वैदही गायब है! VAIDEHI GAYAB HAI- पार्ट 4

50 एकड़ में फैला एरिया एक जिसे एक चारदीवारी से घेर दिया गया था..उसके अंदर हजारों लोग अपने-अपने काम मे लगे थे,…  दीवार के अंदर किनारे पूरे पेड़ पौधों से घिरे थे,जहाँ कुछ सन्त गेरुए कपड़े पहने योग करने में व्यस्त थे तो कुछ साध्वी स्त्रियां पूजा और खाने पीने की व्यवस्था में व्यस्त थी..

बडी सी जगह छोड़ने के बाद ठीक बीचों बीच एक गोल स्टेजनुमा जगह थी जहाँ एकसाथ कई हवनकुण्ड जल रहे थे,और कहीँ बस्स साधु तो कहीं कहीं कुछ यजमानों को पूजा कराई जा रही थी …4 से 5 सीढिया चढ़ने के बाद उस स्टेजनुमा जगह पर एक हवनकुण्ड के पास एक लगभग 70 वर्षीय साधु चांदी से चमकते बालों का जुड़ा बनाये कुछ मन्त्रो का उच्चारण कर रहे थे,हवनकुण्ड के दुसरीं तरफ जितेंद्र और अखिल आंख बंद कर हाथ जोड़े साधु के कहे मन्त्रो को दोहरा रहे थे …एकाएक उन्होंने अपनी शान्त और तेज़ से चमकती आंखे खोली और बोले

“बच्चों अब अंतिम आहुति खड़े होकर दो…हम जैसे ही मन्त्र पूरा करके इशारा करें,ये शुद्ध गरी का गोला और बची हुई समस्त सामिग्री इस हवन की अग्नि में प्रेम और श्रद्धा से छोड़ देना..ॐ भूर भुंभ स्वाहा तत्स वितरूर……… स्वाहा

अखिल और जितेंद्र ने सम्पूर्ण आहुति दे..उन साधु के पैर छुए और अखिल बोला “गुरु जी,मेरे पिता का स्वास्थ्य आपकी कृपा से अब बिल्कुल ठीक है. ईश्वर से एक ही प्रार्थना है की अब जब भी मिलूँ आपसे, तब किसी समस्या के चलते ना मिलना पड़े”

गुरु जी :-“(रहस्यमयी मुस्कान के साथ,ऊपर की ओर हाथ उठाते हुए) होनी को कौन टाल सकता है, हरहाल में मित्र की मदद करना तुम्हारा परम् कर्तव्य ही नहीं बल्कि जीवन के मुख्य उद्देश्यों में से एक उद्देश्य भी होना चाहिये..कल्याण भब:”

उनकी बात को सुन निखळ और जितेंद्र ने एक दूसरे को आश्चर्य से देखा,इतने में गुरुजी उठे सीढ़ी पर रखी लकड़ी की खड़ाऊ पहन ‘कट कट ‘ की आवाज करते हुए चले गए,

अखिल:-“इनकी बात का क्या मतलब था” ?
जितेंद्र:-(दार्शनिक अंदाज में)”इनकी बात समझना इतना आसान होता तो हम साधू ना होते?
अखिल:-“तुझे साधू बनने में भी इंट्रेस्ट है”?
जितेंद्र:-“क्या यार ..चल चलते हैं.”(सीढियां उतरते हुए)
अखिल :-“अभी नहीं ..प्रसाद बाँटना है” बोलने के साथ ही वो भागता हुआ बाहर आया गाड़ी की डिग्गी खोली और वहाँ बैठे भिक्षुओं को दोनों मिलकर खाने के पैकेट बांटने लगे

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“साहिल उठे नहीं क्या अभी तक..साहिल दरवाजा खोलो बेटा”प्रेमलता ने साहिल के कमरे का दरवाजा खटखटा हुए बोला
हड़बड़ाते हुए साहिल उठा और दरवाजा खोल दिया
साहिल :-“सब ठीक है ना मम्मी”
प्रेमलता:-(खुश होते हुए) हाँ हाँ सब ठीक है,ये देख तो जरा (हाथ में लायी हुई दो साड़ियाँ उसे दिखाती हुई) कौन सी दे दूँ मीनाक्षी को,जरा बता दो”
साहिल :-“मुझे क्या पता,मैं क्या जानूँ ये सब”

प्रेमलता:-“कौन है हम दो के अलावा इस घर में जिससे पूछूँ बता..(भाबुकता दिखाते हुए) जो करू सो मैं ही करूँ अकेले किसी से कोई आसरा नहीं… रहने दे”

साहिल :-(प्रेमलता को प्यार से पकड़ते हुए)”मेरी अच्छी मम्मी…(फिर साड़ियों की ओर देखते हुए ) आ ..आ ..हम्म ..मुझे लगता है ये पिंक वाली सही रहेगी ..क्यों”

प्रेमलता:-(खुश होते हुए) मुझे भी यही ज्यादा अच्छी लगी…बड़ी प्यारी लड़की है..एक दिन में ही दिल में उतर गई है,बहुत खयाल रखा उसने मेरा,जाने को कह रही है..सोचा साड़ी दे दूँ… ए साहिल उसे रोक नहीं सकते क्या?

साहिल :-“मुझसे ज्यादा आप दुनियादारी जानती हो,कैसे रोक सकते हैं …आप चिंता मत करो तैयार होकर मेरे साथ शोरूम चलो …अकेलापन भी नही लगेगा और मुझे आपकी चिंता भी नहीं रहेगी”

प्रेमलता:-“(उदासी भरी आवाज में) ठीक है,मैं उसे साड़ी दे आती हूँ, तू भी तैयार हो जा”

“उनके जाते ही साहिल बाथरूम में चला गया,बाहर निकल कर शीशे के सामने खड़े होकर तैयार हो रहा था,कि शीशे में उसे मीनाक्षी दिखी, बरामदे मे..प्रेमलता की दी हुई गुलाबी साड़ी में,तौलिया पकड़े हुए सिर को एक ओर झुकाकर बाल पोंछ रही थी..वो उसे देखता रहा
सा…हि…ल नाश्ता कर लो बेटा” प्रेमलता की आवाज सुनी तो चौंकते हुए साहिल ने अपने बाल ठीक किये और आकर डाइनिंग टेबिल पर  बैठ गया..गोविंद के साथ मीनाक्षी भी प्लेट लगाने लगी..
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रह रह कर साहिल की नजर मीनाक्षी पर चली जा रही थी..”ये पिंक साड़ी तुम पर काफी फब रही है”प्रेमलता ने मुस्कुराते हुए कहा तो मीनाक्षी बदले में मुस्कुरा भर दी..और साहिल को अपनी मुस्कुराहट को छुपाने में मेहनत करनी पड़ी…”


“मैं पहले अपने घर जाकर फिर शोरूम पर आऊँ तो चलेगा ना? मीनाक्षी ने पूछा तो जवाब में साहिल ने हामी में सिर हिला दिया…थोड़ी देर बाद कार  सड़क पर दौड़ रही थी…फिर मीनाक्षी की गली के बाहर ही साहिल ने गाड़ी रोकी और वो प्रेमलता से हाथ जोड़ कार से उतर गयी…

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4 मंजिला इमारत एक सुनसान जगह पर बनी हुई थी..पूरा गहरा  काला आसमान जैसे कभी वहाँ चाँद तारे निकले ही ना हों. जहाँ सांय -सांय करती हवा की आवाज भी जहाँ सुनी जा सके इतना सन्नाटा,बस्स रात को सियारों की कानफोड़ू आवाज गूँजती जिससे दिल दहल जाता,इसी चौथी मंजिल पर बनें एक छोटे से कमरें के बाहर छोटी सी जगह जहाँ दो कदम ही रखे जा सके बस्स इतनी ही बॉलकनी.. जहाँ पूरे दिन में एक बार ‘धपाक’ की आवाज के साथ एक छोटा सा पैकेट गिरता.आज भी गिरा…

उसी कमरे में जमीन पर उकड़ूँ बैठे विक्रांत सिंह ने जब पैकेट गिरने की आवाज सुनी तो घुटने में फॅसा अपना सिर ऊपर उठाया जो अब तक निस्तेज हो चुका है..आँखों मे डर समा चुका है..अत्यधिक ठंड की वजह से रात होने का एहसास हो रहा है, बालकनी पर बनी छोटी सी खिड़की की कुंडी को खोलने के लिए उन्हें शरीर की पूरी शक्ति इकठ्ठी करनी पड़ी.

हाथ से कुंडी खोलने के लिए जब ताकत लगाई तो हाथ काँप गया..पूरा शरीर 3 दिनों से बिना कुछ खाये पीए सूखे पत्ते सा बज रहा था..फिर कोशिश की और इस बार ज्यादा कोशिश करने से कुंडी खुल गयी..और इस हालात में भी ये छोटी सी सफलता बहुत बड़ी मालूम हुई सो पपड़ियाये होंठो पर मुस्कान आ गयी..खिड़की का एक पट खोले उन्होंने इधर -उधर देखा..और वो पैकेट उठा कर खिड़की फौरन बन्द करके कुंडी लगा ली..पैकेट खोला तो रोज की तरह ही कच्चे मांस के कुछ टुकड़े ही थे..

जिन्हें खाने से वो हर दिन परहेज करते रहे हैं और हर दिन वो पैकेट नीचे फेंकते रहे हैं..आज फिर हताश होकर उन्होंने उस पैकेट को उठाया..और फेंकने के लिए हाथ बढ़ाया कि भूख की कुलबुलाहट ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया..फिर मन को कड़ा करके वो अपने आप से ही बोले:”क्या करूँगा ऐसे जी कर भी..ये खाकर जी भी गया तो क्या फायदा इस नरकीय जीवन का,इससे अच्छा प्राण दे दूँ.. हाँ यही सही रहेगा..वो उठे खिड़की खोली..अपने दोनों पैरों को आगे बढ़ाया और आँखे मूँद लीं

“हे ईश्वर मेरे बेटे और प्रेमलता का ख्याल रखना”….कि “हऊऊऊ…हऊऊऊ की आवाजें सुनने के साथ ही उनका कमजोर शरीर पत्ते जैसा कांपने लगा,ना चाहते हुए भी नजर नीचे चली गयी ..सब सियार चमकती और भूखी आँखों से उसकी ओर लपक रहे थे…घबराकर भीतर आकर खिड़की बन्द कर ली..कुछ देर हाँफने के बाद पैकेट उठाया और खाने लगे.बेचारगी और हताशा में आँखों से आँसू बह निकले…

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“आ गयी …आ गयी “सी सी टी वी में झांकती प्रेमलता जब छोटे बच्चों सी उछलते हुए बोली तो अकाउंट चेक कर रहा साहिल उनकी ओर पलट कर बोला “कौन आ गया मम्मी”
“और कौन …मीनाक्षी आ गयी ” खुशी साफ साफ देखी जा सकती थी प्रेमलता के चेहरे पर..वो उठीं और उसकी ओर चल दीं
“क्या मम्मी आप भी ..यहीं बैठिये.. ऐसे अच्छा लगता है क्या”
“ऐसा क्या कर रही हूँ मैं,बस्स उसके पास जाकर बैठ जाऊँगी”

और वो मीनाक्षी के पास जाकर बैठ गयीं..साहिल अपने काम मे लग गया ..अब नजर अपने आप उठ -उठ कर सी सी टी वी कैमरे पर चली जाती थी..उसने ज़ूम करके वो मीनाक्षी वाली स्लाइड बड़ी कर ली ..अब वो किसी कस्टमर को एक नैकलेस दिखा रही थी ..

“साहिल क्या कर रहा है यार चल पार्टी करने चलते हैं” जितेन्द्र ने उसके केबिन में आते ही कहा,
“नहीं यार नहीं जा सकता…पापा अभी लौटे नहीं हैं और मम्मी की तबियत भी ठीक नहीं” साहिल ने बोलने के साथ ही मीनाक्षी वाली स्लाइड मिनिमाइज कर दी,इसे अखिल और जितेंद्र दोनों ने देख लिया था !

“साहिल सर,मीनाक्षी ने बहुत बड़ा लॉस कर दिया है “रुआँसी शक्ल बनाये नीलम केबिन में आई और पीछे पीछे प्रेमलता और मीनाक्षी भी
साहिल “क्या हुआ ” ?
नीलम :-“एक लाख अस्सी हजार के सेट का इसने एक लाख चालीस हजार बोल दिया है कस्टमर को,सो भी मेकिंग चार्ज ऐड करके”
साहिल ने मीनाक्षी की ओर देखा,तो मीनाक्षी ने अपनी नजरें झुका लीं,शक्ल से लग रहा था कि उसे अपनी गलती का एहसास है वो अपनी उंगलियां आपस मे रगड़ रही थी

साहिल :-(बहुत संयत आवाज में) “हम्म …मीनाक्षी क्या ऐसा हुआ है”? मीनाक्षी कुछ ना बोलते हुए बस्स अपना सिर हामी में हिला देती है..

“क्या …इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकती हो तुम..ना सही फायदा कम से कम नुकसान तो ना पहुँचाओ, उसने जॉब दी तुम्हें और तुम.. ” गुस्से में बोलते अखिल को साहिल ने उसके कंधे पर हाथ रखकर चुप करा दिया

नीलम :-“वो पुराना कस्टमर है हमारा”
साहिल:-(शांत स्वर में)”हम्म ..ठीक है ..नीलम तुम जाओ,और जो प्राइस मीनाक्षी ने बताई है उसी प्राइस पर खुश होते हुए ये नेकलेस पैक करा दो…और तुम मीनाक्षी….देखो कहाँ गलती हुई है. सुधारो उसे, ज्यादा मेहनत करो ..दुखी मत होओ…कोई कुछ कहे तो मुझे बताना..जाओ काम पर लगो….मीनाक्षी वैसे ही सिर झुकाये वहाँ से चली गयी,उसके जाते ही

जितेंद्र :-“साहिल ..तुमने कुछ कहा क्यों नहीं इसने इतना बड़ा नुकसान कर दिया”
साहिल :-“क्या करूँ निकाल दूँ? तो कहीं और जाएगी वहाँ ये गलती नहीं करेगी..तो ये फायदा मैं क्यों ना लूँ कि अब इससे कोई गलती नहीं होगी… रही इस गलती की बात ..तो गलतियां सुबूत हैं इस बात का, कि कोशिश की जा रही है

जितेंद्र :-“तुझे हुआ क्या है ..बदलाव देख रहा हूँ तुझमें, इतनी शांत फितरत तो नहीं तेरी “उसने साहिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा और तिरझी नजर से अखिल की ओर देखा जो रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराने लगा…

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‘धड़ाम ‘ की आवाज के साथ साहिल की नींद खुली तो दौड़ते हुए  कमरे से बाहर की ओर भागा,देखा प्रेमलता सीढ़ियों के नीचे पेट के बल पड़ी हुई थी …
“मम्मी ठीक हो ना…”कहते हुए उसने,उन्हें उठाया ..,प्रेमलता के माथे से खून बह रहा था,और वो अवचेतन अवस्था में थी…साहिल ने उन्हें उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया..
“मम्मी बोलो ना …ये कैसे हुआ “
वो बुदबुदायी…”साहिल तेरे पिता मुझे मारना चाहते हैं”
ये सुन कर साहिल की त्यौरियां चढ़ गई !

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