सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 4

राघव जितने भी निवाले रेशमा को खिला रहा था, वो सारे निवाले प्लास्टर उघड़ी उस किचिन की स्लैप पर बिखर रहे थे…जिनकी ओर राघव का ध्यान ही नहीं जा रहा था।

 4.

“आ गयी तुम” तसल्ली भरे अंदाज में वो उसकी हरी चूड़ियों को देखते हुए बोला

“हम्म… आज इतने खुश क्यों नजर आ रहे हो..बताओ तो” उसने मुस्कुरा कर पूँछा

“खुश क्यों हूँ…(एक बॉक्स उसकी ओर बढाते हुए) ये देखो.. तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा…(फिर जैसे कुछ ध्यान आ गया हो) रुको मैं खोलता हूँ…(बॉक्स खोलकर उसमें से झुमके उसे दिखाते हुए) कैसे लगे?”

लाल मीना से जड़े हुए गोल्डन झुमके देखकर वो खुश होकर बोली 

“तुम्हें याद रहा..मेरा जन्मदिन…

“भूला कब हूँ?”

“हम्म..कभी नहीं…(फिर झुमकों की ओर देखते हुए) आहह… ये बहुत सुंदर हैं…राघव”

“पहना दूँ” उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए राघव ने पूछा,  जवाब में वो बस्स मुस्कुरा भर दी, राघव ने एक झुमका उसके कान के पास लाकर पहनाने की कोशिश की तो झुमका छिटककर नीचे जा गिरा, राघव उसे उठाने नीचे झुक गया और जब उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो चेहरे से खुशी की रंगत गायब थी….

हरी चूड़ियों वाली वो लड़की गायब जो हो चुकी थी

“रेशमा…ओह्ह …चली गयीं तुम…” राघव दुखी होकर बोला और आँखों में भर आये आँसू रोकने के लिए पलके बंद कर लीं और बिस्तर पर कटे पेड़ सा गिर पड़ा

अब बन्द आँखो से उसे मुस्कुराती हुई रेशमा दिख रही थी…और राघव की आँखो से निकलते हुए आँसू तकिए पर गिर रहे थे।

***

“पंडित जी” मंदिर में उर्मिला ने पूजा की थाली पंडित जी की ओर बढ़ाई…और हाथ जोड़कर आँखे बंद कर लीं…कुछ पल ही बीते होंगे कि उन्होंने जल्दी से अपनी आँखें खोल दी और इधर-उधर देखा

“हे भगवान कहीं मेरी ही बुद्धि ही तो नहीं भ्रष्ट हो गयी” खुद में बुदबुदायी तब तक पंडित ने भोग लगाकर थाली बापस पकड़ा दी उर्मिला को, वो मंदिर परिसर से बाहर निकलीं…और कुछ कदम ही बढ़ाये होंगे कि वो जल्दी से पीछे की ओर पलटीं

“समझ नहीं आ रहा ऐसा क्यों लग रहा है कि कोई घूर रहा है मुझे” 

फिर तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दीं…

**

“सारे क्लास के सामने क्या जरूरत थी इस मोटू को जो स्पेशल मुझसे ही बोला लो राई जरा ये पेन बेचकर दिखाओ…बताओ भला आजकल कौन ऐसे बेचेगा…और कौन सा कस्टमर ऐसे खरीदेगा…अरे थोक के भाव में मिलते हैं पेन…जाने कहाँ से नमूने ढूंढ कर लाता है ये कॉलेज फेकल्टी के नाम पर”  राई तेज़ कदमों से कॉलेज से घर की ओर बढ़ रही थी..और साथ ही खुद से बुदबुदा भी रही थी…एम.बी.ए. मार्केटिंग की स्टूडेंट राई अपने कंधे तक के बालों को बार-बार पीछे की ओर धकेल रही थी…जो हवा की वजह से आगे की ओर आ जाते थे……

कद बामुश्किल पाँच फ़ीट 3 इंच का होगा, पतले होंठ और औसत आँखे… इकहरे बदन और छोटे चेहरे वाली राई हॉलीबुड एक्टर ‘टॉम क्रूज की जबरदस्त फैन ही नहीं है..बल्कि उसका क्रश भी है टॉम पर….तभी उसे एक लड़का सामने से खुद की ओर आता हुआ दिखा

“बा..य” वो लड़का साइकिल पर बैठकर पीछे की ओर किसी को देखते हुए बोल रहा था

“देखो एक और नमूना..साइकिल आगे की ओर चला रहा है…और देख पीछे रहा है..” राई उसे देखते हुए बुदबुदाई

और उसी पल…

“आ ..आ ..ओह…” राई के मुंह से तेज़ आवाज में निकला.. 

