सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:20

"जरुर कहा होगा ...खुद को देवी साबित करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ती थी ...रोज मन्दिर इसिलिए तो जाती थी कि मोह्ल्ले वालों को दिखा सके कि कितनी भली है बेचारी... और मैं उसकी चाण्डाल सास...हुँह वेशर्म कहीं की" कांता कड़वाहट से बोली!

20.

खिड़की से कूद कर जैसे ही आकाश बाहर निकला, बदहवास सा एक ओर भागा, फिर ख्याल आया कि उसे तो मन्दिर जाने का रास्ता पता ही नहीं है, कुछ बच्चे उस रैली की  ओर देखकर बड़े खुश होकर तालियां बजा रहे थे।

“सुनो बेटा, मन्दिर जाने का रास्ता कौन सा है?” उसने पूँछा 

“कौन सा मन्दिर?” बच्चे बोले 

कौन सा मन्दिर? हां ये तो सच मे कनफ्यूजिंग है कितने ही मन्दिर होंगे कैसे पता चले कि रेशमा जी कौन से मन्दिर गयीं होगीं

“बच्चो यहां से सबसे पास जो मन्दिर हो, वहाँ जाने का रास्ता बताओ”

“अरे वो तो यहीं है, यहां से सीधे इसी रास्ते पर चले जाओ अपने आप दिख जायेगा”

“ठीक है बच्चो…”आकाश पूरी तेजी से उसी ओर भागा, थोड़ी देर में ही एक छोटा सा लाल रंग का मन्दिर उसे दिख गया, वो भागता हुआ मन्दिर के अन्दर गया, जहाँ दो-चार लोग ही थे और वो सारे आदमीं और लड़के, आकाश ने दौड़ते हुए मन्दिर के आसपास देखा लेकिन कोई नहीं दिखा।

वो फिर आगे की ओर जाने वाली सड़क पर इधर-उधर देखता हुआ भागने लगा।

सामने एक पेड़ों की लम्बी कतार नजर आ रही थी और उसी के ओट में चलते कुछ लोग सिर पर कोई बोझ उठाये हुए थे।

‘कहीं यही तो दीना और उसके साथी तो नहीं?’ ये ख्याल आते ही आकाश पूरी ताकत से भागते हुए उन पेड़ों की कतार को पार कर गया और उन तीनों के सामने जा पहुँचा।

दीना हाथ में एक बड़ा सा गड़ासा पकड़े हुआ था और सबसे आगे-आगे चल रहा था उसके पीछे दो आदमी अपने सिर पर एक बड़ी सी बोरी उठाये हुए थे। उन्हें देखकर आकाश का गुस्सा उबाल मारने लगा।

“कहाँ हैं रेशमा?”आकाश ने दीना के सामने जाकर गुस्से से पूँछा

दीना ने जल्दी से अपने गड़ासा कंधे पर पड़े हुए गमछे में छुपा लिया।

“बोरी में क्या है।?” आकाश ने पूँछा

“फसल है, अभी अभी काटी है…(फिर अपने साथियों की ओर देखते हुए) चलो जल्दी-जल्दी चलो”दीना नजरें चुराते हुए बोला

“फसल? इतनी सुबह-सुबह ? अच्छा जरा दिखा तो” आकाश ने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा

“वो …जरा जल्दी में हम” दीना बड़ी फुर्ती से पास से निकलने ही वाला था कि आकाश ने उसे गर्दन से पकड़ते हुए पीछे की ओर खींच लिया।

“किसे बनाता है कमीने…..रेशमा जी कहाँ है…बोल?”

“कौन रेशमा …मैं नहीं जानता” दीना खुद को छुड़ाते हुए बोला

“कमीने तुझे नहीं पता कि रेशमा कहाँ हैं …तुझे?..बनता है मेरे सामने….क्या किया तूने उनके साथ …बो…ल” आकाश ने उसे एक जोरदार घूँसा मारा और आगे बढ़ कर बोरी खोलने लगा।

उसी वक़्त दीना ने अपने दोनों साथियों को इशारा कर दिया और अकाश कुछ समझ पाता उससे पहले ही वो दोनों उस पर टूट पड़े, आकाश को सँभलने तक का मौका नहीं दिया, और लात-घूंसो की बरसात कर के आकाश को लहू-लुहान कर दिया। 

