"ऐसा लग रहा था जैसे मेरा खुद का शरीर ऑपरेशन थिएटर के अन्दर है और मैं बाहर एक आत्मा के रूप में बस्स अपने ही शरीर का इन्तज़ार कर रहा हूँ,अगर रेशमा को गीत पसंद आता है तो उस शरीर में प्राण पड़ेगें और नहीं पसंद आया तो...तो मैं प्राणहीन ही रह जाऊँगा...मुझे उससे प्रेम हो गया था"
10.
राघव को इस रूप को देखकर आकाश को लगने लगा कि अब यहाँ रुकने की उम्मीद खो हो रही है, और और अगर, यहाँ ना रुक सका तो आकांक्षा से मिलने की उम्मीद भी खत्म हो जायेगी ! तो क्यों ना एक एकबार फिर से कोशिश की जाए! यही सोचते हुए उसने कहा,
“चाचा जी, आपको लगता है कि मैं कुछ समझता नहीं हूँ, ऐसा नहीं हैं ! मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ इस घर से रोहित एक रात में ही भाग गया, और आप हमेशा से इसी घर में रहते आये हैं, सो भी अकेले! अकेलापन इन्सान को क्या से क्या बना देता है .. लेकिन आप, आप कैसे रहे हैं इतने वक़्त तक, मैं ये सोच कर ही डर जाता हूँ!”
आकाश के इतना बोलते ही राघव के चेहरे पर पड़ी सिलवटें कुछ हल्की हो गईं, इससे आकाश को राहत तो महसूस हुई ही साथ ही थोड़ा आत्मविश्वास और बढ गया। उसने आगे कहा,
“इस इतनी बड़ी दुनियाँ में कोई तो ऐसा होना ही चाहिए चाचा जी, जो असली राघव को जानता हो! मेरा यकीन कीजिए मेरे दिल में आपके लिए बड़ी इज्जत है और जो मैं आपके लिए महसूस करता हूँ वो परिवार में किसी और के लिए महसूस नहीं कर पाता! चाचा जी, क्या मैं इस काबिल नहीं जिससे आप अपनी मन की बात कह सकें! “
राघव निढ़ाल सा नीचे बैठ गया…आकाश ने आगे कहा,
“सब सनकी और गुस्सैल समझते हैं आपको, लेकिन मैने कुछ और ही महसूस किया है, चाचा जी… मुझ पर भरोसा कीजिए प्लीज! ऐसा कौन सा रहस्य है, जो आपको इस घर से .. इस शहर से बाहर नहीं जाने देता .. बताईये ना कौन है रेशमा? “
“मेरे जीने की वजह ” राघव बीच में ही बोल पड़ा, और शून्य में देखते हुए चुप हो गया। आकाश ने पास जाकर उसके कन्धे पर हाथ रखा और वहीं राघव के पास बैठ गया, राघव ने धीरे से बोलना शुरू किया,
“जिस कमरे का ताला खोला है तुमने, कभी वो मेरा कमरा हुआ करता था। ग्रेजुएशन का फक्क्ड़ स्टूडेंट हुआ करता था मैं उन दिनो, सिर्फ मैथ्स के सवाल हल करने मे मन रमता था मेरा। कभी कभार दोस्तो संग पिक्चर देख आना, तो कभी चोरी छिपे सिगरेट पीना, बस इसी में मगन बेफिक्र खूबसूरत जिंदगी जी रहा था मैं …कि एक आवाज ने मेरी जिंदगी में हलचल मचा दी!
उस दिन अपने कमरे में बैठा मैं मैथ्स के एक सवाल में उलझा था, तभी मेरे कानों में एक शास्त्रीय गाने के बोल पड़े, जैसे कोई दूर से सिर्फ मेरे लिये गा रहा हो। मुझें नहीं पता क्यों …लेकिन मैं खुद को रोक नहीं पाया। बस मैं कमरे के पिछ्ले दरवाजे से बाहर निकलकर उस आवाज का पीछा करते हुए जाने लगा। अपने कमरे का पिछला दरवाजा उससे पहले मैने कभी भी नहीं खोला था…एक दो बार किवाड़ की दरारों से झाँककर देखा जरुर था…बड़ी उजाड़ और धूमिल पतली गली…मेरा मन इतना खराब हो गया देखकर कि तभी मैनें एक बड़ी से तस्वीर से उस किवाड़ की दरारों को ढांक दिया…
लेकिन, उस दिन बिना कुछ सोचे समझे उस दरवाजे से बाहर निकल आया था…कमरे के पीछे का वो दरवाजा एक लम्बा गैलरी नुमां सुरंग जैसा रास्ता था, जो कम से कम 5 से 7 मिनट की पैदल पगडंडी थी जिससे वो संकरा सा रास्ता और भी उजाड़ लगता था” राघव इतना बोलकर चुप हो गया जैसे कहीं खो गया हो,
“फिर?” आकाश ने धीरे से कहा!