‘धड़ाक’ की आवाज के साथ वो लड़का साइकिल समेत राई से टकरा गया जिससे राई नीचे गिर पड़ी…और बिल्कुल उसके पास ही वो लड़का भी साइकिल समेत औंधे मुँह सड़क के किनारे गिरा। राई फुर्ती से उठ कर खड़ी हो गयी…और लड़का भी जल्दी से उठ गया। उसके उठते ही

“आह….इडियट ..” राई ने उसे थप्पड़ मारने के लिए हाथ  उछाला और उस लड़के ने राई की कलाई को पकड़ लिया।

“हाउ डेयर यू…?” राई गुस्से में चीखी

“ज जी …देखिए…पहले मेरी बात सुन लीजिए …फिर जो करना है कीजिये..”वो लड़का दवी आवाज में बोला

“हाथ… छोड़ो.. मेरा..” राई गुस्से में चीखी

“छोड़ दिया..देखिए मैं माफी मांग…”

और उसी पल..’चटाक’ की आवाज के साथ राई ने उसे थप्पड़ मार दिया …वो लड़का हाथ छोड़कर अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही..वो स्तब्ध रह गया

“एक तो इतनी बड़ी बदतमीज़ी…सायकिल समेत टकरा गए…अरे बिल्कुल ही अंधे हो क्या…आँ…कौन चलाता है ऐसे साइकिल…ऊपर से मेरा हाथ पकड़ लिया…हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की” 

वो उसे घूरते हुई गुस्से में बोली

“मैं आपसे मांफी मांग रहा था…” वो लड़का अपने गाल पर हाथ रखे हुए धीरे से बोला

“एहसान कर रहे थे क्या…(फिर लड़के की आवाज की नकल करते हुए) माफी मांग रहा था…दिन ही खराब है आज का मेरा..सारे नमूनों से मेरा पाला ही पड़ेगा…हद्द है” 

फ़िर उसने सड़क पर गिरी हुई अपनी किताबें उठायीं ..और पैर से निकल रहे खून को रुमाल से पोछने लगी..

“….चलिए मैं आपको डॉ को दिखा देता हूँ” वो राई के पास आता हुआ बोला…राई के पैर से निकलते हुए खून को देखकर उस लड़के को अपनी गलती का एहसास हो रहा था

“दूर रहो…और शुक्र मनाओ…कि पिस्टल नहीं है मेरे पास वरना गोली ही मार देती तुम्हें आज..” ये सुन कर लड़का सकपकाते हुए पीछे हट गया…

“गोली ..इतनी सी गलती के लिए?” वो आँखे बड़ी करते हुए बोला

“इतनी होगी तुम्हारे लिए…मेरे लिए बहुत बड़ी है…मुझे तो ये तक मंजूर नहीं कि कोई देखे भी मुझे सिवाय मेरे टॉम क्रूज के” वो धीमी आवाज में बोली, फिर एकाएक तेज़ आवाज में लगभग चीख पड़ी, ” फिर तुमने तो मेरा हाथ .”फिर एक नजर गुस्से में उसे घूरते हुए उठ कर चल दी…और राई के दूर जाते ही…

“टॉम…(मुस्कुराकर) हुम्म…..सपने तो देखो टॉम के…हद्द ही हो गयी यार …कुछ भी ”   उसने अपनी सड़क पर गिरी हुई साइकिल उठायी…फिर हँसा “सिवाय टॉम क्रूज के ” फिर साइकिल पर बैठा, पैडल मारा..और अगले ही पल उसकी साइकिल मानों हवा से बातें करने लगी।

**

उर्मिला घर मे घुसते ही सीधी अपने कमरे में गयीं और पूजा की आलमारी में रखी शिव की मूर्ति खिसका कर एक चाबी निकाली फिर पास ही रखा एक टीन का एक बड़ा सा बक्सा खोला जिसमें उनके कपड़े, कुछ पुराने सामान और दो चार पूजा की किताबें रखीं थीं.. उर्मिला ने बक्से की तलहटी में रखी एक छोटी सी फोटो फ्रेम निकाली और खुद के सीने से लगा ली…

