वो हवा में रेंगती सी उसकी ओर बढ़ती जा रही थी।..अब भी अन्धेरा था ..लेकिन बेहद हल्की सी रोशनी और उस पर ही नजर जमाए रखने का नतीजा था शायद कि वो साफ नजर आ रही थी आकाश को। एक मुर्दे के सड़ने जैसी सड़ाध.. और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी ....दोनो का एहसास एक साथ हुआ उसे....फिर उस छाया ने अपना काला और सूखा हुआ हाथ आकाश के हाथ को पकड़ने के लिये आगे बढ़ाया तभी
आकाश को ऐसा लग रहा था…जैसे किसी सुरंग के रास्ते पत्थरों के ऊपर से उसे घसीटते हुए कोई तेजी से उसे लिये जा रहा हो…और ये क्रम कुछ पल ऐसे ही चल रहा था…और कुछ मिनट चलता रहा। आकाश निढ़ाल हो गया था। और…फिर, अचानक सब शान्त हो गया आकाश का शरीर एकाएक ठहर गया …उसे कुछ पल तक तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि वो रुक गया है, वो डर से आँखें बन्द किये पड़ा रहा….फिर पीठ पर कुछ ठंडा और गिज़गिजा सा एहसास हुआ और उसने धीरे से आँखे खोली….धुप्प अन्धेरा
कुछ नज़र नहीं आ रहा था। खुद की पीठ पर ठंडे एहसास ने उसे उठने को मजबूर कर दिया ….’अह्ह क कहाँ हूँ मैं’ वो खुद में ही बुदबुदाया…फिर इधर-उधर हाथों से टटोला लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था।
‘क्या मर चुका हूँ मैं?..और अगर मर चुका हूँ तो क्या है ये ?
वो डर से फिर बुदबुदाया तभी आकांक्षा का चेहरा उसकी आँखो के सामने घूम गया ‘तो क्या आकांक्षा से कभी भी नहीं मिल पाऊंगा मैं? ये ख्याल आते ही वो वो जोर से चीखा
‘नहींssss…”
‘###’ उसी वक्त ऐसा लगा कोई बिल्कुल पास खड़ा होकर जोर- जोर से साँस ले रहा हो
“क….कौन?” बोलने के साथ ही वो पीछे की ओर घूम गया और जवाब में हवा का एक तेज झोंका उसके पास से गुजर गया
‘ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ‘की एक तेज आवाज हुई और ऐसा लगा जैसे कोई एक ओर से दूसरी ओर सरपट भागा हो….आकाश का दिमाग और शरीर सुन्न की अवस्था में ही थे अब तक.. और अब तो वो पागलों की तरह अन्धेरे में ही आँखे फ़ाड़े देखने की कोशिश कर रहा था। तभी ना जाने कहाँ से एक हल्की रोशनी उस जगह नजर आयी और उस रोशनी की वजह से ही वो बड़ी परझायीं अब आकाश को दिख गयी…
वो निश्तेज आँखो से उसे ही देख रही थी
“क कौ …न हो तुम?” लाख डर के बाबजूद भी वो पूँछ बैठा और जवाव में उस परछाईं ने अपना एक हाथ एक दिशा में उठा दिया, आकाश की आँखे उसी दिशा में घूम गयी जहाँ मिट्टी के ढेर पर एक फावड़ा रखा था ‘फावड़ा’ वो आश्चर्य से धीमी आवाज में बुदबुदाया!
इतने में उस परछायीं के चेहरे पर रोष के भाव उभरे और वो आकाश की ओर बढ्ने लगी…” ..न …नहीं …नहीं” आकाश अपने कदम पीछे की ओर् बढ़ाते हुए डर से बुदबुदाया
लेकिन वो हवा में रेंगती सी उसकी ओर बढ़ती जा रही थी।..अब भी अन्धेरा था ..लेकिन बेहद हल्की सी रोशनी और उस पर ही नजर जमाए रखने का नतीजा था शायद कि वो साफ नजर आ रही थी आकाश को। दीवार आ गयी थी और अब आकाश के कदम पीछे नहीं बढ़ पा रहे थे और अब तक वो परछायी बिल्कुल पास आ गयी थी … ‘मुझे इसी क्षण मौत क्यों नहीं आ आती…’-आकाश का कलेजा मुँह को आ गया था ..एक मुर्दे के सड़ने जैसी सड़ाध.. और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी ….दोनो का एहसास एक साथ हुआ उसे….फिर उस छाया ने अपना काला और सूखा हुआ हाथ आकाश के हाथ को पकड़ने के लिये आगे बढ़ाया तभी…
“आह्ह्ह्ह्ह” वो पूरी ताकत से चीखा और बेसुध होकर गिर पड़ा।
***
आकाश को अपने चेहरे पर एक तेज रोशनी मेहसूस हुई और उसने आँखे खोल दी…धूप खिली थी…आसमान साफ था …कुछ पंछी उड़ रहे थे…उसने लेटे-लेटे ही अपने दाहिनी ओर देखा प्लास्टर उघड़ी एक दीवार दिख रही थी!