” उस दिन से ही वो रास्ता मुझे अच्छा लगने लगा, मैं चलता रहा और मेरे कदम तभी रुके, जब वो दिखी”
“कौन?”
“रेशमा, …ठीक मेरे सामने बैठी थी, पुराने जमाने के बने हुए बड़े से घर के आंगन में.. ठीक बीचो-बीच, वो घर…किसी किले जैसा था, बड़ा भव्य दरवाजा, और उसके बाद एक आँगन ..उस दिन उसे कुछ पल देखा और चुपचाप दबे कदमों से मैं बापस आ गया !
और सच कहूँ तो बापस मेरा शरीर ही आया था बस! उसका रूप मेरी आँखों में बस गया था!… मेरा मन पढाई में तो क्या… कहीं भी नहीं लग रहा था, पढाई में भी मन नहीं लग रहा था ! गणित का कोई भी सवाल हल नहीं हो पा रहा था मुझसे…. और उस दिन के बाद तो खैर कभी हल हुआ भी नहीं”
ये सुनकर आकाश के चेहरे पर हल्की मुस्कान उभर आयी
“फिर?” आकाश ने मुस्कुराते हुए पूँछा
“फिर, अगले दिन मैने उसके पास जाने की ठानी, और कमरे के पिछ्ले दरवाजे से बाहर निकल गया, गैलरी से होता हुआ उसी बड़े आँगन में पहुँचा, जो रूप मेरी आँखो में बस गया था मैं उसे ही देखने के लिए व्याकुल था !
उसे देखते ही मेरे मन की मुराद पूरी हो गई, वो वहीं बैठी मिली… बड़ी धीमी आवाज में गुनगुना रही थी, सितार के तारों से लय मिलाती हुई… मैने उसे एक नजर देखा, लेकिन मियां उस दिन लौटा नहीं ..
उसने अपना रियाज बंद करने के बाद अपनी आँखें खोलीं तो उसकी नजर सीधे मुझ पर ही पड़ी
“कौन हैं आप ? और अंदर कैसे आए ?”
“कोई नहीं .. ऐसा लगता है जैसे फकीर हूँ .. और अगर वो मिल जाए जिसकी तमन्ना ये दिल कर बैठा है तो शायद सबसे अमीर हूँ” मैं वेखयाली में उससे सब कुछ कह गया लेकिन वो कुछ नहीं समझ पाई!
‘आप शायद गलत जगह आ गए हैं” नजरें फेरते हुए उसने मुझसे कहा और वो अंदर चली गई, मेरे पास लौट आने के अलावा कोई चारा नहीं, मैं लौट आया!
अगले दिन उसी वक्त मैं फिर पहुँच गया, उसने रियाज खत्म करने की बाद अपनी आँखें खोली, मुझ पर उसकी नजर गई! लेकिन आज ना तो नाराज हुई, ना उसे कोई अचरज हुआ… उसने मुझे इशारे से पास मे पड़े आसन पर बैठने को कहा और बोली,” आपको संगीत में रुचि है …इसलिए आते हो.. हैं ना?”
मैं क्या बोलता, उससे पहले कभी संगीत इतना अच्छा तो नहीं लगा था, लेकिन संगीत पसंद है ये भी तो नहीं कह सकता था, क्योंकि देखने तो मैं उसे जा रहा था….समझ में नहीं आ रहा था क्या जवाव दूँ, कि उसने अगला प्रश्न दाग दिया, बोली “क्या पसंद है आपको ठुमरी या दादरा ?”
“ये क्या होता है ?” मेरा इतना बोलते ही वो दिल खोल कर हँसी सचमुच उससे पहले मैनें वो नाम सुने तक ना थे, लेकिन उसे हँसते हुए देखकर एहसास हुआ कि अच्छा ही हुआ जो मुझे नहीं पता था कि वो गाने के प्रकार थे। अगर पता होता तो रेशमा हँसती कैसे?
“हम्म, अब समझी तुम्हें संगीत पसंद है, लेकिन संगीत के बारे में कोई ज्ञान नहीं है यही बात है ना?”
