"पहली और दूसरी साल का ऐसा कौन सा मेथ्स का सवाल था जो राघव यूँ (चुटकी बजाते हुए) चुटकी में हल ना कर दे...लेकिन अब ... अब देखो जब से उसे देखा है... एक सवाल...एक भी सवाल हल नहीं होता ...एक भी नहीं .ना जाने क्या हो गया है!"
16.
“अरे यार देखो तुम्हारे टकराने की वजह से मेरी बोतल छलक गयी और देखो कितनी सारी शराब फैल गयी”
राघव के बोलने का आकाश पर कोई असर नहीं हुआ वो तो बस्स घूर रहा था!
“ऐसे क्या घूर रहे हो..वो देखो कितनी शराब फैल गयी है” राघव ने जमींन की तरफ ऊँगली का इशारा किया तो आकाश ने देखा, मुश्किल से बोतल के ढक्कन जितनी शराब गिरी हुई थी ! वो मुस्करा गया!
“पता है कितनी कीमती है ये ?”
“कितनी?”
“ऐसी-वैसी नहीं है ये बड़े बड़े ड्रम में भरकर इसे जहाजो में रखकर समुंद्र के रास्ते पूरे यूरोप में घुमाया जाता है “
“यूरोप में ….क्यों भला?” आकाश ने उत्सुकता से पूँछा
“क्याआ यार इतना भी नहीं जानते ताकि इसमें इतना शानदार स्वाद आये …इस शराब में समुंद्र की खुशबू मिली हुई है…समझ रहे हो ना?”
“जी मुझसे गलती हो गयी माफ कर दीजिये” आकाश खुशी से ओत प्रोत होकर बोला, वो राघव को इस रूप में देखकर अभिभूत था
“हम्म किया…माफ किया” कहता हुआ राघव एक दीवार की मुंन्डेर पर बैठ गया
“बहुत धन्यवाद, माफ करने के लिये, वैसे बहुत कीमती थी आपकी शराब” आकाश भी मुस्कुराता हुआ उसके पास बैठ गया।
“तो और क्या ऐसे ही…वैसे पहले कभी देखा नहीं तुम्हें यहाँ …आज क्या पहली बार आये हो?”
” आ… वो…” क्या ही कहे आकाश कुछ समझ नहीं पा रहा था
“हम्म समझता हूँ जरुर तुम्हारी जिंदगी भी किसी लड़की की वज़ह से उलझ गयी होगी! हैं ना?”
“अ …”
“.. ये लड़कियाँ भी जिससे प्यार करेंगी उसके लिये सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हो जायेंगी लेकिन, जिससे प्यार करेंगी उसी लड़के की बात नहीं मानेगीं …अरे क्या फर्क पड़ता है ना हो कोई राजी तो …लेकिन नहीं, रजामन्दी चाहिये तो मेरे माँ, बाऊ जी की (फिर कुछ सोचते हुए) क्या तुम्हें भी पीनी है?”
“ना… नहीं ” अब भला अपने चाचा के साथ तो नहीं पी सकता आकाश ने ये सोचते हुए ना कर दी
“तो क्या इस शराब की दुकान के बाहर जूस पीने आये थे”
“अरे मैं तो इधर से …बस्स ऐसे ही …वो”
“अरे क्या यार! वो, मैं, ये कर रहे हो …समझ गया संकोच कर रहे हो… ये लो पी लो…बात कहने में आसानी होगी” बोलते-बोलते राघव ने बोतल से थोड़ी शराब आकाश के मुँह में उड़ेल दी!
“अब अच्छा लग रहा है ना?”राघव ने पूँछा
“ज …जी ….” आकाश ने झेंपते हुए जवाब दिया !
तो राघव जोर से हंसा फिर अचानक चुप हो गया और उसके चेहरे पर उदासी घिर गई !
“क्या हुआ राघव चा…” क्या कहकर बुलाना चाहिए इन्हें, आकाश थोड़ा कन्फ्यूज हो गया, तभी, राघव ने कहा
“तुम नाम कैसे जानते हो मेरा?” राघव के पूंछने पर आकाश सकपका गया। फिर खुद ही कुछ सोचते हुए बोला “ओह्ह जरुर अखबार में पढ़ा होगा और मेरा फोटो भी देखा होगा, है ना?”
