"कौन सा हक नहीं है तुम्हारा? क्या तुम नहीं जानतीं, कि तुम्हारे अलावा ना तो कोई मेरा था और ना है, फिर क्या दुनियाभर के सामने आग के चारो ओर घूमने से ही रिश्ते बन सकते हैं?...मुझे नहीं लगता कि भावनाओं को इन प्रोपगन्डों की कोई भी जरुरत है...मुझे कभी पसंद ही नहीं आए ये फिजूल के .प्रोपगन्डे ..ना ही इनसे मुझे कोई फर्क पड़ता है! .. लेकिन तुम उर्मी.."
25.
“आकाश!” चीखते हुए वो चाय एक तरफ फेंक कर वो आकाश की ओर दौड़े!
दो-तीन लड़के हॉकी के साथ आ गये थे और आकाश को पीटने लगे। ये वही लड़के थे जिनके साथ आकाश की झड़प हुई थी कार और बाइक के टकराने पर।
“रुक जाओ” गिरिराज तेज आवाज में चीखे।
लड़कों ने सुनकर भी अनसुना कर दिया, और आकाश तो जैसे सरेंडर था उन लड़कों के सामने। लड़के उस पर हॉकी से लगातार वार कर रहे थे और आकाश पिट रहा था। वो बुरी तरह जख्मी हो गया था। लेकिन पलट कर वार करना तो दूर की बात है वो खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं कर रहा था।
“मैने कहा रुक जाओ! रुक जाओ!” गिरिराज एक लड़के की हॉकी को पूरी ताकत से पकड़ते हुए चीखे।
ना जाने क्या हुआ तीनों को, वो एकसाथ रुक गये।
“एक पहला और आखिरी मौका देता हूँ ..भाग जाओ वरना बहुत पछताओगे…सच कहता हूँ जिंदगी जहन्नुम ना बना दी तो मेरा नाम गिरिराज नहीं” गुस्से में बोलते हुए गिरिराज ने हाथ में पकड़ी हुई हॉकी को जोश में बोलते हुए जैसे ही जोर से जमीन पर पटका, उनका ये रूप देख तीनों ने एक दूसरे को चलने का इशारा किया और फौरन चलते बने।
“आकाश! ओह्ह्ह!” आकाश के सिर से बहते खून को देखकर गिरिराज के मुँह से निकला, उन्होंने जल्दी से एक कार रुकवायी और आकाश को उसमें बिठाकर कारवाले से हॉस्पिटल चलने के लिये बोल दिया।
***
“डॉक्टर! इसे कब तक होश आएगा?” आकाश का चेकअप करते डॉक्टर से गिरिराज ने पूँछा।
“चोटें गहरी हैं, लेकिन उम्मीद है शाम तक पेशेंट को होश आ जाना चाहिये…देखते हैं” ये बोलकर डॉक्टर जैसे ही हटे, गिरिराज ने उर्मिला को कॉल कर दिया।
कुछ ही मिनट में उर्मिला हॉस्पीटल पहुंच गई। तेज गति से चलते हुए वो आकाश के कमरे की ओर बढीं, और जैसे ही नजर गिरिराज पर गयी उनके कदम अपने आप रुक गये। उर्मिला की ये कश्मकश देखकर गिरिराज उर्मिला की ओर बढ़े और धीरे-से बोले “चिंता की कोई बात नहीं है शाम से पहले उसे होश आ जायेगा…तुम यहां रुको, मैं बाहर जाता हूँ”
“हाँ उसे जल्दी होश आएगा! लेकिन तुम? तुम्हें होश कब आएगा?” हॉस्पीटल के उस कमरे के बाहर एक कदम ही बढ़ा पाया होगा गिरिराज ने, कि उर्मिला के इन शब्दों ने उन्हें रोक दिया।
“मैं समझा नहीं” गिरिराज ने असमंजस की स्थिति में पूँछा
“समझे नहीं.. या समझना नहीं चाहते?”
“जो भी कहना चाहती हो खुल कर कहो”
“मैंने तुमसे जाने की प्रार्थना की थी, बाबजूद इसके तुम अभी तक रुके हो, इसका क्या मतलब है, गिरि? मुझे डर है कि आकाश की इस हालत के लिये कहीं तुम जिम्मेदार तो नहीं?”
उर्मिला की बात सुनकर गिरिराज की त्योरियां चढ़ गई।
“ना सही रिश्ते का…कम से कम इंसानियत का तो सोच लेतीं उर्मिला, तुम्हें लगा भी कैसे? कि मैं आकाश को कोई नुकसान पहुँचाने के बारे में सोच भी सकता हूँ”
“हुम्म, तुम अपनी सोच की तो बात ना ही करो तो बेहतर है”
“ऐसा भी क्या कर दिया है मैनें? पता तो चले?”
