"चाय पीकर जाना गिरि" वो मुड़े ही थे, कि उर्मिला की आवाज ने जैसे उनके कदमों पर ब्रेक लगा दिये। गिरिराज के पैर तो पैर साँस भी मानो रुक सी गयी। उर्मिला ने चाय के लिये बोला है। मुझसे कहीं सुनने में भूल तो नहीं हो गयी।
31
डॉक्टर ने उर्मिला को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया था। और वो अपना सामान पैक कर रही थीं। रूम के बाहर खड़े गिरिराज उन्हें देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वो धीमी आवाज में बोले
“वो! आकाश को अचानक जाना पड़ गया… तो”
“हाँ! आ गया था उसका फोन। मैने कहा कि मैं ठीक हूँ मेरे लिये परेशान ना हो और हूँ भी तो ठीक!” बिना गिरिराज की ओर देखे उन्होने जवाब दिया, और अपना सामान बैग में रखती रहीं।
“अगर इजाजत दो, तो क्या मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूँ?” गिरिराज ने संकोच करते हुए पूँछा।
उर्मिला ने उन्हें एक नजर देखा और हामीं में सिर हिला दिया।
उर्मिला के इजाजत देते ही उन्होनें आगे बढ़कर बैग उठाया और फुर्ती से कार की पिछ्ली सीट पर रखकर आगे की सीट का दरवाजा खोल दिया। उर्मिला आकर कार में बैठ गयीं।
“कुछ खाओगी? भूख लगी होगी ना?” गिरिराज स्टीयरिंग संभालते ही बोले, के रोम-रोम से खुशी झलक रही थी।
“हाँ! लेकिन, घर जाकर ही कुछ हल्का-फुल्का खाकर थोड़ा आराम करूँगी”
“अच्छा! ठीक है” गिरिराज ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। और कुछ मिनट बाद बोले, “ये गाड़ी लिये हुए कुछ महिंने ही हुए हैं, लेकिन इसकी पूजा आज फलीफूत हो पाई है” गिरिराज, उर्मिला की ओर तिरछी नज़र से देखते हुए बोले।
“अच्छी गाड़ी है” वो मुस्कराई, गिरिराज के कहने का आशय समझ गयीं थीं।
“उर्मिला?”
“हम्म”
“बुरा ना मानो! तो एक बात पूँछू “
“हम्म”
“जो हुआ बेशक मेरी नासमझी के कारण हुआ। लेकिन फिर भी ये अपराधबोध मुझे जीने नहीं देता.. कोई सजा देकर मुक्त कर दो मुझे, तो दिल को तसल्ली मिल जाये”
“कोई सजा नहीं देनी अब गिरि! जो हुआ सो हुआ, जो बीत गया है उसे कोई नहीं बदल सकता, फिर मुझे लगता है तुम्हें सजा मिल भी चुकी है!”
“तो क्या ये मान सकता हूँ कि तुम्हारी नाराजगी दूर हुई?”
उर्मिला ने इसके उत्तर में कुछ नहीं कहा, तो गिरिराज से भी कुछ बोलते ना बना। दोनों के बीच खामोशी छायी रही। जब तक उर्मिला का घर ना आ गया।
गिरिराज ने जल्दी से निकल कर उर्मिला की तरफ का दरवाजा खोल दिया।
“बैग?” वो उतरते ही धीरे से बोलीं
“हम्म!अच्छा!” गिरिराज ने पिछ्ली सीट पर रखा बैग उठाया और धीरे से घर के मेन दरवाजे पर रख दिया।
“चाय पीकर जाना गिरि” वो मुड़े ही थे, कि उर्मिला की आवाज ने जैसे उनके कदमों पर ब्रेक लगा दिये। गिरिराज के पैर तो पैर साँस भी मानो रुक सी गयी। उर्मिला ने चाय के लिये बोला है। मुझसे कहीं सुनने में भूल तो नहीं हो गयी।
“उम्म, कुछ कहा क्या?” दुबारा कन्फ़र्म कर लेना सही लगा उन्हें।
“हाँ! मैने कहा चाय पीकर जाना, ज्यादा देर नहीं लगेगी!अभी बनाती हूँ” उर्मिला मुस्कुराती हुई किचिन से बोली।
“अच्छा!” आँगन में पड़ी कुर्सी पर गिरिराज धीरे से बैठ गये।मन में एक अजीब सी खुशी की लहर दौड़ गयी। ये हो क्या रहा है छोटे-छोटे अंकुर से क्यों फूट रहे हैं शरीर के रोम-रोम से। गिरिराज ने अपने ही हाथ आपस में कस कर पकड़ लिये।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि चाय बनने में घंटे दो घंटे निकल जाये। इन पलों को जीने का सपना मैने सालों साल देखा है। ओह्ह ये कितना खुशनुमा है। वो कनखियों से किचिन में काम करती उर्मिला को बार-बार देखते हुए सोच रहे थे। और जैसे ही लगता कि उर्मिला मुड़ने वालीं हैं वो अपनी नजर जमीन पर गढ़ा देते।
जब तक उर्मिला किचिन में रहीं वो उन्हें ऐसे ही देखते रहे!
“ये लो गिरि, पहले ये हलवा खाओ” उर्मिला ने एक छोटी प्लेट उनकी ओर बढा दी।
“हलवा?”
“हाँ! इस हलवे ने सालों इन्तजार किया है तुम्हारा गिरि”
“मैं समझा नहीं?”
“उस बुरे हादसे के दिन जब तुमने नागेन्द्र को मेरे घर में देखा था। उस दिन मैं तुम्हारे लिये हलवा ही बना रही थी।” उर्मिला ने अपनी आँखों के किनारे पोंछ लिये।
“क्या?” गिरिराज आश्चर्य से उर्मिला को देख रहे थे।
“हाँ…ठीक उस दिन से इस हलवे को इन्तजार था तुम्हारा, और सिर्फ इसे ही नहीं! मैने भी उस दिन से हलवा नहीं खाया गिरि”
गिरिराज की आँखे आँसुओं से भर गयी और आँखों से आँसूं निकलने लगे जो जल्दी ही रोने में तब्दील हो गए।
“अरे!गिरि!” उर्मिला भी चकित थीं। गिरिराज ऐसे भी रो सकते हैं, उन्होनें आगे बढ़कर धीरे से गिरिराज की पीठ पर हाथ रख दिया। लेकिन गिरिराज का रोना कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ गया। ये सालों का गुबार था जो आज शायद पहली बार ऐसे बाहर निकल रहा था। उर्मिला ने इस समय कुछ कहना भी सही नहीं समझा।
अब, दोनों एकदूसरे के सामने खड़े थे और एकदूसरे की आँखों से बहते आँसुओं को देख रहे थे।
कुछ पल बाद गिरिराज ने आगे बढ़कर उर्मिला के थोड़े नजदीक खड़े हो गये।
“गलती की होती तो माफी मांगते हुए मुझे सोचना ना पड़ता उर्मिला, लेकिन गुनाह की तो माफी भी नहीं होती। मैं! हम दोनों का ही दोषी हूँ”
“बस करो गिरि! कितनी माफी मांगोगे”
“तो क्या करुँ!सजा देकर मुक्त भी तो नहीं करती तुम मुझे उर्मिला”
दोनों ने ध्यान नहीं दिया था। कि इस कहने और सुनने के क्रम में वो एक-दूसरे के बेहद करीब खड़े हो गए थे।
“सजा नहीं! एक कभी ना टूटने वाला वादा कर सको तो करो गिरि”
“तुम बोलो तो उर्मिला। बोलकर तो देखो”
“चाहें जो जाये लेकिन अब मुझे छोड़कर कभी मत जाना, गिरि”
ये सुनकर गिरिराज ने उर्मिला का हाथ पकड़ा और उन्हें अपनी ओर हल्का सा खींचते हुए सीने से लगा लिया।
“कभी नहीं! हरगिज नहीं!और अब तो एक पल नहीं! दूर ना जाने का वादा तो उसी पल कर लिया था जब आकाश तुमसे मिलाने मुझे यहां लाया था!”
“सच?”
“हां बिल्कुल! ये तो तुम्हें कहने की जरुरत ही नहीं है। तुमसे दूर होकर तो मैं एक मिनट भी नहीं जी सकता उर्मिला! नहीं जी सकता! बस माफ कर दो मुझे!माफ कर दो! अब कभी एक पल को भी अकेला नहीं छोडूंगा”
अब दोनों ही रोते हुए भी एक स्वर्ग जैसा सुख महसूस कर रहे थे। ना जाने कितनी ही देर दोनों ऐसे ही खड़े रहे, एक दूसरे में सिमटे हुए।
सालों की शिकायते आँसुओं के रूप में बहती जा रही थी। अब दोनो को जैसे एक भी शब्द बोलने की जरुरत नहीं रह गयी थी ।
***
“जी! जी! ठीक है अंकल” आकाश ने फोन रखा और बाहर निकल कर आकांक्षा का दरवाजा नॉक कर दिया।
“क्या है?” आकांक्षा ने थोड़ा सा दरवाजा खोलकर बड़ी बेरुखी से जवाब दिया।
“सूरज अंकल का फोन आया था। हमें साइट देखने चलना है। तैयार हो जाओ! दस बजे अनुराग गाड़ी लेकर आ जायेगा।”
“ओके!” आकांक्षा ने जोर से दरवाजा बंद कर दिया।
हद है बदतमीज़ी की, किसी के मुँह पर गेट बंद करते हैं क्या?
बेसिक सेन्स नहीं इस लड्की में। बुदबुदाता हुआ आकाश बापस अपने रुम मे आ गया और तैयार होने लगा।
“मुझे समझ नहीं आता पापा का, सारी दुनिया में ये आकाश ही मिला था क्या मेरे साथ भेजने के लिये”
दोनो तैयार होकर बाहर आये तो देखा कि अनुराग गाड़ी लेकर पहुच चुका था। एक फॉर्मल परिचय के बाद दोनो गाड़ी मे बैठ गये।
“एक बात बताओ आकांक्षा” आकाश से खामोशी तोड़ते हुए धीरे से कहा।
“हम्म” वो खिड़की से दूसरी ओर देख रही थी।
“मैं कोई अन्जान सख्श तो नहीं हूँ तुम्हारे लिये, तो फिर ये अजीव विहेव क्यों?”
“क्या अजीब व्यवहार किया है मैने?”वो लापरवाही से बोली
“अच्छा क्या तुम्हें नहीं पता? मैं तुम्हें कॉलेज छोडने भी गया हूं, तुम्हारे शोरूम में मैनें जॉब तक की है। क्या तुम्हारा व्यवहार ऐसा ही था? क्या किया है मैनें जो तुम अब ऐसा वर्ताव कर रही हो, बताओ?”
आकांक्षा ने एक नजर आकाश पर डाली उससे कुछ बोलते ना बना।आकाश सही ही तो कह रहा था। मेरा व्यवहार इतना बचकाना क्यों हो गया आखिर? उफ्फ क्या होता जा रहा है मुझे? खुद से ही सवाल पूंछती आकांक्षा ने जब आकाश की ओर देखा तो वो उसी पर नजर टिकाये था।शायद जवाब की आशा में।
“सॉरी!आकाश। पता नहीं ये कैसे हो गया.. वो मेरा दिमाग उलझा हुआ है आजकल”
“कोई बात नहीं! वैसे तुम अपने मन की बात मुझसे शेयर कर सकती हो”
“हम्म!करूँगी लेकिन अभी नहीं”
“जब तुम्हारा मन करे, तब कर लेना”
“हम पहुँच गये” अनुराग ने गाड़ी रोकते हुए कहा।
***
दोनो अब अनुराग के पीछे -पीछे चल रहे हैं। और कुछ कदम की दूरी के बाद अनुराग ने एक बड़ी सी फैक्टरी के अंदर प्रवेश किया जहां कई मशीने होने के बाद भी शोर कम था।
दोनों आँखे खोले बस्स कभी मशीने देखते तो कभी वहाँ काम करते वर्कर, अनुराग मशीनों और फैक्टरी से जुड़ी जानकारी दे रहा था।
“उफ्फ कुछ समझ में नहीं आ रहा है। ” आकांक्षा ने खीजते हुए कहा। और थोड़ा आगे बढ़ गई। कुछ ना समझ पाने की स्थिति में आकाश ने मशीनों और फैक्टरी के कुछ फोटो क्लिक किये।
अनुराग को शायद ये पता नहीं था कि दोनों आगन्तुको को इस विषय का कोई अनुभव नहीं, इसलिये पूरी तन्य्मयता के साथ वो सभी जानकारी बेहद प्रभावशाली ढंग से बता रहा था। और आकाश से दो कदम आगे-आगे चल रहा था।
“क्या हुआ?” कुछ देर बाद अनुराग ने पूँछा
” कुछ भी नहीं” आकाश अपने कंधे सिकोड़ते हुए बोला।
“आप कुछ पूँछ नहीं रहे, इसलिये कहा?
“वो आ… मैं पहले सिर्फ सुनना चाहता हूँ “
“ओह्ह्ह अच्छा! बढ़िया! मेरा तरीका भी थोड़ा ठीक नहीं रहा। पहले कुछ चाय वगैरा लेना था, आइये!आपको मेरा केविन दिखाता हूँ ” अनुराग बोलते हुए थोड़ा आगे बढ़ गया।
चाय नाश्ता के साथ सामान्य बातचीत के दौरान बेबजह ही अनुराग की नजर आकांक्षा पर कुछ सेकेंड के लिये ठहरने लगी थी। और ये बात आकाश को नागवार लग रही थी।
“जल्दी करो आकांक्षा, हमें बाकी चीजों पर भी एक नजर डाल लेनी चाहिये।” जल्दी से अपनी चाय खतम कर आकाश उठते हुए बोला।
“ठीक है” बिना कोई सवाल किये आकांक्षा भी जब उठ गयी तो इस छोटी सी बात ने आकाश के मन के तार झंकृत कर दिये।
“आप ने शायद इस मशीन को ध्यान से नहीं देखा, ये सबसे बेहतर है! मैं आपको इसकी खूबिया बताता हूँ …सुनिये..” अनुराग फिर से अपने काम पर लग गया था! जिसे सुनने में आकांक्षा की कोई रुचि नहीं थी। और इतनी ही देर में आकाश भी उकता गया था। लेकिन सीधे मना करने का कोई मतलब ना था सो ध्यान से सुनने का दिखावा करने लगा।
“अरे!आकांक्षा कहाँ जा रही हो?”आकांक्षा को गेट से बाहर निकलते देख आकाश ने तेज आवाज में कहा
“फिक्र मत कीजिये! उन्हें देखने दीजिये! ये जगह एकदम सेफ है” अनुराग ने मुस्कुरा कर कहा और उसे मुस्कुराते हुए देखना आकाश को अच्छा नहीं लगा।
“कैसे फिक्र ना करुँ? क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है, अनुराग?”
“सॉरी. अ ..मतलब?” इस अप्रत्याशित सवाल की कोई आशा ना थी अनुराग को
“कुछ अनूठा तो नहीं पूछा मैनें”
“आहाँ लेकिन”
“खैर! मैं तुम्हें बता दूं, मैं उसे प्यार करता हूँ और मुझे ऐसी हवा भी मंजूर नहीं जिससे उसके चेहरे पर शिकन आये, फिर इन्सान तो बहुत बड़ी बात हो गयी।”अनुराग ने चुभती नजर से अनुराग को देखते हुए कहा
“सॉरी?”अनुराग हैरान था
आकाश ने उसे बिल्कुल नजरअन्दाज किया और तेजी से आकांक्षा की दिशा में दौड़ा।
वो दरवाजे के बाहर निकल गयी थी। और प्राकृतिक नजारों को देख रही थी।
“यहां क्या कर रही हो?”
“क्यों? यहां आने पर बैन है क्या?” उसने उखड़ी सी आवाज मे जवाब दिया।
“मैने ऐसा तो नहीं कहा”
“तो कैसा कहा, और बाई द वे तुमने ऐसा क्या झूठ बोला है पापा से जो उन्होने तुम्हें भेजा है इस प्रोजेक्ट के लिये, तुम्हें कोई नॉलेज नहीं है ना इस काम की” गुस्से में उसकी आवाज तेज हो गयी थी।
“आकांक्षा ..संभाल कर” बस इतना ही आकाश के मुँह से निकल पाया कि वो आकांक्षा की तेज आवाज की वज़ह से चुप हो गया।
“ओह्ह चिढ़ आती है मुझे इस जबरदस्ती के ख्याल रखने से।मैं अपना ख्याल खुद रख सकती हूँ” वो आकाश की ओर देखकर बात कर रही थी। जबकि पीछे की ओर ही कदम बढा रही थी।
“प्लीज! खड़ी रह कर बात करो आकांक्षा”
“मेरी फिक्र करने का नाटक बन्द करो, तुम होते कौन हो मेरी फिक्र करने वाले” हील्स वाले सेंडिल होने से बेलेंस बिगड़ गया, उधर से तेज स्पीड में आ रहे ट्रक का शोर और तेज हवा की वजह से खुद पर काबू नहीं रख पाई और खुद पर से बेलेंस खो दिया। “आह्ह्ह”
और गिरने से पहले ही आकाश ने उसे थाम लिया था।
ये सब जैसे पलक झपकते हो गया।
“आह्ह” वो आन्खे बंद किये हुए घबराकर बोली
“तुम एकदम ठीक हो!फिक्र मत करो” आकाश धीरे से बोला
वो उसकी बन्द आखों को प्यार से देख रहा था।