जैसे-जैसे समय गुजरा मुझे यकीन हो गया कि अनामिका है तो अंकित भी होगा! लेकिन कहाँ? और मैं कैसे मिलूंगा उससे? बस जब भी कहीं अंकित नाम सुनता, दौड़ा जाता ! लेकिन अंकित कहीं नहीं मिला। लेकिन देखो! फिर हालात ऐसे बने कि अंकित खुद व खुद मेरे सामने आ गया"
26.
दोनों की नजर एकसाथ दरवाजे की ओर गयी।
“सूरज अंकल!” आकाश, सूरज को अचानक यहां देखकर थोड़ा हैरान हो गया था!
“सूरज अंकल नहीं…सिर्फ सूरज कहो (फिर जैसे कुछ याद आ गया हो, खुद के बालों पर हाथ फेरते हुए) क्या करुँ इस उम्र का…इस गुजरे वक़्त का” सूरज लड़खड़ाते कदमों से आकाश की ओर बढ़ा।
“कौन हैं ये?” गिरिराज ने बुदबुदाते हुए पूँछा
“आकांक्षा के पिता” आकाश ने धीरे से जवाब दिया।
“आकाश! तुम्हारा नाम अंकित है! और मैं, सबसे करीबी दोस्त हूँ तुम्हारा! याद करो …मैं सूरज! मैं तुम्हारा दोस्त हूँ वही जिगरी यार”
आकाश ने घबराकर गिरिराज की ओर देखा।
“जब मैनें तुम्हें पहली बार देखा था, तभी मैं पहचान गया था! तुम्हें याद नहीं आ रहा ना कुछ? कोई बात नहीं! समय लगे शायद!” सूरज आकाश के खाली बेड पर बैठ कर कहीं ख्यालों में खोते हुए आगे बोले।
” सालों पहले जब नर्स ने मुझे पिता बनने की खबर सुनाते हुए वो नन्हीं सी जान, मेरी दूसरी बेटी मुझे सौंपी तो मैं अपनी बेटी का चेहरा देख कर काँप गया था, उस वक़्त तो यही लगा कि जिंदगी में इतनी बड़ी घटना घट चुकी है शायद ये उसका असर हो, इसलिए हरेक लड़का अंकित और लड़की अनामिका दिखती है मुझे..लेकिन नहीं!
जैसे-जैसे मेरी बेटी बड़ी होती गयी वो हुबहू अनामिका जैसी दिखने लगी ….लाख ना चाहो लेकिन नियति…उसे कोई कैसे बदले? मैं समझ गया कि मेरा इस दुनियाँ में होने का उद्देष्य क्या है! मैं चाहकर भी उसके साथ कभी बेटी जैसा व्यवहार नहीं कर पाया, उसे अमानत की तरह पाला और उसकी हरेक इच्छा पूरी की। जैसे-जैसे समय गुजरा मुझे यकीन हो गया कि अनामिका है तो अंकित भी होगा! लेकिन कहाँ? और मैं कैसे मिलूंगा उससे? बस जब भी कहीं अंकित नाम सुनता, दौड़ा जाता ! लेकिन अंकित कहीं नहीं मिला। ….
लेकिन देखो! फिर हालात ऐसे बने कि अंकित खुद व खुद मेरे सामने आ गया”
“अरे कौन अंकित? कौन? और ये सब आप मुझे क्यों सुना रहे हैं?” आकाश झुंझलाकर बीच में ही तेज आवाज में बोल पड़ा।
“तुम! तुम हो अंकित” सूरज ने तटस्थ आवाज में कहा। तो आकाश ने अपने दोनों हाथ जोड़े और बोला,
“अंकल मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ, बहुत! ना जाने कैसे, बस पागल नहीं हुआ, प्लीज मुझे बख्स दीजिये! पहले ही ना जाने कितने सवाल हैं जिनके, कोई जवाब नहीं हैं मेरे पास! और ना ही जवाब मिलने की कोई उम्मीद है”
“कभी हिरन देखा है?” सूरज ने सवाल दागा तो आकाश और गिरिराज ने एक दूसरे की ओर देखा फिर आश्चर्य से सूरज की ओर देखने लगे।
“कस्तूरी की खुशबू से परेशान वो हिरन उस खुशबू की तलाश में हमेशा इधर-उधर भागता रहता है… सारी उम्र, लेकिन उसे पता ही नहीं होता कि वो कस्तूरी उसी के अंदर होती है..उसकी नाभि में”
“तो? कहना क्या चाहते हैं आप?” आकाश खीजा
गिरिराज बिना कुछ बोले बहुत ध्यान से बस्स सूरज के एक-एक शब्द को सुन रहे थे।
“मैं कुछ कहना नहीं चाहता बल्कि तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ, आकांक्षा के प्रति तुम्हारा ये प्रेम अभी का नहीं है…बल्कि पिछले जन्म का है”
“ओह्ह! और आप उस समय भी जिन्दा थे और आज भी…क्योंकि आप इन्सान कहाँ आप तो देवदूत हैं…हैं ना?” शायद अश्वतथामा हैं आप! कहते-कहते आकाश रुक गया, एहसास हुआ उसे कि गुस्से में ज्यादा बोल गया!
