"सुनो उर्मिला! देखो वक़्त हमें वहीं ले आया है। जहाँ से हम बिछड़े थे। देखो! वही आँगन, वही घर, वही किचिन, और तुम्हारे हाथ का वही हलवा! ऐसा नहीं लगता जैसे! जैसे किसी ने पॉज का बटन दवा दिया था। और अभी- अभी रि-स्टार्ट कर दिया हो?"
32.
“तुमने बताया नहीं, कि तुमने पापा से ऐसा क्या कहा है, जो उन्होने यहां भेज दिया तुम्हें?” आँख खोलते ही आकांक्षा ने खुद को अलग करते हुए पूँछा।
“मैनें उनसे झूठ कुछ भी नहीं कहा, हां! लेकिन जब उन्होने मुझ पर अपना भरोसा जताया तो मैने मना भी नहीं किया, और अब जो भी कर सकता हूँ उसके लिये पूरी कोशिश करूँगा।”
“कोशिश?..”उसने हल्का सा मुँह सिकोड़ा।
तभी उन दोनो के पास एक कार आकर रुकी।
“अनुराग सर ने आप लोगों को ड्रॉप करने के लिये बोला है” कार की ड्रॉइंविंग सीट पर बैठे लड़के ने कहा। आकाश कुछ बोल पाता इससे पहले ही आकांक्षा कार में बैठ गयी। फिर आकाश भी चुपचाप बैठ गया।
थोड़ी देर बाद ही आकांक्षा के मोबाइल पर अनी का कॉल आने लगा। आकांक्षा का फोन सीट पर उन दोनो के बीच में ही रखा था जिससे आकाश की नजर मोबाइल की ओर चली गयी और स्क्रीन पर अनी का नाम देखकर आकाश का मूड खराब हो गया।
“हैलो!अनी”
“चलो नाम तो याद है” उधर से तंज भरी आवाज मे अनी ने जवाब दिया।
“ऐसे क्यों बोल रहे हो?”
“तो और कैसे बोलूं? दो दिनों से कहाँ हो तुम? क्या मुझे बताना भी जरुरी नहीं समझा?”
फोन स्पीकर पर तो नहीं था, लेकिन अनी की आवाज सुनाई पड़ रही थी। और लाख ना चाहने के बाद भी आकाश ये बातचीत सुनने के लिए मजबूर था।
“वो अनी कुछ काम था, इसलिए बाहर आना पड़ा।”
“कौन सा काम? बाहर कहाँ? कहाँ हो तुम?”
“क्या मैं तुमसे थोड़ी देर बाद बात करुँ अनी ? आकांक्षा तिरछी नजर से आकाश को देखते हुए बोली।
” कम से कम इतना तो बताओ कि हो कहाँ?”
“अनी मैनें कहा ना!”
“ठीक है” गुस्से मे अनी ने फोन पटक दिया।
“तुम कह रहे थे ना, मैं अपनी परेशानी तुमसे शेयर कर सकती हूँ ” आकांक्षा ने बाहर की ओर देख रहे आकाश से कहा।
“हाँ बेशक”
“अनी और मेरा रिश्ता छिपा नहीं है तुमसे”
आकाश ने हामीं में सिर हिला दिया।
“पापा ने किसी से भी कुछ कहने से मना किया है। जबकि अनी को कुछ भी ना बताना उसके मन में अपने लिये शंका ही पैदा करना है। ना जाने क्या सोचे”
“हुँ”
“अजीब उलझन है मैं क्या करुँ, क्या तुम्हारे पास कोई सोल्युशन है मेरी इस प्रॉब्लम का?”
“मुझे तो कोई प्रॉब्लम नहीं लगती इसमें” आकाश हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला।
“क्या? कैसे?”
” तुम्हारे पापा ने तुम्हें यहां भेज कर कोई ज्यादती की है क्या तुम पर?”
“ना नहीं तो”
“वो तुम्हें आगे बढाने के लिये, कुछ सिखाने के लिये ही तो ये कर रहे हैं, क्या तुम्हारी जिंदगी के 3 से 4 दिन भी तुम्हारी भलाई के लिये भी वो तुमसे नहीं ले सकते?”
