या तो इंसान का जिगर इतना बड़ा होना चाहिए कि सब भूलकर जिंदगी में आगे बढ़ जाए, लेकिन अगर ये पता हो कि नहीं बढ़ सकता तो हार मानकर भागना नहीं चाहिए! बिलकुल नहीं! क्यों कि तब, आप अपनी, और जिससे प्यार करते हैं उसकी, दोनों की जिंदगी तबाह कर देते हैं।”
30.
“वही लंबे बालों वाली लड़की” आकाश धीरे से बुदबुदाया!
“जो तुम्हें सड़क पर दिखी थी ?”
“हाँ .. “
“ठीक है, उसके पास जाओ आकाश! उसका चेहरा देखने की कोशिश करो” सुरेंद्र धीरे से बोले
“मैं जा रहा हूँ उसके पास ..”
कुछ पल शांति छाई रही और अचानक
“आ…कां…क्षा…” आकाश चीखा, और उसके चीखते ही गिरिराज के हाथ से कॉफी का मग छिटकर नीचे गिर पड़ा। जिसकी आवाज से आकाश की आँखे खुल गयी।
“ओह्ह! बेबकूफ…बेबकूफ” सुरेंद्र बुरी तरह गिरिराज की ओर देखते हुए झल्लाये।
“क्या किया मैंने?…तुमने देखा नहीं उसने आकांक्षा का नाम लिया…और मेरे हाथ से…”
“एक कॉफी का मग नहीं संभाला जाता तुमसे…सारी मेहनत खराब कर दी।” सुरेंद्र गुस्से में बोले
“चलो! चलो! फिर से करते हैं”
“नहीं !अब नहीं हो सकता!”
“क्यों?”
“क्योंकि पहले दिमाग को नहीं पता होता तो वो आसानी से बात मान लेता है। लेकिन अब दिमाग कॉन्शियस है. अब नहीं सुनेगा.”
“आकांक्षा ….वो मुझे ऐसे क्यों दिखी?” आकाश बुदबुदाया
“सुनो आकाश! कुछ और मत सोचो बस्स ये जान लो कि हम तुम्हारी समस्या हल कर सकते हैं। मैं अगले सेशन के लिए तुम्हें जल्द बुलाऊंगा, अभी तुम जाओ और किसी और काम पर ध्यान लगाओ, बेहद जरूरी है तुम्हारे लिए।” सुरेंद्र ने आकाश की पीठ थपथपाते हुए कहा।
“क्या ही काम करूंगा अब…”आकाश निराश आवाज में बोला और कमरे से बाहर निकल गया।
“कुछ करो..इसके लिये.” सुरेंद्र ने गिरिराज की ओर देखकर गंभीरता से कहा।
***
“क्यों नहीं जा सकतीं भला? पढ़ी-लिखी हो समझदार हो कभी ना कभी तो शुरुआत करनी ही होती है”
सूरज अपनी आवाज तेज करते हुए बोले। डाइनिंग टेबल पर लगा हुआ नाश्ता शायद ऐसे ही रहने वाला था। शुरुआत करने से पहले ही सूरज ने आकांक्षा को शहर से बाहर जाकर एक प्रोजेक्ट सँभालने की जिम्मेदारी दे दी थी।
“लेकिन पापा! मुझे कुछ तो आइडिया होना चाहिए ना?” आकांक्षा ने कहना चाहा।
“मुझे कुछ नहीं सुनना। परसों जा रही हो बस्स!
“क्या ?” इस बार आकांक्षा के साथ-साथ सूरज की पत्नी और बड़ी बेटी ने भी अपन आश्चर्य व्यक्त किया।
“ये रही फ्लाइट की टिकट।”सूरज ने टिकट्स आकांक्षा की प्लेट के पास रख दीं।
“अब जब ठान ही चुके हो तो कम से कम मुझे साथ जाने दो।” सूरज की पत्नी ने कहा।
“नहीं! तुम नहीं, कोई और जाएगा इसके साथ” सूरज ने धीमी आवाज में कहा।
“कौन पापा?”