उसके ये पूछते ही मैनें हामीं में अपनी गर्दन हिला दी
“कभी मैं भी सीखना चाहती थी…लेकिन ….खैर तुम्हारी हालत समझ सकती हूँ …क्या तुम सीखना चाहोगे मुझसे” उसने मुस्कुरा कर पूँछा
और मेरे मन ने मुझसे कहा ‘पागल क्या सोच रहा है…स्वर्ग की अप्सरा खुद सामने आकर पूँछ रही है कि क्या साथ बैठना चाहोगे, हाँ कर दे इससे पहले कि इसका मन बदल जाये..या तेरी खोटी किस्मत का कोई दोष रास्ते का रोड़ा बन जाये
” क्या सोच रहे हो..मैं पिछ्ले सात सालों से गायन सीख रही हूँ …तुम्हें अच्छा सिखा सकती हूँ…हम्म अगर सीखने की ललक हो तो ” मुझे सोचते देख वो बोली ..
“मैं बचपन से ही संगीत सीखना चाहता था…बचपन से ही…वो संगीत ही है जो मुझे यहाँ खींच लाता है” अचानक मेरे मुँह से निकला, जबकि सच तो ये था, संगीत में मुझे तिलमात्र की रुचि नहीं थी….मेरी ये बात सुनकर मुझे संगीत सिखाने को राजी हो गयी …फिर मैं हर रोज वहाँ जाने लगा…वो मुझे गायन से जुड़े नये-नये नियम और तरीके बताती…सिखाती लेकिन मैं..बस्स उसे निहारता ही रहता
“समझ आ रहा है ना…” वो हमेशा पूँछती
और मैं हाँमी में सिर हिला देता…… लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चल पाया
एक दिन उसने मुझसे संगीत से जुड़े वो सवाल पूंछे जो वो मुझे सिखाती आ रही थी। लेकिन मैं किसी सवाल का जवाब नहीं दे पाया। वो इससे बहुत दुखी हुई…मैनें देखा वो एकदम उदास हो गई थी। मैं साफतौर पर उसके मन में आने वाले विचारों को पढ़ सकता था…मैं मन ही मन खुद पर गुस्सा हो रहा था और डर भी रहा था कि ना जाने अब वो क्या कहे।
“आपने तो कहा था आपको संगीत सीखने में रुचि है, क्या मेरे समझाने की तरीके में कमी है?” उसने उदास होकर पूँछा
“ना नहीं तो….”
“आप शायद संकोचवश मेरी कमी नहीं बता पा रहे, मुझे लगता है आपको किसी और से सीखना चाहिये मुझसे नहीं”
इतना बोल कर रेशमा जब जाने के लिये मुड़ी मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी जिन्दगी से खुशी निकली जा रही है, और मैं उसे आसानी से कैसे निकलने देता
“क्या संगीत में सिर्फ गायन या वादन ही आता है, क्या लिखने का कोई अस्तित्त्व नहीं” कुछ समझ ना पाने की स्थिति में मैं बोल गया
इतना सुनते ही वो मेरी ओर मुड़ गयी
“मैं अच्छा गीत लिख सकता हूँ, और लिखने की प्रेरणा आप से ही मिलती है, अगर आपने मना कर दिया तो मेरे अन्दर का ये नया कलाकार जीने से पहले ही मर जायेगा…क्या आप यही चाहतीं हैं.” ये सुनकर वो कुछ पल चुप रही फिर बोली
“…साबित कर सकते हो… कि अच्छा लिख सकते हो…?” उसने कहा और मैं वहाँ से निकल आया
“क्या आपको तब लिखना आता था…चाचा जी?” आकाश ने पूँछा
“नहीं… तब तक तो मैनें कभी दो लाइनें भी नहीं लिखी थीं …” राघव गहरी साँस छोड़ता हुआ बोला
“तब तो आपने एक और बड़ा झूठ बोल दिया था ..फिर क्या हुआ?”
“प्रेम में पड़ा इन्सान क्या नहीं कर जाता…जिसे मोहब्बत हो जाये वो सारी दुनिया से लड़ जाता है, फिर मुझे तो महज एक गीत ही लिखना था (हँसते हुए) सारी रात लगा दी मैनें उस गीत को लिखने में…कभी तुकबंदी नहीं मिलती थी …तो कभी बोल जानदार नहीं मेहसूस नहीं होते थे…मेरे कमरे में कागजों का ढेर लग गया था। वो गीत…गीत ना होकर जैसे मेरे जीवन-मरण का प्रश्न बन गया था…और आखिरकार सुबह मुझे खुद के लिखे गीत को देखकर संतुष्टि हुई .