“ऐसा तो नहीं! मैं तो बस! बस”
“रही बात अनी की तो! क्या वो तुम पर इतना भी भरोसा नहीं कर सकता? भरोसे की नीवं इतनी कमजोर है जो दो दिन भी नहीं टिक सकती?”
अभी कुछ मिनट पहले गहरी उलझन में पड़ी आकाँक्षा ये सुनकर अब एकदम हल्का महसूस करने लगी थी। उसने इस बात को ऐसे सोचा ही नहीं।
“यही होटल है ना?” कार रोकते हुए उस लड़के ने पूँछा।
“हाँ! यही!” कार रुकते ही आकाश तेजी से बाहर निकला और आकांक्षा के लिए कार का दरवाजा खोलते हुए बोला,
“आकांक्षा! तुम जाओ रिलेक्स करो शायद तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं”
“ऐसी भी कोई तबियत खराब नहीं!बस्स हल्का सा कोल्ड है! तुम नहीं आओगे?” आकांक्षा ने बड़े नर्म लहजे में पूँछा
“नहीं। मुझे कुछ काम है, तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ ”
***
“तरस गया हूँ तुम्हे हँसते हुए देखने के लिये उर्मिला” गिरिराज ने गहरी आवाज में कहा। और उनके बोलने से ही जैसे उर्मिला को ध्यान आया कि वो गिरिराज के गले लग कर खड़ी हैं। वो फुर्ती से उनसे अलग हुईं और उनकी ओर पीठ करके खड़ी हो गयीं।
“अगर ये वो शरमा जाने वाली शर्म है तो मुझे एतराज नहीं। लेकिन.. लेकिन.. इसके अलावा कोई और भावना है तो सरासर बेज्जती है मेरी” गिरिराज ने वैसी ही ठहराव भरी आवाज में कहा। ये सुन कर उर्मिला ने अपनी साड़ी का पल्लू कस कर पकड़ा और खुद के सिर पर ओढ़ लिया। इसे गिरिराज ने बड़े गौर से मुस्कुराते हुए देखा।
लेकिन वो फिर भी उनकी ओर पीठ करके ही खड़ी रहीं !
“ठीक है! तो चलता हूँ ! अपना ख्याल रखना और डॉक्टर की दी हुई दवा लेती रहना” गिरिराज दो कदम बढ़े और वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गये। और उनके जाने की सुनकर उर्मिला तेजी से उनकी ओर मुड़ गईं।
“ये हुई ना बात! तुम्हें क्या लगा कि सालों से इन्तजार कर रहे इस हलवे को ऐसे ही छोड़ दूँगा ? उर्मिला मुस्कुराये बिना नहीं रह पाईं!
गिरिराज आगे बोले, “इन्तजार का दर्द मुझसे पूंछो। ये मौत से भी ज्यादा दर्दनाक होता है। ऐसा घाव जो हमेशा रिसता रहता है। लेकिन ना तो इस पर कोई मरहम लग सकता है और ना ही इस दर्द से मुक्ति मिलती है …
“गिरि…
“फिर मैं ही तो अकेला नहीं, तुमने भी तो यही दर्द सहा है। सो भी मुझसे ज्यादा …
“गिरि” उर्मिला की आँखें गीली हो गयीं।
“सुनो उर्मिला! देखो वक़्त हमें वहीं ले आया है। जहाँ से हम बिछड़े थे। देखो! वही आँगन, वही घर, वही किचिन, और तुम्हारे हाथ का वही हलवा! ऐसा नहीं लगता जैसे! जैसे किसी ने पॉज का बटन दवा दिया था। और अभी- अभी रि-स्टार्ट कर दिया हो?”
“हाँ! सही कह रहे हो” उर्मिला कहीं खोयी से बोलीं।
” पहला निवाला मुझे अपने हाथों से खिलाओ (गिरिराज ने हलवे की प्लेट उर्मिला को थमा दी) और उर्मिला ने एक चम्मच हलवा लेकर गिरिराज के मुँह में खिला दिया।
“इतनी सालें हो गयीं लेकिन तुम्हारे हाथों से बनाये गये हलवे का स्वाद वही है। बदला नहीं है। यकीन ना हो तो खाकर देखो” कहने के साथ ही उन्होने एक चम्मच में थोड़ा हलवा लेकर उर्मिला के मुँह में रख दिया।
“तुम्हें यकीन ना हो लेकिन, सच तो ये है कि आज मेरा भी व्रत टूटा है, उर्मिला “
“मतलब?”
