सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:1

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 “क्या अनामिका बापस आएगी सीजन 2” 

एक ऐसी वेब सीरीज, जो आपको इसे पूरा किए बिना कहीं जाने नहीं देगी, रोमांच, डर, मौत के बाद भी अडिग मोहब्बत और टाइम ट्रेवल की सुपर रोमांचकारी सीरीज, “क्या अनामिका बापस आएगी ?” सीजन -2

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सिर्फ मनोरंजन के दृष्टिकोण से लिखी गयी वेब सीरीज है जो पूरी तरह  से काल्पनिक और मेरे खुराफाती दिमाग की उपज है। जिसका किसी भी जीवित या मृत घटना से कोई संबंध या मिलान नहीं..अगर फिर भी कुछ घटनाओं का मिलान पाया जाता है।.. तो इसे मात्र संयोग ही कहा जायेगा..

कॉपीराइट एक्ट अमेंडमेंट 2012 के तहत मेरी इस कहानी के साथ -साथ मेरे द्वारा प्रकाशित हरेक कहानी के सर्वाधिकार मेरे पास (सोनल जौहरी ) सुरक्षित हैं, और अनुमति के बिना इनका कहीं भी ऑडियो, वीडियो , कहानी, लेख या इनका कोई भाग ..आदि के रूप में प्रयोग कॉपीराइट कानून का उल्लंघन है और ऐसा करने वाले व्यक्ति को 6 महीने की सज़ा या लाखों का हर्जाना, सज़ा के तौर पर देने का प्रावधान भी है।


सीजन 2:- पार्ट 1-- क्या अनामिका बापस आएगी?

वो खूबसूरत जगह सफेद चाँदनी से जगमग हो रही थी…नीले और सफेद  रंग के बादल मंडरा रहे थे…और दूर -दूर तक कोई नहीं था..हल्की खुशबूदार हवा बह रही थी…और उसी खूबसूरत दूधिया रोशनी से भरी जगह में…

अनामिका और अंकित सफेद चांदनी से कपड़े पहने, एकदूसरे के गले लगकर खड़े थे…और बहुत खुश थे।

“मैंने तुम्हें पा लिया हमेशा के लिए..” अंकित खुशी से चहकते हुए बोला

“तुमने अपनी जान भी दे दी मेरे लिए …ओह्ह अंकित..” इमोशनल होकर अनामिका ने अंकित के कंधे पर अपना सिर रख दिया…दोनों की आँखो से खुशी के आँसू बहने लगे…और दोंनो एकसाथ शांति और ख़ुशी महसूस कर रहे थे…कुछ पल ही बीते होंगे कि उस खुशी में खलल डाला एक चकाचौंध करने वाले प्रकाश पुंज ने…

दोनों का ध्यान उस प्रकाश की ओर आकर्षित हुआ और दोंनो आश्चर्य से उस प्रकाश की ओर देखने लगे लेकिन इतने तेज़ प्रकाश में दोंनो में से किसी की आंखे नहीं खुल पा रही थीं

“समय आ गया है…जाओ ..एक नया जीवन इंतज़ार कर रहा है” उस तेज़ प्रकाशपुंज से आवाज गूँजी…

“नहीं..हरगिज़ नहीं..मैं अनामिका के बिना नहीं रह सकता” अंकित डरते हुए बोला और उसने अनामिका का हाथ कसकर पकड़ लिया..अनामिका ने भी अंकित की बांह कसकर पकड़ ली..

“हम अलग होना नहीं चाहते…नहीं” अनामिका चीखी… तभी एक तेज़  “धम्म” की आवाज हुई..और दोनों के पैर लड़खड़ा गए .., खुद को सम्भालना मुश्किल लगने लगा..उन दोंनो को

“आहहहहहह” दोंनो की चीख एकसाथ निकली..ऐसा लगा जैसे  उन दोंनो को धक्का दे दिया गया हो

“हे ईश्वर,…… हमें इस जन्म में मिला देना”

“हमें मिला देना…. भगवाsssssन”

दोनों की तेज आवाज गूँजी और गूंजती हुई कहीं गायब हो गयी। और 

अगले ही पल सब ऐसे शांत हो गया जैसे कभी शोर हुआ ही ना हो…सब ठहर सा गया…चांदनी अभी भी कायम थी…और खुशबूदार हवा अब भी पहले जैसी ही बह रही थी….

**

अंकित को गुजरे हुए अब लगभग सालभर होने को आया था।

***

जगह:-हिमाचल। समय:- लगभग शाम 5 बजे!

