फूलों से लदी बेले दरवाजे पर ऐसे आ जातीं तो जैसे किसी हीरोइन की जुल्फें उसके चेहरे पर लहरा उठीं हों। गिरिराज खुद की सोच पर मुस्करा उठे। फिर उनकी नजर दरवाजे के दाहिनी ओर चली गयी एक काले रंग की नेम प्लेट पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था।
___________________________________________
22.
“क्या कहा तुमने अभी?” राघव ने आकाश के बिल्कुल पास आकर तेज आवाज में पूँछा। आकाश ने असमंजस की स्थिति में गिरिराज की ओर देखा। लेकिन गिरिराज को खुद समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या बोलें!
“तुमने रेशमा के बारे में अभी-अभी क्या कहा?” राघव ने फिर से पूँछा लेकिन आकाश ने कोई जवाब नहीं दिया !
“मुझे जबाव दो आकाश …बोलो…कहाँ है रेशमा?” राघव ने इस बार आकाश के कन्धे झिंझोड़ दिये
“वो नहीं रहीं….” वो धीरे से बोला
“क्या?…क्या बकते हो…मैं नहीं मानता…झूठ है ये” राघव एकदम डूबी हुई आवाज में बोला!
“आपको मानना होगा चाचा जी…पहले ही आप बहुत भ्रम में रह चुके हैं, अब आप को सच स्वीकार कर लेना चाहिये”
” वो कैसे मर सकती है…नहीं …नहीं…झूठ है ये” राघव को खड़े रह पाना मुश्किल लगा वो जमीन पर निढ़ाल सा बैठ गया।
“बस्स बहुत हुआ…इस भ्रम की स्थिति से बाहर आइये चाचा जी…सालों पहले ही मौत हो गयी है उनकी” आकाश चीख कर बोला…
“कैसे मान लूँ …मैं कैसे मान लूँ?…जब तक मैं प्रमाण ना देख लूँ… कैसे मान लूँ?”
“ठीक है..प्रमाण चाहिये ना अपको …मैं अभी प्रमाणित करता हूँ” आकाश ने इधर-उधर देखा और घर में मरम्मत काम के चलते फावड़ा और कुदाल रखी ही हुई थी, उसने कुदाल उठायी और दौड़ता हुआ राघव के कमरे में जाकर पिछले दरवाजे पर कुदाल से पूरी ताकत से वार कर दिया।
वहाँ मौजूद एक भी शख्स ऐसा नहीं था जिसके मन में तरह-तरह के सवाल ना उठ रहे हों लेकिन कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। सब बस चुपचाप देख रहे थे।
गिरिराज ने भी कुदाल उठा ली और आकाश की मदद करने लगे।
दोनों मिलकर पूरी ताकत से वार कर रहे थे…थोड़ी देर में ही लकड़ी का वो मजबूत दरवाजा कई टुकड़ों में टूटकर गिर गया। अब दीवार दिख रही थी। जो उस दरवाजे को बन्द करने के लिये बनवायी गयी थी। आकाश पूरी ताकत से उस दीवार पर वार करने लगा और गिरिराज उसका साथ दे रहे थे।
“माँ ने बनवायी थी ये दीवार…” राघव धीरे से बुदबुदाया तो उर्मिला ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर आत्मीयता भरा हाथ रख दिया
“माँ …अगर इस वक़्त जीवित होतीं तो आकाश से कितना नाराज होतीं” इस बार गिरीश धीरे से बोले।
“जब से तुम्हारे बाऊ जी गये थे बोलती ही कहाँ थी वो बेचारी…छ: सात महिने का वक़्त मुश्किल से बीता होगा …और वो भी इस दुनिया से चल बसीं …आह” गिरीश के पास ही खड़ी उनकी पत्नी लता गहरी आह भरते हुए बोली।
घुटनो जितनी दीवार टूट गयी थी..आकाश दीवार के उस पार चला आया…और गिरिराज भी…आकाश ने कुछ पल जमीन की ओर देखते हुए कुछ सोचा, और बोला, “ये जगह होनी चाहिये”
“ठीक है” गिरिराज बोलने के साथ ही आँगन में आये और दो फावड़े लेकर बापस दीवार फलांगते हुए आकाश के पास जाकर उन्होने एक फावड़ा उसे सौंप दिया। और दूसरे से खुदाई करने लगे।
अब दोनों जमींन पर खुदाई कर रहे थे। और बाकी सब अब तक असमंजस में थे सिवाय राघव के …क्योंकि राघव डरे हुए थे। दोनो जमींन पर फावड़ा चला रहे थे…मिट्टी का ढेर लग गया था..तभी एक ‘खट्ट’ की आवाज के साथ दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और अपने-अपने फावड़े चलाना रोक दिया…
और अब हाथों से मिट्टी हटाने लगे।
थोड़ी देर में ही एक हड्डियों का ढाँचा दिखा, आकाश ने उसे निकाला और फिर उठाकर कमरे में लाकर रख दिया…
“आह…”
“ओह्ह ये क्या?”
