पूरा शरीर जैसे किसी भीगे कपडे सा हवा में झूल रहा हो...संवेदनहीन जड़...निर्जीव से उसके हाथ कमजोर शरीर से जैसे चिपके हुए हों ...और वो एक हाथ में बहुत छोटी कोई गोलनुमाँ सी चीज़ पकड़े हुए था....डरते-डरते आकाश ने एक नजर उसके चेहरे की ओर देखा, शून्य चेतना में ताकती हुई वो आँखें जो आँखें ना होकर दो काले गढ्ढ़े थे वो जो उसे खुद की ओर घूरते दिखे.
12.
आकांक्षा आज भी अपने शोरुम के बाहर खड़ी रोड की ओर देख रही थी,
“अरे आकाश” आकाश पर नजर पड़ते ही उसने पूँछा!
“हैलो…” आकाश के चेहरे पर भी मुस्कान खिल गयी
“तुम यहाँ कैसे?”
“बस्स ऐसे ही..यहाँ से गुजर रहा था .. तुम्हें देखा तो इधर आ गया.”
” ओह्ह…अच्छा”
“क्या हुआ कोई प्रॉब्लम है क्या?” आकांक्षा का गंभीर दिख रही थी तो आकाश ने पूँछ लिया
“नहीं…. प्रॉब्लम तो कुछ नहीं बस्स दीदी को एक इस शोरुम के लिये अच्छा मैनेजर चाहिए, कोई है क्या तुम्हारी नजर में”
आकांक्षा के ये बोलते ही आकाश के मन में खुशी की लहर दौड़ गयी और वो खुद से ही मन ही मन बाते करने लगा, क्या करुँ मैं ही हां कर दूँ?
क्या यार इतनी छोटी जॉब करेगा?
सुना नहीं लोग क्या कहते हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, और फिर ये भी सोच बिना किसी बहाने के तू आकांक्षा को देख सकता है, उससे बात कर सकता है…और जब बात करने का मौका मिलेगा तो तू उसे जानेगा वो तेरे बारे में जान पायेगी…और फिर क्या पता दोस्ती भी हो जाये!
“कहाँ खो गये ” आकांक्षा ने उसे ख्यालो में खोये देखा तो पूंछा
“नहीं कहीं भी तो नहीं, आ… कैसा मैनेजर चाहिये आपको?”
“कैसा क्या… एक्सपीरियेंस हो उसे, तो अच्छी बात है ईमानदार हो बस्स और क्या…”आकांक्षा एक कन्धा उचकाते हुए बोली
“अगर कोई बिना एक्सपीरियेंस वाला हो लेकिन ईमानदार हो तो?”
“हां.. हाँ …चलेगा, कोई है क्या?”
“हाँ “
“कौन है”
“यही सामने खड़ा है” बोलते हुए आकाश ने अपना सिर थोड़ा नीचे झुका दिया
“तुम?” आकांक्षा ने हैरानी से पूँछा तो आकाश ने सहमति में सिर हिला दिया
“तुम सच में मैनेजर की जॉब करोगे?” आकांक्षा हँसते हुए बोली
“हम्म”
“ओके ग्रेट, आओ फिर दीदी से मिलवा देती हूँ…”कहते हुए आकांक्षा शोरूम के अन्दर चली गयी और उसके पीछे-पीछे आकाश।
“दीदी, इनसे मिलो ये है आकाश आपके शोरूम के नये मैनेजर” आकांक्षा ने अपनी बड़ी बहन से आकाश को मिलाते हुए कहा
“कौन हैं ये? तुम जानती हो इन्हें?”
“हाँ दीदी”
“कैसे?”