“जो साथ जाएगा वो वहीं एयरपोर्ट पर मिलेगा” सूरज अपनी चेयर से उठे और दो कदम चले ही थे कि एक ख्याल आते ही रुक गए।
“तुम जा रही हो, इसका पता हम तीनों के अलावा किसी चौथे व्यक्ति को नहीं चलना चाहिए, खासतौर पर अकांक्षा, मैं तुमसे कह रहा हूँ”
“पापा?”
“मैंने आज तक तुमसे कुछ भी करने को नहीं कहा है। उम्मीद है मेरी बात का ख्याल रखोगी” सूरज का इस तरह से बोलना आकांक्षा के चेहरे पर तनाव तो ले आया था। लेकिन उसने इसके जवाब में कुछ कहा नहीं।
***
“मैं नहीं जाऊंगा गिरी अंकल! मुझमें नहीं है ताकत उस ..उस अनी की वीरगाथाएं सुनने की…जिन्हें सुना सुनाकर आकांक्षा मेरा सांस लेना दूभर कर देगी।” आकाश गुस्से में बोला।
“बस्स इतना ही सोच पा रहे हो? अभी शायद तुम्हें एहसास नहीं है कि एक छोटी प्रॉब्लम की वजह से तुम अपनी जिंदगी को जहन्नुम बनाने की तैयारी मे हो?” गिरिराज बड़े धीमी आवाज में बोलते हुए आकाश के सामने खड़े हो गए थे।
“क्या मतलब, अंकल”
“मतलब ये …”गिरिराज आगे कुछ बोल पाते इससे पहले ही आकाश का मोबाइल बज उठा।
आकाश ने गिरिराज को रुकने का इशारा किया “एक मिनट अंकल” और फ़ोन पिक किया। उर्मिला का कॉल था!
“हाँ बुआ जी…जी…क्या हुआ! बस्स दो मिनट दीजिये मैं अभी आया! अभी आया”
“क्या हुआ?” आकाश के चेहरे पर आए तनाव ने गिरिराज को आशंकाओं से भर दिया था।
“बुआ की तबियत खराब हो गयी है” वो घबराहट में बोला
“क्या? चलो मेरे साथ” गिरिराज जल्दी से अपनी गाड़ी की ओर लपकते हुए बोले!
***
“पैनिक अटैक था। शायद कोई तनाव है, जिसे किसी से शेयर नहीं कर पा रहीं हैं” डॉक्टर उर्मिला जी के लिए मेडिसन लिखते हुए बोल रहे थे।
“तनाव?” सुनकर, गिरिराज का चेहरा गंभीर हो गया।
जब तक ये दोनों घर पहुंचे, उर्मिला जमीन पर वेसुध सी पड़ी थीं। और ये दोनों उन्हें उठाकर हॉस्पिटल ले आये थे।
डॉक्टर के केबिन से निकलकर आकाश, उर्मिला के बेड के पास गया। और उसने उर्मिला का हाथ खुद के हाथ में लेते हुए पूँछा”अब कैसा महसूस कर रहीं हैं बुआ जी?”
“ठीक…”फिर उनकी नजर बाहर की ओर चली गयी जहाँ गिरिराज दुबके से खड़े थे, और उनकी ओर देख रहे थे। उर्मिला ने आकाश को इशारे से कुछ कहा,
“वो बुला रही हैं आपको” आकाश ने गिरिराज के पास आकर कहा।
“मुझे …नहीं मुझे कैसे?”
“वो सच में आपको बुला रही हैं, अंदर जाइये।” अंकित ने मुस्कुराते हुए गिरिराज के कंधे पर हाथ रखा और बाहर निकल गया।
गिरिराज बेहद सधे कदमों से अंदर गए और उर्मिला के बेड से कुछ दूरी पर जाकर चुपचाप खड़े हो गए।
“मैं ठीक हूँ! इतनी जल्दी पीछा नहीं छुटने वाला मुझसे” उर्मिला हल्का सा मुस्कुरा कर बोलीं।
“हे! ऐसे मत कहो!”
