सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 9

"न …नहीं…कौन हो तुम…देखो वहीं रहो…" आकाश डर से बुदबुदाकर बोला
लेकिन वो सफेद छाया बहुत धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ती आ रही थी…बिल्कुल पास आकर उसने अपनी एक खुली सफेद आँख से जब आकाश की ओर देखा …तो आकाश के शरीर और दिमाग की हालत उसके काबू से बाहर हो गयी…और आकाश डर से बेहोश होकर नीचे गिर पड़ा

9.

आकाश राघव के कमरे की ओर दौड़ा लेकिन जैसे ही उसकी नजर खिड़की पर गयी, वो वहीं ठिठक गया…राघव एक काँच के फ्रेम को कसकर पकड़े हुए था…और किसी से खुद को छुटाने की कोशिश कर रहा था…
“मैंने कहा छोड़ दो मुझे…रेशमा…यही वो वजह हैं जिनकी वजह से हम मिल नहीं पाए…मुझे नफरत हैं इनसे….ये तो क्या इनकी तस्वीर की भी कोई जगह नहीं मेरे कमरे में…”
आकाश कमरे के मेन दरवाजे तक गया और धीरे से दरवाजा खोल दिया…
“कुछ नहीं सुनना मुझे…सुना तुमने…कुछ नहीं…”कहते हुए राघव ने वो तस्वीर नीचे फेंक दी…और उसी समय राघव की नजर दरवाजे पर खड़े आकाश पर चली गयी…जो कमरे को अजूबे की तरह देख रहा था। फ्रेम गिरने से काँच टूटकर जमीन पर बिखर गया था…
“….क्या हुआ.. चाचा जी?”..आकाश ने आश्चर्य से पूँछा
“इतनी रात गए तुम यहाँ कर रहे हो…?” राघव ने तीखे अंदाज में सवाल किया!
“आपकी तेज आवाज सुनकर मैं नीचे आया…आपका किसी से झगड़ा हो रहा है क्या ? बोलते हुए उसकी नजर राघव के कमरे में किसी दूसरे इंसान को खोजने लगी,”लेकिन मुझे यहाँ कोई और नहीं दिख रहा तो फिर आप किससे बात कर रहे थे?”
“जाओ…जाकर सो जाओ” राघव ने खीजते हुए जवाब दिया और बेड पर लेट गया!

“लेकिन…चाचा जी मैं ..”
“मुझे सवालों से नफरत है आकाश…कहा ना जाओ …और जाकर सो जाओ”…राघव चीख कर बोला….तो सकपकाया सा आकाश तेज़ी से कमरे से बाहर निकला…और फर्स्ट फ्लोर की ओर जाने वाली सीढियां चढ़ गया।
और जाकर अपने बेड पर लेट गया!

अभी ठीक से लेट भी नहीं पाया होगा कि उसे एक आवाज सुनाई दी।
‘टिप्प…’ आवाज सुनते ही उसे रोहित की बात याद आ गयी टूटा-फूटा घर है …कुछ ईंट-वीण्ट खिसक गई होगी..कि तभी

‘टिप्प..टिप्प…टिप्प टिप्प’ की आवाज की एक रिदम सी बन गयी और आकाश चौंक कर उठ बैठा…तेजी से नीचे की ओर दौड़ कर गया…

राघव के कमरे से खर्राटों की आवाज आ रही थी…आकाश ने दवे पाँव जाकर बरामदे में बने कमरे पर अपना कान लगा दिया।

‘टिप्प…टिप्प..टिप्प’
नहीं..नहीं ये ईंट या मिट्टी की आवाज नहीं…क्या करूँ देखूँ…हम्म देखना तो चाहिए बिना पता लगाएं कि ये आवाज आ कहाँ से रही है मुझे चैन नहीं मिलेगा…सोचते सोचते आकाश की आँखे अंधेरे में ही कुछ ऐसा खोज रहीं थी जिससे कमरे का ताला तोड़ा जा सके।
सीढ़ियों पर बनी दुछत्ती में से उसने एक ईंट निकाली और जंग खा चुके ताले पर कसकर मार दी…एक ही चोट से ताला खुल गया।

काली अंधेरी रात में उस बन्द पड़े कमरे में रोशनी का नामोनिशान तक ना था..चाहें कितनी भी आँखे खोल लो…कुछ नहीं दिखने वाला…’कुछ रोशनी का इंतज़ाम करना पड़ेगा…’खुद से ये बोलते हुए वो पलटा ही था कि …बिल्कुल सफेद एक गेंद ठीक उसके पैर के पास आकर गिरी

“हंह…” करता आकाश थोड़ा पीछे हट गया…कुछ समझ या सोच पाता इससे पहले ही वो गेंद हवा में उठी…जमीन से टकराई और कमरे की दीवार पर जा लगी …एक पल वहाँ रुकी और फिर उस छोर से कमरे के दूसरे छोर की ओर लुढ़क गयी…आकाश उस अँधेरे कमरे में भी उस गेंद पर नजर जमाये जिस दिशा में गेंद जाती उसी दिशा में गर्दन मोड़ रहा था..गेंद ने जमीन पर एक रिदम सी बना दी थी।
“क कौन है यहाँ….कौन है यहाँ…” आकाश को जैसे अचानक याद हो आया कि ये कमरा बन्द पड़ा था ..प्रतिउत्तर में जवाब की जगह ये हुआ,

गेंद अचानक एक जगह रुक गयी सो भी हवा में….”म मैंने पूँछा कौन है यहाँ…”आकाश ने डरते हुए फिर दोहराया…और इस बार उसे लगा जैसे कोई उसके पीछे से कमरे के एक छोर से दूसरे छोर की ओर भागा..आकाश तेजी से पलटा…लेकिन उसे कुछ दिखाई नहीं दिया…और अब तो गेंद भी नहीं दिख रही थी..’क्या सपना देख रहा हूँ मैं…’

उसने खुद से ही पूँछा…नहीं तुम नीचे दौड़कर आये थे…ये सपना कैसे हो सकता है…चाहो तो चिकोटी काट कर देख लो…उसने खुद को ही सलाह दी और चिकोटी काटने के लिए जैसे ही हाथ चेहरे की ओर बढ़ाया …अरे ये क्या…?उसके ठीक सामने कोई खड़ा था…बिल्कुल सफेद जैसे संगमरमर की मूर्ति हो ….शरीर तो था लेकिन ऐसा अजीब …ना कोई भाव…ना कोई सजीवता…और तो और आँखो की पुतलियां भी सफेद…बस्स बाल….हाँ बाल काले थे…गंदी लटों में परिवर्तित हो चुके चिमटे से बाल उसके आधे से ज्यादा चेहरे को ढांके हुए थे…मशीनी गति से वो अजीब आकृति बढ़ती हुई आकाश की ओर आने लगी
“न …नहीं…कौन हो तुम…देखो वहीं रहो…” आकाश डर से बुदबुदाकर बोला
लेकिन वो सफेद छाया बहुत धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ती आ रही थी…बिल्कुल पास आकर उसने अपनी एक खुली सफेद आँख से जब आकाश की ओर देखा …तो आकाश के शरीर और दिमाग की हालत उसके काबू से बाहर हो गयी…और आकाश डर से बेहोश होकर नीचे गिर पड़ा….


“राई क्या हम साथ में कॉफी पी सकते हैं” नीरज ने बाइक की स्पीड धीमी करते हुए पूँछा
“कॉफी..क्या अभी…?”.राई ने पूँछा
“हाँ पूँछा तो अभी ही के लिए है…लेकिन तुम्हे कोई एतराज ना हो तो”
“ठीक है”…
“सच…?”नीरज खुशी से बोला
“हाँ बिलकुल” राई मुस्कुराते हुए बोली, तो नीरज ने अपनी बाइक एक कॉफी शॉप पर रोक दी और दो कॉफ़ी आर्डर देकर, वो दोनों एक कोने में बैठ गए
“बस्स कल कॉलेज और उसके बाद फिर चार दिनों का गैप है …” नीरज एक खिसियानी सी हंसी के साथ बोला और उदास हो गया
“तो क्या करने वाले हो इन छुट्टियों में…” राई ने पूँछा
“करना क्या है बस्स पड़ा रहूँगा घर के किसी कोने में.. और क्या” नीरज ने इस अन्दाज मे कहा तो राई खिलखिलाकर हंस पड़ी
“वैसे तुम क्या करोगी…? “
“मुझे तो घर में रहना अच्छा लगता है …घर में मम्मी हैं, मेरा भाई है, पापा और बुआ जी हैं…सब मुझे बहुत प्यार करते हैं…चार दिन मजे -मजे में निकल जाएंगे वैसे तुम्हारे घर में कौन कौन है?”


