जैसे ही उसे ये एहसास हुआ उसने आँखे खोलने की कोशिश की लेकिन नहीं खोल पाया...उसने खुद को हवा में थोड़ा और ऊपर उठा हुआ महसूस हुआ ..डर की एक झुरझुरी सी महसूस हुई उसे और वो चीखा "आह्ह्हह" और कुछ पल के लिये ना तो उसे कुछ दिखा ना कुछ समझ आया तभी, ये हुआ 'धम्म्मं'की एक आवाज के साथ उसने खुद को राघव के कमरे के अन्दर पाया..'क्या ...यहाँ ...यहां कैसे...आह?'
21.
“कौशल्या, तुमने राघव के कमरे में ये अचानक दीवार क्यो बनवा दी ?” नारायण ने गुस्से में पूँछा
“जरुरत थी” कौशल्या, नारायण से मुँह फेर कर बोलीं
“कैसी जरुरत ?”
“मैं नहीं चाहती, कि मेरा बेटा उस दरवाजे को देखे और दुखी हो जाये…दरवाजा बन्द रहेगा तो वो जल्दी ही इस सब से उबर जायेगा”
“अच्छा? तुम्हें पहले से कैसे पता चल गया कि ये सब होने वाला है …कि रेशमा…और आनन फानन में तुमने दीवार भी बनवा दी”
कौशल्या को अचानक अपनी गलती का एहसास हुआ, ये सवाल भी उठ सकता है, ये बात उनके दिमाग में क्यों नही आयी?
“कुछ पूंछ रहा हूँ कौशल्या…जवाव दो…क्या छिपा रही हो मुझसे…बो..लो” चीख पड़े नारायण
“मैं …मैं क्या छिपाऊंगी …कुछ भी तो नहीं”
“समझ गया…ऐसे नहीं बोलोगी…ठीक है …मैं दीवार तुड़वाता हूँ “
“नहीं तुम्हें मेरी कसम….” कौशल्या ने घबराकर नारायण की बाँह पकड़ ली।
“तुमने तो मेरे शक को यकीन में बदल दिया कौशल्या” नारायण निराशा भरी आवाज में बोले..और नारायण के ये बोलते ही कौशल्या का सब्र का बाँध टूट गया और वो निढ़ाल सी जमीन पर बैठीं और आँसुओ से रोने लगी।
“मुझे बचा लो…मुझसे अपराध हो गया है…मैं क्या करुँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा”
“कौशल्या मुझे बताओ…सब सच- सच बताओ..”
नारायण की बात को बिल्कुल अनसुना करके वो बस्स रोती रहीं।
“देखो कौशल्या!रोने से कुछ हल नहीं निकलने वाला …मुझे बताओ क्या किया है तुमने …इससे पहले हम किसी बड़ी मुसीबत में फँस जाये …कौशल्या बताओ मुझे”
कौश्ल्या ने जल्दी से आँसूं पोंछे और हांफते हुए बोलीं
“तुम सब संभाल लोगे ना?”
“क्या इसके सिवाय कोई और चारा है?…अब बोलो?”
“देखो, हम दोनों ही परेशान थे उस …उस रेशमा से…
“हम्म..”
“मैं उसकी सास से मिली…और मैनें उससे इस क्लेश को खत्म करने के लिये कहा”
“उस कांता से मिली तुम?”
“हम्म ….”
” फिर….?”
“उसे उत्साहित करने को मैनें उसे थोड़े पैसे भी दिये”
इसे सुनकर नारयण ने अपनी आँखे तरेरी
“मैं क्या करती मुझे डर लग रहा था कि कहीं …कहीं…राघव उससे व्याह कर लेता तो…हम कहीं के ना रहते…”
“अच्छा, फिर?”
“फिर क्या …मुझे क्या पता था कि (फुसफुसाकर) वो पागल औरत उसका कत्ल करवा देगी..
“(आश्चर्य से)क्या…?”
