Aur ‘Wo Chunri Sang Ud Gayi !
लकड़ी की जरूरत नहीं मधुर”….और इतना बोलते ही चंद्रा ने अपना एक पैर चूल्हे में रखा और आग जला ली..
ये देख मधुर डर के मारे बदहवास सा दौड़ा पानी भरी बाल्टी उठाई और चन्द्रा के पैर पर उलट दी और गुस्से में बोला
“ये क्या था चन्द्रा..ये क्या किया तुमने”
“इतना प्रेम करते हो मुझसे”आंखों में प्रेम भर चन्द्रा ने मधुर को देखा फिर अपना पैर दिखाते हुए बोली
“देखो कहीं लेश मात्र भी जला है क्या?
तो, चलिए एक जिन्नादि और मासूम इंसान की प्रेम कहानी के सफर पर ..
जुगनू दूध वाला.बदहवास सा .भूत…भूत …कहे जा रहा था,उसे देख गली के कुछ बच्चे उसके पीछे पीछे दौड़े,और कुछ महिलाएं भी साथ हो लीं ..सब एक ही बात पूछ रहे थे,
“जुगनू भैया हुआ क्या ? …लेकिन जुगनू कुछ बोलने की हालत में ना था..
दयाल सिंह जो .प्राइमरी के मास्टर थे, उधर से गुजर रहे थे,उन्होंने ये सब देखा तो उसी ओर मोड़ कर अपनी साइकिल की गति तेज कर दी,और आगे से जुगनू को पकड़ लिया
,”क्या हुआ जुगनू?
“भैया …वो वो …भूत वहाँ”
जुगनू की ऐसी हालत देख ,दयाल सिंह ने पास के पोखर से एक बच्चे को पानी लाने को बोला,और जुगनू को जबरदस्ती पकड़ नीचे बैठा दिया,और पानी के छीटें जुगनू के मुंह पर छिटक कर बोले
“आराम से जुगनू,आराम से…ये बताओ हुआ क्या”?
“भैया …मधुर के घर मे भूत है” जुगनू अपने दोनों हाथ हवा में उठाते हुए बोला
“भूत.. मधुर के घर”उन्होंने चौकते हुए पूछा…
“आराम से बताओ क्या देखा तुमने जुगनू ” दयाल सिंह ने जुगनू को संयत करते हुए पूछा
“मैं ..रोज़ की तरह दूध देने गया था,रोज ही मुझे बर्तन बाहर रखा मिलता.. उसी में दूध पलट देता ..आज कोई बर्तन नहीं दिखा तो आवाज़ लगा दी..लेकिन जब बहुत देर तक कोई जवाब ही ना मिला.. तो किवाड़ खटखटाने के लिए जैसे ही हाथ रखा वो अपने आप ही खुल गया..और अंदर ..अंदर मधुर भैया की पत्नी बैठी तो रसोई घर मे थी और उनके पेड़ जितने लम्बे हाथ आंगन में बने हैंडपम्प से पानी भर रहे थे”
इतना कहते ही..जुगनू फिर डर से कांपने लगा,
“क्या…क्या बकते हो ” ये सुन तो मास्टर जी भी डर गए
“सच कह रहा हूँ भैया…रोज़ी रोटी की कसम”
कसम खाते हुए जुगनू ने अपने गले की घाँटी पर हाथ रखा
गांव के कई और लोग भी इस बीच आकर जुगनू की बात सुन चुके थे…
“हम सबको मधुर के घर चलना चाहिए”सबने एक स्वर में कहा तो मास्टर साहब भी हामी में सिर हिलाते हुए जुगनू का हाथ पकड़ सबके साथ हो लिये…..
मधुर भाई… हां मधुर को इसी नाम से जाना जाता..क्या औरतें क्या बच्चे और क्या आदमी ..पूरा कस्बा उन्हें मधुर भाई कहता.
