19.
“अ …आ …”डर की वजह से आकाश की हालत खराब थी, उसने कुछ बोलना चाहा लेकिन आवाज गले के बाहर ही नहीं निकली!
अब वो हवा में थोड़ी और ऊपर उठ गयी थी…और उसने अपने लकड़ी जैसे लम्बे और सूखे हाथ हवा में उठा लिये थे और अगले ही पल..
तेज हवा चलने लगी …आकाश का पूरा शरीर जैसे जाम हो गया था बस्स आँखें ही थी जो उस छाया पर टिकी हुईं थीं !अब हवा तूफान में बदल गयी थी …और एक तेज “भड़ाक” की आवाज के साथ वो जाम पड़ा हुआ कमरे का पिछला दरवाजा भी खुल गया था..अब इतनी तेज हवा में आँखे खोले रख पाना मुश्किल हो गया था आकाश के लिये, हालांकि वो आँखे खुली रखने की पूरी कोशिश कर रहा था। इसी वक़्त उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पैरों पर तेजी से कुरेदा हो…उसने सामने देखा तो…वो छाया झुकी हुई थी और उसके सूखे और खुरदरे हाथ आकाश के पैरों पर थे।
“ना…ना…अह्ह..आह्ह” आकाश डर, घबराहट के लिजलिज़े एहसास से कुलबुलाया
और अगले ही पल उस छाया ने आकाश को हवा में उठा दिया
“अह्ह..अह्ह.. ना…नहींss…नहींsss” डर से आकाश के मुँह से निकला फिर उस छाया ने आकाश को चकरी की तरह गोल गुमाया और एक गोले की तरह हवा में उछाल दिया।
“आह्ह्हह” आकाश के मुँह से चीख निकल गई!
***
“उर्मिला ..ओ। उर्मिला “
“राघव भैया की आवाज है ये तो…”उर्मिला आवाज सुनकर आश्चर्य से बुदबुदायी और सीढियों की ओर लपकी
“उर्मिला! घर में नहीं हो क्या ?” राघव ने फिर से कहा!
“राघव भैया ” उर्मिला की आँखे अविश्वास से खुली थी। राघव दरवाजे पर खड़ा था, ये महज दूसरी वार था जब राघव गिरीश के घर में आया था।
इससे पहले वो सिर्फ़ तब आया था जब गिरीश ने उसे गृह प्रवेश के वक़्त मिन्न्ंते करके बुलाया था। सब यही सोचते कि राघव को किसी से मिलने जुलने में कोई रुचि नहीं है, और उसके शराब पीकर आजादी से रहने में कोई खलल ना पड़े इसलिये वो किसी से कोई सम्बंध रखना नहीं चाहता, तो वक्त के साथ -साथ खुद की जिंदगी में सिमटते चले गए!
“यकीन नहीं हो रहा है ना? ” उर्मिला को खुद की ओर घूरते देख राघव ने कहा, और फिर हँसते हुए खुद के पास आने का इशारा किया। उर्मिला दौड़ कर राघव के गले लग गयी!
“कैसी है मेरी बहन?”
“अब याद आयी है मेरी?” भावुकतावश उर्मिला की आँखों से आँसूं निकलने लगे।
“क्या ही कहूँ …स्वार्थी दुनिया का असर तेरे भाई पर भी आ गया था शायद, नहीं तो अपनी छोटी बहन को कोई ऐसे ही नहीं छोड़ देता है …या फिर ऐसे कहूं तो गलत नहीं होगा कि खुद से ज्यादा गिरीश भईया पर भरोसा था मुझे कि वो तेरा ख्याल रख लेंगे…क्योंकि मुझे तो खुद में ही डूबे रहने से फुरसत नहीं..और इस स्वार्थीपन में नाइंसाफ़ी हो गयी तेरे साथ “
“नाइंसाफ़ी?”
“हम्म्म….चाहे ना कहे तुम, लेकिन जानता हूँ जो सुख खुद के घर में है वो और कहां?”
“ऐसा मत सोचिए…मैं खुश हूँ यहाँ ….कोई नाइंसाफ़ी नहीं हुई आपसे.. आप मुझसे मिलने आये यही मेरे लिये बहुत खुशी की बात है?”