“….कई दिनों से ना जाने ऐसा क्यों लगता है कि मंदिर में कोई घूरता है मुझे………..समझ नहीं आ रहा क्या करूँ…किसी से कह भी तो नहीं सकती..इन दिनों बहुत याद आती है तुम्हारी …बहुत कमी महसूस करतीं हूँ ” 

वो आंखे बंद कर बोलती जा रहीं थी और आँखो से आँसू गिरते जा रहे थे…

“अरे यार नहीं जाना पिक्चर देखने… कहा ना” कहते हुए आकाश सीढ़ियों से ऊपर आया

“कमोन यार …तो बोल कहीं और चलें क्या…कुछ तो कर यार..” और ये कहते हुए रोहित उसके पीछे आया, दोंनो की आवाज सुनकर उर्मिला ने जल्दी से अपने आंसू पोंछे और तस्वीर बापस बक्से में रखने लगीं…अभी रख भी नहीं पायीं थी कि आकाश उनके कमरे के दरवाजे तक पहुंच गया

” बुआ जी आप मंदिर से कब आई..मैने देखा ही नहीं”

“बस्स अभी आई …”कहते हुए उर्मिला ने जल्दी से तस्वीर को बिल्कुल तली में रखकर उसके ऊपर कपड़े रखना शुरू कर दिया..

“ये क्या है…मुझे भी दिखाइए ना…” आकाश ने उन्हें तस्वीर रखते देख पूँछा

” कुछ नहीं…कुछ भी तो नहीं” उर्मिला ने जल्दी से बक्सा बन्द किया और बक्से में ताला लगाने लगीं…आकाश का ध्यान उनके काँपते हाथों की ओर चला गया…

“आप ठीक तो हैं बुआ जी”

“अहं हाँ.. हाँ मुझे क्या हुआ…ठीक हूँ…कुछ बना कर लातीं हूँ तुम दोंनो के लिए” बुआ ने चाबी अपनी साड़ी के छोर से बाँधी और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गयीं।

आकाश का ध्यान ताले की ओर चला गया..जो अब भी हल्का सा हिल रहा था!

“चल उधर खड़े होते हैं” रोहित, आकाश का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोला

“मैंने मान ली है तेरी बात यार…पढ़ाई पर ध्यान लगाऊंगा..”

छत से गली की ओर झांकते हुए रोहित बोला

“हम्म…अच्छी बात है…” रोहित के कंधे पर हाथ रखकर आकाश बोला वो भी छत से गली की ओर झांकने लगा था…

पतली सी गली थी…जिसमें से कभी-कभी इक्का-दुक्का लोग निकल जाते थे…

“रोहित??..” आकाश गहरी सोच के साथ बोला

“हम्म”

“तुझे बुआ का व्यवहार कुछ अजीब नहीं लगता…यार?”

“पता नहीं….वाह क्या मस्त आयटम है”

“आयटम…?” आकाश ने चौंकते हुए पूँछा

“अबे नीचे देख…वो पीले सूट वाली…मैं जानता हूँ इसे चौक वाली गली में रहती है” रोहित मुस्कुराते हुए धीरे से बुदबुदाया

“अभी तो तूने कहा कि पढ़ाई पर ध्यान लगाएगा..?” आकाश गंभीरता से बोला

“अबे यार..वो तो अब भी कह रहा हूँ…और एक मिनट…तुझे ये सब चीज़े समझ क्यों नहीं आतीं?”

“चीजे..ये लड़कियां ताड़ना ..इसकी बात कर रहा है…हें?”

“ना नहीं..”

“तो?..”

“कोई लड़की तेरी लाइफ में नहीं है …इस उम्र तक भी नहीं…मुझे तो बड़ी चिंता होती है तेरी”

“इसमें चिंता की क्या बात है ?”

“बात है चिंता की…ये नॉर्मल है …होना चाहिए…तुझे सच में कोई लड़की पसन्द नहीं आई अब तक…या छुपा रहा है मुझसे”

“अबे पागल हुआ है क्या…ऐसा कुछ होता तो सबसे पहले तुझे ही बताता…”

“सब नॉर्मल है ना..?” रोहित ने संजीदगी से आकाश की आंखों में देखते हुए पूँछा

“क्या… मार डालूंगा तुझे” कहते हुए आकाश ने अपने हाथों की मुठ्ठियां बनाते हुए झूठमूठ रोहित के पेट पर मारने का नाटक किया