सबके मुँह से निकल पड़ा। इतने में गिरिराज ने एक छोटा सा शरीर का ढाँचा लाकर उस बड़े हड्डियों के ढांचे के पास रख दिया।
“ये रहा सुबूत…रेशमा जी और उनके बेटे की मौत का” आकाश हाँफते हुए बोला। इतनी मेहनत से वो थक चुका था!
“बहुत देर से ये तमाशा देख रहा हूँ! तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए …मैं पूंछता हूँ आकाश क्या है ये सब?” गिरीश गुस्से में बोले।
“मुझे अफसोस है चाचा जी…लेकिन ये भयानक सच्चाई आपको कुबुल करनी होगी” गिरीश की बात को बिल्कुल अनसुना कर आकाश, राघव से बोला।
“आखिर कैसे किसी भी ढांचे को सामने रख कर तुम ये कह सकते हो कि रेशमा और उसके बेटे की …” आगे के शब्द गिरीश से कहते ना बने।
राघव बहुत धीरे से चलता हुआ आया और नीचे बैठ गया…फिर उसने उस कंकाल की ऊँगली में पड़ी अंगुठी को धीरे से छुआ “वो बीच की ऊँगली में मेरी ही दी हुई अंगूठी पहनती थी….ये रेशमा ही है..मेरा दिल कुबूल कर रहा है”
फिर पास ही रखे छोटे कंकाल को छुआ, ” मेरा बेटा….मेरा बेटा…मैं किसी को नहीं बचा पाया…कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा मैने तुम दोनों को! और तुम दोनों इतने पास थे मेरे..किसने किया ये? …छोडूंगा नहीं उसे! बताओ आकाश किसने किया ये? किसने मेरी दुनिया उजाड़ दी .. ” राघव गुस्से में चीखते हुए बोले, जबकि उनकी आँखें आसुओं से भरी हुई थीं! उनका पूरा शरीर कांपने लगा…और फिर जल्दी ही पसीने से भीग गया।
“राघव! तुम्हारे चाचा जी को हार्ट अटैक आ रहा है…” गिरिराज बोले
“क्या”
“मैं एम्बुलेन्स के लिये कॉल करता हूँ ” गिरिराज फोन पर नम्बर डायल करने लगे
“आकाश ….आकाश …”बहुत कठिनता से बोले राघव
‘चाचा जी …आप ठीक हैं ना?” आकाश उन्हें अपने हाथों में संभालते हुए बोला
“आकाश …आकाश …”दर्द से कराहते हुए उन्होनें अपने सीने पर हाथ रखा
“गिरि अंकल! एम्बुलेंस ….” आकाश चीखा
“आती ही होगी…मैं फिर से कॉल करता हूँ ” गिरिराज दुबारा कॉल करते इससे पहले ही एम्बुलेंस आ गयी थी…
***
आई.सी.यू. में भर्ती कर लिया गया राघव को…और बाहर सब चिंता में थे।
तभी अचानक एक तेज तमाचे की आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया!
“अगर तुम्हें कैसे भी सच्चाई पता लग भी गयी थी, तो क्या जरुरत थी राघव भईया को बताने की? देख लिया ना नतीजा? जाने कितने सालों बाद मैनें उन्हें खुश देखा था…कितनी खुशी से वो हम सबको लेकर आये थे …इस घर में मेरे साथ रहना चाहते थे…लेकिन”
तभी उनकी नजर पास ही खड़े गिरिराज पर चली गयी, वो गुस्से में बोलीं,”इसे तो इतनी समझ नहीं..लेकिन तुम तो समझदार हो कम से कम..अब और क्या चाहते हो तुम? आखिर चले क्यो नहीं जाते हमारी जिंदगी से…हाथ जोड़ती हूँ … जाओ यहां से?”