“अच्छा! तुम्हें क्या लगता है कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुमने आकाश के साथ अपना भावनात्मक रिश्ता क्यों बनाया है ? इसीलिए ना, कि तुम मेरे आस-पास बने रहो ..बोलो अगर इसमें झूठ है तो?”
ये सुनकर गिरिराज, उर्मिला की ओर अपनी पीठ करके खड़े हो गये।
“ये सच है कि शुरुआत में मैंने ऐसा सोचा जरूर था…लेकिन वक्त के साथ अब बहुत भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता हूं आकाश के साथ, उसे जरुरत भी है मेरी” बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया गिरिराज ने।
“हुँ! उसे पता नहीं ना अभी, कि जिस दिन उसे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरुरत होगी, उसी दिन तुम उसे छोड़कर भाग जाओगे”
“उर्मिला” गिरीराज की आवाज उँची हो गई थी।
“सच चुभता है गिरि?” लेकिन उर्मिला संयत आवाज में ही बोलीं!
“मेरे उस गुनाह की सजा देकर तुम मुझे उस पाप के भार से मुक्त क्यों नहीं कर देतीं, जिसमें रहते -रहते मेरा खुद दम घुट रहा है?”
“मैं कौन होतीं हूँ सजा देने वाली? और फिर मैं किस हक से सजा सुना सकतीं हूँ तुम्हें?”
“कौन सा हक नहीं है तुम्हारा? क्या तुम नहीं जानतीं, कि तुम्हारे अलावा ना तो कोई मेरा था और ना है, फिर क्या दुनियाभर के सामने आग के चारो ओर घूमने से ही रिश्ते बन सकते हैं?…मुझे नहीं लगता कि भावनाओं को इन प्रोपगन्डों की कोई भी जरुरत है…मुझे कभी पसंद ही नहीं आए ये फिजूल के .प्रोपगन्डे ..ना ही इनसे मुझे कोई फर्क पड़ता है! .. लेकिन तुम उर्मी..
“मत कहो मुझे उर्मी” चीख पड़ीं उर्मिला ” …तुम्हें प्रोपगन्डों से फर्क नहीं पड़ता…तुम्हें? काश ये सच होता..
“झूठ क्या है इसमें?”
“अच्छा ! अगर नहीं पड़ता फर्क तो मेरी इन्गेज्मेंट वाले दिन क्यों भागे थे, बोलो…प्रोपगन्डा ही था ना इन्गेज्मेंट का! तब क्यों? जिस दिन मैनें तुम्हारे चेहरे से नकाब हटाया उस दिन कितनी मिन्नतें की मैनें तुम्हारी लेकिन तुम नहीं रुके..क्या चाहती थी मैं? बस्स कुछ बताना ही तो चाहती थी लेकिन तुम उस दिन भी भाग गये….क्यों?
गिरिराज तेजी से घूमे और जोर से अपने दोनों हाथ दीवार पर मार दिये। “भूल हो गई मुझसे.. बड़ी भूल!” वो खीजते हुए बोले
“नहीं!भूल नहीं! असल में तुम समझते थे कि मैं शादीशुदा हूँ ..इसलिये बात नहीं करना चाहते थे…अगर तुम्हारी नजर में आग के चारो ओर फेरे लगा लेना महज प्रोपगन्डा है, तब तो तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए था, तब क्यों बात नहीं की मुझसे? और अब, जब तुम्हें ये पता लगा कि मैं अकेली हूँ तो तुम्हारे भीतर मुझे अपनाने की इच्छा जाग गयी! अपनी सुविधा के अनुसार बदल जायें वो सिद्धांत नहीं होते गिरि…”
“हम्म्म्म.. हम्म” गिरिराज के पास उर्मिला के इस तर्क का कोई जवाब नहीं था….वो बाहर की ओर देखने लगे।
तुम्हें कैसे समझाऊँ, सच नहीं है ये उर्मिला, सच तो ये था कि तुम मेरी पूरी दुनियाँ थीं और जब अपनी ही आँखों से मैंने अपनी दुनिया उजड़ते देखी तो ऐसा बिखरा कि आज तक खुद को संभाल नहीं पाया, फिर उस भयानक सच का सामना कैसे कर पाता, कैसे तुम्हें किसी और की जिंदगी का हिस्सा बने देख पाता, इसलिए पास होकर भी कभी सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा सका!
गिरिराज ने मुड़कर देखा, उर्मिला, आकाश के बेड के पास बैठ कर उसे खामोशी से निहार रहीं थीं! गिरिराज उसके पास आकर खड़े हो गए! और कुछ पल की खामोशी के बाद बोले,
“क्या तुम भूल नहीं सकतीं मेरी वो गलती?”