“यहां आकर बैठो! कुछ बात करनी है”
“मुझसे” गिरिराज को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ।
“हाँ.. बैठो”
गिरिराज, उर्मिला के बेड के पास पड़े स्टूल पर बैठ गए।
“तुम्हारी गले की चैन कहाँ है? कभी गले में दिखती ही नहीं”
उर्मिला से ये सुनकर, गिरिराज की आंखें डबडबा गयी।
“आह!कब से! कब से इंतजार कर रहा था। कि तुम्हारा ध्यान कभी तो जाए इस ओर।…देर से ही सही..तुम्हें याद तो आया”
“तो बताओ क्यों नहीं पहनी?”
“इसीलिए, कि तुम्हारा ध्यान जाए। तुम पूँछों बस्स। इसी बहाने बोलो कुछ और जब अब पूंछ लिया है तो आज ही में पहन लूंगा।” गिरिराज खुशी से सरोबार थे।
“हाँ, पहन लेना। जब इतरा कर चलते हो ना। तो अच्छे लगते हो।” उर्मिला का इतना कहना था कि गिरिराज के शरीर में खून का दौरा दोगुनी गति से दौड़ने लगा। उन्हें खुद को संभाले रखना मुश्किल लगा।
“मैं..मैं कुछ खाने के लिए लाता हूँ” वो दरवाजे की ओर लपके।
लगता है उर्मिला ने अब दिल से माफ कर दिया है मुझे! उन्होंने लगभग झूमते हुए सड़क पार की। और एक कन्फेक्शनरी शॉप पर पहुंचे। फिर उन्होंने ना जाने कितने ही आइटम्स को ऑर्डर करके एक बड़ा सा पैक बनवाया और ख़ुशी से बाहर निकले।
“अरे, गिरी अंकल! क्या बात है पार्टी का इरादा है क्या ?” आकाश ख़ुशी से बोला
“आ! नहीं सोचा तो नहीं कुछ भी ऐसा! लेकिन अब सुन कर लग रहा है कि पार्टी तो होनी चाहिए “
“अरे वाह ! मुझे भी तो बताइये हुआ क्या है ?
“उर्मिला ने आज मुझसे बड़े प्यार से बात की ! मैंने तो ऐसी कोई उम्मीद ही छोड़ दी थी, ऐसा लगता है अब शरीर में जान आ गयी हो” गिरिराज ने बात पूरी करके जब आकाश की तरफ देखा तो आकाश ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ गिरिराज के कंधे पर रख दिया।
“मुझे आपके लिए बेहद ख़ुशी हो रही है, अंकल!”
“जानता हूँ! मेरी जिंदगी में एक -एक मुस्कान तुम्हारी कर्जदार है और रहेगी”
“ऐसा मत कहिये’
“इन बीते सालों में मैंने बहुत कुछ खो दिया! बहुत कुछ! अगर उस दिन रुक गया होता तो जिंदगी का रूप कुछ और ही होता “
“अंकल क्या आप! फिर से वही बाते करने लगे! जमाने बाद ख़ुशी आयी है तो जश्न बनाना बनता है चलिए हम दोनों मिलकर पार्टी करते हैं “
“आकाश तुम्हे उतना ही पता है जितना मैंने बताया, लेकिन जो महसूस किया, जो जिया, उसका तो तुम्हे भान तक नहीं! या तो इंसान का जिगर इतना बड़ा होना चाहिए कि सब भूलकर जिंदगी में आगे बढ़ जाए, लेकिन अगर ये पता हो कि नहीं बढ़ सकता तो हार मानकर भागना नहीं चाहिए! बिलकुल नहीं! क्यों कि तब, आप अपनी, और जिससे प्यार करते हैं उसकी, दोनों की जिंदगी तबाह कर देते हैं।”
“हम्म्म्म” आकाश ने सहमति में सिर हिलाया
“आकाश.? जी लोगे आकांक्षा के बिना?” गंभीर चेहरे के साथ जैसे ही गिरिराज ने आकाश की तरफ देखकर पूँछा, उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया
“मेरी तरफ देखो! वो गलती मत करो आकाश, जो मैंने की “
“अंकल! वो बात अलग थी और ये अलग! आपको उर्मिला बुआ के बारे में ग़लतफहमी हुई थी। लेकिन यहाँ दोनो एक दूसरे को चाहते हैं! मैं बीच में आकर क्या करूँ?”
