"राघव चाचा जी की मौत की वजह वो कांता! कांता! वो दुष्ट औरत आज भी जिन्दा है...मैं उस वक़्त भी उसके पास जा रहा था लेकिन उसी वक़्त मैं बापस आ गया ....आज कांता बचेगी नहीं मेरे हाथों" गुस्से में आकाश ने अपने हाथ में लगी ड्रिप निकाल फेंकी!
24.
आकाश को निढ़ाल होते देख गिरिराज ने दौड़ते हुए उसे थाम लिया।
“तुम्हारी भलाई इसी में है कि चले जाओ यहां से…वरना ” गिरिराज ने गुस्से में उन लड़कों से कहा!
“वरना क्या बुढ्हे?” उनमें से एक लड़का बोला
“वरना ये कि, तुम्हारे पूरे खानदान की चप्पले घिसवा दूँगा लेकिन जमानत नहीं मिलने दूँगा” गुस्से में जब गिरिराज ये बोले तो तीनों लड़कों ने एकदूसरे की ओर देखा और सिथिल पड़ गये,
“लगता है पुलिस डिपार्टमेंट से है” तीनों में से एक बोला
“होगा हमें क्या? हमने इसे अच्छा मजा चखा दिया है …चलो” दूसरा बोला
“ना…अभी हिसाब बराबर नहीं हुआ” ये बात कहने वाला वो लड़का था, जिसने सबसे ज्यादा थप्पड़ खाए थे आकाश से
“समझ काकू… किसी और दिन हिसाब चुकता करेंगे, मौका देखकर…अभी चल” दूसरे लड़के ने उसके कंधे पर हाथ रखकर समझाते हुए कहा। और तीनों वहाँ से चले गये
गिरिराज की कोरी धमकी काम कर गयी थी, लड़कों के वहाँ से हटते ही गिरिराज ने आकाश को सहारा देने के लिये टेक्सी वाले को बुला लिया।
***
पेनकिलर इजेक्शन लगने के बाद भी आकाश दर्द से कराह रहा था।
“डॉक्टर साहब! कोई चिंता की बात तो नहीं ना?” गिरिराज ने आकाश का चेकअप कर रहे डॉक्टर से पूँछा।
“ये बात आप तीसरी बार पूंछ रहे हैं गिरिराज जी” डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोला
“माफ कीजिये डॉक्टर साहब…वो जरा” गिरिराज झेंप गए
“चिंता मत कीजिये हल्की चोटें तो आयी हैं लेकिन टेंशन वाली कोई बात नहीं” डॉक्टर ने आत्मीयता से गिरिराज का कंधा थपथपाया और अगले पेशेंट को चेक करने चले गये।
” अपनी आँखो से ना देखता तो यकीन करना मुश्किल था कि तुम मारपीट में भी,,,”छत की ओर उदासी से घूरते आकाश का ध्यान बटानें के लिये गिरिराज ने ऐसे ही बोल दिया।
” मारपीट उन लोगों ने शुरू की थी अंकल! यकीन कीजिये मेरा, गलती उनकी थी और वो मुझे दोषी बनाने पर तुले थे! प्लीज यकीन कीजिये मेरा” छत से अपनी नजरें हटा कर उसने गिरिराज से बहुत ही डरी हुई आवाज में कहा।
“अरे आकाश मैनें तो ऐसे ही कह दिया तुम इतने इमोशनल क्यों हो गये” गिरिराज ने महसूस किया कि शायद उन्होने गलत ही प्रश्न कर दिया।
“डरुं ना तो क्या करुँ अंकल, सबकुछ खो चुका हूं मैं, कहीं आप भी नाराज हो गये तो! मेरे पास क्या रह जायेगा?”
“क्या बात है आकाश? बताओ मुझे” गिरिराज, आकाश के डूबे स्वर से डर गये थे।
“आपने सही कहा था अंकल! सच में देर हो गयी” आकाश हॉस्पिटल की छत पर ही नजरें टिकाये डूबे स्वर में बोल रहा था।
“आकाश क्या हुआ है …मुझे बताओ?” गिरिराज ने स्टूल से उठ कर आकाश के ऊपर झुकते हुए पूँछा। “
“आपने कहा था ना कि मैं आकांशा को प्रपोज कर दूँ “
गिरिराज ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया
“आज जब मैं उसके शोरूम पहुँचा तो अनी उसे प्रपोज कर रहा था…और आकांक्षा ने उसे हां भी बोल दिया”
ये सुनकर गिरिराज से कुछ कुछ कहते ना बना, वो बापस चुपचाप स्टूल पर बैठ गये।
“अंकल?”
“हम्म्म्म “
“अब क्या सलाह देंगें आप?”
“….”
“कुछ लोग होते ही बदकिस्मत हैं! ईश्वर उन्हें कुछ नहीं देता .. कुछ नहीं…बल्कि जो था वो भी मैं अपनी बेबकूफी से गंवा बैठा…राघव चाचा के अतीत में ऐसा उलझा कि अपना वर्तमान …अपनी आकांक्षा खो बैठा”
“ऐसे हार नहीं मानते आकाश! बदकिस्मत नहीं हो तुम…बल्कि तुम तो खास हो
“लगता है, बुआ का असर हो गया है आप पर भी”
आकाश की इस बात पर कुछ ना बोलते हुए गिरिराज झेंपते हुए चुप हो गए!
“वो भी यही कहतीं हैं …कि मैं खास हूँ! हुम्म! खास का तो नहीं पता लेकिन सबसे बदकिस्मत जरुर हूँ …नहीं तो राघव चाचा …एक मिनट….ये मैं कैसे भूल गया” कुछ याद करते हुए आकाश उठ कर बैठ गया।
“क्या हुआ?” उसके चौंकने से गिरिराज भी चौंक गये।
“राघव चाचा जी की मौत की वजह वो कांता! कांता! वो दुष्ट औरत आज भी जिन्दा है…मैं उस वक़्त भी उसके पास जा रहा था लेकिन उसी वक़्त मैं बापस आ गया ….आज कांता बचेगी नहीं मेरे हाथों” गुस्से में आकाश ने अपने हाथ में लगी ड्रिप निकाल फेंकी और फुर्ती से बेड से नीचे कूद पड़ा।
“आकाश कहाँ जा रहे हो मुझे बताओ तो सही?”
“बस्स कुछ मत पूछिये इस वक़्त अंकल” आकाश तेजी से दरवाजे की ओर लपका और सड़क पर दौड़ने लगा।
“आकाश! रुको! ” गिरिराज उसके पीछे भागे।
आकाश तेजी से दौड़ रहा था। गिरिराज उसका पीछा नहीं कर पा रहे थे।
“ऑटो!” गिरिराज ने हाथ देकर एक ऑटो रोका और जल्दी से उसमें बैठ गये
“वो लड़का देख रहे हो ना?”
“हाँ जी “
“बस्स उसके पीछे ले लो रिक्शा जल्दी …जल्दी करो…आज ना जाने क्या कर बैठे ये लड़का” ड्राइविंग सीट पर हाथ मारते हुए हड़बड़ाकर बोले गिरिराज।
” ज…जी” ड्राइवर ने ऑटो की स्पीड बढ़ा दी।
जल्दी ही ऑटो आकाश के नजदीक पहुंच गया।
“आकाश! आकाश! बैठो आकर “
“मुझे मत रोकिये अंकल”
“मैं कहाँ रोक रहा हूँ …जो चाहते हो उसमें साथ दूँगा…लेकिन आकर बैठो तो सही ” गिरिराज ने मनुहार की
लेकिन आकाश बिना सुने भागता रहा, फिर गिरिराज ने ऑटो वाले को धीरे चलने को कहा…और धीमी स्पीड में ऑटो साथ-साथ चलने लगा। फिर आकाश जब एक तंग गली की ओर मुड़ा तो गिरिराज को ऑटो वाले को पैसे देकर विदा करना पड़ा। और वो पैदल आकाश के साथ हो लिए।
बेहद घनी गली में ढ़ेर सारे बच्चे शोर मचाते धमा चौकड़ी काट रहे थे। और औरते रोजमर्रा के काम से निपट कर बातचीत में मशगूल थीं।
वहाँ ये दोनों अजूबे से लग रहे थे।
“आ..कांता?” 3-4 औरतें किसी खास टॉपिक पर बात करने में मशगूल थी, कि आकाश की आवाज से चौंक गयी।
“कौन कांता?” साड़ी के पल्लू को सिर पर ओढ़ते हुए एक औरत ने उल्टा प्रश्न दाग दिया।
“आ… वो यहीं रहती थी …मेरा मतलब! रहतीं थीं”
“एक मिंट…”कुछ याद करते हुए एक औरत बोली ” कहीं वयी कांता तो नहीं…जिनकी एक बड़ी सुन्दर भहू थी?”
आकाश ने सहमति में सिर हिलाया।
“हां याद आया रेशमा नाम था उसका… किले जैसे घर थो?”
“जी वही…आप बता सकतीं हैं कि कहाँ रहती है वो?” आकाश ने उत्साहित होकर पूँछा।
“सो के जागे हो के भले आदमी… सालें बीत गई उस कांता को मरे हुए” वो कुछ झुन्झला कर बोली।
“क्या?” आकाश आश्चर्य से चौंका
“अरे और क्या…”फिर वो औरत उंगलियों पर कुछ गिनते हुए ” कम से कम 15 -20 सालें तो बीत ही गयीं होंगीं क्यों लाजी?” पास ही खड़ी एक औरत को संबोधित करते हुए उसने पूँछा
“और नहीं तो का! और उस किले में तो अब सरकारी इस्कूल खुल गया है..” लाजी अपने ज्ञान पर इतराते हुए बोली। आकाश निराशा से भरा वहाँ से पलट गया और बोझिल कदम बढ़ाता चलने लगा।
“सही ही कहते हैं लोग..स्वर्ग …नरक सब यहीं है..करम ही इतने बुरे करे थे कांता ने ….मरी तो कोई पास तक ना था..
औरतों की आवाजे आकाश और गिरिराज के कानों तक आ रहीं थीं।
गिरिराज ने आत्मीयता भरा हाथ आकाश के कंधे पर रख लिया था।
“आकाश! कुछ देर यहां बैठ जाते हैं” थोड़ी देर चलने के बाद गिरिराज ने एक छोटे से होटल के बाहर पड़ी कुर्सी पर आकाश को बैठने का इशारा किया। और आकाश के बैठते ही गिरिराज कुछ खाने-पीने के लिये लेने अंदर मुड़ गये।
और जैसे ही पलटे एक तेज आवाज से चौंक गये।
“आकाश!” चाय एक तरफ फेंक कर वो आकाश की ओर लपके।