इतना बोलकर बड़ी फुर्ती से उर्मिला बापस जाकर गिरीश और लता के पास खड़ी हो गयीं।
“इनकी बात को दिल से मत लगाना गिरि अंकल..प्लीज मुझे छोड़ कर जाने के बारे में सोचना भी मत” उर्मिला के वहाँ से हटते ही आकाश गिरिराज से प्रार्थना करता हुआ बोला
“मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोडूंगा आकाश…परेशान मत होओ” गिरिराज ने उसे आश्वाशत किया।
तभी..
डॉक्टर बाहर आये और सब उनके पास जाकर घेरा बनाकर खड़े हो गये और कोई कुछ पूंछ पाता इससे पहले ही, डॉक्टर जल्दी से बोले,
“बहुत देर हो गयी है…अब कुछ नहीं हो सकता…उनके पास जो चन्द मिनट हैं ..बस्स वहीं हैं …सॉरी” डॉक्टर इतना बोल जल्दी से वहाँ से चले गये और डॉक्टर के जाते ही सभी आई.सी.यू की ओर लपके।
“आकाश …आ..का..श ..मुझसे किया तुमने अपना वादा निभाया बेटा” राघव, आकाश को देखते ही धीरे से बोले
“चाचा जी…
“तुमने रेशमा का पता लगाकर ….लोगों की बातों में कभी मत आना बेटा…तुम बेहतरीन से भी बेह…बेहतर हो…बस्स..सब मिलकर उर्मिला का ख्याल रखना ” इतना कह कर राघव ने अन्तिम साँस ली और अपनी आँखे हमेशा के लिये बन्द कर लीं।
सब बहुत देर एकदम जड़ बने खड़े रहे। राघव इस दुनिया से जा चुके थे।
***
*दो दिन बाद*
“इस दुनिया में कोई सदा के लिये नहीं आता …सबको एक ना एक दिन जाना ह! किसी को पहले तो किसी को बाद में….शरीर नश्वर है…लेकिन आत्मा अमर है…आत्मा कभी नहीं मरती” पण्डित जी राघव की आत्मा की शांति की पूजा करते हुए बोल रह थे…और सब गमगीन, चुपचाप बैठे थे!
तभी,
” आकाश? ” दरवाजे से आकांक्षा ने आवाज लगायी
“आकांक्षा?…यहाँ ” आकांक्षा को देखकर आकाश अपनी जगह से उठ कर दरवाजे की ओर बढ़ गया
“मुझे अनी से पता लगा कि तुम्हारे चाचा जी…
“अंकित….ये तो अंकित है ..” आकांक्षा अपनी बात पूरी करती इससे पहले ही सूरज उस गमगीन माहौल भी खुशी से चहकते हुए बोल पड़े!
“पापा… आकाश ..इसका नाम आकाश है”आकांक्षा धीरे से सूरज के कान के पास फुसफुसाई
“नहीं ..ये अंकित है…अंकित मेरे दोस्त …मुझे पता था तुम आओगे…मैं उसी दिन समझ गया था..जिस दिन…जिस दिन….” सूरज तेज आवाज में बोल रहा था कि
“(सबकी ओर देखते हुए) ये मेरे पापा हैं….पा पा….चलिये यहां से” आकांक्षा ने उसकी बाँह पकड़ी और दरवाजे की ओर ले जाने लगी
“आई एम सॉरी …शायद पापा को कोई गलतफहमी हुई है…आकाश जब तुम्हे ठीक लगे तब ही शोरूम आना ओके…चलिये पापा” आकांक्षा, सूरज की बाँह पकड़ कर दरवाजे के बाहर ले गयी।
“ये …ये अंकित है..मेरी बात मानो…ये अंकित है” सूरज,घर से निकलते वक़्त आकाश की ओर देखते हुए फिर से बोले, लेकिन आकांक्षा ने उनकी बाँह पर से खुद की पकड़ ढीली नहीं की और जबर्दस्ती वहाँ से ले गयी।
इस सब से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा यहां तक कि आकाश को भी नहीं।
लेकिन गिरिराज के चेहरे पर पड़ी सिलवटें बता रही थीं कि वो गहरी उलझन में आ चुके थे।
***
*कुछ दिन बाद*
गिरिराज इस दुख भरे दम घोटू माहौल से बाहर ले जाने के लिये आकाश को जबर्दस्ती बाहर ले आया थे…
“जिन्दगी में क्या हुआ है…या तुम किस गम से गुजर रहे हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता…हर हाल में हमें चलते रहना पड़ता है” बोलते हुए गिरिराज ने चाय का कप आकाश को पकड़ा दिया।
“लेकिन जब आप सच जानते हो तो खुद की ही हकीकत से दूर कैसे भाग सकते हैं..अंकल किसी गिल्ट …मतलब अपराधबोध के साथ जीना सबसे मुश्किल काम है…कभी तो ऐसा लगता है कि खुद को सबसे कड़ी सजा दूँ …ताकि इस बेचैनी से कुछ तो निजात मिले”
“किस बात की गिल्ट हैं तुम्हें?”