…दोपहर के समय जाने वाला था मैं उसके घर….उत्साह में एक-एक मिनट काटना भारी हो रहा था, और आखिरकार दोपहर हुई, मैं कमरे के पिछ्ले दरवाजे से भागता हुआ उस दस से पंद्रह मिनट के रास्ते को बामुश्किल तीन से चार मिनट में पार कर गया …छटवे मिनट तो मैं उसके उस सुनहरे आँगन में खड़ा था…आह। उस दिन बहुत सुन्दर दिख रही थी वो, लाल सितारे वाली चुनरी पहने, उसका घेरदार घांघरा जमींन को छू रहा था तिस पर उसके चेहरे पर छायी हल्की नाराजगी ने उसकी खुबसूरती को और भी निखार दिया था …वाह”
राघव मुस्कुराता हुआ कहीं खो सा गया और एकदम चुप हो गया, तो आकाश ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर सांत्वना भाव से हल्के से दवा दिया, राघव ने आँखे खोली और बोला
” मैनें उसे वो गीत लिखा कागज पकड़ा दिया, वो मेरा लिखा गीत पढ्ने लगी, और मत पूंछो कि मेरी हालत क्या थी उस वक़्त, ऐसा लग रहा था जैसे मेरा खुद का शरीर ऑपरेशन थिएटर के अन्दर है और मैं बाहर एक आत्मा के रूप में बस्स अपने ही शरीर का इन्तज़ार कर रहा हूँ,अगर रेशमा को गीत पसंद आता है तो उस शरीर में प्राण पड़ेगें और नहीं पसंद आया तो…तो मैं प्राणहीन ही रह जाऊँगा…मुझे उससे प्रेम हो गया था…खैर अगले ही पल वो हुआ जो अविश्वसनीय था…वो बोली,
“पहले ही क्यों नहीं कह दिया आपने, कि आपको लिखने में रुचि है ना कि गायन या वादन में, बहुत अच्छा लिखते हैं आप, ये गीत बहुत सुन्दर है क्या मैं इसे वार्षिक महोत्सव में गा सकती हूँ “
“मेरा सौभाग्य होगा” बस्स इतना ही कह पाया मैं,उस वक़्त इतनी खुशी हो रही थी जैसे मैनें दुनिया जीत ली हो, जैसे जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान पास कर लिया हो मैनें..उससे पिछ्ली साल ही मैने कॉलेज टॉप किया था, तब भी इतनी खुशी नहीं हुई थी मुझे…सच। …मुझे उस गीत के बोल आज भी याद हैं ….
“अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं जान सकता हूँ कि क्या बोल थे उस गीत के?”
“मैनें स्वर्ग की अप्सरा को जमीं पे देखा है..”
“वाह। बहुत बढ़िया… फिर क्या हुआ चाचा जी?” आकाश बहुत उत्साहित होकर बोला
“आह।..वही जो होता आया है, इस दुनियाँ को कहाँ भाती है दूसरों की खुशी, जल्द ही सबको पता चल गया …सिवाय रेशमा के..या शायद रेशमा जानकर भी अंजान बनी हुई थी।
जब माँ, बाऊ जी को पता लगा वो बहुत नाराज हुए और उसी दिन मुझे कुछ और पता लगा, जिसने मुझे हिलाकर रख दिया….”
“क्या…क्या पता लगा ऐसा आपको?”
“उस दिन मैं जैसे ही रेशमा से मिलकर अपने घर आया,दरवाजे के भीतर घुसते ही बाऊ जी गुस्से में बोले,” शर्म नहीं आती तुम्हें..
“किस बात की शर्म” मैंने आश्चर्य से पूँछा
“अन्जान बनते हो, मैं पूंछता हूँ एक गणित के विधार्थी को संगीत सीखने की क्या आन पड़ी? क्या करने जाते हो तुम उस रेशमा के पास…सारा मोहल्ला कैसी-कैसी बातें कर रहा है जानते हो?”
“मुझे किसी के कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता…”
“हमें तो पड़ता है, वर्षों की बनाई हमारी इज्जत को क्यों मिट्टी में मिलाने पर तुले हो, ना उस लड़की को शर्म है और ना ही तुम्हें…अरे अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान क्यों नहीं देते …?”
“और आप सिर्फ अपने आप पर ध्यान क्यों नहीं देते?”
“रा…घ…व”
“आपके चीखने का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ने वाला बाऊ जी…ये तो आप शायद जानते ही होंगे”
“अच्छी तरह से जानता हूँ, मेरे पूरे खानदान में इतना बद्तमीज़ कोई दूसरा लड़का नहीं है, जितने कि तुम हो..शुक्र है मेरे दोनों लड़कों पर तुम्हारा कोई असर नहीं हुआ”
“चलिये कुछ तो अच्छा हुआ…”
“हो गयी हो बद्जुबानी तो सुनो, तुम उस रेशमा से नहीं मिलोगे, ये मेरी पहली और आखिरी चेतावनी समझो, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा”
“कौन रोकेगा मुझे उससे मिलने से?”
