…सच बता मुझे”

उन्होने चिंता से पूंछा

“हाँ हाँ…ब्स्स ऑफिस मे खाना खा लिया था..पेट मे भारीपन है…ब्स्स सोऊंगा… सुबह तक खुद ठीक हो जाएगा..चिंता की कोई बात नहीं आप परेशान ना हो” उसने पीछा छुटाने को बोला और अपने कमरे मे जा… धम्म !! से बिस्तर पर लेट गया..

और मन ही मन सोचने लगा ,आखिर कौन था वो लड़का…अनामिका की ज़िंदगी मे कोई है..और इस हद्द तक है …वो पहले ही किसी से प्रेम करती है…आज शाम तक ये खुशनुमा लगने वाली ज़िंदगी अब मुझे नर्क सी लग रही है…कुछ समझ नही आ रहा क्या करूँ,…..

(बैठते हुए ) क्या क….रुँ

दिमाग:” रुक थोड़ा…. बौखला मत”

अंकित:” अब बचा ही क्या है”

दिमाग:”तुझे इतना भी बुरा क्यूँ लग रहा है”

अंकित :-“ये भी बोलने की जरूरत है क्या…प्यार करने लगा हूँ मैं उससे”

दिमाग:-“ये भी तब पता लगा जब वो लड़का मिला ?”

अंकित:-“एहसास तो था लेकिन इस कदर वो …आज ही पता लगा…लेकिन अनामिका ने मुझे ये बताया क्यो नही”?

दिमाग :-“तुझे क्यूँ बताएगी वो… ये भी तो सोच..तू है ही कौन उसका”

अंकित :- “हम्म हम्म …मेरा सिर मानो फटा जा रहा है..कुछ समझ नही आ रहा”

दिमाग:-“एक बात तो सोच …वो उस दिन तेरा हाथ पकड़ कर क्या बोली थी”

अंकित :“क्या”

दिमाग : “आप मेरे अपने ही तो है… याद आया?

अंकित :“अररे हाँ…”(खुशी से ) और ( दुखी होते हुए ) आज जो देखा उसका क्या ?

दिमाग :- “एकतरफा प्रेमी भी तो हो सकता है ?”

(खुशी से )“ सही है..हाँ यही होगा …नहीं तो इतने दिनो मे एक बार तो दिखता उसके घर पर या उसके घर के आस पास दो बार वो घर के बाहर दिखी और द्दोनों बार अकेली”

दिमाग :”हम्म…लेकिन सोच …अगर उसने तुझसे पहले, प्रपोज कर दिया तो ?

अंकित :-“तो “

दिमाग :-“तो ये कि उसके चान्सेस ज्यादा है”

अंकित :-“कैसे भला”

दिमाग :-“उसकी बॉडी देखी ही होगी… मस्कुलर है वो “

अंकित :-“बॉडी होने से क्या होता है,समझदारी की, अच्छाई की कोई कीमत नही?

दिमाग :-“शक्ल और बॉडी पहली नजर मे दिखती है…लेकिन समझदारी दिखते दिखते ही दिखती है…और चल मान ले सब तेरे अनुसार हो गया, अनामिका ने तुझे हाँ बोल दी….जब उस लड़के को पता लगेगा वो गुस्से मे तुझसे लड़ने आ धमका या उसने कुछ अनामिका को बोला तो ?

अंकित :-“मार दूंगा साले को ”

गुस्से मे दाँत भीचते हुए उसने ग्लास उठा कर जमीन पर दे मारा जिसकी आवाज आंटी ने सुन ली…

“अंकित तू ठीक है ना….. “उन्होने नीचे से ही आवाज लगा कर पूंछा

“हाँ हाँ आंटी जी ठीक हूँ …बेड से गिलास गिर गया” ये माँ भी न कभी कभी लाड़ की अति कर देती हैं

दिमाग-“मुद्दा अभी आंटी नही, कुछ और है

“हम्म… तो “

दिमाग :-“तो क्या.. हाथापाई हुई तो… तुझमे उसका एक हाथ सहने की क्षमता नहीं .झींगे जैसा शरीर है तेरा,चोट तो ठीक हो भी जाएगी..लेकिन तुझे जो अनामिका की संवेदना मिलेगी उसका क्या”

अंकित :-“संवेदना क्यो”

दिमाग:-“अब हारने वाले को संवेदना ही मिलती है..मेरे भाई … अनामिका में कोई कमी तो नहीं , कोई भी लड़की …एक ऐसा लड़का ही चुनेगी जिसके साथ उसे सिक्योर फील हो“

अंकित:-“सही बात है …. बॉडी ना हम्म .बॉडी..यूं …(चुटकी बजाते हुए) यू बना लूँगा… और रही बात शक्ल की (शीशे मे देखते हुए) शक्ल बहुत बेहतर है मेरी …”

