सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 29

“पता करो कहाँ ले जा रही है? उसकी शक्ल देखने की कोशिश करो, क्या दिख रहा है तुम्हें !”“मैं नीचे पड़ा हूँ! मेरे सिर से खून निकल रहा है!” “खून? तुम जीवित तो हो ना? अपनी बॉडी देखो” “नहीं .. मेरी मौत हो चुकी है!”

जी… सही सुना आपने! मिस्टर राव कोमा से बाहर आ गये हैं” डॉक्टर ने मुस्कुरा कर अपनी बात दोहरा दी। बैशाली ने जल्दी से सूरज को फोन लगाकर अपने कान पर रखा, और दौड़ते हुए हॉस्पिटल के दरवाजे से राव सर के कमरे तक पहुंची।

“…आप ठीक हैं?” राव सर को होश में देखकर उसका गला रुंध गया और जुबान इन शब्दों से ज्यादा कुछ नहीं बोल पाई। अब तक रोके हुए आँसूं आँखो से झर-झर बहने लगे।

“रोओ मत बेटी! बदकिस्मती का क्या किया जा सकता है” राव सर धीरे से बोले फिर उन्होने उठना चाहा! डॉक्टर  ने आगे बढ़कर उनकी मदद की लेकिन ये क्या! पूरी ताकत लगा कर भी वो उठ नहीं पा रहे थे।

“डॉक्टर मैं उठ नहीं पा रहा हूँ …”

“थोड़ा धैर्य रखिये…शरीर को एक्तिविटी करने में समय लगेगा। ” डॉक्टर ने उन्हें ढ़ाढस बँधाया।

सुबह से शाम हो गयी…कई चेकअप हुए तब जाकर डॉक्टर एक निष्कर्ष पर पहुँचे और उन्होने जानकारी दी।

“सॉरी, फिलहाल आप चल नहीं पायेंगे” डॉक्टर इतना ही कह पाये कि

“नहीं” बैशाली जोर से चीख पड़ी।

“प्लीज उम्मीद बनाए रखिये। कई ऐसे केस हुए हैं जिनमें पेशेंट थोड़े टाइम के बाद चले हैं! हम आपके  लिए भी ऐसी उम्मीद कर रहे हैं!” डॉक्टर ने अपनी बात पूरी की

” मैं अपाहिज हो गया हूँ  ….मेरे पैरों में जान नहीं है” मिस्टर राव डर से बार- बार दोहरा रहे थे। अब तक सूरज भी, नवीन के साथ पहुँच गया था।

“तन या मन में से कुछ तो ठीक हो। अगर दोनो ही ठीक ना हो.. तो इस बोझ भरी जिंदगी का क्या औचित्य? मुझे मौत चाहिये डॉक्टर…मुझे मौत चाहिये…नहीं चाहिये ऐसा जीवन जिसमें कोई उम्मीद ना हो” मिस्टर राव जोर से चीखे।

“एक उम्मीद है पापा” वैशाली के इन शब्दों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

“और इस उम्मीद को आपकी बहुत जरुरत है.. ” वैशाली बहुत सधे शब्दों में बोली। कमरे में मौजूद सभी लोगो की नजरें अब वैशाली पर थीं। कुछ पलों के लिये अजब कौतूहल का माहौल बन गया था।  वो कुछ क्षण जानबूझकर चुप रही शायद इस कश्मकस में कि उसे कहना चाहिए या नहीं,  फिर उसके चेहरे पर सख्ती के भाव आ गये। और वो बोली,

“मैं प्रेग्नेंट हूँ पापा…मेरे पेट में राहुल का बच्चा पल रहा है….” वैशाली की इस खबर से सब चौंक पड़े।

“क्या सच?” राव सर भावुक हो गये।

“हम्म! ये सच है” वैशाली ने आश्वस्त किया। इस खबर से राव सर के चेहरे पर आशा का संचार हो गया था!