“ना जाने कितनी ही बातों की….मैं वहीं था जब कांता ने उस आदमी को रेशमा का कत्ल करने को बोला…मैं बचा सकता था…लेकिन नहीं बचा पाया…दादा जी ने मेरे सामने दम तोड़ा लेकिन मैं जड़ बना खड़ा रहा …मैने कुछ नहीं किया…ना जाने क्यों?….और तो और उस दुख की घड़ी में मैं राघव चाचा गले भी नहीं लगा पाया…मुझे समझ में नहीं आता …आखिर सबकी सम्भावना होने के बाद भी मैं जड़ क्यों बना रहा….मैनें कुछ किया क्यो नहीं…और ये सिलसिला यहीं रुका नहीं…मेरी बेबकूफी की वजह से राघव चाचा जी की मौत हो गयी ….मुझे खुद से नफरत हो गयी है अंकल…नफरत हो गयी है मुझे खुद से” आकाश आँसुओ से रोने लगा।
“देखो आकाश …सच तो ये है कि मेरे पास तुम्हारे किसी सवाल का अभी कोई जवाव नहीं है…लेकिन ये भी तय है तुम्हारी बेचैनी समझ सकता हूँ …कैसा महसूस कर रहे वो भी…और दुख की बात ये है कि …मैं लाख चाहते हुए भी तुम्हारी मदद नहीं कर पा रहा”
“कभी-कभी तो लगता है खुद को मार डालूं” आकाश ने खीजते हुए चाय का कप फेंक दिया।
“नहीं …पागल हुए हो क्या …खबरदार जो ये ख्याल भी दिल में लाये तो….जिनकी नियत नेक हो उनसे गलतियाँ तो हो सकतीं हैं लेकिन पाप नहीं…”
“तो आप ही बताईये मैं क्या करुँ …ये क्या था जो मेरे साथ हुआ? …मैं उस वक़्त में कैसे चला गया? और गया तो बापस कैसे आ गया…और फिर वो लड़की की छाया? इतने सालों पुरानी घटनाएं मुझे ही क्यो दिखीं? दिखी ही नहीं मैं उस वक़्त में सशरीर मौजूद था …कैसे? कितने ही सवाल हैं अंकल…मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा…कुछ समझ नहीं आ रहा…सिर मानो हर वक़्त फटा जाता हो” उसने कस कर खुद के ही सिर के बाल खींच डाले।
गिरिराज उसकी हालत देखकर सहम गये।
“मेरी मदद कीजिये अंकल….मेरी मदद कीजिये…वरना मार डालूंगा मैं खुद को”
“नहीं …नहीं आकाश..बस्स थोड़ा सा सब्र कर लो…बस्स थोड़ा सा…मैं पता लगाता हूँ …सब पता लगाता हूँ ..मेरा वादा है तुमसे …तुम्हें भरोसा है ना मुझ पर?”
आकाश ने हामीं में सिर हिला दिया और गिरिराज ने उसे कस कर गले लगा लिया।
“शाबास! ये हुई ना बात….” गिरिराज दौड़ते से दुकान पर गये और फिर से दो कप चाय ले आये
“मैं नहीं पियुँगा अंकल” आकाश ने चाय का कप देखते ही मना कर दिया
“प्लीज बेटा …” गिरिराज के आग्रह पर आकाश ने चाय का कप थाम लिया। और दोनों चुपचाप चाय पीने लगे।
“अच्छा…एक बात तो बताओ” गिरिराज ने बहुत देर सोचने के बाद पूँछा
“जी अंकल”
“ये आकांक्षा कौन है?”
“मैं जिस शोरूम पर जॉब करता हूँ उसकी ऑनर है…”
“सिर्फ शोरूम की ऑनर या कुछ और?” गिरिराज हल्के से मुस्कुराये
“और क्या होगी अंकल?”