माता-पिता का देहांत तभी हो चुका था,जब वो स्नातक के विद्यार्थी थे, गुजारे के लिए आस पास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे,और आगे की पढ़ाई पूरी की,उसी कस्बे में प्राइमरी के अध्यापक बन गये…एक तो पढ़े लिखे होने की वजह से सबसे सम्मान मिलता और साथ ही वो हमेशा दांत निकालकर बात करते ,छोटे मोटे सबके काम कर देते.. विनम्र होने की वजह से भी वो और सबके चहेते बन गए,
..लगभग महीनाभर ही बीता होगा कस्बे से बाहर गए,जब बापस आये तो दुल्हन साथ ,सब लोग खुशी से ज्यादा आस्चर्य चकित हो गए,
..परन्तु सीधे साधे मधुर ने सबको दावत दे खुश कर दिया..था
….
आधे से ज्यादा गांव ही मधुर के घर की ओर बढ़ा आ रहा था, इतने लोगों को अपनी ओर आता देख मधुर थोड़ा घबरा गया,
“मधुर, तुम्हारी पत्नी साधारण स्त्री नहीं..कौन है वो”मास्टर साहब ने पास आते ही मधुर से पूछा
“क्या मतलब भैया ?कैसी बात कर रहे हो ? मधुर डरते हुए बोला
“पूरा कस्बा ही संशय ग्रस्त है..कि वो कोई भूत …या.. कोई..अ..अ… देखो ऐसा है….आदमी तो दूर किसी स्त्री ने भी तुम्हारी पत्नी को नही देखा..ऐसा क्यों भला” मास्टर जी बोले
“ये क्या कह रहे हो भइया..ठीक है … तनिक रुको” ..”चंद्रा जरा बाहर आना” मधुर ने गुस्से में आवाज लगाई तो ,चंद्रा बाहर आयी… लाल जोड़े में ऐसी सजी थी जैसे कल ही विवाह हुआ हो,लचकती सी चाल और व्यक्तित्व की आभा देख सबकी आंखे खुली की खुली रह गयीं, गोरे हाँथ लाल चूड़ियों से कोहनी तक भरे और लंबा घूंघट..
..सबकी आंखे उसके हाथों पर टिक गयीं ..इतने खूबसूरत हाथ देख महिलाओं की तो बोलती बंद ..कोई मन ही मन अपने हाथों से उसके हाथों का मिलान कर दुखी तो कोई मारे जलन के कहे..ना जाने कुछ करती भी है कि नहीं …
काम करती तो इतने सुंदर हाथ होते क्या..हम्म मधुर कुछ कोई काम करने ही नहीं देता होगा “औरतों में घुसर-फुसर शुरू हो गयी…लेकिन कोई तेज़ आवाज में मधुर की पत्नी से कुछ नहीं बोला और जब औरते ही कुछ न बोली…. तो आदमी तो कहे ही क्या …सबको चुप देखकर मास्टर जी का उत्साह भी जाता रहा..सो अपनी झेंप छुपाने के लिए मास्टर जी ने जुगनू के सिर पर चपत मारी और बोले
“ले तू हाथ देख ले अपनी भौजाई के .. साले..सबेरे सबेरे ही चढ़ा के निकलता है”
और फिर सब धीरे-धीरे वहाँ से घिसक गये
सबके निकलते ही मधुर ने अपनी पत्नी को टोका
“आगे से होशियार रहना …दरवाजा खुला न रहे कभी…”..चंद्रा ने स्वीकृति में सिर हिलाया…और अपने काम मे लग गयी
मधुर की अच्छाइयों से कस्बे के लोग ही नहीं चंद्रा भी प्रभावित होकर आयी थी …
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हुआ यूँ …कि सर्दियों के दिन थे ..फरवरी के महीना रहा होगा, मधुर पास के कस्बे से एक बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर बापस आ रहा था कि कुछ बदमाशों ने उनकी साइकिल छीन ली, हड़बड़ाया सा मधुर बिनती करते रहा ,पर बदमाशों ने उसे परे धकेल दिया ..और उसकी साइकल छीन कर ले गये,
.मधुर साईकिल छिन जाने से बहुत दुखी हुआ और आँखो में आँसू भरे वहीं जमीन पर बैठ गया….इतने में किसी का हाथ उसने अपने कंधे पर महसूस किया मुड़कर देखा तो अति सुंदर महिला गहनों से सजी उसे ही देख मुस्कुरा रही थी
…”क्या हुआ इतने परेशान क्यों हो” उस महिला ने पूछा
“उन बदमाशों ने मेरी साइकल छीन ली है” तो रोते हुए मधुर ने कहा
“बस्स इतनी सी बात”..और इतना कहते ही अगले पल ही साइकल मधुर के सामने …
…चौंक गया मधुर …आंखे फैलाये अभी अभी हुई घटना पर विश्वास नहीं कर पा रहा था…
खुशी और आश्चर्य एक साथ …क्या कहे ..कुछ कहते नही बन रहा था पर ये सोचकर कि कहना तो चाहिए, उस औरत का धन्यवाद करना चाहिए…मधुर ने अपनी झुकी नजर उठा कर देखा तो वो महिला वहां नहीं थी.इधर उधर देखा भी पर ..नहीं दिखी तो मधुर घर आ गया..