जब तीनों आश्वस्त हो गये कि आकाश बेहोश हो गया है तो दीना ने उन दोनों को आकाश को पीटने से रोक दिया।

” बस्स करो..कोई नया लफड़ा नहीं चाहिये ..छोड़ दो इसे ऐसा ही”

“आखिर ये क्यों पूंछ रहा है रेशमा के बारे में?” दीना के एक साथी ने फुसफुसाकर पूँछा

“क्या मालूम…खैर…अब पूंछने लायक नहीं रहा …चलो यहां से…कांता ने हमसे छिपे रहने को कहा है ” दीना ने कहा और फिर तीनों वहाँ से भाग गये।

थोड़ी देर बाद

आकाश को होश आने लगा ..तब उसे दर्द का एहसास हुआ ..वो कराहता हुआ पड़ा रहा थोड़ी देर तक…फिर हिम्मत करके खड़ा हुआ और धीरे-धीरे चलने लगा, थोड़ी देर चलने के बाद उसे दो मकानों के बीच बनी छोटी सी गली में कांता किसी से बातें करती हुई दिखीं, आकाश उसी ओर मुड़ गया।

“ये क्या कह रही हो…मैने मुसीबत खत्म करने के लिये कहा था…कत्ल करवाने के लिये नहीं” ये कौशल्या थीं जो दाँत पीसते हुए कांता को डांट रही थीं।

“दादी जी ” कौशल्या को देखकर चौंकता हुआ आकाश दीवार के सहारे से टिक कर खड़ा हो गया

“मैने आपकी मुसीबत हमेशा के लिये खत्म कर दी, आपको तो मेरा एहसान मानना चाहिये, और आप हैं कि ….”कांता तपाक से बोली

“चुप्प …पागल औरत! कितना बड़ा बबाल कर दिया तूने, एहसास भी है…हे भगवान अब मैं क्या करुँ?”

“कैसे एहसास नहीं होगा…अपनी बहू के साथ-साथ पोता भी तो खोया है मैनें ” कांता के ये बोलते ही कौशल्या का ही नहीं बल्कि आकाश का मुँह भी खुला का खुला रह गया।

“क्या?” कौशल्या सदमे से जमीन पर बैठ गईं! और आकाश ने खुद का हाथ अपने मुँह पर रख लिया।

“मैनें उस गधे से बस्स रेशमा को मारने के लिये….”कांता ने इतना बोला ही था कि

“चुप…चुप खबरदार जो ये शब्द तेरी जुबां पर कभी दुबारा भी आया तो….”कौशल्या ने उसे तेजी से डपट दिया

” लेकिन मेरा पोता भी तो उस करमजली  के साथ था…उन लोगों के काम में अड़चन डाल रहा था.. इसलिये उन लोगों ने उसे भी …हाय मैं कहीं की ना रही” कांता ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना दायां हाथ खुद के माथे पर मारा, 

आकाश गुस्से से तिलमिला गया और ‘जो होगा देखा जाएगा ‘ सोचते हुए उसकी ओर एक कदम बढ़ाया ही था कि ठिठक गया। कौशल्या उठ कर खड़ी हुईं। और बड़े सख्त आवाज में बोली

“जो होना था सो हो गया, अब यूँ हाथ पैर छोड़ने से कोई फायदा नहीं होने वाला …ये बताओ …उन दोनों की…अ …उन दोनों की ओह्ह ” कौशल्या लाख चाहने के बाबजूद भी वो शब्द अपनी जुबां पर नहीं ला पा रही थीं जो उन्हें इस वक़्त सबसे ज्यादा परेशान कर रहे थे।

“किसका मुँह देखकर काटूगीं ये बची जिंदगी ” कांता निढ़ाल सी जमीन पर बैठ गयी थी।

और उसे ऐसे हाल में देखकर कौशल्या की चिंता बढ़ गयी थी

“कांता…कांता संभालों खुद को…ये बताओ दोनों की लाशें कहाँ हैं?” कौशल्या ने कांता के सामने बैठते हुए उसके दोनों कंधे हिलाते हुए पूँछा

“वो सेठानी जी। आपके घर के पिछले दरवाजे के आगे जो जगह है ना… वहीं पर ” कांता रोते हुए बोली