“जी ” आकाश ने जल्दी से बोलते हुए हामीं मे सिर हिला दिया
“हम्म… ये पूरा शहर पहचानता है मुझे…मेथ्स का टॉपर हूँ मैं (दो उंगलियाँ दिखा कर) और दो साल से लगातार कॉलेज भी टॉप किया है मैनें ..पहली और दूसरी साल का ऐसा कौन सा मेथ्स का सवाल था जो राघव यूँ (चुटकी बजाते हुए) चुटकी में हल ना कर दे…लेकिन अब … अब देखो जब से उसे देखा है… एक सवाल…एक भी सवाल हल नहीं होता …एक भी नहीं .ना जाने क्या हो गया है ….सोचता था शादी कर ये ये चैप्टर बन्द कर दूँ ..और फिर अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान लगा दूँ ….लेकिन …कहाँ कुछ इतना आसान है… ना रेशमा शादी को मानती है ना माँ बाऊ जी समझते हैं …बताओ शराब ना पियू तो करुँ क्या? (फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद) सुनो तुम्हारा नाम क्या है”
“…अ …आ” आकाश फिर कन्फ्यूज हो गया!
” क्या यार इतना क्या सोचते हो…खैर ये बताओ तुम कितना पढ़े हो?”
“मैं क्या ही पढूंगा आपकी तरह ना तो मैं टॉपर हूँ ना ही किसी काम में माहिर, मेथ्स तो बहुत दूर की बात है…मुझे तो इतिहास, भूगोल, अग्रेंजी, साहित्य कुछ भी समझ नहीं आता”
“हम्म… मतलब आर्ट्स के स्टूडेंट हो?”
“अरे काहे का स्टूडेंट…पाँच साल से बी.ए.जैसी परीक्षा पास नहीं कर पा रहा हूँ ” आकाश बहुत हताशा के स्वर मे बोला
“क्या…क्या कहा …पाँच साल से बी. ए.की परीक्षा हा हा हा ओह्ह्ह्ह हा हा हा हा ओह हा हा” राघव दिल खोल कर हँसा
कितने ही लोग आकाश पर हँसे थे, लेकिन आज राघव का हंसना बुरा तो बहुत दूर की बात रही बल्कि एक सुखद एहसास ही दे रहा था आकाश को, वो राघव को हँसते देख खुद भी मुस्कुरा रहा था।
” हा हा हा “
कितने हेन्ड्सम दिख रहे हैं चाचा जी-आकाश, राघव को हँसते हुए देखकर सोचने लगा
“समझ गया तुम्हारी हालत”
“अच्छा ! क्या ?”
“ये कि तुम ये परीक्षा पास करना ही नहीं चाहते..कोई इंटरेस्ट जो नहीं है तुम्हारा और ..ये परीक्षा तुमसे दवाव में करवायी जा रही है.. अब जब मन ही नहीं है तो तुम पढ़ ही नहीं पा रहे हो तो, भला पास कैसे होओगे? ..बोलो सही कह रहा हूँ ना?”
“हुम्म” आकाश ने बहुत प्रभावित होकर हामी में सिर हिला दिया, शायद पहली बार उसकी हालत का किसी ने सही आकलन किया था।
“और मना इसलिए नहीं कर नहीं पा रहे क्योंकि अपनों से लड़ना सबसे मुश्किल काम है…ना तो आप उन्हे छोड़ सकते हैं…ना ही उनके खिलाफ जंग लड़ सकते हैं ! बस्स ऐसे ही घुटते रह सकते हैं…ये माता- पिता भी हमें पालते हैं बड़ा करते हैं…खूब प्यार करते हैं और जब हम बड़े हो जाते हैं….तो वो इस सब की कीमत बसूलते हैं.. .बच्चो की खुशी के लिये अपनी खुशी कुर्वान् करने का उनका दावा दहेज की चमक या खुद की आत्मसंतुष्टी के आगे इतना फीका पड़ जाता है कि बच्चों की आँखो के आँसूं और खुशी कुछ नहीं दिखता इन्हें……हम दोनों की कहानी लगभग एक जैसी ही है…तुमसे कोई गहरा नाता लगता है मेरा” राघव की बात को बड़े ध्यान से सुन रहा आकाश इस अन्तिम बात से चौंक गया और उसे आश्चर्य से देखने लगा!