“मैं रोकूँगा, मैं नारायण.. एक ऐसा बदकिस्मत बाप जिसका बेटा एक औरत के प्रेम में इतना पागल हो चुका है, कि उसे ना समाज की फिक्र है ना बूढ़े बाप की”
“आप और बदकिस्मत?..क्या सिर्फ इसलिये कि मुझे किसी से प्रेम हो गया है, अगर आपकी नजर में यही बदकिस्मती की परिभाषा है तो मैं चाहूँगा कि फिर आप इसे स्वीकार ही कर लीजिये”
“रा…घ….व”
“आप ही क्या सारी दुनिया भी चिल्लाए तो मुझे फर्क नहीं पड़ता, बेहतर होगा कि आप रेशमा को अपनी बहू स्वीकार कर लें और खैर …ना भी करें तो मुझे फर्क नहीं पड़ता”
“क्या?”
“हाँ सही सुना आपने, किसी के भी मानने या ना मानने का कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे, रेशमा से शादी करने का फैसला ले चुका हूँ मैं, और किसी भी हालत में पीछे नहीं हटूगाँ”
“लेकिन पीछे तो तुम्हें हटना ही होगा राघव” कौशल्या आ गईं थीं
“माँ ….?
“जरा मैं भी तो सुनूँ कि एक विवाहित स्त्री से शादी कैसे कर लोगे तुम…?” कौशल्या बड़े शांत अंदाज में बोलीं
“क्या…रेशमा वि..वाहि…त?” सदमे से राघव की जुबांन लड़खड़ा गयी
“क्यों… बताया नहीं उसने तुम्हें ? वो सिर्फ विवाहित ही नहीं बल्कि एक बेटे की मां भी है…हुम्म ..वैसे वो बतायेगी भी क्यों ? जब तुम जैसा खुबसूरत नौजवान उसके उसके प्रेम में यूँ पागल बना घूमेगा “
“मैं नहीं मानता…झूठ है ये”
“तो सच खुद ही जाकर क्यों नहीं पूँछ लेते उससे”
“सही कहा आपने”
माँ से इतनी बड़ी बात सुनने के बाद मैं रेशमा के घर की ओर दौड़ गया।
गिरता-पड़ता सा मैं उसके घर पहुँचा….देखा तो उसके घर में भी वही क्लेश जारी था जो मेरे घर में था। इतने वक्त मे पहली बार मैनें उसकी सास को देखा था जो शायद पहले कहीं गयी हुई होगी….वो रेशमा पर चिल्ला रही थी
“मुझे लगा कोई छोटा लड़का होगा जिसे सिखा रही होगी तू …लेकिन राम-राम देखो तो मोह्ल्ले वाले क्या कहते हैं…खबरदार जो वो लड़का इस घर में एक बार भी आया तो मुझसे बुरा कोई ना होगा”
“क्या करेंगी आप, अगर घर में वो लड़का आ गया तो ?” मैं अन्दर जाते हुए बोला
“रेशमा ने मुझे देखते ही एक कदम मेरी ओर बढ़ाया, तभी उसकी सास ने उसे खुद की ओर खींच लिया, लेकिन तब तक मैं वो समझ चुका था जो समझना था …उसका मेरी ओर एक कदम बढ़ाना मुझे आत्मविश्वास और खुशी से भर गया था।
“सारी शर्म बेच खाई है क्या? .. कम से कम इस बात की तो शर्म कर कि व्याहता है किसी की ” रेशमा की सास ने गुस्से में कहा, उस मोटी और काले रंग की औरत की आँखो से अजीव सी नकारात्मकता थी
“व्याहता नहीं…विधवा ” रेशमा धीरे से बोली
मैं सुन कर अवाक रह गया, और सच कहूँ तो मन में खुशी की लहर दौड़ गयी, उस वक़्त रेशमा का ये बोलना सो भी मेरी ओर देखते हुए….सीधे तौर पर प्रेम की स्वीकृति थी मेरे लिये
“मुँह बन्द कर, जब तक जीवित है मेरे बेटे की व्याहता ही रहेगी ” ऐसा बोलकर रेशमा की सास ने उसकी बाँह पकड़कर उसे कमरे की ओर धकेल दिया, मुझे कुछ तब तक समझ नहीं आ रहा था, कि क्या करुँ कि तभी…
ऐसा लगा जैसे कोई मेरे पैरों से लिपट गया, नीचे झुककर देखा तो एक मासूम बच्चा मेरे पैरों को पकड़कर खड़ा था,
जैसे ही मैने उसकी ओर देखा उसने मुझे “पा…पा…” कहकर पुकारा,
