सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 18

वो उसके सामने खड़ी थी...श्याह काले रंग की छाया ...कंधे तक की लम्बाई वाले उसके बाल हवा में उड़ रहे थे....अन्धेरे में बस्स उसकी निस्तेज आँखे आकाश को घूर रही थी, आकाश अपनी साँस रोके उसे देख रहा था जो उसके ठीक सामने खड़ी थी...एकदम शान्त....अपनी बिल्कुल सफेद आँखे उस पर टिकाये...हवा में ऊपर उठी हुई।

18.

“चलो मेरे साथ” गिरिराज ने आकाश का हाथ पकड़ा और उसे बाहर की ओर ले जाने लगे

“अरर ” आकाश की प्रतिक्रिया को गिरिराज बिल्कुल अनसुना करके उसे खींचते हुए बाहर ले गये और लगभग धक्का सा मारते हुए उसे अपनी ओपन जीप में बैठा दिया और खुद स्टीयरिंग संभाल ली।

“तुम्हें पता है ना, नागेन्द्र की लाश को कौन से कब्रिस्तान मे दफनाया है उर्मिला ने …. तो चलो रास्ता बताओ” गिरिराज की ये अकारण नाराज़गी आकाश के समझ से परे थी,  फिर भी वो चुपचाप बैठकर रास्ता बताने लगा

“आगे से लेफ्ट लीजिये…..और चलते रहिये

“अब इस गोल चक्कर से अन्दर की ओर

“हाँ बस सीधे

 “अब राइट लिजिये …यहाँ से बस्स 10 मिनट और

“ बस्स यहीं रोक दीजिये…” कहने के साथ ही आकाश जीप से कूद कर से उतर गया, और भागकर एक कब्र के पास पहुँच गया,

“ये …यहां दफनाया है नागेन्द्र की लाश को….रुकिये 

(आकाश ने इधर-उधर देखा और एक फावड़ा उठाया, और वो उसे कब्र पर मारता उससे पहले ही, आगे बढ़कर गिरिराज ने उसे रोक दिया)

“इसकी जरुरत नहीं, जो देखना था  मुझे, देख लिया….जिस आत्मविश्वास से तुम कह रहे हो…कोई शक की गुंजाइश ही नहीं कि नागेन्द्र की लाश इसी कब्र में है…”

“तो अब?”

“चलो, सबसे पहले मुझे उर्मिला के पास ले चलो …पहले ही बहुत देर कर दी है मैनें …अपने ही हाथों अपने प्रेम और खुशियों का गला घोंट दिया है मैनें …माफी का हकदार भी नहीं हूँ मैं” गिरिराज दुखी होकर बोले

“वो माफ कर देंगी आपको, चिंता मत कीजिये.. “आकाश मुस्करा कर बोला।

***

“बुआ जी…जल्दी बाहर आइये” आकाश ने घर में घुसते ही आवाज लगा दी

“आकाश..आ गये…तुम तो मिलने गये थे लेकिन जैसे बश ही गये राघव के पास” उर्मिला सीढिय़ां उतरते हुए बोली और आकाश के गले लग गयीं, गले लगते ही उनकी नजर गिरिराज पर चली गयी जो आकाश के पीछे खड़े थे…उर्मिला हैरान सी आकाश से छिटककर थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गयीं

“क्या हुआ..अच्छा…(गिरिराज की ओर इशारा करके) इन्हें देखकर हैरान हैं आप?.ये गिरि अंकल हैं, आपसे कुछ बात करने आये हैं”

“मुझसे क्या बात करनी…मैं इन्हें जानती भी नहीं…मैं क्या बात करूँगी” उर्मिला घबरा कर बोलीं

“घर के बाकी लोग कहाँ हैं” आकाश ने उनकी बात को अनसुना कर के पूँछा

“रोहित किसी लड्की से मिलाने ले गया है सब को”

“समझ गया…किससे मिलाने ले गया है..ठीक है, आइये गिरि अंकल आपको बुआ का कमरा दिखाऊं” बोलता हुआ आकाश ऊपर जाने वाली सीढियां चढ़ गया। उसके पीछे गिरिराज भी चला गये।

“अरे मेरा कमरा क्यों? बोलती हुई उर्मिला भी उनके पीछे-पीछे आ गयी। गिरि यहां आकाश के साथ कैसे? 