“गलत कहते हैं लोग, कि एक वक़्त के बाद कोई साथ नहीं देता …बहिनें हमेशा साथ देतीं हैं। मुझे ही देखो …क्या मैं इस लायक हूँ कि मुझे कोई काम दे? लेकिन, लगातार मुझे कोई ना कोई काम मिलता रहता है … जानती है क्यों?”
“क्यों?”
“क्योंकि मेरी बहन मेरे लिये लगातार भगवान से प्रार्थना जो करती रहती है…”
“राघव भइया ” उर्मिला खुशी मे सुबक रही थी
“अपने घर चल उर्मिला वहाँ आराम से रहना…जैसे चाहें वैसे!..कोई रोकने-टोकने वाला नहीं…और देख ना कब से हम भाई – बहिन साथ भी नहीं रहे”
उर्मिला कुछ ना बोलकर बस्स खुशी के आंसुओं के साथ रोती रही और राघव उसके सिर पर हाथ फेरता रहा, तब तक गिरीश और बाकी परिवारीजन भी आ गये थे।
“राघव? ….राघव चाचा जी? “सब एक साथ बोले
“गिरीश भईया, कैसे हैं आप? राघव गिरीश को देखकर बोला
“वो छोड़ो कि कैसा था…तुम्हें यहाँ देखकर बेहद खुश हूँ! आखिरकार तुम्हें नशे से फुरसत मिली…और अपने भाई की याद आयी “गिरीश ने खुश होकर कहा
” उर्मिला को लेने आया हूँ भईया”राघव गिरीश के पावँ छूते हुए बोला
“क्या उर्मिला को ….वहाँ रखोगे…जहाँ हर वक़्त तुम नशे में धुत्त पड़े रहते हो…कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी?”
“मै लूँगा…जानता हूँ आपको यकीन नहीं होगा लेकिन मैनें शराब पीना छोड़ दिया है…लगभग एक महिने से”
“मैं नहीं मानता! किसे मूर्ख बना रहे हो?”
“आप चाहें तो आकाश से पूंछ लिजिये”
“आकाश से..ओह्ह! वो कौनसा कम है…मुझसे कहा घूमने जा रहा हूँ चाचा जी..देखो अभी तक पलटा ही नहीं…कौन जाने तुमने उसे भी नशे की आदत डाल दी हो…उसके माता-पिता को तो पहले ही उससे कोई उम्मीद ना थी…मुझे तो डर है कि कहीं वो खानदान का दूसरा राघव ना बन जाये..”
गिरीश के इन शब्दों ने राघव के चेहरे की खुशी को गायब कर दिया
“कम से कम तुम दो वक़्त की रोटी तो कमा रहे हो … आकाश तो वो भी नहीं” गिरीश ने आगे तंज कसा
“भइया! आकाश शराब नहीं पीता …और बेफिक्र रहिये वो दूसरा राघव नहीं बनेगा…वो बेहद सुलझा हुआ और गंभीर है और हाँ फिलहाल बापस इसलिये नहीं आया कि उसने वहाँ एक शोरूम में मैनजर की जॉब कर ली है”
राघव तनिक सपाट अंदाज में बोला, और ये सुनकर सबके चेहरे खिल गये। कि आकाश ने जॉब कर ली है
“क्या ..आकाश जॉब कर रहा है….यकीन नहीं होता” गिरीश हैरत से बोले
“सच है ये…खैर मैं घर में मरम्मत का काम करा रहा हूं ताकि उस घर की मालकिन उस घर मे रह सके!”
“घर की मालकिन …कौन…किसके बारे में बात कर रहे हो?”
“और कौन? उर्मिला…मैं उर्मिला की बात कर रहा हूँ!”
“क्या उर्मिला उस घर में रहेगी …किसने कहा तुमसे?”
“मैनें ….माँ-पिताजी के बाद सबसे ज्यादा उस घर पर उर्मिला का अधिकार था और रहेगा …मेरे हिस्से में आये उस घर को मैं उर्मिला के नाम कर चुका हूँ “
“मुझे कोई अधिकार नहीं चाहिये भइया” उर्मिला घबरा कर बोली
“चुप कर… कैसे नहीं चाहिये…पिताजी जमींन को दो हिस्सों में बाँटकर इन दोनों को दे गये थे! मैने घर ले लिया …और अब ये मेरी मर्जी है कि वो घर मैं किसे दूँ “
“बेशक! तुम जिसे चाहो दो…और उर्मिला के नाम घर कर देने के तुम्हारे फैसले से बेहद खुश हूँ मैं ….देर से ही सही, उर्मिला का ख्याल तो आया तुम्हें …लेकिन यहां बात हिस्सेदारी की नहीं… जिम्मेदारी की है… वहाँ उर्मिला का रहना ठीक नहीं ” गिरीश ने समझाते हुए कहा
“ठीक है भईया अब बोलकर तो भरोसा नहीं दिलाया जा सकता..लेकिन मेरा बहुत मन है कि उर्मिला वहाँ उस घर में मेरे साथ रहे….ना सही मुझ पर ..कम से कम आपको आकाश पर तो भरोसा है…जब तक वो वहाँ है तब तक ही इसे भेज दीजिये”
“गिरीश भइया मैं जाऊँगी राघव भइया के साथ” उर्मिला अपना फैसला सुनाते हुए बोली।
“ठीक है…” गिरीश ने जैसे ही ये कहा, सब चुप हो गये..फिर कुछ देर रुककर सोचते हुए गिरीश आगे बोले “तो चलो क्यों ना हम सब एक साथ चलें…हें ..बहुत सालों से नहीं गये…वहाँ कुछ दिन के लिये उर्मिला को छोड़ भी आएंगे और आकाश से मिलना भी हो जायेगा …क्या कहते हो राघव?”
“मैं तो सोचकर ही खुश हूँ भइया, वर्षो से सूने पड़े उस घर में रौनक हो जायेगी”राघव मुस्कुरा कर बोला। तो सब जाने की तैयारी में जुट गये।
“तुम लोग तैयारी करो तब तक हम भाइयों को कुछ खाने को दे दो भाई…” गिरीश ने बैठते हुए राघव को भी बैठने का इशारा किया ।
“हाँ …हाँ अभी लायी” उर्मिला चहकती हुई बोली
***
“आह्ह्हह …अह ..एं ..मै यहां …” कपड़े झाड़ते हुए आकाश जमीन से उठकर इधर-उधर देखने लगा। सुबह होने से पहले जो आभा बिखरती है वही थी…सुबह होने वाली थी!
” ये लड़का कितना अजीब सा लग रहा है ना…” आकाश के पास से निकलती हुयी दो औरते उसे देखते हुए बोलीं, आकाश ने अपने कपड़ो की ओर नजर डाली उसे सब ठीक लगा …वो आगे बढ़ गया।
और सामने से जाते एक औरत पर उसकी नजर पड़ी तो उसका मुँह खुल गया
“दादी जी..” वो उनके पीछे जाने लगा…कुछ देर चलने के बाद कौशल्या एक पुराने किले जैसे घर में बेधड़क घुस गयीं। आकाश भी उनके पीछे-पीछे उस घर में घुस गया और उस किले जैसे घर को गर्दन घुमा -घुमा कर देखने लगा…
“अगर मेरा अंदाजा ठीक है तो ये रेशमा का घर होना चाहिये… लेकिन दादी जी यहाँ ?”आकाश सोच ही रहा था कि कौशल्या की आवाज गूँजी
“कां…ता….”
और उस आवाज को सुनकर निकल कर आयी एक मोटी और अजीब सी दिखने वाली एक महिला, जिसने एक फूलों के प्रिंट वाली साड़ी टखनों से ऊपर पहनी हुई थी और साड़ी के पल्ले को उमेठकर कंधे पर ऐसे डाल लिया था जैसे वो कोई रस्सी हो ! उसके हाथ आदमियों के हाथो की तरह बड़े और सख्त थे, होठ पतले और काले थे और होठों की किनारियां पान खाने से लाल हो गई थीं ..
आँखें पीली और चेतना शून्य थी और माथे पर पड़ी सिलवटें ना जाने क्यों लेकिन सामने वाले को नकारात्मकता से भर दें…ऐसी थी…आकाश के दिमाग में राघव की कही हुई बातें कौंध गयी, ओह! तो ये है रेशमा की सास ….
“सेठानी जी आप यहां ..मुझे बुलवा लिया होता.”कांता हाथ जोड़ती हुई बोली
“बुलवा लेती तो ये तुम्हारे पुरखों का बनाया हुआ किला कैसे देख पाती जिसकी इज्जत में तुम सास और बहू सेंध लगाने पर तुली हुई हो” कौशल्या गुस्से से बोली
“सेठानी जी…” कांता धीरे से बोली
“चु…प रहो…अपनी बहू नहीं संभाली जाती तुमसे..जो तुम्हारे खानदान की इज्जत को लुटाने पर तुली हुई है” कौशल्या चीख पड़ी थीं
“छोटा मुँह बड़ी बात…सेठानी जी दोष छोटे सेठ राघव का भी है… उनकी जगह कोई और होता तो…तो अब तक ना जाने क्या कर बैठती मैं लेकिन …” कांता शून्य में घूरते हुए बोली
“राघव को मैं संभाल लूंगी …तुम बस्स अपनी बहू को सँभाल लो” इस बार कौशल्या का स्वर नर्म पड़ गया था।
“दो बार जानवरों की तरह पीट चुकी हूँ उसे, लेकिन ना जाने क्यों … कोई असर नहीं होता उस पर…ऐसा लगता है बात हाथ से निकल गयी है”
कांता की इस बात से कौशल्या के माथे पर और भी बल पड़ गए, और चेहरा गुस्से में तमतमाने लगा।
“लगता है खून जम गया है तुम्हारा कान्ता, नहीं तो ये जवाब उस कांता को तो शोभा नहीं देता ….जिसे महज चार गाँव के आदमियों के सामने उसके पति ने एक चाँटा क्या मार दिया …..कि वो रात उसके पति की आखिरी रात बन गयी ..
(फिर तिरछी नजर से कांता की ओर देखते हुए) सम्मान की खातिर जिसने अपने पति को अपने हाथों मार डाला वो अपनी बहू और छीने जाने वाले पोते के लिये कुछ नहीं करेगी क्या?
ये सुनकर तरह-तरह के भाव कांता के चेहरे पर आने-जाने लगे…
“भले ही मैं पैसों से सेठानी कहलाऊँ लेकिन तुम्हारी जितनी हिम्मत नहीं मुझमें कांता…मदद की उम्मीद लेकर आयी थी तुम्हारे पास …अगर राघव ने रेशमा के साथ शादी कर ली, तो समाज में मेरा सिर्फ़ मान कम होगा सो भी कुछ समय के लिये..क्यों कि वो बेटा है मेरा….और मैं उसे छोड़ने से रही….लेकिन तुम …तुम अपने पुरखों का मान, इस किले जैसे घर की इज्जत, बहू और पोता सब खो दोगी ..सुना ? सब ..यहां तक कि इस किले का वारिस भी….बोलो तैयार हो खोने को?…”
कांता ने गुस्से में भरकर अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, और अपनी बातों का असर होते देख कौशल्या ने एक बड़ा सा थैला कांता को पकड़ा दिया “पचास बीघे खेत से तुम जितना सालों साल नहीं कमा सकतीं उतना मैं तुम्हें एकमुश्त देती हूँ
..कैसे भी करके ये मामला खत्म करो कांता.. …बस मुझे निराश मत करना…” तेज कदम बढाती हुई कौशल्या वहाँ से निकल गयीं।
शून्य में घूरती हुई कांता कुछ पल जड़ अवस्था में वैसी ही खड़ी रही। फिर एकाएक उसने पास के खंबे पर अपना भारी सा हाथ मारा और बोली” नहीं मैं अपने खानदान का नाम बेइज़्ज़त नहीं होने दूँगी..(थोड़ा बाहर आकर ऊपर की ओर देखते हुए ).दीना…अरे ओ दीना” कांता तेज आवाज में चीखी!
“आया मालकिन …” इस आवाज की दिशा में ही आकाश ने भी अपनी नजरें दौड़ा दीं …घर की छत पर एक कम से कम छ; फीट का आदमी कांता की आवाज सुन कर खड़ा हुआ जो छत पर बने कमरे में गेंहूं भर रहा था। दीना फौरन सीढियों की ओर दौड़ा और पल भर मे कांता के सामने आकर खड़ा हो गया।
“सुन दीना…रेशमा मन्दिर गयी है.. किसी भी हालत में वो लौट कर इस घर में ना आने पाये “
“हाथ …पैर तोड़ना है या …” दीना चौंक कर बोला
“क्यों..जान से मारने की कुब्बत नहीं तुझमें? ..तो ये इतना लम्बा चौड़ा शरीर किस काम का.” कांता ने उसे उकसाते हुए पूँछा
“वो तो बहू है आ…पकी…”
“जो घर की इज्जत उछाले उसे जीने का कोई अधिकार नहीं… तू कर पायेगा या किसी और को बोलूं? “
“पहले भी दो खून कर चुका हूँ …रेशमा को मारना तो …मेमने को मारने जैसा होगा” दीना अपनी बाजू पर हाथ मारते हुए जोश से बोला
“..(हाथ पर कुछ रुपए रखकर)काम करने के बाद और भी रुपये दूँगी…अब जा”
“यकीन नहीं होता ये सामान्य औरतें हैं या प्रोफेशनल किलर..” आकाश, कौशल्या और कांता का रूप देखकर सकते में था
“लेकिन लाश कहाँ ठिकाने लगानी है?” दीना ने पूँछा
“वो जो….” कांता, दीना को जगह बता रही थी, आकाश ने अपने कान खोल कर पूरा ध्यान उस ओर ही लगा दिया था कि तभी`ढ़ोल और नगाड़ों की आवाजे आने लगी थीं ʼहमारी मांगे पूरी करो..हमारी मांगे पूरी करो …युवा मोर्चा जिन्दाबाद …जिन्दाबाद! …जिन्दाबाद! लोगों का समूह नारेवाजी कर रहा था और उसके शोर में आकाश को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।
कांता की बात सुनकर दीना वहाँ से निकल गया। उसे निकलते देख आकाश खीज कर रह गया। कुछ पल बाद कांता भी घर से निकली और मेन दरवाजे की कुंडी बाहर से लगा दी।
“आह …ओह …” आकाश को उसी टाइम याद आया कि वो उसी घर मे है!
आकाश मेन दरवाजे के अन्दर बनी एक गैलरी में खड़ा था और दीवार में लगी एक जंगलेनुमा खिड़की से ही बड़े से आँगन में हो रही बातचीत देख और सुन रहा था। कांता घर से बाहर निकली तो कुंडी लगा दी और अब आकाश कांता के घर में बन्द था।
दीना, रेशमा का खून करने के लिये निकल चुका था और ये ख्याल ही आकाश की बेचैनी बढाने के लिये काफी था। वो गैलरी से बाहर निकला और मेन दरवाजे के पास बनी खिड़की जो कि आकाश के सिर से उँची थी। उछला और उछलते ही जोर से चीखा”कोई दरवाजा खोलो …दुबारा उछलते वक़्त बोला “कोई मेरी आवाज सुन रहा है ..प्लीज दरवाजा खोलो”
लेकिन ʼहमारी मांगे पूरी करो..पूरी करो …युवा मोर्चा जिन्दाबाद …जिन्दाबाद! …जिन्दाबाद! ‘ गाजे-बाजे के साथ नारेवाजी का शोर इतना ज्यादा था कि कुछ भी सुनने का सवाल ही नहीं उठता।
आकाश ने इधर-उधर नजर दौड़ाते हुए पास रखा एक स्टूल उठाया और खिड़की पर कस कर दे मारा कोई फर्क नहीं …गुस्से में ताकत बढ़ जाती है…इस बार बिना रुके 4 से 5 बार तेज बार किये उसने, खिड़की पर थोड़ा सा कहीं फर्क पड़ा
“चल …चल .. रुक मत …आकाश, रेशमा जी की जान खतरे में है” उसने खुद को प्रोत्साहित किया और इस बार के प्रयास में स्टूल टूट गया।
“शै मैन …” इधर-उधर देखा कवाड़ में एक लकड़ी का मोटा गोल तना रखा था उसने जाकर जल्दी से उठाया और खिड़की पर दो से तीन प्रयास कर दिये अचानक उसके दिमाग में एक सीन उभरा कि
वो जंगल में किसी किवाड़ को खोलने के लिये उस पर लकड़ी के तने से ऐसे ही प्रयास कर रहा है ‘हैं ये क्या…ऐसे क्यों लग रहा है जैसे मैनें पहले भी कोई दरवाजा तोड़ा है…”
“मनमानी नहीं चलेगी …नहीं चलेगी ….नहीं चलेगी ..” बाहर से शोर आ रहा था
“कहाँ उलझ गया यार..चल आकाश जल्दी से खिड़की तोड़” खुद से बोलते हुए इस बार के तेज प्रयास के बाद लोहे की वो जालनुमां खिड़की टूट गयी।
और थोड़े से प्रयास के बाद आकाश उस खिड़की से बाहर की ओर कूद गया।