जो बहुत पुरानी हो गयी थी….फिर बायीं ओर देखा एक किलेनुमाँ किसी घर की दीवार थी…ऐसा लगता था जैसे किसी ने पुराने किलो से प्रभावित होकर अपना घर वैसा ही बनाने की कोशिश की हो और इस प्रयास में घर का नक्शा ही खराब कर दिया हो..और उसे अचानक तेज बदबू मेहसूस हुई ‘ये बदबू कहां से आ रही है’ सोचते हुए उसने नजर खुद के पास नजर डाली..एक गन्दा नाला बह रहा था ये उसकी बदबू थी…और अब खुद को देखा …वो उसी नाले के पास लेटा था ‘हें मैं यहां क्या कर रहा हूँ …?”ये ख्याल आते ही उसे रात वाली घटना याद आ गयी और वो फुर्ती से उठ कर खड़ा हो गया…
दोनों तरफ दीवारों से घिरी ये एक संकरी सी गली थी “कहाँ हूँ मैं …ये सब हो क्या रहा है मेरे साथ” उसने खुद का सिर पकड़ लिया…तभी एक कागज उड़ता हुआ ठीक उसके पैरों के पास गिरा
“भैया, क्या वो कागज उठा देंगे…मेरा प्रश्न पत्र है” खूबसूरत सोलह -सत्रह की एक लड़की ने आकाश के पैरों कर पास पड़े एक कागज की ओर इशारा किया…और अब चौकनें की बारी आकाश की थी!
वो पागलों की तरह आँखे खोले उस लड़की को देखे जा रहा था। ‘उर्मिला बुआ….’ हैरत से आकाश के मुँह से निकला
“उठा देंगे क्या?” वो फिर से बोली….आकाश ने झुक कर खुद के पैरों के पास पड़ा पेपर उठाया और उस लड़की की ओर बढ़ा दिया
“थैंक यू ” वो मुस्कुरा कर बोली तभी एक लड़का उस लड़की के पास आया और बोला
“चले उर्मी?” और वो लड़की उस लडके का हाथ पकड़ कर वहाँ से चली गयी।
“ये तो ….ये तो गिरि है…..हां यार ये गिरि है…ठीक वैसा जैसा मैने इसे इसके जवानी के दिनों वाले फोटो में देखा था….अरे यार ये हो क्या रहा है” आकाश ने हैरत से अपने सिर के बाल पकड़कर खींच लिये।
फिर जब उन दोनों को वहाँ से जाते देखा तो पीछे-पीछे हो लिया। गिरिराज एक ढ़ीला-ढ़ाला पेंट और शर्ट पहने था जबकि उर्मिला हरे रंग का कुर्ता सलवार जिस पर उसने गुलाबी चुनरी ओढ़ रखी थी।
“तुम्हें नहीं लगता उर्मी कि हमें अपने घरवालों को बता देना चाहिये” गिरिराज बोला
“नहीं गिरि, मुझे बहुत डर लगता है” उर्मिला घबराकर बोली
“डर किस बात का …हमनें कोई चोरी की है क्या? प्रेम करना कोई पाप है क्या? और फिर आज नहीं तो कल पता लगना ही है”
“क्या हम कुछ और दिन नहीं रुक सकते गिरि? “
“दिनो की क्या बात करती हो उर्मी मैं तो सात जन्म रुक सकता हूँ …लेकिन तुम्हारे घरवाले… वो नहीं रुकेंगे ना …मैने सुना है तुम्हारे राघव भैया कोई लड़का देख रहे हैं तुम्हारे लिये …जब से ये सुना है मेरी बेचैनी बढ़ गयी है”
“तुम्हे क्या लगता है मुझे घबराहट नहीं होती? लेकिन वो घरवाले हैं …उनका काम है लड़के देखना .देखने दो उन्हें बहुत वक़्त लगता है इस सब में…बस्स कैसे भी मेरी ग्रेजुएशन पूरी हो जाये” एक कम भीड़-भाड़ वाली जगह आ गयी थी और उर्मिला वहीं पड़ी एक बेंच पर बैठ गयी।
“यहाँ नहीं चलो पार्क चलते हैं” गिरि ने ये बोलते हुए उसे वहाँ से उठाया और दोनों पार्क मे जाकर बैठ गये और आकाश उनके पीछे ही था।
“और इसी बीच कोई पसंद आ गया तुम्हारे लिये तो?” गिरी एक साफ जगह पर बैठ गया!