“अबे मजाक कर रहा हूँ यार…” रोहित पीछे हटते हुए बोला

“वही तो ये सब नॉर्मल है ….तो बुआ ने शादी क्यों नहीं की..”? आकाश सोचता हुआ बोला

“क्या तू भी यार बुआ की शादी का टॉपिक पकड़ कर बैठ गया…अरे क्यों गढ़े मुर्दे उखाड़ रहा है…इतना ही शौक है तुझे तो मेरी सोच…सोच कैसे मेरे और दीक्षा के बीच आई ये दूरी कम हो और हमारी शादी हो जाये” रोहित ने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी आँखे बंद कर लीं

“चल चाचा जी से पूंछते हैं” आकाश बोला

“मेरे और दीक्षा की शादी के बारे में” रोहित हँसता हुआ बोला फिर आकाश को गंभीर देखकर बोला

“अबे छोड़ ना…वही रटा रटाया जवाब मिलेगा जो मुझे मिला…”

“कैसा  जवाब ?.”

“मैंने एक दो बार पूँछा तो पापा ने बताया..कि ‘बहुत कोशिश की तेरी बुआ की शादी करने की …लेकिन उन्होंने की ही नहीं’…छोड़ इस सबको…चल कहीं पिक्चर देखने चलते हैं”

“नहीं…अगर उनकी खुद की इच्छा ही नहीं होती तो …वो खुश दिखतीं”

“मुझे तो वो खुश ही दिखती हैं” रोहित हँसते हुए बोला

“खुश कैसे?..देखा नहीं हमेशा काली या सफेद साड़ी पहने बस इस मंदिर से उस मंदिर घूमती रहती हैं…चेहरे पर खुशी नजर ही नहीं आती…अरे शादी ही तो नहीं की…इसमें ऐसा क्या…जो इंसान सारे सुखों को ही दरनिकार कर दे…”

“…वैसे बात तो ठीक है तेरी…..मैंने भी उन्हें खिलखिलाकर हँसते हुए कभी नहीं देखा…इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया मेरा …लेकिन अचानक तुझे बुआ की इतनी क्या चिंता हो रही है..” रोहित कुछ सोचते हुए बोला

“यार रोहित…अभी वो कुछ देख रही थीं…और जब मैंने कहा मुझे भी दिखाइए तो उन्होंने मना कर दिया…”

“ओह्ह तो ये बात है….”रोहित हँसते हुए बोला लेकिन जब आकाश को कहीं खोया हुआ देखा तो आगे बोला

“यार आकाश …बुआ होने से पहले वो एक लेडी भी तो हैं…होगा कुछ…अब हर चीज़ तो नहीं दिखाई या बताई जा सकती हम लड़कों को…प्राइवेसी नाम की भी कोई चीज होती है यार”..

बात पूरी कर रोहित ने आकाश के कंधे पर हाथ रख दिया।

“ना…ये बात नहीं है…अगर ये बात होती तो वो रो क्यों रही होतीं?”

“क्या?” चौंकते हुए रोहित ने प्रतिक्रिया दी

“हम्म…मैंने उन्हें आंसू पोंछते हुए देखा…और तुमने शायद ध्यान नहीं दिया जब वो बक्से में ताला लगा रही थीं..उनके हाथ कांप रहे थे…”

“ओह्ह…ऐसा…हम्म लगभग दौड़ती सी सीढ़ियों से उतरी तो  थीं वो…मगर…”रोहित कुछ याद करता सा बोला

“कोई दुख हैं उन्हें…जो वो शायद किसी से कह नहीं पा रहीं” आकाश बोला

“क्या दुख होगा यार…ना पति ना बच्चे..हो सकता दादू या दादी की याद आ गयी हो…अब माता -पिता की याद तो किसी को भी आ सकती है। उन्हीं की तस्वीर देख रहीं होंगीं”

“ये बात होती..तो फिर ताला क्यों लगातीं..और हाथ क्यों काँपते” आकाश के ये बोलते ही रोहित भी किसी  सोच में गुम हो गया…

**

एस.एन.पी.जी.कॉलेज

एक गोल-मटोल लगभग 50 वर्ष के सज्जन से दिखने वाले प्रोफेसर चौहान व्हाइट बोर्ड पर कुछ लिख रहे थे …कि उनके पास एक कॉल आया जिसे उन्होंने क्लास में ही रिसीब कर लिया जिससे पूरी क्लास का ध्यान उनकी ओर ही चला गया