अगली सुबह जैसे ही उठा ,तो देखा पास ही में गर्म चाय रखी थी..
घर मे उसके अलावा कोई नहीं… फिर चाय कौन रख गया..
बहुत सोचा फिर लगा कोई स्कूल का बच्चा ही रख गया होगा, जब भी वो कोई बच्चा उसका दिया हुआ ग्रह कार्य नहीं करता तो मधुर को प्रभावित करने के लिए अपने आप उसके छोटे-मोटे काम कर देता,ताकि मधुर की पिटाई और डाँट से बच सके.. मधुर ने मुस्कुराते हुए चाय पी ली…और तैयार हो स्कूल चले गया
स्कूल से.लौट कर आया तो.. घर मे पैर रखते हुए यकीन ना हुआ..सारी चीज़े सलीके से रखी हुई थीं….घर भी साफ था मधुर अचरज़ से पूरा घर बार -बार देख रहा था….
दिमाग सोचते सोचते जब थक गया …तो लेटे लेटे मधुर सो गया…
स्टोव जलने की आवाज़ से उसकी नींद खुली तो देखा स्टोव पर चाय उबल रही थी,लेकिन रसोई में कोई नहीं था, मधुर ने अपने छोटे से घर का कोना कोना छान मारा,कही कोई न था,
थक हार जैसे ही कमरे में आया..कप में चाय और साथ मे मठरी ..जो कि उसे बहुत पसंद भी थी रखी दिखी..ये देख
मधुर बहुत डर गया,डरते डरते बोला
“कौन है यहाँ…सामने आओ..”
उसे ना तो कोई आवाज़ सुनाई दी, ना ही कोई उत्तर मिला…रात हो गयी थी,इस वक़्त किसी बच्चे का उनके घर आना मुश्किल था..मधुर डर गया और फिर उसने सोचा क्यों न मैं ही बाहर भाग जाऊं …ये सोचते ही जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा.. तो दरवाजे में भीतर से ताला लगा.दिखा..उसने खोलने की कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं खुला..डर से मधुर रोने लगा..
“कौन है यहाँ..कौन हो तुम…क्या चाहते हो” उसने कई बार बोला लेकिन अब भी कोई उत्तर नहीं..वो ..बहुत देर उस दरवाजे पर ही बैठा रहा फिर उनींदा हो गया …तो लगा कि किसी ने उसे जैसे गोद मे उठा लिया है,और बिस्तर पर लिटा हौले हौले सिर पर हाथ फिराया… थोड़ी देर बाद लगा जैसे कोई बड़े प्यार से उसके पैर दवा रहा हो..ना जाने कब उसे नींद आ गयी
सुबह उठा तो फिर ठिठक गया मधुर … विस्तर से नीचे पैर रखते ही चप्पल आ गयीं… नहाने गए तो बाल्टी पहले ही भरी मिली..नहा कर निकला तो स्वादिष्ट भोजन तैयार मिला,अब ना डर लगा ना घबराहट हुई.. खाने बैठे तो स्वाद ऐसा की उंगलिया चाट गए तृप्त हो मुस्कुराते हुए बोले
“तुम जो भी हो इतना तो समझ गया हूँ कि मुझे हानि नही पहुंचाने वाले …और इतना स्वादिष्ट भोजन इससे पहले मैंने कब खाया मुझे याद भी नहीं…धन्यवाद”
एक दिन पहले ही सोच रहे थे जब स्कूल जाएँगे तो बताएंगे किसी को ,लेकिन अब इरादा बदल दिया था ..वो कोई भी हो उन्हें नुकसान तो दूर की बात है बल्कि उनका ख्याल ही रख रहा था ,बड़े खुश शाम को स्कूल से घर लौटे तो आते ही एक गिलास ठंडा पानी,फिर चाय और थोड़ी देर में गर्म खाना मिला..सोने गए तो नींद आने तक कोई मुलायम हाथों से उनके पाँव दवाता रहा,
….
अगली सुबह उठते ही गर्म चाय उनका इंतज़ार कर रही हो जैसे..एक घूंट भरते ही खुश होकर बोले ,
“चाय बहुत अच्छी है.. लेकिन मुझे ये नहीं पता कि शुक्रिया.. किसी मोहतरमा का करुं या किसी श्रीमान का..ये भी तो नही जानता” …इतना बोल ही पाए थे किसी की दबी सी हँसी सुनाई पड़ी
“सामने आइये ना बस्स एक बार …आइये ना ..ये लीजिये आपके हाथ जोड़ता हूँ”…कप नीचे रख मधुर ने याचना के स्वर में कहा…
तो एक लंबी,..गोरी..तीखे नैन नक्स और भरे ओठ और स्वस्थ्य शरीर और लाल साड़ी में वो सामने खड़ी थी…जीती जागती खूबसूरती की प्रतिमा..मधुर पागलों की तरह आंखे फाड़े उसे देखे जा रहा था..
“मैं आपको बहुत पसंद करती हूँ..मधुर”
उसने मुस्कुराते हुए कहा तो मधुर को जैसे होश आया लेकिन खुशी से जैसे शब्द बन्द हो गए हों वो कुछ बोल ही ना पाया
बस्स उसे देखता रहा
“मैं ही इतने दिनों से आपके यहाँ इस घर मे ही रह रही हूँ…आपको बहुत दिक्कत हुई है इससे..है ना”?
“नहीं नहीं … मुझे क्या दिक्कत बल्कि में तो ये सोच रहा था,कि आप कैसे रहतीं होंगी इस घर में…ये घर आपके लायक नहीं”
खुशी से लबरेज़ मधुर बोल गया.. बिना ये सोचे कि ये सामान्य इंसान नहीं..फिर उसने झक कर पसंद का नाश्ता किया और दोपहर के लिए खाना बंधा कर स्कूल चला गया..
….कई दिन ऐसे ही बीत गए…मधुर बहुत खुश रहने लगा…और ये खुशी सबको दिख भी रही थी
एक दिन स्कूल से आने के बाद जैसे ही चंद्रा चाय का कप लेकर आयी ….मधुर ने कहा
“चंद्रा …एक बात कहूँ”?
“हम्म..बोलो ना”
“मुझे तुमसे प्रेम हो गया है…विवाह करोगी मुझसे?
“आप जानते हैं ना…मेरी हकीकत…मैं इंसान नहीं”
चंद्रा अपनी विवशता जताने का प्रयत्न करते हुए कहा…
“जब मुझे उससे दिक्कत नहीं तो तुम्हे क्या… और पसंद तो तुम भी मुझे करती ही हो ना”
“मैं… हम्म…लेकिन”
“बोलो ना…अच्छा मुझे बताओ तुम इंसान नहीं ये तो मैं जान गया,लेकिन तुम भू…त भी नहीं हो …होती तो इतनी अच्छी नहीं होती तो …हो कौन?” ….
“सही कहा आपने…मैं ना तो भूत और ना ही इंसान की श्रेणी से हूँ… इंसान और भूत के अलावा भी एक श्रेणी होती है,जिसे जिन्नादि कहते हैं…मैं उसी से हूँ… मैं जिन्नादि श्रेणी से हूँ,
मैं भी तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ,…. लेकिन”…
“लेकिन क्या…बोलो ना” मधुर ने अधीर होकर पूछा तो चंद्रा ने अपने सिर से चुनरी उतारकर हाथ में भीचतें हुए कहा
“जब भी मुझे बुलावा आएगा ,मुझे ये चुनरी ओढ़ कर उसी लोक जाना पड़ेगा…मैं चाहते हुए भी इस नियम को ना तो तोड़ सकती हूँ ना बदल सकती हूँ… इसी नियम के चलते मुझे हर रोज़ बापस लौटना पड़ता है”…
चंद्रा तो अपनी बात खत्म रोने लगी लेकिन अनायास मधुर के चेहरे पर एक चमक उभर आई..मन ही मन कुछ निश्चित करते हुए बोला…
“ठीक ..समझ गया तुम्हारी मजबूरी… ये भी कि रोज़ मेरे सोते ही तुम चली जाती हो..अब आओ साथ खाना खाते हैं..अब आज से तुम मेरे सामने ही जाना”…
मधुर ने जब मुस्कुराते हुए कहा तो चंद्रा बोली ..
“तुम तैयार हो जाओ मैं अभी गरम गरम रोटी सेंकती हूँ”..
रोटी …का नाम सुनते ही मधुर को जैसे कुछ याद आया हो मुस्कुराते हुए बोला .
.”तुम्हारे प्यार ने मुझे निकम्मा बना दिया है चंद्रा. देखो घर मे स्टोव के लिए ना तो केरोसिन है, न ही एक लकड़ी तक ..बस्स थोड़ा सा समय दो अभी लाता हूँ”
“लकड़ी की जरूरत नहीं मधुर”….और इतना बोलते ही चंद्रा ने अपना एक पैर चूल्हे में रखा और आग जला ली..
ये देख मधुर डर के मारे बदहवास सा दौड़ा पानी भरी बाल्टी उठाई और चन्द्रा के पैर पर उलट दी और गुस्से में बोला
“ये क्या था चन्द्रा..ये क्या किया तुमने”
“इतना प्रेम करते हो मुझसे”आंखों में प्रेम भर चन्द्रा ने मधुर को देखा फिर अपना पैर दिखाते हुए बोली
“देखो कहीं लेश मात्र भी जला है क्या?
एकदम सामान्य पैर देख मधुर आंखे फाड़े कभी चंद्रा तो कभी उसके पैर को देख रहा था,अभी तो इसमें धू धू करती आग जल रही थी
“हमें आग कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाती.. मधुर…तुम बैठो खाना खाओ”……उसने मधुर का हाथ पकड़ते हुए उसे बिठा दिया, मधुर आंखे फाड़े उसे देखे जा रहा था…
चंद्रा ने फिर अपना पैर चूल्हे में रख उसमें आग जला ली..और रोटियां सेंकी मधुर ने उसी शाम चंद्रा की नजर से बचते हुए उसकी चुनरी उठा ली..और ये बोल कर कि
“किसी काम से जा रहा हूँ,मुझसे मिले बिना मत जाना चंद्रा
“अच्छा “…बोलकर चंद्रा फिर घर के काम मे लग गई..