“जब वो आयी थी …मैनें देखा…कि तुम्हारी आँखे बड़ी खूबसूरती से चमक उठीं थीं”
गिरिराज ने देखा कि आकाश लाख कोशिश के बाद भी अपने होंटों पर आने वाली उस खास मुस्कान को नहीं रोक पाया।
“हम्म्म्म ये हुई ना बात” गिरिराज ने प्यार से हल्का सा एक धौल जमाया आकाश की पीठ पर
“क्या अंकल …कौन सी बात” वो कुनमुनाया
“इन अनुभवी आँखो ने दुनिया देखी है ..और गहरायी से प्रेम भी किया है”
“जी इसमें तो कोई शक नहीं” आकाश ने प्रभावित होकर हामीं भरी
“तुम्हें तो ये बात मुझे खुद बतानी चाहिये थी”
“आप देख ही रहे हैं…मौका ही कहाँ मिला?”
“हम्म्म्म …हम सब में फँस गये तुम…चलो अब मेरी बारी …मदद करता हूँ तुम्हारी…एक बात बताओ “
“जी”
“बताया उसे?”
“नहीं”
“क्यों?”
“मौका ही नहीं मिला”
“हम्म्म्म …सुनो एक काम करो”
“…”
“कल शोरूम जाओ और उसे अपने मन की बात बता दो”
“क्या ? कल?”
“क्यों कल कहीं और जाना है?”
“नहीं तो”
“तो फिर?”
“लेकिन अंकल…इतनी उलझन पहले ही है…”
“मैं इसे सुलझाने का काम करता हूँ …कुछ वक़्त के लिये इस सबकी फिक्र मुझ पर छोड़ दो….और उसे अपने मन की बात बता दो…ज्यादा देर नहीं करनी चाहिये…लड़की जितनी ही अच्छी और खूबसूरत होती है …उतने ही ज्यादा लड़के उसके लिये लाइन में लगे होते हैं…समझ रहे हो ना?”
“ठीक है अंकल” आकाश मुस्कराया
“ये हुई ना बात ” गिरिराज ने उसे फिर से गले लगा लिया।
***
सफेद रंग का दरवाजा और दरवाजे के दोनों तरफ फूलों से लदीं हरी बेलें बलखा रहीं थीं। जब भी हवा का झोंका आता..फूलों से लदी बेले दरवाजे पर ऐसे आ जातीं तो जैसे किसी हीरोइन की जुल्फें उसके चेहरे पर लहरा उठीं हों। गिरिराज खुद की सोच पर मुस्करा उठे। फिर उनकी नजर दरवाजे के दाहिनी ओर चली गयी एक काले रंग की नेम प्लेट पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था।
___________________________________________
डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिन्हा
हिप्नोथेरेपिस्ट (गोल्ड मेडेलिस्ट)
विज़िटर फेकल्टी एंड कंसल्टेंट [जर्मनी, शिकागो यू.एस.ए.]
___________________________________________
गिरिराज ने मुस्कुराते हुए डोर बेल बजा दी, दरवाजा खुला
“जी आप कौन?” कपड़े से हाथ पोंछ्ते हुए एक औसत कद काठी के आदमी ने दरवाजा खोला। जो मालूम होता था किसी सफाई के काम को छोड़कर दरवाजा खोलने आया था।
“सुरेन्द्र है?” गिरिराज के इस अंदाज में पूछ्ने से उसे कम से कम इतना तो पता लग गया कि ये आने वाला कोई पेशेंट तो नहीं
“कौन आया है…रीते?” तब तक हाथों में सिगरेट पकड़े एक लगभग 57-58 वर्षीय बेहद गोरे और स्लिम आदमी ने बाहर की ओर आते हुए पूँछा, फिर गिरिराज की ओर देखा तो अपना नजर का चश्मा ठीक किया
“क्या… गिरि…ओह्ह माई गॉड…गिरिराज” खुशी से लगभग चीखते हुए बोला
“हा हा हा ” बदले में गिरिराज बस हँसे
“व्हाट ए प्लीजेंट सप्राइज…यकीन नहीं हो रहा गिरि…आओ अन्दर आओ” सुरेन्द्र ने गिरिराज से हाथ मिलाते हुए कहा
“बैठो गिरिराज …सच में सपने जैसा लग रहा है…”
“अरे भई अब तो यकीन कर ले” गिरिराज सोफे पर लेटते हुए बोले
“हां करना ही पड़ेगा…एक मिनट..रीते इधर आ”
रीते मुस्कुराता हुआ सामने आकर खड़ा हो गया।
“गिरिराज इससे मिलो …ये है रीते…मैं यहाँ स्वस्थ बैठा हूँ तो इसकी वजह से..मेरा ख्याल तो क्या पूरी जिंदगी इसी के हवाले है! ऐसा समझो”
“अच्छा…अरे वाह! “
“…हा हा ..सुन रीते जल्दी से बढ़िया सी कॉफी बना और साथ में …साथ में क्या लोगे गिरिराज?” सुरेन्द्र ने गिरिराज से पूछा
“कुछ भी यार जो तुझे ठीक लगे”
“ये क्या बात हुई? …ठीक है…रीते वो जो तू बनाता है ना वो ..पनीर के पकौड़े…वही बना ..और सुन उसके बाद जल्दी से पनीर लबाबदार साथ में दम आलू की सब्जी….और
“क्यों यार… तुम ये सब करवा रहे हो…मैं नहीं खाऊंगा इतना भारी और मसाले वाला खाना..”गिरिराज ने बीच में टोका
“क्यों बुद्ढ़ा हो गया है क्या? …हा हा हा”
“अरे चुप कर …बुद्ढ़ा होगा तू…बनवा ले जो तुझे बनवाना है”
“हा हा हा और हां रीते, साथ में रोटियाँ बनाना …समझ गया ना ?” रीते ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया और वहाँ से चला गया।
“तुम्हारी नेम प्लेट देखी …सच में बेहद खुशी हुई…”
गिरिराज ने कहा तो सुनकर बदले में बस्स सुरेन्द्र मुस्करा दिया
“तुम उन दिनों तो पढ़ने में इतने तेज तो ना थे …कब हुआ ये सब?”