वहीं सूरज और नवीन एक दूसरे की ओर हैरत से देखा।

“स्साला” इंस्पेक्टर नवीन दाँत पीसते हुए धीरे से फुसफुसाया।

मिस्टर राव को जीने की उम्मीद मिल गयी थी। हॉस्पीटल से घर आते ही उन्होने कम्पनी का जायजा लिया। और वैशाली के हरेक निर्णय की तारीफ करते हुए, सूरज को अधिकार सहित कम्पनी का सी. ई.ओ. बना दिया।

***

कुछ महिने बीत जाने बाद जब वैशाली ने अपने दूसरे बेटे को जन्म दिया।

राव सर नन्हें बच्चे को निहारते हुए बोले। “बहु बेटा, मैं नहीं चाहता कि राहुल की कोई भी आदत इस बच्चे में आए”

“मैं भी यही चाहती हूँ पापा! मैं अपने बच्चे को आप की तरह बनाना चाहती हूँ ..वैसे कोई नाम सोचा आपने इसका?” वैशाली एक अर्से बाद मुस्कुरा रही थी।

“हम्म्म्म ….अन्तस”

“बहुत सुन्दर नाम है पापा…” वैशाली ने बच्चे को उठाकर राव सर को थमा दिया।

“मेरा अनी” वो जोर से हँसे।

##

“मैडम जी! मैडम जी!” कुक की आवाज से वैशाली की तंद्रा टूटी वो अतीत से बापस वर्तमान में लौट आई।

“क्या हुआ?” वैशाली ने साड़ी के पल्लू से जल्दी से अपनी आँखे पोछ लीं।

“अनी बाबा बुला रहे हैं आपको”

“अच्छा! चलो आती हूँ “

“मॉम, मैं आकांक्षा को छोड़ने जा रहा हूँ ” वैशाली को अपनी ओर आते देख अनी बोला

“इतनी जल्दी?”

“वो आकांक्षा को कुछ काम है”

“मैं तो कोई बात ही नहीं कर पाई आकांक्षा से। चलो अगली बार सही। अच्छा! आती रहना बेटी! तुम्हारा आना बहुत अच्छा लगा” वैशाली ने कहा तो आकांक्षा ने स्वीकृति में सिर हिलाते हुए नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिये।

***

“आकाश! आकाश! तुम सुन रहे हो ना?” गिरिराज, आकाश के गाल थपथपा रहे थे। वो आकाश को जैसे-तैसे गाड़ी में डालकर अपने दोस्त सुरेन्द्र के यहां ले आये थे।

“हम्म्म अं.. क.. ल…” बेहोशी में बुदबुदाया आकाश।

“शुक्र है!” गिरिराज ने राहत की सांस ली।

“अरे यार! क्या जाहिलों की तरह तुम उसके गाल थपड़ियाये जा रहे हो! हटो जरा! मुझे देखने दो” सुरेन्द्र आगे आते हुए बोले।

“आकाश तुम ठीक हो ना? जानते हो कौन लाया है तुम्हें यहाँ?” सुरेन्द्र ने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूँछा।

“गिरि अंकल” आकाश धीरे से बोला

“हम्म! क्यों गिरि! तुमने बस्स ग्राउंड फ्लोर का ही घर बनवाया है ना?”

“क्या तुम तंज कस रहे हो मुझ पर?”

“ओह्ह! औंधी खोपड़ी हो तुम भी गिरि! बस्स जानना चाहता था कि कितनी उँचाई से गिरा है ये? कहीं शरीर के किसी अन्दरूनी हिस्से में चोट ना आयी हो यही डर है”

“चोट आयी होती तो होश मे होता ये? फिर मैं इसे यहां लाता या किसी इमरजेंसी में ले जाता?”

“ओह्हो! हरेक बात जानना जरुरी है इसके बारे में गिरि इसलिये पूँछा”

“एक-एक बात बता दी है मैनें तुम्हें इसके बारे में …अब कौन सा प्रश्न बाकी रह गया है?” गिरिराज थोड़े चिढ़ से भरे हुए थे इसलिए खीज रहे थे।

“ठीक है! समझ गया! देखो वहाँ तुम्हारे लिये कॉफी रखी है…जाओ चुपचाप बैठकर उसका आनंद लो (धीमी आवाज में) कैसे भी मुँह बन्द तो हो तुम्हारा” कमरे के कोने में रखी कॉफी की ओर इशारा करते हुए सुरेन्द्र, आकाश की ओर बढ़े।

और उन्होने कमरे की रोशनी बेहद मद्धम कर ली। सिर्फ हल्की रोशनी आकाश के शरीर पर ही पड़ रही थी।

” अच्छा सुन! शान्त रहना! हम अभी इसे हिप्नोटाइज करेंगे”

“क्या अभी…. लेकिन उसे चोट लगी है .. और ?”

