"वो पास गया और कील पर टँगी तस्वीर निकाल ली। "ये फोटो कब खींचा गया मेरा? और इतने फिट कपड़े तो मैं कभी नहीं पहनता" असमंजस में बुदबुदाया आकाश! "याद नहीं तुझे? उन दिनों तू जिम जाने लगा था...बड़ा खुश रहता था" सरोज चहकते हुए बोलीं। "मैं अपनी जिंदगी में कभी जिम नहीं गया...ये सब हो क्या रहा है?"आकाश ने जवाब दिया!
27.
“यकीन नहीं होता…ये तो! ये तो! अंकित है….अरे हाँ ये अंकित है” हैरत से आँखें फैलाये घनश्याम बुदबुदा रहे थे।
“क्या.. सूरज आया है? ओह्ह! कितने समय बाद” अंदर से सरोज आ गयीं थीं “अरे सामने से हटो तो सई” उन्होने घनश्याम को परे सरका दिया और जैसे ही नजर सामने पड़ी वो जैसे जम गयीं।
“हाय! क्या सपना देख रही हूँ मैं …ये तो… अंकित (सरोज ने अपने दोनों हाथ मुँह पर रख लिये, वो पलकें झपकाना भूल गयीं थीं।
“मैं जानती थी! मेरा दिल हमेशा कहता था कि तू जरुर आएगा…मेरा अंकित लौट आया है” रोती हुई सरोज आगे बढ़ी और आकाश से कस कर लिपट गयीं।
“. अह… सुनिये …गलत समझ रहीं हैं आप मुझे, हटिये..” आकाश कसमसाया लेकिन सरोज कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थीं। उन्होने आकाश की शर्ट को कस कर पकड़ लिया था और वो खुशी से रो रही थीं।
“मैनें कहा दूर हटिये मुझसे आँटी” ताकत लगाते हुए आकाश ने सरोज को खुद से दूर हटा दिया।
“आँटी नहीं…माँ ही बोल ना बेटा…जमाना हो गया अपने लिये माँ सुने…अच्छा!आ भीतर आ! आकर देख तेरा कमरा वैसा ही है अब तक…क्या मजाल जो कोई भी चीज हटायी हो मैनें या किसी और को तेरे सामान में हाथ लगाने दिया हो” सरोज खुशी से लबरेज, आकाश का हाथ पकड़कर अंदर की ओर खीचतें हुए ले आयीं।
घनश्याम बस्स अपलक आकाश को देखे जा रहे थे। सूरज बार- बार अपनी नम होती आँखें पोछ लेते, और गिरिराज बस्स सबकुछ देखने और समझने की कोशिश कर रहे थे।
“ये देख! तेरे कमरे की चाबी” एक सुनहरी सुन्दर सी डिब्बी से सरोज ने एक चाबी निकाली।
“तू अपना कमरा देख, तब तक मैं तेरे पसंद के लड्डू बनाती हूँ …अरे सुनो! जरा ऊपर से वो बेसन का डिब्बा निकालो तो ..या रहने दो! तुम जब तक यहां से हिल-हिल कर चलोगे ना, तब तक सूरज डिब्बा उठा भी देगा! (सूरज से मुखातिब होकर) सूरज?”
“हाँ हाँ अभी निकालता हूँ” सूरज किचिन में चला गया।
“सबसे पहले मैं अपने अंकित को उसका कमरा दिखाऊंगी…फिर ढ़ेर सारी बातें करेंगे” सरोज ने आगे बढ़कर अंकित की बाँह पकड़ी और धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगीं। पीछे-पीछे गिरिराज और सूरज भी चल दिये।
“ये देख! जैसा छोड़ा था तूने, तेरा कमरा आज भी वैसा ही है, चाहें किसी ने कुछ भी कहा हो लेकिन मैनें यकीन नहीं किया, मेरा मन कहता था तू आएगा…और देख तू आ गया” सरोज जोश और खुशी से लबरेज थीं।
पूरे कमरे को सरसरी नजर से देखती हुईं आकाश की आँखें एक दीवार पर लटकी धुंधली तस्वीर पर जाकर टिक गयीं। वो पास गया और कील पर टँगी तस्वीर निकाल ली। एक पुराना फोटो, जिसमें किसी पेड़ के नीचे खड़ा अंकित मुस्कुरा रहा था।
“ये फोटो कब खींचा गया मेरा? और इतने फिट कपड़े तो मैं कभी नहीं पहनता” असमंजस में बुदबुदाया आकाश!
