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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 22

___________________________________________ 22. “क्या कहा तुमने अभी?” राघव ने आकाश के बिल्कुल पास आकर तेज आवाज में पूँछा। आकाश ने असमंजस की स्थिति में गिरिराज की ओर देखा। लेकिन गिरिराज को खुद समझ  में नहीं आ रहा था, कि क्या बोलें! “तुमने रेशमा के बारे में अभी-अभी क्या कहा?” राघव ने फिर से पूँछा लेकिन आकाश ने कोई जवाब नहीं दिया ! “मुझे जबाव दो आकाश …बोलो…कहाँ है रेशमा?” राघव ने इस बार आकाश के कन्धे झिंझोड़ दिये “वो नहीं रहीं….” वो धीरे से बोला “क्या?…क्या बकते हो…मैं नहीं मानता…झूठ है ये” राघव एकदम डूबी हुई आवाज में बोला! “आपको मानना होगा चाचा जी…पहले ही आप बहुत भ्रम में रह चुके हैं, अब आप को सच स्वीकार कर लेना चाहिये” ” वो कैसे मर सकती है…नहीं …नहीं…झूठ है ये” राघव को खड़े रह पाना मुश्किल लगा वो जमीन पर निढ़ाल सा बैठ गया। “बस्स बहुत हुआ…इस भ्रम की स्थिति से बाहर आइये चाचा जी…सालों पहले ही मौत हो गयी है उनकी” आकाश चीख कर बोला… “कैसे मान लूँ …मैं कैसे मान लूँ?…जब तक मैं प्रमाण ना देख लूँ… कैसे मान लूँ?” “ठीक है..प्रमाण चाहिये ना अपको …मैं अभी प्रमाणित करता हूँ” आकाश ने इधर-उधर देखा और घर में मरम्मत काम के चलते फावड़ा और कुदाल रखी ही हुई थी, उसने कुदाल उठायी और दौड़ता हुआ राघव के कमरे में जाकर पिछले दरवाजे पर कुदाल से पूरी ताकत से वार कर दिया। वहाँ मौजूद एक भी शख्स ऐसा नहीं था जिसके मन में तरह-तरह के सवाल ना उठ रहे हों लेकिन कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। सब बस चुपचाप देख रहे थे। गिरिराज ने भी कुदाल उठा ली और आकाश की मदद करने लगे। दोनों मिलकर पूरी ताकत से वार कर रहे थे…थोड़ी देर में ही लकड़ी का वो मजबूत दरवाजा कई टुकड़ों में टूटकर गिर गया। अब दीवार दिख  रही थी। जो उस दरवाजे को बन्द करने के लिये बनवायी गयी थी। आकाश पूरी ताकत से उस दीवार पर वार करने लगा और गिरिराज उसका साथ दे रहे थे। “माँ ने बनवायी थी ये दीवार…” राघव धीरे से बुदबुदाया तो उर्मिला ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर आत्मीयता भरा हाथ रख दिया “माँ …अगर इस वक़्त जीवित होतीं तो आकाश से कितना नाराज होतीं” इस बार गिरीश धीरे से बोले। “जब से तुम्हारे बाऊ जी गये थे बोलती ही कहाँ थी वो बेचारी…छ: सात महिने का वक़्त मुश्किल से बीता होगा …और वो भी इस दुनिया से चल बसीं …आह” गिरीश के पास ही खड़ी उनकी पत्नी लता गहरी आह भरते हुए बोली। घुटनो जितनी दीवार टूट गयी थी..आकाश दीवार के उस पार चला आया…और गिरिराज भी…आकाश ने कुछ पल जमीन की ओर देखते हुए कुछ सोचा, और बोला, “ये जगह होनी चाहिये”  “ठीक है” गिरिराज बोलने के साथ ही आँगन में आये और दो फावड़े लेकर बापस दीवार फलांगते हुए आकाश के पास जाकर उन्होने एक फावड़ा उसे सौंप दिया। और दूसरे से खुदाई करने लगे। अब दोनों जमींन पर खुदाई कर रहे थे। और बाकी सब अब तक असमंजस में थे सिवाय राघव के …क्योंकि राघव डरे हुए थे। दोनो जमींन पर फावड़ा चला रहे थे…मिट्टी का ढेर लग गया था..तभी एक ‘खट्ट’ की आवाज के साथ दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और अपने-अपने फावड़े चलाना रोक दिया… और अब हाथों से मिट्टी हटाने लगे। थोड़ी देर में ही एक हड्डियों का ढाँचा दिखा, आकाश ने उसे निकाला और फिर उठाकर कमरे में लाकर रख दिया… “आह…” “ओह्ह ये क्या?” सबके मुँह से निकल पड़ा। इतने में गिरिराज ने एक छोटा सा  शरीर का ढाँचा लाकर उस बड़े हड्डियों के ढांचे के पास रख दिया। “ये रहा सुबूत…रेशमा जी और उनके बेटे की मौत का” आकाश हाँफते हुए बोला। इतनी मेहनत से वो थक चुका था! “बहुत देर से ये तमाशा देख रहा हूँ! तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए …मैं पूंछता हूँ आकाश क्या है ये सब?”  गिरीश गुस्से में बोले। “मुझे अफसोस है चाचा जी…लेकिन ये भयानक सच्चाई आपको कुबुल करनी होगी” गिरीश की बात को बिल्कुल अनसुना कर आकाश, राघव से बोला। “आखिर कैसे किसी भी ढांचे को सामने रख कर तुम ये कह सकते हो कि रेशमा और उसके बेटे की …” आगे के शब्द गिरीश से कहते ना बने। राघव बहुत धीरे से चलता हुआ आया और नीचे बैठ गया…फिर उसने उस कंकाल की ऊँगली में पड़ी अंगुठी को धीरे से छुआ “वो बीच की ऊँगली में मेरी ही दी हुई अंगूठी पहनती थी….ये रेशमा ही है..मेरा दिल कुबूल कर रहा है” फिर पास ही रखे छोटे कंकाल को छुआ, ” मेरा बेटा….मेरा बेटा…मैं किसी को नहीं बचा पाया…कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा मैने तुम दोनों को! और तुम दोनों इतने पास थे मेरे..किसने किया ये? …छोडूंगा नहीं उसे! बताओ आकाश किसने किया ये? किसने मेरी दुनिया उजाड़ दी .. ” राघव गुस्से में चीखते हुए बोले, जबकि उनकी आँखें आसुओं से भरी हुई थीं! उनका पूरा शरीर कांपने लगा…और फिर जल्दी ही पसीने से भीग गया। “राघव! तुम्हारे चाचा जी को हार्ट अटैक आ रहा है…” गिरिराज बोले “क्या” “मैं एम्बुलेन्स के लिये कॉल करता हूँ ” गिरिराज फोन पर नम्बर डायल करने लगे “आकाश ….आकाश …”बहुत कठिनता से बोले राघव ‘चाचा जी …आप ठीक हैं ना?” आकाश उन्हें अपने हाथों में संभालते हुए बोला “आकाश …आकाश …”दर्द से कराहते हुए उन्होनें अपने सीने पर हाथ रखा “गिरि अंकल! एम्बुलेंस ….” आकाश चीखा “आती ही होगी…मैं फिर से कॉल करता हूँ ” गिरिराज दुबारा कॉल करते इससे पहले ही एम्बुलेंस आ गयी थी… *** आई.सी.यू. में भर्ती कर लिया गया राघव को…और बाहर सब चिंता में थे।  तभी अचानक एक तेज तमाचे की आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया! “अगर तुम्हें कैसे भी सच्चाई पता लग भी गयी थी, तो क्या जरुरत थी राघव भईया को बताने की? देख लिया ना नतीजा? जाने कितने सालों बाद मैनें उन्हें खुश देखा था…कितनी खुशी से वो हम सबको लेकर आये थे …इस घर में मेरे साथ रहना चाहते थे…लेकिन” तभी उनकी नजर पास ही खड़े गिरिराज पर चली गयी, वो गुस्से में बोलीं,”इसे तो इतनी समझ नहीं..लेकिन तुम तो समझदार हो कम से कम..अब और क्या चाहते