उनके दिमाग में ये बात घूम रही थी, उनके ऊपर जाते ही आकाश उनके कमरे से बाहर निकला और छत के कोने में जाकर खड़ा हो गया।

“कैसी हो उर्मिला?” गिरिराज ने पूँछा

“तुम यहां कैसे…आकाश को क्या बताया है तुमने…और तुम जो हमेशा दूर भागते रहे हो मुझसे, आज यहां आकर मेरा हाल पूँछ रहे हो….मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा”

“हम्म जानता हूँ बहुत से सवाल हैं तुम्हारे पास, लाजिमी भी है, देखो उर्मी “

अपने लिये सालों बाद गिरिराज से खुद के लिये उर्मी सुनकर उनके दिल की धड़कन बढ़ गयी…गिरिराज इसे भांप भी गये..और आगे बोले

“हाँ उर्मी, पहले ही बहुत देर हो चुकी है…पागल था उस वक़्त जो आँखो से देखा सच मान लिया और भाग गया, तुम अकेली हर परिस्थिती से लड़ती रही..फिर भी…जब भी मौका मिला तुम मुझे समझाने की कोशिश भी करती रहीं…लेकिन मैं तुम्हारे छिन जाने का गम ही मनाता रहा…और इस गम में इतना डूबा कि कुछ और देखा ही नहीं…ना सुना …जो काम मुझे करना चाहिये था तुमने किया…तुमने उस जानवर को मारा…जबकि उसे मुझे मारना चाहिये था उस…उस नागेन्द्र को “

“तुम्हें कैसे पता कि नागेन्द्र को मैनें मारा…. ” उर्मिला घबराई सी बोली

“मुझे सब पता चल गया है”

“लेकिन कैसे?”

“बस्स ये समझो कि ईश्वर की मर्जी है हमें मिलाने की…और उसने जरिया बनाया है आकाश को…”

“आकाश को?”

“हाँ! मैं नहीं जानता कैसे ..उसकी कोई तीसरी आँख खुली है या उसे ईश्वर ने सपने में सब दिखाया  ..वो खुद नहीं जानता! लेकिन ये चमत्कार है कि उसने सब अपनी आँखो से देखा है…..नहीं पता कैसे… लेकिन उसी ने मुझे खोज निकाला और मेरी गलती का एहसास दिलाया और सब सच बताया”

“क्या ?” उर्मिला ये सुन कर भौचक थीं।

“हम्म…देखो उर्मिला!  मैं माफी तो नहीं मांगता क्योंकि मेरी गलती माफी के लायक ही नहीं …बस्स ये समझो कि लाख नाराजगी सही लेकिन प्रेम तुम्हीं से किया और तुमसे वफादारी भी निभायी..तुम नहीं मिली तो किसी और को भी नहीं अपनाया … मुझे स्वीकार कर लो”

“अब ???” वो सवालिया नजरों से गिरिराज को देखते हुए बोली

“जानता हूँ तुम्हारी नाराजगी… और तुम्हारे सभी गिले -शिकवे सुनना भी चाहता हूँ …साल दो साल तो नाराजगी सुनने में ही निकल जायेंगे…तुम कहती रहना मैं सुनता रहूँगा…सोचता हूँ क्यों ना गिरीश और राघव से बात करके शादी कर लें?” खुशी से ओत- प्रोत गिरिराज बिना रूके सब बोलते जा रहे थे! 

“शा …दी?”