वो मासूम पूरा रेशमा पर गया था, वही रंगत…वही आँखे! मुझे उससे उसी क्षण प्रेम हो गया…वो रेशमा का बेटा था”
“वो तेरा बाप नहीं है, इधर आ…” रेशमा की सास बेहद गुस्से मे चीखी और पास आकर बच्चे की बाँह पकड़कर खींचने लगीं, बच्चा मुझे छोड़ने को राजी नहीं था। मेरा दिमाग ना सिर्फ उसी क्षण जागा बल्कि मुझे सारे सवालों के जवाव भी मिल गए और मैनें तय भी कर लिया कि क्या करना है मुझे आगे”
“मेरे बच्चे के साथ इस तरह का वर्ताव मत कीजिये, जो बात हम बड़े समझ तक ना पाये वो बात इस मासूम ने कह भी दी….बेहतरी इसी में है कि रेशमा को आशीर्वाद देकर इस बच्चे सहित मेरे साथ भेज दीजिये” मैनें उनसे बहुत विन्रम होकर कहा
“हरगिज नहीं ..क्या लगता है तुझे अकेली हूँ मैं…जान प्यारी है तो इसी वक़्त निकल जा, वरना… मुझे इज्जत की खातिर जान देना भी आता है और जान लेना भी” मैनें देखा उस औरत का पूरा शरीर गुस्से में काँप रहा था, और जितना तेज उसका शरीर काँप रहा था उससे कहीं ज्यादा मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था। जी में आया काश कोई आदमी होता इस औरत की जगह तो निश्चित तौर पर मैं उसे बेदम होने तक पीटता… उसने रेशमा के साथ बद्सलूकी की सो भी मेरे सामने…
मैं उस दौर में बहुत गुस्सैल और दबंग हुआ करता था और मानता हूँ कि बदतमीज़ भी था! क्योंकि द्कियानूसी सोच और बात से नफरत है मुझे…इसलिये इसे मानने वाले का सम्मान तो किसी भी हालत में नहीं कर सकता …लेकिन लाख बद्तमीज़ होने के बाबजूद भी किसी औरत पर तो हाथ नहीं उठाया जा सकता ना… कि तभी मुझे ख्याल आया कि भला इस औरत से बहस में उलझा ही क्यों हूँ मैं
“चलो रेशमा, मैं तुम्हें और हमारे बेटे को लेने आया हूँ ” मैनें रेशमा की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा
“हमारा बेटा?” रेशमा ने अटकते हुए खुशी से दोहराया
“हम्म हमारा बेटा,चलो अब”
“नहीं ऐसे नहीं …”
“रेशमा, मेरी बात सुनो हम मंदिर में चल कर अभी शादी करेंगे”
” जब हमें कोई अपनायेगा ही नहीं तो …
” मुझे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता…किसी से नहीं …सुना तुमने ..चलो अब”
“मैं ऐसे नहीं चलूँगी …मुझे ले जाने के लिये सम्मान सहित लेने आना होगा तुम्हें”
“हालात छिपे नहीं हैं तुमसे, मेरी बात मान लो” मैने उससे विनती की, लेकिन वो नहीं मानी
“ठीक है, तुम्हारी यही इच्छा है तो जो तुम चाहोगी वही होगा, मेरे माँ, बाऊजी रिश्ता लेकर आयेंगे और मैं बारात…” उसकी बात मानते हुए मैनें उसे जवाव दिया… उस बड़े से घर के एक खंबे को पकड़े खडी थी वो…मेरे इतना कहते ही उस हालात में भी उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गयी….नहीं जानता था कि उसे अन्तिम बार मुस्कुराते हुए देख रहा हूँ, उसकी वही मुस्कान मेरे लिये आज भी जीने का सहारा बनी हुई है।
मैं बापस आ गया….अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती करके….मुझे उसकी वो बात नहीं माननी चाहिये थी…नहीं माननी चाहिये थी… आह…नहीं माननी चाहिये थी…
उन तीन से चार दिनों में मैनें माँ, बाऊ जी को समझाने की भरसक कोशिश की। इसी बीच माँ ने मेरा रिश्ता तक कराने की योजना बना डाली और लड़की वाले घर आ गये …मैं माँ से बहुत नाराज हुआ, तब उन्होंने ये कहकर कि रिश्ते की बात चलाने से पहले वो मेरे रेशमा के रिश्ते के बारे में नहीं जानती थी इसलिए बस्स मैं जैसे-तैसे लड़की वालों के आगे ठीक से पेश आ जाऊँ, बाद में वो उन लोगों से मना कर देंगीं। और फिर वो मेरी और रेशमा की शादी के बारे में सोच सकती हैं, उस वक़्त मैं रेशमा से शादी करने के लिये कुछ भी करने को तैयार था…उनकी बात मानकर मैं लड़की वालों के सामने बैठ गया लेकिन जल्द ही मेरा दम घुटने लगा और मैनें उन लोगो के सामने ही कह दिया कि मै रेशमा के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगा। (पार्ट -1 का अंश)
जल्द ही मुझे पता चल गया वो माँ और बाऊ जी प्लानिंग थी मुझे रेशमा से अलग करने की ….उस दिन मुझे यकीं हो गया कि किसी को भी इस शादी के लिये समझाना वो भी इतनी जल्दी सम्भव नहीं …उसी रात मैनें सोचा कि सुबह होते ही मैं रेशमा को समझा कर मंदिर में शादी करने के लिये मना लूँगा…लेकिन अगली सुबह….अगली सुबह”
“अगली सुबह क्या हुआ चाचा जी?” आकाश ने राघव को फिर कहीं खोया हुआ देखकर पूँछा
“अगली सुबह …सबके मुँह से एक ही बात निकल रही थी कि रेशमा किसी आदमी के साथ भा…ग गयी….मुझे ये कहते हुए भी घिन महसूस होती है…”
“क्या… कहाँ चली गयीं रेशमा..ऐसे कैसे जा सकतीं हैं वो…ये जानने के बाबजूद कि आप इतना प्यार करते थे उनसे कैसे कर सकीं वो ऐसा…आखिर ये लड़कियाँ क्यों बेबफायी करतीं हैं” आकाश गुस्से में बोला
“गुस्सा मत करो आकाश, रेशमा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया…कोई कुछ भी कहे मुझे फर्क नहीं पड़ता…खुद रेशमा कहे तब भी नही….वो मुझसे बेबफ़ाई कभी नहीं कर सकतीं”
“तो फिर कहाँ गई वों?”
“उसके साथ कोई साजिश की गयी थी , रातोरात कहाँ गायब कर दिया गया उसे…कोई नहीं समझ पाया..मैं सबसे मिन्नते कर- करके थक गया…बहुत ढूंढ़ा उसे…पुलिस की मदद ली…हर ऐरे…गैरे के हाथ-पैर जोड़े…लेकिन…किसी ने मदद नहीं की …हर जगह हाथ पैर मार लिये, लेकिन नतीजा कुछ नहीं ..आज भी कहीं किसी का रेशमा नाम सुनता हूँ तो वहाँ भागता हुआ जाता हूँ ..लेकिन… वो कहीं नहीं मिली…आज तक मैं इस शहर से बाहर नहीं गया…बस्स इसी आस में कि ना जाने वो कब आ जाये….
“चाचा जी….”आकाश ने भावुक होते हुए राघव के कंधे पर हाथ रख दिया
” मेरी हर साँस को उसी की आस है…बस्स उसे एक बार देख लूँ मरने से पहले, इसी आस में जी रहा हूँ ….सुनो आकाश …क्या तुम कुछ ऐसा कर सकते हो जिससे मैं उसे एकबार देख लूँ …क्या तुम उसे …क्या तुम उसे ढूंढ़ सकते हो?”
” चाचा जी, मैं पूरी कोशिश करूँगा…कोई कमी नहीं छोडूंगा उन्हें ढूंढ़ने में…” आकाश ने कहा और दोनों कहीं खोये से चुप हो गये। …..
“चाचा जी?” लगभग दस मिनट की चुप्पी तोड़ते हुए आकाश बोला
“हम्म्म्म”
“एक बात समझ नहीं आयी…”
“कौन सी”
“मैनें आपको उनका नाम लेकर ऐसे बात करते देखा है जैसे आप उन्हें सामने देख रहें हों…ऐसा कैसे?…क्या आप उन्हें देखते हैं?”
” अगर वो दिखती तो बात ही क्या थी…मैं तो बस्स उसे देखने का जूठा दिखावा करके खुद को ही बहला लेता हूँ….ना बहलाऊँ,तो जीयूं कैसे?”
” …आप कितना कुछ झेलते रहे..सो भी कितने सालों से….किसी को एहसास तक नहीं…चाचा जी, मुझे…सच में नाज है आप पर” आकाश ने भावुक होकर राघव को गले से लगा लिया
“मेरा भी दिल शायद आज पहली बार …इतना हल्का महसूस कर रहा है….” राघव ने आकाश के कन्धे को थपथपाते हुए कहा।
***
अगली सुबह
राघव के घर से जाने के बाद आकाश आँगन में बैठा चाय पी रहा था, कि तभी उसे बुजुर्ग सज्जन घर के मेन दरवाजे पर खड़े दिखे…जो हाथ में एक अखबार का टुकड़ा लेकर शायद ऐड्रेस कन्फ़र्म कर रहे थे…आकाश ने उनकी ओर एक नजर देखा और अनदेखा कर दिया। अगले ही पल उसका माथा ठनका और वो दरवाजे की ओर भागा
“ये..ये ऐड्रेस …ये वो…आ” आकाश को देखते ही उस पचपन-छ्प्पन वर्षीय इकहरे बदन के आदमी के मुँह से निकला। आकाश उन्हें आँखे खोले कुछ पल देखता रहा और बिना कुछ बोले… हाथ के इशारे से अन्दर आने के लिये कहा।
आकाश उस व्यक्ति ऐसे देख रहा था जैसे वो कोई आदमी ना होकर अजूबा हों।
“कौन हो तुम?” उस व्यक्ति ने अंदर आने के साथ ही आकाश से पूँछा
“मैं …मैं उनकी बुआ हूँ “
“क्याआ…?”
“सॉरी, मेरा मतलब वो मेरी बुआ हैं, उर्मिला मेरी … बु…आ.. हैं” आकाश धीरे से बोला
“हम्म्म्म …(घर में नजर दौड़ाते हुए) कहाँ है वो…क्या बीमारी हुई है उसे?”
“वो अभी यहाँ नहीं हैं…लेकिन बिल्कुल ठीक हैं”
“क्याआ…तो फिर ये इश्तिहार?” उस व्यक्ति ने हाथ में पकड़ा अखबार आकाश को दिखाते हुए कहा
“मैनें ही दिया था…मैं आपसे मिलना चाहता था …बात करना चाहता था”
“कौन सी बातचीत ..?.”
“क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप के और मेरी बुआ के बीच क्या रिश्ता है?…
“तुमने अभी-अभी कहा ये इश्तिहार तुमने ही दिया था”
“हाँ”
“फिर तो तुम्हें पता होना चाहिये कि मेरे और उर्मिला के बीच क्या रिश्ता था?”
“आपने उन्हें छोड़ क्यों दिया? वो अकेली क्यों हैं?”
“क्या..अकेली?” वो व्यक्ति आश्चर्य से बोला
“जी …क्योंकि वो आज भी आप से ही प्रेम करती हैं”
“किसने सुनायी ये झूठी कहानी तुम्हें…नागेन्द्र का क्या हुआ…कहाँ है वो? ..” वो व्यक्ति खीजते हुए बोला
” …कौन नागेन्द्र?”
“नागेन्द्र …उर्मिला का पति…क्या तुम्हें नहीं पता?”
“पति..लेकिन बुआ ने तो कभी शादी की ही नहीं…”आकाश हैरानी से बोला
“क्या बकवास किये जा रहे हो…उस सड़क छाप के लिये उसने मुझे धोखा दे दिया…मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी…जब इतना बताया तुम्हें तो ये भी बता देती कि उस सड़क छाप आवारा लड़के नागेन्द्र के लिये मुझे धोखा कैसे दे सकी वो…और फिर उसकी भी नहीं हुई….चरित्र ही ऐसा हो तो कोई क्या करे “
“ये क्या अनाप-शनाप कह रहे हैं आप…उनके चरित्र पर ऊँगली उठाने की हिम्मत कैसे हुई आपकी” आकाश गुस्से में बोला
“हुम्म…चरित्र …क्या है चरित्र की परिभाषा… कि एक से प्रेम करने का नाटक करते रहो …अचानक शादी किसी और से कर लो… सो भी बिना बताए…उसने प्रेम से भरोसा उठा दिया मेरा … किसी और को अपना सकूँ ऐसा नहीं छोड़ा…वो तो ये इश्तिहार देख कर सोच बैठा कि ..कि ….एक बार पूंछ लूँ क्यों किया उसने ऐसा …आह। ना जाने क्यों चला आया ” उस व्यक्ति का गला भर आया और वो दुखी हो गया।
कुछ पल चुपचाप खड़े रहने के बाद अचानक तेज कदम बढ़ाते हुए वो व्यक्ति घर के दरवाजे से बाहर निकल गया।
आकाश चुपचाप खड़ा रहा…उसके कानों में अभी-अभी सुनी हुई बातें घूम रही थीं, और उस व्यक्ति के घर से बाहर निकलते ही आकाश चौंकते हुए दरवाजे की ओर भागा, देखा तो वो व्यक्ति तेज कदमों से चलता जा रहा है
“सुनिये….सुनि….ये…रुक जाइये” तेज आवाज में चीखता हुआ आकाश उनके पीछे दौड़ गया।