“जी सर…जी बहुत अच्छा…हाँ हाँ …कोई प्रॉब्लम नहीं…क्या क्लास के बाहर….ओके सर” कहते हुए उन्होंने फोन रखा और वो मुस्कुराते हुए क्लास की ओर मुंह करके बोले “स्टूडेंटस..अब मैं किसी से आपको मिलवाना चाहता हूँ…ये हैं मिस्टर ,..(फिर बाहर की ओर झांकते हुए) आइए  अंदर आइए…एक पतले दुबले लगभग सत्ताईस वर्षीय लड़के ने क्लास रूम में जैसे ही कदम रखा…

उसे देखते ही राई ने अपनी हथेली मुँह पर रख ली और आंखे बड़ी करते हुए बुदबुदाई “ओह्ह माई गॉड”

“..मिस्टर नीरज…नीरज ने काफी पहले ही अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर ली थी…..हाल ही में इन्होंने अपनी एम.बी.ए. पूरी करने के बारे में सोचा…हम सबको इनका उत्साहवर्धन करना चाहिए….(राई को छोड़कर सबने तालियां बजा दी) आप लोगों को ये जानकर बहुत खुशी होगी कि मिस्टर नीरज के पिता इस कॉलेज के सबसे बड़े ट्रस्टी हैं…नीरज सेशन के बीच में आये हैं …इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि आप सब लोग इनकी मदद करेंगे” सबने फिर से तालियां बजा दीं

“हद्द हो गयी यार…” राई अपने सिर पर चपत लगाती हुई बुदबुदाई

नीरज मुस्कुराते हुए एक खाली सीट की ओर बढ़ने लगा …तभी उसकी नजर राई पर चली गयी…”हें” और वो चौंक गया

“क्या हुआ नीरज…सीट पसंद नहीं आई क्या?” प्रोफेसर चौहान ने मिश्री घुली आवाज में पूँछा

“नहीं सर…अच्छी है…बल्कि बहुत अच्छी है” नीरज जल्दी से बोला

“तो बैठ जाइए फिर”

“ज जी…” नीरज ने एक नजर राई की ओर देखा और बैठ गया

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“सामने आओ ना…रेशमा……जानती हो जिंदगी से अभी से ही थक गया हूँ..बहुत थक गया हूँ” राघव ने अपने बेड पर लेटते हुए कहा और चुप होकर कमरे की छत को घूरने लगा कुछ मिनट बीत गए लेकिन उसे रेशमा नहीं दिखी…तो उदास होकर राघव बोला

“जानती हो इस वीरान घर में अकेले रहना सो भी होश में …बहुत मुश्किल है…. मैं इस घर में हूँ तो तुम्हारे ही आसरे”

“जानते हो आज क्या है ..?” वो किवाड़ की ओट से झांकती हुई बोली,

“आ गयी तुम…बताओ तो क्या है…” राघव खुशी से चहकते हुए बोला

“आज जन्मदिन है तुम्हारा…तुम आज भी देर से आये हो..”

“क्या…ओह्ह हाँ…आज तो जन्मदिन है मेरा ..तुम्हारे जन्मदिन के ठीक अगले दिन ही तो आता है” वो याद करते हुए बोला

“पता है सुबह से कुछ नहीं खाया..बड़ी भूख लगी है..” वो बच्चे की तरह इठलाते हुए बोली

“क्या तुमने कुछ खाया नहीं …?” राघव चिंता में बोला

“तुमने भी कहाँ कुछ खाया है..बताओ तो क्या खाओगे…” उसने मुस्कुराते हुए पूँछा.. राघव उसकी मुस्कान देख कर खुद भी मुस्कुरा उठा

“चलो तुम्हारी पसन्द के आलू परांठे बनाते हैं…” राघव किचिन की ओर जाते हुए बोला

“ठीक है…”

“बस्स ठीक है से काम नहीं चलने वाला…चलो किचिन में बैठी रहना…” राघव हँसते हुए बोला और किचिन में चला गया

कुकर में आलू रखकर गैस पर चढ़ा दिये…परात में आँटा निकाला फिर रेशमा की ओर देखते हुए बोला

“सुनो…रेशमा तुम यहाँ स्लेप पर बैठो और देखो कितनी जल्दी मैं परांठे बनाता हूँ” राघव आंटे से सने हाथ झाड़ते हुए बोला तो प्रतिक्रिया में वो मुस्कुरा दी…

राघव बड़े जोश मे काम करने लगा…. बीच-बीच में स्लैप पर बैठी रेशमा को देख लेता…

थोड़ी ही देर में आलू के परांठा तैयार हो गया….