एक सामान्य से घर, जिसमें एक औरत जिसको देखने से ही लगता था कि उसकी गर्भावस्था पूरी हो चुकी है..कमरे में चहलकदमी कर रही है…

“अरे कहाँ रह गए…. जिंदा भी हो क्या? …कब से एक कप चाय मांगी थी लेकिन…आह…किसी काम का नहीं ये आदमी” औरत गुस्से में चीखी और हाँफते हुए पास ही पड़े बेड पर बैठ गयी

“हाँ…हॉं लाता हूँ..(फिर बुदबुदाकर कर) ना जाने कौन पाप का फल है …जिस दलदल से बाहर निकलने की जुगत भिड़ा रहा था …उसी में और फंसने जा रहा हूँ” 

फ़िर जल्दी से उसने चाय का कप पकड़ा और लपकता सा कमरे में पहुंचा

“जितनी देर में तुम चाय बना कर लाये हो ना…कसम से इतनी देर में तो ना जाने क्या- क्या बना देती मैं…” वो उसे देखते ही गुस्से में भुनभुनाई

“अरे चंचल ….जरा देखो तो …कितनी बढ़िया चाय बनाई है…” वो दिखावटी खुशामद करता हुआ बोला,  चंचल ने उसके हाथ से चाय कप लगभग झपटते हुए ले लिया और फूंक मारकर एक घूंट भरा ही था कि

“कैसी बनी है..?” उसने उत्साहित होकर पूँछा

“आजतक कुछ काम ठीक से हुआ है तुमसे..जो आज ही होगा…हुम्म …लो ऐसी बनी है ” कहते हुए चंचल ने चाय का कप जमीन पर दे मारा

“…ये क्या बदतमीजी है?” वो गुस्से में बोला

“बदतमीजी मेरी है या तुम्हारी? जबकि मुझे हर चीज़ स्वादिष्ट मिलनी चाहिए…तब हर चीज़ बेस्वाद बना रहे हो तुम.. क्या तुम कुछ भी अच्छा नहीं बना सकते” चंचल खीजते हुए बोली

“सुनो…बावर्ची नहीं हूं मैं…एक बच्ची को संभालते हुए अपनी जॉब भी कर रहा हूँ…घर का काम भी कर रहा हूँ …ये क्या कम है?” वो नाराजगी भरे स्वर में बोला

“तो मैं क्या करूँ? ..नौकर रखने की हैसियत भी तो नहीं तुम्हारी” चंचल उसे हिकारत से देखते हुए बोली

“हाँ अच्छी तरह याद करा दिया है तुमने मुझे…बार- बार याद दिलाने की जरूरत नहीं …

“हुम्म…” चंचल ने मुंह फेर लिया

दोंनो की कहासुनी से सोती हुई बच्ची जाग गयी और उठकर चँचल के पास आकर खड़ी हो गयी

“दूर हटो मुझसे …जाओ अपने नकारा बाप के पास” चंचल उसे परे धकेलते हुए बोली ..

“बताओ क्या खाओगी…बाहर से ले आता हूँ” वो बच्ची को गोद में उठाता हुआ बोला। और घर के बाहर निकलने लगा…अभी दरवाजे तक भी नहीं पहुंच पाया होगा कि

“आsssssहहह”  चंचल की दर्द भरी चीख से वो पलट गया

“चँचल …क्या हुआ…?”

“ले..व…र… पेन” वो कराहते हुए बोली

“हम्म…हम्म.” लपकता सा वो बाहर गया…कार स्टार्ट करके घर के दरवाजे पर खड़ी की और अंदर आकर चंचल को उठने के लिए सहारा देने लगा

“चलो… जल्दी बैठो कार में”

“ये सुरेश भाईसाहब की कार है ना..?” चँचल कार में बैठते हुए ताने मारने वाले अंदाज में बोली

“क्या करूँ…बददुआ भी तो नहीं दे सकता” वो बुदबुदाया

“क्या कहा तुमने?” चंचल ने गुस्से में पूँछा, उसने कोई जवाब नहीं दिया और कार स्टार्ट कर दी..तो चंचल चिढ़ गयी

“ये मत समझना कि दर्द में हूँ तो कुछ भी कह लोगे…कुछ फेंक कर मारूँगी अभी…कहे देती हूँ.. हॉं”

लेकिन उसने कोई जवाब ना देकर खीजते हुए सिर झटका और कार की स्पीड बढ़ा दी।

***

तीन सीढ़ियों के बाद एक काले रंग के बड़े से फाटक के खुलते ही फूलों की बड़ी से रंगोली बनी हुई दिख रही थी, जिसे अंतिम रूप दिया जा रहा था। और उसी बड़े घर के आँगन में लगे तुलसी के पौधे में पचास वर्षीय कौशल्या जल चढ़ाते हुए कुछ मंत्र बुदबुदा रहीं थीं, 