“बीच में अनी आया है, तुम नहीं। हम दोनों अच्छे से जानते हैं कि तुमसे ज्यादा आकांक्षा को कोई प्यार नहीं कर सकता”
“लेकिन वो इसे नहीं समझती ना”
“तुमने उसे समझने भी तो नहीं दिया आकाश, किसी ने आकर बीच में एक पैर क्या रख दिया तुम तो हथियार फेंक कर भाग खड़े हुए’
“तो क्या करूँ? भीक माँगूँ अपने प्यार की?”
“नहीं! बस उसे एक बार जानने दो! जानने दो कि प्रेम का अथाह समुन्द्र तुम्हारे दिल में है उसके लिए, उसके बाद उसे निर्णय लेने दो! जब उसे पता ही नहीं है कि तुम उसे प्रेम करते हो, तो उस पर तुम्हारी भावनाएं ना समझने का तमगा क्यों? इतना अच्छा मौका मिला है तुम्हें, इसे ईश्वर का इशारा समझो, ऐसे मौके सबको नहीं मिलते! यूँ हाथ पर हाथ रखकर हार मानने से कुछ नहीं मिलने वाला’
“अंकल ?” आकाश खीजा!
“ठीक है तो जहन्नुम जैसी जिंदगी जीने को तैयार रहो ?” गिरिराज ने भी खीजते हुए कहा, और चलने के लिए मुड़े ही थे! कि आकाश ने घबराकर कलाई पर बंधी घड़ी को देखते हुए पूंछा
“वैसे, फ्लाइट की टाइमिंग क्या थी अंकल?”
“फ्लाइट की टाइमिंग चाहें जो हो, तुम्हारी पूंछने की टाइमिंग एकदम सही है” गिरिराज के चेहरे पर खुशी खिल गई और उन्होंने अपनी जेब से फ्लाइट टिकट और एक आईडी निकालकर उसकी ओर बढ़ा दी।
“ये ATM कार्ड भी रखो! बैग पैक करने का समय नहीं है। वहीँ से कपडे खरीद लेना, अब दौड़ जाओ आकाश “
“अंकल” भावुकता से भर आकाश ने गिरिराज को गले से लगा लिया।
***
“अच्छा! अच्छा! बढ़िया! मुझे आप पर यकीन भी था और भरोसा भी, हम भी एयरपोर्ट पहुँच ही गए हैं ” सूरज ड्राइविंग सीट के पास बैठे किसी से फ़ोन पर बात कर रहे थे। और कार में पीछे बैठी आकांक्षा अपने विचारों में गुम थी। ‘मुझे याद नहीं कि पापा ने मुझसे ऐसा वर्ताव किया हो। कहीं पापा को अनी के बारे में पता तो नहीं लग गया? ओह्ह ! फिर तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी, और अगर बाहर जाने के बारे में अनी को नहीं बताया तो वो नाराज हो जाएगा। उफ़्फ़ क्या मुसीबत है! क्या करूं?’