दिमाग:“तुझे कहीं आकर्षण मात्र तो नहीं ”

“हरगिज नहीं… जरूरी तो नहीं जल्दी मे लिया गया हर फैसला गलत हो ,ये जीवन या तो उसके साथ या किसी के साथ नही”

“राखी को लेक्चर आप ही दे रहे थे ना “

“हां…लेकिन कितना भी वक़्त बीत जाये मैं उसके लिए कुछ महसूस नही कर सकता.जो भावनाए अनामिका के लिए है वो किसी के लिए ना तो हुई हैं ना होंगी …मुझे अनामिका चाहिए”

“हम्म..और कैसे ..ऐसे ही नोट्स बना- बना कर”

“न…..हीं बहुत हो गयी पढ़ाई…अब सिर्फ पढ़ाई नहीं”

“जिम जॉइन करने का वक़्त भी तो नहीं …कैसे करेगा?“

“शाम को तो वक़्त नही..सुबह एक घंटे पहले उठकर जिम जॉइन कर सकता हूँ”

“और जिम जॉइन उसी मार्केट मे कर..हो सकता है वो लड़का जिम मे या उसी मार्केट मे दिखे”

“सही कहा…उसी मार्केट मे जिम जॉइन करूंगा और अगर कहीं दिख गया वो लड़का, तो मारूंगा उसे “

“अनामिका हेरोइन है उस हीरो मिलना चाहिए विलन नहीं “

“हम्म …पर एक दो हाथ मारना बनता है

( उसने पांचों उंगलिया मिलाकर पंच बनाते हुए कहा)

“ये ठीक है …जिम कब जॉइन करेगा ”

“कल सुबह ही करूँगा”

“ठीक अब समय देख”

“2 बजे हैं “

“जल्दी उठना है ना,सो जा”

“हाँ सो जाता हूँ”

और अंकित ऐसे खुद से बात करते करते बिस्तर पर लेट गया…कुछ देर करवट बदली फिर सो गया

***

सुबह 6 बजे ,गोल्ड जिम

दरवाजे पर कदम रखा ही था..कि नजरे उसी लड़के को ढूँढने लगी..

इतने मे एक लड़का उसके सामने आकर बोला,”कहिए सर…”

अंकित :- “जिम जॉइन करनी थी “

“आइये मेरे साथ” कहकर लड़का अंडर मुड़ गया,काँच के बने एक टेम्परेरी केविन मे ले गया ,जहां सेंडो बानियाँन पहने मस्क्युलर लड़के की तरफ अंकित देखता रहा और मन ही मन उसकी जगह खुद को इमेजिन करने लगा

“कहिए सर…मेरा नाम अनवर है , कौन सी मैम्बरशिप चाहिए … 3 महीने की,6 महिने की या साल भर की”

अंकित :-“कोई आइडिया नही मुझे….आप ही बताओ…ब्स्स मस्क्युलर दिखना चाहता हूँ”

अनवर :-“हम्म…कितने”?

अंकित :-“ब्स्स शर्ट भी पहना हूँ तो सामने वाले को लगे कि इसके एव्स बने हुए हैं”

अनवर :- “शर्ट पहने हुए मस्कुलर दिखना है “?

अंकित :- (शर्माते हुए हाँ मे सिर हिलाता है )

अनवर :-“ ओह्ह …( मुसकुराते हुए… जैसे सब समझ गया हो ) लेकिन उसमे टाइम लगेगा..फिर इस पर निर्भर करता है कि आप कितना वर्कआउट करते हैं..और डाइट कैसी लेते हैं….लेकिन 3 से 4 महिने मे आपको फर्क दिखना शुरू हो जाएगा खुद मे”

अंकित :- “3 से 4 महीने अच्छा ….ठीक है ..6 महिने का कितना पैसा देना होगा”

अनवर:- “आपके लिए बेस्ट ऑफर है मेरे पास 1950/-रुपये का अंकित ने 1000 रुपये देने के लिए निकाले ,,दिमाग :-मत दे इतने, 500 ही दे ना,अनमिका ने अगर इस बीच डिनर के लिए बोल दिया तो क्या ढाबे पर खिलाएगा

अंकित:- “हम्म… (500 रुपये अनवर को देते हुए) ये लीजिये एडवांस”

अनवर:-(पैसे लेते हुए ) ठीक है कल से शुरू करते हैं इसी टाइम

अंकित :- “आज से क्यो नहीं ?”

अनवर :- “आज से ही …ठीक है आइये”

***

उसके घर मे कदम रखा ही था,कि सामने से आती दिख गयी अपने रेशमी बालों को उँगलियों से संवारती हुई..

