vinni ki villion mummy
अपनी जिस खूबी पर आप मन ही मन खुश हो रहे होतें हैं…प्रकृति आपके उसी ग़ुण की ऐसी परीक्षा लेगी… कि आपको खुद लगेगा ..ये किस बात की सज़ा और क्यों? .
सन 2016, स्थान: आगरा समय: शाम के 6 से 7 के बीच का समय होगा,
कहते हैं अपनी जिस खूबी पर आप मन ही मन खुश हो रहे होतें हैं…प्रकृति आपके उसी ग़ुण की ऐसी परीक्षा लेगी… कि आपको खुद लगेगा ..ये किस बात की सज़ा और क्यों? ..लोग कहते जरूर हैं या तो ऐसी सिचुएशन से भाग जाइये या लड़िये…मगर हालात ऐसे बनतें हैं कि लड़ना ही पड़ता है” .भागने का ऑप्शन बताना या सोचना फिजूल है….दूसरों के दुख को अपना दुख समझने की जिस आदत को मैं अच्छा मानती थी…उसके कारण इतने बड़े फसाद में फंस जाऊँगी…मैंने सपने में भी नहीं सोचा था…
मैं उन दिनों पोस्ट ग्रेजुएशन के एग्जाम दे रही थी…जैसा कि जगजाहिर है उत्तर प्रदेश में लाइट आती कम है… जाती ज्यादा है, 3 दिनों बाद मेरा एग्जाम था, और गर्मी में बिना लाइट के पढ़ाई करना बहुत कोशिशों के बाद भी सम्भव नहीं हो पा रहा था। साथ ही एग्जाम का प्रेशर बेचैन कर रहा था सो अलग।
“सारे बच्चे छत पर पढ़ते मिलेंगे इस समय, तुम भी छत पर क्यों नहीं पढ़ लेती..” मेरी माँ ने मुझे लाइट न होने के कारण झुंझलाते हुए देखकर कहा..
छत पर पढ़ना तो बहुत दूर की बात गई …मुझे ये भी एहसास हो जाये कि कोई मुझे पढ़ते देख रहा है तो एक मिनट भी मेरा मन पढ़ने में नहीं लगेगा, भगवान की पूजा में ध्यान और पढ़ाई मैं ऐसे कभी नहीं कर पाती..
“होता क्या जा रहा है तुम्हें …बात सुन कर अनसुनी कैसे कर देती हो”…उन्होंने फिर कहा..
“अरे नहीं …जा रही हूँ..बस्स मॉडल पेपर नहीं दिख रहा था…” मैं उनके गुस्से से बचने के लिए झूठ बोली, और बिना एक पल और गवाएं मैंने इकोनॉमिक्स का मॉडल पेपर उठाया और छत पर चल दी..
“गुजंन को देखो…कितनी होशियार लड़की है..जब देखो पढ़ती हुई दिखेगी..कुछ सीखो उससे” मैंने छत पर जाने के लिए पहली सीढ़ी पर पैर रखा ही था, कि ये शब्द मेरे कानों में पड़े।
एक छत को छोड़कर अगली छत पर सच में गुँजन आँखों के सामने छोटी सी किताब रख कर टहलते हुए पढ़ रही थी…मोहल्ले की सारी लड़कियाँ उससे चिढ़ती थीं…गुँजन की इस आदत की वजह से उनपर डाँट जो पड़ती थी….
कुछ वक्त पहले की भी बात होती तो मैं गुँजन को ऐसे पढ़ते देखकर बहुत हँसती …लेकिन उन्हीं दिनों मेरे घर पर सिन्हा आँटी और अंकल का आना अक्सर लगा रहता था..सिन्हा आँटी को कैंसर था जिसके ट्रीटमेंट के चलते उनके सिर के सारे बाल झड़ गए थे… मैंने इतने नजदीक से तब तक इस बीमारी का ऐसा भयंकर रूप नहीं देखा था…मेरे दिमाग पर इसका बहुत असर पड़ा था, किसी की भी अजीब हरकत या आदत देखकर मेरे मन में बस यही आता ना जाने कौन …कैसे हालात से गुजर रहा हो …
बेचैनी में मैंने छत पर चहलकदमी शुरू कर दी, इक्का-दुक्का बच्चे और भी पढ़ते नजर आए, “क्या यार तुम्हारे ही नखरे हैं, क्या ये बच्चे पास नहीं होते हैं ?…बहुत अच्छी ना सही..थोड़ी पढ़ाई तो होगी ही..कोशिश तो करो” ये बात मैंने खुद से ही कही और किताब खोल ली.
“हा हा छत पर बैठकर पढ़ाई…वाह इतनी ही पढाकूं होती तो टॉप ना करती ..आस पास के लोग सोच रहे होंगे कितनी होशियार है लड़की”
ये आवाज मेरे अंतर्मन से आयी..लोगों का अंर्तमन ज्यादातर उनके पक्ष में होता है …मेरा अन्तर्मन मेरे ही खिलाफ रहता है ..वो भी हमेशा…झुंझलाते हुए मैंने किताब बन्द कर दी
मुझसे नहीं होगा…
“हाइ सोना…” आवाज कानों में पड़ते ही मेरी नजर छत की ओर आती हुई सीढ़ियों पर गयी …देखा तो विनीता चहकती हुई चली आ रही है..उसे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी …
हम अपने फ्रेंड या किसी पसंदीदा इंसान को कब उस से जुड़ी चीजों से पहचानने लगतें हैं हमें खुद पता नहीं लगता..बिनीता के लंबे ईयरिंग्स और घुटनों से भी लंबे बाल मेरे लिए उसकी पहचान बन गए थे…हों भी क्यों ना..उससे पहले और उसके बाद आज तक मैंने अपने सर्कल में किसी के बाल इतने लंबे नहीं देखे…
उस दिन भी ऐसा लग रहा था जैसे उसने सफेद मोतियों की माला को बीच मे से तोड़कर, दोनों कानों में पहन लिया था…
‘और उस दिन बालों का जूड़ा बनाया हुआ था…औसत आँखे और गोल नाक की शेप के नीचे पतले होंठ…मेरे पास आकर उसने अपना एक हाथ मेरे हाथ में रख दिया…ये उसकी अजीब आदत थी… जब वो मुझे पहली बार मिली तो उसने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया … जाहिर तौर पर ये हाथ मिलाने का तरीका है सो मैंने भी हाथ बढ़ा दिया..लेकिन ये क्या.. उसने अपना हाथ बस्स मेरे हाथ पर रख कर छोड़ दिया था…उस वक़्त ये कुछ अजीब सा ही था मेरे लिए…खैर मैंने उसे ना तो तब ना, उसके बाद कभी टोका..मुझे पता है आजकल निश्छलता मिलना अपवाद है ..इसे टोककर क्यों कृत्रिम बनाया जाए…
….मैं कुछ बोल पाती इससे पहले ही मेरी नजर उसकी माँ की ओर चली गयी …मुझे उनसे चिढ़ थी……अब तक इतनी चिढ़ जाहिर तौर पर किसी महिला से कभी नहीं हुई है…उसकी ठोस वजह भी है..कुछ सालों पहले उनकी आँत बढ़ना शुरू हो गयी..जिसका ऑपरेशन हुआ और वो महीनों बिस्तर पर रहीं …मेरी माँ की मित्र थी सो, जब मेरी माँ उन्हें देखने गयी मुझे भी साथ लेती गयी..तब ही बिनीता से पहली बार मिलना हुआ…तब मैं हाईस्कूल में थी…बिनीता ने अपने नन्हें हाथों से पूरी ग्रहस्थी का काम संभाल लिया था…जिसमें बिनीता के माता-पिता एक छोटा भाई हर्षित और दादा, दादी भी थे।
फिर बाद में उसकी माँ को आराम करने की जो लत लगी तो कभी नहीं छूटी …वो कोई ना कोई बीमारी का बहाना बना कर हर समय बिस्तर पर रहतीं और बिनीता का ध्यान पढ़ाई से हटकर घर के कामों में ऐसा रमा कि उसने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई की ही नहीं..या पढ़ने का कारण उसकी माता जी ने छोड़ा ही कहाँ”? और उस पर भी हैरत की बात ये कि, परिवार के किसी भी इंसान को बिनीता के ना पढ़ पाने का रत्तीभर अफसोस नहीं था..सो चिढ़ की वजह जायज थी मेरे हिसाब से…
नाजुक सी लड़की दिन रात की गृहस्थी में ऐसी लगी मुझे यकीन है उसका कद बामुश्किल 5 फ़ीट का… अधिक काम के चलते रह गया था..
… बिनीता की माँ का वजन 95 किलो से कम तो हरगिज नहीं था। और लम्बाई कोई 4 फ़ीट, 8 या 9 इंच होगी…
और वो महारथी 24 घण्टों में से 23 घण्टे बिस्तर पर ही विराजमान रहतीं (हाँ उसमें कहीं आना जाना अपवाद स्वरूप था.)
उन्होंने आखिरी सीढ़ी पर पैर रखते हुए मुझे देखा और हाँफने लगी…..मैंने नमस्ते की मुद्रा में उनसे हाथ जोड़ उनका अभिवादन किया..और उन्होंने हँसते हुए गर्दन हिला दी.. उस हँसी के पार मुझे खुद के लिए चिढ़ दिखी..मुझे यकीन था उन्हें भी मुझसे चिढ़ थी…जिसकी वजह मुझे बहुत बाद में पता लगी…ख़ैर
..”सो..ना …” बोलकर मेरी माँ ने अपनी नजरें इनायत मुझ पर की जो इस बात का इशारा था..कि मुझे चाय नाश्ते का इंतज़ाम करना था।
“शर्बत या लस्सी क्या बनाऊँ आँटी जी ” मैंने सीढ़ियों से उतरते हुए पूछा
“भई हम तो चाय ही पीते हैं…गर्मी हो या सर्दी ” वो हँसते हुए बोलीं ..और मैं सीढ़ियां उतर गई …मेरे पीछे बिनीता भी नीचे उतर आई
“सो…ना…भेलपुरी बनाना …तेरे हाथ की पसंद हैं ” आँटी की आवाज आई ..
हॉं हॉं केवल बिस्किट और नमकीन से आपका होगा भी क्या मोटो ..
“जरूर” कहते हुए मैंने चाय बनने रख दी
“पता है, लड़का देखा है एक मेरे लिए” बिनीता मुस्कुराते हुए बोली
2010 में मैंने पहली बार सुना था…कि उसके लिए लड़के ढूंढें जा रहे हैं..मैं भी चाहती थी उसकी शादी हो जाये..जितना काम वो यहाँ करती है इसका आधा भी अगर ससुराल में किया तो पूरा घर ना सिर्फ उसके काम का बल्कि हमेशा निश्छलता से मुस्कुराते रहने की आदत का मुरीद हो जाएगा..खूबसूरत तो वो है ही…और क्या चाहिए किसी को अच्छी बहू के रूप में ?
“हम्म” मैंने चाय में चीनी डालते हुए कहा
“पता है बहुत अच्छा है ” ये बोलकर वो अजीब ढंग से मुस्कुराई
और मुझे अब इंटरेस्ट आने लगा था
“अच्छा …चलो ये तो अच्छी बात हुई ” मैंने खुश होकर कहा
तो वो अपने गले में पहने पैंडेंट को दिखाते हुए बोली
“ये इन्होंने… दिया है” और शरमाने लगी
“इन्होंने ” सुनकर मैं चौंक गयी..मतलब मामला साधारण से थोड़ा ऊपर है, मैंने देखा एक सुंदर सा पैंडेंट जिसमें बीचोबीच एक सफेद रंग का नग चमक रहा था और उससे भी ज्यादा चमक रही थी बिनीता..
“मतलब शादी तय हो गयी है” मैंने खुश होकर पूछा
“अरे नहीं …यार…किसी को पता भी नहीं घर में कि, मैं मिली हूँ इनसे” वो धीमी आवाज में बोली
“अच्छा..कहाँ मिली”? मैंने अब तक प्लेट में नमकीन बिस्किट लगा लिए थे
“वो रेस्टोरेंट है ना” वो किचिन की सीलिंग की ओर हाथ उठाकर बोली
“जो नन्हूमल चौराहे के पास नया खुला है..” मैंने साफ किया तो
उसने हांमी में सिर हिला दिया
“हाँ लेकिन मैंने वहाँ जाने से मना कर दिया” वो ना में हाथ हिलाते हुए बोली
“अच्छा …फिर? “
“फिर क्या ..फोन पर तो मैंने हाँ कर दिया था लेकिन बाद में हम मंदिर में मिले”
“क्यों इतना कन्फ्यूज कर रही है.यार..कुछ समझ नहीं आ रहा”
मैंने जल्दी बनती चाय की गैस का फ्लेम कम कर दिया ..और मैं भेलपुरी बनाने लगी, उसने मेरे हाथ से टमाटर लेकर काटना शुरू कर दिया और मैंने प्याज़, वो शर्मायी और बोली
“मैंने फोन पर कई बार बात कर ली इनसे, तो इन्होंने कहा..जब सबके सामने मिलना होगा तो बात नहीं हो पाएगी..क्यों ना हम पहले ही कहीं मिल लें…”
“हम्म..तेरा नम्बर उसे कहाँ से मिला “
“ओह्ह, हर्षित की अच्छी बनती है इनसे, मम्मी ने एक दो बार फोन पकड़ा दिया था हर्षित को…फिर वो हर्षित से उसके स्कूल में भी मिल आये थे…तभी ये बोलकर कि उसे साइकिल दिलाएंगे, हर्षित से मेरा नम्बर ले लिया था” उसने हँसकर बताया
“अच्छा…लड़का ठीक तो है ना” मैंने चिन्तावश पूछा, बिनीता मासूम जो थी और ये लड़का तेज़ लग रहा था, हर्षित (विनीता का भाई) वैसे भी भोंदू सा लगता मुझे, कहने को इंग्लिश मीडियम स्कूल में सातवीं या आठवीं में पढ़ता होगा, लेकिन वो मुझे रट्टू तोते से ज्यादा कुछ और कभी महसूस नहीं हुआ, उससे नम्बर लेना आसान था..हे भगवान लड़का अच्छा हो मैंने मन ही मन प्रार्थना की
“ओहहो तू चिंता मत कर दादी, सुन तो… फिर हुआ क्या”
“हॉं हाँ बता…”
“घर से ये बोलकर कि मंदिर जाना है, मैंने नन्हूमल चौराहे पर पहुँचकर …उन्हें फोन कर दिया..बात करते करते लगा..कुछ टक..टक की आवाज सी आ रही है ..फ़ोन रखकर जब देखा तो ..” वो हँसने लगी
“क्या हँसे जा रही है बता भी”
“मैंने देखा मेरा सेंडिल ..सेंडिल टूट गया था…” वो बेतहाशा हसने लगी जबकि मुझे चिढ़ हो रही थी ये सुनकर
“हद्द है……क्या मौके पर सैंडिल टूटा है…फिर तो लौट आयीं होओगी तुम ?” मैंने सिर हिलाकर प्रतिक्रिया दी
“लौटना क्यों ? तूने देखा नहीं ..वो मोची, जो वहाँ बैठा रहता है …वहीं पास ही तो है”
“हम्म …हम्म ” मैंने याद करते हुए कहा
“बस्स जाकर मोची को अपनी सैंडिल दे दी, इतने में ही इनका फिर से फोन आ गया…”
“फिर?”
