सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 6
“इतने नाजुक हाथों से किसी को मारना बिल्कुल अच्छी बात नहीं..राई” वो बशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला, कि तभी एक जोरदार पंच रंजन के मुंह पर पड़ने की आवाज आई “और इन हाथों के बारे में तेरा क्या ख्याल है?” नीरज पंच मारने के साथ बोला 6. “गि…री…” उर्मिला के मुँह से धीरे से निकला! उस आदमी ने घोर अफसोस में ऐसे सिर हिलाया, मानों खुद का चेहरा दिख जाने का और खुद के पहचाने जाने का बहुत बड़ा अफ़सोस हुआ हो। फिर उसने बुत बनीं उर्मिला को कुछ पल देखा…और जाने के लिए मुड़ गया… “नहीं गिरी..गिरी…गिरी.री री…रुक जाओ…रुक जाओ…रुक जाओ गिरी… तुम्हें मेरी कसम…” उर्मिला ने उसे जाता देख गुहार लगाई, और उसके पीछे चल दीं! लेकिन वो इंसान जैसे बहरा हो गया हो, उसके तेज़ कदम भरपूर दूरी मापते से आगे बढ़ने लगे..और तब तक बढ़ते रहे…जब तक वो उर्मिला की आंखों से ओझल नहीं हो गया…उर्मिला के कदम उन कदमो से गति नहीं मिला पाए…और मन की निराशा ने उन्हें रोक दिया….उनकी आँखों से आँसू नहीं रुक रहे थे! वो घुटनों के बल वहीं जमीन पर बैठ गयीं “तुमने तब भी नहीं सुना था…आज भी नहीं सुना.. गिरी…एक बार तो सुनना था….कम से कम एक बार तो सुन लेते मेरी बात….एक बार तो पूंछ लेते मुझसे….”उर्मिला रोते हुए बुदबुदाई! *** ‘ये धम्म की आवाज कहाँ से आई…” बोलता हुआ आकाश बाहर की ओर दौड़ा और उसके पीछे- पीछे रोहित भी दौड़ा लेकिन अब तक अंधेरा होने लगा था…और कुछ भी साफ-साफ दिखना मुश्किल था… “शायद सीढियों पर रखा वो टूटा हुआ छज्जा नीचे गिरा ये उसकी ही आवाज थी” रोहित डरते हुए बोला “कौन है बाहर…आवाज दो ..मैंने पूँछा कौन है” राघव तेज आवाज में चीखते हुए कमरे से बाहर निकला “चाचा जी…हम हैं..हम…वो आ मैं रोहित और ये आकाश” रोहित ने जवाब दिया “ओह्ह.(खुशी से चहकते हुए) रोहित..आकाश…(फिर आगे बढ़ कर दोंनो को गले लगाते हुए) मेरे बच्चो …क्या शानदार उपहार दिया है तुम दोंनो ने मुझे, क्या कहूँ कितना खुश कर दिया है…ओह ! सालों बाद लगा जैसे जीवित हूं मैं…” राघव ने भावुकता में नम हो आयी आँखे पोंछी और आगे बोला “अच्छा ये तो बताओ…घर में सब ठीक हैं ना…?” “जी चाचा जी …” दोंनो ने एकसाथ जवाब दिया “ठीक है …तुम लोग हाथ-मुँह धो लो..मैं कुछ अच्छा सा बनाता हूँ तुम दोनों के लिए” राघव किचिन की ओर मुड़ गया और राघव की किचिन में जाते ही… “ये घर है…इसे घर कहते हैं..इसे…अगर इसे घर कहेंगे तो खण्डहर किसे कहेंगे… ” रोहित खीज कर बोला! “क्या यार छोड़ ना ये सब …देखा नहीं चाचा जी कितने खुश हैं हमें देखकर…” आकाश खुश होकर बोला “..मम्मी सच ही कहती हैं इनके बारे में, ये सनके हुए हैं” रोहित फिर खीज कर बोला “क्या यार…अच्छा चल मैं नहा लेता हूँ” थोड़ी देर बाद “ये है मसालेदार बैंगन का भर्ता और ये रही मेरी वाली स्पेशल दाल..और ये रहीं रोटियां.