अनामिका :-“अंकित …आइये …आप बैठिए मैं कुछ खाने को ले आती हूँ “

अंकित :- अररे मुझे कुछ नहीं खाना …आप बस्स बैठ जाइए मेरे सामने ( फिर बात संभालते हुए )…वो अ…मेरे कहने का मतलब ..देखू जरा पढ़ाई कैसी जा रही है आपकी”

अनामिका :-“ब्स्स अभी आई …आप बैठिए तो”

अंकित मन मे “बताओ क्या करे इसका?”थोड़ी ही देर मे कॉफी लेकर आ जाती है अनामिका, और कप उसकी ओर बढ़ाते हुए बोलती है

“किस टॉपिक के नोट्स लाये है आज “

अंकित का दिमाग :- “ले और कर पढ़ाई की बात …”

“तो और क्या करता?”

“कम से कम अब तो कुछ और बोल “

“क्या बोलू “?

“कॉफी की तारीफ ही कर दे “

अंकित :-“अनामिका जी आप कॉफी बहुत अच्छी बनाती हैं.. मुझसे इतनी अच्छी कभी नहीं बनती”

अनामिका :-“आप पानी मिला देते होंगे”

अंकित :- “अ… हाँ … बिल्कुल ठीक ऐसा ही है“ उसने जैसे अपनी गलती मानते हुए कहा और अनामिका उसे कॉफी बनाने की विधि बताने लगी

अनामिका :-“पहले जितनी कॉफी बनानी है उतना कप दूध उबलने रखना है फिर @@@@फिर @@@@और .@@@

अंकित का दिमाग :- इससे पहले कि ये तुझे आलू मटर कि सब्जी की रेसेपी बताए …टॉपिक बदल दे

ब्स्स बन गयी कॉफी …अनामिका ने बात खत्म की और अंकित ने बिना सुने ही

“वाह ! ऐसे बनाती हैं आप? तभी … “

“और खाना कौन बनाता है आपके लिए ?“ उसने भोलेपन से पूंछा तो

अंकित का दिमाग उसी पर हँस दिया “बहुत अच्छे ..सही जा रही है… कुछ भी बोल ये है ,तेरे टाइप की ही… हा हा हा … और

अंकित को मुस्कुराते देख अनामिका बोली

“आप मुस्कुरा रहे हैं क्या हुआ ?”

“कुछ नहीं …ब्स्स माँ की याद आ गयी… वो तो रही नही … मेरी मकान मालिक मुझे अपना बेटा ही मानती हैं …अधिकतर वही खाना बनाती है मेरे लिए

अनामिका:- ओह”

अंकित :-“अच्छा चलता हूँ… “

दिमाग :- “कुछ बोल तो दे “

“ क्या बोलू ..क्या अच्छा लगता है ऐसे”?

“तमीज़ से तारीफ करना कोई बुरी बात तो नहीं…और उस मस्कुलर को मत भूल “

“हम्म … अनामिका आपके अ…. अ ..”

“बोलिए …”

“अ … बाल काफी अच्छे है… आपके … ब्स्स… यही ” बड़ी मुश्किल से अंकित कह पाया

अनामिका :- “ओहह …अच्छा…शुक्रिया” उसने मुस्कुराते हुए कहा

शुक्र है नाराज नही हुई … अंकित ने निकलते हुए कहा

अभी कुछ कदम ही चल पाया था कि वही लड़का अनामिका के घर से कुछ दूरी पर दिखा फोटो खींचते हुए … उसे देखते ही अंकित गुस्से से भर गया और पूरी ताकत से उसी ओर दौड़ गया.

***

पूरी ताकत से दौड़ता अंकित उस लड़के के पास पहुंचता इससे पहले ही वो कार में बैठ निकल गया,धूल उड़ाती गाड़ी पल भर में आँखो से ओझल हो गयी,ढलती शाम में कार का नम्बर देखना मुश्किल था ,तो अंकित को कार का नम्बर भी नही दिखा, गुस्से से पैर पटकता और खुद पर झल्लाता हुआ अंकित वही सड़क पर बैठ खुद को संयत कर …बापस लौट आया ।

***

रात को अपने बेड पर, मन ही मन,”जरा सा …बस्स जरा सा तेज़ और दौड़ा होता तो …पकड़ लेता उसे …शै मेन,गाड़ी का नंबर भी नही देख पाया,अनामिका के घर के बाहर कर क्या रहा था, देखा नहीं फ़ोटो ले रहा था,अनामिका की फ़ोटो खींच रहा होगा …छोड़ूंगा नहीं इसे,अनामिका घर मे अकेली है…..अब तो बहुत दिन हो गए इसके पेरेंट्स आये नहीं… कल पूँछूँगा.उससे,..अच्छा खासा हाथ मे आते आते रह गया, कोई बात नहीं ..मुझे यकीन है दिखेगा जरूर…और जिस दिन दिखा,

(मुट्ठी बांधकर) मुँह पर ही मारूंगा …बहुत मारूंगा …

इन्ही विचारो में डूबता उतराता सो गया….

अगले दिन जिम करने के बाद , ऑफिस पहुंच गया

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