“मंझली बहू कहाँ है”? कौशल्या ने रंगोली बना रही अपनी बड़ी बहू मीना से पूछा

“माँ जी, महारानी शीशे के सामने बैठी तैयार हो रही है” उसने मुस्कुराती हुए उलाहने भरे स्वर में जवाब दिया

“अहाँ..नई बहू है ना..और उर्मिला” उन्होंने फिर पूछा

“जीजी रसोईघर में है”

“मेरी उरमू ने रसोई बनायी है अगर, तो बस्स समझो आधा काम हो गया ” वो खुश होकर बोलीं

“हम्म” मीना ने सहमति में सिर हिलाया

“बस कैसे भी राघव का व्याह हो जाये, और उस करमजली से पीछा छूटे.. बस्स फिर उर्मिला के व्याह की तो कोई 

चिंता नहीं.. जहाँ जाएगी उजाला कर देगी” हाथ जोड़ते हुए कौशल्या बोलीं।

कौशल्या के चार बच्चे हैं जिनमें से तीन बेटे और एक बेटी है जिनमें दो बेटों की शादी हो चुकी है आज तीसरे बेटे जिसका नाम राघव है, उसे लड़की वाले देखने आ रहे हैं..

थोड़ी देर में ही तीन लोगों का आगमन हुआ एक लगभग साठ वर्षीय स्वस्थ गर्वीले व्यक्तित्व वाले ज्ञानेश्वर ने प्रवेश किया उनके साथ ही उनकी पत्नी कुसुमलता जो चेहरे से शांत दिख रही थीं

“अरे.. आइये आइये ज्ञानेश्वर जी..” नारायण (कौशल्या के पति ) ने बड़े उत्साह से कहा,

सब बैठ गए और फिर कौशल्या ने अपने बेटे राघव को बाहर आने का इशारा किया, बाइस वर्षीय गोरे रंग और इकहरे बदन वाले राघव का चेहरा गुस्से में तमतमा रहा था वो कमरे से बाहर निकला और कुर्सी पर बैठ गया, माथे पर तनाव की गाँठे पड़ी हुई थी और वो शून्य में देखने लगा, उसे देख दोंनो के चेहरों पर मुस्कान खिल गयी।

“लड़का सुंदर है” कुसुमलता ने अपने पति के कान में फुसफुसाते हुए कहा, समर्थन में ज्ञानेश्वर ने सिर हिला दिया और कहा 

“लगता है साहबजादे नाराज से हैं” ये सुन कौशल्या ने अपने पति की ओर चिंता से देखा

“अरे नहीं ..बस्स सुबह से जरा बुखार सा है इसीलिए” नारायण ने झूठ बोलकर बात संभाली

“कुछ पूछ ..ना चाहें तो पू.. छ लीजिए” कौशल्या अटकते हुए बोली

“जी, बेटा ये बताओ क्या करते हो ?” ज्ञानेश्वर ने पूछा लेकिन राघव ने कोई जावाव नहीं दिया, तो कौशल्या ने उसके कंधे पर हाथ रखकर हल्के से दवा दिया और बोलीं “जवाव दो बेटा”

“गीतकार बनना चाहता हूँ” बड़ा सटीक जवाब देकर राघव फिर शून्य में देखने लगा

“हम्म…तो फिर हो जाये कोई गाना ” ज्ञानेश्वर ने मुस्कुराते हुए कहा और अपना एक हाथ हवा में थोड़ा ऊँचा उठा दिया, राघव का चेहरा अब तन गया और वो बुरी तरह झुंझलाते हुए बोला “मैं गायक नहीं हूँ”

सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे, कौशल्या फिर बोलीं

“अ बेटा…तो क्या हुआ जो गायक नहीं, जो लिखते हो वही कुछ सुना दो ना, तुम्हारी तो आवाज भी अच्छी है”

“बस्स बहुत हुआ माँ, नहीं हो सकता मुझसे” वो मुँह फेरते हुए बोला

“राघव” कौशल्या थोड़ा तल्खी से बोली

“आप की बात मानकर गलती की मैंने…इतनी ही देर में घबराहट से मेरी हालत खराब है, सारी जिंदगी नाटक कैसे कर पाऊँगा मां”

“रा घ व …” इस बार नारायण तेज़ आवाज में बोले

“मुझे माफ कर दीजिए बाऊ जी, शादी के अलावा जो कहोगे सो करूँगा..लेकिन शादी…उसके अलावा किसी और से हरगिज़ नहीं करूँगा…” इतना बोल राघव तेज़ी से कदम बढ़ाता घर के बाहर निकल गया…