इतने में वेटर ने आकर दो कॉफी सामने रखी और चला गया। दोनों ने एक साथ कॉफी का कप उठा लिया
“जिस घर में माँ ना हो, वो घर कैसा हो सकता हैं…?” नीरज ने गंभीर आवाज में कहा तो, राई ने खुद के होंटो तक ले जाता कॉफी का मग”ओह्ह आई एम सॉरी…” कहते हुए बापस रख दिया!
“बचे हम तीन लोग, मेरे पिता को राजनीति से ही फुर्सत नहीं और मुझे और मेरी सिस्टर को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं..घर में ना पैसे का आभाव है ना समाज में रुतवे का आभाव है …लेकिन ये सब मेरे लिए कोई महत्व नहीं रखता है…”
“क्यों तुम्हें पैसे और रुतवे में कोई इंटरेस्ट नहीं ?” राई ने उत्सुकता से पूँछा!
“मुझे एक सीधी सादी मजबूत रिश्ते से भरी जिंदगी पसन्द है.राई…पैसे की खोखली दीवार नहीं…इस खोखली दीवार के सहारे इंसान चाहे कितना भी खुश होने का दावा करे…दिखावा करे..लेकिन अंदर से वो बहुत अकेला और कमजोर होता है…और अंदर के इस अकेलेपन से मुझे बहुत डर लगता है…बहुत डर…”
“तो तुम्हें रुतवे और पैसे से डर लगता है इसीलिए सामान्य जिंदगी जीनी है यही कहना चाहते हो ना?…
“नहीं…”
“तो फिर…?.”
“मुझे ऐसी जिंदगी चाहिए जहां लोग मेरा सम्मान करें ना कि मेरे रुतवे और पैसे का..जिंदगी का सबसे बड़ा रिश्ता जिसके साथ भी हो मेरा…मैं खुद को अंदर से भरा महसूस करूँ…मेरा होना उसके लिए…और उसका होना मेरे लिए इतना मजबूत होना चाहिए कि उसके आगे हरेक चीज बहुत छोटी हो जाय जैसे ..” नीरज एक पल रुका और उसने राई की ओर देखा
“जैसे..?.” राई कहीं खोई सी बोली
“जैसे मुलाकात छोटी हो या बड़ी फर्क ना पड़े, कुछ दिन या महीनों भी ना मिलना हो पाए तो कोई डर ना आये मन में, ये साथ में घूमना फिरना, मूवी, शॉपिंग, तोहफे, क्या पहनना है कैसा दिखना है, ये सारी बातें छोटी पड़ जाए…यहाँ तक कि अगर ना भी मिल पाए तो प्रेम पर फर्क ना पड़े ये रस्म भी छोटी पड़ जाये”
“और बड़ा क्या हो?” राई ने नीरज की ओर देखते हुए पूँछा
“बड़ा हो एकदूसरे का हो जाना, और इतना हो जाना कि एक पर्सेंट भी किसी और के लिए जगह बाकी ही ना रहे…सारी घटनाएं इसके आगे छोटी लगें” नीरज राई की आँखो में झाँकते हुए बोला, राई और नीरज कुछ पल ऐसे ही एकदूसरे की ओर देखते रहे। अचानक राई को जैसे होश आया हो…वो फुर्ती से उठी और कॉफ़ी शॉप के दरवाजे की ओर जाने के लिए मुड़ी, और उसके मुड़ते ही नीरज ने फुर्ती से उसका हाथ पकड़ लिया और बोला
” मुझसे भाग रही हो ?”
“न..नहीं तो…”
“तो बोलो…इस पर तुम्हारा क्या कहना है ?”

“मेरा ? मैं क्या बोलूँ बताओ?”

“ये बताओ कि, ऐसे सबसे बड़े रिश्ते की साझीदार बनोगी मेरी?” नीरज के ये बोलते ही राई पलटी और बोली

“तुम्हें नहीं लगता ये बहुत जल्दी है…अभी तो हम मिले ही है …अभी तो…अभी तो”
“तो क्या देरी करना रिश्ते में मजबूती की गारंटी है?…
“नहीं …लेकिन…”
“कभी तो महज देख भर लेना ही काफी होता है ये तय करने के लिए…कि ये वही खास इंसान है जिसकी दिल को तलाश थी..मुझे तो पहले ही एहसास हो गया था, कि तुम वही हो जिसकी मुझे…ख़ैर! तुम्हें चाहिये तो वक़्त ले लो.. जितना भी वक़्त चाहिये ले लो…लेकिन मैं तो तुम्हें अपना मान चुका हूँ.”