“मैने आपको बताया था ना वो गाउन …इन्हीं ने खरीदा था, और मुझे उस दिन कॉलेज इन्हीं ने छोड़ा था”
“ओह्ह अच्छा..इससे पहले कहाँ काम किया है आपने”
“जी वो वो मैं”आकाश कुछ बोलने की कोशिश कर ही रहा था कि
“ओह्हो दीदी, आकाश अच्छे से संभाल लेगा, मैं सब सिखा दूँगी इसमे है ही क्या बस्स सब कुछ कम्प्यूटर सिस्टम में रिकॉर्ड करना होता है (फिर आकाश की ओर देखकर) यहाँ बैठो आकाश (आकांक्षा ने आकाश को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया, आकाश कुर्सी पर जैसे ही बैठा, आकांक्षा उसे समझाने लगी) ये देखो आकाश ये है हमारा सिस्टम, जैसे ही इसमें लॉगिन करोगे, यहाँ ये प्रोडक्ट्स के कोड हैं जैसे ही प्रॉडक्ट का कोड स्कैन करोगे यहाँ क्लिक करते ही
(आकांक्षा समझाते हुए आकाश के थोड़ा पास तक खिसक आयी जिससे उसके बाल आकाश के चेहरे को छू गये और जैसे ही ये हुआ आकाश आँखे खोले खोले ही कहीं खो गया ..
सड़क पर तेज दौड़ती लम्बी सी कार जो ऊपर से खुली हुई थी…तेज स्पीड में सड़क पर दौड़ रही थी… बहुत सुन्दर हवा चल रही थी, वो कार चला रहा था, और आकांक्षा अपने खुले बालों को उंगलियों से संभालते हुए उसके पास बैठी थी और बहुत खुश थी। उसके बाल उड़- उड़कर आकाश के चेहरे को छू रहे थे। वाह कितने सुन्दर पल ..
“समझ आ रहा है ना…आकाश ?” आकांक्षा ने पूँछने के साथ ही आकाश की ओर देखा, जो आँखे बन्द किये मुस्कुराता दिखा
“आकाश…आकाश” इस बार थोडी तेज आवाज आकांक्षा ने कहा तो आकाश ने आँखे खोल दी
“क्या हुआ…कहाँ खोये हुए हो?”
“कहीं भी तो नहीं….” आकाश संभलते हुए बोला
“तुम आँखे बन्द किये बैठे थे” आकांक्षा चिढ़ कर बोली
“वो आ मैं समझ रहा था..” आकाश बात संभालते हुए बोला
“आँखे बन्द करके?”
“ज जी…ये मेरे समझने का तरीका है” आकाश कुर्सी पर आत्मविश्वास से बैठते हुए बोला
“अच्छा…?”
“ओके, अच्छा बताओ कितनी सैलरी लोगे?” आकांक्षा मुँह विचकाते हुए बोली
“जितनी ठीक समझो दे देना…मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं” आकाश मुस्कुराता हुआ बोला
“तो कल से जॉइन कर लो फिर”
“जी” बोलकर आकाश उठा और खुशी से झूमता हुआ बाहर निकल आया।
***
“चाचा जी….” राघव घर से निकल ही रहा था कि आकाश ने आवाज देते हुए उन्हें रोक दिया।
“हाँ आकाश …बोलो”
“वो चाचा जी, ये बताना था कि मैनें एक जॉब जॉइन कर ली है।
“क्या? कब? कहाँ?”राघव आश्चर्य मिली खुशी के साथ बोला
“यही पास ही मार्केट में …है तो छोटी सी है स्टोर मैनेजर की जॉब….लेकिन..
“नहीं नहीं बिल्कुल नहीं, ये बिल्कुल छोटी जॉब नहीं हैं”राघव खुशी से बोलते हुए आकाश के पास आये और उसे गले लगा लिया
“जानते हो? तुम्हारे पिता को तो तुमसे इतने भर की उम्मीद भी नहीं थी, जब भाई साहब सुनेंगे तो बहुत खुश हो जायेंगे…मैं तो कहता हूँ जल्दी से उन्हें ये खबर सुनाओ” खुशी से बोलते हुए राघव ने आकाश को कहीं खोया हुआ देखा तो उसका कन्धा थपथपाते हुए आगे कहा” क्या सोच रहे हो?
“कुछ नहीं….बस्स यही कि क्या इतनाभर होना काफी है? “
“बिल्कुल नहीं…ये बस्स शुरुआत है यहाँ कतई ढ़हरना मत, पहली सीढ़ी पर कदम इसलिये रखते हैं ताकि ऊपर तक पहुँच सकें …समझें”
“क्या आप खुश हैं चाचा जी?”
“बेशक। बताओ क्या चाहिये मुझसे…चलो कहीं बाहर खाना खायें?”