“श्ह्ह्ह्ह शान्त!” हाथ के इशारे से गिरिराज को चुप रहने का इशारा किया। और पेंडुलनुमाँ एक चीज उठा ली।

“अपनी आँखे खोलो और मुझे देखो आकाश! धीरे से आँखे खोलो आकाश” आकाश ने अपनी आँखे खोल दी।

“तुम्हें अपने सवालों के जवाब चाहिए ना?”

“हाँ” आकाश धीरे से बोला,

“ठीक है! तो अब हम दोनों उस समय में जाएंगे जहाँ तुम्हारे साथ कोई बड़ी घटना घटी है, और कुछ सवालों का पता लगाएंगे, तैयार हो ?”

“हाँ .. “

“तो अपनी आँखों को बंद करो, और मेरी आवाज से जुड़ जाओ सिर्फ मेरी आवाज से .. छोड़ दो इस शरीर को और यात्रा पर निकाल जाओ .. कोशिश करो.. कोशिश करो आकाश .. कुछ देख पा रहे हो.?”

“हाँ! मैं सड़क पर खड़ा हूँ”

“क्या उम्र है तुम्हारी ?”

“शायद 27 साल’

“क्योँ खड़े हो? कहीं जाना है, या किसी का इंतजार है?”

“मैं परेशान हूँ! मेरे पास पैसे नहीं हैं! जॉब भी नहीं है! कुछ समझ नहीं आ रहा”

“ ठीक है!क्या कोई और नहीं दिख रहा तुम्हें वहां सड़क पर?”

“कोई लड्की है… थोड़ी दूर खड़ी है। बहुत लम्बे बाल है उसके”

“क्या तुम उस लड़की के लिए सड़क तक आए हो? क्या वो तुम्हें आकर्षित कर रही है?”

“नहीं! मैं परेशान हूँ इसलिए सड़क पर खड़ा हूँ !…..शायद..”

“क्या वो लड़की चुपचाप अकेली खड़ी है? या तुमसे कुछ कह रही है?”

“नहीं वो मेरी ओर पीठ किये खड़ी है, मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा!”

“ओह्ह ठीक है छोड़ दो …अब मेरे 3 गिनने तक तुम्हें जीवन की सबसे बड़ी घटना दिखेगी.. वहां से हटो .. देखकर बताओ कहाँ हो तुम?”

कुछ पल बाद!

“कहाँ देख रहे हो खुद को?”

“छत पर खड़ा हूँ..”

“कौन है तुम्हारे साथ?”

“एक लड़की है, मेरा हाथ पकड़ कर कहीं ले जा रही है!”

“पता करो कहाँ ले जा रही है? उसकी शक्ल देखने की कोशिश करो, क्या दिख रहा है तुम्हें !”

“मैं नीचे पड़ा हूँ! मेरे सिर से खून निकल रहा है!”

“खून? तुम जीवित तो हो ना? अपनी बॉडी देखो”

“नहीं .. मेरी मौत हो चुकी है!”

आकाश के ये बोलते ही गिरिराज अपनी कॉफी का मग लेकर आकाश के पास आकर बैठ गए!

“अपने -आस पास देखो कोई दिख रहा है?”

“बहुत लोग मेरे आस- पास खड़े हैं !”

“क्या कोई अजीब या कोई पहचान का इंसान देख पा रहे हो तुम?क्या किसी को पहचानते हो तुम?”

“देखो आकाश ..

आकाश कोई जवाब नहीं दे पा रहा था, और सुरेन्द्र के साथ -साथ गिरिराज की धड़कन बढ़ती जा रही थी !

सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 30

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