जब भी हम उर्मिला के घर पर मिलने का मौका पाते तो ..उर्मिला सीढियों पर लगे दरवाजे की कुंडी भीतर से खुली छोड़ देती और पहले से तय किये गये समय पर उन्हीं सीढ़ियों के सहारे मैं ऊपर चला जाता, दस बारह सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक छोटा सा अहाता था!
11.
“सुनि…ये! (झुंझलाकर)ओह्हो…साला एक नम्बर का बेबकूफ हूँ मैं, उनका नाम तक नहीं पूँछा (फिर जोर से) रुकिये….प्लीज रुक जाईये” आकाश ने उन सज्जन के पीछे दौड़ते हुए आवाज लगाई!
लेकिन वो इन्सान अपनी ही धुन में चलता चला जा रहा था, मोड़ तक पहुँच कर एक रिक्शा रोका और उसे शायद एड्रेस समझाने लगे! तब तक आकाश भागता हुआ उनके नजदीक पहुंच गया …
“कितनी आवाजें दी आपको, क्या एक भी सुनायी नहीं दी?” आकाश हाँफते हुए बोला
“हाँ तीन आवाजें सुनी मैनें …” बिना आकाश की ओर देखे जवाब दिया उन्होंने
“क्या…तो फिर आप रुके क्यों नहीं?”आकाश ने हैरत से पूँछा!
“पहली आवाज तो लोग यूँ ही दे देते हैं…दूसरी पर लगा जबाव ना मिलने पर तुम खुद ही चुप हो जाओगे …फिर तुमने तीसरी आवाज भी दी सो भी भागते हुए…तो जाहिर है …मेरा रुकना तय था…”
वाह गजब है ये जनाब भी… सोचते हुए आकाश कुछ पल उन्हें देखता रहा फिर बोला ” लेकिन आप ने तो रिक्शा रोक लिया था ना”
“रोका ही तो…बैठा तो नहीं ना”
अरे यार ये इंसान भी ना .. आकाश ने उनकी बात के समर्थन में धीरे से अपना सिर हिलाया “हम्म ये तो है”
“तो बोलो क्या और पूंछना चाहते हो?”
“सबसे पहले तो आपका नाम जानना चाहता हूँ “
“उर्मिला ने नहीं बताया?”
“उन्होंने मुझे कुछ नहीं बताया”
“तो फिर?” उस व्यक्ति ने हैरत से अपनी आँखे सिकोड़ी
” मैं आपको पूरी बात शॉर्ट में बताता हूँ, एक दिन मैनें देखा कि वो एक तस्वीर देखकर रो रही थीं, जब मैनें पूँछा तो उन्होनें जवाब भी नहीं दिया और तस्वीर को बक्से में छिपाकर ताला लगा दिया, हमें उत्सुकता हुई और जब वो मंदिर चली गईं, हमने ताला खोल दिया, देखा तो वो तस्वीर आपके जवानी के दिनो की थी …ग्राफिक्स की हैल्प से उसे उम्रदराज करा के एक एड अखवार में छपवा दिया बस्स…आगे का तो आप जानते ही हैं”
“हम्म्म्म ..तो ये बात है..तुमने कहा ‘हमने’ मतलब कोई और भी है?”
“हम्म्म्म रोहित…और मैं..
“रोहित कौन है?”
“रोहित मेरे मँझले चाचा जी का बेटा है”
“गिरीश का?”
“जी”
“अच्छा…वो भी तुम्हारे जितना बड़ा है?.”
“वैसे तो मेरे जैसा ही है…लेकिन 2-3 साल छोटा होगा, सी.ए. कर रहा है”
आकाश से इतना सुनकर वो सड़क के किनारे बनी बेंच पर बैठ गये और बुदबुदाये
“इतना वक़्त बीत गया.इतना पता ही नहीं चला “ उन्हें ऐसा लगा जैसे इन बीती हुई सालों का उन्हें भान तक ना रहा!