दोंनो आये हुए आगन्तुकों ने कौशल्या और नारायण की ओर बारी -बारी से देखा, कौशल्या ने जहाँ साड़ी का पल्लू अपने मुँह पर रखते हुए नजरें नीची कर लीं,  वहीं नारायण जी ने बिना कुछ बोले अपने हाथ जोड़ दिए

“हे भगवान जब लड़का किसी और से पहले ही….. तो हमें बुलाया क्यों” कुसुमलता गुस्से में बोली, तो ज्ञानेश्वर ने उन्हें आँखो के इशारे से चुप कराया …और दोंनो चले गए…उनके घर से निकलते ही कौशल्या बोलीं

“वो कमबख्त..इतनी आसानी से राघव का पीछा नहीं छोड़ेंगी..नहीं छोड़ेगी”

“राघव ने आज जो किया है उसकी शादी होने से रही” नारायण हताश होकर बोले

“मैं भी माँ हूँ…उस कमबख्त से पीछा छुटा कर ही रहूँगी..बस बहुत हुआ… अब कुछ करना ही पड़ेगा” कौशल्या गुस्से में बोलीं……

“क्या करने वाली हो?” नारायण ने डरते हुए पूँछा

“देखते जाओ…” कौशल्या ने अपनी एक भौंह ऊपर उचकाते हुए गुस्से में कहा,

तभी

“मां जी , वो …वो …जेठानी जी के पेट में दर्द हो रहा है…लगता है प्रसव का समय आ गया है ” लता घबराते हुए बोली

” क्या…” चिंता में कौशल्या के मुंह से निकला और वो लगभग दौड़ती सी मीना के कमरे की ओर चली गयीं।

***

मोटरसाइकिल हवा से बातें करती दौड़ी जा रही थी..उसने खुश होकर अपने हाथ हैंडिल से हटा दिए…और अपने हाथ आसमान में चिड़ियों की तरह फैला दिए ..इतनी खुशी उसे अब से पहले कब महसूस हुई उसे खुद याद नहीं था… बस थोड़ी सी स्पीड और बढ़ जाए तो मजा आ जाये… ये सोचने भर की देर थी कि मोटरसाइकिल आसमान की ओर  उठ गयी और उड़ने लगी…वाह इतना अदभुद सुख..उसने मन ही मन सोचा ..अब होंठो की मुस्कान कानों तक फैल गयी थी..वो खुशी में था ही कि.. .. किसी ने आवाज लगा दी..मुझे नहीं सुनना कुछ भी .. सोचते हुए उसने मुड़कर देखा भी नहीं..कि किसी ने फिर आवाज दी…

“सर…सर … उठिए सर …अरे …कैसे अजीब -अजीब लोग आते हैं… ” नर्स ने उसे इस बार जोर से हिलाते हुए कहा और उसने चौंकते हुए आंखे खोल दी

‘ओह तेरी…सपना था’ सामने नर्स को देखकर वो बुदबुदाया

“सर …फॉर्म भरना है और फीस फिल करनी है आपको ” नर्स चिढ़कर बोली

“ओह्ह सॉरी …अ वो मेरी वाइफ..?” वो कुर्सी से उठते हुए बोला

“वो ऑपरेशन थियेटर में है..सब नार्मल है…कोई चिंता की बात नहीं.. आप फॉरमैलिटी पूरी कर दीजिए …”

“हॉं ..अभी करता हूँ..” कहते हुए वो एक कदम बढ़ा ही था..

“फॉर्म मेरे पास है मैं भर देती हूँ आप अपना नाम बता दीजिए बस्स” नर्स बोली

“ओह ओके ..सूरज….” उसने जवाब दिया

“पेशेंट का नाम?”

“चंचल…पत्नी है मेरी” सूरज ने जवाब दिया

“ठीक है ..यहाँ साइन कर दीजिए” उसने पेन सूरज की ओर बढ़ाते हुए कहा, सूरज ने फॉर्म पर साइन किये ..और फिर बैठ गया

*थोड़ी देर बाद *

नर्स तौलिए में लिपटा एक नवजात शिशु लेकर सूरज की ओर बढ़ी

“सूरज जी …मुबारक हो …

“रुकिये…प्लीज़ मत बताइए बेटा है या बेटी…पहले मैं सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चे को देखना चाहता हूँ” सूरज ने तेज़ आवाज में नर्स को आगे बोलने से रोक दिया