“नहीँ नीरज ….मैं नहीं हूँ इतनी मजबूत जितने तुम हो…ना हो तुम्हें रस्मों की परवाह…मुझे तो है…साथ जीने की इच्छा रखना कोई पाप तो नहीं है”
“इसीलिए तो कहा …कि समझ इतनी मजबूत होनी चाहिए…कि शब्दों का सही मतलब समझ आए …जुड़ोगी तभी तो जान पाओगी…मैंने तो वो अंतिम हद्द बताई थी.. कि ना भी मिल पाएं तब भी प्यार कम ना हों “
“लेकिन नीरज….”
“तुम्हें क्या लगता है…तिनके भर की भी कमी छोड़ूंगा तुम्हें अपना बनाने में? भगवान से भी लड़ जाऊँगा राई….”
“नीरज….”
“एक वादा तो अभी करता हूँ..जीवन की अंतिम साँस तक तुम्हारा रहूँगा…और सिर्फ तुम्हारा …चाहें जो हो जाये” वो बिल्कुल राई के पास आकर उसकी आँखो में झाँकते हुए बोला तो राई उसके पास बढ़ आई और नीरज ने आगे बढ़कर उसके दोनों हाथों को पकड़ लिया,

राई ने अपना सिर नीरज के सीने पर रख दिया।


“आकाश….आकाश…आकाश….आंखे खोलो….उठो”
“हं ….हाँ ….आह …कौन हो तुम?” सिर पर हाथ रखते हुए आकाश ने पूँछा
“ओहो… होश में आओ आकाश…मैं राघव हूँ” राघव खीज कर बोला
“ओह्ह सॉरी चाचा जी” आकाश संयत होकर बोला
“तुमसे मना किया था ना मैंने यहाँ आने के लिए…?”
“वो …वो कहाँ गया …वो…” आकाश कमरे में नजर दौड़ाता हुआ बोला
“बन्द करोगे अपनी बकवास..आखिर तुमने ताला खोला भी कैसे इस कमरे का.?” राघव चीख़ कर बोला
“यकीन कीजिये मेरा चाचा जी…कल रात को यहाँ मैंने….”
“बस्स बहुत हुआ, अपना बैग पैक करो और जाओ यहां से…” राघव ने उसे बीच में ही टोकते हुए ऑर्डर सुनाया
“चाचा जी…?” आकाश बेहत संयत अंदाज में बोला,राघव से उसे ये सुनने की उम्मीद नहीं थी।
“मुझे वो लोग पसन्द नहीं जो मेरी बात नहीं मानते..खासतौर पर तब जब …जब वो मेरी दुखती रग पर हाथ रखे…
“चाचा जी…मैं आपको दुखी नहीं करना चाहता था…लेकिन …जब कल मैंने..वो आवाज सुनी…”
“कौन सी आवाज…?” राघव ने खीजते हुए पूँछा
“वो…वो…”
“ओफ्फो..बोलो भी क्या सुना.” राघव चिढ़ता जा रहा था!
लेकिन आकाश ने कोई जवाब देते नहीं बन रहा था..वो बस्स राघव की ओर देखने लगा… आखिरकार राघव चिढ़कर किचिन की ओर मुड़ गया, और उसके मुड़ते ही आकाश को लगा कि उसकी निकासी तय है …उसे आकांक्षा खुद से दूर जाती दिखी। इसी बौखलाहट में आकाश के मुँह से अचानक निकल गया
“चाचा जी… रेशमा….रेशमा कौन हैं?”
ये सुनकर राघव के कदम जैसे जड़ हो गए…वो जहाँ खड़ा था वहीं रुक गया..फिर कुछ पल रुकने के बाद वो आकाश की ओर मुड़ा और बेहद गंभीर आवाज में पूँछा “क्या सुना तुमने?”
“आ…वो… एक नहीं …बल्कि दो बार ऐसा हुआ है चाचा जी…जब मैंने आपके मुंह से रेशमा नाम सुना…लेकिन”
“लेकिन क्या…मैं पूछता हूँ तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में झाँकने की भी?” आकाश को बीच में ही टोकते हुए राघव गुस्से में चीख पड़ा…आकाश ने सहम कर उसकी ओर देखा, राघव की एक भौंह ऊपर की ओर उठ गई थी, आंखें लाल हो गयी थीं…और पूरा शरीर गुस्से में कांप रहा था।
आकाश उनका ये रूप देखकर डर गया!

सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 10

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