“याद नहीं तुझे? उन दिनों तू जिम जाने लगा था…बड़ा खुश रहता था” सरोज चहकते हुए बोलीं।
“मैं अपनी जिंदगी में कभी जिम नहीं गया…ये सब हो क्या रहा है?”आकाश ने जवाब दिया तो सरोज जल्दी से एक लकड़ी की आलमारी की ओर बढ़ी और उसे खोलते हुए बोलीं,
“ये देख! यही वाली टी शर्ट पहनी है तूने फोटो में…मैने अभी परसों ही तेरे कमरे की सफाई की है, दीपावली आने वाली है ना”
सरोज ने फोटो में पहनी हुई टी शर्ट निकाली और आकाश के सामने लाते हुए उसकी तह खोल दी। ये सब देखकर आकाश का सिर चकराने लगा था। धीरे-धीरे उसने अपने कदम पीछे की ओर बढ़ाने शुरू कर दिये, तेजी से कमरे से बाहर निकला और सीढ़ियाँ उतर गया।
“आकाश! ” गिरिराज ने उसे जाते देख आवाज दी, और उसके पीछे पीछे नीचे उतरे, लेकिन तेज दौड़ने में आकाश का मुकाबला करना इतना आसान नहीं था। सरोज समेत सब दरवाजे तक भागते से आये, इतने मे आकाश आँखों से ओझल हो गया था।
सरोज की आँखे आँसुओं से भर गयीं।
“परेशान मत होइये! उसे अभी सब समझने में समय लगेगा” सूरज ने सरोज को संभालते हुए कहा
“मेरी ही गलती थी, मैं बोलती ही जा रही थी, मैने उसे बोलने का मौका नहीं दिया। कितनी सालों बाद आया था वो, कितनी मिन्न्ंतों के बाद! और मैं उसकी आवाज तक नहीं सुन पायी..आह्ह्हह” सरोज सुबकते हुए बोलीं।
“मैं वादा करता हूँ वो जल्दी लौटेगा आँटी …और आपसे ढ़ेर सारी बातें करेगा…यकीन कीजिये मेरा…फिर आप रो क्यों रही हैं? सोचिए तो ये कितनी खुशी की बात है कि आपका अंकित लौट आया है ?” सूरज की बात से सहमत सरोज ने जल्दी से अपने आँसू पोंछ लिये।
“हां सही कहते हो सूरज, मेरा अंकित बापस आ गया है …लेकिन मैं उसे कुछ खिला भी नहीं पायी”
“तभी तो! कुछ ऐसे बना लिजिये जो ज्यादा दिनों तक बना रखा रहे, ताकि जब अंकित आये तो आप खाना बनाने की फिक्र किये बिना उससे बैठ कर बात कर सकें। ” सूरज ने उनका मन बहलाने को बोला।
“हां सही कहते हो। जब वो दुबारा आएगा मैं उसे तरह-तरह के पकवान खिलाऊगीं, मैं कुछ बनाती हूँ उसके लिये” वो मुस्कुराते हुए किचिन में चली गयीं।
और सरोज के हटते ही। अब तक मूक दर्शक बने घनश्याम सूरज के पास जाकर खड़े हो गये। और आँखों में अनगिनत प्रश्न लेकर घनश्याम ने अपना हाथ सूरज के कंधे पर रख कर बोले,
“लेकिन! सूरज!”