“बस्स ये समझो कुछ था ही नहीं और करने को”
“मतलब?”
“मतलब ये तुम्हारी हालत देखी…कैसे एक इंटेलीजेंट लड़का इश्क में बर्बाद हो गया और फाइनल ईयर के पेपर छोड़ कर भाग गया”
गिरिराज के चेहरे पर तनाव झलक आया ये सुन कर…जिसे सुरेन्द्र ने देखा तो बोला
“क्या बुरा लगा?”
“नहीं! सच कड़वा लगने से बदल तो नहीं जाएगा! अच्छा बात तो पूरी करो”
“…फिर राघव …उस समय के ना जाने कितने ही लड़के राघव को खुद का रोल मॉडल मानते थे…रेशमा के लिये उसने भी अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली…तुम दोनों की ऐसी हालत से मैं डर गया ….और समझ गया …जिंदगी में शानदार कैरियर और पैसे से बढ़कर कुछ नहीं….बस्स…फिर एक ऐसा दौर आया मेरी जिंदगी का…जब सिवाय पढ़ाई के मैने कुछ किया ही नहीं”
“बढ़िया …बहुत बढ़िया…मुझे तो लगा था तुम कोई साधारण से मनोचिकित्सक बन गये होगे….लेकिन इतने बड़े…वाह। “
“शुक्रिया यार!”
तब तक रीते कॉफी और पकौड़ी ले आया। और दोनों के सामने टेबिल पर रखकर चला गया।
“वैसे तुम्हें जानकर खुशी होगी कि थोड़ी देर से ही सही लेकिन मैनें अपनी ग्रेजुएशन पूरी की” गिरिराज ने कॉफी का मग उठाते हुए कहा
“सच” सुरेन्द्र ने खुश होकर प्रतिक्रिया दी
“हम्म और इतना ही नहीं सरकारी नौकरी भी हासिल की..और जो मेरा हॉस्टल था ना ..उसके पास ही एक घर बनाया है”
“यकीन नहीं होता गिरि…वाह…तुमने तो ये बताकर दिल खुश कर दिया”
“हम्म्म्म ..अच्छा और बता…शादी की तूने?.”
“ना”
“क्यों?”
“क्यों क्या ..याद ही नहीं रहा कि शादी करनी है”
“हा हा हा”
“वैसे अब लगता है इतना जरुरी भी नहीं होता जितना लोग कहते-फिरते हैं..शादी कर ली होती तो शायद इतनी कामयाबी और सुकून भरी जिंदगी नहीं जी पाता.. सुना है बड़ी कांव-कांव होती है शादी के बाद”
“हा हा हा …ये भी सही है”
“तुम कहो कैसी गुजर रही है…कितना वक़्त हुआ शादी को?”
“कौन सा वक़्त….मैं तो वहीं खड़ा हूँ …जहाँ था…वक़्त है कि गुजर ही नहीं रहा”
“वाह! अंदाजे वयां अब भी लाजबाव है तेरा…”
“वक़्त मुझे बिल्कुल नहीं बदल पाया…कुछ नहीं बदला यार”
“क्या?…मतलब शादी नहीं की?.