“अच्छा…ये लीजिये…” नर्स ने मुस्कुराते हुए बच्चा उसे सौंप दिया सूरज ने जैसे ही बच्चा अपने हाथों में लिया, एक पल के लिए खुशी से उसका चेहरा चमक गया और अगले ही पल तनाव से घिर गया। सूरज उस बच्चे को आश्चर्य से देख ही रहा था। कि उसका फोन घनघना उठा

“सूरज जी…खुशखबरी है…” जैसे ही सूरज ने फोन उठाया उधर से आवाज गूँजी

“हाँ ..वो…मैं बताने वाला था…लेकिन…”सूरज बच्चे की ओर देखता हुआ बोला कि उस आवाज ने उसे बीच में ही रोक दिया

“अरे यार तुम्हें कैसे पता…कि तुम्हारा प्रमोशन हुआ है”

“मुझे लगा मैं पिता…एक मिनट ..क्या कहा.. प्रमोशन?” आश्चर्य से सूरज के मुँह से निकला

” हां भई…बहुत मुबारक हो वो भी सैलेरी में पचास परसेंट की हाइक के साथ…पार्टी देने की तैयारी करो” फ़ोन पर उधर से किसी ने कहा और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया

सूरज के चेहरे पर तरह-तरह के भाव आने लगे….और वो आश्चर्य से बच्चे को घूरने लगा।

**

“सरोज…” सरोज को आवाज लगाने के साथ ही घनश्याम अपना चश्मा कुर्ते के किनारे से पोछते हुए किचिन तक गए

और किचिन के दरवाजे तक जाकर सरोज को देखकर ठिठक गए, सरोज भीगी आँखो से अंकित के फोटो को निहार रही थीं

“जरा बताओ तो क्या सामान लाना है बाजार से” वो अंकित की फ़ोटो को अनदेखा करते हुए फिर बोले

“सामान ?” सरोज ने खोए से स्वर में जवाब दिया

“अरे दीपावली के लिए कुछ तो सामान चाहिए होगा ना..” घनश्याम खीजते हुए बोले

“नहीं चाहिए..सूरज पहले ही बहुत सा सामान खरीद कर दे गया है” सरोज धीरे से बोलीं

“क्या…तुमने उससे क्यों मँगाया..?”

“मैंने उससे कुछ नहीं कहा..वो खुद ही रख गया…बड़ा भला लड़का है” सरोज प्रभावित होकर बोलीं

“खबरदार! जो तुमने किसी और लड़के को फिर से बेटा माना …पहले ही…” भावुकतावश बात पूरी ना कर पाए वो, और वहीं एक किनारे जमीन पर बैठ गए

“सुनो मेरा दिल कहता है…जैसे वो कहीं आस-पास ही हो..बस्स जो समय जा रहा है सो जा रहा है..कभी भी अचानक सामने आएगा…और कहेगा..माँ. खाने में कुछ है क्या …बड़ी भूख लगी है” सरोज कहीं खोई सी मुस्कुराते हुए बोलीं

“मैं पूंछता हूँ कब तक तुम्हारा ये पागलपन रहेगा..थक गया हूँ समझाते-समझाते कि नहीं रहा वो…(सरोज की ओर अपने हाथ बढ़ाकर दिखाते हुए) देखो अपने इन्हीं हाथों से उसकी अर्थी को कंधा दिया है मैंने…”

“बस्स कीजिये…मुझसे नहीं सुना जाता ” सरोज बिलखते हुए बोलीं

“ना सुनने से ..सच बदल तो नहीं जाएगा…सुनो सरोज ..जितनी जल्दी सच स्वीकार कर लो..उतना ही अच्छा है”

“मेरा दिल कहता है…”सरोज ने फिर कुछ कहना चाँहा

“मरे हुए कभी लौट कर नहीं आते सरोज…कभी नहीं..(फिर शांत आवाज में) अच्छा सुनो तैयार हो जाओ…चलो सत्संग में चलते हैं…जल्दी करो”

“फिर क्यों मेरा मन का एक कोना कहता है …कि मैं मिलूंगी उससे..क्यों उसकी मौत स्वीकार नहीं कर पा रहा मेरा मन ” सरोज धीमे से बुदबुदाती हुई किचिन से निकलीं और सत्संग में जाने के लिए साड़ी बदलने लगी

“मन को कुछ तो राहत मिलेगी सत्संग में” घनश्याम सरोज की ओर देखते हुए धीमे से बोले।

***

“क्या आप ही राव सर हैं” एक लगभग 27-28 साल की लड़की ने बंगले के मेन गेट से अंदर झांकते हुए जोर से पूँछा..