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:21

21. “कौशल्या, तुमने राघव के कमरे में ये अचानक दीवार क्यो बनवा दी ?” नारायण ने गुस्से में पूँछा “जरुरत थी” कौशल्या, नारायण से मुँह फेर कर बोलीं “कैसी जरुरत ?” “मैं नहीं चाहती, कि मेरा बेटा उस दरवाजे को देखे और दुखी हो जाये…दरवाजा बन्द रहेगा तो वो जल्दी ही इस सब से उबर जायेगा” “अच्छा? तुम्हें पहले से कैसे पता चल गया कि ये सब होने वाला है …कि रेशमा…और आनन फानन में तुमने दीवार भी बनवा दी” कौशल्या को अचानक अपनी गलती का एहसास हुआ, ये सवाल भी उठ सकता है, ये बात उनके दिमाग में क्यों नही आयी? “कुछ पूंछ रहा हूँ कौशल्या…जवाव दो…क्या छिपा रही हो मुझसे…बो..लो” चीख पड़े नारायण “मैं …मैं क्या छिपाऊंगी …कुछ भी तो नहीं” “समझ गया…ऐसे नहीं बोलोगी…ठीक है …मैं दीवार तुड़वाता हूँ “ “नहीं तुम्हें मेरी कसम….” कौशल्या ने घबराकर नारायण की बाँह पकड़ ली। “तुमने तो मेरे शक को यकीन में बदल दिया कौशल्या” नारायण निराशा भरी आवाज में बोले..और नारायण के ये बोलते ही कौशल्या का सब्र का बाँध टूट गया और वो निढ़ाल सी जमीन पर बैठीं और आँसुओ से रोने लगी। “मुझे बचा लो…मुझसे अपराध हो गया है…मैं क्या करुँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा” “कौशल्या मुझे बताओ…सब सच- सच बताओ..” नारायण की बात को बिल्कुल अनसुना करके वो बस्स रोती रहीं। “देखो कौशल्या!रोने से कुछ हल नहीं निकलने वाला …मुझे बताओ क्या किया है तुमने …इससे पहले हम किसी बड़ी मुसीबत में फँस जाये …कौशल्या बताओ मुझे” कौश्ल्या ने जल्दी से आँसूं पोंछे और हांफते हुए बोलीं “तुम सब संभाल लोगे ना?” “क्या इसके सिवाय कोई और चारा है?…अब बोलो?” “देखो, हम दोनों ही परेशान थे उस …उस रेशमा से… “हम्म..” “मैं उसकी सास से मिली…और मैनें उससे इस क्लेश को खत्म करने के लिये कहा” “उस कांता से मिली तुम?” “हम्म ….” ” फिर….?” “उसे उत्साहित करने को मैनें उसे थोड़े पैसे भी दिये” इसे सुनकर नारयण ने अपनी आँखे तरेरी “मैं क्या करती मुझे डर लग रहा था कि कहीं …कहीं…राघव उससे व्याह कर लेता तो…हम कहीं के ना रहते…” “अच्छा, फिर?” “फिर क्या …मुझे क्या पता था कि (फुसफुसाकर) वो पागल औरत उसका कत्ल करवा देगी.. “(आश्चर्य से)क्या…?” “इतना ही नहीं…उस पागल औरत ने उसकी और उसके बेटे की लाश को हमारे घर के पिछवाड़े …राघव के कमरे का जो पिछला दरवाजा खुलता है ना…वहाँ दफन करवा दिया है…” डर और हैरत से नारायण ने अपने दोनों हाथ खुद के मुँह पर रख लिये “इसलिए मुझे वो दीवार बनवानी पड़ी….सुनो, मेरा दिल बड़ा  घबरा रहा है…आह..अगर मुझे जरा सा भी एहसास होता कि वो पागल और कमक्ल औरत… “वो कमअक्ल और पागल अयं ..या तुम? (नारायण गुस्से से चीखे) यकीन नहीं होता कि तुम ऐसा भी कर सकती हो…कोई और मुझे तुम्हारे बारे में बताता तो यकीन नहीं होता  …लेकिन  ..” “मेरा यकीन करो…मैनें उससे ऐसा नहीं कहा था….मैं तो बस्स ये चाहती थी कि उसे कहीं दूर भेज दे या किसी के साथ भेज दे, बस वो राघव की जिंदगी से अलग हो जाए, मैं तो बस खानदान की इज्जत बचाना चाहती थी” “तुमने जो किया उससे हजार बार अच्छा होता कि राघव उस रेशमा से व्याह ही कर लेता” “ये क्या कह रहे हो…? “सच कह रहा हूँ …ना सही अपराध …लेकिन तुम? इस अपराध की भागीदार हो कौशल्या” नारायण आवेग में चीखे “(आश्चर्य से) क्या?” “हाँ …सही कह रहा हूँ ” फिर नारायण ने जल्दी से लकड़ी की आलमारी खोली और कुछ पैसे निकालकर अपनी जेब में रख लिये। “कहाँ जा रहे हो?” अभी दो ही कदम बढ़ाए होंगे नारायण ने कि कौशल्या ने उनका हाथ पकड़ लिया “पुलिस चौकी” बड़े तटस्थ भाव से नारायण ने जवाव दिया ” पुलिस चौकी. ?” “मुझे लगता है सब कुछ कबूल करना ही हमें इस मुसीबत से बाहर निकाल सकता है” “नहीं …नहीं…नहीं मैं तुम्हें हरगिज पुलिस चौकी नहीं जाने दूँगी…सबके सामने पुलिस मुझे पकड़ कर ले जायेगी…हाय कितनी बेइज्जती हो जाएगी” कौशल्या ने नारायण को रोकने के लिये उनकी बाँह कसकर पकड़ ली थी! “मुझे जाने दो कौशल्या…घबराओ मत… मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा” नारायण ने आश्वासन देते हुए कौशल्या का हाथ खुद की बाँह पर से छुटाया लेकिन कौशल्या ने उनकी बाँह और भी कस कर पकड़ ली। “नहीं …नहीं..पुलिस नहीं…सुनो क्या कोई और उपाय नहीं?” “कौशल्या … हाथ छोड़ो मेरा” “नहीं…नहीं…पुलिस नहीं” कौशल्या एक बच्चे की तरह बिलख पड़ी। और बाहर से देखता और सुनता आकाश कौशल्या का ये रूप देखकर भावुक हो गया। अगले ही पल! नारायण के कदम डगमगाये और वो जमीन पर लुढ़क गये “हें क्या हुआ…क्या हुआ” (कौशल्या चीखीं) अरे कुछ बोलो ना क्या हुआ …आह क्या करुँ (फिर कमरे के दरवाजे से जोर से आवाज लगायी) “गि…री…श…रा…घ..व … अरे! जल्दी आओ…देखो तुम्हारे बाऊ जी को क्या हुआ?” “क्या हुआ बाऊ जी को?” गिरीश भागते हुए आये “पता नहीं …देख जरा” कौशल्या, नारायण की हथेलियाँ मलने लगीं। नारायण की आँखे लाल हो गयी थीं और वो बेहद कष्ट में दिख रहे थे। “मैं डॉक्टर को बुला कर लाता हूँ ” गिरीश उनकी हालत देख तेजी से बाहर की ओर भागा! “घबराओ मत…गिरीश गया है डॉक्टर को लाने…अभी डॉ आता ही होगा” कौशल्या उनकी हथेलियाँ मलते हुए रोने लगीं।  अचानक नारायण ने कौशल्या का हाथ इतनी कस कर पकड़ा जैसे दुनियाभर की ताकत अचानक से उनके हाथों में आ गयी हो … और अगले ही पल एकदम शिथिल छोड़ दिया। कौशल्या के दिमाग में उस अनहोनी की अशंका कौंध गयी जिसे वो स्वीकार करने को एकदम तैयार नहीं थी। कि तभी, “डॉक्टर साहब जल्दी देखिए” गिरीश डॉक्टर को ले आये थे। डॉक्टर, नारायण का चेकअप कर रहे थे और कौशल्या जड़ बनीं खड़ी थीं जो डॉक्टर कहने वाला था वो पहले ही जान चुकीं थीं। परिवार के सभी लोग अब तक उस कमरे में इकट्ठा  हो चुके थे। “गिरीश जी, इनमें कुछ नहीं बचा” डॉक्टर निराशा से अपना सिर ना में हिलाते हुए बोला “मत…लब?…क्या मतलब आपका?…ये अभी एकदम ठीक थे…अभी कुछ पल पहले ही” गिरीश घोर आश्चर्य में था “मेरे आने से पहले ही ये इस दुनिया से जा चुके हैं…” डॉक्टर ने गहरी संवेदना से गिरीश का कंधा थपथपाया और जल्दी