“मैं समझ रहा हूँ, दुनियाभर के प्रश्न हैं आपके पास.. लेकिन फिलहाल इतना ही कह सकता हूँ अंकल, कि ये अंकित का दूसरा जन्म है, ईश्वर ने हमारी दुआएं कुबूल की हैं, अब हमें बहुत धैर्य से काम करते हुए उसे सब याद दिलाना होगा”
सूरज की बात पर घनश्याम ने अपना सिर सहमति में हिला दिया और वो भावुक होकर सूरज के गले लग गये,
ये पहली बार हुआ था।
***
आकाश के जाने के बाद, गिरिराज जानबूझकर रुक गये थे ताकि सूरज से इस विषय में बात कर सकें। सूरज ने उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाया और एक शान्त सी जगह पर गाड़ी से उतरकर दोनों बात करने के इरादे से एक पेड़ के नीचे बैठ गये।
“कहीं आप मुझे कोई सिरफिरा तो नहीं समझ रहे हैं?” सूरज ने बातचीत की शुरुआत की!
“बिल्कुल नहीं! फिर एक इन्सान सिरफिरा हो भी सकता है, बाकी के दो लोग?..और वो कमरा?…वो तस्वीर?…इतना सब झूठ नहीं हो सकता है सूरज जी…..हाँ लेकिन ये सब बेहद उलझा हुआ जरुर है”
“हम्म…”एक गहरी साँस छोड़ी सूरज ने!
जब बहुत कुछ हो कहने को तो इन्सान समझ ही नहीं पाता कहाँ से शुरू करे शायद इसलिए दोनों चुप थे। और पानी से भर गये एक छोटे से खड्डे को बड़े गौर से देखने लगे।
“सिगरेट पियेंगे?” गिरिराज ने अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और सूरज का जवाब सुने बिना ही दो सिगरेट जला लीं।
“एक जमाने में बहुत पीता था” सूरज ने मुस्कुराते हुए सिगरेट ले ली। “फिर आकांक्षा थोड़ी बड़ी हुई तो उसने बहुत टोका! एक दिन तो मुझे सिगरेट पीते हुए देख कर रोने लगी। …तब से घर में सिगरेट पीना बन्द कर दिया, और बाहर तो कभी-कभी काम में ऐसा उलझता हूँ कि खाना तक भूल जाता हूँ”
गिरिराज प्रतिक्रिया में बस्स थोड़ा सा मुस्कराये और फिर शून्य में देखने लगे।
दोनों मिनट भर चुप रहे। और सिगरेट के कश भरते रहे।
फिर गिरिराज ने धीरे से कहा “आकाश आपकी बेटी से बहुत प्यार करता है, सूरज जी”
“हम्म! हॉस्पिटल में सुना था! ये तो होना ही था! मैं इससे बहुत खुश हूँ, बस्स एक बार अंकित को सब याद आ जाये तो मैं उसकी अनामिका को उसे सौंपकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करुँ”
“आपको क्या लगता है! बस्स यही एक समस्या है कि आकाश अपना पिछला जन्म याद नहीं…?”
“तो?”
“काश ऐसा होता सूरज जी! अगर यही समस्या होती तो मेरा एक दोस्त है, वो इन समस्याओं को सुलझाने में माहिर है, और मेरा यकीन है कि 3 से 4 सेशन में ही, ना सही पूरी तौर पर! लेकिन बहुत कुछ याद आ जाता आकाश को….लेकिन”
“लेकिन क्या?”
“लेकिन ये कि, उस लड़के की जिंदगी में तूफान मचा है, हम उस पर एकसाथ बहुत दवाव नहीं डाल सकते”
“कैसा दवाब? बताईये ना मुझे और क्या समस्याएँ हैं?
“समझ नहीं आता क्या -क्या बताऊँ और कहाँ से शुरू करुँ? इतना कुछ है कि….
“कोशिश करने से ही समस्या हल होगी ना गिरिराज जी” सूरज बीच में ही बोल पड़े।
“हम्म ठीक है! तो आप एक समस्या का हल कीजिये, लेकिन आपको वादा करना होगा कि आप अपनी बेटी पर ये सच जाहिर ना होने दें”
“बेटी पर?..”