“नहीं…वो तुमने कहा ना …इतना जरुरी भी नहीं है…फिर मुझे तो अकेलापन खूब भाता है… उर्मिला के ख्यालो का साथ भी मिल जाता है”
” उर्मिला को अब तक नहीं भूले? मतलब सच्चे आशिक निकले… फिर तो अभी-अभी कहे हुए अपने शब्द बापस लेता हूँ … इश्क ने तुम्हें बर्बाद नहीं किया…बस्स सफल नहीं हो पाया तुम्हारा प्रेम ….वैसे तुमने कुछ सुना उर्मिला के बारे में… कैसी है अब?”
“सुनना कैसा …अभी कुछ दिन पहले ही मिलना हुआ उससे”
“ क्या ?”
“हाँ …वैसी ही है …जिद्दी….नकचिढ़ी ..खुद से ज्यादा दूसरों का ख्याल रखने वाली …और….
“और?
“उतनी ही मासूम और प्यारी” गिरिराज कहीं खोया सा मुस्कराया
“वाह! खो गया उसके ख्यालों में? …मत भूल ये वही उर्मिला है जिसने तुझे धोखा दिया ..और …बिल्कुल मरने की कगार पर पहुँचा दिया था …” सुरेन्द्र तल्ख लहजे में बोला
“(मुस्कुराते हुए) दोस्त सचमुच कितने अच्छे होते हैं ना, अच्छा सुन! तेरी मदद चाहिये …एक लड़के की जिंदगी का सवाल है”
“हाँ बिल्कुल …कौन है लड़का?”
“वो लड़का उर्मिला का भतीजा है…और अब मेरा अच्छा मित्र…”इतना बोलकर उसने सुरेन्द्र की ओर देखा, सुरेन्द्र के चेहरे पर गुस्सा झलक रही थी!
“पूरी बात तो सुन…”
“सुना”
“देख! हुआ ये कि, मुझे तो कुछ पता भी नहीं था उसके बारे में! लेकिन अचानक एक दिन आकाश ने एक देवदूत की तरह आकर मुझे बताया कि उसने अपनी बुआ उर्मिला को मेरी तस्वीर देखकर रोते हुए देखा …आकाश को उर्मिला की बीती जिंदगी के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई और जैसे ही वो घर से बाहर गयी आकाश ने ना सिर्फ मेरी तस्वीर देखी बल्कि ग्राफिक्स की मदद से आज के मुताबिक मेरा चेहरा बनवाया और जानते हो मुझे ढूंढ निकाला …
“तो?” सुरेन्द्र ने एकदम प्रतिक्रिया दी!
“तो?…तुझे ये साधारण लगता है? अरे वो मेरे हॉस्टल और फिर घर तक पहुँच गया …वो भी बिना किसी मदद के”
“कैसे?”
“वही तो….पता नहीं कैसे….लेकिन उसके मुताबिक उसने सब अपनी आँखो से देखा है..जो हमारे समय का था…जबकि उस समय उसका खुद का अस्तित्व भी नहीं था”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”
“मतलब ये कि उसी ने बताया कि उर्मिला ने नरेंद्र का कत्ल किया…
“व्हाट?”
“हम्म..अपनी इज्जत बचाने की खातिर उसे करना पड़ा…
कोई प्रतिक्रिया ना करके सुरेन्द्र बस्स कमरे के फर्श को घूरता रहा…फिर रुककर बोला “तो किससे की शादी फिर उर्मिला ने?”
“किसी से नहीं ….गिरीश के पास रहती है”
“क्या ?.”
“….जिस दिन मैने तुझे उर्मिला के बारे में पहली बार बताया था ना .. अपने हॉस्टल में…आकाश कहता है कि वो उस वक़्त सब सुन रहा था…”
“क्या बचकानी बातें कर रहे हो यार ….होश में नहीं हो क्या गिरि?” सुरेन्द्र खीजता हुआ बोला
“मुझे भी यकीन नहीं हुआ था…लेकिन कत्ल की बात तो उर्मिला ने खुद कुबुल की है…
“हें?”
“जब मैने आकाश से पूँछा कि उसने ये सब कब देखा तब वो मुझे राघव के कमरे में ले गया ये बोलकर कि सब उस कमरे में जाने के बाद दिखा। वहाँ मैने भी कुछ नेगेटिव सा महसूस किया था…
” कब की बात है ये?”