“क्या आज ही चाय मिलेगी …?” जैसे ही ये आवाज मेरे कानों में पड़ी मैंने हड़बड़ाकर, गैस जला चाय गर्म की और जब चाय कपों में छानीं तो मुश्किल से दो कप हुई,
“ओहहो चाय जल गई..अब तो पक्का डाँट पड़ेगी..कहेंगी इतनी देर से चार कप चाय भी नहीं बना पाई” कहते हुए मैंने ट्रे में कप रखे ही थे कि उसने फिर से फ्राईपेन गैस पर रखते हुए कहा “तुम चलो मैं बस्स अभी आयी..”
“इतनी जल्दी कैसे बनेगी” मैंने कहा
“ओहहो, आज मेरी खातिर थोड़ी कम उबली चाय पी लेना” वो मुस्कुरा कर बोली ..तो मैने भी हँसते हुए समर्थन किया, और छत पर चली गयी…जैसे ही ऊपर जाकर ट्रे रखी आँटी बोलीं “मुझे लगा तुम आसाम निकल गयीं आज”
मैं मुस्कुरायी और नीचे जाने को मुड़ी तो बिनीता हमारी चाय और भेलपुरी लेकर आ चुकी थी, हमने अपने कप उठाये और छत के एक कोने में चले गए,
“फिर क्या हुआ ?” मैंने पूछा
“फिर जैसे ही मैंने इनका फोन उठाया ….”
“क्या यार. सीधे …नाम ले ना” मैं झुँझलायी
“अच्छा अच्छा …हाँ तो नीरज ने फोन किया और बोले मैं आ गया हूँ तुम कहाँ हो…मैंने उनका फोटो एक बार ही देखा था लेकिन फिर भी मैं उन्हें पहचान गयी…सड़क पार देखा तो नीली शर्ट पहने वो बाइक पर थे…मैंने कहा सामने देखिए…रोड पार…’
“हम्म….”
“नीरज ने कहा नहीं दिख रही तुम…मैंने कहा एक बड़ी सी छतरी दिख रही है और उसके नीचे बैठा मोची?…वो बोले हाँ …फिर मैंने कहा बस्स उस मोची के पास पड़े पत्थर पर ही तो बैठी हूँ…
“हे भगवान ”
” ..वो मुझे देखकर मुस्कुराये..और बस्स आ गए रोड पार….तब तक मेरी सैंडिल भी ठीक हो गयी थी..”
“हद्द है … क्या पहली मुलाकात हुई है” मैंने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा…”तुम्हारा पत्थर पर बैठना जरूरी था क्या?” मैं खीज़ी
“थक गई थी ना……” वो हँसे जा रही थी
“क्या यार … हद्द है, मोची की दुकान पर बैठी मिली हो उसे ” मैँने उसे डाँटते हुए कहा
“अरे ये तो कभी भी किसी के साथ कभी हो सकता .”
हम्म बात तो ठीक कह रही थी…
“हम्म फिर? “
“नीरज तो रेस्टोरेंट ले गए लेकिन मैंने मना कर दिया…पहले वहाँ गयी थी फैमिली के साथ एक बार … लड़के तो लड़के आदमी भी ऐसे देखते हैं जैसे गर्दन में हड्डी ना हुई स्प्रिंग हो गयी…ये लड़के क्यों देखते हैं? क्या मिल जाता है देखने से ?”
“क्या पता…शोध का विषय है..अभी तक तो पता लग नहीं पाया…”
“हम्म…फिर हम कैलाश मंदिर चले गए…”
“अच्छा”
“सुन मैंने उन्हें तेरे बारे में बता दिया है” कुछ रुककर वो बोली
“क्यों भला” मुझे ये सुनकर कोई बहुत अच्छा नहीं लगा था
“अब कौन है तेरे अलावा मेरा”…वो हँस कर बोली तो मुझे एहसास हुआ इसमें बुराई भी क्या है…”ठीक है” मैंने कहा…
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तीन दिन बाद एग्जाम देकर मैं सुकून से बैठी टी. बी. देख रही थी कि मेरा फोन घनघनाया, बिनीता का ही था मैंने उठा लिया
“हाय पेपर कैसा हुआ”? उधर से वो चहकते हुए बोली
“ठीक ठाक हो गया है”
“अच्छा सुन… घर आ”
“क्यों”?
“अरे आ तो …तेरी पसन्द के काले गुलाब जामुन बनाये है”
मेरा जाने का बिल्कुल मन नहीं था,
“क्या हुआ..आजा यार बहुत मन है मिलने का” बिनीता प्रार्थना करती हुई बोली,
“ठीक है …आ रही हूँ” एग्जाम के चलते रात भर ठीक से सो नहीं पायी थी ..और अब थकान भी थी..लेकिन उसने ऐसे कहा तो मना नहीं कर पाई..और अगले तीस मिनट में मैं उसके घर पर थी..
सामने ही बेड पर आँटी बैठी हुईं थीं…मुझे बैठने का इशारा किया और पूछा ” पता तो लग ही गया होगा तुम्हें…”
“क्या?” मुझे पता था..वो नीरज़ और बिनीता के बारे में पूछ रही थीं..फिर भी बिनीता के मामले में मैं अति की हद तक संजीदा थी..क्या मालूम क्या चल रहा हो और बेचारी को कुछ सजा मिल जाये…
“अरे वही ….लड़का देखा है उसके लिए …अच्छा है..नीरज नाम है उसका”
“हॉं हाँ बताया था कि कोई शादी की बात चल रही है..ज्यादा कुछ नहीं पता मुझे” मैंने बहुत संभाल के शब्द प्रयोग किये
“हम्म, वैसे तो ठीक है लेकिन लड़का एम. आर. है मेडिकल कम्पनी में, बस्स यही थोड़ी दिक्कत है…बाकी तो ठीक ही है..बिन्नी (बिनीता) तो उससे फोंन पर बात भी करती है..” वो उभरी हुई आँखो को और आगे निकालकर बोली.. खुश नहीं दिख रही थीं
…तभी बिनीता मेरे लिए एक प्लेट में काला गुलाब जामुन रख कर ले आयी…मुझे लगा कह दूँ..आपने अपनी बेटी को पढ़ाया नहीं…कुछ सिखाया नहीं..ना ही उसकी पसंद नापसन्द की चिंता की…वो तो बस्स उसका खुद का व्यवहार और सुंदरता है..वर्ना कहने को लड़का भी बोल सकता है ..लड़की बस्स हाईस्कूल पास है।
“आँटी आपने बिनीता को पढ़ाया क्यों नहीं..” मैंने सटीकता से ये प्रश्न कर दिया.ऐसे प्रश्न की उन्होंने आशा कभी भी नहीं की होगी…वो भौंचक होकर पलकें झपकाने लगीं
“तुम्हें तो पता है..मम्मी की तबियत ठीक नहीं रहती है….फिर अब मेरा मन भी पढ़ने में नहीं लगता” बिनीता ने अपनी माँ की ओर से जब ये जवाब दिया तो वो मेरी नजरों में और चढ़ गई…
बेचारी… इसे फिक्र है अपनी माँ की लेकिन माँ को …?
“देखो बिन्नी (विनीता) पढ़ने से सोचने की शक्ति बढ़ती है..पढ़े लिखे होने से पति भी इज़्ज़त करता है..” मैंने बिन्नी को समझाते हुए कहा
“अब इस उम्र में ये बारहवीं के पेपर देते हुए कैसी लगेगी .बच्चे हसेंगे नहीं इस पर” आँटी बिनीता का मजाक उड़ाती हुई हँसने लगी, उन्हें ऐसे हँसते देख बिनीता के चेहरे से भी हँसी गायब हो गयी थी…
“अच्छी लगेगी, शक्ल से बिन्नी बीस साल से ज्यादा की नहीं दिखती…उम्र सिर्फ फॉर्म पर लिखनी होती है…सबको बतानी नहीं होती” मेरे ऐसा कहते ही आँटी ने हँसना बन्द कर दिया
“तुम्हें पता नहीं है बिन्नी, आजकल के बच्चे भी ..अगर माँ पढ़ी लिखी ना हो तो इज़्ज़त नहीं करते..”
मेरा ऐसा कहना ही था…कि आँटी ने मुझे एक चुभती नजर से देखा, मुझे भी एहसास हुआ बिन्नी का अच्छा करने की चाहत में फ्लो-फ्लो में, मैं ना सिर्फ ज्यादा …बल्कि गलत भी बोल गयी हूँ..
“हैं …? “बिनीता के मुंह से अचरज से जब ये निकला तो मैंने खुद को माफ कर दिया…लगता है बात का असर हुआ है..वो अचानक से कमरे से बाहर चली गयी…और आँटी ने मेरी ओर घूरते हुए देखकर कहा, “इसपर तुम्हारी बातों का असर खासतौर पर कुछ ज्यादा जल्दी हो जाता है,..ऐसा कुछ कहना हुआ करे तो अकेले में पहले मुझसे कहा करो…..ये पढ़ेगी तो …घर का काम कौन करेगा..और मेरी तबियत …और पैसा..हर घर की समस्याएं अलग अलग होतीं हैं”..
ओह तो ये बात है…हे भगवान…मतलब मेरा चिढ़ना बेकार में ही नही हैं
“इसकी शादी होगी, तुम्हें क्या लगता है हवाओं में हो जाएगी …पैसा खर्च होता है” वो जोश में बोलते हुए मेरी ओर खिसक आयीं थीं..और उनकी इन समस्याओं के बखान का मुझ पर रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा कि इतने में बिनीता मेरे लिए एक और गुलाबजामुन लेकर आ गयी …
“एक और ले ना.. बता कैसे बने हैं” मेरी प्लेट की ओर झुकती हुई वो बोली
“न नहीं ..अब नहीं..मन तो क्या पेट भी भर गया है..बेहद टेस्टी बनें हैं” कहते हुए मैं जाने के लिए उठ गई
“बहुत भरोसा है तुम पर..कम से कम इतनी अक्लमंद तो होगी ही..कि तुम्हें पता हो कौनसी बात किसको नहीं बतानी है ” वो बिनीता की ओर इशारा करते हुए बोलीं
जाहिर है अभी उनकी कही हुई बात अगर बिन्नी को पता लगी तो उसे कितना दुख होगा, वो ना भी कहती मुझसे, तो भी नहीं बताती मैं उसे..
“आप फिक्र मत कीजिये ..आपका ये… भरोसा तो कभी नहीं तोड़ूंगी” मैंने बहुत संयत होकर कहा तो उनके चेहरे पर सुकून आ गया
बैठने से सिलवटें पड़े अपने कपड़े मैंने यूँ ही ठीक किये तो वो बोलीं ” तुम इतने अजीब से कपड़े पहनती कैसे हो..ये पैंट तो ऐसे लग रहा है जैसे किसी लड़के का हो” वो फिर मजाक उड़ाने वाले अंदाज में हँसने लगी, मैं समंझ गयी ये उनकी मेरे प्रति खीज़ है जो बिन्नी को पढ़ाई का महत्ब समझाने से उपजी है
“ये पलाज़ो है, और लड़के पलाज़ो नहीं पहनते..” नपा- तुला इतना जवाब देकर मैंने उनके उभरे पेट की ओर देखा कम से कम दस इंच का पेट बेतरतीबी से बाहर निकला हुआ था…जिसे 6 मीटर की साड़ी भी ढ़कने में नाकाम थी….
क्या ये जो सच में अजीब है..इन्हें अजीब नहीं दिख रहा?
‘तो मन ही मन क्यों बोल रही है …बोल दे मुँह पर ..है भी तो सच..” ये मेरा अन्तर्मन बोला
नहीं नहीं तहजीव भी कोई चीज़ होती है…मैंने खुद को ही जवाब दिया और बाहर निकल आयी कभी नहीं जाऊंगी बिनीता के घर
“नहीं नहीं जाओ गुलाबजामुन खाने..जाओ” फिर मेरे अंदर से आवाज आई
“मैं बिनीता से मिलने गयी थी, गुलाबजामुन खाने नहीं गयी थी”
“और मानेगा कौन” ये फिर से मेरा अंतर्मन बोला…
***
मई में मेरे एग्जाम खत्म हुए, जून में बिन्नी ने कई बार मुझे कॉल कर के बुलाया लेकिन मैं नहीं गयी…वो खुद मेरे घर आ नहीं सकती थी क्योंकि इस बार मोटो को टाइफाइड हुआ था….वो मुझे कभी -कभी फोन पर खुद के और नीरज के बारे में बताती रहती..तब तक मुझे यही लगता था…लड़का घरवालों की पसंद का है..और बिनीता को भी पसंद है तो सब आसान ही दिख रहा है…
लेकिन कुछ लव स्टोरियाँ उल्टे क्रम में चलती हैं…सबसे अच्छे दौर (जिसमें सब सहज दिख रहा होता है) से …बुरे..फिर अत्यंत पीड़ाकारी और अंत में या तो घुटनभरी जिन्दगी जीने की बाध्यता या लड़ने का विकल्प ….
मैंने कहा ना.. भागने का विकल्प हमेशा नहीं होता…. .
जुलाई के दूसरे या तीसरे सप्ताह में डोरबेल बजी और बिन्नी अपनी माँ के साथ मेरे घर पर हाज़िर हो गयी…
उनके लिए जैसे ही पानी लेने किचिन में गयी..बिन्नी मेरे पीछे -पीछे किचिन में आ गयी ..उसके.चेहरे की रौनक कम हो गयी थी
“क्या हुआ..सब ठीक तो है” मैंने पूँछा
“हम्म..तुझे पता है मैंने अपना फॉर्म भरा दिया है, इंटरमीडिएट का…तू उस दिन ना कहती ..तो नहीं हो पाता ऐसा”
“ये तो सच में बहुत खुशी की बात है..फिर उदास क्यों हो” मैंने खुश होकर कहा, मैं उसके लिए सच में बहुत खुश थी..
हालांकि बिनीता की माँ ऐसे करते हुए मन ही मन मुझ पर कितनी नाराज हुई होंगी इसका मुझे एहसास था।
अचानक उसने एक गहरी सांस खींची…और अगले पल उसका चेहरा लाल हो गया…उसने अपने दुपट्टे को मुँह में लगभग ठूँस लिया और उसकी आँखो से झर-झर आँसू बहने लगे!
2.
उसे रोता देखकर मेरा मन आशंका से भर गया…
“बता तो हुआ क्या…” मैंने घबराकर पूँछा
“क्या बताऊँ…मम्मी…नीरज को फोन करके उसके बैंक के स्टेटमेंट के साथ रेस्टोरेंट में बुलाती हैं..पहले उससे मंगा कर ही खाना खाती हैं…फिर उसे ताने मारती हैं”
“अकाउंट किसका”?
“नीरज का…”
“ओह्ह…उन्हें बैंक स्टेटमेंट देखना आता है” मैंने आश्चर्य से पूछा क्योंकि मेरे मुताबिक वो टूटी-फूटी हिंदी के अलावा कुछ और भी पढ़ सकती है… यकीन नहीं हो रहा था
“नहीं …इसीलिए तो हर्षित को अपने साथ ले जाती हैं…”
“ओह…” मुझे समंझ नहीं आ रहा था क्या कहूँ इस पर
“अच्छा सुन, इसमें रोने जैसा क्या है, वो माँ हैं ..उन्हें जानने का हक है कि जिससे उनकी बेटी की शादी हो रही है वो कितना कमाता है ..या उसके पास कितना पैसा है…इसमें गलत तो कुछ नहीं .” बोलने को बोल दिया लेकिन सच कहूँ तो मुझे भी सुनकर अजीब ही लग रहा था…घर में और भी लोग हैं बिन्नी के पापा और बाबा..पास ही 2 चाचा भी रहते हैं उसके…वो भी नीरज की फाइनेंशियल कंडीशन के बारे में पता कर सकते थे…सो भी एक सभ्य तरीके से…जो इतना अजीब नहीं लगता…
” नहीं यार…तुम नहीं समझ रही हो..मम्मी ऐसा तीन बार कर चुकी है..नीरज को बेइज़्जती महसूस होती है”
“स्टेटमेंट चेक करने के लिए तीन बार बार बुलाने की क्या जरूरत ?”
“अलग -अलग बहाने से बुलाती हैं नीरज को, ताकि तानें मार सकें कि उसके अकाउंट में सिर्फ साढ़े चार लाख रुपये ही क्यों हैं….कितनी तारीफ की थी मैंने नीरज से अपनी मम्मी की, बता जरा । क्या सोच रहे होगें वो लोग”
“तुम बेकार ही इतना सोच रही हो, नीरज ये सब घर में नहीं बताएँगे…लड़के इतने तो समझदार होतें हैं कि…” मैं उसका मन रखने को बोली कि उसने मुझे बीच में ही टोक दिया
“एकाध बार होता तो नहीं बताते …जब तीन बार मम्मी ने बुलाकर नीरज की इन्सल्ट की तो उन्हें चिंता होगी कि नहीं …और वैसे भी बात अब सिर्फ हम दोनों की ही नहीं रही है” उसने अपनी उँगली मुझे दिखाते हुए कहा। जिसमें एक अँगूठी चमचमा रही थी, मेरा सारा ध्यान उसकी अँगूठी पर जा लगा
“इंगेजमेंट हो गयी?…तुमने मुझे बताया तक नहीं?…और जब इंगेजमेंट हो गयी है तो ये रोना धोना क्यों”? अचानक से मेरे लहजे में गुस्सा आ गया था…
“जैसा तुम सोच रही हो वैसा नहीं हुआ है” वो बड़ी शांत मुद्रा में बोली
“मतलब…?”
“मतलब ये कि मैं नीरज के मम्मी, पापा और बहन सबसे बात करने लगी हूँ, सब बहुत अच्छे हैं…और मुझसे खुश भी हैं, जब उन्होंने मुझसे पूछा कि बेटा तुम्हारी मम्मी नीरज के साथ ऐसा वर्ताव क्यों कर रहीं हैं, क्या तुम्हें पता है?
“ओह्ह…अच्छा..”
“बता क्या जवाब देती?…..सासू माँ तो ये तक बोली, कि बेटी तुम हमें बहुत पसंद हो…हम कुछ नहीं चाहते हैं सिवाय इसके कि तुम्हारी और नीरज की जल्दी से शादी हो जाये” बिन्नी कहीं खोई सी मुस्कुराने लगी..
उसे खोया देखकर मुझे एहसास हुआ,कुछ ही महीनों में ये लड़की किस कदर इस रिश्ते को लेकर संजीदा और समर्पित हो गयी है..
“हम्म…फिर? “
“फिर मैंने नीरज से बात की..और हम दोंनो ने तय किया…कि एक कदम आगे बढ़ा जाए…मैंने नीरज से कहा मेरे पापा मेरी माँ की इजाज़त के बग़ैर साँस भी नहीं लेते.. तो बस्स उन्हें फ़ोन करके बता भर दो कि आज आप लोग आ रहें हैं…और मौका देखकर नीरज की माँ मेरी गोद में कुछ रख दें…फिर तो इसे सगाई माना जायेगा…कोई क्या कर लेगा फिर?”
हम्म सही कहा है किसी ने, इंसान को जब कोई चीज़ भी चाहिए होती है, तो उसके लिए कोशिशें करता ही है…और रास्ते भी खुद व खुद मिलने लगते हैं….
“फिर जब नीरज के पिताजी ने मेरे पापा को फोन किया तो वो कुछ जवाब दे ही नहीं पाए…घर आकर जब मम्मी को बताया तो मम्मी बहुत नाराज हुईं, वो लोग दोपहर को ही आ गए…और जब मम्मी नाश्ते के इंतजाम देखने गयी…इसी बीच नीरज की मां ने मेरी गोद में 2 साड़ियां और मिठाई रख दी…और अँगूठी भी पहना दी…और एन अंगूठी पहनाते वक़्त ही मम्मी वहाँ आ गयी …और सबके सामने ही नाराज होते हुए बोलीं..
“बहिन जी ये क्या तरीका हुआ…कम से कम बताती तो, पता नहीं आज की तिथि कैसी हो, और फिर हमने कोई इंतजाम भी नहीं किया है सगाई का”
“अरे । फिर…”
“फिर क्या नीरज की मम्मी बहुत समझदार हैं बोलीं “बच्चे एक दूसरे को पसंद करते हैं…सबसे बड़ी बात तो यही है…हमने बस्स अपनी ओर से रिश्ता पक्का कर दिया है..रही बात इंतज़ाम ना कर पाने की ..तो आप अगर ग्यारह रुपये भी दे दें नीरज को …तो भी शगुन हो जाएगा…आशीर्वाद ही बहुत है”
“हम्म…लगतीं तो समझदार हैं”
“हैं वो समझदार यार, जैसे ही वो लोग गए …मम्मी ने ये कहते हुए ” तुझे शादी की बहुत जल्दी है ” मुझे दो चांटे मारे..”
“क्या …”? मैं चौंक गई
“हॉं ..अब बता डरना चाहिये कि नहीं…मम्मी विलेन बन रहीं हैं…..अचानक नीरज में उन्हें क्या बुरा लगने लगा है, समंझ नहीं आ रहा..जबकि ये रिश्ता उन्हें ही सबसे ज्यादा पसंद था…उन्होंने ही मुझे कम से कम 10 बार कहा कि बात कर लिया करो नीरज से…और अब देखो…”
उसकी सारी बात ध्यान से सुनने के बाद मैंने कहा
“हम्म….शायद मुझे समंझ आ रहा है…”
“क्या …बताओ ना …”
“नीरज को तुम्हारी माँ ने पसन्द किया था…अगर तुम चुपचाप शादी कर लेतीं..तो कोई समस्या नहीं थी…लेकिन यहाँ हुआ ये , कि तुम और नीरज एकदूसरे को प्यार करने लगे हो ..और यही समस्या है”
“ये क्या समस्या…इससे तो उन्हें खुश होना चाहिए” ? बिनीता हैरत से बोली
“यही… तो परेशानी है…अगर किसी लड़की ने अपने लिए लड़का खुद पसंद किया है…तो चाहे फिर वो लड़का भगवान का अवतार ही क्यों ना हों…घरवालों को वो लड़का दुनिया का सबसे नाकाबिल और बुरा लड़का लगता है…”
मेरी बात सुनकर बिन्नी मुझे आश्चर्य से देखने लगी …मैंने कहना जारी रखा
“तुम्हारे घर मे हर छोटा बड़ा निर्णय तुम्हारी मम्मी ही लेती आयीं हैं….शादी के लिए हर बात अगर तुम्हारी मम्मी से पूँछ कर होती …तब उन्हें कोई एतराज नहीं होता…लेकिन हुआ ये लड़के वाले और नीरज तुम्हें पसंद करने लगे हैं…और तुम उन्हें…और तुम्हारी मम्मी को लग रहा है कि सब अपने आप हो रहा है..उनके हाथ से ये अधिकार जा रहा है ..उस पर नीरज की माँ का बिना तुम्हारी मम्मी से पूछे तुम्हें शगुन दे देना…इसने तो उनके जख्म पर नमक डालने जैसा काम किया है …समझीं’
“ओह्ह……तभी …आज उन्होंने मुझे नीरज से बात करने के लिए भी मना किया”
“अच्छा …?..”
“हम्म…पता है सोना…तुम्हें दादी यूँ ही नहीं कहती मैं…ये जो तुमने समझा और कहा …मैं कभी भी पता नहीं लगा पाती” वो हल्की मुस्कान के साथ बोली
“वो सब छोड़ो…अपने पापा से बात करो …उन्हें पता लगने दो कि तुम इस रिश्ते को लेकर कितनी संजीदा हो”
“पापा…हुम्म…मैंने जबसे होश संभाला है ना सोना…तब से लेकर आजतक उन्हें बस सुबह खाना खाकर स्कूल जाते फिर लौटकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते और शाम को फिर खाना खाकर सोने के अलावा किसी और बात से मतलब रखते नहीं देखा “
“कह कर तो देखो…आजतक नहीं बोले इसका मतलब ये तो नहीं आगे भी नहीं बोलेंगे?
उसने बिना मन होते हुए भी सिर हिलाकर मुझे आश्वासत किया कि वो बात करेगी…
***
लगभग दो दिन बाद :–
मेरे मोबाइल पर बिन्नी का कॉल आया..जैसे ही उठाया उधर बिन्नी चहकती आवाज में बोली
“हे सोना …पता है क्या हुआ”
“क्या…?”
“शादी तय… हो ..गयी है…” मुझे लगा उछल रही है उधर
“आँ..अरे वाह।…कब की डेट निकली है ” मैंने कुछ गलत ही सोच लिया था बिन्नी की मम्मी के बारे में, वो माँ हैं..लड़के के बारे में जानने का पूरा हक हैं उन्हें
“पता है आज से पंद्रह दिन बाद ही है शादी…तुझे शादी का कार्ड देने मैं खुद आऊँगी…लेकिन तुम तैयारी कर लो” विनीता बोली
“हाँ हॉं तुम्हारी शादी में शामिल होने के लिए मुझे कार्ड की जरूरत नहीं हैं…मेरे लिए कुछ काम हो तो बताओ ” मैंने भी खुश होकर कहा
“काम- वाम कुछ नहीं है..तुम तो बस नीरज से मिल लो…वो तुमसे और आँटी जी से मिलना चाहते हैं”
“अच्छा…. ?”
“हम्म..तुम सबसे अच्छी दोस्त हो मेरी…उन्हें तुम्हारी मम्मी से बात करके उन्हें बहुत मदद मिलेगी …कि क्या और कैसे किया जाए जो मेरी मम्मी खुश हो जाएं उनसे…अब खुद की मम्मी से तो बात नहीं कर सकते ना..और तुझे तो पता है यार…मुझे ज्यादा सामाजिकता का ज्ञान व्यान नहीं है”
“हाँ हाँ ये भी कोई पूछने की बात है..जब चाहे आ जाएं” मैंने कहा और फोन रख दिया…और अपनी माँ को इस ख़ुशखबरी के साथ-साथ नीरज के घर आने की बात भी बता दी..वो भी खुश हुईं…
***
लगभग 7 दिन बाद ,
मेरे मोबाइल पर एक अननोन नम्बर से कॉल आया…मैंने जैसे ही पिक किया…”हैलो”
“हैलो…आप का नाम सोना है ना”?
“ज..जी..आप ?”
“मैं नीरज…
“नीरज ..बिन्नी मतलब बिनीता के …??
“जी ..वही हूँ..जिससे बिन्नी मतलब बिनीता की शादी होने वाली है” उसने मेरे अंदाज़ में ही जवाब दिया…
“ओह्ह…हाइ…नयी…अ ..नमस्ते कैसे हैं आप…”मुझे समंझ ना आये अचानक बोलूं क्या
“हाइ…नमस्ते…सोचता हूँ…घर आकर ही आमने सामने बैठकर हालचाल पूँछा जाए …क्यों”?
“हॉं क्यों नहीं …कब आएंगे बताइए”?
“अभी …”
“जी …”
“अरे भाई अभी आ रहा हूँ, जैसा कि बिन्नी ने बताया था मैं हनुमान मंदिर तक तो आ गया हूँ.अब आगे का रास्ता भूल गया..आगे के रास्ते के लिए गाइड कीजिये”
ये तो पहुंच गया है …
“क्या हुआ…आगे का रास्ता बताइए?” वो फिर बोला
“जी…जी ..आप कौन सी साइड से आ रहें हैं”
“जी.टी.रोड की तरफ से..”
“ठीक है …लगभग एक किलोमीटर और आगे आइये…बिल्कुल सीधे…
“ठीक है”
“फिर आपको एक स्कूल दिखेगा..ट्यूलिप इंग्लिश मीडियम स्कूल…बस्स वहाँ से मुझे फोन कीजिये…”
“ओके”
मैंने फोन रखा और अपनी माँ को बताने दौड़ी, जो महीनेभर की राशन लिस्ट बना रहीं थी
“मम्मी वो..आ ..नीरज आ रहा है”
“कौन नीरज?”
“अरे वो बिन्नी का होने वाला हसबैंड”
“अच्छा ..कब ?”
“अरे अ..भी तो वो ट्यूलिप स्कूल के पास पहुँच भी चुका होगा शायद.”
“हें?”
मैंने जैसे ही अपनी गर्दन हाँ में हिलाई, शांत मुद्रा में बैठी मेरी माँ तेज़ी से किचिन की ओर चली गयी…”सब कुछ है ना
…नाश्ते में क्या रखोगी?”
“नमकीन, बिस्किट और चाय” मैंने कन्धे उचकाते हुए हल्के अंदाज़ में कहा
“वाह इतना सारा इंतज़ाम..” वो तंज भरे अंदाज़ में बोलीं
“तो? मैं आगे सुनने को बोली
“.पता भी है…सारे रिश्तेदार एक तरफ दामाद अकेला एक तरफ…सबसे सम्मानित रिश्ता होता है दामाद का…”
“अर ..तो वो कौन सा रिश्तेदार है….वो तो बिन्नी का होने वाला…” मैं इतना बोल ही पायी थी कि वो डपटते हुए बोलीं
“चुप रहो…तुम्हारी तो सहेली का पति है फिर भी…अरे है तो दामाद ही…एक काम करो …तुम प्याज़ और आलू काटो पकौड़ी तल देना…और अभी से नमकीन, बिस्किट प्लेट में लगा दो…ट्रे में कप रख लो …तब तक मैं बाहर गली में देखती हूँ…कोई बच्चा दिखे तो उससे समोसे मंगा लूँ…”
कहने के साथ ही कुछ पैसे लेकर वो गेट से बाहर चली गयीं..मेरी माँ कितनी प्यारी हैं…अभी मैंने प्याज़ काट भी नहीं पाया था..कि वो लौट आयीं
“क्या हुआ अभी तक कढ़ाही नहीं रखी गैस पर”?
“अभी से ..?”
“अरे । तब तक तेल गरम हो जाएगा ना.. तुम किचिन में लगी रहोगी… .तो क्या मैं अकेले ही बात करूँगी उससे ” कहते हुए उन्होंने कढ़ाही रखी और दूध का भगौना उठा कर कड़ाही में दूध डालने ही वाली थीं कि मैंने उन्हें रोका..
“अर माँ दूध है ये …रबड़ी नहीं बनानी है…”
“अरे ..ओहहो ..तो क्या डालूँ” वो हड़बड़ाई सी बोलीं, जब अचानक से कोई आता है तो अक्सर उनकी हालत ऐसी ही हो जाती हैं…और मेरा ये देखकर बड़ा मनोरंजन होता है…शराफत के दायरे में रहकर तो बस्स माँ के साथ इतनी ही शरारत हो सकती हैं ना…थोड़ी दुष्ट तो मैं भी हूँ
“तेल …तेल डालिये..पकौड़ी बनानी हैं ना” मैंने हँसी रोकते हुए कहा
“(सिर पर हाथ रख कर) अच्छा हाँ तेल …एक काम कर देशी घी के पकौड़े बना “
“ऐं ..देशी घी के ?”
“हाँ …सबको पहली बार का ही मिलना याद रहता है …बाद में चाहे सोने में तौल दो, कोई फर्क नहीं ..”
“क्या माँ…सबका अपना स्वाद होता है… पकौड़ियाँ तेल में ही अच्छी लगती हैं ना?”
“अच्छा …हाँ ..तुम भी सही कह रही हो…”
“क्या यार…क्या हुआ आपको ?”
“देखो जरा अभी से ये हालत है…अपना दामाद आएगा तो पता नहीं क्या हालत होगी.”
फिर मेरी ओर देखा और हताश होकर आँखे बंद करके ऐसे गर्दन हिलाई जैसे किसी से ‘ना’ बोल रहीं हो
ये क्या तरीका हुआ भला
अरे…नहीं समझी?
नहीं’…
जो बात उन्होंने बोली थी शायद तुम्हें शर्माना चहिए था..।
.कमाल है जब महसूस नहीं हो रहा ..तो क्यों शरमाऊं..?
अब दामाद का जिक्र हो और लड़की शर्माए भी ना…ये भी कोई बात हुई
खुद से बात करके मैं हँस रही थी कि उनकी नजर मुझ पर पड़ गयी, मेरे हाथ में ये प्याज़ देखकर)” ये आज ही कटेगा ना..?” वो मुस्कुराते हुए बोलीं
मैं जल्दी से प्याज़ काटने लगी..
“ये बताओ टीका करके शगुन क्या दूँ”
“मैं क्या जानूँ कितने देने चाहिए”?
“जब पूँछ रही हूँ तो बता ना..अच्छा एक काम करते हैं “
“हम्म”
“मिठाई लेकर आया तो एक हज़ार एक रुपये दे दूँगी, और ऐसे ही आया तो पाँच सौ एक …ठीक रहेंगे ना?”
“मिठाई होने या ना होने से क्या फर्क पड़ता है..वैसे भी पाँच सौ एक ज्यादा कम नहीं हैं.क्या? ..देते हुए अजीब नहीं लगेगा आपको”
“तुम्हें तो बिल्कुल सामाजिकता की अक्ल नहीं है…(फिर रुककर) अच्छा ठीक है चलो …पहली बार आ रहा है एक एक हज़ार एक ही दे दूँगी……कढ़ाही वाली गैस जला दी ना?”
“हॉं हाँ …सब तैयार है “
.इतने में नीरज का फोन आ गया जैसे ही उठाया उधर से आवाज आई
“स्कूल के ठीक सामने हूँ, आगे बताइए”
“रोड के पार आपको एक जनरल स्टोर दिख रहा होगा”
“जी ..आ ये ‘डेली नीड स्टोर’?
“जी.. जी…वही..उसके पास से ही एक सड़क दिख रही होगी आपको”
“हाँ दिख रही है”
“बस्स उसी में दायीं तरफ …तीसरा घर है..काले रंग का गेट है…मैं गेट पर ही हूँ आ जाइये आप” मैंने ये बोलकर फोन रख दिया
“ये दस रुपये तुम्हारे लिए…और ये लो समोसा” मेरी माँ ने पड़ोस के बच्चे प्रमोद से समोसे का पैकेट लेते हुए कहा, फिर मुझसे बोलीं
“गैस थीमी तो नहीं जल रही?…तेल गरम हो गया ना “
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई, और उन्हें शांत रहने का इशारा किया, बस्स अब इससे ज्यादा उन्हें परेशान नहीं देख सकती
‘इनका तेल गरम होने पर इतना जोर क्यों है..ऐसा लग रहा है गरम तेल में पकौड़ियों को नहीं…नीरज को तलना है...’मेरे दुष्ट अंर्तमन से आवाज आई
हा हा हा हा”
‘जैसे ही नीरज आये उठाकर सीधे तेल में डाल दो उसे’
‘हा हा हा’
खुद में बसे उस शरारती तत्व से बात करते हुए में हँस ही रही थी कि एक लड़का बाइक पर आते दिखा…पिंक शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र में बेहद गोर रंग में… किसी से फोन पर बात कर रहा था…तो ये है ..नीरज? लग तो यही रहा है…कि तभी उसने पानयुक्त लाल पीक सड़क के किनारे पर दे मारी..साफ सड़क पर एक लाल पिचकारी सी बन गयी…और हैरत ये कि फौरन उसने एक सिगरेट भी जला ली,
हे भगवान …तो ये …ये ..है नीरज?…अरे ये तो…ओह्ह बेचारी बिन्नी …
‘अरे तो क्या हुआ..लड़का खाते पीते घर का है’ मेरे अंतर्विरोधी की आवाज
“इसे खाता-पीता कहते हैं… बकवास .. कम से कम इतनी अक्ल तो होनी चाहिए ना, कि बिल्कुल मेरे घर के सामने ही आकर सिगरेट पी ना पिये…इतना भी क्या ..
फिर उसने बहुत भद्दे तरीके से चुटकी बजाकर सिगरेट पर बनी आयी राख झाड़ी …अब तो मैं बुरी तरह चिढ़ गयी..ये तो अजीब नमूना है..क्या बिन्नी… यही मिला था तुझे सारी दुनिया में..मेरा मन खिन्न हो गया था..अब उसने कान पर लगे मोबाइल में, किसी से “ठीक है’ कह कर फोन रखा.. और आगे बढ़ गया
अरे ये तो …ये तो आगे चला गया….
‘जाने दे ना….’
क्या यार .. बिन्नी की बात है इसलिए बुलाना पड़ेगा मैंने खुद के अंदर बसे उस व्यक्ति से बात करते- करते मोबाइल से फिर नीरज का नम्बर डायल किया
“आप शायद आगे चले गए हैं…” मैंने उसे बताया
“अच्छा? ” नीरज बोला
“जी…मैंने कहा ना …मैं गेट पर ही हूँ”
“ओह…आप को मेरी वजह से परेशान होना पड़ रहा है..लेकिन मैं….मैं बस्स सड़क की ओर मुड़ने ही वाला हूँ”
“मतलब ..?.”
“मतलब ये कि सामने देखिए…आपने पिंक ड्रेस पहनी है …….है ना” उसने आगे कहा
“जी..”
मैंने सामने देखा एक गेहुएँ रंग का इकहरे बदन का लड़का, सफेद रंग की शर्ट और ग्रे ट्राउज़र में एक हाथ से सड़क पर ढ़रकती सी बाइक का हैंडल पकड़े और दूसरे हाथ में फोन पकड़े मेरे घर की ओर आ चला आ रहा था….ओह्ह तो ये है नीरज …मैं किसी और लड़के को ही …ओह्ह जरा सी गलतफहमी में क्या से क्या सोच लिया था मैंने ..
…..वैसे लड़का दिखने में तो अच्छा है मैं इसे सौ में से पचास नम्बर देतीं हूँ..
‘क्यों नहीं..सबको बस तुम्हारे रिजल्ट का ही तो इंतज़ार है…..हा हा हा
‘क्या…यार कभी तो मेरी तरफदारी किया करो..मेरे अंदर रहकर मेरे ही खिलाफ।
“क्या हुआ… नीरज आये नहीं अभी तक”..बोलते हुए मेरी माँ मेरे पास आकर खड़ी हो गईं..नीरज भी दरवाजे तक पहुंच गया था। मैंने नीरज से कहा
“ये मेरी माँ हैं और माँ ये हैं नीरज “मेरी बात पूरी होने से पहले ही नीरज मेरी माँ के पैर छूने को झुका तो वो पीछे हटते हुए बोलीं “अरर..हमारे यहाँ दामाद पैर नहीं छूते..बल्कि हमें छूने होतें हैं उनके पैर”
“क्या…आँटी जी, बहुत बुरी रिवाज है…मैं नहीं मानता इसे” उसने जब ये जवाब दिया तो मैंने मन में कहा ‘सौ में से साठ’
“भइ…या… पानी ” बोलते हुए मैंने पानी की ट्रे उसके आगे कर दी
“भइया क्यों… जीजू बोलो ” मेरी माँ ने टोका
“अगर भइया बोलूं तो चलेगा ना”? मैंने नीरज से पूछा, असल में मुझे ये ‘जीजू’ शब्द पसन्द नहीं
“अजी..दौड़ेगा…बल्कि मैं तो कहूँगा..जो रिस्पेक्ट आप मुझे जीजू बोलकर नहीं दे पाएंगी वो भइया बोलकर देंगी” नीरज के ये बोलते ही मैंने खुद से कहा’ सौ में से सत्तर’.फिर मैं किचिन में चली गयी और जब पकौड़े तल कर लायी तो देखा …कि नीरज रुमाल से अपनी आँखे पोंछ रहा था..और मेरी माँ का मूड भी उखड़ा हुआ था…और जैसे ही उनकी नजर मुझ पर पड़ी वो बोलीं
“बिन्नी की मम्मी ने रिश्ता तोड़ दिया है..”
“क्या….?.” हैरानी और गुस्सा के जो भाव मैंने महसूस किए उससे हाथ में पकड़ी हुई ट्रे संभालना मुश्किल हो गया…और अगर उस वक़्त मेरी माँ वहाँ मौजूद ना होतीं तो खुद पर कंट्रोल ना रख पाती…ऐसे में निश्चित ही मैं अपने हाथों से वो ट्रे छोड़ देती..जैसा साठ सत्तर दशक की फिल्मों में खासकर नायिका या नायिका की माँ कोई बुरी खबर सुनकर हाथों में पकड़ी थाली गिरा देती थीं
“क्यों?…कब?…बिन्नी ने तो कहा था…कि सब ठीक है… शादी तय है…उसने तो डेट भी बताई थी” मुझे यकीन नहीं हो रहा था
“आपकी बात बिन्नी से आखिरी बार कब हुई थी”? नीरज ने मुझ से पूँछा
“लगभग सात-आठ दिन पहले ..फिर मैंने उसे जानबूझकर फ़ोन नहीं किया मुझे लगा बिजी होगी…हाँ कल मैंने उसे दो बार कॉल की लेकिन फोन स्विच ऑफ आ रहा था”
“हम्म…फोन उससे छींन लिया गया है, परसों शाम आखिरी बार मेरी बात हुई थी बिन्नी से… कल सुबह उसकी मम्मी का फ़ोन आया था… हमलोगों को उन ने अपनी किसी बहिन के यहाँ बुलाया, ये कहकर कि शादी से जुड़ी कोई बात करनी है…मैं मारे खुशी के अपने पेरेंट्स और दादा के साथ -साथ अपने दो दोस्तों को भी ले गया था…मुझे क्या पता था सबके सामने ऐसी किरकिरी करेंगीं बिन्नी की मम्मी”
” क्या कहा उन्होंने? ” मैं जानने को आतुर थी
“किया ये कि …हम लोग जैसे ही पहुँचे वो बोलीं बिन्नी के दादू के कोई कजिन थे…जिनके यहां हमारे खानदान से किसी लड़की की शादी हुई थी…बहुत लंबा सा रिश्ता बताया भी था उन्होंने…मुझे याद नहीं आ रहा अब…” नीरज सिर पर हाथ रखकर कुछ याद करने की कोशिश करने लगा
“रिश्ता याद नहीं आ रहा तो छोड़ो बेटा…बात पूरी करो” मेरी माँ बोली
“हॉं तो…इस हिसाब से हमारे खानदान की लड़की उनके खानदान में बहु बनकर जा चुकी है…अब भला उसी खानदान में वो अपनी बेटी कैसे दे सकते हैं…ये उल्टा हो जाएगा”
“हैं …ये क्या बेतुकी वजह बताई है…बिन्नी के बाबा के कजिन …” मेरी माँ गुस्से में बोलीं
“हम्म यही तो, जब मेरे पापा ने कहा ये बेतुकी वजह है…तो वो बोलीं कि ‘मेरे ससुर ने कहा है अगर बिन्नी की शादी नीरज से हुई तो वो पूरे परिवार को ना सिर्फ घर से बल्कि जायदाद से बेदखल कर देंगें” ..
नीरज की बात सुनकर हम दोंनो गुस्से से भर गए…और नीरज ने चाय का कप उठाकर एक बड़ा सा घूँट भरा साथ ही एक पकौड़ी खाकर मेरी ओर देखकर बोला
” आप चाय अच्छी बनातीं हैं…और पकौड़ियाँ भी बहुत टेस्टी बनीं हैं”
मैं ये सुन मुस्कुरा भर दी …मूड खराब हो चुका था..नीरज आगे बोला
” .. जब ये सुना तो मेरे दादू बोलें हम बात करेंगे आप के ससुर जी से, और उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे..सब तैयारियां हो चुकीं हैं…कार्ड बंट चुके हैं…ये सरासर गलत है…भला ये भी कोई वजह हुई…सो भी तब जब दोंनो बच्चे एकदूसरे को इतना पसंद करते हैं….लेकिन जैसे ही बिन्नी की मम्मी ने ये सुना …..वो उठीं और हाथ जोड़ कर अपनी जगह घूम गयी और बोलीं “आप लोग जो चाहें समझें…लेकिन हम ये शादी नहीं कर सकते…
“ये क्या बात हुई…मतलब एन मौके पर शादी तोड़ रही हैं…और वजह भी नहीं बता रहीं…” मैं गुस्से में बोली
“वजह हो,…तब तो बताएं ना…किसी ने कोई ज्यादा पैसे वाला लड़का बता दिया होगा…अब बस्स वो खुद के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहती इसीलिए उन्हें लगता है वो हाथ जोड़ देंगी और सब खत्म हो जाएगा..समंझ में ये नहीं आता..कि बिन्नी के पापा इस दौरान एक शब्द नहीं बोले…जबकि मेरे पापा और दादू ने उन् से कई बार पूछा इस बारे में..”