“अपनी बेज्जती कैसे भूल जाऊं? शादी ना होने का रंच मात्र दुख नहीं मुझे! खुद के ठुकराए जाने का है…तुम नहीं समझोगे ठुकराए जाने का दर्द…” गिरिराज के सामने उर्मिला की आँखों से आज पहली बार आँसूं बह रहे थे…गिरिराज भी उनके ठीक सामने खड़े उनकी आँखों में ही देख रहे थे।
उर्मिला की आँखों में आँसू देखकर एक टीस सी उठी उनके मन में!
“होना तो ये चाहिये था…कि चाहे सारी दुनिया कुछ भी कहती मुझे कोई फर्क ना पड़ता …लेकिन मैं! आँखों देखा ही सच मान बैठा…क्या दुनिया की ऐसी कोई सजा ऐसी नहीं जो मेरे जुर्म का हिसाब कर दे? मुझे सजा मिल जाये और तुम्हारे मन का ये दर्द कुछ हद तक कम हो जाये उर्मी”
खुद के लिये उर्मी सुनकर जैसे ही उर्मिला ने उन्हें गुस्से से देखा तो गिरिराज ने फौरन बात सन्भाल ली
“मेरा मतलब उर्मिला..”
उर्मिला उनके सामने से हटीं और दरवाजे की ओर बढ़ते हुए बोलीं, “आकाश को तुम्हारे साथ की जरुरत है …जब तक चाहे रुको! लेकिन, इस दौरान मेरे घर या मेरे सामने आने की कोशिश मत करना”
“क्या? ये तो ज्यादती है…मैनें सजा की मांग की है..लेकिन ये तो …..ये मुझे मंजूर नहीं …हरगिज मंजूर नहीं है” “एक्सक्यूज मी! ये हॉस्पिटल है, कुछ नहीं तो अपने पेशेंट की फिक्र कीजिये” गिरिराज तैश में आकर तेज बोल गए थे, और जिससे नर्स ने आकर उन्हें टोक दिया,
“ओह्ह माफ कीजिये सिस्टर! मैं ध्यान रखूँगा” वो चाहते थे कि वो नर्स इसी पल वहाँ से चली जाये। लेकिन वो वहीं खड़ी रही।
“मैनें कहा ना, मैं ध्यान रखूँगा अब जाईये यहां से” गिरिराज के ऐसे बोलने से सकपकाती सी नर्स फौरन बाहर चली गयी।
“उर्मिला! मुझे माफ कर दो” नर्स के बाहर निकलते ही गिरिराज बोले।
“जब तुम आकाश के साथ पहली बार मेरे सामने आये थे, मैने तभी कह दिया था माफ कर चुकी हूँ मैं तुम्हें, लेकिन इससे ज्यादा किसी और बात की उम्मीद मत रखो मुझसे”
“उर्मि…ला”
“तुम जैसे ही मेरे सामने आते हो मुझे अपना अतीत याद आ जाता है! काला अतीत… जिसे मैं भूलना चाहती हूं, जब भी मैं तुम्हें देखती हूँ, अफसोस होने लगता है मुझे खुद पर, कि मैनें कभी तुम्हें….” आगे का शब्द नहीं बोला गया उनसे
“ओहहह उर्मिला! सजा दो मुझे”
“क्या होगा उससे? क्या मरे हुए पौधे में पानी डालने से पौधा जीवित हो सकता है? नहीं ना! मेरा फैसला अटल है गिरि, दूर रहो मुझसे” और गिरिराज कुछ बोल पाते इससे पहले ही उर्मिला उस कमरे से बाहर निकल गयीं।
गिरिराज तेज कदम बढ़ाते उनके पीछे गये कि तभी।
“जाने दीजिये उन्हें! माँफी मांगने से जख्म नहीं भरते अंकल” आकाश की आवाज सुनकर गिरिराज पीछे पलटे
“अरे! होश आ गया तुम्हें? वाह! अभी डॉक्टर को बुलाता हूँ”
“मुझे होश उसी वक़्त आ गया था जब आपने नर्स को डाँटा”
“तो फिर बोले क्यों नहीं?”
” इतना बोर हो चुका हूँ ना अपनी जिंदगी से कि वो आपलोगों की तीखी वहस भी मनोरंजक लग रही थी! इसलिये चुप पड़ा रहा” आकाश बोझिल माहौल को हल्का करने के लिए मुस्कुरा कर बोला तो गिरिराज भी जबर्दस्ती थोड़ा सा मुस्करा दिये
“चिंता मत करो! शायद अब तुम्हारे प्रश्नों के जवाब मिल जायेंगे, बस तुम्हें मेरी बात माननी होगी”
“मानूँगा! और अब जवाब ना भी मिलें तो कोई फर्क नहीं पड़ता अंकल…सिर्फ आकाँक्षा ही नहीं गयी मेरी जिंदगी से, बल्कि मेरे जीवन से हर खुशी चली गयी है।”
तभी!
“आकांक्षा सिर्फ तुम्हारी थी, और तुम्हारी ही रहेगी”
दरवाजे से आयी इस आवाज से दोनों चौंक गए।