“हाँ मैं ही हूँ… कहिए..” राव सर ने जवाव दिया..वो गार्डन में बैठे चाय पी रहे थे

“मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है…प्लीज़ मुझे अंदर आने दीजिए..” लड़की विनती करती हुई बोली

“आप ऐसे अंदर नहीं आ सकती..और बिना अपॉइंटमेंट तो हरगिज नहीं” गेट पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने उस लड़की से कहा

“आपको इस मासूम का वास्ता” लड़की ने अपनी गोद से एक बच्चे को उठाया और राव सर को उस बच्चे को दिखाते हुए जोर से बोली

“आने दो इसे…”राव सर ने जब बच्चे को देखा तो अपने सिक्योरिटी गार्ड्स से कहा, गेट खुलते ही लड़की दौड़ती हुई अंदर आई और राव सर के पैरों को छूने के लिये झुक गयी

“अरर ये क्या..कौन हो तुम..कोई मदद चाहिए क्या मुझसे”

“मदद नहीं…न्याय चाहिए…नहीं तो आज का दिन मेरे और इस बच्चे के लिए आखिरी होगा..सिवाय मरने के कोई और रास्ता नहीं मेरे पास” लड़की ने बात पूरी करके एक तेज़ सिसकी भरी

“क्या? …आराम से बताओ…क्या समस्या है तुम्हारी…मैं हरसंभव मदद करूँगा” राव सर मरने की बात सुनकर घबराते हुए बोले

“आपने मदद का वादा किया है…पूरी बात सुनने के बाद कहीं भूल तो नहीं जाएंगे अपना वादा? ” लड़की रोती हुई बोली

“हरगिज़ नहीं..”

“तो सुनिए….आपका भतीजा राहुल…उसने मुझसे झूठे प्रेम का नाटक किया और शादी का वादा करके.. ..मेरे साथ.” इतना बोल वो राव सर की ओर पीठ कर के रोने लगी…राव सर का चेहरा तनाव और गुस्से में तन गया

“और क्या…बोलो और क्या..?.” राव सर ने थोड़ी तेज़ आवाज में पूँछा

“और उसने मेरे साथ …ओह कैसे कहूँ…फिर जब मैंने उसे बताया…कि मैं प्रेग्नेंट हूँ..उसने मुझ पर दवाव डाला कि बच्चे को …अहह…अहह..” कहते -कहते उस लड़की का गला रुंध गया…

राव सर घबराए से कुर्सी पर बैठ गए…

“देखिए इसे…मैं नहीं कर पाई खुद का दिल इतना कठोर जो इसे पैदा होने से पहले ही मरवा देती…नहीं कर पाई”

वो लड़की राव सर की आंखों के सामने नन्हें बच्चे को लाते हुए बोली..ये सुनकर राव सर ने गुस्से में अपने दाँत भींच लिए

“सारी दुनियां में मेरे लिए कहीं कोई जगह नहीं…मेरा परिवार भी मुझे अपनाने को तैयार नहीं ..आप आखिरी उम्मीद हैं…नहीं तो सिवाय मौत के मुझे कोई नहीं अपनाएगा”

“क्या नाम है तुम्हारा?” राव सर बच्चे की ओर देखते  हुए बोले

“वैशाली..” लड़की ने जवाब दिया

“जानती हो कितनी बड़ी बात कह रही हो तुम…अगर तुम्हारी बात एक प्रतिशत भी गलत साबित हुई…तो…” राव सर लड़की की ओर देखते हुए बोले

“तो जैसा आप चांहे वैसा कीजिये…” वो सर की बात काटते हुए बीच में बोल पड़ी

“हम्म….सुनो बेटी मौत किसी समस्या का हल नहीं”

“लेकिन ऐसी हालत में करूँ भी तो क्या …राहुल तो मेरी शक्ल भी देखना नहीं चाहता.” वैशाली रोते हुए बोली, राव सर ने देखा लड़की सभ्रांत घर की दिख रही थी…उन्हें उस पर तरस और राहुल पर गुस्सा आ रहा था…

“…मैंने कहा ना मैं मदद करूँगा…कम से कम मरने तो नहीं दूँगा तुम्हें …चलो अंदर कुछ खा लो..और थोड़ा आराम कर लो..बस्स एक बार राहुल को आने दो..मैं बात करता हूँ उससे” कहते हुए राव सर अंदर जाने लगे..लड़की के 

चेहरे से भी चिंता खत्म होते दिखी..वो राव सर के पीछे-पीछे चल दी…कि तभी

“तू …यहाँ…इस घर में …इतनी हिम्मत ..” राहुल मेन गेट से ही चीखा

“राहुल…” राव सर ने तेज़ आवाज में उसे रोका

” अंकल..जरूर इस लड़की ने झूठी कहानी सुनाई होगी ..कि इसकी गोद में मेरा बच्चा है….ऐसी लड़कियां दौलत पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं” 

बोलते हुए राहुल तेज़ी से दौड़ता हुआ वैशाली के पास तक आ गया..राहुल का कमजोर हो चुका शरीर कांप रहा था..