“ऐसे क्या देख रहे हो…तुम्हें क्या लगता है मुझे चढ़ गयी है…ना…तीन-चार बोतल के बाद चढ़ना शुरू होता है
…चल आज से तू मेरा भाई.. इसी बात पर एक बोतल ले कर आ” राघव आगे बढ़कर आकाश के गले में अपना हाथ डालते हुए बोला।
“म मैं?”
“हाँ तू…क्यों कोई दिक्कत है?”
“ना नहीं बिल्कुल नहीं”
“तो सोच क्या रहा है जा”
कन्फ्यूज से आकाश ने दुकान पर जाकर दो बोतल के लिये बोल दिया।
“ये रहीं तुम्हारी दो बोतल! लाओ 18 रुपए दो” मोटे से गोल मटोल चेहरे वाले दुकानदार ने आकाश को दो बोतले थमाते हुए कहा
“क्या बस्स 18 रुपए” आकाश ने चौंक कर पूँछा
“अबे ज्यादा चढ़ गयी है क्या? तो ज्यादा रुपए दे दे” दुकानदार झल्लाया, और आकाश ने एक पचास रुपए का नोट उसकी ओर खिसका दिया।
“कहाँ से उठा कर लाये हो ये बच्चो के खेलने वाला नोट …असली पैसे दो …ये क्या है … कहाँ-कहाँ से चले आते हैं पागल कहीं के” दुकानदार जोर जोर से हंस रहा था!
और आकाश को समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे? इतने में उसे अपने कंधे पर किसी का हाथ मेहसूस हुआ।
कुछ कहने या समझने की स्थति बनती इससे पहले ही लोहे की खिड़की से झाँकते उस गोल चेहरे पर एक जोरदार घूँसा पड़ चुका था।
आकाश ने पीछे पलट कर देखा तो राघव गुस्से में अपने हाथ में पड़े कड़े को घुमा कर कलाई में ऊपर की ओर कर रहा था ताकि दूसरा घूँसा मारते वक़्त कड़ा परेशानी का सबब ना बने।
आकाश ने कुछ बोलने के लिये मुँह खोल ही पाया था कि इतनी देर में राघव ने एक और घूँसा दुकानदार को जड़ दिया
“ये क्या कर रहे हैं आप” आकाश ने ये बोलते हुए राघव को पीछे से पकड़ लिया
“छोड़ मुझे” जैसे ही राघव ने गुस्से में आकाश को देखते हुए बोला तो डर के मारे आकाश ने अपनी पकड़ ठीली कर दी। और अगले ही पल दो हट्टे-कट्टे सिक्योरिटी वाले राघव के सामने आ गये!
“ये चमचे मुझे रोक लेंगे क्या” बोलते हुए राघव ने पूरी ताकत से एक लात उनमे से एक पर जमा दी, और वो सिक्योरिटी मे होने के बाबजूद भी राघव की एक लात पड़ने से जमींन पर गिर गया। और एक और लात पड़ने से दूसरा सिक्योरिटी वाला भी थोड़ा सिथिल पड़ गया इतने में फुर्ती से राघव दुकान के अन्दर चला गया और उस मोटे आदमी को उसकी शर्ट का कॉलर समेत पकड़कर उठा लिया!
“क्या कहा था तूने ..पागल…मेरे भाई जैसे यार को तूने पागल कहा कैसे …साले मार डालूंगा तुझे..ये ले” एक जोरदार चाँटा उस दुकानदार के मुँह पर मारता हुआ राघव जोर से चीखा।
इतने में वो दोनों सिक्योरिटी वाले सयंत हो गये और राघव की ओर बढ़े, जैसे ही आकाश ने इन दोनों को अन्दर जाते देखा वो तेजी से अन्दर की ओर भागा और एक भी सिक्योरिटी वाला राघव को छू भी पाता, इससे पहले ही आकाश ने मोर्चा संभाल लिया, दुकानदार की हालत तो अब तक खराब हो ही गयी थी वो इतने भर से ही वो हिल तक नहीं पा रहा था !