“जी आपकी बेटी आकांक्षा! उसकी जिंदगी में एक लड़का आ चुका है, अ ..अनी नाम है उसका”
“क्या?” क्षण भर पहले सूरज के शान्त चेहरे पर अब तनाव की रेखायें खिंच गयीं।
“हम्म्म्म …उस पर भी हालात ऐसे बनें कि अनी को अपने प्रेम का इजहार करते और आकांक्षा को उसका प्रेम प्रस्ताव स्वीकार करते आकाश ने देख लिया है”
अपनी बात पूरी करके जब गिरिराज ने सूरज की ओर देखा, सूरज ये सुनकर बहुत तनाव में आ गये थे।
“सूरज जी! ये समान्य है…बेहद सामान्य ..” गिरिराज ने उनके कन्धे पर रखते हुए कहा
“किसी और को हाँ कैसे कर सकती है आकाँक्षा? आजतक जो वो करती गयी मैने उसे करने दिया, कभी टोका तक नहीं लेकिन, अब लगता है सख्ती बरतनी होगी” सूरज थोड़े नाराजगी भाव से बोले।
“ऐसा मत कीजियेगा, आप भूल रहें हैं बच्चों को कुछ भी याद नहीं है, हमें उनकी मदद करनी है… ना कि उन्हें किसी और परेशानी या तनाव में डालना है”
“तो क्या करुँ? आप ही बताईये”
“पता लगाईये अनी कौन है? हमें इस बीच कोई ऐसी जुगत भी लगानी पड़ेगी कि आकाश और आकांक्षा एक दूसरे के साथ कुछ समय गुजार सकें …जिससे आकांक्षा को ये एहसास हो कि आकाश उसे कितना प्रेम करता है, इससे अनी से उसकी दूरी खुद व खुद बन जाएगी और क्या पता! दोनों को कुछ याद भी आ जाये”
“हम्म्म! आपकी बात सही है गिरिराज जी, ठीक है मैं पता लगाता हूँ कि ये अनी है कौन”
“ठीक है फिर, मैं भी कुछ रास्ता निकालता हूँ इन दोनो को एकसाथ करने का ठीक है…मिलते हैं फिर” कहकर गिरिराज दो कदम आगे बढ़े ही थे कि-
“गिरिराज जी?” उन्हें जाते देख सूरज ने टोका।
“जी”
“एक बात मन में थी “
“जी कहिये”
“अंकित के साथ आपका रिश्ता क्या है?” सूरज के इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। बस्स धीरे से जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला, फिर एक सिगरेट जलायी और धीरे से होंटो के बीच में रख ली।
“मैनें तो बस्स ऐसे ही पूँछ लिया अगर आप जवाब देना ना चाहें…तो..” सूरज आगे बोले।
“मैं मन, वचन और कर्म से उसकी खुशी के लिए समर्पित हूँ..हर हाल मैं उसकी जिंदगी खुशियों से भर देना चाहता हूँ और इसके पीछे मेरा कोई भी स्वार्थ नहीं है …कोई भी नहीं …अब आप ही बताइए, क्या आपकी सामाजिक व्यवस्था ने ऐसे रिश्ते का कोई नाम रखा है?”
ना सही सटीक अंदाजा, लेकिन सूरज ने अपनी जिंदगी में कई ऐसे अनुभव किये थे जो एकदम अलग और अविश्वनीय थे। तो बहुत प्रभावित होकर सूरज ने अपना सिर हिलाया।
“नहीं! जिस समाज की नीवं का आधार ही स्वार्थभरा हो! वो भला क्या नाम रख पायेगा ऐसे खूबसूरत रिश्ते का, आकाश खुशकिस्मत है,जो उसे आप मिले और मेरी भी खुशनसीबी है कि आप जैसे व्यक्तित्व से मिलने का सौभाग्य मिला” गर्मजोशी से सूरज ने गिरिराज की ओर अपना हाथ बढ़ा दिया और उतनी ही गर्मजोशी से उनके उस हाथ पर गिरिराज ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ रख दिया।
***
“तुमने दोनों हाथ क्यों हटा लिये हैंडल से” अनी की बाइक पर पीछे बैठी आकांक्षा जोर से चीखी। वो दोनो कॉलेज से घर जाने के रास्ते में थे, अनी बाइक चला रहा था।
“अब जीने मरने की फिक्र किसे है” अनी मस्ती में हंसता हुआ बोला।
“अनी क्या बचपना है ये…बन्द करो नहीं तो?”