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:20

20. खिड़की से कूद कर जैसे ही आकाश बाहर निकला, बदहवास सा एक ओर भागा, फिर ख्याल आया कि उसे तो मन्दिर जाने का रास्ता पता ही नहीं है, कुछ बच्चे उस रैली की  ओर देखकर बड़े खुश होकर तालियां बजा रहे थे। “सुनो बेटा, मन्दिर जाने का रास्ता कौन सा है?” उसने पूँछा  “कौन सा मन्दिर?” बच्चे बोले  कौन सा मन्दिर? हां ये तो सच मे कनफ्यूजिंग है कितने ही मन्दिर होंगे कैसे पता चले कि रेशमा जी कौन से मन्दिर गयीं होगीं “बच्चो यहां से सबसे पास जो मन्दिर हो, वहाँ जाने का रास्ता बताओ” “अरे वो तो यहीं है, यहां से सीधे इसी रास्ते पर चले जाओ अपने आप दिख जायेगा” “ठीक है बच्चो…”आकाश पूरी तेजी से उसी ओर भागा, थोड़ी देर में ही एक छोटा सा लाल रंग का मन्दिर उसे दिख गया, वो भागता हुआ मन्दिर के अन्दर गया, जहाँ दो-चार लोग ही थे और वो सारे आदमीं और लड़के, आकाश ने दौड़ते हुए मन्दिर के आसपास देखा लेकिन कोई नहीं दिखा। वो फिर आगे की ओर जाने वाली सड़क पर इधर-उधर देखता हुआ भागने लगा। सामने एक पेड़ों की लम्बी कतार नजर आ रही थी और उसी के ओट में चलते कुछ लोग सिर पर कोई बोझ उठाये हुए थे। ‘कहीं यही तो दीना और उसके साथी तो नहीं?’ ये ख्याल आते ही आकाश पूरी ताकत से भागते हुए उन पेड़ों की कतार को पार कर गया और उन तीनों के सामने जा पहुँचा। दीना हाथ में एक बड़ा सा गड़ासा पकड़े हुआ था और सबसे आगे-आगे चल रहा था उसके पीछे दो आदमी अपने सिर पर एक बड़ी सी बोरी उठाये हुए थे। उन्हें देखकर आकाश का गुस्सा उबाल मारने लगा। “कहाँ हैं रेशमा?”आकाश ने दीना के सामने जाकर गुस्से से पूँछा दीना ने जल्दी से अपने गड़ासा कंधे पर पड़े हुए गमछे में छुपा लिया। “बोरी में क्या है।?” आकाश ने पूँछा “फसल है, अभी अभी काटी है…(फिर अपने साथियों की ओर देखते हुए) चलो जल्दी-जल्दी चलो”दीना नजरें चुराते हुए बोला “फसल? इतनी सुबह-सुबह ? अच्छा जरा दिखा तो” आकाश ने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा “वो …जरा जल्दी में हम” दीना बड़ी फुर्ती से पास से निकलने ही वाला था कि आकाश ने उसे गर्दन से पकड़ते हुए पीछे की ओर खींच लिया। “किसे बनाता है कमीने…..रेशमा जी कहाँ है…बोल?” “कौन रेशमा …मैं नहीं जानता” दीना खुद को छुड़ाते हुए बोला “कमीने तुझे नहीं पता कि रेशमा कहाँ हैं …तुझे?..बनता है मेरे सामने….क्या किया तूने उनके साथ …बो…ल” आकाश ने उसे एक जोरदार घूँसा मारा और आगे बढ़ कर बोरी खोलने लगा। उसी वक़्त दीना ने अपने दोनों साथियों को इशारा कर दिया और अकाश कुछ समझ पाता उससे पहले ही वो दोनों उस पर टूट पड़े, आकाश को सँभलने तक का मौका नहीं दिया, और लात-घूंसो की बरसात कर के आकाश को लहू-लुहान कर दिया।  जब तीनों आश्वस्त हो गये कि आकाश बेहोश हो गया है तो दीना ने उन दोनों को आकाश को पीटने से रोक दिया। ” बस्स करो..कोई नया लफड़ा नहीं चाहिये ..छोड़ दो इसे ऐसा ही” “आखिर ये क्यों पूंछ रहा है रेशमा के बारे में?” दीना के एक साथी ने फुसफुसाकर पूँछा “क्या मालूम…खैर…अब पूंछने लायक नहीं रहा …चलो यहां से…कांता ने हमसे छिपे रहने को कहा है ” दीना ने कहा और फिर तीनों वहाँ से भाग गये। थोड़ी देर बाद आकाश को होश आने लगा ..तब उसे दर्द का एहसास हुआ ..वो कराहता हुआ पड़ा रहा थोड़ी देर तक…फिर हिम्मत करके खड़ा हुआ और धीरे-धीरे चलने लगा, थोड़ी देर चलने के बाद उसे दो मकानों के बीच बनी छोटी सी गली में कांता किसी से बातें करती हुई दिखीं, आकाश उसी ओर मुड़ गया। “ये क्या कह रही हो…मैने मुसीबत खत्म करने के लिये कहा था…कत्ल करवाने के लिये नहीं” ये कौशल्या थीं जो दाँत पीसते हुए कांता को डांट रही थीं। “दादी जी ” कौशल्या को देखकर चौंकता हुआ आकाश दीवार के सहारे से टिक कर खड़ा हो गया “मैने आपकी मुसीबत हमेशा के लिये खत्म कर दी, आपको तो मेरा एहसान मानना चाहिये, और आप हैं कि ….”कांता तपाक से बोली “चुप्प …पागल औरत! कितना बड़ा बबाल कर दिया तूने, एहसास भी है…हे भगवान अब मैं क्या करुँ?” “कैसे एहसास नहीं होगा…अपनी बहू के साथ-साथ पोता भी तो खोया है मैनें ” कांता के ये बोलते ही कौशल्या का ही नहीं बल्कि आकाश का मुँह भी खुला का खुला रह गया। “क्या?” कौशल्या सदमे से जमीन पर बैठ गईं! और आकाश ने खुद का हाथ अपने मुँह पर रख लिया। “मैनें उस गधे से बस्स रेशमा को मारने के लिये….”कांता ने इतना बोला ही था कि “चुप…चुप खबरदार जो ये शब्द तेरी जुबां पर कभी दुबारा भी आया तो….”कौशल्या ने उसे तेजी से डपट दिया ” लेकिन मेरा पोता भी तो उस करमजली  के साथ था…उन लोगों के काम में अड़चन डाल रहा था.. इसलिये उन लोगों ने उसे भी …हाय मैं कहीं की ना रही” कांता ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना दायां हाथ खुद के माथे पर मारा,  आकाश गुस्से से तिलमिला गया और ‘जो होगा देखा जाएगा ‘ सोचते हुए उसकी ओर एक कदम बढ़ाया ही था कि ठिठक गया। कौशल्या उठ कर खड़ी हुईं। और बड़े सख्त आवाज में बोली “जो होना था सो हो गया, अब यूँ हाथ पैर छोड़ने से कोई फायदा नहीं होने वाला …ये बताओ …उन दोनों की…अ …उन दोनों की ओह्ह ” कौशल्या लाख चाहने के बाबजूद भी वो शब्द अपनी जुबां पर नहीं ला पा रही थीं जो उन्हें इस वक़्त सबसे ज्यादा परेशान कर रहे थे। “किसका मुँह देखकर काटूगीं ये बची जिंदगी ” कांता निढ़ाल सी जमीन पर बैठ गयी थी। और उसे ऐसे हाल में देखकर कौशल्या की चिंता बढ़ गयी थी “कांता…कांता संभालों खुद को…ये बताओ दोनों की लाशें कहाँ हैं?” कौशल्या ने कांता के सामने बैठते हुए उसके दोनों कंधे हिलाते हुए पूँछा “वो सेठानी जी। आपके घर के पिछले दरवाजे के आगे जो जगह है ना… वहीं पर ” कांता रोते हुए बोली “क्या…?” सुनकर कौशल्या की आँखे फट गयीं। और गुस्से में आकर कौशल्या ने एक जोरदार चाँटा कांता के मुँह पर

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 19

“उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पैरों पर तेजी से कुरेदा हो…उसने सामने देखा तो…वो छाया झुकी हुई थी और उसके सूखे और खुरदरे हाथ आकाश के पैरों पर थे। “ना…ना…अह्ह..आह्ह” आकाश डर, घबराहट के लिजलिज़े एहसास से कुलबुलाया! और अगले ही पल उस छाया ने आकाश को हवा में उठा दिया“अह्ह..अह्ह.. ना…नहींss…नहींsss” डर से आकाश के मुँह से निकला फिर उस छाया ने आकाश को चकरी की तरह गोल गुमाया और एक गोले की तरह हवा में उछाल दिया। “आह्ह्हह” आकाश के मुँह से चीख निकल गई!” 19. “अ …आ …”डर की वजह से आकाश की हालत खराब थी, उसने कुछ बोलना चाहा लेकिन आवाज गले के बाहर ही नहीं निकली! अब वो हवा में थोड़ी और ऊपर उठ गयी थी…और उसने अपने लकड़ी जैसे लम्बे और सूखे हाथ हवा में उठा लिये थे  और अगले ही पल..  तेज हवा चलने लगी  …आकाश का पूरा शरीर जैसे जाम हो गया था बस्स आँखें ही थी जो उस छाया पर टिकी हुईं थीं !अब हवा तूफान में बदल गयी थी …और एक तेज “भड़ाक” की आवाज के साथ वो जाम पड़ा हुआ कमरे का पिछला दरवाजा भी खुल गया था..अब इतनी तेज हवा में आँखे खोले रख पाना मुश्किल हो गया था आकाश के लिये, हालांकि वो आँखे खुली रखने की पूरी कोशिश कर रहा था। इसी वक़्त उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पैरों पर तेजी से कुरेदा हो…उसने सामने देखा तो…वो छाया झुकी हुई थी और उसके सूखे और खुरदरे हाथ आकाश के पैरों पर थे। “ना…ना…अह्ह..आह्ह” आकाश डर, घबराहट के लिजलिज़े एहसास से कुलबुलाया और अगले ही पल उस छाया ने आकाश को हवा में उठा दिया “अह्ह..अह्ह.. ना…नहींss…नहींsss” डर से आकाश के मुँह से निकला फिर उस छाया ने आकाश को चकरी की तरह गोल गुमाया और एक गोले की तरह हवा में उछाल दिया। “आह्ह्हह” आकाश के मुँह से चीख निकल गई! *** “उर्मिला ..ओ। उर्मिला “ “राघव भैया की आवाज है ये तो…”उर्मिला आवाज सुनकर आश्चर्य से बुदबुदायी और सीढियों की ओर लपकी “उर्मिला! घर में नहीं हो क्या ?” राघव ने फिर से कहा! “राघव भैया ” उर्मिला की आँखे अविश्वास से खुली थी। राघव दरवाजे पर खड़ा था, ये महज दूसरी वार था जब राघव गिरीश के घर में आया था।  इससे पहले वो सिर्फ़ तब आया था जब गिरीश ने उसे गृह प्रवेश के वक़्त मिन्न्ंते करके बुलाया था। सब यही सोचते कि राघव को किसी से मिलने जुलने में कोई रुचि नहीं है, और उसके शराब पीकर आजादी से रहने में कोई खलल ना पड़े इसलिये वो किसी से कोई सम्बंध रखना नहीं चाहता, तो वक्त के साथ -साथ खुद की जिंदगी में सिमटते चले गए! “यकीन नहीं हो रहा है ना? ” उर्मिला को खुद की ओर घूरते देख राघव ने कहा, और फिर हँसते हुए खुद के पास आने का इशारा किया। उर्मिला दौड़ कर राघव के गले लग गयी! “कैसी है मेरी बहन?” “अब याद आयी है मेरी?” भावुकतावश उर्मिला की आँखों से आँसूं निकलने लगे। “क्या ही कहूँ …स्वार्थी दुनिया का असर तेरे भाई पर भी आ गया था शायद, नहीं तो अपनी छोटी बहन को कोई ऐसे ही नहीं छोड़ देता है …या फिर ऐसे कहूं तो गलत नहीं होगा कि खुद से ज्यादा गिरीश भईया पर भरोसा था मुझे कि वो तेरा ख्याल रख लेंगे…क्योंकि मुझे तो खुद में ही डूबे रहने से  फुरसत नहीं..और इस स्वार्थीपन में नाइंसाफ़ी हो गयी तेरे साथ “ “नाइंसाफ़ी?” “हम्म्म….चाहे ना कहे तुम, लेकिन जानता हूँ जो सुख खुद के घर में है वो और कहां?” “ऐसा मत सोचिए…मैं खुश हूँ यहाँ ….कोई नाइंसाफ़ी नहीं हुई आपसे.. आप मुझसे मिलने आये यही मेरे लिये बहुत खुशी की बात है?” “गलत कहते हैं लोग, कि एक वक़्त के बाद कोई साथ नहीं देता …बहिनें हमेशा साथ देतीं हैं। मुझे ही देखो …क्या मैं इस लायक हूँ कि मुझे कोई काम दे? लेकिन, लगातार मुझे कोई ना कोई काम मिलता रहता है … जानती है क्यों?” “क्यों?” “क्योंकि मेरी बहन मेरे लिये लगातार भगवान से प्रार्थना जो करती रहती है…” “राघव भइया ” उर्मिला खुशी मे सुबक रही थी “अपने घर चल उर्मिला वहाँ आराम से रहना…जैसे चाहें वैसे!..कोई रोकने-टोकने वाला नहीं…और देख ना कब से हम भाई – बहिन साथ भी नहीं रहे” उर्मिला कुछ ना बोलकर बस्स खुशी के आंसुओं के साथ रोती रही और राघव उसके सिर पर हाथ फेरता रहा, तब तक गिरीश और बाकी परिवारीजन भी आ गये थे। “राघव? ….राघव चाचा जी? “सब एक साथ बोले “गिरीश भईया, कैसे हैं आप? राघव गिरीश को देखकर बोला “वो छोड़ो कि कैसा था…तुम्हें यहाँ देखकर बेहद खुश हूँ! आखिरकार तुम्हें नशे से फुरसत मिली…और अपने भाई की याद आयी “गिरीश ने खुश होकर कहा ” उर्मिला को लेने आया हूँ भईया”राघव गिरीश के पावँ छूते हुए बोला “क्या उर्मिला को ….वहाँ रखोगे…जहाँ हर वक़्त तुम नशे में धुत्त पड़े रहते हो…कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी?” “मै  लूँगा…जानता हूँ आपको यकीन नहीं होगा लेकिन मैनें शराब पीना छोड़ दिया है…लगभग एक महिने से” “मैं नहीं मानता! किसे मूर्ख बना रहे हो?” “आप चाहें  तो आकाश से पूंछ लिजिये” “आकाश से..ओह्ह! वो कौनसा कम  है…मुझसे कहा घूमने जा रहा हूँ चाचा जी..देखो अभी तक पलटा ही नहीं…कौन जाने तुमने उसे भी नशे की आदत डाल दी हो…उसके माता-पिता को तो पहले ही उससे कोई उम्मीद ना थी…मुझे तो डर है कि कहीं वो खानदान का दूसरा राघव ना बन जाये..” गिरीश के इन शब्दों ने राघव के चेहरे की खुशी को गायब कर दिया “कम से कम तुम दो वक़्त की रोटी तो कमा रहे हो … आकाश तो वो भी नहीं” गिरीश ने आगे तंज कसा “भइया! आकाश शराब नहीं पीता …और बेफिक्र रहिये वो दूसरा राघव नहीं बनेगा…वो बेहद सुलझा हुआ और गंभीर है और हाँ फिलहाल बापस इसलिये नहीं आया कि उसने वहाँ एक शोरूम में मैनजर की जॉब कर ली है” राघव तनिक सपाट अंदाज में बोला, और ये सुनकर सबके चेहरे खिल गये। कि आकाश ने जॉब कर ली है “क्या ..आकाश जॉब कर रहा है….यकीन नहीं होता” गिरीश हैरत से बोले “सच है ये…खैर मैं घर में मरम्मत का काम