“ये लो …जरा बताओ तो कैसा बना है”पराँठे का एक निवाला राघव ने रेशमा की ओर बढाते हुए कहा

“पहले तुम खाओ…” रेशमा बोली

“नहीं तुम्हें भूख लगी थी ना…लो पहले तुम खाओ”..

“नहीं पहले तुम…”

“क्या रेशमा…ये पहले तुम…पहले तुम…के चक्कर में दूसरा पराँठा नहीं बना पाऊँगा मैं…अच्छा एक काम करते हैं..दोंनो साथ ही खाते हैं…ठीक है ना? राघव ने पूँछा तो रेशमा ने सहमति में सिर हिला दिया

“ठीक है तो पहले मैं ही खाता हूँ…(मुँह में निवाला रखते हुए) वाह बहुत स्वदिष्ट बना है…लो अब तुम्हारी बारी” राघव ने एक निवाला रेशमा की ओर बढ़ा दिया

“सच में बड़ा स्वादिष्ट बना है” रेशमा बोली

“तो लो..खाओ ना” राघव ने बड़े खुश होकर जल्दी से एक और निवाला रेशमा की ओर बढ़ा दिया…

“जानती हो आज मेरा गाना डायरेक्टर को बहुत पसंद आया..ये देखो ” जेब से बाहर झांकते नोट वो रेशमा को दिखाते हुए बोला

“वाह..पैसे भी मिल गए…तो अब क्या करोगे?” रेशमा ने उत्सुकता से पूँछा

“तुम्हीं बताओ क्या करूँ?”

“मेरी मानो तो  कहीं घूम आओ..कब से कहीं गए ही नहीं हो”

“कहाँ जाऊँ…मेरी दुनिया तो वहीं है जहाँ तुम हो…और तुम इस घर में हो…”राघव मुस्कुरा कर बोला और एक और निवाला उसने रेशमा की ओर बढ़ा दिया…)

शायद एक दशक पहले की बनी हुई ये हॉलनुमा किचिन जिसकी छत मकड़ी के जालों से अटी पड़ी थी…उसी छत से एक लंबी डोरी किचिन के बेंचोंबीच झूल रही थी…उसी के सिरे पर एक बल्ब लगा था जो बेहद मद्दम दूधिया रंग की रोशनी बिखेर रहा था। उसी मद्द्म रोशनी में राघव बड़े प्यार से एक-एक निवाला रेशमा को खिला रहा था..

“ठीक है कहीं मत जाओ…जैसी तुम्हारी मर्ज़ी” रेशमा मुस्कुराकर बोली तो राघव खुश हो गया..

राघव जितने भी निवाले रेशमा को खिला रहा था, वो सारे निवाले प्लास्टर उघड़ी उस किचिन की स्लैप पर बिखर रहे थे…जिनकी ओर राघव का ध्यान ही नहीं जा रहा था।

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“ठीक है ..तो सबको समझ आ गया होगा कि इस टॉपिक को करने के लिए एक्सेल में एक्सपर्ट होना कितना जरूरी है…..” चौहान सर ने व्हाइट बोर्ड पर पढ़ाने के बाबजूद भी अपने हाथ ऐसे झाड़े जैसे हाथ पर चौक लग गया हो

“ओह गॉड…मैं तो बिल्कुल भूल ही गयीं हूँ एक्सेल..”राई सिर पर हाथ रखते हुए धीरे से बोली

“नीरज, आपको एक्सेल आता है ना” चौहान सर ने बहुत मीठी आवाज में नीरज से पूँछा

“जी सर, मैं एक्सेल में एक्सपर्ट हूँ…” नीरज मुस्कुराते हुए बोला..राई ने ये सुना तो नीरज की ओर एक नजर देखा और फिर अपना लेपटॉप देखकर बुदबुदाई “हुम्म.. बड़ा आया एक्सपर्ट”

“ठीक है तो…एक पांच नम्बर का टेस्ट हो जाये…इसके मार्क्स आपके इंटर्नल एग्जाम में जुड़ेंगे…”चौहान सर ने बोलने के साथ ही बोर्ड पर लिखना शुरू कर दिया

“तो ये रहा आपका असेस्मेंट…आपको पन्द्रह मिनट के अंदर इसे सॉल्व करना है वो भी एक्सेल के साथ..मैं अभी आया” चौहान सर क्लास से चले गए…और सारे स्टूडेंट असेस्मेंट को पूरा करने में जुट गए..