“रुक क्योँ गए? (सूरज उसकी उलझन भांप गये) प्रश्न करो तभी तो जवाब मिलेंगे…हाँ.. हाँ मैं तब जीवित था। और तुम्हारे जाने के बाद भी जीवित रहा..इसीलिये तो इतना उम्रद्राज दिखने लगा हूँ… अकेला मैं ही था जिसने अनामिका को देखा था”
“कौन अनामिका? मैं किसी अनामिका को नहीं जानता” आकाश फिर खीजा।
“ठीक है ना सही अनामिका का… लेकिन अंकित के होने का एहसास मैं तुम्हें दिलाकर रहूँगा” सूरज कड़क आवाज में बोला।
“क्या …क्या मतलब?”
आकाश के बोलने का कोई जवाब ना देकर सूरज ने आकाश का हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींचने लगा।
“अररर” आकाश ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन नहीं छुड़ा पाया।
“अंकल” आकाश ने गिरिराज की ओर देखा। लेकिन गिरिराज ने आकाश को सूरज के साथ चलने का इशारा कर दिया। और आकाश ने खुद को सिथिल छोड़ दिया।
सूरज, आकाश का हाथ पकड़े हॉस्पीटल से बाहर निकाल लाया और फिर लगभग धक्का सा देते हुए कार में बैठा दिया।
“कितना बिल आया है?” गिरिराज दौड़ते हुए हॉस्पिटल की डेस्क पर पहुँचे।
“अ एक मिनट” नर्स बोली और डेस्कटॉप पर चेक करने लगी।
“जल्दी कीजिये…जल्दी”
“और ये डिस्चार्ज का फॉर्म भी भरना होगा, आपने डॉक्टर से पूँछ लिया है ना?”
” ये लिजिये! बिल अमाउंट और फॉर्म खुद भर लिजिये, डिटेल्स आपके पास होंगी” गिरिराज ने रुपए डेस्क पर रखे और गाड़ी की ओर दौड़े।
“सर लेकिन फॉर्म आपको भरना होगा, सुनिये!” नर्स ने तेज आवाज में कहा लेकिन गिरिराज ने पूरी तरह अनसुना कर दिया। और दौड़ते से जाकर कार में बैठ गये।
“ना जाने अब कौन सी नई मुसीबत आने वाली है! ओह्ह थक गया हूँ मैं” पिछ्ली सीट पर बैठा आकाश झुंझलाया तो गिरिराज ने उसे आँखों ही आँखों में शान्त रहने का इशारा कर दिया।
कार की अगली सीट पर सूरज बैठे थे और ड्राइवर तेज स्पीड में कार चला रहा था।
***
सूरज ने एक घर के बाहर कार रुकवाई और दरवाजे पर लगी डोर वेल को तीन से चार बार जल्दी-जल्दी बजा दिया।
“हाँ हाँ आ रहा हूँ ..पैरों में कोई पहिये नहीं लगे हैं मेरे, लोगों को डोर वेल बजाने तक के मैनर्स नहीं हैं… बताईये हद्द है ” घर के भीतर से एक बुजुर्ग आदमी की खीजी हुई ये आवाज दरवाजे पर खड़े इन तीनों लोगों को बाहर तक सुनाई दी, सूरज ने सबसे नजरें चुराते हुए डोर वेल से फौरन अपना हाथ हटा लिया।
“अरे सूरज! कितने दिनों बाद…आओ ..आओ अंदर आओ (अंदर की ओर आवाज देते हुए) अरे सुनती हो! सूरज आया है” दरवाजा खोलते ही बड़ी खुशी से बोले वो, झुंझलाहट की जगह खुशी बिछ गयी थी उनके चेहरे पर।
“जिसे मिलाने लाया हूँ उसे देखकर आपके होश उड़ जायेंगें अंकल” सूरज की आँखों में खुशी चमक रही थी।
“अच्छा! फिर तो जल्दी करो, जमाना बीत गया खुशी देखे”
“ये लिजिये” सूरज सामने से हट गया और पीछे खड़े अंकित पर नजर पड़ते ही घनश्याम जी की आँखें फैल गयीं।