साहिल ने देखा वैदही, सत्यजीत का गला पकड़े उसे हवा में उठाये है और सत्यजीत अपनी गर्दन छुटाने के लिए तडप रहा है, साहिल ने इधर उधर देखते हुए सामने बनी एक आलमारी जल्दी से खोली जिसमें एक पिस्टल रखी दिख गयी, साहिल ने एक के बाद एक 2 -3 गोली वैदही पर चला दी…
पूरे कमरे में धुंआ भरा हुआ था, और काले रंग का टीका लगाये सत्यजीत जलती हुई आग में जल्दी जल्दी सामिग्री डाल रहा था,साथ ही साहिल को गुस्से में घूर रहा था,साहिल की नजर पास ही खुली पड़ी जगह पर चली गयी जिसमें एक कॉफिन रखा था (शव को रखने वाला बॉक्स),कुछ न कुछ नकारात्मक हो रहा है इसका एहसास हो गया उसे,
“आपने शोरूम का सारा सामान अपने घर पर क्यों मंगा लिया” वो गुस्से में बोला तो सत्यजीत ने अपनी एक उँगली उठा कर अपने होठों पर रख ली, और उसे चुप रहने का इशारा किया, सत्यजीत के इस इशारे से साहिल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया,
पास ही रखी कुछ हड्डियों पर साहिल ने अपने पैर से ठोकर मार दी और चिल्लाते हुए बोला,
“ये पूजा तो नहीं है, कर क्या रहे हो ये, शोरूम का सामान कहाँ है”?
साधना की सामिग्री में साहिल का ठोकर मारना सत्यजीत को बुरी तरह खिज़ा गया,सत्यजीत का पूरा चेहरा ग़ुस्से से कांप उठा और वो जोर जोर से अपने मन्त्र बोलने लगा..
“मैंने कहा मेरा सामान कहाँ है” साहिल तेज़ आवाज में चीखा, तो वही आदमी अंदर आ गया जो साहिल को भीतर आने से रोक रहा था, उसने साहिल के मुँह पर एक जोरदार मुक्का मारते हुए कहा
“निकलो यहां से”और साहिल को बाहर की ओर धकेलने लगा, साहिल ने खुद को छुड़ाते हुए उसके मुंह पर बिना रुके 3 -4 घूँसे जड़ दिए , फिर उस आदमी ने साहिल पर हॉकी से वार करना शुरू कर दिया,
तो साहिल ने पूरी ताकत से हॉकी रोककर उससे छीन ली और उस आदमी के एक हॉकी पीठ में मारी और दुसरीं उसके सिर पर जिससे वो आदमी बेहोश हो गया, इतने में सत्यजीत ने आकर साहिल के पीठ पर एक तेज़ लात मार दी जिससे साहिल मुँह के बल आगे की ओर गिर गया..
वो जमीन पर ही तेज़ी से पलटा और जब तक कुछ कर या सोच पाता सत्यजीत उस पर भूखे शेर की तरह झपट पड़ा,और ताबड़तोड़ 3 -4 घूँसे साहिल के मुंह पर दे मारे, अब तक साहिल बुरी तरफ बौखला गया था,उसने उठ कर सत्यजीत के दोनों हाथ पकड़ लिए और हाँफता हुआ बोला
“मैं आपकी इज़्ज़त कर रहा हूँ और आप मुझे पीट रहे हैं..क्यों..(चीख कर) मैं पूछता हूँ क्यों?..मुझे मेरा सामान चाहिए बस्स, कितना विश्वास करतें हैं पापा आपका ..और आप छी:”?