और अब ये दोनों एक-एक सिक्योरिटी वाले से लड़ रहे थे। और इनकी जोश से भरी युवा ताकत के आगे वो दोनो झुक गये थे। पिट कर पस्त हो गये थे।
“ये कैसे सिक्योरिटी वाले हैं यार ना कोई ताकत ना दम” राघव हैरानी से बोला
“पता नहीं यार मुफ्त की सैलरी ले रहें हैं साले” आकाश सिक्योरिटी वाले पर एक घूँसा जमाते हुए बोला, उस पर अब शराब का हल्का सुरुर चढ़ने लगा था।
“ठीक है इतना” दोनो को पस्त देखकर राघव ने आकाश को पीटने से रोका और एक बोतल उसकी ओर उछाल दी
“ले पकड़…और ये ले एक और पकड़” फिर खुद भी दो बोतल उठायी और बोला “चल-चल जल्दी कर चल भाग”
बोलते हुए राघव भागने लगा और उसके पीछे आकाश भी भागने लगा। दोनो थोड़ी देर तक भागते रहे फिर जब लगा कि भागते हुए अच्छी खासी दूरी तय कर ली तो राघव ने आकाश को हाथ के इशारे से रोक दिया, दोनों रुककर हाँफने लगे “साले ने हमें पागल कहा हमें ” राघव, आकाश की ओर देखकर हँसा
आकाश भी दिल खोलकर हँसा फिर दोनों ने एक साथ अपने-अपने हाथ में बोतल पकड़कर अपने हाथ हवा में ऊपर उठाये और एक साथ जोर से बोले
“हां हम हैं पागल, हैं हम पागल.. “
दोनों ने एक साथ बोतल खोलीं एकदूसरे को दिखाते हुए “चियर्स” बोले और जल्दी से पूरी खाली कर दीं …फिर से ये क्रम दोहराया और एक-एक बोतल और खाली कर दी।
“उसने मुझे पागल कहा” आकाश बोतल खाली करके बहुत दुखी होकर बोला
“तो मैने उसको पीटा ना…तू क्यों दुखी होता है”
राघव ने ये बोलते हुए आकाश को अपने गले से लगा लिया।तभी इनके पास से एक लड़का साइकिल पर निकला, और राघव ने भागकर उसकी साइकिल को पीछे से पकड़ लिया “छोड़ इसे” राघव गुस्से में उससे बोला
“क्यों छोड़ दूँ मेरी साइकिल है”वो मरियल सा दिखने वाला लड़का डरते हुए भी घबराता सा बोला
“सुना नहीं राघव ने क्या कहा …छोड़ दे मतलब छोड़ दे…” आकाश जोश में बोला
“अरे लेकिन ये मेरी….”वो इतना ही बोल पाया कि
“देख भाई हमें लंदन जाना है इसलिए बोल रहे हैं लौट कर बापस कर देगें ..यहीं मिलेगा”राघव उसे समझाते हुए बोला
“क्या लंदन… इस साइकिल से?” वो आश्चर्य से आँखे फैलाते हुए बोला
“अबे कितनी चपड़-चपड़ करता है! भागता है या रखूँ कांन के नीचे” आकाश उसे हथेली दिखाते हुए बोला, और अगले ही पल वो बेचारा साइकिल छोड़ कर भाग गया।
उसके जाते ही आकाश साइकिल चलाने लगा और राघव पीछे बैठ गया। जैसे तैसे साइकिल थोड़ा आगे बढ़ पायी और आकाश ने एक छोटे से खड्डे के पास जिसमें पानी भरा था, साइकिल रोक दी।
“क्या हुआ?” राघव ने पूँछा
“ऐसा लगता है, समुंद्र आ गया यार” आकाश अपना सिर झिटकते हुए बोला
“रुक! मैं देखता हूँ” राघव साइकिल से नीचे उतरा और खुशी से झूमते हुए बोला “ हाँ, हम समुंद्र के किनारे पहुँच गये हैं ”
“सच?”