“नहीं तो क्या?”
” मैं इस चलती बाइक से उतर जाऊँगी”
“अरर ऐसा मत करना, ये लो” आकांक्षा को गुस्से में देख कर अनी ने बाइक के हैण्डिल पर अपने हाथ रख लिये।
“एक मिनट! हम कहीं और जा रहे हैं क्या?” अनी को किसी और रास्ते की तरफ बाइक मोड़ते देख आकाँक्षा ने पूँछा
“हम्म्म्म”
“कहाँ?”
“मेरे घर”
“लेकिन क्यों?”
“तुम्हें अपना घर दिखाने, अपने दादू और मॉम से मिलाने …और क्यों?” अनी हँसते हुए बोला
“ऐसे अचानक! नहीं अनी …मैं अभी इसके लिये तैयार नहीं हूँ” आकांक्षा टेंशन में आ गयी थी।
“प्रॉब्लम क्या है इसमें। अभी मिला रहा हूँ …शादी नहीं कर रहा हूँ”
“पहले बाइक रोको अनी! प्लीज!” आकांक्षा ने सख्त लहजे में कहा तो अनी ने फौरन बाइक रोक दी।
“क्या हुआ?”
“मैंने कहा ना मैं इसके लिये तैयार नहीं हूँ अभी”
“तैयार करने की ही तो कोशिश कर रहा हूँ ” अनी मुस्कुराया!
“क्या मतलब “
“मतलब ये आकांक्षा कि जब तुम मेरा घर देखोगी मेरी मॉम से मिलोगी मेरे दादू से मिलोगी तभी तो तुम्हें पता लगेगा कि अनी तो तुम्हें पसंद है ही लेकिन अगर उसका घर भी अच्छा है, फैमिली भी अच्छी है…तो शादी में देरी नहीं करनी चाहिये” अनी खुशी से चहक रहा था
“शादी?” आकांक्षा ने हैरानी से दोहराया
“ओह्ह! अच्छा आकांक्षा मुझे एक बात तो बताओ क्या एक फ्रेंड अपने दूसरे फ्रेंड को अपने घर नहीं ले जा सकता?”
“हम्म क्यों नहीं”
“तो फिर क्या प्रॉब्लम है?
“लेकिन…”
“ओह्ह क’मोन आकांक्षा! बैठो भी” आकांक्षा को किसी सोच में डूबा देख, अनी ने आकांक्षा का हाथ पकड़ कर बैठा लिया।
***
एक बड़े और खुबसूरत बंगले के सामने अनी ने अपनी बाइक रोकी और भागते हुए मेन दरवाजे पर खड़े गार्ड से दरवाजा खोलने का इशारा कर दिया।
“आओ आकांक्षा” वो आकांक्षा का हाथ पकड़े उसे अंदर ले आया, खुबसूरत पार्क में एक बुजुर्ग अपनी व्हील चेयर पर बैठे, अखबार पर अपनी आँखे जमाए थे।
“दादू!” अनी उनकी ओर जाता हुआ खुशी से चीखा।
“अनी!मेरा बच्चा” उसी उत्साह से उन्होनें भी प्रतिक्रिया दी। और अखबार परे खिसका दिया।
“दादू! ये देखिए आपसे मिलाने किसे लाया हूँ” अनी ने आकांक्षा की ओर इशारा किया। और बुजुर्ग ने आकांक्षा की ओर देखा।
“ये आकांक्षा है दादू! मेरी फ्रेंड!” अनी उत्साह से बोला।
लेकिन उन बुजुर्ग ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, अपना चश्मा आँखों से हटा कर वो आँखें फैलाये आश्चर्य से आकांक्षा को देखने लगे।