“हाँ शादी …देखो ना इस वक़्त भी तुम्हारे दिमाग में यही आ रहा होगा कि कहीं आकाश ना जाये ..कहीं सब लोग लौट ना आये …अगर किसी ने मुझे यहां देख लिया तो क्या होगा… है ना ? तो तुम शिकायत भी कैसे कर पाओगी और कैसे मैं सुन पाऊंगा! तो शादी करके रहते हैं ना”

“नहीं गिरि…तुमने सोचा भी कैसे? कि मैं तुमसे शादी करूँगी”

उर्मिला से ये सुनते ही गिरिराज का दिल डूब गया

“माफ नहीं कर पाओगी ….है ना?” उसने डूबे स्वर में पूँछा

“हुम्म…कभी नाराजगी ही नहीं रही तो माफी कैसी?”

“क्या…तुम्हें कभी कोई नाराजगी नहीं रही मुझसे?” गिरिराज  ने हैरानी से पूँछा

“हाँ ..नहीं रही…. होती तो जब-जब तुम्हे देखा यूँ पीछे-पीछे क्यो दौड़ती? मैं तो बस्स इतना चाहती थी जो गलतफहमी है तुम्हारे मन में वो कैसे भी खत्म कर सकूँ, तुम्हें सच बता सकूँ बस्स”

“जो हुआ बहुत बुरा हुआ..सब मेरा कसूर था…जो वक़्त चला गया वो तो बापस नहीं आ सकता …लेकिन हम अपना आज तो जी सकते हैं ना उर्मिला…जिंदगी के ये बचे दिन तो खुशी से जी सकते हैं.. उर्मिला! आज सालों वाद खुशियां हमारे लिये दरवाजे पर खड़ी हैं! मुझे माफ कर दो और अपना लो!”

 विनती करते हुये गिरिराज ने अपने हाथ जोड़ दिये थे, और छत के कोने में खड़े आकाश ने जब गिरिराज को हाथ जोड़े देखा तो वो इन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया।

“पता है गिरि …इस दुनियाँ में …एक ना एक दिन सब खत्म होता है, हर चीज़ की एक उम्र होती है…यहाँ तक कि भावनाओं की भी…मैं झूठ नहीं कह सकती! नाराज बेशक ना होऊँ तुमसे, लेकिन मेरे मन में तुम्हारे लिये प्रेम भी नहीं बचा है…”

“ऐसे मत कहो उर्मिला” गिरिराज को ये सुनकर ऐसा लगा, जैसे एक भारी पत्थर किसी ने उन्हें दे मारा हो!

” यही सच है गिरि…कितने वर्ष निकल गये ..कब उन भावनाएं की मौत हो गयी जो तुम्हारे लिये थीं …मुझे खुद भी  पता नहीं चला!”

आकाश से चुप ना रहा गया तो बोला,

“ऐसा मत कहिये बुआ जी…प्लीज”आकाश डूबे स्वर में बोला!

“अरे …आकाश …पहले मुझे ये बताओ तुम्हें ये सब कैसे पता चला” उर्मिला की नजर अब आकाश पर गयी थी!

“मै हमेशा यही महसूस करता था कि आप मन से खुश नहीं हैं…फिर भगवान से बहुत प्रार्थना की और शायद उन्हीं ने तरस खाकर मुझे सारा सच सपने में दिखा दिया कि कैसे हालात में आपने नागेन्द्र की हत्या की…और किस बहादुरी से आप उसे दफना कर आयी …मैंने सपने में ही गिरि अंकल का घर देखा फिर उन्हे जाकर सब सच बताया और यहां ले आया” जो हालात थे उसके मुताबिक आकाश ने जल्दी से आधी सच्चाई बताकर बात खत्म कर दी।

“..मेरा बेटा…कितनी फिक्र है तुम्हें मेरी” भावविभोर होकर उर्मिला ने आकाश को गले से लगा लिया!