“नहीं “
“तो बताओ क्या चाहिये तुम्हें”
“बस्स मन में कुछ जिज्ञासा है अगर आप शांत कर सकें तो…”आकाश कुछ सोचते हुए बोला
“हाँ हाँ तो बोलो ना…अगर मुझे पता होगा तो जरुर बताऊंगा”
“सिर्फ़ आप को ही पता है …”
“अच्छा…पूंछो भई ….”
“बुआ की शादी क्यों नहीं हुई?”
“कमाल है, ये प्रश्न तो आजतक हम भाईयों ने भी आपस में नहीं पूँछा …तुम्हें अचानक क्या सूझा?” राघव बनावटी मुस्कान के साथ बोलते हुए आँगन में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया
“अब जिज्ञासा का कोई निश्चित मापदंड तो नहीं है चाचा जी” आकाश भी ये बोलता हुआ राघव के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया
“हम्म्म्म ये तो है…अब भई हमने उसकी शादी की कोशिश की थी…घर में मां बाऊ जी अक्सर उर्मिला की शादी की चर्चा करते थे, एक दिन मैनें अपने साथ पढ्ने वाले लड़के का नाम उन्हें सुझा दिया, लड़का पढ्ने में होशियार तो नहीं था, लेकिन इकलौता था, और पैसो से संपन्न था तो लगा उर्मिला खुश रहेगी वहाँ…मां-बाऊ जी ने भी अपने अनुसार पता लगवा लिया था और उन्हें नागेन्द्र इतना पसंद आया कि जाकर बात ही पक्की कर आये वो लोग”
राघव के मुँह से नागेन्द्र नाम सुनते ही आकाश अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया, और जोर से बोला
“क्या कहा नागेन्द्र?”
“क्या हुआ, क्या तुम नागेन्द्र को जानते हो?” राघव ने भी चौंकते हुए पूँछा
“मैं कैसे जानूंगा वो तो मेरे एक दोस्त का नाम नागेन्द्र है इसलिए” आकाश ने झूठ बोलकर बात संभाली
“च…क्या तुम भी आकाश …मैं उस जमाने की बात कर रहा हूँ भई…
“जी… फिर क्या हुआ?” आकाश संयत होकर बैठते हुए बोला
“हाँ तो कहाँ था मैं..हां तो सगाई की तारीख तय हो गयी…सगाई का दिन भी आ गया….हम उस दिन बड़े जोश से उर्मिला की सगाई की तैयारी कर रहे थे….सब मेहमान आ गये थे। लेकिन …लेकिन” बोलते-बोलते राघव कहीं खो सा गया
“लेकिन क्या चाचा जी”
“लेकिन नागेन्द्र का कहीं कोई अता-पता नहीं…मैं उसके घर गया तो देखा उसके माँ-बाप का रो -रोकर बुरा हाल था वो भी नहीं जानते थे कि नागेन्द्र कहाँ गायब था…मैं अपने दोस्तों के साथ उसे ढूँढने निकल गया…सुबह से शाम और फिर रात हो गयी लेकिन नागेन्द्र का कहीं कोई अता-पता नहीं। खिसियाहट में माँ- बाऊ जी ने इस सब का दोष मुझे दे दिया। खैर परवाह उसकी नहीं …चिंता उर्मिला की थी वो जिस तरह से जड़ थी हमें ये डर सता रहा था कि वो कोई उल्टा-सीधा कदम ना उठा ले।
लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया…फिर थोड़े समय बाद उसके लिये एक लड़का देखा जो सरकारी ऑफिसर था। लेकिन जब उर्मिला से शादी की बात की वो आक्रामक हो गयी…हम लोगों ने समझाने-बुझाने की कोशिश की तो …तो भागती हुई छत पर गयी और सबसे उँची मुन्डेर पर खड़ी हो गयी और वहीं से कूदने पर आमादा हो गयी। और तभी शांत हुई, जब हमने उसे आश्वस्त किया कि हम उसकी शादी की बात उसकी मर्जी के बगैर नहीं करेंगे…
जैसे तैसे उस दिन हमने उर्मिला को उस दिन बचा तो लिया…लेकिन उस दिन से हम सब इतना डर गये कि कभी उससे शादी की जिक्र तक करने का साहस नहीं जुटा पाये। वक्त बीता ….और फिर माँ-बाऊ जी इस दुनियाँ से चले गये! धीरे-धीरे ..दोनों भाई खुद की घर गृहस्थी में व्यस्त हो गये और मैं! खुद में ही सिमट कर रह गया…ऊर्मिला की तरफ तो ध्यान ही नहीं गया …आकाश ?”
“जी …”
“उर्मिला ठीक तो है?…मुझे सच बताओ कहीं उसके साथ कोई बुरा वर्ताव तो नहीं करता?”राघव ने ऐसे चौंकते हुए पूँछा जैसे आज ही उर्मिला का ध्यान आया हो।
“नहीँ चाचा जी, सब सम्मान करते हैं उनका …फिर भी …
“फिर भी क्या …बेझिझक बोलो”
“फिर भी ये चाचा जी…कि जो आनन्द खुद की फकीरी में भी राजा होने का है …वो आनन्द, राजा का वजीर होने में भी नहीं”
“हम्म… सही कहते हो! मैं खुद में ही डूबा रहा कभी उसके बारे मे सोच ही नहीं … इतना स्वार्थी कैसे और कब बन गया मैं? पता ही नहीं चला…बहुत बड़ी गलती हो गयी मुझसे” राघव पछताते हुए बोला
“गलती अब भी सुधर सकती है चाचा जी”
“कैसे?”
“जो तब नहीं कर सके वो अब कर लीजिये…”
“सही कहते हो…मां के बाद इस घर पर सबसे ज्यादा हक उर्मिला का ही है, इस घर की मालकिन है वो…मैं उसे इस घर में लाऊँगा…ये घर जी उठेगा उसके आने से…मेरा भी अकेलापन दूर हो जायेगा…और फिर जिसे उर्मी से मिलना हो वो इस घर में आयेगा…और ऐसे इस घर में रौनक भी आ जायेगी…मेरी उर्मिला बिना किसी दवाव के खुल कर रहेगी यहाँ…ओह्ह कितना वेवकूफ़ हूँ मैं? ये बात पहले मेरे दिमाग में क्यों नहीं आयीं” राघव खुशी से झूमते हुए बोला
“बहुत अच्छा सोचा है आपने चाचा जी” आकाश ने भी बहुत खुश होकर राघव की बात का समर्थन किया।
“ठीक है तो इस घर की मरम्मत करवाता हूँ सबसे पहले” कहते हुए राघव दरवाजे की ओर लपका ही था कि
“चाचा जी एक मिनट” आकाश ने उसे टोक दिया
“क्या हुआ?”
“आपने बताया नहीं कि नागेन्द्र उसके बाद फिर कब मिला आपको?”
“कभी नहीं “
“मतलब?”
“मतलब ये कि वो आज तक नहीं दिखा मुझे…”
“क्या…?” आकाश आश्चर्य से बोला
“दिख जाता तो ना जाने क्या करता मैं उसका” राघव गुस्से में दाँत भीचता हुआ बोला और घर से बाहर निकल गया
“ओह्ह…ये नागेन्द्र …क्या करू …कहीं से कोई सुराग नहीं मिल रहा उसका! कहाँ ढूंढूँ और कैसे…काश… काश मैं उस वक़्त में जा सकता और उस कमीने को खोज निकालता…ऐसा क्यों लगता है मुझे कि सारी समस्याओं की जड़ ये नागेन्द्र ही है….अगर कैसे भी ये पता लग जाये तो ….तो सब सुलझ जाये..( तभी दिमाग में रेशमा का ध्यान कौंधा) एक मिनट…नहीं सिर्फ़ नागेन्द्र ही क्यों …रेशमा…अरे हाँ …रेशमा…आखिर रातोरात कहाँ गायब करा दिया गया उन्हें…और किसने कराया होगा …उसकी सास ने?…हम्म हो सकता है…लेकिन ऐसा कराया भी है तो इससे क्या…जरुरी ये है कि वो इस वक़्त हैं कहाँ…और हैं भी या …ये कैसा ख्याल आया मेरे मन में?… नहीं …नहीं…मैं उन्हें चाचा जी से मिलवाकर ही रहूँगा..लेकिन कैसे…ओह्ह कुछ समझ नहीं आ रहा…(फिर दीवार पर जोर से घूँसा मारते हुए) आखिर इस सब में मेरा मन फँस ही क्यों गया?..नहीं आकाश तू ऐसे हताश नहीं हो सकता….कुछ सोच आकाश …कुछ सोच….”खुद से ही बोलते हुए आकाश ने खुद के सिर के बाल हताशा में खींचे और उदास होकर बैठ गया कि तभी कानों में ‘धम्म’ की आवाज गूँजी। और अगले ही पल आकाश फुर्ती से उठ कर खड़ा हो गया।
और दौड़कर बरामदे में बने कमरे को खोल दिया।
***
“आओ घर छोड़ दूँ ” नीरज ने बाइक बिल्कुल राई के पास लाकर रोकते हुए कहो, वो कॉलेज के बाहर खड़ी थी और घर जाने के लिये आटो क इन्तज़ार कर रही थी
“नहीं नीरज…किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी…तुम जाओ मैं रिक्शे से चली जाऊँगी” राई जल्दी से बोली
“जरा आसमान की ओर देखो…” बोलते हुए नीरज ऊपर की ओर देखने लगा
“क्या है (बोलते हुए राई ने ऊपर की ओर देखा) ओह्ह बारिश आने वाली है”
“वही तो …एक भीगी हुई लड़की सड़क पर चल रही हो…और राह चलते लोग उसे देख रहे हो…अच्छा लगता है क्या” नीरज शरारत से बोलते हुए मुस्कुराया
“हद्द है ..बिल्कुल शर्म नहीं आती ना?” राई चिढ़कर बोली
“आती है ना ये देखो मेरे चेहरे की तरफ …मैं तो ये सोचकर ही शर्मा रहा हूँ कि तुम भीग गयी हो” नीरज हंसते हुए बोला तो राई ऊपर से तो चिढ़ती सी लेकिन मन ही मन मुस्कुराती हुई उसकी बाइक पर जाकर बैठ गयी
“चलें?” नीरज ने पूँछा
“हम्म लेकिन मुझे घर से दूर ही ड्रॉप कर देना” राई ने अपना दुपट्टा समेटते हुए कहा
“ठीक है”…बोलते हुए नीरज ने बाइक स्टार्ट की और राई के घर की ओर मोड़ दी।
***
कमरे को खोलते ही एक तीखी गन्ध महसूस हुई आकाश को, उसने एक कदम पीछे की ओर खींच लिया। कमरे का तापमान पूरे घर से ज्यादा ठंडा था और इस चीज़ ने आकाश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। ये कमरा इतना ठंडा क्यों है? ये ख्याल आते ही आकाश कमरे के अंदर चला गया, ‘क्यों ना कमरे का वो दरवाज़ा देखा जाये, जिससे राघव चाचा बाहर जाते थे’ ये ख्याल आते ही आकाश कमरे के उस दरवाजे तक जा ही पाया था कि उसे लगा कोई पीछे खड़ा है, वो पलटा …ये क्या कुछ भी तो नहीं है सोचते हुए उसने अपने सिर पर एक हल्की सी थपकी मारी और दरवाजे को खोलने के लिये हाथ रखा ही था कि लगा हवा की एक ठंडी लहर उसकी गर्दन को छू गयी…
वो बापस पलट गया…कुछ ऐसा एहसास जैसे कि कोई बिल्कुल पास खड़ा होकर साँस ले रहा हो, लेकिन कोई दिख क्यों नहीं रहा…इतना सोचना भर था कि आकाश का पूरा शरीर पसीने से ठंडा पड़ गया। उसने शरीर की पूरी ताकत पैरों पर डालते हुए कमरे से बाहर जाने के लिये दरवाजे की ओर दौड़ लगा दी ….लेकिन ये क्या …’भड़ाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुद व खुद बन्द हो गया “अरे ये क्या…कोई है…दरवाजा खोलो…”वो किवाड़ को खोलने की कोशिश करते हुए पूरी ताकत से चीखा …लेकिन आवाज गले के बाहर नहीं निकली…तभी
“अह्ह्ह्ह अह्ह्ह….” जैसे कोई बच्चा खिलखिला कर हँसा हो, आकाश के माथे की त्योरियां डर से चढ़ गयी और कुछ दिनों पहले ही इस कमरे में देखी हुई एक बच्चे की आकृति की याद उसके जहन मे उभर आयी…..कि तभी उसकी नजर सामने पड़ी….
एक धुंधली सी आकृति उसके ठीक सामने खड़ी थी। “अह्ह” आकाश के मुँह से निकला
“अह्ह्ह्ह….”फिर हँसी की आवाज उसके कानों में पड़ी, . अब वो उस आकृति को गौर से देख रहा था।
कमरे के अन्धेरे में जैसे सफेद प्रतिमा बना गया हो कोई…पूरा शरीर जैसे किसी भीगे कपडे सा हवा में झूल रहा हो…संवेदनहीन जड़…निर्जीव से उसके हाथ कमजोर शरीर से जैसे चिपके हुए हों …और वो एक हाथ में बहुत छोटी कोई गोलनुमाँ सी चीज़ पकड़े हुए था….डरते-डरते आकाश ने एक नजर उसके चेहरे की ओर देखा, शून्य चेतना में ताकती हुई वो आँखें जो आँखें ना होकर दो काले गढ्ढ़े थे वो जो उसे खुद की ओर घूरते दिखे….वो आकृति वहीं थी…बिना हिले-ड़ुले …आकाश उसे और वो आकाश को देख ही रहा था कि लगा कोई हवा की तेजी से उन दोनों के बीच में आया.. और आकाश को कुछ शब्द सुनायी दिये…
साथ ही बहुत हल्की सी और बड़ी आकृति उसे दिखी…जो उस छोटी आकृति के पास तक गयी…और अगले ही पल दोनो आकृतियाँ गायब….
बिजली की फुर्ती से ये सब इतनी तेजी से घटा कि पलक झपकने की देरी भी बहुत लम्बी घटना लगी।
“आह्ह्ह्ह…” आकाश ने तेजी से एक गहरी साँस छोड़ी और जमीन पर बैठते हुए खुद को एकदम ढ़ीला छोड़ दिया।
***
“राई ?…” नीरज ने बाइक को लहराते हुए धीरे से राई को पुकारा
“हम्म्म्म” मुस्कुराते हुए बड़ी तन्मयता से वो बोली
“सोचता हूँ..तुम्हारे बिना अब तक जी कैसे रहा था…तुम पहले ही क्यों ना मिल गयी..उम्म्ं”
“पहले मिल जाती तो क्या हो जाता..उम्म” बोलते हुए राई उससे थोड़ा सा और सट कर बैठ गयी।
“एक बात बताओ…ऐसे में कोई भला बाइक कैसे चला सकता है?” नीरज हँसते हुए बोला
“मारुँगी एक ” राई, नीरज की पीठ पर हल्का सा धौल जमाते हुए जोर से हँसी
“वैसे मार तो दिया ही है तुमने एक गरीब बेचारा” नीरज बनावटी अफसोस जताते हुए बोला
“कौन है वो गरीब बेचारा..”
“लो तुम्हें नहीं पता, इस वक़्त वो बेचारा बाइक चला रहा है”
“ओह्ह तो वो है बेचारा..हाहा …हा हा हा”
“हां भई …हा हा हा”
“नीरज मुझे यहीं इसी मोड़ पर छोड़ दो”
“क्या राई,…यहाँ से पैदल जाओगी तुम? कम से कम तुम्हारे घर के पास वाले मोड़ तक तो छोड़ने दो”
“नहीं नीरज, मुझे यहीं छोड़ दो…समझो ना” राई जिद करते हुए बोली
“ठीक है…” नीरज ने बाइक रोक दी “कल मिलोगी ना”
“हम्म” राई ने उसे देखते हुए कहा और जाने के लिये मुड़ गयी, नीरज उसे जाते हुए देखने लगा। जब राई आँखो से ओझल हो गयी, नीरज बाइक पर बैठा और किक मार ही पायी थी कि ..
“साले…तेरी इतनी हिम्मत” आवाज के साथ नीरज की पीठ पर एक तेज लात मारी किसी ने …और नीरज बाइक से नीचे गिर पड़ा…
बाइक गिर गयी थी और पास ही नीरज भी जमींन पर गिर पड़ा… … …और एक लड़का, दाँत पीसता अपनी कमर पर दोनों हाथ टिकाए नीरज के ठीक सामने खड़ा हो गया ..
“कौन है ये?”नीरज उसे देखते हुए मन ही मन बोला।
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:13
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