“क्या यार ये चौहान सर भी…जिसे एक्सेल ना आता हो वो क्या करे बेचारा…सीधे ही असेस्मेंट…अरे पूंछना तो चाहिए”

एक लड़का चिढ़ते हुए बोला

“हाँ यार…एक दो दिन का टाइम ही दे देते…एक्सेल सीखने के लिए”…दूसरा लड़का बोला..”सही कह रहे हो यार”

“एकदम सही बात” .एक दो और स्टूडेंट्स ने उनकी बात में सहमति दी और घुसुर- फुसुर के बीच सब अपना-अपना असेस्मेंट करने में जुट गए

“अरे यार ये दसमलब के बाद दो डिजिट्स क्यों नहीं टाइप हो रहे…क्या मुसीबत है…मुझे याद क्यों नहीं आ रहा इसे कैसे करते हैं” राई झुंझलाई..नीरज उसे झुंझलाते देख कर मुस्कुराया उसने घड़ी की ओर देखा बस्स 2 से 3 मिनट  बाकी रह गए थे पंद्रह मिनट पूरे होने में …

“मे आई हेल्प यू?” बिना कुछ सोचे समझे वो राई के पास आकर बोला

“नो…थैंक्स..” राई ने कड़वाहट से जवाब दिया

“केवल 2 मिनट बाकी रह गए हैं…मुझे हेल्प करने दो..”

और राई की प्रतिक्रिया जाने बगैर ही नीरज आगे बढ़कर राई के लेपटॉप पर फॉर्मूला टाइप करने लगा

“मैंने कहा ना मुझे हेल्प नहीं चाहिए…” राई चिढ़कर बोली

“अब टॉम तो अमेरिका से इन दो मिनटों में यहां आपकी हेल्प करने आ नहीं सकता ना” नीरज मुस्कुराते हुए धीरे से बोला तो राई उसे गुस्से में घूरने लगी

“आयी थिंक आपको ये कूल लुक इस स्क्रीन पर देनी चाहिए..देखो इसे ऐसे करते हैं….” नीरज ने स्क्रीन की ओर इशारा किया….और ना चाहते हुए भी राई स्क्रीन की ओर देखने लगी

“और यहाँ ये…बस्स हो गया”…उसने दो डिजिट वाली प्रॉब्लम सॉल्व करके लैपटॉप उसकी ओर खिसका दिया था

“बस्स… ये तो आसान था…”राई आश्चर्य से बोली

“हम्म…अच्छा वो.. आ..मैं उस दिन की गलती के लिए शर्मिंदा हूँ..” नीरज विन्रम आवाज में बोला

“बस्स टाइम अप…कोई कुछ नहीं करेगा अब…” राई कुछ बोलती इससे पहले ही चौहान सर बोलते हुए क्लासरूम में दाखिल हो गए और उन्हें देखकर नीरज बापस अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।

***

“क्या हो सकता है ऐसा. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा ” रोहित सोचते हुए बोला

“कुछ तो ऐसी बात जरूर है..जो बुआ को दुखी भी कर रही है…और वो इसे किसी को बता नहीं पा रहीं हैं”

“हम्म …और उनके बिना बताए हम जान भी तो नहीं सकते” रोहित ये डिस्कशन खत्म करने के मूड में दिखा

“तो क्या करें…उन्हें अकेला छोड़ दें.?..सारी जिंदगी उन्होंने हमारे परिवार को समर्पित कर दी अपनी…और हम सब देख कर भी अन्जान बनें रहें…मैंने तो आज देखा है… क्या पता ना जाने वो कब से परेशान हों” आकाश थोड़े ताव में आते हुए बोला

“तुझे क्या लगता है…मुझे उनकी खुशियों की परवाह नहीं..?लेकिन बता ना.. पता कैसे करें…क्योंकि पूंछने से तो वो बताने से रहीं ?”

“हम्म..हम्म ..कैसे पता करें?” आकाश कुछ सोचते हुए बोला

“मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा”

“..हम बक्सा खोलेंगे…” आकाश निश्चित करते हुए बोला

“बक्सा…बुआ का बक्सा..बुरा आइडिया है..अगर पता लग गया तो ..बहुत हंगामा होगा…बुआ तो बुआ..पापा तक नाराज होंगें??”

“हम्म…तो बुआ के मंदिर जाने के बाद खोलेंगे ना..” आकाश बोला तो रोहित ने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया।

**

“पण्डित जी…भोग लगा दीजिए” उर्मिला ने ये बोलते हुए पंडित को भोग की थाली पकड़ा दी। 

और आंखे बंद कर लीं और कुछ पल में ही खोल दीं…वो ध्यान नहीं लगा पा रहीं थीं…इधर-उधर देखा तो दो चार औरतें आंखे बंद कर पूजा करने में व्यस्त दिखीं…वो जहाँ खड़ी थीं..वहीँ से पीछे की ओर घूम गयीं..पन्द्रह से बीस लोगों पर सरसरी नजर डालकर उनकी आँखें एक चेहरे पर टिक गयीं…वो दो भूरी आंखे उनकी ओर घूर रहीं थीं..

अपनी नाक और मुँह को रुमाल से ढँके एक आदमी, भीड़ में सबसे पीछे खड़ा उन्हें हीं घूर रहा था। उर्मिला कुछ पल उसे देखती रहीं…लेकिन वो फुर्ती से मुड़ा और तेज़ क़दमों से बाहर निकलने लगा..उर्मिला के कदमों में भी रफ्तार आ गयी और वो तेज़ी से मंदिर परिसर से बाहर निकल आईं…. 

वो आदमी तेज़ रफ़्तार से चलता जा रहा था…उर्मिला के कदम..उसे दूर जाता देख ..खुद व खुद रुक गए थे …कौन हो सकता है ये…क्या ये सच में मुझे ही घूर रहा था…या ये महज मेरे मन की शंका है…ये सवाल उनके मन में आने लगे।

“बहिन जी…”

“अरे उर्मिला बहिन जी” अपना नाम सुन वो पीछे की ओर पलटीं, पंडित जी हाथों में उनकी दी हुई प्रसाद की थाली पकड़े खड़े थे

“आप आज अपनी थाली लिए बिना ही जा रहीं थीं…ये लीजिये…” पंडित मुस्कुराते हुए बोला

“ओह…” थाली पकड़ते हुए

“सब ठीक तो है ना?”

“सब ठीक हैं पंडित जी…बस्स ऐसे ही…

“जी …जी …” पंडित भी मुस्कुराते हुए मंदिर में बापस चला गया।

“मेरे मन का बहम ही होगा…कोई भला मुझे क्यों घूरेगा”..बुदबुदाती हुई उर्मिला घर की ओर मुड़ गयीं

***

“ये देख मास्टर की…ऐसा कौन सा ताला है जो इससे नहीं खुल सकता?” रोहित, आकाश को एक चाबी दिखाते हुए बोला

“एक काम कर तू इस चावी की पूरी हिस्ट्री बता…और तब तक बता.. जब तक बुआ घर ना आ जाये” आकाश चिढ़ कर बोला

“अरे यार…तेरा गुस्सा भी ना…नाक पर रखा रहता है…ये ले”

बोलते…बोलते रोहित ने बक्से में लगा ताला खोल दिया

“बहुत बढ़िया…हमें सारा सामान ऐसे ही बापस रखना है जैसे रखा है…” आकाश खुले बक्से को देखते हुए बोला

“चल जल्दी कर”

“हम्म…हम्म…” कहते कहते आकाश बक्से के किनारे से सामान निकालने लगा

“यहाँ तो कुछ भी नहीं…”

“मैंने पहले ही कहा था…लेकिन तुझे ही खुफिया जासूस बनने का फितूर चढ़ा था”

“अबे रुक…कुछ है…एक मिनट..”आकाश बक्से की तलहटी से एक फ्रेम पर हाथ पड़ते ही बोला”

“क्या…निकाल बाहर जल्दी…बुआ आने वाली होंगी”

“ये रहा….(फ्रेम में लगे फोटो पर नजर पड़ते ही) ये.. ये तो….”

“मुझे दिखा..” रोहित, आकाश के हाथ झपटते हुए फ़ोटो फ्रेम ले लिया

“ये…कौन है ये…?” रोहित आश्चर्य से बोला

“कौन हो सकता है ये..?.” आकाश तस्वीर को देखते हुए फिर बोला

दोंनो आश्चर्य से कभी एक दूसरे को तो कभी फ़ोटो फ्रेम लगी तस्वीर को देख रहे थे।

तभी घर के मेन दरवाजे पर कुंडी खटकने की आवाज आयी और दोंनो डर गए।