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 17

उस दिन आपने कपड़े किस रंग के पहने थे..याद कीजिये उस दिन लाल शर्ट पहनी थी आपने …अरे मैं तो ये भी बता सकता हूँ कि जिस दिन बुआ से पार्क में मिले थे उस दिन उनके चले जाने के बाद भी आप वहाँ करीबन 20 मिनट बैठे रहे थे… ये तो बुआ नहीं बता सकती ना मुझे ““कैसे जानते हो तुम ये सब?..मुझे साफ-साफ बताओ” गिरिराज आवेग में आते हुए बोले “वही तो…मुझे भी समझ नहीं आ रहा लेकिन मैनें ये सब कल रात देखा खुद अपनी आँखो से”“सालों पहले की घटनाएं? कल …पता भी है क्या बकवास किये जा रहे हो?” गिरिराज घोर हैरानी में सोफ़े से उठकर खड़े हो गए थे! 17. “आकाश! अरे भई सूरज सिर पर चढ़ आया है! कब तक सोओगे?” ये आवाज सुनकर आकाश ने धीरे से अपनी आँखे खोल दी। सामने खिचड़ी वालों वाले, आँखों पर चश्मा चढ़ाये हल्के गुस्से में राघव उसे दिखे। आकाश खुशी से चीख पड़ा “राघव चाचू ” खुद के लिये चाचू शब्द सुनकर राघव चौंक गया। “क्या हुआ कोई सपना देखा है क्या?  उठ जाओ शोरूम नहीं जाना? मैं कुछ खाने का इन्तजाम करता हूँ तुम्हारे लिये” सपना? तो क्या सपना देखा था मैनें ? राघव चाचा को उनके जवानी के दिनों में देख कर आ रहा हूँ और बुआ…क्या सच मे सपना ही देखा था मैनें, ऐसा सपना? “आकाश, अभी तक यहीं बैठे हो? समझ नहीं आता आखिर तुम इस कमरे में आते क्यो हो…देखो जमीन पर ही सो गये थे” बोलते हुए राघव ने आकाश को चाय का कप पकड़ा दिया। और कप पकड़ते हुए भी आकाश, राघव को किसी अचंभे की तरह देख रहा था “क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या?” आकाश को खुद की ओर घूरते देख राघव ने पूँछा “आप हमेशा मेरा ख्याल रखते हैं” आकाश भावुक होकर बोला और राघव से लिपट गया “अरे क्या हुआ..अच्छा अच्छा अब तैयार भी हो जाओ ” हँसते हुए राघव ने आकाश की पीठ थपथपा दी। *** “आकाश काम समझ आ रहा है ना तुम्हें?” आकाश के शोरूम में घुसते ही आकांक्षा ने पूँछा ” हाँ सब समझ आ रहा है” आकाश ने कहीं खोये हुए स्वर में जवाब दिया और अपनी सीट पर बैठ गया।  आकाश का ऐसा ठंडा रवैया देखकर आकांक्षा वहाँ से चली गयी। और आकाश  फिर अपने ख्यालों में खो गया क्या सपना था…सपना कैसे हो सकता है सो भी इतना लम्बा सपना!खासतौर से उन्हीं घटनाओं से जुड़ा हुआ कैसे हो सकता है ..कैसे सम्भव है ये…बुआ ने नागेन्द्र की हत्या की थी..एकदम सही किया ऐसे कमीनो के साथ ऐसा ही होना चाहिये..कितनी बहादुर हैं मेरी बुआ! और राघव चाचा कितने हैण्डसम और इंटेलीजेंट!  मेथ्स का टॉपर होना इतना आसान नहीं और कैसे भुल सकता हूँ की वो बहादुर भी थे क्या पीटा उस दुकानदार और सिक्योरिटी वालों को! “ (मुस्कुराते हुए) वाह। और एक मैं हूँ जो ना तो राघव चाचा की तरह हूं, ना ही बुआ की तरह बहादुर हूँ! ना ही पढ्ने में होशियार ..लेकिन मेरा मन इसे सपना मानने को तैयार नहीं और ये सब हकीकत भी नहीं हो सकता…उफ्फ कैसी उलझन है  …क्या करुँ ….. क्या करुँ…क्या कोई मदद कर सकता है इसमें मेरी…(अचानक चौंक कर) हां एकदम ठीक! दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। “दीदी,  अपना शोरूम सम्भालिये मुझे एक जरुरी काम से जाना है” आकाश वहाँ से भागता हुआ बोला “अरे लेकिन …” आकाँक्षा की बड़ी बहिन की आवाज को बिल्कुल अनसुना कर दिया आकाश ने। *** “सपने में यही जगह थी यही! लेकिन (एक बिल्डिंग की ओर देखते हुए) सिर्फ़ एक फ्लोर का घर बना हुआ था..  हो सकता है बदल गया हो” खुद में बुदबुदा ही रहा था आकाश कि नजर सामने खड़े दो लोगों पर गयी जो आपस में अखबार देखते हुए किसी हिसाब-किताब में व्यस्त थे। “काश ये ओ.एस.आर के शेयर मैनें दस साल पहले भी ले लिये होते तो आज मैं करोड़पति होता” उनमे से एक बोला “भई तब पैसे ही कहाँ होते थे” दूसरा बोला “सुनिये ….सुनिये” कहता हुआ आकाश उनके पास चला गया। “कहिये” “यहां इस बिल्डिंग की जगह एक छोटा सा मकान बना था! जिसमें एक लड़का रहता था आ …नाम था गिरिराज..क्या आप कुछ जानते हैं इस बारे में” “कौन हो तुम”उनमे से एक ने आश्चर्य से पूँछा “ज जी मैं उनके दोस्त का बेटा हूँ और उनके दोस्त जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं अपने अन्तिम समय में वो गिरिराज जी से मिलना चाहते हैं” एक ही साँस मे आकाश बोल गया! आखिर मुझे ये अजीव झूठी कहानी कहने की जरुरत क्या थी-आकाश अपना सिर खुजलाते हुए बुदबुदाया! “ओह्ह सुनकर दुख हुआ…” आकाश की कहानी काम कर गयी थी। “लेकिन ये तो काफी पुरानी बात है…लगभग 26 या 27 साल हो गये होंगे! तब गिरि यहां रहता था!” “जी वो हल्का मन मुटाव हो गया था ना…उन दोनो के बीच..तो” “हम्म हम्म समझ गया…चलो मैं खुद ही छोड़ आता हूँ आपको”  वो बोला और आकाश के साथ चलने लगा “तब बेचारे का दिल टूट गया था..पढ़ाई बीच में छोड़कर वो चला गया …बाद मे ये सब उसके मित्र सुरेन्द्र ने बताया मुझे, जब वो गिरिराज का सामान लेने आया। मेरे कमरे का किराया बाकी था गिरिराज पर, लेकिन कहता कैसे? इंसानियत भी कोई चीज़ होती है, लेकिन लगभग 4 -5 साल बाद गिरिराज  बापस आ गया! मेरे पैर छूकर बोला ‘इन्जीनियर बन गया हूँ’ और पगला मुझे किराया देने लगा”  चलते -चलते बोल रहे थे वो सज्जन और सच में उसकी आँखों के किनारे भीग गये! जो उन्होंने आकष से छिपा कर पोंछ लिये “ये लो आ पहुँच गए, वो काला दरवाजा …खटखटाओ तो जरा..आ ही गया हूँ तो मैं भी मिल लूँ ” उन सज्जन ने कहा तो आकाश ने आगे बढ़कर दरवाजा खटखटा दिया। आकाश अब भी असमंजस की स्थिति मे ही था। थोड़ी देर में दरवाजे पर हल्की सी आहट हुई और दरवाजा खुल गया अपनी आँखे बड़ी कर देख रहा था आकाश, वो गिरिराज ही थे। “अरे मास्टर जी! आइये …आइये” गिरिराज उस आदमी को देखकर बोले जो आकाश को लेकर आया था। “बस्स किसी और दिन आऊँगा फिलहाल तो इन महाशय को छोड़ने

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 16

16.  “अरे यार देखो तुम्हारे टकराने की वजह से मेरी बोतल छलक गयी और देखो कितनी सारी शराब फैल गयी” राघव के बोलने का आकाश पर कोई असर नहीं हुआ वो तो बस्स घूर रहा था! “ऐसे क्या घूर रहे हो..वो देखो कितनी शराब फैल गयी है” राघव ने जमींन की तरफ ऊँगली का इशारा किया तो आकाश ने देखा, मुश्किल से बोतल के ढक्कन जितनी शराब गिरी हुई थी ! वो मुस्करा गया! “पता है कितनी कीमती है ये ?” “कितनी?” “ऐसी-वैसी नहीं है ये बड़े बड़े ड्रम में भरकर इसे जहाजो में रखकर समुंद्र के रास्ते पूरे यूरोप में घुमाया जाता है “ “यूरोप में ….क्यों भला?” आकाश ने उत्सुकता से पूँछा “क्याआ यार इतना भी नहीं जानते ताकि इसमें इतना शानदार स्वाद आये …इस शराब में समुंद्र की खुशबू मिली हुई है…समझ रहे हो ना?” “जी मुझसे गलती हो गयी माफ कर दीजिये” आकाश खुशी से ओत प्रोत होकर बोला, वो राघव को इस रूप में देखकर अभिभूत था “हम्म किया…माफ किया” कहता हुआ राघव एक दीवार की मुंन्डेर पर बैठ गया “बहुत धन्यवाद,  माफ करने के लिये, वैसे बहुत कीमती थी आपकी शराब” आकाश भी मुस्कुराता हुआ उसके पास बैठ गया। “तो और क्या ऐसे ही…वैसे पहले कभी देखा नहीं तुम्हें यहाँ  …आज क्या पहली बार आये हो?” ” आ… वो…” क्या ही कहे आकाश कुछ समझ नहीं पा रहा था “हम्म समझता हूँ जरुर तुम्हारी जिंदगी भी किसी लड़की की वज़ह से उलझ गयी होगी! हैं ना?” “अ …” “.. ये लड़कियाँ भी जिससे प्यार करेंगी उसके लिये सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हो जायेंगी लेकिन, जिससे प्यार करेंगी उसी लड़के की बात नहीं मानेगीं …अरे क्या फर्क पड़ता है ना हो कोई राजी तो …लेकिन नहीं, रजामन्दी चाहिये तो मेरे माँ, बाऊ जी की (फिर कुछ सोचते हुए) क्या तुम्हें भी पीनी है?” “ना… नहीं ” अब भला अपने चाचा के साथ तो नहीं पी सकता आकाश ने ये सोचते हुए ना कर दी “तो क्या इस शराब की दुकान के बाहर जूस पीने आये थे” “अरे मैं तो इधर से  …बस्स ऐसे ही …वो” “अरे क्या यार! वो, मैं, ये कर रहे हो …समझ गया संकोच कर रहे हो… ये लो पी लो…बात कहने में आसानी होगी” बोलते-बोलते राघव ने बोतल से थोड़ी शराब आकाश के मुँह में उड़ेल दी! “अब अच्छा लग रहा है ना?”राघव ने पूँछा “ज …जी ….” आकाश ने झेंपते हुए जवाब दिया ! तो राघव जोर से हंसा फिर अचानक चुप हो गया और उसके चेहरे पर उदासी घिर गई ! “क्या हुआ राघव चा…” क्या कहकर बुलाना चाहिए इन्हें, आकाश थोड़ा कन्फ्यूज हो गया, तभी, राघव ने कहा  “तुम नाम कैसे जानते हो मेरा?” राघव के पूंछने पर आकाश सकपका गया। फिर खुद ही कुछ सोचते हुए बोला “ओह्ह जरुर अखबार में पढ़ा होगा और मेरा फोटो भी देखा होगा, है ना?” “जी ” आकाश ने जल्दी से बोलते हुए हामीं मे सिर हिला दिया “हम्म… ये पूरा शहर पहचानता है मुझे…मेथ्स का टॉपर हूँ मैं (दो उंगलियाँ दिखा कर) और दो साल से लगातार कॉलेज भी टॉप किया है मैनें ..पहली और दूसरी साल का ऐसा कौन सा मेथ्स का सवाल था जो राघव यूँ (चुटकी बजाते हुए) चुटकी में हल ना कर दे…लेकिन अब … अब देखो जब से उसे देखा है… एक सवाल…एक भी सवाल हल नहीं होता …एक भी नहीं .ना जाने क्या हो गया है ….सोचता था शादी कर ये ये चैप्टर बन्द कर दूँ ..और फिर अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान लगा दूँ ….लेकिन …कहाँ कुछ इतना आसान है… ना रेशमा शादी को मानती है ना माँ बाऊ जी समझते हैं …बताओ शराब ना पियू तो करुँ क्या? (फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद) सुनो तुम्हारा नाम क्या है” “…अ …आ” आकाश फिर कन्फ्यूज हो गया! ” क्या यार इतना क्या सोचते हो…खैर ये बताओ तुम कितना पढ़े हो?” “मैं क्या ही पढूंगा आपकी तरह ना तो मैं टॉपर हूँ ना ही किसी काम में माहिर, मेथ्स तो बहुत दूर की बात है…मुझे तो इतिहास, भूगोल, अग्रेंजी, साहित्य कुछ भी समझ नहीं आता” “हम्म… मतलब आर्ट्स के स्टूडेंट हो?” “अरे काहे का स्टूडेंट…पाँच साल से बी.ए.जैसी परीक्षा पास नहीं कर पा रहा हूँ ” आकाश बहुत हताशा के स्वर मे बोला “क्या…क्या कहा …पाँच साल से बी. ए.की परीक्षा हा हा हा ओह्ह्ह्ह हा हा हा हा ओह हा हा” राघव दिल खोल कर हँसा कितने ही लोग आकाश पर हँसे थे, लेकिन आज राघव का हंसना बुरा तो बहुत दूर की बात रही बल्कि एक सुखद  एहसास ही दे रहा था आकाश को, वो राघव को हँसते देख खुद भी मुस्कुरा रहा था। ” हा हा हा “ कितने हेन्ड्सम दिख रहे हैं चाचा जी-आकाश, राघव को हँसते हुए देखकर सोचने लगा “समझ गया तुम्हारी हालत” “अच्छा ! क्या ?” “ये कि तुम ये परीक्षा पास करना ही नहीं चाहते..कोई इंटरेस्ट जो नहीं है तुम्हारा और ..ये परीक्षा तुमसे दवाव में करवायी जा रही है.. अब जब मन ही नहीं है तो तुम पढ़ ही नहीं पा रहे हो तो, भला पास कैसे होओगे? ..बोलो सही कह रहा हूँ ना?” “हुम्म” आकाश ने बहुत प्रभावित होकर हामी में सिर हिला दिया, शायद पहली बार उसकी हालत का किसी ने सही आकलन किया था। “और मना इसलिए नहीं कर नहीं पा रहे क्योंकि अपनों से लड़ना सबसे मुश्किल काम है…ना तो आप उन्हे छोड़ सकते हैं…ना ही उनके खिलाफ जंग लड़ सकते हैं ! बस्स ऐसे ही घुटते रह सकते हैं…ये माता- पिता भी हमें पालते हैं बड़ा करते हैं…खूब प्यार करते हैं और जब हम बड़े हो जाते हैं….तो वो इस सब की कीमत बसूलते हैं.. .बच्चो की खुशी के लिये अपनी खुशी कुर्वान् करने का उनका दावा दहेज की चमक या खुद की आत्मसंतुष्टी के आगे इतना फीका पड़ जाता है कि बच्चों की आँखो के आँसूं और खुशी कुछ नहीं दिखता इन्हें……हम दोनों की कहानी लगभग एक जैसी ही है…तुमसे कोई गहरा नाता लगता है मेरा” राघव की बात को बड़े ध्यान से सुन रहा आकाश इस अन्तिम बात से चौंक गया और उसे आश्चर्य से देखने लगा! “ऐसे क्या देख रहे हो…तुम्हें क्या

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 15

15. “हे भगवान! अब मैं क्या करुँ?” आकाश घबराकर मन ही मन बोला, और फिर से अन्दर की ओर झांककर देखने लगा! ” ये तो बड़ा अच्छा हो गया रास्ते का काँटा खुद -ब-खुद हट गया…तो अब कैसी देरी?” नागेन्द्र बेशर्मी से बोलते हुए उर्मिला के और नजदीक खिसक आया। “हे ईश्वर ये बुआ चुप क्यों हैं…नहीं …नहीं जो होगा देखा जायेगा मैं अब खुद को नहीं रोक सकता” गुस्से में बुदबुदाता आकाश घर में घुसने के लिये आगे बढ़ा ही था कि अन्दर के नजारे ने उसे खुद को रोकने के लिये मजबूर कर दिया। अब तक बुत सी बनी उर्मिला ने फुर्ती से किचिन में रखा चाकू उठा लिया था और पूरी ताकत से पीछे खड़े नागेन्द्र पर चला दिया। “आह्ह” नागेन्द्र जोर से चीखा। उर्मिला पीछे की ओर पलटी और गुस्से में उसने इस बार पूरी ताकत से पूरा चाकू का सिरा नागेन्द्र के पेट में घुसा दिया….दर्द और आश्चर्य से भरा नागेन्द्र, उर्मिला को किसी अजूबे की तरह देख रहा था। “क्या कहा था नाजुक बदन …नाजुक नहीं हूँ… मैं नहीं हूँ नाजुक…ले देख” गुस्से में भरी उर्मिला तेज आवाज में बोली और नागेन्द्र की उसी चोटिल जगह पर उसने दूसरी बार चाकू घोंप दिया “पागल हुई है क.. क्या ..आहह” नागेन्द्र लड़खड़ाते शब्दों में बोलते हुए उर्मिला की ओर लपका और जवाब में उर्मिला ने इस बार तीसरा बार नागेन्द्र की उसी चोट पर कर दिया…”आह्ह…छोडूंगा नहीं तु…झे ” गुस्से में भरा नागेन्द्र चीखता हुआ नागेन्द्र उर्मिला को पकड़ने के लिये आगे बढा लेकिन दर्द की वजह से  लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा।  फिर गुस्से में भरी उर्मिला जैसे खुद के आपे से बाहर हो गयी…और एक के बाद नागेन्द्र पर बार करने लगी…और तभी रुकी जब नागेन्द्र का शरीर सिथिल पड़ गया…जब उसके शरीर ने कोई प्रतिक्रिया करना बन्द कर दिया …तो एकाएक जैसे उर्मिला को होश आया …उसने चाकू एक तरफ फेंक दिया और वहीं नागेन्द्र की लाश के पास बैठ गयी..   फटी आँखो से वो नागेन्द्र की लाश को ऐसे देख रही थी जैसे ये कृत्य उसने किया ही ना हो! उधर, बाहर खड़ा आकाश भी खुद के मुँह पर हाथ रखे अतिरिक्त रूप से आँखे खोले सकते में खड़ा था। उर्मिला, नागेन्द्र की लाश को देख रही थी और आकाश, उर्मिला को… कुछ पल सब एकदम शान्त रहा सिवाय तेज तूफानी हवा के ….बस्स वही शोर मचा रही थी। और पानी की जब एक बड़ी बूंद आकाश के हाथ पर गिरी तब वो चौंक कर होश में आया  “ओह्ह बेचारी बुआ…मुझे उनकी मदद करनी चाहिये कैसे करुँ?…कैसे ? ” इधर उधर देखते हुए उसकी नजर पास ही खड़े एक सब्जी के ठेले पर गयी …और वो कुछ सोचता इससे पहले ही एक लड़के ने वो अपना आखिरी सामान उठाते हुए ठेले को उर्मिला के घर के सामने खड़ा कर दिया और उस पर रखी बोरी उठायी और यूं ही हवा में उछाल दी…जो उर्मिला के आँगन मे जाकर गिरी “हाहाहा” लड़का मौसम के सुहाने होने से खुश हुआ और भागता सा वहाँ से चला गया। बोरी के गिरने से सकते में बैठी हुई उर्मिला चौंक गयी फिर हरकत में आते हुए उर्मिला ने बोरी को कुछ पल देखा और फिर उसने बोरी उठायी और नागेन्द्र की लाश को बोरी में डालने लगी!  ये बड़ी मशक्कत का काम था लेकिन थोड़ी देर की भरसक कोशिश के बाद उसने लाश को बोरी में डाल लिया था फिर उसका सिरा बान्ध कर वो बोरी को खींचते हुए घर के बाहर ले आयी और सामने खड़े ठेले पर रख दिया, उसने खुद को एक कम्बल से लपेटा और ठेले को धकेलते हुए ले जाने लगी! “शाबाश ये हुई ना बात” आकाश उत्साह में भरा धीरे से बोला ….और उर्मिला के पीछे चलने लगा। लगभग आधे घंटे भर की कवायद के बाद उर्मिला उस ठेले  को गालियों और फिर सड़क से निकालती हुई एक सुनसान जगह ले आई थी, जो श्मशान था.. ………….(पार्ट -1का हिस्सा) और अब मूसलाधार  बारिश  होने लगी थी…धुप्प अंधेरे में अब मात्र बिजली चमकने का ही सहारा था…उर्मिला ने अंधेरे में ही इधर उधर देखने की कोशिश की..बिजली चमकी..और बिजली की चपलता से ही उसने अपने ऊपर पड़ा कम्बल उतार फेंका …. ठेले के नीचे बनी एक लकड़ी की पट्टी पर रखा फावड़ा उसने उठाया और बड़े सधे कदमों से कुछ दूरी नापी …. बिजली फिर चमकी और कब्रिस्तान का वो माहौल उसे डरा गया..अन्धेरे में उसे आस पास की कँटीली झाड़ियां और पेड़ खुद के पास सरकते से महसूस हुए, सांय सांय करती रात में कई आँखे खुद की ओर घूरती महसूस हुई..उसने खुद का सिर झटका और खुद को मजबूत किया फिर…  उसने खड्डा खोदना शुरू कर दिया…बार- बार बिजली चमकने से उसे खड्ढे की गहराई दिख जाती…ना जाने कहाँ की असीम शक्ति उसके हाँथो में आ गयी थी, वो पागलों की तरह जमीन पर फावड़ा चला रही थी…..अब उसके नाजुक हाथ छिल गए थे…खून बहने लगा था उनमें से ….और घण्टों की कड़ी मेहनत के बाद जब फिर बिजली चमकी तो इस बार वो खड्ढे की गहराई को देख आश्वस्त हो गयी…उसने फावड़े को एक ओर फेंक दिया फिर हाँफते हुए ठेले को ठेलते हुए उस खड्ढे तक लायी और बोरे का सिरा खड्ढे की ओर झुकाकर सिरे पर बंधी गाँठ को खोल दिया..’धम्म’ की आवाज के साथ लाश उस खड्ढे में गिर पड़ी, बिजली फिर चमकी और इस दूधिया रोशनी में उर्मिला के चेहरे पर नफरत और घृणा के भाव स्पष्ट रुप से थे..वो हाँफती सी फिर उठी और मिट्टी से उस खड्डे को भरने लगी थकान के कारण कई बार गिर पड़ती, लेकिन जल्दी से उठती और अपने काम पर लग जाती. बहुत देर की मशक्कत के बाद ये काम खत्म हुआ…काम खत्म कर उसने अपना चेहरा आसमान की ओर उठा दिया जिस पर तेज़ पानी की बूंदें गिरने लगी जो उसे आराम का अनुभव दे रही थीं, वो कुछ देर वैसी ही बैठी, फिर उठी और उसने पानी के तालाब में उस ठेले को धकेल दिया..और एक दिशा में दौड़ गयी..उसे इस बात का भान तक ना था कि  आकाश लगातार उसके साथ बना रहा है… जैसे ही उर्मिला वहाँ से गयी आकाश ने कोई कमी

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 14

आकाश को ऐसा लग रहा था…जैसे किसी सुरंग के रास्ते पत्थरों के ऊपर से उसे घसीटते हुए कोई तेजी से उसे लिये जा रहा हो…और ये क्रम कुछ पल ऐसे ही चल रहा था…और कुछ मिनट चलता रहा। आकाश निढ़ाल हो गया था। और…फिर, अचानक सब शान्त हो गया आकाश का शरीर एकाएक ठहर गया …उसे कुछ पल तक तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि वो रुक गया है,  वो डर से आँखें बन्द किये पड़ा रहा….फिर पीठ पर कुछ ठंडा और गिज़गिजा सा एहसास हुआ और उसने धीरे से आँखे खोली….धुप्प अन्धेरा  कुछ नज़र नहीं आ रहा था।  खुद की पीठ पर ठंडे एहसास ने उसे उठने को मजबूर कर दिया ….’अह्ह क कहाँ हूँ मैं’ वो खुद में ही बुदबुदाया…फिर इधर-उधर हाथों  से टटोला लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था। ‘क्या मर चुका हूँ मैं?..और अगर मर चुका हूँ तो क्या है ये ? वो डर से फिर बुदबुदाया तभी आकांक्षा का चेहरा उसकी आँखो के सामने घूम गया ‘तो क्या आकांक्षा से कभी भी नहीं  मिल पाऊंगा मैं? ये ख्याल आते ही वो वो जोर से चीखा ‘नहींssss…” ‘###’ उसी वक्त ऐसा लगा कोई बिल्कुल पास खड़ा होकर जोर- जोर से साँस ले रहा हो “क….कौन?” बोलने के साथ ही वो पीछे की ओर घूम गया और जवाब में हवा का एक तेज झोंका उसके पास से गुजर गया ‘ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ‘की एक तेज आवाज हुई और ऐसा लगा जैसे कोई एक ओर से दूसरी ओर सरपट भागा हो….आकाश का दिमाग और शरीर सुन्न की अवस्था में ही थे अब तक.. और अब तो वो पागलों की तरह अन्धेरे में ही आँखे फ़ाड़े देखने की कोशिश कर रहा था। तभी ना जाने कहाँ से एक हल्की रोशनी उस जगह नजर आयी और उस रोशनी की वजह से ही वो बड़ी परझायीं अब आकाश को दिख गयी… वो निश्तेज आँखो से उसे ही देख रही थी “क कौ …न हो तुम?” लाख डर के बाबजूद भी वो पूँछ बैठा और जवाव में उस परछाईं ने अपना एक हाथ एक दिशा में उठा दिया, आकाश की आँखे उसी दिशा में घूम गयी जहाँ मिट्टी के ढेर पर एक फावड़ा रखा था ‘फावड़ा’ वो आश्चर्य से धीमी आवाज में बुदबुदाया! इतने में उस परछायीं के चेहरे पर रोष के भाव उभरे और वो आकाश की ओर बढ्ने लगी…” ..न …नहीं …नहीं”  आकाश अपने कदम पीछे की ओर् बढ़ाते हुए डर से बुदबुदाया  लेकिन वो हवा में रेंगती सी उसकी ओर बढ़ती जा रही थी।..अब भी अन्धेरा था ..लेकिन बेहद हल्की सी रोशनी और उस पर ही नजर जमाए रखने का नतीजा था शायद कि वो साफ नजर आ रही थी आकाश को। दीवार आ गयी थी और अब आकाश के कदम पीछे नहीं बढ़ पा रहे थे और अब तक वो परछायी बिल्कुल पास आ गयी थी … ‘मुझे इसी क्षण मौत क्यों नहीं आ आती…’-आकाश का कलेजा मुँह को आ गया था ..एक मुर्दे के सड़ने जैसी सड़ाध..  और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी ….दोनो का एहसास एक साथ हुआ उसे….फिर उस छाया ने अपना काला और सूखा हुआ हाथ आकाश के हाथ को पकड़ने के लिये आगे बढ़ाया तभी… “आह्ह्ह्ह्ह” वो पूरी ताकत से चीखा और बेसुध होकर गिर पड़ा। *** आकाश को अपने चेहरे पर एक तेज रोशनी मेहसूस हुई और उसने आँखे खोल दी…धूप खिली थी…आसमान साफ था …कुछ पंछी उड़ रहे थे…उसने लेटे-लेटे ही अपने दाहिनी ओर देखा प्लास्टर उघड़ी  एक दीवार दिख रही थी! जो बहुत पुरानी हो गयी थी….फिर बायीं ओर देखा एक किलेनुमाँ किसी घर की दीवार थी…ऐसा लगता था जैसे किसी ने पुराने किलो से प्रभावित होकर अपना घर वैसा ही बनाने की कोशिश की हो और इस प्रयास में घर का नक्शा ही खराब कर दिया हो..और उसे अचानक तेज बदबू मेहसूस हुई ‘ये बदबू कहां से आ रही है’ सोचते हुए उसने नजर खुद के पास नजर डाली..एक गन्दा नाला बह रहा था ये उसकी बदबू थी…और अब खुद को देखा …वो उसी नाले के पास लेटा था ‘हें मैं यहां क्या कर रहा हूँ …?”ये ख्याल आते ही उसे रात वाली घटना याद आ गयी और वो फुर्ती से उठ कर खड़ा हो गया… दोनों तरफ दीवारों से घिरी ये एक संकरी सी गली थी “कहाँ हूँ मैं …ये सब हो क्या रहा है मेरे साथ” उसने खुद का सिर पकड़ लिया…तभी एक कागज उड़ता हुआ ठीक उसके पैरों के पास गिरा “भैया, क्या वो कागज उठा देंगे…मेरा प्रश्न पत्र है” खूबसूरत सोलह -सत्रह की एक लड़की ने आकाश के पैरों कर पास पड़े एक कागज की ओर इशारा किया…और अब चौकनें की बारी आकाश की थी! वो पागलों की तरह आँखे खोले उस लड़की को देखे जा रहा था। ‘उर्मिला बुआ….’ हैरत से आकाश के मुँह से निकला “उठा देंगे क्या?” वो फिर से बोली….आकाश ने झुक कर खुद के पैरों के पास पड़ा पेपर उठाया और उस लड़की की ओर बढ़ा दिया “थैंक यू ” वो मुस्कुरा कर बोली तभी एक लड़का उस लड़की के पास आया और बोला  “चले उर्मी?” और वो लड़की उस लडके का हाथ पकड़ कर वहाँ से चली गयी। “ये तो ….ये तो गिरि है…..हां यार ये गिरि है…ठीक वैसा जैसा मैने इसे इसके जवानी के दिनों वाले फोटो में देखा था….अरे यार ये हो क्या रहा है” आकाश ने हैरत से अपने सिर के बाल पकड़कर खींच लिये। फिर जब उन दोनों को वहाँ से जाते देखा तो पीछे-पीछे हो लिया। गिरिराज एक ढ़ीला-ढ़ाला पेंट और शर्ट पहने था जबकि उर्मिला हरे रंग का कुर्ता सलवार जिस पर उसने गुलाबी चुनरी ओढ़ रखी थी। “तुम्हें नहीं लगता उर्मी कि हमें अपने घरवालों को बता देना चाहिये” गिरिराज बोला “नहीं गिरि, मुझे बहुत डर लगता है” उर्मिला घबराकर बोली “डर किस बात का …हमनें कोई चोरी की है क्या? प्रेम करना कोई पाप है क्या? और फिर आज नहीं तो कल पता लगना ही है” “क्या हम कुछ और दिन नहीं रुक सकते गिरि? “ “दिनो की क्या बात करती हो उर्मी मैं तो सात जन्म रुक सकता हूँ …लेकिन तुम्हारे घरवाले… वो नहीं रुकेंगे ना …मैने सुना है तुम्हारे राघव भैया कोई लड़का देख रहे हैं

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 13

13. “कौन हो तुम?”नीरज ने जमीन पर पड़े-पड़े ही उससे पूँछा जो गुस्से में फुफकारता उसके सामने खड़ा था, और जवाव में उसने एक जोरदार लात नीरज के मुँह पर दे मार दी जिससे नीरज कराह उठा ! “अरे वो तो छोटे मालिक हैं ना …” थोड़ी दूरी पर खड़ा कोई नीरज को देख कर तेज आवाज में बोला और आस-पास खड़े तीन-चार लोग उसी ओर दौड़ पड़े और नीरज को पीटने वाले लड़के को पकड़ लिया। “रुको कोई उसे कुछ नहीं करेगा” नीरज ने उन लोगों को हुक्म दिया इतने में एक आदमी ने आगे बढ़कर नीरज को उठने में सहारा दिया और उन लोगों से बोला ” इसे पुलिस स्टेशन ले जाओ…(फिर नीरज से ) और छोटे मालिक आपको इसी वक़्त घर चलना होगा” “नहीं …मुझे इससे बात करनी है” नीरज गुस्से में बोला “समझने की कोशिश कीजिये, इलेक्शन नजदीक हैं अगर  ऐसे हुलिये में किसी ने आपकी एक तस्वीर भी खींचकर अखबार में निकाल दी, तो बड़े मालिक की छवि पर असर पड़ सकता है…घर चलिये अपना हुलिया ठीक कर लिजिये… फिर मैं खुद आपको पुलिस स्टेशन लेकर आऊँगा …मौके की नजाकत समझिये” नीरज के पिता के बेहद नजदीकी इस आदमी ने जब नीरज को ये कहा तो नीरज से कुछ कहते ना बना और वो चुपचाप जाकर कार में बैठ गया। और वो तीन आदमी उस लडके को नजदीकी पुलिस स्टेशन ले गए। “हिम्मत है तो छोड़कर दिखाओ मुझे …साले के दाँत ना तोड़ दूं तो कहना…अबे भागता कहाँ है” वो लड़का चीखते हुए बोला। *** “साला अमीर बाप की बिगड़ी औलाद…छोड़ो मुझे मार डालूंगा उसे” वो पुलिस स्टेशन में घुसते हुए भी जोर से चीख रहा था …सिपाहियों ने उसे जेल ले जाकर बैरक में डाल दिया। इतने में ही उसका फोन बजा “हैलो, पता है यहाँ क्या हुआ है?”उधर से आकाश की आवाज आयी “मेरे भाई पहले तू सुन कि यहाँ क्या हुआ है, तेरा भाई जेल में है” “क्या ? जेल में …जेल में क्या कर रहा है तू?”आकाश हैरत से बोला “पिकनिक मनाने आया हूँ “ “रोहित! क्या बकवास किये जा रहा है यार तू” “शुरुआत किसने की ?” “ठीक है मेरी गलती… अब ये बता हुआ क्या?” “वो कमीना… वो वंटी “ “कौन वंटी?” “अरे वही विधायक का आवारा लड़का और कौन…तुझे बताया तो था उसके बारे में” रोहित खीजा “ओह्ह हाँ याद आया…वो जो तेरी दीक्षा के साथ घूम रहा था” आकाश याद करते हुए बोला “हाँ वही कमीना …पहले वो दीक्षा के साथ घूम रहा था और अब…अब राई के साथ… “क्या?” आकाश हैरत से बोला “हाँ “ “यकीन नहीं होता .. “ “मुझे कुछ हो जाये, तो संभाल लेना, क्योंकि उसका खून तो मैं करके ही रहूँगा ” रोहित दाँत पीसता हुआ बोला “पागल हुआ है क्या? कोई भी पागलपन मत करना, मैं आ रहा हूँ “ “तू? तुझे गढ़े मुर्दे उखाड़ने से फुर्सत मिले तब ना…”रोहित फिर खीजा “मैनें कहा ना आ रहा हूँ,…मैं इसी वक़्त यहाँ से निकल रहा हूँ “ “ठीक है” कहकर रोहित ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया। *** आकाश और नीरज के पुलिस स्टेशन पहुँचने का समय एक ही रहा। इस वक़्त तीनों ही एक दूसरे को घूर रहे थे शायद इस असमंजस में कि बोलने में कौन पहल करे। रोहित, नीरज को देखकर दाँत पीस रहा था, वहीं नीरज उसे ऐसे देख रहा था जैसे देखने भर से याद आने वाला हो कि वो है कौन, और आकाश एक बार रोहित को देखता तो दूसरी बार नीरज को… “तुम ही बँटी हो ?”आखिरकार आकाश ने पहल की “हाँ …लेकिन आपको मेरा ये नाम कैसे पता?” नीरज आश्चर्य  से बोला “क्यों ? तू मिनिस्टर है क्या साले?”रोहित गुस्से में चीखा फिर आकाश की ओर देखकर बोला “मुझे बाहर निकलवा यहाँ से फिर देखता हूँ इसे” “राई को कहाँ लेकर गये थे तुम?” आकाश ने प्रश्न दागा “कहीं भी लेकर जाऊँ मेरी मर्जी…तुम लोगों को क्यों बताऊँ? और एक मिनट तुम लोगो का राई से क्या कनेक्शन है? और इसने …मुझे मारा क्यों?” नीरज भी जोर से बोला “मार ही तो नहीं पाया तुझे…निकलने दे यहाँ से फिर देख …अरे आकाश इससे बहस मत कर मुझे बाहर निकलवा यहां से यार” “एक मिनट! चुप रहेगा” आकाश ने रोहित को चुप कराया और नीरज से बोला “हम राई के भाई हैं …अब बोलो कहाँ ले गये थे तुम उसे…” “ओह्ह… तो आप लोग राई के भाई हैं…”नीरज ने आश्चर्य और राहत की मिली-जुली प्रतिक्रिया दी “कुछ पूछा गया है तुमसे?”आकाश ने चुभती नजर से नीरज की ओर देखते हुए कहा “राई को मैनें कॉलेज से पिक करके घर छोड़ा…” “क्यों …किसलिए…तू होता कौन है उसे घर छोड़ने वाला?”रोहित चीखा “एक मिनट मैं बात कर रहा हूँ ना” आकाश ने रोहित को फिर रोका “जूठ नहीं कहूँगा …मैं राई से प्यार करता हूँ ..आप लोग उसके भाई हैं..जैसे चाहे आजमा लें मुझे…मैं हर तरह से उसके लायक हूँ और इसे साबित करने के लिये कोई भी परीक्षा देने के लिये तैयार हूँ ” नीरज अपना बोलने का लहजा नर्म करते हुए आत्मविश्वास से बोला “तेरी इतनी हिम्मत…मार डालूंगा मैं इसे …निकालो मुझे यहां से बाहर” रोहित बैरक की सलाखों को हिलाते हुए बोला। “शर्म नहीं आती आं …एक तरफ राई से प्यार का रिश्ता बता रहा रहे हो और दूसरी तरफ दीक्षा के साथ घूमते फिरते हो..मैं तो ये सोचकर हैरान हूँ .. इतनी बेशर्मी तुम जैसे लोगों में आती कहाँ से है… आकाश गुस्से से बोला “आप दीक्षा को कैसे जानते हैं?” नीरज ने हैरानी से पूँछा “अरे यार..इसको कैसे जानते हैं?उसको कैसे जानते हैं?…सुनो कान खोलकर …दीक्षा इसकी गर्लफ्रेंड है ये जो दिख रहा है ना इस जेल के अन्दर इसकी…राई इसकी बहिन है..और ये दोनों कजिन है मेरे..और तू इस शहर के विधायक का बेटा है तो तुझे लगता है तू कुछ भी करेगा मतलब तू एक साथ दो-दो लड़कियों को धोखा दे…. “रुक जाइये..क्या बोलते जा रहे हैं आप” नीरज ने आकाश को बीच में ही टोक दिया “ “दीक्षा मेरी बहिन है…”नीरज थोडी तेज में बोला तो रोहित और आकाश ने हैरत से एक दूसरे की ओर देखा “हें …लेकिन वो तो उस पी जी में रहती है, उसने कभी

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:12

12. आकांक्षा आज भी अपने शोरुम के बाहर खड़ी रोड की ओर देख रही थी, “अरे आकाश” आकाश पर नजर पड़ते ही उसने पूँछा! “हैलो…” आकाश के चेहरे पर भी मुस्कान खिल गयी “तुम यहाँ कैसे?” “बस्स ऐसे ही..यहाँ से गुजर रहा था  .. तुम्हें देखा तो इधर आ गया.” ” ओह्ह…अच्छा”  “क्या हुआ कोई प्रॉब्लम है क्या?” आकांक्षा का गंभीर दिख रही थी तो आकाश ने पूँछ लिया  “नहीं…. प्रॉब्लम तो कुछ नहीं बस्स दीदी को एक इस शोरुम के लिये अच्छा मैनेजर चाहिए, कोई है क्या तुम्हारी नजर में” आकांक्षा के ये बोलते ही आकाश के मन में खुशी की लहर दौड़ गयी और वो खुद से ही मन ही मन बाते करने लगा, क्या करुँ मैं ही हां कर दूँ?  क्या यार इतनी छोटी जॉब करेगा?  सुना नहीं लोग क्या कहते हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, और फिर ये भी सोच बिना किसी बहाने के तू आकांक्षा को देख सकता है, उससे बात कर सकता है…और जब बात करने का मौका मिलेगा तो तू उसे जानेगा वो तेरे बारे में जान पायेगी…और फिर क्या पता दोस्ती भी हो जाये! “कहाँ खो गये ” आकांक्षा ने उसे ख्यालो में खोये देखा तो पूंछा “नहीं कहीं भी तो नहीं, आ… कैसा मैनेजर चाहिये आपको?” “कैसा क्या… एक्सपीरियेंस हो उसे, तो अच्छी बात है  ईमानदार हो बस्स और क्या…”आकांक्षा एक कन्धा उचकाते हुए बोली “अगर कोई बिना एक्सपीरियेंस वाला हो लेकिन ईमानदार हो तो?” “हां.. हाँ …चलेगा, कोई है क्या?” “हाँ “ “कौन है” “यही सामने खड़ा है” बोलते हुए आकाश ने अपना सिर थोड़ा नीचे झुका दिया “तुम?” आकांक्षा ने हैरानी से पूँछा तो आकाश ने सहमति में सिर हिला दिया “तुम सच में मैनेजर की जॉब करोगे?” आकांक्षा हँसते हुए बोली “हम्म” “ओके ग्रेट, आओ फिर दीदी से मिलवा देती हूँ…”कहते हुए आकांक्षा शोरूम के अन्दर चली गयी और उसके पीछे-पीछे आकाश। “दीदी, इनसे मिलो ये है आकाश आपके शोरूम के नये मैनेजर” आकांक्षा ने अपनी बड़ी बहन से आकाश को मिलाते हुए कहा “कौन हैं ये? तुम जानती हो इन्हें?” “हाँ दीदी” “कैसे?” “मैने आपको बताया था ना वो गाउन …इन्हीं ने खरीदा था, और मुझे उस दिन कॉलेज इन्हीं ने छोड़ा था” “ओह्ह अच्छा..इससे पहले कहाँ काम किया है आपने” “जी वो वो मैं”आकाश कुछ बोलने की कोशिश कर ही रहा था कि “ओह्हो दीदी, आकाश अच्छे से संभाल लेगा, मैं सब सिखा दूँगी इसमे है ही क्या बस्स सब कुछ कम्प्यूटर सिस्टम में रिकॉर्ड करना होता है (फिर आकाश की ओर देखकर) यहाँ बैठो आकाश (आकांक्षा ने आकाश को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया, आकाश कुर्सी पर जैसे ही बैठा, आकांक्षा उसे समझाने लगी) ये देखो आकाश ये है हमारा सिस्टम, जैसे ही इसमें लॉगिन करोगे,  यहाँ ये प्रोडक्ट्स के कोड हैं जैसे ही प्रॉडक्ट का कोड स्कैन करोगे यहाँ क्लिक करते ही  (आकांक्षा समझाते हुए आकाश के थोड़ा पास तक खिसक आयी जिससे उसके बाल आकाश के चेहरे को छू गये और जैसे ही ये हुआ आकाश आँखे खोले खोले ही कहीं खो गया .. सड़क पर तेज दौड़ती लम्बी सी कार जो ऊपर से खुली हुई थी…तेज स्पीड में सड़क पर दौड़ रही थी… बहुत सुन्दर हवा चल रही थी, वो कार चला रहा था, और आकांक्षा अपने खुले बालों को उंगलियों से संभालते हुए उसके पास बैठी थी और बहुत खुश थी। उसके बाल उड़- उड़कर आकाश के चेहरे को छू रहे थे। वाह कितने सुन्दर पल .. “समझ आ रहा है ना…आकाश ?” आकांक्षा ने पूँछने के साथ ही आकाश की ओर देखा, जो आँखे बन्द किये मुस्कुराता दिखा “आकाश…आकाश” इस बार थोडी तेज आवाज आकांक्षा ने  कहा तो आकाश ने आँखे खोल दी “क्या हुआ…कहाँ खोये हुए हो?” “कहीं भी तो नहीं….” आकाश संभलते हुए बोला “तुम आँखे बन्द किये बैठे थे” आकांक्षा चिढ़ कर बोली “वो आ मैं समझ रहा था..” आकाश बात संभालते हुए बोला “आँखे बन्द करके?” “ज जी…ये मेरे समझने का तरीका है” आकाश कुर्सी पर आत्मविश्वास से बैठते हुए बोला “अच्छा…?” “ओके, अच्छा बताओ कितनी सैलरी लोगे?” आकांक्षा मुँह विचकाते हुए बोली “जितनी ठीक समझो दे देना…मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं” आकाश मुस्कुराता हुआ बोला “तो कल से जॉइन कर लो फिर” “जी” बोलकर आकाश उठा और खुशी से झूमता हुआ बाहर निकल आया। *** “चाचा जी….” राघव घर से निकल ही रहा था कि आकाश ने आवाज देते हुए उन्हें रोक दिया। “हाँ आकाश …बोलो” “वो चाचा जी, ये बताना था कि मैनें एक जॉब जॉइन कर ली है। “क्या? कब? कहाँ?”राघव आश्चर्य मिली खुशी के साथ बोला “यही पास ही मार्केट में …है तो छोटी सी है स्टोर मैनेजर की जॉब….लेकिन.. “नहीं नहीं बिल्कुल नहीं, ये बिल्कुल छोटी जॉब नहीं हैं”राघव  खुशी से बोलते हुए आकाश के पास आये और उसे गले लगा लिया  “जानते हो? तुम्हारे पिता को तो तुमसे इतने भर की उम्मीद भी नहीं थी, जब भाई साहब सुनेंगे तो बहुत खुश हो जायेंगे…मैं तो कहता हूँ जल्दी से उन्हें ये खबर सुनाओ” खुशी से बोलते हुए राघव ने आकाश को कहीं खोया हुआ देखा तो उसका कन्धा थपथपाते हुए आगे कहा” क्या सोच रहे हो? “कुछ नहीं….बस्स यही कि क्या इतनाभर होना काफी है? “ “बिल्कुल नहीं…ये बस्स शुरुआत है यहाँ कतई ढ़हरना मत, पहली सीढ़ी पर कदम इसलिये रखते हैं ताकि ऊपर तक पहुँच सकें …समझें” “क्या आप खुश हैं चाचा जी?” “बेशक। बताओ क्या चाहिये मुझसे…चलो कहीं बाहर खाना खायें?” “नहीं “ “तो बताओ क्या चाहिये तुम्हें” “बस्स मन में कुछ जिज्ञासा है अगर आप शांत कर सकें तो…”आकाश कुछ सोचते हुए बोला “हाँ हाँ तो बोलो ना…अगर मुझे पता होगा तो जरुर बताऊंगा” “सिर्फ़ आप को ही पता है …” “अच्छा…पूंछो भई ….” “बुआ की शादी क्यों नहीं हुई?” “कमाल है, ये प्रश्न तो आजतक हम भाईयों ने भी आपस में नहीं पूँछा …तुम्हें अचानक क्या सूझा?” राघव बनावटी मुस्कान के साथ बोलते हुए आँगन में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया “अब जिज्ञासा का कोई निश्चित मापदंड तो नहीं है चाचा जी”  आकाश भी ये बोलता हुआ राघव के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया “हम्म्म्म ये तो है…अब भई हमने उसकी शादी की कोशिश की थी…घर में मां बाऊ जी

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