“हाँ! तो सुन अब हम इस समुंद्र के रास्ते ही यूरोप जायेंगे”
“लेकिन मुझे लगता है…हमें पेरिस चलना चाहिये”
“पेरिस में कुछ नहीं है …बेल्जियम में सबसे अच्छी बियर मिलती है…हम वहीं बैठ कर बियर पियेंगे” राघव मुस्कराता हुआ बोला।
“ऐसा क्या ? तो ठीक है तो बैठिये पीछे”
“नहीं तुम बैठो पीछे..तुम आर्ट्स के पढ़ने वाले …तुम्हें क्या पता जहाज कैसे चलाया जाता है इसे चलाना बच्चो का खेल नहीं हैं…मैं साइंस का स्टूडेंट हूँ इसलिये ये जहाज मैं ही चलाऊँगा”
“लेकिन तुम्हें चढ़ गयी है यार कहीं एक्सीडेंट-वेक्सीडेंट हो गया तो?”
“ देखा! तुम्हें ये भी नहीं पता कि जहाज का एक्सीडेंट नहीं होता, वो तो डूब जाता है.. तुम नहीं चला पाओगे यार उतरो”
“लेकिन .. तुम्हें चढ़ गई है ..”
“अरे मुझे कभी नहीं चढ़ी आज क्या खाक चढ़ेगी?…तू पीछे बैठ…जहाज तेरा यार…तेरा भाई चलाएगा…” राघव ने खुद का सीना ठोकते हुए जोश से कहा तो आकाश साइकिल पर पीछे बैठ गया और राघव साइकिल चलाने लगा।
“बहुत ध्यान से जहाज को समुंद्र में उतारना” आकाश ने सलाह दी
“हाँ …हाँ ” राघव ने पूरा एहतियात बरतते हुए साइकिल को पानी भरे खड्डे में उतारा लेकिन बेहद धीमी गति होने की वजह से साइकिल गिर पड़ी और वो दोनों भी नीचे गिर पड़े।
“मैंने कहा था ना एक्सीडेंट हो जायेगा”
“यार एक्सीडेंट नहीं हुआ है …लगता है हमारा जहाज डूब रहा है समुंद्र की गहरायी बहुत ज्यादा है”
“ओह्ह तो क्या हम डूब रहे हैं?”
“हाँ यार …”
“ओहहह कोई है हमें बचाओ”आकाश धीरे से बोला
“कोई मेरी आवाज सुन पा रहा है तो हमें बचा लो भाई”राघव धीरे से बुदबुदाया
“आह कोई तो बचाओ.. हमें.. कोई आह!”
“आह्हह “
दोनों आधे उस खड्डे के अन्दर और आधे उस खड्डे के बाहर गिरे थे और थोड़ी देर में ही नशे में होने की वजह से सो गये
देर रात:
“राघव…राघव…उठो राघव”
ये आवाज सुनकर आकाश की नींद खुल गयी, एक सुन्दर सी लड़की राघव का हाथ पकड़कर उसे उठा रही थी।
“आह कौन …अरे तुम यहाँ ” राघव उनीँदा सा उस लड़की को देखकर बोला
“तुम्हारे माँ बाऊ जी तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ रहे…मैनें भी ना जाने कहाँ कहाँ नहीं ढूँढ़ा तुम्हें, और तुम यहां इस तरह … अच्छा चलो, जल्दी चलो ” उस लड़की ने सहारा देते हुए राघव को उठाया और राघव बेहद धीमी चाल में उसके साथ चलने लगा…आकाश भी गहरी नींद में था बोलना तो दूर आँखे खोले रखना भी कठिन लग रहा था उसे, उसने अपनी आँखे फिर से बन्द कर लीं।
***
“आकाश…आकाश…आँखे खोलो आकाश ..आकाश” कोई आकाश को आवाज दे रहा था।