“मतलब ये! हम जब भी अहाते में मिलते तुम अक्सर हलवा ही बनातीं थीं। याद है?”
उर्मिला ने हामीं मे सिर हिला दिया।
” इसलिये…इन बीते सालों में मैनें एक बार भी हलवा तो नहीं खाया उर्मिला”
“ओह्ह गिरि” उर्मिला ने अपनी आँखे बंद की और दो आँसू उनके गालों पर लुढ़क गये।
“चलो?” गिरिराज ने उर्मिला का हाथ पकड़ते हुए कहा
“कहाँ?”
“अहाते में…अधूरी मुलाकात पूरी करते हैं”
उर्मिला बिना मुस्कुराये नहीं रह सकीं। और दोनों सीढ़ियाँ चढ़ते हुए अहाते में आ गये। अब ये जगह पहले से बेहतर हो गयी थी। हाल ही मरम्मत का कार्य हुआ था। और ये जगह सुन्दर लग रही थी।
“ये तो काफी सुन्दर दिख रही है, जाहिर है तुम अब भी इस जगह का ख्याल रखती हो?” चेहरे पर खुशी समेटे वो उस जगह का हरेक कोना बारीकी से देख रहे थे।
“कैसे ना रखूँ? मेरे जीवित होने का एहसास इस जगह से ही तो होता है!” ठहरे आँसू फिर बह गये।
“अब मत रोओ उर्मिला, जिंदगी के इतने साल आँसुओं में बहा दिये तुमने। लेकिन रोकर अब भी थकी नहीं।”
“तो मैं क्या करुँ?”
“अब भी यही सवाल है? चलो बची जिंदगी साथ जीते है”
“साथ?”
“हाँ साथ, चलो शादी करते हैं ” गिरिराज की आँखें मोतियों जैसी चमकने लगीं!
“शादी? अब?”
“क्यों अब क्या हुआ? देखो! अब कोई अड़चन मत डालना उर्मिला” एकाएक गिरिराज की आवाज में थोड़ी गुस्सा घुल गयी।
“शादी इस उम्र में?”
“कौन से ग्रंथ में लिखा है कि इस उम्र में शादी नहीं हो सकती?”
“बात ग्रंथ की नहीं है”
“तो?”
“लोग क्या कहेंगे? क्या कहेंगे सब घरवाले और फिर इस उम्र में? “
“क्या मतलब इस उम्र में? जब तुम सुन्दर लग सकती हो। जब शरमा सकती हो। तो शादी भी कर सकती हो” गिरिराज शरारत भरे अंदाज मुस्कुराते हुए बोले।
“मैं तुम्हें गिरि…” अचानक उनके मुँह से निकला, और वो तेजी से उनको पकड़ने झपटीं, गिरिराज फुर्ती से थोड़ा पीछे हुए और तेजी से सीढिया उतर गये। उर्मिला भी उनके पीछे-पीछे तेजी से भागते हुए सीढ़ियाँ उतरी।
जैसे दोनों कुछ पलों के लिये सब कुछ भूलकर अपने उन्हीं दिनों और समय में बापस चले गये हों।
“देखो! देखो! तुम दौड़ भी सकती हो, फिर शादी करने में क्या हर्ज है” गिरि आँगन के एक कोने तक भागते हुए गये और बैठ गये, उर्मिला भी उनके पास आकर बैठ गयीं।
“क्या मेरा साथ पसंद नहीं तुम्हें उर्मिला?”
“क्या तुम्हें इस सवाल का जवाब नहीं पता?”
“साथ रह सकें इसलिये शादी करना जरुरी है! लोगों का क्या है, आज तक हमने लोगों के बारे में ही सोचा! लोगो ने कभी हमारे बारे में सोचा? और फिर हमारे दुख से कोई फर्क भी तो नहीं पड़ा किसी को, फर्क पड़ा तो बस्स हम पर”
“हम्म्म्म ….सुनो अच्छा ?”