मधुर ने घर के पीछे ही एक गहरा खढ्ढा खोदा और एक बक्से में चंद्रा की वही चुनरी रख कर ,खड्डे में गहरी दवा दी,और बापस आ गया..जैसे कि होना ही था,चंद्रा पागलों की तरह अपनी वही चुनरी ढूंढ रही थी….मधुर को देखते ही उसके पास आकर घबराई सी बोली…
“मधुर ..मेरी चुनरी …चुनरी नहीं मिल रही…मेरे जाने का वक़्त हो गया है
“तो ..तो बिना चुनरी के चली जाओ”.मधुर ने आजमाने के लिए कहा
“तुम्हे बताया था ना.. बिना चुनरी नहीं जा सकती मैं”
“तो रुक जाओ …”
“मैं कैसे रुक सकती हूँ मधुर ” वो बेबसी जताते हुए बोली
“मेरी बन कर रह जाओ…व्याह कर लो मुझसे चन्द्रा”
मधुर के इस सख्त लहजे से कुछ भान हो गया चंद्रा को
“तुमने…तुमने ..क्या तुमने मेरी चुनरी छिपा दी है?..मेरी चुनरी मुझे दे दो मधुर…मजाक नही है ये”
आंखों में गुस्सा देख भी मधुर का इरादा कमजोर ना हुआ
“मैं भी कहाँ मज़ाक कर रहा हूँ चंद्रा.. सच्चा प्रेम करता हूँ तुमसे…ये जीवन तुम बिन ना जिया जायेगा मुझसे अब…और तुम्हे रोकने का अगर यही उपाय है .…तो यही सही”…
“ये ठीक नहीं मधुर .बिल्कुल ठीक नहीं ..मेरी कमजोरी का फायदा उठाना चाहते हो…उस चुनरी की कीमत मेरे लिए क्या है तुम क्या जानो”
“फायदा ?…फायदा तो तुमने उठाया है मेरे जज़्बातों का.. जब मन भर जाएगा तुम तो चली जाओगी और फिर कौन जाने कि लौट कर भी आओ …ना आओ..तब मेरा…बताओ क्या होगा मेरा….बोलो …क्या कोई कीमत नहीं मेरी और मेरे प्रेम की…”
“मधुर .तुमने छिपा दी है मेरी चुनरी.” वो चीखी
“हाँ..चंद्रा मैंने ही छिपाई है..तुम्हारी चुनरी…या तो मेरी जान ले लो इसी क्षण, या व्याह कर लो मुझसे….जिस हाल में भी हूँ तुम्हे पता ही है ..कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूँगा.. प्रेम करता हूँ तुमसे चंद्रा…और हमेशा करता रहूँगा”…
भावुक मधुर की आंखों से गिरते आँसू देख चंद्रा कुछ ना बोली
वो आगे बोला
“नहीं रह पाऊँगा तुम्हारे बिना चंद्रा..नहीं रह पाउँगा” उसे यूँ पागलों सा रोते देख चंद्रा ने विवाह की हांमी भर दी..चंद्रा के स्वीकार करते ही मधुर खुशी से नाच उठा
और मधुर, गाँव मे सबसे ये बोलकर कि कुछ काम है गांव से बाहर,कस्बे से बाहर चला गया..वही एक मंदिर में दोनों ने विवाह किया ….
….और बापस आते ही सबकी शिकायते खत्म करते हुए…मधुर ने पूरे गाँव को दावत दे दी…
“दोनों प्रेम से रहने लगे चंद्रा कभी भी न थकती, हमेशा स्वस्थ व सजी रहती रोज़मर्रा के सभी कार्य वो ..एक ही जगह बैठे बैठे वो मिनटों में कर डालती ..कभी किचन में बैठे -बैठे अपने हाथ लम्बे कर नल के नीचे रख बरतन धो लेती…और कभी मधुर से उसके सामने बैठ बातें भी करती रहती और किचन में खाना भी बना लेती… …मधुर को ये सब अब तो सहज लगने लगा…
वक़्त बीतता रहा लेकिन चंद्रा किसी से भी मिलने में सहज ना महसूस करती …इसीलिये मधुर ने किसी भी जान पहचान वाले या किसी भी कस्बे के निवासी को चन्द्रा से मिलने नहीं दिया….बस्स उसे खुद के साथ उसे घुमाने ले जाता
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वक़्त बीतता रहा और एक दूसरे के प्रेम में डूबे दोनों को सालों बीत गए…चंद्रा ने कभी भी मधुर को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया…ना ही मधुर के प्रेम में कोई कमी आयी…
इसी बीच चंद्रा ने एक बच्चे को जन्म दिया,मधुर के पाँव जैसे जमीन पर नहीं पड़ते थे वो जैसे आसमान में उड़ने लगा बड़े प्रेम से चंद्रा के नाम पर उसने अपने बेटे का नाम चंद्र रखा….