“बुआ, गिरि अंकल सच में बेहद प्रेम करते हैं आपको उन्हें अपना लिजिये…आप दोनों में से किसी की भी गलती नहीं थी जो हुआ उस नागेन्द्र की वज़ह से हुआ..सालों बाद खुशियां आप दोनों के दरवाजे पर हैं और आप है कि ….उन्हें ठुकरा रहीं हैं”

“मैं किसी का कोई दोष या गलती नहीं बता रही आकाश…जो सच है वही बता रही हूँ …और सच ये है कि मेरे मन में गिरि के लिये जो भावनाएं थी वो मर चुकी हैं..मैं खुश हूँ अपनी इस जिंदगी में”

“..ये जो जिंदगी आप जी रहीं हैं बुआ! उसे खुशी से जीना नहीं कहते हैं ..जरा.देखिए खुद को…उदासी में लिपटा है आपका पूरा का पूरा वजूद…मैने खुद आपको कई बार गिरि अंकल की याद में सबसे छिपकर रोते हुए देखा है ..और आप कहतीं हैं कि भावनाएं मर गयीं हैं…अगर ये आपकी नाराजगी है तो बेशक जायज है,  लेकिन कम से कम  खुद को और गिरि अंकल को इतनी बुरी सजा मत दीजिये..कितनी उम्मीदों के साथ आये हैं गिरि अंकल “

शायद आकाश और भी बोलता जाता अगर गिरिराज ने उसके कन्धे पर अपना हाथ ना रखा होता, इस स्पर्श में धन्यवाद समेत शांत हो जाने की प्रार्थना थी, आकाश गिरि की ओर देखता हुआ चुप हो गया।

“हुम्म उम्मीदों के साथ (उलाहने भरी आवाज में उर्मिला ने मुस्कुराकर कहा) नहीं …ये आये हैं सालों से दबे अपने दिल का बोझ कम करने…जो गलती इन्होने की है उसका अपराधबोध इन्हें कचोट रहा है  ….इसलिये ये मुझसे शादी करके इसकी भरपायी करना चाहते हैं और तुम्हें क्या लगता है ? अगर तुम इन्हें नहीं लाते तो ये कभी आते …ये कभी नहीं आते आकाश”

“आप गलत समझ रही हैं बुआ..ये रोज मन्दिर अपको देखने ही जाते रहे थे…पास इसलिये नहीं आ पाये कि उन्हे लगा आप शादीशुदा हैं “आकाश ने ये बोला ही था कि गिरिराज ने उसे आँखो से चुप रहने का इशारा कर दिया।

उर्मिला ये सुनकर कुछ देर शान्त रहीं फिर बोलीं “बस्स इतना ही कहूँगी, कि सालों से मेरे मन पर रखा बोझ कम हो गया आज….(तिरछी नजर से गिरिराज की ओर देखते हुए) और शायद गिरि का भी” इतना बोलकर वो वहाँ से चली गयीं

“सारी उम्मीदें टूट गयीं! बुआ ऐसे रिएक्ट करेंगी, मैने नहीं सोचा था” आकाश हताशा में बोला

“वो बिल्कुल ठीक कर रहीं हैं”

“हें?”

“हाँ..बीते सालों में ना जाने क्या-क्या झेला होगा! वो भी सब अकेले….मैनें क्या किया? कुछ भी तो नहीं! सिवाय उसका दुख बढाने के…खैर, मुझे तो लगा था बात ही नहीं करेंगी…लेकिन की.. यही बहुत है मेरे लिये”

“लेकिन गिरि अंकल…”

“सही कहती हैं उर्मिला ..मन का बोझ तो सच मे कम हुआ है, वरना इस गलतफहमी में ही इस दुनिया से चला जाता कि उर्मिला ने बेबफाई  की मेरे साथ …तुम नहीं समझोगे आकाश…जब बिना किसी सवाल-जवाव के…बिना कोई शिकायत किये जब इतनी सालों कोई तुम्हारा ही रहे….तो इससे बड़ी बात कुछ भी नहीं हो सकती …कुछ भी नहीं..और ये अनमोल खुशी मुझे उर्मिला ने दी है…वो मुझे आज गोली भी मार दे तो भी शिकायत नहीं होगी….सच कहूँ तो मुझे याद नहीं कि  मैं इससे ज्यादा खुश और किस दिन था…मेरे मन में उसके लिये और भी इज्जत बढ़ गयी है। और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ…अब से तुम मेरे सबसे अजीज दोस्त हो और परिवार भी… सब तुम्हीं हो..आकाश.”