“..कम से कम इस मासूम की खातिर तो सच बोलो” वैशाली गुस्से में बोलीं

“वैशाली…”चीखते हुए राहुल ने वैशाली पर झापड़ मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि आगे बढ़कर राव सर ने राहुल का हाथ पकड़ लिया..

“क्या सच में तुम इस लड़की को नहीं जानते…?” राव सर ने घूरती नजर से राहुल की ओर देखते हुए पूँछा

“नहीं…मैं इसका नाम तक नहीं जानता अंकल..इससे मेरा कोई वास्ता नहीं…और…ना ही मैं इस बच्चे से..ना जाने किसका पाप उठा लायी है…”

“बस्स करो …बस्स करो…”वैशाली रोते हुए बीच में ही बोल पड़ी

“तुम इसका नाम तक नहीं जानते तो तुमने इसका नाम पुकारा कैसे..” राव सर ने कहा तो राहुल का चेहरा संयत हो गया

“तुम्हें एकदम सटीक अंदाजा कैसे हुआ कि ये लड़की बिल्कुल यही कहानी सुनाने वाली है मुझे” राव सर ने तेज़ आवाज में पूँछा तो राहुल मुंह फेर लिया

“बन्द करो अपना ड्रामा…जो थोड़ा बहुत अंदेशा था इस लड़की पर मुझे, वो भी तुम्हारे इस रवैए से साफ हो गया है..मैं  जानता हूँ ये लड़की सब सच कह रही है… तुम्हारी फितरत से अच्छी तरह वाकिफ हूँ मैं..”

“मेरे लिए लड़कियों की कोई नहीं है..अंकल..और आप इस लड़की की वकालत कर रहे हैं..अगर ये इतनी ही शरीफ होती तो बिना शादी माँ ना बन गयी …”

राहुल अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही ‘चटाक’ की आवाज के साथ राव सर ने उसे थप्पड़ मार दिया था

“शराफत की बात तो तुम ना ही करो तो ज्यादा बेहतर है…जरा देखो खुद को… नशे ने क्या हाल कर दिया है तुम्हारा..ऐसे में भी ये लड़की तुम्हें अपनाना चाहती है तो ये क्या कम बड़ी बात है…” राव सर की बात का कोई जवाब ना देकर राहुल अपना सिर नीचे किये बैठ गया

“सुनो राहुल…अपनी गलती सुधारने का मौका सबको नहीं मिलता…कल के कल वैशाली से शादी करो..नहीं तो मैं तुम्हें इस घर और जायदाद सबसे बेदखल कर दूँगा…” राव सर के कहने का राहुल ने कोई जवाव नहीं दिया तो वो फिर चीखे

” सुना नहीं …तुमने?”

“मैंने कभी आपकी कोई बात टाली है क्या?…अगर आपकी ख़ुशी मेरी शादी इस लड़की से कराने में ही है ..तो मुझे कोई एतराज नहीं” राहुल झल्लाकर बोला..

ये सुनकर वैशाली के गोल साँवले चेहरे पर मुस्कान खिल गयी…राव सर ने भी राहत की सांस ली

“क्या इस बच्चे का कोई नाम रखा है तुमने बहू बेटा” राव सर ने जब वैशाली को बहू कहकर पुकारा तो वैशाली ने खुद के कंधे पर पड़ा दुपट्टा उठाकर सिर पर रख लिया और

“जी नहीं…” कहते हुए उसने बच्चे को राव सर की गोद में दे दिया

“मैं रखता हूँ इसका नाम तुम दोंनो के नामों से मिलता जुलता….”विशाल”….. ” राव सर ने कहने के साथ ही बच्चे को थोड़ा हवा में उछाल दिया और उसे बापस पकड़ते हुए खुशी से चीखे ” मेरा पोता विशाल हा हा हा ….”