“तुम ही क्या बेटा ..सालों से मैं इन लोगों को जानती हूँ…मैंने कभी मास्टर साब को बोलते नहीं देखा …अगर वो इंसान चलता फिरता ना हो तो यकीन करना मुश्किल है कि वो जिंदा भी हैं” मेरी माँ सच में गुस्से में थीं
“अच्छा..हा हा…बड़ी अजीब बात है…(फिर संजीदा होकर) जब बच्चों के भविष्य पर बन आये तब तो बोलना चाहिए कम से कम” नीरज ने एक समोसा उठाया और खाने लगा
बेचारा…
“अब क्या होगा…?”
“होगा क्या …उन्हें लगता है वो महिला हैं तो हम इसी वजह से चुप हो जाएंगे और बात खत्म…नहीं…ये कोई मजाक नहीं है…आज हमने उन्हें अपने घर बुलाया है…आप महिला हैं तो महिलाओं से बातचीत कर लोजिये…मेरी मम्मी और बहनें बात करेंगी अब उनसे…(फिर मुझे और मेरी माँ को उदास देखकर) अरे आप लोग उदास क्यों हो गए..चिंता मत कीजिये…सब ठीक हो जाएगा…”
नीरज ने अपनी बात पूरी करके…अपने सैम्पल की दवा वाले वाले बैग से एक मिठाई का डिब्बा निकालकर मेरी माँ की ओर बढ़ा दिया
“नहीं बेटा..तुम्हें ये नहीं लाना था..बच्चों को इस तक्कलुफ की क्या जरूरत …” मेरी माँ ने नीरज से कहा
“आँटी…आप मेरी ससुराल पक्ष की हैं…सोना, बिन्नी की बेस्ट फ्रेंड है, इतनी खुशी हुई मुझे मिठाई ख़रीदते वक़्त आज,… जितनी पहले कभी नहीं हुई,..फिर अब तो मैं (मेरी ओर इशारा करके) भाई भी बन गया हूँ…दुगुनी खुशी हो गयी है…प्लीज़ मना मत कीजिये”
फिर नीरज जाने के लिए उठ गया…मेरी माँ ने नीरज का टीका किया और उसे, जोकि उन्होंने पहले ही निर्धारित कर रखा था, 1001 रुपये का शगुन दिया….और बहुत देर की ना नुकुर के बाद ही नीरज ने 500 रुपये लेना स्वीकार किया…
“लड़का दिखने में ही नहीं..व्यवहार में भी बहुत अच्छा है”…नीरज के घर से निकलते ही मेरी माँ बहुत प्रभावित होकर बोलीं
***
दो दिन बाद
मेरी कजिन की शादी थी अलीगढ़ में, मुझे शादियों में शामिल होना पसंद नहीं, हाँ जिससे मेरा मन मिलता हो फिर बात अलग है…सो तय हुआ पापा, मेरी माँ को वहाँ छोड़कर घर बापस आ जाएंगे और मम्मी एक दो दिन बाद आयेंगी…
“माँ..क्या बिन्नी की शादी हो पाएगी नीरज से ? ” मैंने अपनी माँ की साड़ी की प्लीट्स ठीक करते हुए पूछा
“जब बिना मेहनत के अच्छा रिजल्ट मिल जाये तो लोग उसकी कद्र नहीं करते..वही हुआ है..बिन्नी की मम्मी तो क्या पूरा खानदान मिल कर भी ऐसा लड़का नहीं ढूंढ पायेगा…लेकिन लड़की के भाग्य से मिल गया है …तो बेकार में ही अड़चन बनीं हैं अपनी बेटी की ख़ुशियों में”
“आप बात कीजिये ना उनसे”
“जो औरत अपनी बेटी की नहीं सुन रही, पति की नहीं सुन रही मेरी सुन लेगी?..
बात तो सही थी उनकी…मैं चुप हो गयी…
अगले दिन दोपहर में …जब मैं खाना बना रही थी गेट पर नॉक हुआ…दरवाजा खोला तो देखा ‘ नीरज, लाल सूजी हुई आँखो के साथ दरवाजे पर था..और बहुत कमजोर लग रहा था….
“अरे नीरज भइया..आप आइये “?
“तुम्हें मेरी मदद करनी होगी सोना….” कहने के साथ ही नीरज दरवाजे से अंदर आ गया।
3.
“आँटी जी कहाँ हैं”? नीरज कुर्सी पर बैठते ही बोला
“कजिन की शादी में गयी हैं” मैंने जवाब दिया, ये पूछने का मन तो हो रहा था बिन्नी की मम्मी और लोग उसके घर आये तो क्या हुआ? लेकिन उसकी हालत देखकर हिम्मत नहीं हो रही थी, तो मैंने चुपचाप पानी लाकर उसके सामने रख दिया..
“वो लोग मेरे घर नहीं आये..मना कर दिया..आते भी किस मुँह से? शादी को 5 दिन रह गए हैं…मेरी कुछ समंझ में नही आ रहा..
“क्या? ..
“हाँ”
“वो जानती हैं कि गलत हैं, इसीलिए …” मैंने भी गुस्से में कहा
” हम्म सही कह रही हो ..रह रह कर लगता है घर में रखी पिस्टल निकालूं और खुद को मार दूँ…लेकिन जैसे ही बिन्नी का ख्याल आता है…ओह्ह “
“और बिन्नी का क्या होगा…ऐसे हताश मत होइए..ये बताइए अब क्या करेंगे?”
“अब बस दो ही रास्ते हैं, हम कानूनी कार्यवाही करें या बिन्नी के घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर लें…अगर कानूनी कार्यवाही की, शादी साइड में चली जायेगी और इसे वजह बनाते हुए बिन्नी को ये लोग मेरे खिलाफ आसानी से भड़का देंगें…..ऐसे में शायद मैं उसे हमेशा के लिए खो भी दूँ…और मैं उसे किसी कीमत पर खो नहीं सकता…तो शादी का ऑप्शन ही है “
अपनी बात पूरी करके उसने मेरी ओर देखा, मुझे समंझ नहीं आ रहा था क्या कहूँ
“लेकिन उसके लिए भी मुझे बिन्नी से बात करनी पड़ेगी, और बात किसी भी हालत में नहीं हो पा रही है” इतना बोलकर नीरज ने गिलास उठाकर पानी पिया और निराश होकर जमीन की ओर देखने लगा….मैं किचिन में गयी और परांठा सेकने लगी
“अरे ..काम जरूरी है क्या….(.फिर बुदबुदा कर) किसी को किसी की परेशानी से कोई फर्क नहीं पड़ता ” नीरज का ये बुदबुदाना मैंने सुन लिया था…प्लेट में तले हुए आलू,दही ऑयर परांठा रखकर मैंने उसे थमाते हुए कहा “लीजिए , लड़ने के लिए ताकत चाहिए होती है और आपने तो शायद कल से खाना भी नहीं खाया..”
“आपको कैसे पता..कि मैंने कल से खाना नहीं खाया? “
“कोई भी देख कर जान जाएगा, आप एक काम कीजिये, यहाँ बैठ जाइए मैं खाना भी बनाती जाऊँगी और बात भी हो जाएगी “
मैंने किचिन के सामने कुर्सी डालते हुए कहा, उसने छोटे बच्चे की तरह मेरे कहने पर फौरन अमल किया
“बिन्नी अक्सर तुम्हारे बारे में बात करती थी..एकबार मैंने पूँछा तुम सोना को दादी क्यों बुलाती हो…उसने कहा जब आप मिलेंगे तो खुद जान जाएंगे…अब मुझे समझ आया कि क्यों वो तुम्हें दादी बुलाती है” नीरज ने कहा और परांठा खाने लगा जिस हाल में वो था, ऐसे में उसका बात-बात पर भावुक होना लाजिमी है
मैं बस्स मुस्कुरा भर दी…नीरज ने पूरे परांठे को चार टुकडों में बांटा और एक भाग मुँह में रख लिया, ओह। बेचारा।
“एक बात बताओ..ये बिन्नी के पापा कभी बात नहीं करते क्या?” उसने पूँछा
“मैंने उन्हें दो बार देखा है..एक बार तब, जब वो घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे थे….दूसरी बार जब देखा तब वो बिन्नी की मम्मी के पास बैठे बात कर रहे थे…
“बात और मास्टर जी…?”नीरज तंज के लहजे में बोला
“सही कहा…बातचीत तो तब मानी जाती है, जब दोनों बोलें, मोटो उन्हें उँगली दिखाते हुए डाँट रही थी…और वो चुपचाप अपना सिर हिला रहे थे”
“हा हा मोटो ….अच्छा लगा …तुम्हारे मुँह से ये सुनकर …मैं भी मन ही मन उन्हें मोटो कहता हूँ…अब खुलकर कह सकूँगा हा हा”
“अच्छा…?” मैंने हँसते हुए पूँछने के लहजे में प्रतिक्रिया दी और नीरज की प्लेट में एक परांठा और रख दिया
“हम्म….”
“मुझे लगा अंकल जी बेचारे …उनकी घर में चलती नहीं है…लेकिन बिन्नी ने बताया कि उन्हें किसी बात से कोई मतलब ही नहीं..”
“हम्म…अक्सर ऐसा ही होता है, जो चुप रहता है हमें लगता है बहुत समझदार है या फिर ऐसा बेचारा है …जबकि कई बार चुप रहने का मतलब होता है, सही को सही कहने की हिम्मत का ना होना या फिर अपने किसी स्वार्थ के कारण बेचारा बने रहने का ढोंग करना…
“सही कह रहें हैं आप” कहने के साथ ही मैंने तीसरा परांठा नीरज की प्लेट में रखा
“अच्छा अब तुम्हें मेरी मदद करनी पड़ेगी, ध्यान से सुनो…मेरे घरवाले हार मान चुके हैं इन लोगों के रवैये से…और अब वो इस कोशिश में लगे हैं, कि कैसे भी कोई भी लड़की मिल जाये और मेरी शादी नियत तिथि पर हो जाये।
“क्या?…” सुनकर यकीन नहीं हो रहा था
“हाँ…और इतना ही नहीं ..पिछले दो दिनों से मैंने रमेश जो मेरा दोस्त है, उसे लगाया है जासूसी के काम पर और उसके अनुसार बिन्नी के घरवाले भी किसी लड़के को जो कि छोटा-मोटा कोई कम्प्यूटर ऑपरेटर है बरेली में….उसको ये लोग मनाने में लगे हैं कि वो इतने शॉर्ट नोटिस पर बिन्नी से शादी के लिए मान जाये”
“क्या…मतलब सब खत्म?” …मैंने निराश होकर कहा
“अभी एक और आखिरी उम्मीद बाकी है …जो तुम हो “
“मैं ?” आश्चर्य हुआ मुझे
“हाँ तुम..तुम चाहो तो 4 जिंदगियाँ बच सकती हैं …
“मेरे चाहने से”?
हाँ….”
“कैसे”
“देखो…मोटो मेरी बहन को देख चुकीं हैं, अपनी किसी कजिन को भेजूं तो बहुत संभव है कि बिन्नी ही ये कहकर ‘वो उस लड़की को नहीं जानती मिलने से मना कर दे..इसलिए तुम ही उसके पास जा सकती हो और उसे समझा भी सकती हो”
“अर …पर कैसे?”
“तुम्हारी फ्रेंड की शादी है 5 दिन बाद, तुम्हारा जाना बनता है कि नहीं”?
“हॉं लेकिन शादी तो टूट गयी ना”
“ओहहो…ये तुम्हें पता है क्योंकि मैंने बताया, उन्होंने या बिन्नी ने नहीं …तुम अनजान बनकर ही जाओ..और कैसे भी मेरी बात करा दो बिन्नी से बस्स ..साथ ही उसे समझाओ भी…. कैसे भी उसे दरवाजे के बाहर ले आओ बस्स “
“हे भगवान ये बहुत कठिन है, नहीं कर पाऊंगी मैं ऐसा…और वो मोटो…पिछली बार जब उन्होंने मुझे देखा भर था…और मेरे पैर ऐसे काँपने लगे…जैसे सड़क पर तमाशा दिखाने वाले तमाशाबीन के रस्सी पर चलते वक्त काँपते हैं…” मैंने चौथा परांठा नीरज की प्लेट में रखते हुए कहा…
अभी बात पूरी भी नहीं कर पायी थी कि नीरज ने खाने की प्लेट साइड में रखी और बोला
“बस्स अब नहीं खा पाऊँगा…एक मिनट .। तुम्हें लगता है कि हमारे साथ गलत हो रहा है…हाँ या नहीं”?
“हाँ”
“मेरा प्यार बिन्नी के प्रति तुम्हें सच्चा लगता है या नहीं?”
“हाँ”
“इस वक़्त अगर तुमने मदद नहीं की तो… मेरी, बिन्नी की, और वो दोनों जिन्हें बलि का बकरा बनाने जा रहे हैं, जिनसे हमारी शादी करायी जाएगी, उनकी …सबकी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी…सिर्फ उस मोटो के पागलपन की वजह से”
अपनी बात पूरी कर नीरज अपने घुटनों के बल जमीन पर हाथ जोड़कर बैठ गया।
“तुमने भाई बोला है मुझे, बिना बोले जान गईं कि मुझे भूख लगी है, तो बता कर भी क्यों नहीं समंझ पा रहीं.. कि अगर तुमने मदद नहीं की…तो बिन्नी और मैं…हम सारी जिंदगी घुट -घुट कर मरेंगे”…
“देखिए ..ऐसे हाथ मत जोड़िए…मैं जानती हूँ ..मोटो सरासर गलत हैं…लेकिन ये बहुत कठिन काम है…मैं नहीं कर पाऊँगी” मैं डर कर बोली
“अगर बिन्नी जरा भी समझदार होती तो बात ही क्या थी…और तुम्हें क्या लगता है वो मोटो…बस्स उनके हाथ पर अभी जाकर लाख रुपये भी रख दूँ ना, तो वो खुश हो जाएंगी..लेकिन अभी तो फांस ऐसी फँसी है ना.. कि ऐसा कुछ करूँगा तो बस्स मुझे कमतर दिखाने का एक और मौका मिल जाएगा उन्हें..क्योंकि बिन्नी पागल है ना”.
“क्या बोल रहें हैं आप”?
“सच कह रहा हूँ, उन पागलों के बीच रहकर कोई कैसे सामान्य रह सकता है, बिन्नी पर असर पड़ना लाजिमी है…ऐसे में उसका क्या दोष…वो जरा सा लड़का हर्षित कल ही मिलने गया उससे उसके स्कूल में…रमेश से सुनी बात कंफर्म करने..कम से कम पाँच बार पूँछा होगा लेकिन कोई जवाब नहीं …जैसे ही 200 रुपये दिए, बोल पड़ा “बिन्नी दीदी की शादी की बात चल रही है बरेली के एक लड़के के साथ…ऐसे ही बिन्नी का नम्बर भी उसने मुझे अच्छा जानकर नहीं बल्कि साइकिल की डील पक्की होने के बाद दिया था..फिर बाद में दिलाई उसे मैंने साइकिल………
“अच्छा” मैंने बड़े हल्की आवाज में कहा, सही कह रहा था नीरज …बिन्नी ने मुझे साइकिल वाली बात बतायी थी…
“कोई कम नहीं है…क्यों… पागलखाना बरेली में ही है ना.
..निश्चित ही कोई पागल चुना होगा” ये अंतिम लाइन बोलकर जब नीरज हँसा तो मुझे भी हँसी आ गयी
“हर्षित साला हो जाएगा आपका” मैंने मुस्कुरा कर कहा
“शादी करवा दो, सुधार दूँगा साले को…रिश्वतखोर कहीं का।” उसने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया
“एक बात बताइए?”
“पूछो”
” मान लीजिए कि बिन्नी ने घर छोड़ दिया अपना..ये बहुत बड़ी बात होती है वैसे”
“हॉं बिल्कुल..”
“.फिर कभी गुस्सा हो गए आप तो बोलेंगे उसको
कि ‘जब तुम अपने घर की नहीं हुई तो मेरी क्या हो जाओगी’?
ये बात सुनते ही नीरज के चेहरे का रंग फीका हो गया..
“कुछ जाहिलों की करतूतों का खामियाजा दूसरों को झेलना पड़ता है…कई बार तो पीढ़ियों तक…तुम्हारी बिन्नी के प्रति ये चिंता जानकर मुझे अच्छा लग रहा है…लेकिन तुम्हीं बताओ ..ऐसा क्या करूँ जो भरोसा हो जाये तुम्हें मुझ पर…कि
ये घटिया शब्द बोलना तो दूर सोचना भी शर्मनाक है मेरे लिए”
अचानक उसे दुखी देखकर मुझे बुरा लगा
“ठीक है भरोसा है आप ऐसा नहीं करेंगे…”मुझे ना जाने क्यों भरोसा हो गया था उस पर
” आज मेरी मदद कर दो, वादा करता हूँ सारी जिंदगी जब भी तुम्हें मदद चाहिए होगी… दौड़ा आऊँगा….रात हो या दिन कभी भी आजमा लेना, तुम्हारा सगा भाई चाहे तुम्हारा साथ छोड़ दे..मैं नहीं छोडूंगा…..”
“ये क्या कह रहे हैं आप”
“सच कह रहा हूँ, अब ये मत सोचना कि मेरी जरूरत है इसलिए बड़ी बड़ी बातें कर रहा हूँ… कल को भूल जाऊँगा।
क्या करोगी अब । क्या जाओगी
समझ नहीं आ रहा..अगर गयी तो सीधे ही फसाद में फंस जाऊँगी…और ना गयी तो लगेगा मदद कर देती तो शायद दो लोगों को जिंदगी भर घुट-घुट कर जीना नहीं पड़ता…सो भी मेरी वजह से
मैं इसी सोचा विचारी में थी कि नीरज मुझे किसी की फ़ोटो दिखाते हुए बोला “ये देखो..ये रमेश है..बिन्नी के घर के बाहर ये गाड़ी लेकर खड़ा मिलेगा…और वहाँ से तुम्हें और बिन्नी को लेकर वो आ जायेगा..”
“आपने मुझसे सिर्फ बिन्नी को बताने के लिये कहा है….है ना..गाड़ी की क्या जरूरत?”
“अगर बिन्नी सब जानने के बाद निकलना चाहे तो? ..
वैसे भी आज ही का समय है…या तो आज या कभी नहीं..बाहर निकलने का भी और कोर्ट में शादी करने का भी..”
“कोर्ट में शादी …उसके लिए तो पहले से एप्लिकेशन देनी पड़ती है?”
“जैसे ही मोटो ने बिन्नी से फोन पर मुझसे बात करने के लिए मना किया…तभी अंदेशा हो गया था मुझे..कोर्ट में एप्पलीकेशन दे दी थी मैंने…कि कुछ ऐसा वैसा हुआ तो…मुझे कहाँ पता था..ऐसा -वैसा ही होगा..तुम जाओ भी अब”नीरज ने फिर मेरे सामने हाथ जोड़ दिये।
..उफ अजीब मुसीबत है।
तो अब क्या करोगी…
करना क्या जाना ही पड़ेगा…लेकिन बस्स नीरज का मैसेज भर दे दूँगी उसे…आगे वो जाने और उसका काम
“ठीक है…जा रही हूँ”..मेरे ये कहते ही नीरज खुश हो गया
“उससे कहना जैसी है वैसी ही चली आये…मैं सब सम्भाल लूँगा…और हाँ जैसे ही तुम वहाँ से निकलो मुझे फोन करना…”
कहकर नीरज चला गया और मैंने फोन लगाकर संक्षेप में सारी बात अपनी माँ को बता दी सिवाय इसके कि नीरज बिन्नी के लिए गाड़ी लगाएगा और उसने कोर्ट में शादी का इंतज़ाम कर रखा है…क्योंकि मैंने सोच लिया था बस्स बिन्नी को बता भर दूँगी।
“ठीक है …जब तुम्हारा इतना ही मन है तो चली जाओ..दोस्त है तुम्हारी, इतनी मदद तो कर ही सकती हो” ये कहकर मेरी माँ ने मुझे इज़ाज़त दे दी
अगले तीस मिनट में मैं बिन्नी के सामने थी…इसकी हालत तो नीरज से भी बुरी थी..सिर के थोड़े -थोड़े बाल निकलकर बाहर बिखरे थे, कोई दूर से ही देखकर बता दे कि घण्टों रोती रही है…आँगन में बर्तनों का अंबार लगा था..और वो बर्तन धो रही थी…मुझे देखा तो दौड़कर आई और गले लगकर रोने लगी…मैंने सांत्वना देने के लिए उसकी पीठ पर रखने के लिए हाथ उठाया ही था…कि मुझे खुद पर किसी पैनी नजर का अनुभव हुआ..सामने देखा मोटो…मैंने उन्हें देख अपना हाथ बापस खींच लिया ।
सारी जिंदगी एक्टिंग नहीं की आज करनी पड़ेगी…
पहली और शायद आखिरी बार भी
“अरे …रोने की क्या बात है, शादी को बस पाँच दिन रह गए हैं, कार्ड नहीं आया तो सोचा कि खुद ही जाकर ले आऊँ और कुछ काम हो तो वो भी पूँछ लूँ…नमस्ते आँटी जी…(मैंने मोटो की ओर मुस्कुरा कर कहा) हाँ शादी की बात से भावुक होना तो बनता है वैसे”
वाह। अच्छी कोशिश की मैंने एक्टिंग की..हम्म मुझे उम्मीद नहीं थी इतनी
“आओ यहाँ आकर बैठो ” आँटी ने मुझे कमरे में बुलाया
मैंने बिन्नी को प्यार से खुद से अलग किया तो दुखी होकर उसने “ना “में सिर हिला दिया..वो मुझे इशारे से बताना चाहती थी..कि शादी टूट गयी है
“जानती हूँ..”मैंने बहुत धीरे से कहा और आँटी के पास आकर बैठ गयी…
“जानती हो…वो लड़का…क्या किया उसने ” गुस्से में बोलना शुरू किया उन्होंने
“क्या?”
“जन्माष्टमी का उत्सव था..तो हम कुछ खाने…वो जो नया होटल खुला है ना”
“हम्म”
“वहीं बिन्नी के साथ सब गए थे…रात के साढ़े ग्यारह बजे होंगे, उस लड़के ने इसे फोन किया (बिन्नी की ओर इशारा करके..वो पास ही आकर खड़ी हो गयी थी..और साथ में उसकी मौसी भी ) और बोला इतनी रात हो गयी घर जाओ…”
“तो ?” मैंने कहा फिर आँटी की आँखे देख फौरन बात बदल दी
“मतलब आगे क्या हुआ?”
“एक बात बताओ लड़की किसकी ? मेरी…तू होता कौन है हें, अभी शादी नहीं हुई …कैसे हुक्म चला सकता है इस पर..”
“उन्होंने इसलिए कहा कि वहाँ शराब पीना शुरू कर देतें हैं लोग बारह बजे के आस -पास….बस्स इसिलए” बिन्नी मिनमिनी सी आवाज में बोली
“चुप रह ..मारूंगी एक चांटा खींचकर”आँटी ने उसे डपट दिया
“ऊपर से उसकी माँ ने बिना मुझसे पूँछे बताये इसे 2 सड़ी सी साड़ियां थमा दी, और ये (बिन्नी का हाथ पकड़कर उसमे पहनी अँगूठी मुझे दिखाई) ये देखो ये जर्कन की अंगूठी इसे क्या पहना दी…ये साब दीवानी ही हो गयीं उन सबकी…”आँटी बोलीं
मैं चुप रही तो वो आगे बोलीं
” मैं नहीं करूँगी इसकी शादी अब नीरज से …वो अच्छा नहीं है…मुझे ऐसा लड़का चाहिए जो मेरी बात माने…ना कि खुद को लाट साब समझे….विमल से होगी इसकी शादी अब…वो कम्प्यूटर ऑपरेटर है… माँ बाप कितने ही लड़के देखते हैं…तो क्या इसका मतलब ये है कि…सबसे प्रेम प्रलाप किया जाए….”
आँटी की ये बात सरासर गलत है…लेकिन मैं बोल नहीं सकती ..बिन्नी को पहली बार कोई लड़का पसंद आया है…
“लेकिन मैं नीरज के अलावा किसी और से शादी नहीं करूँगी..” बिन्नी कहने के साथ ही रोने लगी
“क्या कर दिया है उसने ऐसा तेरे लिए….सिवाय इस अंगूठी के…तो लो अभी किस्सा खत्म करती हूँ (वो उठीं और बिन्नी की उंगली से अंगूठी निकालने लगी और बिन्नी भरसक प्रयास कर रही थी कि मोटो अगूंठी ना निकाल पाएं…इतने में बिन्नी की मौसी भी मोटो की मदद करने लगी..बिन्नी रोती भी जा रही थी..और खुद की उँगली से अँगूठी ना निकलने का प्रयास बजी कर रही थी…आँटी उसे डाँटती भी जा रही थी…ये सब मेरे लिए देखना असह्य हो गया..)
“रुक जाइये…मत कीजिये ऐसा …” मैं लगभग चीख पड़ी
“तुम नहीं समझ रही हो…सारी फसाद की जड़ ये अगूंठी ही है ना…”
“नीरज कोई अँगूठी से बाहर नहीं आ जायेगा…अँगूठी ही तो है… रहने दीजिए.अगर बिन्नी को इतनी दिक्कत है तो..” ना जाने क्या हुआ कि वो मेरी बात मान गयी…फिर काफी देर बुदबुदाई और बोलीं “नहा लूँ जाकर.” उनके पीछे मौसी भी चली गईं !
उनके जाते ही सिसिक रही बिन्नी को मैंने पास बिठाया और कहा “ध्यान से सुनो बिन्नी, टाइम बहुत कम है …नीरज मेरे घर आये थे
“वो ठीक हैं ना” वो और तेज़ रोने लगी
“कैसे ठीक हो सकते हैं जब तुम्हारी शादी आज से पांच दिन बाद जैसे उस विमल से हो रही है उसी तरह उसकी शादी किसी लड़की से करना चाहते हैं उसके घरवाले..”
“क्या किसी और से .?.” बिन्नी दुखी होकर बोली
“जैसे तुम्हारे घरवाले कर रहे हैं ना ..ठीक वैसे ही …अब सुनो नीरज ने कोर्ट में आज की तारीख तय कर रखी है..तुमसे शादी के लिए..बाहर गाड़ी खड़ी है..नीरज ने कहा है सिर्फ आज का ही मौका है..उसके बाद कभी मौका नहीं मिलेगा…तो तुम चाहो तो इसी वक़्त मेरे साथ चलो मैं तुम्हें नीरज तक पहुंचा दूँगी.उसने यही कहा है…और तुम्हारी मम्मी क्या चाहती हैं ये भी तुम जान ही चुकी हो…अब जो करना चाहो सो करो…लेकिन फ़ैसला जल्दी करो”
मैंने जैसे ही ये बात पूरी की ..बिन्नी मेरे गले लग गई…
“सच में सोना ..सारी जिंदगी तेरा एहसान नहीं भूलूँगी…अभी आई” कहकर वो अंदर चली गयी
क्या करने वाली हो तुम..पता है
हाँ अच्छी तरह…मैं उनकी मदद कर रही हूँ जो सहीं हैं, और एक दूसरे से प्यार करतें हैं…
अच्छा…बिन्नी को उसका नीरज मिल जाएगा और नीरज को बिन्नी …तुम्हें क्या मिलेगा?…
मुझे कुछ चहिए भी नहीं….बस्स ये दोंनो…
ओ बेबकुफों की लीडर इसे लड़की भगाना कहते हैं
आं
हाँ..कानून के मुताबिक ये जुर्म है..इसे बहला फुसला कर लड़की भगाना कहते हैं.
.नहीं
तुम्हारे नहीं कहने से क्या हो जाएगा.तुम नीरज को जानती ही कितना हो? अगर उसने इस लड़की को छोड़ दिया तो..कहाँ जाएगी ये?
वो इसे छोड़ेगा क्यों”?
ना छोड़े इसकी गारंटी भी तो नहीं ?
फिर क्या करोगी, और ये लड़की इस वक़्त सामान्य नहीं है प्रेम में आधी पागल है..कल को नीरज ने इसे छोड़ा या ये दुखी हुई तो तुमसे कहेगी’ बोलेगी अगर तुम उस दिन ना आती सोना, तो आज मैं सुखी होती…फिर दुनियां में ऐसा कौन है जो एक बच्चे को उसकी माँ से ज्यादा प्यार करे…अगर तुम बिन्नी के साथ ले गयी तो तुम पूरी जिम्मेदार हो उसकी जिंदगी की…
ये सब बातें खुद से करते करते मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ गए..पूरा शरीर पसीने से भीग गया…मैं सीधे सीधे जिम्मेदार हूँ..सब मुझसे ही सवाल करेंगे..ओह्ह कहाँ फस गयी मैं…
“चल ” एक काले रंग का गंदला सा बैग लिए बिन्नी मेरे सामने आकर बोली
“तुम…तुम.. चल रही हो? ” मैंने डरते हुए पूँछा
“हाँ… चल ना… जल्दी कर” वो मेरा हाथ पकड़कर बोली..
हे भगवान अब क्या करूँ..
“मेरी बात सुन तू ये घर छोड़ रही है हमेशा के लिए…देख ले। सोच ले। तुझे नीरज पर भरोसा है ना? ..मैं उससे बस दो बार मिली हूँ..देख कल को कुछ हो जाये तो बस्स मुझे दोष मत देना..मैं मदद करूँगी जितनी बन पड़ेगी..इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाऊँगी” मैं डरते हुए बोली
“सारी जिंदगी शिब जी की पूजा की है मैंने, पर कुछ नहीं मांगा सिवाय अच्छे पति के..नीरज को मन से पति मान चुकी हूँ..मुझे उस पर पूरा भरोसा है.. महीने भर भी रह ली उसके साथ…तो भी सारी जिंदगी का सुख मिल जाएगा…और फिर उसने छोड़ भी दिया तो चार घर का झाड़ू बर्तन पकड़ लूँगी..लेकिन तुझे दोष नहीं दूँगी..और दूँगी भी क्यों जब किसी ने नहीं समझा तूने समझा…मैं तो मानती हूँ तुझे शिव जी ने ही भेजा है मेरी मदद को…मम्मी गलत हैं यार ..गलत हैं…वरना मैं ऐसा करने की सपने में भी नहीं सोचती..वो किसी और के साथ मेरी शादी निश्चित ही कर देंगी…कल भी पीटा हैं उन्होंने मुझे…..नहीं किसी और से शादी करने से पहले मरना पसंद करूँगी मैं…”
उसकी बात सुनकर मेरा मन खुद की सोच पर पछताने के साथ ही खुशी और सकारात्मकता से भर गया…मैं जो अब तक कुर्सी पर बैठी थी…तेज़ी से उठी और उसका हाथ पकड़कर उसके दरवाजे से बाहर लगभग दौड़ती हुई निकल आयी …उस कमरे से,(जहाँ मैं बैठी थी )..दरवाजे की दूरी लगभग सात से आठ कदम होगी…और मेरे पीछे-पीछे चल रही बिन्नी अचानक उसी मेन दरवाजे पर रुक गयी …मैंने मुड़कर देखा उसने दरवाजे के बाहर अपना पैर हवा में ही उठाया हुआ था और वो रुक गयी थी…इतने में ही घर के अंदर से किसी दरवाजे खुलने की आवाज सुनाई पड़ी..ऐसा लगा जैसे मेरे दिल ने धड़कना बन्द कर दिया.
4.
दरवाजे की खटक, मतलब …मतलब मोटो बाथरूम से बाहर आ रहीं हैं। और ये लड़की अब क्या सोच रही है….. क्या बिन्नी का इरादा बदल चुका है ?
“क्या हुआ? ” मैने घबराकर पूछा
“मैं इस घर में कभी लौट कर नहीं आ पाऊँगी,…सब मुझे गालियाँ देंगे, बहुत बेइज़्ज़ती हो जाएगी ना” वो कहीं खोई सी बोली
“सुना नहीं वो क्या कह रहीं थीं…तेरी शादी कर देंगी उस..उ स बिमल से..चल जल्दी कर ” कहते हुए मैंने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया
“तो रह लूँगी..घुट -घुट कर मर जाऊँगी …अगर उनकी खुशी इसी में है तो यही सही” वो रोते हुए बोली और अंदर की ओर मुड़ गयी…
ये क्या है यार । अभी -अभी तो ये बड़े -बड़े डायलॉग मार रही थी…ये तो पलट गई…अब क्या होगा
…क्या छोड़ दूँ इसे..और चली जाऊँ यहाँ से? बोल दूँगी नीरज से मैंने कहा लेकिन आयी ही नहीं …
नहीं अब तक जो जान चुकी हूँ उससे तो लगता है जो मैं कर रही हूँ वही सबसे सही है… अगर अब इसका इरादा बदला है..तो ये बेबकूफी कर रही है ….इसका भला मैं इससे बेहतर जानती हूँ… बस्स ये घर छोड़ने के डर से भावुक हो रही है…
“लेकिन…” मेरे अंदर बसे व्यक्तित्व ने मुझसे कुछ कहना चान्हा .. ‘चुप रहो अब …जो होगा देखा जाएगा..मैं इसे लेकर ही जाऊँगी, खुद को ही ये डाँट लगाकर पूरे शरीर की शक्ति मैंने अपने उसी हाथ पर लगाकर आगे बढ़कर बिन्नी को झटके से बाहर की ओर खींचा और मैं बेतहाशा दौड़ने लगी पीछे -पीछे बिन्नी…..शुक्र है बिन्नी का घर ज्यादा अंदर नहीं था…कुछ सेकेंड में हम गली के बाहर थे…रमेश ने गाड़ी बिल्कुल मेरे पास लाकर रोकी और हम जैसे ही उसमें बैठे, उसने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी….
मैं तेज़ साँस लेते हुए ऐसा महसूस कर रही थी, जैसे कोई कुंटल भर का पहाड़ उठा कर फेंका हो…दिमाग सुन्न हो गया था…
“भाभी जी, नमस्ते। मैं रमेश ” रमेश गाड़ी चलाते हुए बिन्नी से बोला, अपने लिए भाभी शब्द सुनकर बिन्नी का चेहरा कमल की तरह खिल गया…
“नमस्ते ( फिर रुककर ) वैसे हवा अच्छी चल रही है ” बिन्नी शर्मायी और अपना चेहरा खिड़की के पास ले जाकर ऐसे बोली, मानो कोई पेड़ की लता उससे अभी टकरा कर निकली हो..
लो यहाँ हालत खराब है..और ये ..सच कहता है नीरज इसमें पागलपन के लक्षण हैं, फिर उसी की बात याद आ गयी
*पागलों के बीच में रहती है, कुछ असर तो आएगा ही*
“एक बात बता, एन मौके पर एकदम बातें चेंज कैसे कर दी तूने,और वहाँ हवा में पैर उठाये खड़ी हो गयी” मैंने खीजते हुए पूछा, वो मुस्कुरा दी तो मेरी खीज़ और बढ़ गयी
“तुझे मजाक लग रहा है ये सब, मेरी जान हलक में अटक गयी थी ..और तू.गेट पर जब हनुमान बनी खड़ी थी…उसी वक़्त मोटो ..मतलब तेरी मम्मी बाथरूम से निकलीं थी..अगर आज मैं उनके हाथ लग जाती …शर्तिया चटनी बना देतीं वो मेरी…और बना तो खैर अब भी देंगी…”
“आज तक तो वो घण्टे भर से पहले निकलीं नहीं हैं बाथरूम से, आज क्या खाकर निकलेंगी…” वो बड़े हल्के अंदाज में बोली
क्या फर्क पड़ता है…हर तरफ से ठीकरा मेरे सिर पर ही फूटने वाला है…हे भगवान अगर मुझपे केस लगा तो सारी जिंदगी जेल में जाएगी…और मेरी माँ..(.मैं मन ही मन सोचने लगी) उनके हाथ से जल का लोटा गिर गया है, पानी फर्श पर फैल गया है, सारे टाइम मैं ध्यान रखती हूँ कहीं पानी ना फैल जाए, अगर वो फिसल गई तो…अरे मैं भी क्या सोच रही हूँ…लोटा गिरेगा ही क्यों …
“जब सुनेगी उनकी बेटी ने ये कारनामा किया है… तो सदमे में लोटा गिर ही जाना है” मेरा अंतर्मन बोला
“…हाँ सही कहा…ओह्ह मेरा दिमाग …अब तक तो मोटो बाथरूम से निकल आयीं होंगी..कोर्ट पहुंच कर बिन्नी तो शादी करेगी, और मैं, मेरा मृत शरीर घर लाया जाएगा…मुझे सांस नहीं आ रही.. ..
घबराहट में मैंने बिन्नी की ओर देखा वो खिड़की के पार ऐसे देख रही थी जैसे पिकनिक पर आई हो, मैंने अपनी शर्ट की आस्तीन ऊपर समेटी…और रमेश से कहा ” रमेश जरा खिड़की बन्द करके, ए.सी. चला दो 16 टेंम्प्रेचर पर “
“हाँ…वैसे बस्स हम पहुँचने वाले हैं” उसने ए.सी. चला दी।
पहुंचने वाली तो मैं हूँ सो भी स्वर्ग…मोटो …..मुझे माफ़ करना पहली बार उनके लिए हमदर्दी महसूस कर रही थी…निश्चित रूप से वो.सबसे पहले मेरे घर जाएँगी…चीख चीख कर मेरी माँ को मेरे बारे में बताएंगी…आस पास के सब लोगों को पता चल जाएगा…हे ईश्वर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जमीन फट जाए और मैं इसी कार में से सीधे जमीन में समा जाऊँ?
‘उसके लिए आपको तपस्या करनी होती है…हमेशा सच बोलना पड़ता है…तब सालों बाद जाकर प्रकृति आपकी हर बात मानने के लिए मजबूर होती है…’ ये मेरे अंदर का वही दुष्ट व्यक्तित्व बोला…आज तो ये भी दुष्ट ना होकर अच्छा ही लग रहा था..तुम तबसे कहाँ थे..मैं बिल्कुल अकेली पड़ गयी थी…तुम साथ होते हो तो कभी अकेलापन नहीं होता……..सब अच्छे हैं सिवाय मेरे…
“इतना पसीना क्यों आ रहा है तुझे, ए सी चल तो रही है..” बिन्नी ने मुझसे पूँछा, मैंने कोई जवाब नहीं दिया..
“सुनो बिन्नी, मेरी मौत की वजह से ऐसा मत करना कि कोर्ट में शादी ना करो …कर लेना समझी वरना मेरे इस बलिदान का क्या फायदा? ” मैंने उससे कहा..
“क्या बोल रही है…कुछ सुनाई नहीं दे रहा है…अरे हुआ क्या है”
अब ये क्या बिन्नी का चेहरा मुझे इतना धुँधला क्यों दिख रहा है…
“@@@@@” बिन्नी ने कुछ कहा …लेकिन मैंने “ना में सिर हिला दिया…कुछ सुनाई नहीं दे रहा मुझे……कुछ नहीं…अचानक सब तरफ अंधेरा दिख रहा है
***
“आँखे खोलो…सोना …आँखे खोलो ” ये नीरज की आवाज थी जो मेरे कानों में पड़ी
“आँखे खोल यार…तुझे मेरी कसम” ये बिन्नी ..इसे कोई समझाओ मैं होश में नहीं हूँ तो भला इसकी कसम कैसे निभा दूँ
“सुनो…डॉक्टर को बुला ही लो…”बिन्नी के रोने की आवाज मेरे कानों में पड़ी
जब से नीरज की आवाज सुनी मैंने तभी से कोशिश कर रही थी बोलने की, लेकिन मेरी आवाज बाहर नहीं निकल रही थी…सुनाई सब दे रहा था…नाहीं आँखे खोलने की हिम्मत थी
“हाँ हाँ कुछ नहीं होगा इसे, रमेश पूछ जरा अंदर जाकर अगर शादी का टाइम बढ़ जाये तो…इसे ऐसे छोड़कर शादी नहीं कर सकता मैं”
“नहीं शादी किसी कीमत पर नहीं रुकनी चाहिए…” इस बार मैं पूरी ताकत से चीखी और सबने सुन लिया..सबके चेहरे खुशी से खिल गए…बिन्नी ने मुझे गले लगा लिया…”तू बेहोश हो गयी थी पता है..”
“कितनी देर बेहोश रही मैं”
“ज्यादा नहीं मुश्किल से 10 मिनट”…बिन्नी ने जवाब दिया
अच्छा होता कल तक बेहोश रहती कम से कम वो नही सुनना पड़ता जो सुनने वाली हूँ …
“तुमने कर दिखाया, मैं ना कहता था तुम ही जो कर सकती हो…इतना बड़ा काम करके तुम्हारा बेहोश होना बनता है..” नीरज ने मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर कहा और रमेश के हाथ से लेकर एक जूस की बोतल मुझे पकड़ा दी…
“सही कहा, मैंने तो डर के मारे मना ही कर दिया था…ये ही मुझे जबर्दस्ती खींच कर लायी अगर ये ना होती तो…” बिन्नी मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली
“और तुमसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है…हम यहाँ इतनी कोशिशें कर रहें हैं, और तुम साथ भी नहीं दे सकती” नीरज गुस्सा दिखाते हुए बोला…तो बिन्नी उदास हो गयी
“अरे । ऐसे मत कहिए..घर छोड़ना सो भी हमेशा के लिए बहुत बड़ा फैसला होता है” मैंने कहा तो बिन्नी और ज्यादा उदास हो गयी
“मैंने सुना है ऐसे केसेस में जैसे ही एक बच्चा हो जाता है, पेरेन्ट्स की नाराजगी भी खत्म हो जाती है” मैंने बिन्नी को उदास देखकर कहा तो उन दोनों ने एकदूसरे को देखा ..जहाँ बिन्नी शरमा गयी वहीं नीरज ने मुस्कराते हुए मुझसे कहा ” मैंने तुमसे कहा था बिन्नी के घर से निकलते ही फोन करना ..तुमने किया क्यों नहीं? …मैं तो इसलिए नहीं कर सकता था कि तुम कहीं मोटो के (फिर बिन्नी की ओर देखकर ) मेरा मतलब आँटी के सामने ना होओ”
ये देख और सुन कर मैं हँस दी…
“ओह्ह अब समझी..तुम दोनों मेरी मम्मी को मोटो कहते हो…चलो कोई बात नहीं…वैसे ये तो तब फोन करती जब होश में होती..बेहोश ही हो गईं महारानी” बिन्नी मुस्कुराते हुए बोली
इतने में एक टैक्सी आकर रुकी जिसमें से एक भारी भरकम से लगभग 80 वर्षीय एक बुजुर्ग रुआबदार मूंछो को उमेठते हमारी ओर आने लगे..और उनके पीछे एक महिला, एक लड़की और कोई पचपन छप्पन वर्षीय आदमी…मैंने घबराकर नीरज को सामने देखने का इशारा किया..तो उन्हें देखकर नीरज मुस्कुरा कर बोला
” मेरे घरवाले हैं..कल इन्हें भी मैंने अच्छी तरह ट्रेनिंग दे दी है…वो बड़ी मूँछो वाले मेरे दादू हैं,पापा, मम्मी और मेरी छोटी बहन…बिन्नी ने दुपट्टा सिर पर डाल लिया था…और पास आते ही उन सबके पैर छूने लगी
“सोना बिटिया कहाँ है ( फिर मेरी ओर देखकर) बिटिया…भगवान तुम्हें खूब खुश रखे..हमने तो उम्मीद ही खो दी थी…लेकिन सब नीरज ने बताया…मैं तो तुम्हारा मुरीद और एहसानमन्द हो गया..” मैं थोड़े आत्मविश्वास से भर गई..और मैंने नमस्ते की मुद्रा में अपने हाथ उन सबके आगे जोड़ दिए…
“यार वो दूसरी बार रजिस्ट्रार ने बुलाया है…जल्दी चलो” रमेश ने आकर कहा तो नीरज समेत हम सब जल्दी से भीतर की ओर चले गए…
“नीरज कौन है?”नाक पर चश्मा टिकाए काले कोट में बैठे रजिस्ट्रार ने पूँछा
“जी मैं” स्कूल के कोई बच्चा जैसे हाथ उठाकर ‘ प्रेजेंट सर’ बोलता है नीरज ने भी वैसे ही अपना हाथ उठाकर कहा
“आपको क्या लगता है..मैं कोई पंडित हूँ जो बार – बार ये कहता रहता है लड़के को बुलाइये मुहूर्त निकला जा रहा है..दो बार बुला चुका हूँ आपको..दो पार्टियां और भी हैं जिनकी शादी करानी है ..(फिर एक रजिस्टर खिसकाकर) लीजिए साइन कीजिये”
नीरज ने मुस्कुराते हुए साइन किये…फिर बिन्नी ने..और विटनेस के तौर पर रमेश और मैंने बिन्नी की ओर से साइन किये
“हो गया क्या?”…नीरज ने लगभग उछलते हुए रजिस्ट्रार से पूँछा
“अब पंडित तो हूँ नहीं जो मंत्र पढ़ूँगा..अगर लाये हैं तो एक दूसरे को माला पहना दीजिये..और क्या” रजिस्ट्रार बहुत चिड़चिड़े मिज़ाज़ का लग रहा था…लेकिन उसका झुंझलाकर बोलना हममें से किसी को भी बुरा नहीं लग रहा था…
रमेश ने उन दोनों को मालाएं दे दी..नीरज और बिन्नी ने एकदूसरे को माला पहनाईं और हम सब ने तालियाँ बजा दी…फिर सबके पैर छूते हुए नीरज मेरे पैरों की ओर भी झुका
“अर..मेरे क्यों” मैं उसे टोकते हुए बोली
“क्यों तुम्हारे यहाँ बहनों के पैर छूने का भी रिवाज नहीं क्या?” जब उसने कहा तो मैं बोली “बिल्कुल है…” और दोनों ने मेंरे पैर छू लिए “
“भले ही तूने इन्हें भाई मान लिया है..लेकिन मेरे लिए तो तू मेरी सहेली ही रहेगी” बिन्नी इठलाकर बोली, जिन कपड़ों में वो वर्तन धो रही थी…उन्हीं कपड़ों में उसने शादी कर ली थी..बेचारी। लेकिन चेहरे पर उतनी ही खुशी और खूबसूरती थी जितनी कि खुद की पसंद से शादी करने वाली लड़की के चेहरे पर होती है…
“ठीक है ..तो पापा आप लोग बिन्नी को लेकर घर जाइये…मैं और दादू रमेश के साथ सोना को छोड़ने जा रहें हैं…क्योंकि बिन्नी की माँ सबसे पहले वहीं जाएंगी..” नीरज के ये कहते ही सबने हांमी भरी और बिन्नी मेरे गले लगकर नीरज से बोली
“इसे कुछ नहीं होना चाहिए”
“किसी को कुछ नहीं होगा…तुम आराम से घर जाओ”नीरज ने जवाब दिया..और सबके साथ बिन्नी टैक्सी की ओर चल दी…बिल्कुल टैक्सी के पास जाकर वो पलटी और मेरी ओर देखकर उसने विदाई लेते हुए हाथ हिला दिया …
अब तक के प्रकरण में ये पहली बार था…जब मैं इतनी भावुक हो गयी कि अचानक रोने लगी..होऊँ भी क्यों ना। उस वक़्त उसका पूरा मायका सिर्फ मैं ही थी..
“चिंता मत करो..मैं उसे बहुत खुश रखूँगा..और हाँ ..कभी नहीं छोड़ूंगा” नीरज ने मेरे कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा तो
ये सुनते ही मैं रोते हुए भी मुस्कुरा दी …लड़का समझदार है…मेरे मन का डर भांप लिया इसने….फिर मेरी ओर देख रही बिन्नी को हाथ हिलाकर मैंने बिदा दी…वो टैक्सी में बैठी और चली गयी…उसके बाद रमेश, नीरज, नीरज के दादू मेरे घर की ओर चल दिये…
“डरो मत बेटा, पंचायत में रहने का दस वर्ष का अनुभव है मुझे…लोगों को समझाना खूब आता है” गाड़ी में बैठते ही नीरज के दादू मुझसे बोले
***
“क्या तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा, सोना को”? मेरी माँ शायद पापा से बात कर रहीं थी…फिर जैसे ही नजर मुझ पर पड़ी ” आ गयी …कहाँ गयी थीं…फ़ोन क्यों नहीं उठा रहीं थी…(फिर नीरज और उसके पापा की ओर देखकर) आप लोग…आइये …आइये”
“ये मेरे दादू हैं, आँटी जी” नीरज ने कहा
“ओह्ह..आइये (फिर मेरी ओर देखकर) पता है..तुम्हें फोन ना लगने के कारण ही मुझे इतनी जल्दी बापस आना पड़ा…है कहाँ फोन तुम्हारा? “
“बहिन जी, जब मुझे पता चला कि ये बिटिया इतनी समझदार है कि ना सिर्फ सही गलत का फैसला कर सकती है बल्कि सही के साथ खड़ी भी रह सकती है, तो मेरी बड़ी इच्छा हुई आपसे मिलने की”नीरज के दादू बोले
“लेकिन इसने ऐसा किया क्या है?”
“मैं बताती हूँ…”इतना सुनते ही सबकी नजरें दरवाजे की ओर घूम गयीं, डर के मारे मेरा बुरा हाल हो गया…मोटो आ गयी थीं…और उनके पीछे बिन्नी के पापा, दादू और हर्षित भी थे
“डरो मत..मैं तुम पर कोई आँच नहीं आने दूँगा” नीरज मुझे घबराते हुए देख कर, बोला…
“ये लड़की …मेरी लड़की को भगा कर ले गयी”…
“क्या…” बोलने के साथ ही मेरी माँ ने अपने दोंनो हाथ अपने सिर पर रख लिए…और अगले पल मोटो ने अपना हाथ मेरी ओर उछाला…
हे भगवान आज तक जिस औरत से मैं चिढ़ती रही वही आज मुझे थप्पड़ मारने जा रही है…मैंने अपनी आँखें कसकर भींच लीं….बिन्नी तेरी खातिर ये भी सही..लेकिन अब तक तमाचा पड़ा क्यों नहीं…मैंने अपनी एक आँख खोली, देखा नीरज ने मोटो का हाथ पकड़ा हुआ था…मैंने अपनी दोनों आखें खोल लीं
“आप को जो भी कहना है मुझसे कहिए..सोना का इस सब में कोई दोष नहीं है…जो किया मैंने किया” नीरज ऊँचे स्वर में बोला
मैं नम्बर सिस्टम कैसे भूल गयी..आज सीधे ही इसे सौ में से सौ नम्बर देतीं हूँ..
“किसका दोष है ..ये तो पुलिस आएगी तो पता चलेगा…ये लड़की तब बोलेगी” (फिर अपने पति से ) जाओ पुलिस को बुलाकर लाओ” मोटो ने अपने पति को आदेश दिया
“खबरदार जो मेरी बेटी से अब कुछ भी कहा” अचानक मेरी माँ तेज़ आवाज में बोलीं और मेरे पास आकर खड़ी हो गईं
“वाह। ये तो बहुत अच्छा होगा…बुलाइये पुलिस को..बिन्नी बालिग है, और अब तो हमारी शादी भी हो गयी है…” नीरज मुस्कुराते हुए बोला, मोटो धम्म से कुर्सी पर बैठ गयीं…
“देखिए समधन जी…” नीरज के दादू ने बोलना शुरू ही किया था कि मोटो चीख पड़ीं” मैं किसी की समधिन-वमधिन नहीं”
“सुन तो लीजिए, बिन्नी और नीरज ने कोर्ट में शादी कर ली है…आप की नाराजगी किस वजह से है ये तो अब तक किसी की भी समंझ में नहीं आ पाया…लेकिन नीरज को आपने ही पसंद किया है…हम बड़े हैं…बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है…और फिर ऐसा करने के लिए भी बच्चों को मजबूर होना पड़ा…(फिर बिन्नी के पापा की ओर देखकर) क्यों भाईसाब कैसी कही”?
“हाँ.. बात तो ठीक ही है” जैसे ही मास्टर साब यानी बिन्नी के पापा बोले तो सबने उनकी ओर आश्चर्य से देखा…मुझे तो अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। ये इंसान बोल भी सकता है
“बहिन जी, जिस लड़की से आप इतनी नाराज हो रही हैं उसी बच्ची की वजह से आपकी बेटी और मेरे पोते को जीवन भर की खुशी मिली है…और इसने हमें पाप करने से बचाया है वरना जिन बच्चों से इन दोंनो की शादी होती उनके साथ भी गलत ही होता…क्यों भाई साब कैसी कही?”
“हम्म सई है” इस बार बिन्नी के दादू बोले …
“और हमें ये कहने का मौका तो मिला ही नहीं कि हमारे यहाँ एक रिवाज है …जैसे ही लड़के की शादी हो जाती है …वो पहली बार अपने सास-ससुर को शगुन देता है…नीरज ” इतना बोल दादू ने नीरज की ओर देखा, और नीरज ने रमेश से दो बड़े से लिफाफे लेकर एक बिन्नी की मम्मी और दूसरा बिन्नी की पापा को पकड़ा दिया…
“मैं आपसे आग्रह करूँगा कि इस लिफाफे को खोल कर देखें”
दादू बोले तो मोटो ने “हुंह ” कहकर मुँह फेर लिया और मास्टर साब ने लिफाफा खोल लिया..जैसे ही इतने सारे नोट देखे ..भौंचक होकर कभी मोटो तो कभी दादू की ओर देखने लगे।
“ये इक्यावन हजार एक रुपये आपके लिए…और इक्यावन हजार एक रुपये समधन जी के लिए..शगुन है…आप लोग नियत तिथि पर शादी कर दीजिए…सब तैयारी तो है ही..इज़्ज़त भी रह जाएगी…बच्चे भी खुश हो जाएंगे.” दादू बोले
ऐसे किसी रिवाज के बारे में मैंने तो कभी सुना नहीं..कि नीरज की बात याद आ गयी…’लाख रुपये मोटो के हाथ पर रख दूँ..तो वो इस रिश्ते के लिए फौरन मान जाएंगी….ओह्ह तो ये बात है…मैंने नीरज की ओर देखा .. वो मुझे देखकर मुस्कुरा दिया। सही कहा था उसने… मोटो मान गयीं थीं..
“ठीक है…लेकिन आप लोगों को बिन्नी को घर भेजना होगा, विदा तो उसकी माँ के घर से ही होगी” मोटो बहुत रुखाई से बोलीं
कहीं दादू हाँ ना कर दें, मुझे अब भी भरोसा नहीं मोटो पर
“देखिए, जो आपको ठेस पहुंची है उसके लिये मुझे दुख है …और फिर देरी हुई है..तो तैयारियों में व्यवधान भी आया है, क्यों ना आप रिश्तेदारों समेत हमारे यहाँ ही आ जाये…अपने घर के पास वाले गेस्ट हाउस में आप सबके लिए व्यवस्था करा देता हूँ…बस्स शादी में जो कपड़े पहनने हैं…वो लेकर आप लोग आ जाइये…बाकी सारा इन्तज़ाम हमारा…ये शादी हमारी तरफ से….क्यों साब कैसी कही ?”
“बहुत अच्छी” मोटो को छोड़कर सब ने एकसाथ कहा!
मौके की नजाकत को समझ फौरन मैंने और मेरी माँ ने सब के लिये चाय नाश्ते के इंतज़ाम किया …
“बिटिया तुम चीफ गेस्ट रहोगी शादी की…कम से कम दो दिन पहले तो आ ही जाना…बिन्नी भी खुश रहेगी तुम्हारी वजह से..और हाँ सपरिवार आना” दादू मुझसे हँस कर बोले
“जब बच्चों को प्यार कर सकते हैं तो गलतियां होने पर डाँट भी सकते हैं…मन में कोई मैल मत रखना” बिन्नी की मम्मी जाते हुए मुझसे बोलीं, मैंने बहुत मुश्किल से मुस्कुरा कर हांमी में सिर हिलाया
…पैसा बोलता है…ये पता तो था…देखा पहली बार!
उनके जाते ही मैंने पूरा प्रकरण अपनी माँ को कह सुनाया
“किया तो सही तुमने..लेकिन मैं चाहूँगी तुम दोबारा ऐसा कुछ ना करो…करो वादा ” पूरी बात सुनकर मेरी माँ मुझसे बोलीं और मैंने हांमी में सिर हिलाकर उनसे वादा किया।
दो दिन पहले तो नहीं मैं ठीक शादी वाले दिन ही गई..पहले नीरज की बारात में शामिल हुई…और उसके बाद जैसे ही वरमाला हुई…नीरज ने डी जे वाले को इशारा किया, और उसने एक पंजाबी गाना लगा दिया…और नीरज के कहने पर मैं और दुल्हन बनीं बहुत खूबसूरत लग रही बिन्नी, और नीरज… हम तीनों ने ही, बहुत डांस किया… नीरज के घरवाले तो खुश थे ही, बिन्नी के घरवाले भी बहुत खुश दिख रहे थे । सब अच्छा हो गया।
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-नीरज और बिन्नी अब एक प्यारी सी बच्ची के पेरेंट्स है। बिन्नी का रिश्ता उसके घरवालों के साथ बहुत अच्छा और सहज है। जैसा कि विश्वास भी था मुझे।
उसके ससुराल में भी सब खुश हैं उससे, हालांकि मैं उसे घर से लाने के बाद दुबारा उसके घर नहीं गयी। मोटो ने मुझसे एक दो बार की बिन्नी की शादी के बाद बात भी की !..लेकिन मैं उनसे बात करने में कोई उत्साह नहीं दिखा पाती हूँ..
बिन्नी या नीरज जब भी बात करते हैं तो मुझे ये पूछने की जरूरत नहीं पड़ती कि वो कैसे हैं..आवाज में खुशी की खनक और जब सामने हो तो उन दोंनो के चेहरे का नूर सब कह देता है…उन दोनों के बीच का प्यार जस का तस है।
नीरज के करियर और जीवन में भी तरक्की हुई है।
जैसा कि नीरज ने मुझसे कहा था कि जब भी मेरे ऊपर कोई मुसीबत आएगी…वो मदद करेगा मेरी….और मेरी प्रार्थना है। कि ऐसी कोई मुसीबत आये ही ना !
*समाप्त*
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