“इतना ही नहीं…उस पागल औरत ने उसकी और उसके बेटे की लाश को हमारे घर के पिछवाड़े …राघव के कमरे का जो पिछला दरवाजा खुलता है ना…वहाँ दफन करवा दिया है…”
डर और हैरत से नारायण ने अपने दोनों हाथ खुद के मुँह पर रख लिये
“इसलिए मुझे वो दीवार बनवानी पड़ी….सुनो, मेरा दिल बड़ा घबरा रहा है…आह..अगर मुझे जरा सा भी एहसास होता कि वो पागल और कमक्ल औरत…
“वो कमअक्ल और पागल अयं ..या तुम? (नारायण गुस्से से चीखे) यकीन नहीं होता कि तुम ऐसा भी कर सकती हो…कोई और मुझे तुम्हारे बारे में बताता तो यकीन नहीं होता …लेकिन ..”
“मेरा यकीन करो…मैनें उससे ऐसा नहीं कहा था….मैं तो बस्स ये चाहती थी कि उसे कहीं दूर भेज दे या किसी के साथ भेज दे, बस वो राघव की जिंदगी से अलग हो जाए, मैं तो बस खानदान की इज्जत बचाना चाहती थी”
“तुमने जो किया उससे हजार बार अच्छा होता कि राघव उस रेशमा से व्याह ही कर लेता”
“ये क्या कह रहे हो…?
“सच कह रहा हूँ …ना सही अपराध …लेकिन तुम? इस अपराध की भागीदार हो कौशल्या” नारायण आवेग में चीखे
“(आश्चर्य से) क्या?”
“हाँ …सही कह रहा हूँ ” फिर नारायण ने जल्दी से लकड़ी की आलमारी खोली और कुछ पैसे निकालकर अपनी जेब में रख लिये।
“कहाँ जा रहे हो?”
अभी दो ही कदम बढ़ाए होंगे नारायण ने कि कौशल्या ने उनका हाथ पकड़ लिया
“पुलिस चौकी” बड़े तटस्थ भाव से नारायण ने जवाव दिया
” पुलिस चौकी. ?”
“मुझे लगता है सब कुछ कबूल करना ही हमें इस मुसीबत से बाहर निकाल सकता है”
“नहीं …नहीं…नहीं मैं तुम्हें हरगिज पुलिस चौकी नहीं जाने दूँगी…सबके सामने पुलिस मुझे पकड़ कर ले जायेगी…हाय कितनी बेइज्जती हो जाएगी” कौशल्या ने नारायण को रोकने के लिये उनकी बाँह कसकर पकड़ ली थी!
“मुझे जाने दो कौशल्या…घबराओ मत… मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा” नारायण ने आश्वासन देते हुए कौशल्या का हाथ खुद की बाँह पर से छुटाया लेकिन कौशल्या ने उनकी बाँह और भी कस कर पकड़ ली।
“नहीं …नहीं..पुलिस नहीं…सुनो क्या कोई और उपाय नहीं?”
“कौशल्या … हाथ छोड़ो मेरा”
“नहीं…नहीं…पुलिस नहीं” कौशल्या एक बच्चे की तरह बिलख पड़ी। और बाहर से देखता और सुनता आकाश कौशल्या का ये रूप देखकर भावुक हो गया।
अगले ही पल!
नारायण के कदम डगमगाये और वो जमीन पर लुढ़क गये
“हें क्या हुआ…क्या हुआ” (कौशल्या चीखीं) अरे कुछ बोलो ना क्या हुआ …आह क्या करुँ (फिर कमरे के दरवाजे से जोर से आवाज लगायी) “गि…री…श…रा…घ..व … अरे! जल्दी आओ…देखो तुम्हारे बाऊ जी को क्या हुआ?”
“क्या हुआ बाऊ जी को?” गिरीश भागते हुए आये
“पता नहीं …देख जरा” कौशल्या, नारायण की हथेलियाँ मलने लगीं। नारायण की आँखे लाल हो गयी थीं और वो बेहद कष्ट में दिख रहे थे।
“मैं डॉक्टर को बुला कर लाता हूँ ” गिरीश उनकी हालत देख तेजी से बाहर की ओर भागा!
“घबराओ मत…गिरीश गया है डॉक्टर को लाने…अभी डॉ आता ही होगा” कौशल्या उनकी हथेलियाँ मलते हुए रोने लगीं।
अचानक नारायण ने कौशल्या का हाथ इतनी कस कर पकड़ा जैसे दुनियाभर की ताकत अचानक से उनके हाथों में आ गयी हो … और अगले ही पल एकदम शिथिल छोड़ दिया। कौशल्या के दिमाग में उस अनहोनी की अशंका कौंध गयी जिसे वो स्वीकार करने को एकदम तैयार नहीं थी। कि तभी,
“डॉक्टर साहब जल्दी देखिए” गिरीश डॉक्टर को ले आये थे।
डॉक्टर, नारायण का चेकअप कर रहे थे और कौशल्या जड़ बनीं खड़ी थीं जो डॉक्टर कहने वाला था वो पहले ही जान चुकीं थीं। परिवार के सभी लोग अब तक उस कमरे में इकट्ठा हो चुके थे।
“गिरीश जी, इनमें कुछ नहीं बचा” डॉक्टर निराशा से अपना सिर ना में हिलाते हुए बोला
“मत…लब?…क्या मतलब आपका?…ये अभी एकदम ठीक थे…अभी कुछ पल पहले ही” गिरीश घोर आश्चर्य में था
“मेरे आने से पहले ही ये इस दुनिया से जा चुके हैं…” डॉक्टर ने गहरी संवेदना से गिरीश का कंधा थपथपाया और जल्दी से वहाँ से निकल गया।
ये अनहोनी अचानक, सब जड़ हो गये थे।
“बा…ऊ जी..” उर्मिला जोर से चीखीं, सब सदमें में आ गये। उस भयावह माहौल में आकाश के लिये एक पल और खड़े हो पाना असंभव था, वो वहाँ से निकला और बाहर सड़क पर आ गया …सामने से राघव बदहवास सा भागता हुआ घर की ओर आ रहा था…उसे नारायण के ना रहने की खबर मिली थी किसी से।
क्या ऐसे हालात में इन्हें सच्चाई बताना ठीक है??…बिल्कुल नहीं …ओह्ह बेचारे। इस सबकी वजह वो दुष्ट औरत कांता है…चाहे जो हो जाये छोडूंगा नहीं मैं उसे …मार डालूँगा” सोचते हुए आकाश कांता के घर की ओर मुड़ गया।
उसने रेशमा की मौत की पूरी साजिश ना सिर्फ अपनी आँखों से देखी बल्कि वो इसके भयंकर परिणाम के रूप में खुद के दादा जी की मौत देख कर आ रहा है।
‘ये ठीक है कि दादी गयीं थी उसके पास लेकिन उनका रेशमा को मरवाने का तो कोई इरादा नहीं था..उस कांता की वजह से ही मेरे दादा जी नहीं रहे और राघव चाचा …ओह्ह वो तो जानते तक नहीं हैं कि वो जिससे इतना प्रेम करते हैं उनकी मौत हो चुकी है…’ सोचता हुआ आकाश लम्बे-लम्बे डग भरता दौडता सा चला जा रहा था कि,
नजर सड़क किनारे बसे उस परिवार पर चली गयी…जिंनका लगभग पूरा जीवन ही सड़क किनारे बीत जाता है…एक औरत और उसका पति चाकू की धार तेज करने में तल्लीनता से लगे थे और पास ही रखी एक चारपाई पर तरह-तरह चाकू और हँसिया रखे हुए थे… आकाश ने लपक कर एक बड़ा सा चाकू उठा लिया और आगे चल दिया
‘ए …ए.. रुका…पईसा तो दी नहीं” वो औरत चीख कर बोली, आकाश को ना जाने क्या सूझा जो उसने हाथ में पकड़ा हुआ चाकू उसे ऐसे दिखाया जैसे वो खून कर देगा उसका…वो औरत अवाक रह गयी…और
“जाई दे ” उसके पति ने अपनी पत्नी को तसल्ली देते हुए कहा. भला एक चाकू के लिये जान खतरे में डालने की मुसीबत क्यो लेना। और आकाश को वहाँ से जाने का इशारा कर दिया।
आकाश अभी मुश्किल से दस बारह कदम ही चल पाया होगा कि तेज हवा चलने लगी ..और इतनी तीव्र गति से हवा का प्रेशर बढा कि वो कदम आगे बढ़ाता और हवा उसे पीछे धकेल देती..और अब तो सामने देखना भी मुश्किल हो रहा था..तेज हवा की वजह से आँखे खोले रख पाना असम्भव होने लगा
“आह” खीजते हुए उसने अपनी बाँह से आँखों को ढंक लिया..और तभी उसे महसूस हुआ जैसे वो जमींन से ऊपर उठ गया है..
“हें” जैसे ही उसे ये एहसास हुआ उसने आँखे खोलने की कोशिश की लेकिन नहीं खोल पाया…उसने खुद को हवा में थोड़ा और ऊपर उठा हुआ महसूस हुआ ..डर की एक झुरझुरी सी महसूस हुई उसे और वो चीखा “आह्ह्हह” और कुछ पल के लिये ना तो उसे कुछ दिखा ना कुछ समझ आया तभी, ये हुआ
‘धम्म्मं’की एक आवाज के साथ उसने खुद को राघव के कमरे के अन्दर पाया..’क्या …यहाँ …यहां कैसे…आह?’ सिर पर हाथ रखे आकाश कमरे को इधर से उधर ऐसे देख रहा था जैसे अभी-अभी नींद से जागा हो और अभी कुछ सोच- समझने की शक्ति बटोर पाता तब तक ध्यान कमरे के दूसरे दरवाजे की ओर चला गया जहाँ लगातार दरवाजे पर किसी के हाथों की थाप पड़ रही थी।
“आकाश …दरवाजा खोलो…तुम ठीक तो हो ना…उफ्फ क्या करुँ कुछ समझ नहीं आ रहा…आकाश …आका..श”
“गिरि अंकल…अहह” आकाश छोटे-छोटे कदम भरता दरवाज़े की ओर बढा और दरवाजा खोल दिया।
“आकाश… ओह्ह….शुक्र है ” आकाश को सही सलामत देखकर गिरिराज ने राहत की साँस ली…फिर जल्दी से कमरे के अन्दर गये और इधर-उधर देखने लगे, तब तक आकाश बाहर आकर बैठ गया।
“तुम सही कहते थे…कुछ था…मैनें भी महसूस किया था …फिर ना जाने मैं कैसे…मैं कमरे से बाहर आ गया…ऐसा लगा जैसे किसी ने धकेला हो मुझे…” गिरिराज एक ही साँस में बोल गये फिर देखा आकाश उनकी कोई बात सुन ही नहीं रहा था वो बस शून्य में देख रहा था।
“ये बताओ तुम ठीक तो हो ना…उसने कोई नुकसान तो नहीं पहुँचाया तुम्हें? …मैं कब से दरवाजा खटखटा रहा था तुम दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे थे?” गिरिराज ने देखा आकाश अब भी बेखबर बुत बना बैठा था।
“आकाश?” गिरिराज ने उसके कन्धे पर बड़ी आत्मीयता से हाथ रखते हुए पुकारा
“दादा जी नहीं रहे ” वो धीरे से बुदबुदाया
“क्या..” गिरिराज ने प्रतिक्रिया दी “इसका मतलब तुम …तुम उस समय में थे..फिर से”
“हम्म्म…”
“ओह्ह” अब गिरिराज की आँखे आश्चर्य से फैल गयीं थीं वो आकाश के पास जमींन पर बैठ गये,
जाहिर है उन्हें लगा ये समय ना तो बात करने का है ना ही आकाश को अकेले छोड़ने का
“रेशमा जी का कत्ल हो गया” थोड़ी देर बाद आकाश फिर बुदबुदाया
“क्या…किसने किया? क्या तुमने देखा?”
“हम्म…उनकी सास ने…उनकी सास ने रेशमा को मरवा दिया ..(फिर तेज आवाज में) मैं नही बचा पाया उन्हें…रेशमा जी नहीं रहीं…वो मर चुकी हैं…मर चुकीं हैं रेशमा”
“क्या ?” इस तेज आवाज ने दोनों को बाहर की ओर देखने के लिये मजबूर कर दिया
“राघव….” गिरिराज के मुँह से निकला
“राघव चाचा जी” राघव डूबे स्वर से बोला
राघव घर के दरवाजे पर अभी अभी आया था और उसने आकाश की कही हुई अन्तिम बात सुन ली थी। राघव भागता हुआ अन्दर आया, उसके पीछे गिरीश और उनकी पत्नी, रोहित और राई और सबसे पीछे उर्मिला…
उर्मिला को देखकर गिरिराज ऐसे हालत में भी सब कुछ भूल गया, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी …फिर हालात का ख्याल करके उसने जल्दी से खुद की नजर उर्मिला से हटा ली और खुद को संयत कर लिया।