“क्या…?” सुनकर कौशल्या की आँखे फट गयीं। और गुस्से में आकर कौशल्या ने एक जोरदार चाँटा कांता के मुँह पर रशीद कर दिया।

“तूने, मुझे फंसाने की ठानी है क्या…पूरे जहाँ में तुझे मेरे घर ही मिल पाया था”

“मैने तो पास के तालाब में फेंकने को कहा था…लेकिन ना जाने कहाँ से वो रैली वाले आ मरे …उधर किसी के देख लेने का खतरा था ..आप के घर की वो पिछ्ली गली एकदम सुनसान है….वहाँ कोई नहीं आता-जाता …किसी के घर का कोई दरवाजा उस गली में नहीं खुलता सिवाय आपके घर के पिछले दरवाजे के…” कांता सुबकते हुए बोली, कौशल्या को भी उसकी बात वजनदार मालुम हुई। दोनों के बीच कुछ देर के लिये खामोशी छा गयी।

जो हो गया है उसे बदला नहीं जा सकता…और चाहें जो हो कांता ने मेरे जीवन का सबसे बड़ा कांटा जो कि रेशमा थी ! उसे निकाल दिया है इससे बड़ी तसल्ली और सुकून की बात मेरे लिये क्या हो सकती है ..हां मैने उसकी मौत नहीं चाही थीं…खैर….इस वक़्त कांता का यूँ कमजोर पड़ना निश्चित रुप से परेशानी खड़ी कर सकता है… अब आगे की स्थिति हर हाल में मुझे ही  संभालनी होगी…वरना सब किया धरा मिट्टी में मिल जायेगा और अगर रेशमा का सच खुल गया तो कोई भी ना तो मुझे माफ करेगा.. ना ही अपनायेगा – कौशल्या ये सोचते हुए कांता के बिल्कुल पास आयीं और उसकी आँखो में आँखे डालते हुए कठोरता से बोलीं

“सुनो कांता, किसके लिये आँसूं बहा रही हो …अपनी बहू के लिये? अगर वो खुद को तुम्हरी बहू ही समझती तो एक बच्चे की मां होने के बाबजूद किसी लड़के से यूँ व्याह करने के मंसूबे ना बना रही होती… …जरा सोच कर देखो अगर उसने राघव से व्याह कर लिया होता तो मोह्ल्ले वालों का सामना कैसे करतीं तुम?…हाँ तुम्हें पोते का अफसोस जरुर होना चाहिये…लेकिन एक बेटा जितना खुद की मां का सगा हो जायेगा उतना खुद की दादी का होगा क्या.?..कल को उसे तुम्हारा सच पता लगता तो बात करना तो दूर रहा वो तुम्हें खुद के हाथों से मार डालता.समझीं “

कांता को कौशल्या की एक-एक बात सच महसूस हो रही थी वो साड़ी के पल्लू से अपनी आँखे पोंछने लगी ..कौशल्या आगे बोलीं

“…तुम्हें तो खुद पर गर्व होना चाहिये! तुमने अपने खानदान की इज्जत बचा ली…जो औरतें खुद की और खानदान की इज्जत के लिये जान लेंने और देने से पीछे ना हटतीं हों …ऐसी बहादुर औरतों को रोना शोभा नहीं देता कांता …नहीं शोभा देता” तैश में बोलती हुई कौशल्या की आवाज थोड़ी तेज हो गयी थी, जिसने कांता पर जादू सा असर किया, 

गर्व में भरी हुई कांता अब ऐसे सामान्य दिख रही थी जैसे कुछ ना हुआ हो..वैसी ही भावहीन और सख्त।

रेशमा को मारकर उसने खानदान की इज्जत बचाई है इस भाव से कांता घमंड से भर गयी। और अपनी पीली और निस्तेज आँखों से कौशल्या की ओर देखते हुए उसने एक गहरी साँस ऐसे छोड़ी जैसे रेशमा और उसके बेटे को मारने का दुख मनाने का समय अब खत्म हो गया हो।

कौशल्या भी उसके तेवर से मन ही मन तसल्ली मेहसूस करती हुईं बोलीं “अब सोचना ये है कि आगे क्या करना है”

“आगे क्या ? मसला तो खत्म हुआ” कांता आश्चर्य में थी कि अब भला क्या करना बाकी रह गया है।

“नहीं …खत्म नही हुआ…सब पूंछेगे कि रेशमा कहाँ गयी तो क्या जवाब दोगी?”

“क्या जवाब दूँगीं? कह दूँगी मुझे क्या पता कहाँ गयी… कौन सा मेरी बात मानती है वो…अपने मन की मालिक…हुँह”

“इतने भर से पीछा नहीं छूटने वाला कांता…जवाब नहीं मिलेगा तो सवाल उठते ही रहेंगे…और तुम्हारा चैन से जीना मुश्किल हो जायेगा”

“तो फिर क्या करुं ?…आप ही कोई रास्ता सुझाओ सेठानी जी” कांता ने प्रार्थना की

“कांता …एक बात बताओ! एक दो लोगों से तो उसने कहा ही होगा कि तुमने उसे मारा पीटा है”

“जरुर कहा होगा …खुद को देवी साबित करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ती थी …रोज मन्दिर इसिलिए तो जाती थी कि मोह्ल्ले वालों को दिखा सके कि कितनी भली है बेचारी… और मैं उसकी चाण्डाल सास…हुँह वेशर्म कहीं की” कांता कड़वाहट से बोली

” …मेरे पास एक उपाय है, जिससे सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं  टूटेगी ” कौशल्या के ये कहते ही कांता

उत्सुकता में तनिक सा और पास खिसक आयी कौशल्या के।

“..शोर मचा दो कि रेशमा किसी के साथ भाग गयी है” माथे की भवें तरेरकर कौशल्या बड़े कड़े तेवर में बोलीं

” क्या …? अगर समाज में यही बोलना था… तो इतना सब करने की क्या जरुरत थी …क्या फायदा रेशमा को मरवाने का?”

“ओह्हो बार बार-बार रेशमा को मरवाने की बात जुबान पर मत लाओ कांता….और इस वक़्त इससे बेहतर उपाय नहीं हो सकता …जरा सोचकर देखो जो लोग जो तुम्हें देखकर नाक भौ सिकोड़ते हैं वही लोग ये जानने के बाद कि रेशमा भाग गयी, तुमसे हमदर्दी जताएंगे..”

कांता शून्य में देखते हुए चुपचाप सुन रही थी…ऐसा लग रहा था जैसे उस पर कौशल्या को बातों का असर हो रहा हो

“….कोई तुमसे सवाल नहीं करेगा… और अपने खानदान की इज्जत तो तुमने बचा ही ली है …नहीं समझ आती मेरी बात तो जो चाहे सो करो मैं तो तुम्हारी भलाई के लिये ही कह रही थी” झूठ-मूठ गुस्से का दिखावा करते हुए कौशल्या दो कदम आगे ही आगे बढ़ी होंगी। कि मुँह पर पल्लू रख कर कांता भागती सी गली से बाहर निकली और चीखने लगी

 “हाय मेरे खानदान की इज्जत डुबा गयी …हाय मुझे बर्वाद कर गयी…हाय मैं क्या करुं?”

कौशल्या ने राहत की साँस भरी और तेज कदम बढातीं हुई वहाँ से निकल गयीं।

आकाश ये सब देख और सुन सदमें में था। लाख कोशिश के बाबजूद भी वो रेशमा को बचा नहीं पाया था।

कितना नाजुक वक्त था…क्या मुझे थोड़ी सी कोशिश और नहीं करनी चाहिये थी… क्या मैं वो खिड़की थोड़ा और पहले नहीं तोड़ सकता था? अगर कुछ मिनट पहले भी वो खिड़की तोड़ कर मैं बाहर जा पाता तो रेशमा को बचा पाता…मैं शायद बचा लेता उन्हें -आकाश सोच रहा था।

“क्या हुआ कांता बहिन …ऐसे क्यों रो रही हो” पड़ोस से गुजरने वाली दो औरतों ने कांता से पूँछा

“अब बहिन क्या कहूँ …क्या कहने लायक बची हूँ …”

“फिर भी …कुछ तो कहो …ऐसे क्यों रोती हो?”

“रेशमा मेरी बहू …”

“हाँ …हाँ “

“वो भाग गयी किसी के साथ”साड़ी का पल्लू मुँह में दवा कर  जोर से रोने लगी कांता

“हाय …” उनमे से एक ने आश्चर्य से अपने मुँह पर हाथ रख लिया

“किसी के क्या …सारी दुनिया जानती है कि किसके साथ भागी होगी” दूसरी औरत चिढ़ती हुई बोली

“नहीं वो राघव के साथ नहीं भागी…किसी और के साथ अहह” कांता गहरा दुख दिखाते हुए बोली

“हाय राम। प्रेम का खेल किसी के साथ और भाग किसी और के साथ गयी…”

“पहले ही उसके लक्षण ठीक नहीं थे कांता बहिन …कितना समझाया था आपने …देख लो जिसका चरित्र ही ठीक ना हो उससे काहे की उम्मीद…सब्र रखो बहिन” सहानूभूति का हाथ रखते हुए पहली औरत कांता से बोली…और कांता सुबकते हुए वहाँ से आगे बढ़ गयी। कांता के हटते ही दोनो औरतें एकदूसरे की ओर देखकर मुस्कराई और आगे बढ़ गयीं।

कौशल्या घर ना आकर सीधे किसी के घर पहुँची और दरवाजा खटखटा दिया।

“अरे सेठानी जी आप?” दरवाजा खोलने वाला आदमी कौशल्या को देखते ही बोला

“इधर से जाना था तो, सोचा मैं ही बोल दूँ “

“अरे! हुक्म कीजिये सेठानी जी”

“घर के पिछले दरवाजे को बन्द कराना है …बस्स एक दीवार बनवानी है, सो भी जितना जल्दी हो सके”

“हो जायेगा सेठानी जी, हुक्म कीजिये कब से काम शुरू करना है”

“बिल्कुल अभी से…मजदूरों को लेकर अभी आओ और काम शुरू करो”कौशल्या ने उसकी ओर कुछ रुपए बढाते हुए कहा।

“जी आप चलिये मैं बस्स अभी सामान और मजदूरों के साथ पहुँचता हूं।”

***

(पार्ट 2 का भाग)

मजदूर घर आकर काम कर रहे थे। और कौशल्या वहीं चहल कदमी कर रहीं थीं।

बाहर लोगों के शोर-शराबे की आवाजें घर के भीतर तक आ रहीं थीं। लेकिन कौशल्या को उन आवाजों से तनिक भी परेशानी नहीं हो रही थीं।

“ना जाने हाथों में जान भी है या नहीं…बस्स खत्म करो जल्दी से और चलते बनो यहाँ से सब” लगभग घंटे भर बाद  कौशल्या गुस्से में खीजते हुए चीखीं।

“बस्स मालकिन… बस्स ..बस्स..अभी हुआ जाता है” दीवार को अंतिम रूप देता कारीगर बोला

कुछ मिनट बाद

“जी हो गया..” कारीगर के बोलते ही कौशल्या ने उसके हाथ पर जल्दी से कुछ रुपये रख दिये। और कारीगर समेत जैसे ही मजदूर बाहर निकले…नारायण घबराए से अंदर दाख़िल हुए

“सुना तुमने?…व वो …रेशमा…वो…ओह..ओह” नारायण इतना ही बोल पाए और हाँफते हुए बैठ गए

“हाँ हॉं सब सुना..लेकिन तुम क्यों इतने हलकान हुए जाते हो…जो हुआ सो अच्छा ही हुआ…” कौशल्या वैसे ही गुस्से में बोलीं

“होश में नहीं हो क्या…मैं तो ये सोचकर ही परेशान हूँ….कि जब राघव को पता लगेगा…तो उस पर क्या बीते….”

“माँ…बाऊ जी…सुना आप लोगों ने…” वो अपनी बात पूरी करते इससे पहले ही राघव की आवाज गूंज गयी थी..

“..मोहल्ले के लोग क्या बकवास कर रहे हैं…जी में तो आता है सबको गोली मार दूँ.. एकाध को मार ही देता हूँ … बाकी के सब साले खुद व खुद चुप हो जाएंगे” राघव गुस्से में धमकता हुआ आगे बढ़ा और दीवार पर टंगी बंदूक उठा ली

“किसे -किसे गोली मारोगे…लोग तो वही कहेंगे ना.जो उन्होंने देखा है..मैं ना कहती थी वो औरत तुम्हारे लायक नहीं..प्रेम का नाटक तुम्हारे साथ करती रही…और भाग किसी और के साथ गयी..” कौशल्या, राघव के हाथ से बंदूक छीनते हुए बोलीं

“माँssss…खबरदार जो आपने एक शब्द और रेशमा के खिलाफ़ बोला…मैं कतई बर्दाश्त नहीं करूँगा..सुना आपने…कतई नहीं” वो कौशल्या की ओर घूरते हुए गुस्से में चीखा। राघव को अपनी मां से ऐसे बात करते देख नारायण को बड़ी तेज गुस्सा आया उन्होनें एक झन्न्नाटेदार तमाचा राघव के गाल पर मार दिया

 “एक लड़की के प्रेम में इतने अंधे हो चुके हो..कि अपनी माँ से बात करने की तमीज तक नहीं रही तुम्हें” नारायण गुस्से से चीखे।

“.तो समझा दीजिये अपनी पत्नी को बाऊ जी कि मेरी रेशमा ऐसा नहीं कर सकती…कभी नहीं..और नाहीं मैं उसके खिलाफ एक शब्द सुनूंगा…बिल्कुल न…हीं” गुस्से में हाँफते हुआ राघव, थप्पड़ पड़े अपने गाल पर हाथ रखे बाहर की ओर दौड़ गया

“.. देखा तुमने (कौशल्या की ओर आश्चर्य से देखते हुए) ..ये लड़का बिल्कुल होश खो बैठा है ” उसके निकलते ही नारायण धीमे से दबे हुए स्वर में बोले

“..अभी जख्म नया-नया है ना, जल्दी ही ठीक हो जायेगा…बस्स जल्दी से एक ख़ानदानी लड़की ढूंढो… मैं भी देखती हूँ …अब कैसे मना करता है शादी से” कौशल्या दंभ से बोली तो नारायण मुँह खोले उनकी ओर देखते रहे ..फिर जैसे कुछ याद आ गया हो उन्हें,

“सुनो! कहीं तुमने तो कुछ.??..”नारायण के इतना बोलते ही कौशल्या उनकी ओर पीठ करके खड़ी हो गईं

“तुम तो किसी काम के हो नहीं..तो क्या मैं भी हाथ पर हाथ धर के बैठी रहूँ..और पानी फिर जाने दूँ इस खानदान की इज्जत पर…” कौशल्या ऊंचे स्वर में बोली

“मैं पूंछता हूँ क्या किया तुमने उसके साथ?… कहाँ है रेशमा?…” नारायण ने फिर गुस्से में पूँछा

“जहां उसे होना चाहिए…लोग खानदान की इज़्ज़त के लिए क्या -क्या नहीं करते…मैंने तो बस्स…”

“बस्स क्या… बोलो बस्स क्या …”नारायण, कौशल्या को झकझोरते हुए चीखे

“….. तुम्हें तो एहसानमंद होना चाहिए मेरा..कि इज्जत और बेटा… दोनों बच गए..इसलिए आम खाओ..गुठलियों पर ध्यान मत दो….” कौशल्या एक भौंह उठाते हुए बोलीं

“…कौ…शल्या…??.”

नारायण की आवाज को अनसुना करते हुए कौशल्या कमरे से बाहर निकलने लगी।

“.मै कहता हूँ…सुनो…सु…नो..कौशल्या…” नारायण के चीखने का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ …वो कमरे से बाहर निकल गईं थीं….नारायण ने घोर हताशा में अपनी दोंनो हथेलियां खुद के माथे पर रख लीं।

और अब जाकर नारायण की नजर अभी-अभी बनी दीवार पर गयी ” ये दीवार …अचानक ?… क्यों भला..क्या तुक है इसका, जबकि ये राघव का कमरा है..जरुर कौशल्या कुछ छिपा रही है मुझसे … ईश्वर करे मैं गलत साबित हौंऊ..लेकिन मैं ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकता” सोचते हुए नारायण उठे और दूसरे कमरे में चले गये जहाँ कौशल्या कमरे की छत पर आँखे टिकाये चुपचाप लेटीं हुईं थीं।

***

“राघव चाचा ….ओह्ह बेचारे…मुझे उन्हें सच बता देना चाहिये…और ये भी कि रेशमा को मारने में ना सही लेकिन मौत को छिपाने में उनकी माँ का ही हाथ है” गुस्से से भरा आकाश, राघव को बताने घर की ओर दौड़ा।

और घर के अन्दर का नजारा देखकर ठिठक गया।

सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:21

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