“तो क्या करुँ गिरि बताओ ना…. अगर अभी बताया तो घर में बड़ा हंगामा हो जायेगा…और..”
“और क्या …चुप क्यों हो गयी?”
“गिरि अगर सब छोड़ छाड़ देने की नौबत आयी तो क्या करोगे, तुम्हारी तो पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई…”
“बस्स इतना ही भरोसा है मुझ पर…..वो मेरी समस्या है ना कि तुम्हारी… ना सही तुम्हारे घर जैसी शान-शौकत लेकिन अच्छी जिंदगी दे सकता हूँ तुम्हें…और फिर थोड़े वक़्त की बात है…इतनी मेहनत करुँगा कि दुनिया का हर सम्भव सुख दे सकूँ तुम्हें ” गिरिराज घिसियाहट वाली हँसी के साथ बोला
“तुम अच्छी तरह जानते हो मेरा कहने का मतलब क्या है गिरि” उर्मिला चिढ़ गयी थी।
“तो क्या किया जाये?”
“बस्स अपनी पढ़ाई पूरी कर लो और मैं अपनी …अच्छी नौकरी होगी तो शायद घरवालों पर अच्छा प्रभाव पड़े”
“कुछ भी क्यों ना बन जाऊँ…कास्ट… अपनी कास्ट का क्या करूँगा….जाति का अन्तर कैसे मिटेगा” गिरिराज उदास होकर बोला
“ओह्ह गिरि ..मैं तो तुमसे प्यार करती हूँ ना…फिर कोई कुछ भी सोचे क्या फर्क पड़ता है”
“जानता हूँ …और है ही क्या सिवाय तुम्हारे प्रेम के मेरे पास”
” ऐसे क्यों बोल रहे हो, क्या खुश नहीं हो मुझसे?”
“कैसी बात करती हो…बेशकीमती खजाना हो जिसके पास वो तो पहले से ही मालामल है” गिरिराज के ये बोलते ही उर्मिला जोर से हँसी और गिरिराज ने उसका साथ दिया
“तो चलूँ?”उर्मिला जाने के लिये उठ गयी थी
” क्या ये बात करके मेरी खुशियों में खलल डालना जरुरी था?” गिरिराज दुखी होकर बोला
“कैसी बातें करते हो गिरि… घर तो जाना ही पड़ेगा ना…क्यों इतने दुखी होते हो “
“जिसका खजाना खतरे में हो वो भला खुश होगा क्या?”
“उफ्फ ( उर्मिला ने आगे बढ़कर गिरिराज के हाथ पकड़ा) जब ऐसे चिंता करते हो ना तो बड़ा अच्छा लगता है…लेकिन भरोसा रखो तुमसे कोई भी अलग नहीं कर सकता मुझे…अब जाने दो” उर्मिला दुखी होते हुए वहाँ से चली गयी, गिरिराज उदास बैठा उर्मिला को जाते हुए देखता रहा
फिर कुछ देर चुपचाप बैठा रहा और बाद वो भी चला गया।आकाश धीमी कदमों से गिरिराज के पीछे हो लिया।
आस-पास के रास्तों को पहचानता हुआ आकाश लगातार खुद के आगे चल रहे गिरिराज पर नजर बनाये हुये था
गिरिराज अपने कमरे में पहुँचा और अनमने मन से लकड़ी की आलमारी में रखी एक बोतल निकाली और पीने लगा
“ये क्या …हमने तय किया था ना…कि जब परीक्षा का रिजल्ट आएगा तब पियेंगे…और तू…और वो भी अकेले…”घर के भीतर से आते हुए एक लड़का बोला
“यार सुरेन्द्र, मुझे माफ करना लेकिन क्या करता बहुत परेशान हूँ “
“क्यों क्या हुआ?” सुरेन्द्र ने पूँछा
“अब तुझसे क्या छिपाना…मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ “
“हें?? किससे? कब से?” सुरेन्द्र ने चौंक गया!
“तुम जानते हो उसे…मैं उर्मिला की बात कर रहा हूँ “
“उर्मिला….वो …वो राघव की बहिन”
“हाँ वही”
“ये क्या किया…सारी दुनिया में लड़कियों का अकाल पड़ा गया था क्या…तुझे यही मिल पायी?” सुरेन्द्र गुस्से मे आ गया था।
“क्या कमी है उर्मिला में?”
“वाह मानना पड़ेगा, इसे कहते हैं ओवर कॉन्फीडेंस…खुद की सूरत देखी है तूने..? पूँछता है उर्मिला में क्या कमी है हुँह…जब उसे पता चलेगा ना…एक मिनट कहीं तूने उसे बता तो नहीं दिया?”
“वो भी मुझे प्रेम करती हैं..”
“हें ….ओह्ह तो मामला आगे बढ़ चुका है…. तुझसे हाँ भी बोल दिया… ना जाने क्या देख कर”
“सुरेन्द्र अब बस्स कर यार…और मदद कर मेरी”
“मदद….अबे कौन मदद करेगा तेरी…वो राघव गुस्से में पूरा पागल रहता है हमेशा…अगर उसे पता लगा तो मार डालेगा तुझे भी और मुझे भी”
“ठीक है तो मार डाले…लेकिन मैं उर्मिला से शादी करूँगा चाहे उसे भगा कर ले जाना पड़े”
“भगा कर…(कुछ सोचते हुए) वैसे और करेगा भी क्या, कुछ और करने का वक़्त जो नहीं बचा”
“मतलब?”
“मतलब क्या ….तुझे नहीं पता, उर्मिला की सगाई की बात की बात चल रही है उस नागेन्द्र के साथ…बात ही क्या सब तय समझ अब तो”
“क्याssss” गिरिराज चौंक गया और बाहर छुप कर खड़ा आकाश भी, वो नागेन्द्र का नाम सुनकर ज्यादा सजग हो गया था।
“तुझे ये बात उर्मिला ने नहीं बतायी?”
“नहीं….आखिर उर्मिला ने मुझे ये बात बतायी क्यों नहीं”
“हम्म….मतलब उन्हें भी नहीं पता होगा…और लड़कियों को पूछता ही कौन है?”
“नहीं …नहीं अब तो जल्दी कुछ करना पड़ेगा” फिर एक कागज़ पर कुछ लिखा और सुरेन्द्र को पकड़ाते हुए बोला “मेरे भाई जल्दी से ये लेटर उर्मिला को दे आओ और देखो उससे जवाव लेकर ही आना”
“वाह यार! बनाया भी तो क्या? कबूतर “
“मज़ाक का वक़्त नहीं है यार”
“ठीक है मेरे बारे में लिख दिया ना”
“हाँ पढ़ ले”
“ऐसे कैसे ….तुम्हारी पर्सनल “
“जब कह रहा हूँ तो पढ़ ले”
“ठीक है ” कहते हुए उसने गिरिराज का लिखा हुआ पत्र खोला और जोर से पढ़ने लगा।
“उर्मिला,
ये सुरेन्द्र है…मेरा विश्वास पात्र और सच्चा दोस्त, हमारे बारे मे सब जानता है…
मुझे पता लगा है कि तुम्हारी सगाई किसी नागेन्द्र से तय कर दी गयी है,
तुम चिंता मत करना..जब तक मैं जीवित हूँ तुम्हारा विवाह किसी और से
नहीं होने दूँगा फिलहाल तो ये समझो कि हमारा मिलना बहुत जरुरी है
सुरेन्द्र के हाथ लिख भेजो कि हम कब मिल सकते है।
सिर्फ तुम्हारा गिरि”
“हम्म्म….ठीक है चलता हूँ ” कहकर उसने गिरिराज को गले से लगाया और तेजी से निकल गया, उसके निकलते ही गिरिराज ने शराब की बोतल उठा कर मुहँ से लगा ली, और आकाश सुरेन्द्र के पीछे हो लिया।
अब सुरेन्द्र जहाँ भी जाता आकाश दबे पांव उसके पीछे जाता। और रास्ते पहचानने के लिये इधर-उधर भी देखता जाता था।
सुरेन्द्र, उर्मिला के घर पहुँच गया। और दरवाज़े से ही तेज आवाज लगा दी “राघव”
***
ये तो वही घर है…वही मेरी दादी वाला घर जिसमें इस वक़्त में मैं राघव चाचा के साथ रहता हूँ …लेकिन ये तो पूरा बना हुआ है बस्स आस-पास का माहौल बदला हुआ है…ये सब मेरी समझ के बाहर है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा यार ये सब हो क्या रहा है-आकाश अपने मन में ये बातें कर ही रहा था कि बड़ी तेज आवाज के साथ लकड़ी से बना हुआ एक भारी भरकम दरवाजा खुला और सामने खड़ी थी उर्मिला, गुलाबी और सफेद कुर्ता सलवार पहने, कंधे तक के खुले बालों में बेहद सौम्य दिख रही थी!
‘ओह्ह उर्मिला बुआ कितनी सुन्दर दिख रही हैं’निराश आकाश के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी।
“राघव भैया तो कहीं गये हैं” वो सुरेन्द्र से बोली
“जानता हूँ …गिरि ने आपके लिये एक एक संदेश भेजा है, और जवाव भी मांगा है”सुरेन्द्र फुसफुसाकर बोला और गिरिराज का लेटर दरवाजे के किनारे रख दिया…
“चिंता मत कीजिये मैं आप दोनों के बारे में सब जानता हूँ।” उर्मिला के चेहरे पर डर देखकर सुरेन्द्र ने बड़ी शांति से कहा तो आकाश उसकी इस समझदारी से प्रभावित हो गया। उर्मिला ने लेटर उठाया और भीतर चली गयी…थोडी देर में बापस आयी और एक छोटा सा डिब्बा उसे पकड़ाते हुए बोली “आपके लिये लड्डू हैं इसमें और उनके के लिये जवाव भी इसी में है”
“लड्डू …वाह। शुक्रिया ” सुरेन्द डिब्बा लेते हुए मुस्कराया और तेजी से वहाँ से चला गया। और जाहिर है आकाश फिर से सुरेन्द्र के पीछे हो लिया। (आगे वाला हिस्सा आप को रिलेट करेगा पार्ट 8 और 10 से)
***
गिरिराज खत खोलकर पढ़ा और मोड़कर अपनी जेब में रख लिया।
“हम्म …. सुरेन्द्र क्या तुम्हें पता है कहाँ जा रहे हैं ये लोग कल शादी में ”
“हम्म जानता हूँ …उनकी अगली गली में ही एक शादी है …अच्छे रिश्ते हैं उनसे इन लोगों के…अच्छा मौका है तेरे पास, क्योंकि राघव भी शादी में जरुर जायेगा” सुरेन्द्र लड्डू खाते हुए बोला
“तुझे इतना पक्का यकींन कैसे है ?”
“उसी गली में रेशमा जो रहती है, और राघव उसे देखने का एक भी मौका नहीं छोड़ सकता”
“रेशमा…वो …वो”
“हां वही…राघव उसके प्यार में पागल है …ना जाने कितने लोगो को पीट चुका है अब तक, जो भी उसके प्रेम या रेशमा के खिलाफ एक भी शब्द बोलता है …फिर तो उसको राघव के हाथों भगवान ही बचाए”
“अगर वो खुद प्यार में है, फिर तो उसे हमारा…
“सोचन भी मत बेटा ..ये दुनिया ऐसी ही है….लड़कियाँ अपने भाई के प्रेम को सफल कराने में खुशी से मदद करती हैं..जबकि लडके ऐसा नहीं कर पाते”
सुरेन्द्र की इस बात ने दोनों को ही सोच में डाल दिया। और थोड़ी देर के लिये खामोशी छा गयी।
***
गिरीराज शाम साढ़े सात बजे के आस पास घर की पिछ्ली दीवार से अन्दर की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ने लगा
आकाश ने उसे जब सीढ़ियाँ चढ़ते हुए देखा तो उसे गिरिराज की कही हुई बात याद आ गयी….गिरिराज अंकल जब उस नागेन्द्र को देखेंगे तो दरवाजे से बाहर निकलेंगे इसका मतलब मुझे नागेन्द्र दरवाजे से दिख सकता है…पर्फेक्ट…आज मैं नागेन्द्र को देख कर ही रहूँगा…- जोश से भरा आकाश खुद से बोला और जाकर घर के मेन दरवाजे से सटकर खड़ा हो गया और एक दरार से अन्दर की ओर झांकने लगा।
उर्मिला तानावमुक्त चेहरे के साथ किचिन के बाहर खड़ी थी कोई उसकी ओर मुँह करके खड़ा था। और कुछ बोल रहा था उसका चेहरा नहीं दिख रहा था। आकाश ने आँख हटाकर अपना कान उस दरार पर सटा दिया ताकि उसे सब सुनायी देने लगे। उसे बड़ी धीमी आवाज में सब सुनायी देने लगा।
“अब मैं इतना बड़ा स्वार्थी तो हूँ नहीं ..जो सब जानते हुए भी तुमसे शादी कर लूं…सोचता हूँ शादी के लिए मैं ही मना कर दूं?
“सच…?”
“हाँ..और क्या, अगर मै इनकार करूँगा तो तुम पर कोई आंच भी नहीं आएगी…लेकिन?
“लेकिन क्या?” उर्मिला घबराकर कर बोली
“लेकिन ये! कि फिर सोचता हूँ..इसमें मेरा क्या फायदा? मुझे क्या मिलेगा? सब मुझे बड़ा बुरा भला कहेंगें…बताओ मैं सबकी गालियां ऐसे ही फ्री में ही क्यों सहूँ भला ?”
“मेरे पास सोने के दो कड़े हैं…बहुत भारी हैं, एकदम शुद्ध खरे सोने के …उनके बारे में आपसे कोई कभी भी कुछ नहीं कह पाएगा मैंने अपने स्कॉलरशिप के पैसों से बनवाएं हैं ! मैं वो आपको दे देती हूँ! अभी लाई…” उर्मिला किचिन से बाहर निकलकर कमरे की ओर जाने को मुड़ी ही थी, कि नागेन्द्र ने उसे टोकते हुए कहा,
“रुको! भला, मैं क्या करूँगा सोने के कड़ो का…मुझे तो उससे भी कीमती कुछ चाहिए…”
“मेरे पास उन कड़ो से ज्यादा कीमती कुछ भी नहीं है इस वक़्त…बाद में गिरी से…”
“बड़ी भोली हो…ये तुम्हारा नाजुक बदन सोने से कहीं ज्यादा कीमती है..मुझे यही चाहिए “
“इस कमीने को अपने हाथों से मारूँगा मैं” बाहर खड़ा आकाश गुस्से में भुनभुनाता हुआ आकाश अपने आसीने समटेने लगा! लेकिन
“चीखों मत (नागेंद्र भी चीख कर बोला, फिर संयत आवाज में कहने लगा) “ सोच लो…फायदे का सौदा है..बस्स एक बार की ही तो बात है….ये बात मेरे और तुम्हारे बीच राज ही रहेगी हमेशा के लिए! मैं वादा करता हूँ ! फिर मैं शादी से इनकार कर दूँगा…और जब अचानक ऐसे सगाई टूटेगी तो तुम्हारे घरवाले उस नीची जाति के गिरिराज से शादी के लिए आसानी से राजी हो जाएंगे….”
“निकल जाओ यहां से…”उर्मिला सख्त आवाज में नागेंद्र को घूरते हुए बोली!
“हुम्म…जैसे तुम कहोगी और मैं चला जाऊँगा?
“सीधी तरह से जाते हो या बुलाऊँ किसी को ?” उर्मिला गुस्से में बोली!
“किसे बुलाओगी? अपने घरवालों को ? बुलाओ! मेरा काम आसान हो जाएगा क्योंकि मैं तो तय कर चुका हूँ कि मैं तुम्हारे बारे में तुम्हारे घरवाओं को बताऊँगा, कि तुम्हारा प्रेम प्रसंग उस गिरिराज से चल रहा है…फिर तुम्हारी शादी या तो मुझसे या…शायद किसी बुढ्डे के साथ कर दी जाएगी…और मैं तुम जैसी लड़की से शादी करूंगा, ये तो भूल ही जाओ, हाँ किसी बुढ्डे से जरूर होगी, फिर तुम सारी जिंदगी घुट-घुट कर जियोगी …और ये तो निश्चित है कि सब जानने के बाद राघव, तुम्हारे उस गिरि को मार ही डालेगा…और फिर खून! और खून की सजा मौत है….ये तो तुम जानती होगी…राघव को मौत की सजा मिलेगी ……”
बात पूरी करता नागेंद्र इससे पहले ही उर्मिला घबराती हुई बोली “नहीं …नहीं…….”
लेकिन नागेन्द्र ने कहना जारी रखा
“और तुम्हारे माँ, बाऊ जी…जब उन्हें पता लगेगा उनकी बेटी किसी से प्रेम करती है, सो भी किसी नीची जाति के लड़के से..हुम्म…तो वो तो शर्म से खुद ही फांसी पर लटक जाएंगे”….
“नहीं …नहीं…नहीं…ऐसा मत करना मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ” उर्मिला डर से रोते हुए बोली..तो गुमान से भरा नागेन्द्र आंगन में पड़ी चारपाई पर बैठ गया….और बेशर्मी से उर्मिला को घूरते हुए बोला
“तुम्हारे पास मेरी बात मानने के अलावा कोई और चारा नहीं है उर्मिला!”
आंसुओं से भरा चेहरा लिए उर्मिला जहाँ खड़ी थी…वहीं किचन में फर्श पर बैठ गयी…..
शाम का धुंधला उजाला अंधेरे में मिलने लगा था…तूफान आने के आशार थे…और थोड़ी देर में ही तेज़ हवा चलने लगी…जिससे बिजली गुल हो गयी…उर्मिला अंधेरे से और भी घबरा गयी और उसने जल्दी से मिट्टी की लैम्प जला दी
” क्यों बेकार सोचने में वक़्त बर्बाद कर रही हो… तुम्हारे घरवाले जल्दी ही लौट आएंगे…..” वो तेज आवाज में खीजते हुए बोला
और उर्मिला को इस बार उसकी तो क्या …आने वाले तूफान की भी तेज आवाज सुनाई नहीं दे रही थी!
हवा से फड़फड़ाती लैम्प की लौ पर नजरें टिकाए वो बस्स शून्य में देख रही थी…पूरा जोर लगाने पर भी दिमाग ने जैसे कोई भी सुझाव देने से मना कर दिया था।
“रुक जा आकाश! ये ओ दिख ही रहा ना, कि तू बीती घटनाओ को देख रहा है! कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ ना हो जाए! रुक जा! बस देख!”आकाश के दिमाग ने उसे कुछ भी करने से रोक दिया!
“ओह्हो…” खीजते हुए नागेन्द्र चारपाई से उठा और बिल्कुल उर्मिला के पास आकर खड़ा हो गया और उसके कंधे पर हाथ रख दिया, “आह्ह” डर से उर्मिला के मुँह से निकला
“तुम्हारा गिरि आ गया है उर्मिला मैनें उसे अहाते मे देखा है और ये देखो मेरे पास क्या है (खुद की जेब से एक पिस्टल निकालकर उसने उर्मिला को दिखायी) सोचता हुँ उसे रास्ते से हटा ही दूँ।
“नहीं, उसे कुछ मत करना” उर्मिला रो रही थी
“नहीं करूँगा!अगर तुम चुप रही तो…लेकिन अगर बोली तो सारी गोलियां उसके सीने में उतार दूँगा”
उसी वक्त गिरिराज नीचे उतर आया। और उसे देखकर नागेन्द्र ने उर्मिला की कमर पर अपनी बाहों का घेरा बना लिया …और गुस्से में जैसे ही गिरिराज उर्मिला की ओर बढ़ा।
” खबरदार जो मेरे नजदीक आने की भी कोशिश की …उर्मिला से मेरी सगाई हो चुकी है…जल्द ही शादी भी होने वाली है …तेरी भलाई इसी में है कि तू दूर रह उर्मिला से..वरना तेरी खैर नहीं” नरेंद्र चीखकर बोला
“शर्म नहीं आयी तुम्हें?” गिरिराज ने गुस्से में उर्मिला से कहा
” मैनें कहा ना उर्मिला मेरी होने वाली पत्नी है भलाई चाहो तो निकल जाओ यहाँ से”लेकिन जवाव नागेन्द्र ने दिया
और गुस्से से भरा गिरिराज वहाँ से भागता सा निकल आया
“रुक जाइये गिरि अंकल वो कमीना बेबकूफ बना रहा है आपको..हे भगवान अब बुआ को कौन बचायेगा” आकाश धीरे से बुदबुदाया ।