“विश्वास तो मैंने किया उस पर, कितने वक़्त गुलामी की मैंने उसकी,और उसने क्या किया ? मेरी फूल सी बच्ची से तुम्हारी शादी करने से इनकार कर दिया..एक एक रुपये के लिए मोहताज ना बना दूँ तो कहना”
सत्यजीत के मुँह से ये सब सुनकर उसके होश उड़ गए ,और वो सत्यजीत के ठीक सामने आकर खड़ा हो गया
“क्या….? यकीन नहीं हो रहा..तो ये सोच है मेरे पापा के लिए..कितनी इज़्ज़त करते हैं वो …यहाँ तक कि नाहरगेड़ा भी …एक मिनट( कुछ सोचते हुए)…कहाँ है मेरे पापा ..(चीखते हुए) मैं पूछता हूँ …कहाँ हैं वो”
“(जोर से हँसते हुए ) वहीँ जहाँ होना चाहिए….एक जानवर की तरह दुबका बैठा है वो, और उसे एक कुत्ते की मौत मारूँगा..”
सत्यजीत की क्रूर हँसी और अपने पिता के लिए कहे गए अपशब्दों को जब साहिल ने सुना तो सारी तहज़ीब एक तरफ रख सत्यजीत के मुँह पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया,और तेज आवाज में बोला
“तुम्हारी इतनी हिम्मत…(फिर सत्यजीत का गला पकड़कर) बोलो कहाँ छुपाया है शोरूम का सारा माल..कहाँ हैं मेरे पापा”
गले पर बढ़ते दवाव से बौखलाए सत्यजीत ने अपने पैर का घुटना मोड़ कर साहिल के पेट में जोर से मारा जिससे साहिल कराह उठा और उसकी पकड़ सत्यजीत पर ढीली पड़ गयी, और पकड़ हल्की पड़ते ही साहिल को नीचे गिरा सत्यजीत उसकी छाती पर बैठ गया और उसका गला दवाने लगा…
” तू मरने पर आमादा ही है तो ले मर..(साहिल की गर्दन पर और जोर लगाते हुए) तेरे माँ बाप को तो वैदही ही मार देगी..बहुत दुःख सह लिया मैंने..अब इस दौलत के साथ चैन से रहूँगा”
छटपटाता साहिल अपने हाथ से फर्श पर कुछ ढूंढ़ने का कोशिश करने लगा..पूरे प्रयत्न के बाद भी वो सत्यजीत को खुद के ऊपर से हटा नहीं पा रहा था…सत्यजीत कुछ ऐसे मन्त्र भी बोलने लगा जो साहिल की समंझ से परे थे, उसे लगा ये उसका अंत है.. उसकी आँखो के सामने प्रेमलता और मीनाक्षी का चेहरा घूम गया…अखिल और जितेंद्र को याद करते हुए उसने सोचा
‘काश वो उन्हें पता पाता कि सत्यजीत ने ही वैदही को जगाया है,और वो हमें बर्बाद कर चुका है..उसने अपने अंदर की ताकत को खतम होता महसूस किया, और खुद को निढाल छोड़ दिया …
अचानक घर की सारी खिड़कियां और दरवाजे हिलने लगे..ऐसा लगा एक तूफान सा घर में आ गया है…और अगले ही पल ..
सत्यजीत हवा में, उसका सिर कमरे की छत को छू रहा था, साहिल ने देखा वैदही, सत्यजीत का गला पकड़े उसे हवा में उठाये है और सत्यजीत अपनी गर्दन छुटाने के लिए तडप रहा है, साहिल ने इधर उधर देखते हुए सामने बनी एक आलमारी जल्दी से खोली जिसमें एक पिस्टल रखी दिख गयी, साहिल ने एक के बाद एक 2 -3 गोली वैदही पर चला दी…गोली लगने से वैदही को कोई नुकसान नहीं हुआ उसने सत्यजीत को वहीं ऊपर से ही छोड़ दिया, और साहिल के बिल्कुल पास आकर उसे घूरने लगी, इतने में सत्यजीत दर्द से कराहते हुए चीख कर बोला
” तूने मुझ पर इस साहिल के लिए हाथ उठाया ना, देख.. ये तुझी पर गोली चला रहा है”
“हूऊऊssssss…”की एक तेज़ और डरावनी आवाज निकाली उसने..
ठीक उसी वक़्त ‘धड़ाक ‘ की आवाज में दरवाजा खुला,और अखिल गुरुजी के साथ अंदर दाखिल हुआ,साहिल को उसे देख कर तसल्ली हुई लेकिन उस पर अब बेहोशी हावी हो गई..
****
“ॐ काली.. काली महाकाली …महाकाली नमोस्तुते…” गुरुजी के तेज आवाज में मन्त्र जपने की आवाज साहिल के कानों में पड़ी, उसने धीरे धीरे आँखे खोल दी,गुरु जी पूजा कर रहे थे, उनके पास ही प्रेमलता और मीनाक्षी डरी हुई बैठी थी, अखिल और जितेंद्र पास ही खड़े थे उन्होंने जैसे ही साहिल को देखा तो दोनों उसके पास आ गए,
“तुम सब यहाँ कैसे”? साहिल ने पूछा
“जैसे ही मीनाक्षी को होश आया हम सब सीधे गुरुजी के पास चले गए, जब उन्हें बताया कि तुम सत्यजीत के घर आये हो उन्होंने कहा ‘सीधे वहीं चलो” और हम यहाँ आ गए …
सत्यजीत जो अब तक शांत बैठा हुआ था उसने आँखे खोल दी, लाल सुर्ख आँखो से वो गुरुजी को घूरते हुए चीखा
” बन्द कर ये पूजा” और इससे पहले कोई कुछ कहता या सोच पाता सत्यजीत ने एक हाथ से गुरु जी को उठाया और दूर फेंक दिया, सब सकते में आ गए…
“पहली बार ही कहा था,कि बीच मे मत आ” सत्यजीत जोर से चीखा
साहिल सत्यजीत की ओर दौड़ा, तभी गुरुजी बोले
“साहिल, पूजा क…रो…108 मन्त्र पढनें हैं..मन्त्र वहीं लिखा हुआ है” साहिल ने मन्त्र पढ़ना शुरू कर दिया,
सत्यजीत, गुरुजी की ओर दौड़ा तो बीच में अखिल ने उसे आगे से कस कर पकड़ लिया, तो सत्यजीत ने उसकी पीठ पर घूँसे बरसाने शुरू कर दिए, जितेंद्र ने वहीँ पड़ी पिस्टल उठायी और सत्यजीत पर तान दी,
“नहीं…नहीं..जितेंद्र गोली मत चलाना..ये वैदही है उसके अंदर” गुरुजी चीखे
सत्यजीत ने आगे बढ़कर जितेंद्र की गर्दन पकड़ ली,गुरु जी की निगाहें जितेंद्र के गले पर गयी
“तुम्हारे गले की माला कहाँ गयी”
गुरु जी ने पूछा,तो जितेंद्र ने उँगली से जमीन की ओर इशारा कर दिया जहाँ जितेंद्र के गले से निकली माला पड़ी थी…
‘हे माँ जगजननी मदद कर ‘ गुरु जी घबराते हुए बुदबुदाये और पूजा की ओर भागे, जल के लोटे से जल उन्होंने हाथ मे लेते हुए कोई मन्त्र पढ़ा और सत्यजीत पर छिड़क दिया
‘हाSSSS ‘ की एक तेज़ आवाज हुई और सत्यजीत जमीन पर लुढक गया, अब वैदही सब को दिख रही थी,सब डर से काँपने लगे..जितेंद्र ने अपनी माला फिर पहन ली,
“साहिल मन्त्र बोलते रहो और सामिग्री चढ़ाते रहो” गुरुजी साहिल से बोले
वैदही ने एक हाथ बढ़ाकर गुरुजी का गला पकड़ा,और दूसरे हाथ से साहिल को उठा लिया, दोंनो हवा में अपने पैर छटपटाने लगे,अखिल फौरन चौकी पर बैठकर मन्त्र पढ़ने लगा और जितेंद्र नें अपने साथ लायी हुई पिस्टल की सारी गोलियाँ वैदही पर दाग दी..वो गुस्से में चीखी और जितेंद्र की ओर बढ़ने लगी…वो पीछे की ओर हटने लगा..