” आओ बेटी! चलो मैं तुम्हें उससे मिलवाता हूँ जो तुम्हारे साथ जाने वाला है।” सूरज कार से निकलते हुए बोले।कुछ कदम चल पाए होंगे कि उन्हें आकाश दिख गया। आकाश ने भी इन दोनों को देखा तो लगभग दौड़ता हुआ आया
“हैलो अंकल”आकाश के मुँह से अपने लिए अंकल सुनना सूरज को बिलकुल पसंद नहीं था। लेकिन इस अजीब स्थिति से बचने का कोई उपाय फिलहाल तो उन्हें नहीं दिखता था। वो चाहते तो ये थे आकाश जब भी उनसे मिले एक दोस्त की तरह उन्हें गले से लगा ले।
आकांक्षा, आकाश को हैरत से देख रही थी। वहीँ आकाश का मुंह आकांक्षा की खूबसूरती में खो जाने की वजह से थोड़ा सा खुल गया था। आकांक्षा ब्लैक ट्राउजर और ब्लैक टॉप में खुले बालों के साथ सिंपल और सोबर लग रही थी।
“आकाश! इस बैग में सभी जरुरी डॉक्युमेंट हैं, तुम दोनों के लिए होटल में रूम बुक है। आगे की बात मैं फोन पर बताऊंगा’
“जी अंकल”
“वैसे तो कहने की जरुरत नहीं है! फिर भी कहने भर को कह रहा हूँ, मेरी बेटी का ख्याल रखना’
“जी अंकल “
“इतनी बार भी अंकल बोलने की जरुरत नहीं है।” वो हल्के से झुंझलाये। कुछ कदम बढे तभी आकांक्षा धीरे से उनसे बोली ‘पापा! आप मुझे आकाश के साथ भेज रहे हैं? कैसे ? वहां एकदम।।”
“काश मैं तुम्हें अभी समझा पाता, कि इससे बेहतर तुम्हारा ख्याल कोई रख ही नहीं सकता”
“ये आप क्या कह रहे हैं ?
“क्या तुम बता सकती हो कि मैं कौन हूँ तुम्हारा?”
“आप पापा हैं मेरे…लेकिन’
“बस! तो बात खत्म! अब अंदर जाओ फ्लाइट का टाइम हो रहा है ” बीच में टोकते हुए सूरज बोल पड़े फिर हल्का सा मुस्कुराये और बाहर निकल आये। और आकांक्षा और आकाश चेक इन के लिए अंदर चले गए।
लम्बे समय से रुका एक रोमांचक सफर उनके इंतज़ार में था।
***
विंडो सीट पर आकांक्षा बैठी थी, और उसके पास ही आकाश बैठा था!
‘ना जाने पापा ने इसके साथ क्यों भेजा है?’ आकांक्षा सोच रही थी।
‘चुप है मगर इसका दिमाग जरुर चल रहा होगा, ना जाने क्या सोच रही होगी मेरे बारे में’ आकाश ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा।
***
दोनों ने जैसे ही एअरपोर्ट से चेक आउट किया, एक कैब उनके लिये तैयार थी। और कुछ ही मिनट में वो एक होटल में थे। 4 फ्लोर तक बने उस होटल को देख आकांक्षा रोमांचित हो गयी। आकांक्षा को वहीं छोड़ आकाश फुर्ती से रिसेप्शन तक आया और रिजर्वेशन के बारे में पूँछ लिया।
“ये रहे आपके रूम्स 333 और ये 334” मुस्कुराते हुए रुम सर्विस के स्टाफ ने चावी पकड़ा दी। बदले में आकाश भी उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया।
“ओह्ह!” दोनों रूम्स के इतने पास होने से आकांक्षा के मुँह से खीज में निकला।
दोनों अपने-अपने कमरे में गये और दोनो की नजर एकसाथ उस दरवाजे पर चली गयी जो इन दोनों कमरों को एकसाथ जोड़ रहा था।
“कनेक्टिंग डोर!” वो चिढ़कर बुदबुदाई।
उधर आकाश के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गयी।