“अभी कुछ दिन पहले की ही…फिर मुझे लगा जैसे किसी ने उस कमरे के बाहर फेंक दिया हो…और आकाश कमरे में बन्द हो गया…मैनें बहुत कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं खुला …बहुत देर बाद जब आकाश बाहर निकला तो उसने बताया कि उसके दादा जी की मौत हो गयी है…और रेशमा की भी…उसने ये सब अपनी आँखो से देखा”
“एक मिनट! तुम्हारा मतलब है कि …आकाश सालों पहले घटी घटनाएं उस समय में जाकर अपनी आँखों से देख रहा है….कैसे हो सकता है ऐसा गिरि?”
“नहीं पता लेकिन हो रहा है….यहां तक कि राघव को और सबको यकीन दिलाने के लिये उसने घर के पिछले दरवाजे को तोड़कर कब्र खोदकर दो नरकंकाल बाहर निकाले और सबके सामने रख दिये”
“(चौंकते हुए) क्या कह रहे हो?”
“हाँ …खुद राघव ने भी उन दोनो कंकालो को रेशमा और उसके बच्चे के रूप में पहचाना .हालांकि इस सदमे से राघव की जान चली गयी”
“क्या ? राघव?”
“हम्म.. राघव एक्सपाइर हो गया है…वो रेशमा की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया”
“ओह्ह माई गॉड…कितने कमाल का लड़का था…होशियार …दिलदार…और वफादार…उसने रेशमा के अलावा किसी और लड़की की ओर नजर उठाकर भी नहीं देखा कभी..ओह्ह.मैं उससे मिल तक नहीं पाया …गिरि…मेरे दिल में राघव के लिये बहुत इज्जत थी…और हमेशा रहेगी”
“वो इज्जत किये जाने लायक है..सब इज्जत करते है उसकी…आकाश से तो खास लगाव था उसे…सुरेन्द्र, यार आकाश को तेरी मदद की जरुरत है!”
“…..”
“जानते हो वो इतना परेशान है कि उसके दिल में मरने के ख्याल तक आने लगे हैं”
“क्या?”
“हम्म्म्म “
“…कितनी उम्र होगी उसकी?”
“यही कोई 27- 28 साल”
“जितना जल्दी हो सके उसे यहां ले आओ…एक हफ्ते तक मैं इण्डिया में ही हूँ …और जब तक इस समस्या को सुलझा नहीं देता इंडिया में ही रहूँगा …राघव मेरा दोस्त था…आकाश के लिये कुछ तो मेरा भी फर्ज बनता है”
मुस्कराते हुए उसने गिरिराज को आश्वस्त किया। गिरिराज के चेहरे पर भी तसल्ली भरी मुस्कान आ गयी।
***
घर से आकांक्षा का शोरूम कितना पास है आज इतनी देर क्यों लग रही है’ सोचते हुए आकाश ने बाइक की स्पीड थोड़ी और बढ़ा दी। एक अजीब सी रौनक चेहरे पर आ गयी थी आकाश के …शरीर में उत्साह मानो खून में मिलकर नसों में दौड़ रहा था ‘ऐसे खाली हाथ प्रपोज करेगा क्या ….उसके दिमाग में आया, उफ्फ ये बात पहले दिमाग में क्यों नहीं आयी’ सोचते हुए उसने बाइक मार्केट की ओर मोड़ दी…अब नजर हरेक दुकान पर जा रही थी….लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था…आँखो को कुछ जँच नहीं रहा था…फिर नजर एक दुकान के बाहर शोरुम में लगी ड्रेस पर गयी और उसे याद आ गया।
‘ओह्ह्ह वाह! मेरे पास तो ड्रेस रखी है वो उसे पसंद भी है और उसी के शोरूम से तो ली थी ….रोहित के साथ…
वाह! ये हुई ना बात आकाश..लेकिन अब बापस घर जाना होगा ड्रेस लेने…कोई बात नहीं’ उत्साह और खुशी में भरे आकाश ने अपनी बाइक घर की ओर मोड़ दी।
जल्दी से ड्रेस निकाली और बापस आकांक्षा के शोरुम की ओर बाइक दौड़ा दी।
बाइक स्टैंड पर लगाकर शोरुम का दरवाजा खोलने के लिये उसका हेन्डिल पकड़ा ही था कि नजर सामने गयी, और सारा उत्साह और खुशी खत्म हो गयी।
शोरूम के अन्दर अनी एक घुटने के बल जमीन पर बैठा था उसके एक हाथ में गुलाबों से भरा एक बड़ा सा बुके था…और वो कुछ कह रहा था जबकि आकांक्षा उसकी ओर मुस्कुराते हुए देख रही थी!
आकाश का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा।