"क्या कहा था नाजुक बदन ...नाजुक नहीं हूँ... मैं नहीं हूँ नाजुक...ले देख" गुस्से में भरी उर्मिला तेज आवाज में बोली और नागेन्द्र की उसी चोटिल जगह पर उसने दूसरी बार चाकू घोंप दिया!"
15.
“हे भगवान! अब मैं क्या करुँ?” आकाश घबराकर मन ही मन बोला, और फिर से अन्दर की ओर झांककर देखने लगा!
” ये तो बड़ा अच्छा हो गया रास्ते का काँटा खुद -ब-खुद हट गया…तो अब कैसी देरी?” नागेन्द्र बेशर्मी से बोलते हुए उर्मिला के और नजदीक खिसक आया।
“हे ईश्वर ये बुआ चुप क्यों हैं…नहीं …नहीं जो होगा देखा जायेगा मैं अब खुद को नहीं रोक सकता” गुस्से में बुदबुदाता आकाश घर में घुसने के लिये आगे बढ़ा ही था कि अन्दर के नजारे ने उसे खुद को रोकने के लिये मजबूर कर दिया।
अब तक बुत सी बनी उर्मिला ने फुर्ती से किचिन में रखा चाकू उठा लिया था और पूरी ताकत से पीछे खड़े नागेन्द्र पर चला दिया।
“आह्ह” नागेन्द्र जोर से चीखा। उर्मिला पीछे की ओर पलटी और गुस्से में उसने इस बार पूरी ताकत से पूरा चाकू का सिरा नागेन्द्र के पेट में घुसा दिया….दर्द और आश्चर्य से भरा नागेन्द्र, उर्मिला को किसी अजूबे की तरह देख रहा था।
“क्या कहा था नाजुक बदन …नाजुक नहीं हूँ… मैं नहीं हूँ नाजुक…ले देख” गुस्से में भरी उर्मिला तेज आवाज में बोली और नागेन्द्र की उसी चोटिल जगह पर उसने दूसरी बार चाकू घोंप दिया
“पागल हुई है क.. क्या ..आहह” नागेन्द्र लड़खड़ाते शब्दों में बोलते हुए उर्मिला की ओर लपका
और जवाब में उर्मिला ने इस बार तीसरा बार नागेन्द्र की उसी चोट पर कर दिया…”आह्ह…छोडूंगा नहीं तु…झे ” गुस्से में भरा नागेन्द्र चीखता हुआ नागेन्द्र उर्मिला को पकड़ने के लिये आगे बढा लेकिन दर्द की वजह से लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा।
फिर गुस्से में भरी उर्मिला जैसे खुद के आपे से बाहर हो गयी…और एक के बाद नागेन्द्र पर बार करने लगी…और तभी रुकी जब नागेन्द्र का शरीर सिथिल पड़ गया…जब उसके शरीर ने कोई प्रतिक्रिया करना बन्द कर दिया …तो एकाएक जैसे उर्मिला को होश आया …उसने चाकू एक तरफ फेंक दिया और वहीं नागेन्द्र की लाश के पास बैठ गयी..
फटी आँखो से वो नागेन्द्र की लाश को ऐसे देख रही थी जैसे ये कृत्य उसने किया ही ना हो!
उधर, बाहर खड़ा आकाश भी खुद के मुँह पर हाथ रखे अतिरिक्त रूप से आँखे खोले सकते में खड़ा था।
उर्मिला, नागेन्द्र की लाश को देख रही थी और आकाश, उर्मिला को…
कुछ पल सब एकदम शान्त रहा सिवाय तेज तूफानी हवा के ….बस्स वही शोर मचा रही थी।
और पानी की जब एक बड़ी बूंद आकाश के हाथ पर गिरी तब वो चौंक कर होश में आया
“ओह्ह बेचारी बुआ…मुझे उनकी मदद करनी चाहिये कैसे करुँ?…कैसे ? ” इधर उधर देखते हुए उसकी नजर पास ही खड़े एक सब्जी के ठेले पर गयी …और वो कुछ सोचता इससे पहले ही एक लड़के ने वो अपना आखिरी सामान उठाते हुए ठेले को उर्मिला के घर के सामने खड़ा कर दिया और उस पर रखी बोरी उठायी और यूं ही हवा में उछाल दी…जो उर्मिला के आँगन मे जाकर गिरी “हाहाहा” लड़का मौसम के सुहाने होने से खुश हुआ और भागता सा वहाँ से चला गया।
बोरी के गिरने से सकते में बैठी हुई उर्मिला चौंक गयी फिर हरकत में आते हुए उर्मिला ने बोरी को कुछ पल देखा और फिर उसने बोरी उठायी और नागेन्द्र की लाश को बोरी में डालने लगी!
ये बड़ी मशक्कत का काम था लेकिन थोड़ी देर की भरसक कोशिश के बाद उसने लाश को बोरी में डाल लिया था फिर उसका सिरा बान्ध कर वो बोरी को खींचते हुए घर के बाहर ले आयी और सामने खड़े ठेले पर रख दिया, उसने खुद को एक कम्बल से लपेटा और ठेले को धकेलते हुए ले जाने लगी!
“शाबाश ये हुई ना बात” आकाश उत्साह में भरा धीरे से बोला ….और उर्मिला के पीछे चलने लगा।
लगभग आधे घंटे भर की कवायद के बाद उर्मिला उस ठेले को गालियों और फिर सड़क से निकालती हुई एक सुनसान जगह ले आई थी, जो श्मशान था.. ………….(पार्ट -1का हिस्सा) और अब मूसलाधार बारिश होने लगी थी…धुप्प अंधेरे में अब मात्र बिजली चमकने का ही सहारा था…उर्मिला ने अंधेरे में ही इधर उधर देखने की कोशिश की..बिजली चमकी..और बिजली की चपलता से ही उसने अपने ऊपर पड़ा कम्बल उतार फेंका ….
ठेले के नीचे बनी एक लकड़ी की पट्टी पर रखा फावड़ा उसने उठाया और बड़े सधे कदमों से कुछ दूरी नापी …. बिजली फिर चमकी और कब्रिस्तान का वो माहौल उसे डरा गया..अन्धेरे में उसे आस पास की कँटीली झाड़ियां और पेड़ खुद के पास सरकते से महसूस हुए, सांय सांय करती रात में कई आँखे खुद की ओर घूरती महसूस हुई..उसने खुद का सिर झटका और खुद को मजबूत किया फिर…
उसने खड्डा खोदना शुरू कर दिया…बार- बार बिजली चमकने से उसे खड्ढे की गहराई दिख जाती…ना जाने कहाँ की असीम शक्ति उसके हाँथो में आ गयी थी, वो पागलों की तरह जमीन पर फावड़ा चला रही थी…..अब उसके नाजुक हाथ छिल गए थे…खून बहने लगा था उनमें से ….और घण्टों की कड़ी मेहनत के बाद जब फिर बिजली चमकी तो इस बार वो खड्ढे की गहराई को देख आश्वस्त हो गयी…उसने फावड़े को एक ओर फेंक दिया फिर हाँफते हुए ठेले को ठेलते हुए उस खड्ढे तक लायी और बोरे का सिरा खड्ढे की ओर झुकाकर सिरे पर बंधी गाँठ को खोल दिया..’धम्म’ की आवाज के साथ लाश उस खड्ढे में गिर पड़ी, बिजली फिर चमकी और इस दूधिया रोशनी में उर्मिला के चेहरे पर नफरत और घृणा के भाव स्पष्ट रुप से थे..वो हाँफती सी फिर उठी और मिट्टी से उस खड्डे को भरने लगी थकान के कारण कई बार गिर पड़ती, लेकिन जल्दी से उठती और अपने काम पर लग जाती.
बहुत देर की मशक्कत के बाद ये काम खत्म हुआ…काम खत्म कर उसने अपना चेहरा आसमान की ओर उठा दिया जिस पर तेज़ पानी की बूंदें गिरने लगी जो उसे आराम का अनुभव दे रही थीं, वो कुछ देर वैसी ही बैठी, फिर उठी और उसने पानी के तालाब में उस ठेले को धकेल दिया..और एक दिशा में दौड़ गयी..उसे इस बात का भान तक ना था कि आकाश लगातार उसके साथ बना रहा है…
जैसे ही उर्मिला वहाँ से गयी आकाश ने कोई कमी ना छोड़ने के इरादे से वही रखा फावड़ा उठाया और मिट्टी को कब्र के ऊपर डालकर रही सही कसर पूरी कर दी।
फिर उर्मिला के पीछे -पीछे वो घर तक गया….जैसे ही उर्मिला घर के अन्दर चली गयी वो भी वहाँ से चला गया।
***
इतनी रात को कहां जाना चाहिये या क्या करना चाहिये इसकी आकाश को कोई सुधि नहीं थी। बस्स एक समान गति में वो सड़क पर चलता जा रहा था….
“चाहे कितनी भी कोशिश कर लूं …लेकिन क्या मजाल जो ये मेरी बात समझ ले…और मां, बाबू जी जाने क्यों नहीं समझते कि उसके बिना….अरे देख कर चलो भैया” बड़बड़ाते हुए जा रहा था वो कि अचानक आकाश से टकरा गया..
“ओह्ह माफ करना” आकाश ने बोलने के साथ ही उसे देखा, वो इकहरे बदन का लड़का था जो दिखने बेहद गोरा और स्मार्ट लग रहा था!
एक हाथ में शराब की बोतल पकड़े हुए हुए था और नशे की वजह से ठीक से खड़ा भी नहीं हो रहा था।
“राघव चाचा” उस लड़के के चेहरे पर नजर पड़ते ही आकाश के मुँह से निकला!