“ओह्ह गिरि अंकल….” कहकर आकाश,  गिरिराज के गले लग गया

“चलों अब तुम्हारा मसला सुलझाया जाये…ये बताओ कल जब तुमने ये सब कुछ देखा था …तुम कहाँ थे”

“उस वक़्त मैं राघव चाचा जी के कमरे में था…तब कुछ अजीब हुआ था “

“अजीब?”

“हम्म एकदम अजीब”

” तो चलो वहीं चलते हैं”

दोनो वहाँ से चल दिये….निकलते वक़्त उन् दोनों में से किसी की भी नजर किवाड़ की ओट  में खड़ी उर्मिला पर नहीं जा पायी, किवाड़ की ओट से छिपी उर्मिला ने उनकी सारी बातें सुन लीं थीं।

***

“मैं यही खड़ा था और वो छाया मुझे यहां दिखी थी” आकाश ने राघव का कमरा गिरिराज को दिखाते हुए कहा

“छाया …कैसी?” गिरिराज ने डरते हुए पूँछा

“मैने उसे 2 से 3 बार पहले भी देखा है पिछ्ली बार वो बिल्कुल मेरे सामने खड़ी थी, एक खूबसूरत लड़की “

“लड़की…..?.”

“वो यहां खड़ी थी (एक जगह खड़े होकर) और वहाँ से वो पिछला दरवाजा खुला फिर हवा का एक तेज बबन्डर महसूस हुआ…और एक मिनट” आकाश पिछले दरवाजे को खोलने के लिये उस ओर बढ़ा और जोर लगाने लगा….और तभी गिरिराज को महसूस हुआ जैसे कोई बिल्कुल पास खड़े होकर तेजी से साँस ले रहा हो…गिरिराज जहां खड़े थे वहाँ से थोड़ा पीछे हट गये।

“अरे ये दरवाजा ..कल तो खुद व खुद खुल गया था” आकाश ने जोर लगाते हुए कहा,  गिरिराज को ऐसे महसूस हुआ जैसे कोई बिल्कुल पास खड़ा हो उनके….लेकिन दिख नहीं रहा था।

“क …कौन है”

और जवाव में ये हुआ।

खुद के सीने पर एक तेज प्रेशर महसूस हुआ उन्हें, और अगले ही पल उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने पीछे खींच कर बाहर फेंक दिया हो

“अहह….” वो कुछ समझ पाते इससे पहले खुद को कमरे के बाहर जमीन्ं पर पाया तभी ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ कमरे का दरवाजा बन्द हो गया।

“नहीं ….नहीं….आकाश …आकाश… दरवाजा खोलो” गिरिराज ने घबरा कर दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया।

“अररर ये दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा….(कोशिश कर रहे आकाश की नजर सामने गयी और) ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह” आकाश तेजी से पीछे हट गया …वो उसके सामने खड़ी थी…श्याह काले रंग की छाया …कंधे तक की लम्बाई वाले उसके बाल हवा में उड़ रहे थे….अन्धेरे में बस्स उसकी निस्तेज आँखे आकाश को घूर रही थी…डरे हुए आकाश ने बिना गर्दन मोड़े अपने हाथ से गिरिराज को पास आने का इशारा किया, उसे नहीं पता था कि गिरिराज उस कमरे में ना होकर दरवाजे से बाहर था और दरवाजा खटखटा रहा था।

“आकाश….दरवाजा खोलो आकाश …मैं कहता हूँ खोलो दरवाजा” इस बार गिरिराज ने और तेजी से दरवाजा खटखटाया

आकाश अपनी साँस रोके उसे देख रहा था जो उसके ठीक सामने खड़ी थी…एकदम शान्त….अपनी बिल्कुल सफेद आँखे उस पर टिकाये…हवा में ऊपर उठी हुई।

सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 19

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