चन्द्रा अपने बच्चे को सुलाती तो आंगन में और हाथों से थपकी भी रहती और उसी समय कमरे में खुद मधुर के सामने खड़ी होकर बातें भी करती रहती
.चंद्रा.हमेशा खुश रहती और ,सजी धजी और खुशबू से महकती रहती..मधुर को ना तो कभी चंद्रा से कोई बीमारी सुनने को मिलती…ना ही कोई चिड़चिड़ाहट और ना ही कोई शिकायत …
अच्छे दिन पंख लगा बड़ी जल्दी उड़ जाते हैं..समय जैसे पलक झपकते बीत गया और बेटा विवाह योग्य हो गया…..
एक सुंदर और सुयोग्य कन्या से मधुर के बेटे चंद्र का विवाह तय हुआ…सबके सामने चंद्रा सामान्य तौर पर काम करती और जब सो जाते अपने शक्तितियों की मदद से रात में ही सारा काम रिश्तेदारों के उठने से पहले ही कर लेती सो काम मे कभी कोई हड़बड़ नहीं हुई…
जिस दिन बारात घर बापस आयी चंद्रा मधुर के पास जा बोली
“क्या आप मुझसे खुश हैं एक पत्नी के तौर पर”
“कैसी बातें करती हो चंद्रा ,जब से तुम मेरे जीवन मे आयी हो…उस क्षण से इस क्षण तक कभी भी एक पल के लिए भी में तुमसे नाखुश नही रहा बल्कि खुद को हमेशा भाग्यवान ही महसूस किया है…आज क्यों पूछ रही हो ऐसे?” मधुर ने पूछा
“यूँ ही…आज हमारे बेटे का विवाह हुआ है ,घर पर बहु आयी है,इस समय से ज्यादा खुशी का समय कब आएगा…मेरा आज नाचने का बहुत मन है…मधुर …मैं अपनी चुनरी ओढ़ कर आज जी भर नाचना चाहती हूँ” चंद्रा मनुहार करती बोली
चुनरी का नाम सुनते ही मधुर तो डर गया…और बोला
“क्या…बिना चुनरी के नहीं नाच सकती चन्द्रा?”
“बिना चुनरी …मेरा सिंगार अधूरा है मधुर ..पूरा महसूस ना करते हुए कैसे नृत्य कर सकती हूँ
मधुर का मन आशंकाओ से भर गया,फिर सबको झटक मधुर ये सोचते हुए कि मैं भी बेकार में ही डर रहा हूँ…बेचारी की चुनरी कब से छिपायी है मैंने..और इसने आज मांगी है.. आज.. जब हमारे बेटे की शादी है..भबुकता में बह मधुर दौड़ता हुआ घर के पिछवाड़े गया खड्डा खोदा बक्सा खोला और चुनरी ले जाकर चन्द्रा को दे दी.. चुनरी पाकर चंद्रा की आंखों से आँसू निकल आये…
“मधुर बहुत प्रेम करती हूँ..तुमसे … तुमने मुझे बहुत खुश रखा ..हर सुख दिया मधुर”
मधुर समझ गया कि चंद्रा आज बहुत भावुक है, बहुत सालों बाद चुनरी पाकर और भी भावुक हो गयी है…मैंने इसे नाहक ही इतने सालों इस चुनरी से दूर रखा भला हमरे बेटे के इतने बड़े होने के बाद अब ये कहाँ जाएगी ! हम दोनों एक दूसरे से कितना प्रेम करते हैं अब तो ये ख्याल मेरे मन मे आना भी नहीं चाहिये, मधुर इन विचारों में ही था कि चंद्रा ने चुनरी ओढ़ी और नाचना शुरू कर दिया …
वो सबके बीच आ गई नाचते नाचते . उसके पैर जादुई तरीके से थिरक रहे थे ..उनकी फुर्ती देखते ही बनती थी ..एक अजीब समा बंध गया था .. लोग उसे अपलक देख रहे थे .. और उसके नृत्य से मुग्ध होने लगे थे.. अब उसके पैर जमीन से ऊपर थिरकने लगे ..
वो देखते देखते हवा में ऊपर उठ गई .. और उठती चली गयी …ऊपर और ऊपर .. सब आँखें फाड़े उस नजारे को देख रहे थे लेकिन कोई कुछ कह पाता या कर पाता इससे पहले ही पलक झपकते ही वो सबकी आंखों से हमेशा के लिए ओझल हो गयी!
*समाप्त*