“हम्म”
“तुम्हें भईया से बात करनी पड़ेगी” उर्मिला, गिरिराज के कंधे पर अपना सिर रखते हुए बोलीं।
“हाँ बिल्कुल करूँगा, सब कर लूँगा! तुम बिल्कुल चिंता मत करो”उन्होने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
***
मोबाइल से सुनाई दे रही अनी की आवाज और उसके बारे में आकांक्षा की चिंता के बारे में जानकर आकाश का मन बैचैन हो गया था। उसने थोड़ी दूर जाकर एक नुक्कड़ की दुकान से चाय ली। और शून्य में ताकते हुए वहीं बैठ गया। बहुत देर बैठे रहने के बाद उठा और फिर तेज कदमों से चलने लगा और लगभग घंटे भर बाद होटल लौट आया।
होटल के बाहर अनावश्यक रूप से अधिक भीड़ थी। लेकिन आकाश ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
लोगों की आवाजों की तेज सुगबुआहटें आ रही थीं।
“हे !वो देखो! पूरा माला दहक रहा है” किसी की आवाज गूँजी
“आह! मेरा दोस्त अंदर है” एक लड़का निढाल होते हुए चीखा, और आगे की और बढा
“रेस्क्यू टीम को अपना काम करने दीजिये। हमारे काम मे रुकावट मत डालिए ” लड़के को रोक दिया गया था।
पानी का पाइप तेज धार के प्रेशर से पानी फेंक रहा था। और उसी से थोड़ा पानी आकाश पर जाकर गिरा। जो अब तक वहाँ होकर भी नहीं था। पानी पड़ते ही उसकी नजर खुद व खुद ऊपर उठ गयी
“आग?” हैरत से उसकी आँखे खुलती चली गयी। तीसरा फ्लोर जहाँ उन दोनो के रुम थे। वो पूरा फ्लोर आग से दहक रहा था।
“आकांक्षा?” उसने तुरंत अपने फोंन से आकांक्षा का नंबर डायल किया। साथ ही सरसरी सी नजर वहाँ मौजूद भीड़ पर डाली, जहाँ उसे आकांक्षा नहीं दिखी।
“फोन उठाओ आकांक्षा” मोबाइल कान पर लगाये वो तेजी से भागता हुआ होटल के अंदर घुसा
“रुकिये रेस्क्यू टीम को अपना काम करने दीजिये” रेस्क्यू टीम से किसी ने उसे रोका।
“सर, मुझे जाने दीजिये”
“हमें अपना काम करने दीजिये। आपका ऊपर जाना खतरनाक हो सकता है”
“हटिये मेरे रास्ते से वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा” गुस्से में चीखते हुए उसने रेस्क्यू टीम वाले को झिड़का और फुर्ती से सीढिया चढ़ गया।
“आकांक्षा! आकांक्षा! तुम ठीक तो हो? दरवाजा खोलो! खोलो दरवाज़ा” वो तेज आवाज में चीखते हुए दरवाजे को जोर से पीट रहा था।
“आकांक्षा! ओह मुझे दरवाजा तोड़ना होगा” पूरी ताकत से टकरा दिया उसने खुद को दरवाजे से। लेकिन दरवाजे पर कोई असर नहीं हुआ। उसने दरवाजे के पास लगे ग्लास को दो- तीन प्रयासों में तोड़ा और कार्बन डाई ऑक्साइड भरा सिलेंडर निकाल लिया।
अचानक उसे वो माहौल अन्धेरे से भरा लगने लगा। मानो काली रात हो गयी हो। आकांक्षा के कमरे का वो दरवाजा बहुत पुराने जमाने का बना हुआ दिख रहा था। कुछ अनसुनी डरावनी आवाजें उसके कानों से टकराई।
उसने देखा उसके हाथ में एक मोटा सा लकड़ी का तना है। उसने एक जोरदार टक्कर दरवाजे में पूरी ताकत से मारी साथ ही जोर से चीखा ” अनामिका! दरवाजा खोलो। खोलो दरवाजा!”
दरवाजा खुल गया था। और अंदर का नजारा देखकर आकाश के चेहरे पर तनाव और हैरत के भाव आ गये थे।