“क्या आप मुझे अपना नाम नहीं बताय्ंगे?” आकाश उनके पास जाकर बोला
“गिरिराज! उर्मिला मुझे गिरि कहती थी” गिरिराज शून्य में देखते हुए बोले
“ओह्ह… अच्छा ” आकाश भी उनके पास बैठ गया!
“..दिखने में तो मेच्यॉर ही लगते हो…फिर ये बचकानी हरकत क्यों…ये गढ़े मुर्दे उखाड़कर ! इस उम्र में पुराने जख्म कुरेदकर क्या साबित करना चाहते हो?” गिरिराज ने तीखे स्वर में पूँछा
” आप गलत समझ रहे हैं मुझे, मैं सिर्फ आपकी मदद करना चाहता हूँ…क्योंकि आपसे मेरी बुआ की खुशी जुड़ी हुई है…आप अगर जरा सी मदद कर दें तो…
“तो …तो क्या लौट आएगा बीता हुआ समय?” गिरिराज ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा “इतनी उम्र बीत गयी …रहे बचे गिनती के ये कुछ साल भी ऐसे ही निकल जायेंगे…बन्द करो ये सब कुछ नहीं निकलने वाला… अपने कैरियर पर ध्यान दो…तुमने इतना सोचा और किया यही बहुत है” गिरिराज इतना बोलकर बैंच से उठे और सड़क की ओर जाने के लिये कदम बढ़ाया ही होगा कि आकाश की अगली बात ने उन्हे रोक दिया।
” आपकी सारी जिन्दगी तो ऐसे ही निकल गयी…मैं सोचता हूँ क्यों ना आपके जीवन के अन्तिम दिनों को खुशियों से भर दिया जाये..”
“लेकिन….”
” आप खुद ही सोचिये ना…अचानक मेरी ही रुचि क्यों जागी आपको ढूँढने में?…क्यों मैनें ही जानना चांहां बुआ के अतीत के बारे में..और आपको ढूँढ भी निकाला…क्योंकि इसमें कहीं ना कहीं ईश्वर की इच्छा भी शामिल है..नियति कुछ चाहती है हमसे.” आकाश उनकी आँखों मे देखते हुए बोला
“मुझे ना तो यकीं है ना ही कोई उम्मीद… लेकिन तुम इतनी कोशिश कर ही रहे हो तो…तुम्हारा मन रखने के लिये … अच्छा बताओ मुझसे क्या चाहते हो तुम?”
“बस्स आपके अलग होने की वज़ह जानना चाहता हूँ “
“हम्म…” गिरिराज ने एक गहरी साँस खींची, और एकदम चुप हो गए,
आकाश ने जल्दी से पास की दुकान से दो चाय लीं और एक कप गिरीराज को पकड़ा कर उनके पास बैठ गया!
गिरिराज ने कहना शुरू किया,
“मैं और …उर्मिला …हम एक दूसरे के साथ प्रेम के रिश्ते में थे, सब सही चल रहा था…कभी-कभी मिलना भी हो जाता था …एक दिन मुझे पता लगा कि उसकी सगाई तय कर दी गयी नागेन्द्र के साथ …ये खबर मुझे एक मेरे दोस्त सुरेन्द्र ने बतायी …पहले ये आज जैसे साधन तो थे नहीं… बात करने का कोई उपाय नहीं था, इसलिए मैनें अपने सबसे खास दोस्त सुरेन्द्र को राघव का मित्र बनवा दिया था …उर्मिला की सगाई की खबर जैसे ही मैने सुरेन्द्र से सुनी..उसी के हाथों एक चिट्ठी उर्मिला भेजी जिसमें मैनें लिखा…
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“उर्मिला,
ये सुरेन्द्र है…मेरा विश्वास पात्र और सच्चा दोस्त, हमारे बारे मे सब जानता है…
मुझे पता लगा है कि तुम्हारी सगाई किसी नागेन्द्र से तय कर दी गयी है, तुम
चिंता मत करना..जब तक मैं जीवित हूँ तुम्हारी शादी किसी और से नहीं होने
दूँगा, फिलहाल तो ये समझो कि हमारा मिलना बहुत जरुरी है
सुरेन्द्र के हाथ लिख भेजो कि, हम कब मिल सकते हैं।
सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा!
गिरि.
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सुरेन्द्र ने बापस आकर मुझे उर्मिला की लिखी एक चिठ्ठी पकड़ा दी, जिसमें उसने लिखा था,
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“गिरि…
कल पूरा परिवार रिश्तेदारी की एक शादी है, उसमें शामिल होने जा रहा है।
सब देर रात या सुबह ही लौटेंगे! और लगभग 7 बजे तक सब चले ही जायेंगे
हम उस वक़्त मिल सकते हैं, गिरी, इस मुसीबत से बाहर आने का कोई उपाय
सोच निकालो.. मुझे बहुत डर लग रहा है!
गिरि.मैं हरगिज किसी और से शादी ना करूंगी, चाहें मुझे अपनी
जान ही क्यों ना देनी पड़े! कल मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूंगी।
सिर्फ तुम्हारी
उर्मिला”
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“मैं नियत समय पर उर्मिला से मिलने पहुँचा, तो पता है क्या देखा? ….आह…(सिर झटकते हुए गिरिराज उठकर खड़े हो गये) नहीं ..मुझसे नहीं हो पायेगा…मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगा तुम्हें..मुझे अब चलना चाहिये”
वो सड़क की ओर लपके ही थे कि बिजली की फुर्ती से आकाश ने आगे बढ़कर उनकी बाँह पकड़ ली
“रुक जाइये…आप अपने वादे से नहीं पलट सकते”
“ये बहुत मुश्किल है …बहुत …ब…हु…त” गिरिराज खीजते हुए चीखे
” आसान होता तो जाहिर है आप और बुआ साथ होते…मैं जानता हूँ पुराने जख्म कुरेदने से बहुत तकलीफ हो रही होगी आपको…लेकिन ना जाने क्यों मेरा यकीन पुख्ता है कि कहीं ना कहीं कुछ ऐसा है जो उलझा है और बेकसूर होते हुए भी आप दोनों सजा भुगत रहे हैं…जरुर कोई बड़ी गलतफहमी हुई है आपको” आकाश बहुत शांत लहजे से बोला
“हुम्म्म …काश गलतफहमी ही हुई होती …काश! तो इतना दुख नहीं होता …उर्मिला की करनी तुम्हें कैसे बताऊँ? उसकी इज्जत तुम्हारी नजरों में कैसे कम कर दूँ?…कैसे खुद की नजरों में गिर जाऊँ…कैसे?”
” ये तो आपके दिल की अच्छाई है कि इतनी नाराजगी के बाबजूद भी उनकी फिक्र है आपको… मैं आपसे वादा करता हूँ कि ये राज मुझे बताने का आपको कभी भी पश्चाताप नहीं होगा! रही बात बुआ की इज्जत की … तो उनकी इज्जत मेरे नजरों में कभी भी कम नहीं हो सकती, वो बिना शिकायत किये खुद को हम सब पर सालों से न्यौछावर किये बैठी हैं, उनसे कोई गुनाह हुआ भी है तो पहले ही वो सजा भुगत चुकी हैं वो भी सालों की .. जिंदा लाश सा जीवन जी रही हैं वो! अब तो कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए आपको ? कहिए ना ! आपको उन्हीं का वास्ता”
आकाश से इतना सुनने के बाद गिरिराज हताश से फिर बैठ गये और एक गहरी साँस ऐसे ली जैसे खुद को बोलने के लिये तैयार किया हो। आकाश उनके चेहरे की ओर देखते हुए उनके बिल्कुल पास बैठ गया।
” ठीक है भरोसा करता हूँ तुम पर… तब उर्मिला के घर की पिछ्ली दीवार पर ऊपर आने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुईं थीं, जो ऊपर से ढंकी हुई थी, इसलिए जब भी हम उर्मिला के घर पर मिलने का मौका पाते तो ..उर्मिला सीढियों पर लगे दरवाजे की कुंडी भीतर से खुली छोड़ देती और पहले से तय किये गये समय पर उन्हीं सीढ़ियों के सहारे मैं ऊपर चला जाता, दस बारह सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक छोटा सा अहाता था!
वहीं हम बैठकर कुछ देर बातें कर लिया करते थे…उस दिन भी ऐसा ही हुआ…मुझे दरवाजा खुला मिला और लगभग साढ़े सात बजे मैं सीढिय़ां चढ़ते हुए अहाते में जाकर बैठ गया..हमेशा तो ऐसा होता था कि उर्मिला पहले से ही बैठी मिलती थी! लेकिन उस दिन, वो वहाँ मौजूद नहीं थी…उत्सुकता में एक-एक पल काटना मुश्किल लग रहा था! फिर भी ये सोचकर कि, शायद घरवाले अभी ना गये हों मैं उसका इन्तज़ार करने लगा…दस से पंद्रह मिनट और बीत गए लेकिन वो नहीं आयी तो उसी अहाते से मैं नीचे की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ उतर गया…जो उसके घर के आँगन में खुलती थीं …तब मुझे एहसास हुआ कि पूरा घर सुनसान पड़ा हुआ था। अगर सब चले गये हैं तो उर्मिला ऊपर क्यों नहीं आयी ये ख्याल आते ही मैं बेझिझक उसके आँगन में चला गया और जो देखने को मिला उससे मैं सन्न रह गया।
“क्या देख लिया आपने ऐसा?” आकाश ने उत्सुकता से पूँछा
“मैनें देखा …कि घर में अन्धेरा पसरा था आँधी आने की वज़ह से बिजली कट हो गयी थी और मिट्टी की लेम्प की धुंधली सी रोशनी आँगन में फैली थी …और रसोईघर के दरवाजे पर उर्मिला चुपचाप खड़ी थी
उसे देखकर मैं खुशी और उत्सुकता में उसकी ओर बढा ही था कि नजर उसके ठीक पीछे खड़े नागेन्द्र पर चली गयी और मैं ठिठक गया, नागेन्द्र ने उर्मिला की कमर पर अपनी बाहों का घेरा बनाया हुआ था…कमीना कहीं का..ये देख कर मेरे तन-बदन में आग लग गयी गुस्से से भरा मैं उसकी ओर लपका ही था कि वो वेशर्मी से हँसते हुए बोला
” खबरदार जो मेरे नजदीक आने की भी कोशिश की …उर्मिला से मेरी सगाई हो चुकी है…जल्द ही शादी भी होने वाली है …तेरी भलाई इसी में है कि तू दूर रह उर्मिला से..वरना तेरी खैर नहीं” नागेन्द्र से ये सुनकर तो मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया लेकिन देखता क्या हूँ,
कि उर्मिला चुपचाप खड़ी थी..ना तो कोई ऐतराज जता रही थी, ना ही कुछ बोल रही थी…मतलब ये हुआ कि वो मिली हुई थी उससे…और मुझे वो नजारा दिखाने के लिये बुलाया गया था! ना जाने कब से वो मुझे धोखा देती आ रही थी! मैं अपना आपा खो बैठा,
“शर्म नहीं आयी तुम्हें?” मैनें गुस्से में उर्मिला से कहा , लेकिन उसके बोलने से पहले ही वो कमीना नागेन्द्र बोला
” मैनें कहा ना उर्मिला मेरी होने वाली पत्नी है भलाई चाहो तो निकल जाओ यहाँ से”
फिर मेरे रुकने का क्या औचित्य था! फिर भी एक उम्मीद में मैंने उर्मिला की ओर देखा लेकिन वो तो वेशर्मी से वैसी ही खड़ी थी, उसे इतनी भी शर्म महसूस नहीं हुई कि वो उस कमीने का हाथ कम से कम मेरे सामने तो खुद से परे हटा देती, लेकिन नहीं, मैं शर्म और अपमान से गढ़ा जा रहा था! उसके बाद, मैं वहां से बाहर निकल आया…उसके बाद …आज इस घर में कदम रखा मैंने”
आकाश ने ऊपर की ओर देखते हुए एक गहरी सांस छोड़ी, और धीरे से बोला “फिर …?”
“फिर क्या! इन्सान कितने भी दुख में क्यों ना हो खुद का घर नहीं भूलता…मैं पढ़ाई करने के लिये ही यहाँ इस शहर मे आया था…तो अकेला ही रहता था…मेरे बोझिल कदम मुझे घर तक ढेल तो लाये लेकिन उसके बाद सदमें से आहत मैं दो दिनों तक अपने बिस्तर पर ही पड़ा रहा… मुझे नहीं पता कब दो दिन बीत गये..यहाँ तक मैं जिन्दा हूँ इसका एहसास भी मुझे तब हुआ जब सुरेन्द्र मेरे कमरे पर पहुँचा और मेरी हालत देखकर उसने मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कराया,
उसने मेरी हालत की वजह पूंछी, तो मैनें उसे सब बता दिया…सारी बात सुनकर सुरेन्द्र बोला, ‘यकीन नहीं होता …मैं तो इसलिए परेशान था की सगाई तय होने की बात सुनकर भी कुछ करने की वजाय उल्टे लापता ही हो.. .एकबार को लगा कि तुम उर्मिला को लेकर भाग गये हो…लेकिन …आज उनके घर में तैयारी देखी…और उर्मिला को देखा तो सबसे ज्यादा गुस्सा आया तुझपे ..यहाँ आया तो तेरी ऐसी हालत….खैर ये बता अब क्या करना है ..क्या सोचा है? “
“हुम्म…अब क्या ही करना और किसके लिये करना …सुरेन्द्र… मुझे घर जाने वाली ट्रेन में बैठा दे यार मैं बापस जाना चाहता हूँ ?”
.उसी दिन..उसने टिकट लेकर मुझे पकड़ा दी…और यहाँ से जाने से पहले! उह्म्म्म ..लाख गुस्सा और नफरत के बाबजूद भी मेरे कदम उसके घर की ओर मुड़ गये..पता नहीं क्यों? शायद मैं उसे आखिरी बार देखना चाहता था… अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिये मैं उसके घर के दरवाजे तक गया और बाहर खड़ा हो गया..उसका पूरा घर सजाया जा चुका था…मेहमानों की आवाजाही लगी थी..बहुत देर खड़े रहने के बाद वो मुझे दिखी…और मुझे देखकर वो दरवाज़े तक भी आई!
“मैं इस शहर से हमेशा के लिये जा रहा हूँ ..सोचा जाते-जाते मुबारकबाद दे दूं …लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि धोका देने की वजाय तुम्हें साफ-साफ बता देना चाहिये था कि तुम नागेन्द्र से प्रेम करती हो…ना कि मुझसे” मैं उसे देखते ही बोला
” यही यकीन है तुम्हारा…यही भरोसा है मुझ पर?” वो गुस्से में बोली
“हुम्म ..भरोसे का जो जीता जागता सुबूत दिखाया तुमने मुझे, उसके बाद यकीन और भरोसे की बातें तुम्हारे मुँह से अच्छी नहीं लगतीं उर्मिला”
“मेरी बात तो सुनो…बहुत कुछ बताना है तुम्हें गिरि” वो अचानक रोने लगी!
“अब जो कुछ बताना हो… अपने नागेन्द्र को बताना..”
“गिरि..”
“तुम इतनी बेशर्म होओगी…मुझे सपने तक मैं अन्दाजा ना था” मैनें गुस्से में कहा और मैं वहाँ से भागता हुआ निकल आया…उसके बाद सुरेन्द्र ने मुझे ट्रेन में बैठा दिया..बस्स”
गिरिराज ने फिर एक गहरी साँस ली और आँखें मूंद कर चुप हो गये…
“हम्म्म्म और उस दिन के बाद आपने कभी उर्मिला बुआ को नहीं देखा …हैं ना?” जमीन में नजरें गढ़ाये आकाश ने बहुत गंभीर आवाज में पूँछा
“इस मन का भी कहाँ समझ आता है कुछ…किसी काम के सिलसिले में दूसरे शहर जाना हुआ हाल ही में …तो सोचा मन्दिर में भगवान के दर्शन कर लूँ…उसी मन्दिर में मुझे उर्मिला दिखी…”
आकाश ये सुनकर फिर उत्सुक हो गया और बोला “फिर बात की आपने उनसे?”
“(ना में गर्दन हिलाते हुए) नहीं…बस्स हर रोज उसी समय मन्दिर जाने लगा और उससे छिप कर उसे देखता रहता…कुछ दिन तक ये सिलसिला चलता रहा…फिर उर्मिला को ना जाने कैसे पता लग गया उसने एक दिन आगे बढकर मेरे चेहरे से नकाव हटा दिया और मुझे देख लिया
“फिर…?”
“फिर क्या मैं भाग आया वहाँ से…और फिर उसके बाद मन्दिर नहीं गया”
“ओह्ह … कम से कम आपको बात तो करनी चाहिये थी उनसे” आकाश खीजा
“क्या रखा है अब बात करने में मुझे उससे कोई बात नहीं करनी”
“अच्छा अगर कुछ रखा ही नहीं है तो आप क्यों जाते रहे मन्दिर महज उन्हें देखने भर के लिये…बताईये” आकाश ने थोड़ी तेज आवाज में पूँछा तो गिरिराज से कोई जवाव देते नहीं बना वो चुप बने रहे
“अरे बताईये ना” आकाश ने फिर पूँछा
“देखो, मुझे जो कुछ पता था मैनें सब बता दिया अब मुझे कुछ नहीं बताना…जाने दो अब मुझे” गिरिराज उठे और जाने लगे
“क्या मैं आपका एड्रेस या कोई फोन नम्बर ले सकता हूँ “
“नहीं…
“चिंता मत कीजिये मेरी वज़ह से आपकी गृहस्थी पर कोई आंच नहीं आयेगी”
“हुम्म कैसी गृहस्थी ?”
“मतलब आपने शादी .. नहीं.. की ?” आकाश ने अटकते हुए आश्चर्य से पूँछा
“हुम्म प्रेम किया था मैनें …उर्मिला की तरह प्रेम का नाटक नहीं…” गर्व से सीना ताने गिरिराज बोले और बिजली की फुर्ती से पास खड़े एक औटॉ में बैठकर औटोवाले को चलने का इशारा कर दिया।
गिरिराज की बात सुनकर प्रभावित आकाश कुछ देर आवाक सा खड़ा रहा फिर औटो के स्टार्ट होते ही वो उस और लपका
“सुनिये…सुनिये…गिरिराज जी…प्लीज रुकिये…
औटो सड़क पर दौड़ने लगा और आकाश उसके पीछे
“सु…नि…ये…प्लीज रूक जाइये”
औटो अब पूरी स्पीड से दौड़ने लगा था…और जल्दी ही आँखो से ओझल… आकाश ने दौडना बन्द कर दिया और सड़क के किनारे खड़ा हो गया।
“गिरिराज जी आप वेशक एक वफादार और सच्चे प्रेमी हैं… लेकिन इन्सान डरपोक हैं ..हम्म .पता लगना पड़ेगा आखिर ये नागेन्द्र कौन सी बला है…जिन्दा भी है या नहीं …नहीं..नहीं नागेन्द्र का जिन्दा होना बेहद जरुरी है” आकाश धीमे से बुदबुदाया
तभी उसके सिर को छूती हुई संगमरमर सी बर्फ हाथों पर गिरी
“ओह्ह वाउ स्नोफॉल” आकाश के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी उसने गर्दन घुमा कर देखा हल्की रुई की फाहे सी सफेद वर्फ सड़क और आस पास बिखरने लगी थी…
“मैं मॉल रोड पर हूँ … क्यों ना आपके दर्शन हो जायें देवी जी” और मुस्कुराता हुआ आकाश एक ऑटो रुकवा कर उसमें बैठ गया!