थोड़ी मोटीं हैं लेकिन …अच्छा जरा खाकर बताओ तो …कैसा बना है खाना” राघव दोनों के सामने खाना रखते हुए बोला “फिलहाल तो जो मिल जाये, नियामत है..बड़ी तेज़ भूख लगी है.” रोहित जल्दी से एक निवाला मुँह में रखते हुए बोला “खाना सच में बहुत अच्छा बना है चाचा जी..” आकाश ने एक निवाला मुँह में रखते ही खाने की तारीफ की तो राघव का चेहरा खिल गया! *** राई तेज़ी से गेट के अंदर आई ! वो अपने क्लास की ओर मुड़ी ही थी कि लगा किसी ने उसका दुपट्टा उलझ गया है, वो खीजते हुए पलटी तो नजर एक जूते पर पड़ी जो उसके दुपट्टे पर रखा था, उसने गुस्से में नजर उठाकर ऊपर की ओर देखा, रंजन ढ़ीटता से खड़ा मुस्कुरा रहा था, रंजन राई का क्लासमेट ही था, 5 फ़ीट छ: इंच की लंबाई वाला रंजन औसत नैन-नख्श का लड़का था जिसके सिर के आगे का हिस्सा बालों से गायब हो गया था और जब तब उसे कॉलेज में कहीं भी सिगरेट पीते हुए देखा जा सकता था। “ये क्या बदतमीजी है रंजन?” वो गुस्से में चीखी “बदतमीजी?…मैंने क्या किया?…क्या बदतमीजी कर दी मैडम?” वो अनजान बनने का नाटक करता हुआ फिर मुस्कुरा दिया..राई उसके रवैए से बुरी तरह खीज कर बोली, “ये तुमने अपना पैर मेरे दुपट्टे पर क्यों रखा है?” “ओह्ह…. च..च..च..ये मेरा पैर भी ना..”अपना पैर साइड में हटाते हुए वो बोला” राई अपने दुपट्टे पर जूते के गंदे निशान देखकर गुस्से से भर गयी, “दुष्ट लड़का, इससे कुछ भी कहने -सुनने का कोई फायदा नहीं” बुदबुदाती हुई राई उससे कुछ भी ना कहने की सोचते हुए मुड़ी ही थी कि रंजन बोला, “वैसे मानना पड़ेगा…पैर पड़ा भी तो किसके दुपट्टे पर…चॉइस अच्छी है.. नयी?” रंजन को मुस्कुराते देख, गुस्से से राई का खून जल गया “तुम्हारी इतनी हिम्मत..” कहते हुए राई ने अपना हाथ रंजन को थप्पड़ मारने के लिए उठाया ही था..कि रंजन ने उसका हाथ ना सिर्फ जोर से पकड़ा बल्कि इतनी जोर से भींच दिया कि राई के मुंह से “आहह”निकल गयी “इतने नाजुक हाथों से किसी को मारना बिल्कुल अच्छी बात नहीं..राई” वो बशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला, रंजन से इस उदण्डता की उम्मीद भी नहीं थी राई को…स्टूडेंट भी धीरे-धीरे उनके आस पास खड़े होने लगे थे…उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे…कि तभी एक जोरदार पंच रंजन के मुंह पर पड़ने की आवाज आई “और इन हाथों के बारे में तेरा क्या ख्याल है?” नीरज पंच मारने के साथ बोला राई की नजर जब नीरज पर पड़ी तो उसने मन ही मन राहत की साँस ली। “तू..?” “हां मैं…” नीरज ने बोलने के साथ ही राई को वहाँ से जाने का इशारा किया और अपनी शर्ट की आस्तीन ऊपर समेटने लगा…राई भी बिना एक पल और गवाएं वहाँ से तेज़ चलते हुए हटी और क्लासरूम की खिड़की से दोंनो को देखने लगी। “ना मुझे समझ नहीं आता..तू बीच में आने वाला होता कौड़ है..” पंच खाया रंजन खिसियाते हुए चीखा और साथ ही नीरज की ओर उसने अपना पैर मारने के लिए उछाला ही था कि नीरज ने उसका वही पैर पकड़ा और जोर से पीछे की ओर धक्का दे दिया ..अचानक से हुए इस प्रेशर