“स्साला बुढ्डा…मैंने कहा ना मैं नहीं अपनाऊंगा इस बच्चे को…कभी नहीं…किसी भी हालत में नहीं ” …राहुल दांत पीसते हुए धीरे से बोला

***

एक ग्रामीण छोटा इलाका ,रात के लगभग 11 बज रहे होंगे

खराब मौसम के चलते ना सिर्फ सारी सड़कें सुनसान पड़ी थीं, बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे गली के कुत्ते तक कहीं गायब हो गए हों… बस्स रह -रह कर बिजली चमक उठती थी…जो घोर अंधेरे में  कुछ पल का नज़ारा दिखा देती थी…

सुनसान सड़कों और गलियों में जहाँ तहाँ कुछ रिक्शे और मोटरगाडियाँ खड़ी थी..लोग घरों में दुबके हुए थे…  बादलों की तेज गढ़गढ़ाहट से कई बार तो ऐसा लगता जैसे वो टूट कर नीचे ही गिर पड़ेंगे……इस बार जैसे ही बिजली चमकी..एक सब्ज़ी का ढेला सड़क पर रेंगता सा नजर आया…जिस पर एक प्लास्टिक का बोरा रखा था,  

बोरे के सिरे को मजबूती से बांधा गया था…और उसे ढेल रही थी कम्बल से ढँकी एक छाया.. जो नामालूम किसी स्त्री की थी या पुरुष की..बार बार बिजली की धमक गूँजती जो हल्की दुधिया रोशनी से भरी होती तो उसके अगले पल ठेले की ‘कीं कीं’ करती आवाज ….जो यूँ तो हल्की ही थी..लेकिन रात के उस माहौल को शोरनुमां बना रही थी..

लगभग आधे घंटे भर तक वो छाया उस ठेले को गालियों और फिर सड़क से निकालती हुई एक सुनसान जगह ले आई थी, जो श्मशान था….और अब  मूसलाधार  बारिश  होने लगी थी…धुप्प अंधेरे में अब मात्र बिजली चमकने का ही सहारा था..उस छाया ने अंधेरे में ही इधर उधर देखने की कोशिश की..बिजली चमकी..और बिजली की चपलता से ही उसने अपने ऊपर पड़ा कम्बल उतार फेंका …

अब दिखने लगा था कि वो एक लड़की थी..ठेले के नीचे बनी एक लकड़ी की पट्टी पर रखा फावड़ा उसने उठाया और बड़े सधे कदमों से कुछ दूरी नापी …. बिजली फिर चमकी और कब्रिस्तान का वो माहौल उसे डरा गया..

अन्धेरे में उसे आस पास की कँटीली झाड़ियां और पेड़ खुद के पास सरकते से महसूस हुए, सांय सांय करती रात में कई आँखे खुद की ओर घूरती महसूस हुई..

उसने खुद का सिर झटका और खुद को मजबूत किया फिर… उसने खड्डा खोदना शुरू कर दिया…बार- बार बिजली चमकने से उसे खड्ढे की गहराई दिख जाती…ना जाने कहाँ की असीम शक्ति उसके हाँथो में आ गयी थी, वो पागलों की तरह जमीन पर फावड़ा चला रही थी…..अब उसके नाजुक हाथ छिल गए थे…खून बहने लगा था उनमें से ….

और घण्टों की कड़ी मेहनत के बाद जब फिर बिजली चमकी तो इस बार वो खड्ढे की गहराई को देख आश्वस्त हो गयी…और उसने फावड़े को एक ओर फेंक दिया फिर हाँफते हुए ठेले को ठेलते हुए उस खड्ढे तक लायी और बोरे का सिरा खड्ढे की ओर झुकाकर सिरे पर बंधी गाँठ को खोल दिया..

‘धम्म’ की आवाज के साथ एक लाश उस खड्ढे में गिर पड़ी, बिजली फिर चमकी और इस दूधिया रोशनी में उस लड़की के चेहरे पर नफरत और घृणा के भाव स्पष्ट रुप से देखे जा सकते थे..वो हाँफती सी फिर उठी और मिट्टी से उस खड्डे को भरने लगी थकान के कारण कई बार गिर पड़ती, लेकिन जल्दी से उठती और अपने काम पर लग जाती.

बहुत देर बाद उसका ये काम खत्म हुआ…

काम खत्म कर उसने अपना चेहरा आसमान की ओर उठा दिया जिस पर तेज़ पानी की बूंदें गिरने लगी, जो उसे असीम आराम का अनुभव दे रही थीं, 

वो वैसी ही बैठी बहुत देर तक हाँफती रही ..फिर उठी और ठेले को ठेलती लौटने लगी…एक पानी के तालाब में उसने, उस ठेले को धकेल दिया..और पूरी ताकत से एक दिशा में दौड़ गयी..

उसे भान तक ना था कि शुरुआत से ही एक परछाईं उसका लगातार पीछा कर रही थी!

***क्रमशः***

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