.”आ….ह” की आवाज के साथ वो अचानक गायब हो गयी,
” गुरु जी मन्त्र पूरे हुए..” अखिल बोला! गुरु जी अखिल के पास दौड़े और बची हुई पूजा समाप्त की..इतने में सत्यजीत को होश आया गया
,”देखो सत्यजीत, अपनी भूल का नतीजा..कितना भयानक था..जब कोई इस दुनिया से एक बार चला जाता है,तो वो इस दुनिया का नहीं रहता ,और ना ही उससे जुड़े कोई भी रिश्ता…इसी का सुबूत है ये कि तुम्हारी बेटी, तुम्हें ही मारना चाहती थी
“मुझे समंझ आ गया है,मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ” गुरुजी ने सत्यजीत से कहा तो वो हाथ जोड़कर बोला!
“गुरु जी इससे पूछिये,मेरे पापा कहाँ है” साहिल गुस्से में बोला
“उन्हें मैंने नाहरगेड़ा से 100 किलोमीटर की दूरी पर रखा है और भ्रामक डरावना माहौल बना दिया है” सत्यजीत नजर चुराते हुए बोला
“मार दूँगा मैं तुझे” साहिल उसकी ओर लपका तो गुरुजी ने उसे रोक दिया
“मैं तुम्हे बर्बाद करने चला था और तुमने मेरी जान बचाई,सो भी तब, जब मेरी बेटी ही मुझे मारना चाहती थी..मुझे माफ़ कर दो साहिल, ..मैं यही से अपनी शक्ति से उस माहौल को खत्म कर देता हूँ, लेकिन उनकी हालत अपने आप आने लायक नहीं तुम उन्हें लेने चले जाओ ” सत्यजीत ने हारी हुए लहजे में कहा
“ठीक है,साहिल तुम अपने पिता को लेने चले जाओ,और सत्यजीत तुम चलो वैदही का विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार करते हैं” गुरु जी ने सत्यजीत के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा
“जी गुरुजी ” कहकर सत्यजीत,विक्रांत सिंह के आस पास बनाये डरावने भ्रामक परिवेश को खत्म करने के लिए अपनी तांत्रिक पूजा करने लगा,और साहिल जितेंद्र के साथ अपने पिता को लाने निकल गया…
तांत्रिक पूजा करने के बाद वो उठा और वैदही की अंतिम यात्रा की तैयारी करने लगा..
अखिल ने अंतिम संस्कार की तैयारी की और सत्यजीत ने वैदही की चिता को मुखाग्नि दी….
और मीनाक्षी ने अपनी माँ की चिता को मुखाग्नि दी..
***
विक्रांत जी बापस आ गए है… हालांकि बेहद कमजोर हो चुके हैं लेकिन फिर भी बेहद खुश हैं बापस लौटकर…सत्यजीत ने शोरूम का सारा सामान बापस लौटा दिया साहिल को…जितेंद्र ने साहिल के पास आकर कहा
“यार अब देर मत कर बोल दे मीनाक्षी को”
“हाँ बोल दे उसे यार” अखिल ने कहा,तो साहिल मुस्कुराता हुआ,थोड़ी दूरी पर खड़ी मीनाक्षी के पास जाकर बोला
” मीनाक्षी…बहुत प्यार करता हूँ तुमसे…बहुत प्यार करता हूँ” वो मुस्कुरायी और स्वीकृति में सिर हिलाते हुए बोली
“मुझे भी प्यार हो गया तुमसे, साहिल…दोनो एक दूसरे की आंखों में देख मुस्कुरा दिए.
.
…इतने में प्रेमलता जी आयी और अपनी उंगली से एक अंगूठी निकालकर उन्होंने साहिल को थमाते हुए कहा” मैंने तो मीनाक्षी को पहले दिन ही अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, बेटा अगूंठी पहना दो इसे”
साहिल ने मीनाक्षी को अंगूठी पहना दी,और दोंनो गले लग गए, प्रेमलता जी की आंखों में खुशी के आँसू आ गए!
★★★★★★★★★समाप्त★★★★★★★★★★
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