सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 22
___________________________________________ 22. “क्या कहा तुमने अभी?” राघव ने आकाश के बिल्कुल पास आकर तेज आवाज में पूँछा। आकाश ने असमंजस की स्थिति में गिरिराज की ओर देखा। लेकिन गिरिराज को खुद समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या बोलें! “तुमने रेशमा के बारे में अभी-अभी क्या कहा?” राघव ने फिर से पूँछा लेकिन आकाश ने कोई जवाब नहीं दिया ! “मुझे जबाव दो आकाश …बोलो…कहाँ है रेशमा?” राघव ने इस बार आकाश के कन्धे झिंझोड़ दिये “वो नहीं रहीं….” वो धीरे से बोला “क्या?…क्या बकते हो…मैं नहीं मानता…झूठ है ये” राघव एकदम डूबी हुई आवाज में बोला! “आपको मानना होगा चाचा जी…पहले ही आप बहुत भ्रम में रह चुके हैं, अब आप को सच स्वीकार कर लेना चाहिये” ” वो कैसे मर सकती है…नहीं …नहीं…झूठ है ये” राघव को खड़े रह पाना मुश्किल लगा वो जमीन पर निढ़ाल सा बैठ गया। “बस्स बहुत हुआ…इस भ्रम की स्थिति से बाहर आइये चाचा जी…सालों पहले ही मौत हो गयी है उनकी” आकाश चीख कर बोला… “कैसे मान लूँ …मैं कैसे मान लूँ?…जब तक मैं प्रमाण ना देख लूँ… कैसे मान लूँ?” “ठीक है..प्रमाण चाहिये ना अपको …मैं अभी प्रमाणित करता हूँ” आकाश ने इधर-उधर देखा और घर में मरम्मत काम के चलते फावड़ा और कुदाल रखी ही हुई थी, उसने कुदाल उठायी और दौड़ता हुआ राघव के कमरे में जाकर पिछले दरवाजे पर कुदाल से पूरी ताकत से वार कर दिया। वहाँ मौजूद एक भी शख्स ऐसा नहीं था जिसके मन में तरह-तरह के सवाल ना उठ रहे हों लेकिन कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। सब बस चुपचाप देख रहे थे। गिरिराज ने भी कुदाल उठा ली और आकाश की मदद करने लगे। दोनों मिलकर पूरी ताकत से वार कर रहे थे…थोड़ी देर में ही लकड़ी का वो मजबूत दरवाजा कई टुकड़ों में टूटकर गिर गया। अब दीवार दिख रही थी। जो उस दरवाजे को बन्द करने के लिये बनवायी गयी थी। आकाश पूरी ताकत से उस दीवार पर वार करने लगा और गिरिराज उसका साथ दे रहे थे। “माँ ने बनवायी थी ये दीवार…” राघव धीरे से बुदबुदाया तो उर्मिला ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर आत्मीयता भरा हाथ रख दिया “माँ …अगर इस वक़्त जीवित होतीं तो आकाश से कितना नाराज होतीं” इस बार गिरीश धीरे से बोले। “जब से तुम्हारे बाऊ जी गये थे बोलती ही कहाँ थी वो बेचारी…छ: सात महिने का वक़्त मुश्किल से बीता होगा …और वो भी इस दुनिया से चल बसीं …आह” गिरीश के पास ही खड़ी उनकी पत्नी लता गहरी आह भरते हुए बोली। घुटनो जितनी दीवार टूट गयी थी..आकाश दीवार के उस पार चला आया…और गिरिराज भी…आकाश ने कुछ पल जमीन की ओर देखते हुए कुछ सोचा, और बोला, “ये जगह होनी चाहिये” “ठीक है” गिरिराज बोलने के साथ ही आँगन में आये और दो फावड़े लेकर बापस दीवार फलांगते हुए आकाश के पास जाकर उन्होने एक फावड़ा उसे सौंप दिया। और दूसरे से खुदाई करने लगे। अब दोनों जमींन पर खुदाई कर रहे थे। और बाकी सब अब तक असमंजस में थे सिवाय राघव के …क्योंकि राघव डरे हुए थे। दोनो जमींन पर फावड़ा चला रहे थे…मिट्टी का ढेर लग गया था..तभी एक ‘खट्ट’ की आवाज के साथ दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और अपने-अपने फावड़े चलाना रोक दिया… और अब हाथों से मिट्टी हटाने लगे। थोड़ी देर में ही एक हड्डियों का ढाँचा दिखा, आकाश ने उसे निकाला और फिर उठाकर कमरे में लाकर रख दिया… “आह…” “ओह्ह ये क्या?” सबके मुँह से निकल पड़ा। इतने में गिरिराज ने एक छोटा सा शरीर का ढाँचा लाकर उस बड़े हड्डियों के ढांचे के पास रख दिया। “ये रहा सुबूत…रेशमा जी और उनके बेटे की मौत का” आकाश हाँफते हुए बोला। इतनी मेहनत से वो थक चुका था! “बहुत देर से ये तमाशा देख रहा हूँ! तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए …मैं पूंछता हूँ आकाश क्या है ये सब?” गिरीश गुस्से में बोले। “मुझे अफसोस है चाचा जी…लेकिन ये भयानक सच्चाई आपको कुबुल करनी होगी” गिरीश की बात को बिल्कुल अनसुना कर आकाश, राघव से बोला। “आखिर कैसे किसी भी ढांचे को सामने रख कर तुम ये कह सकते हो कि रेशमा और उसके बेटे की …” आगे के शब्द गिरीश से कहते ना बने। राघव बहुत धीरे से चलता हुआ आया और नीचे बैठ गया…फिर उसने उस कंकाल की ऊँगली में पड़ी अंगुठी को धीरे से छुआ “वो बीच की ऊँगली में मेरी ही दी हुई अंगूठी पहनती थी….ये रेशमा ही है..मेरा दिल कुबूल कर रहा है” फिर पास ही रखे छोटे कंकाल को छुआ, ” मेरा बेटा….मेरा बेटा…मैं किसी को नहीं बचा पाया…कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा मैने तुम दोनों को! और तुम दोनों इतने पास थे मेरे..किसने किया ये? …छोडूंगा नहीं उसे! बताओ आकाश किसने किया ये? किसने मेरी दुनिया उजाड़ दी .. ” राघव गुस्से में चीखते हुए बोले, जबकि उनकी आँखें आसुओं से भरी हुई थीं! उनका पूरा शरीर कांपने लगा…और फिर जल्दी ही पसीने से भीग गया। “राघव! तुम्हारे चाचा जी को हार्ट अटैक आ रहा है…” गिरिराज बोले “क्या” “मैं एम्बुलेन्स के लिये कॉल करता हूँ ” गिरिराज फोन पर नम्बर डायल करने लगे “आकाश ….आकाश …”बहुत कठिनता से बोले राघव ‘चाचा जी …आप ठीक हैं ना?” आकाश उन्हें अपने हाथों में संभालते हुए बोला “आकाश …आकाश …”दर्द से कराहते हुए उन्होनें अपने सीने पर हाथ रखा “गिरि अंकल! एम्बुलेंस ….” आकाश चीखा “आती ही होगी…मैं फिर से कॉल करता हूँ ” गिरिराज दुबारा कॉल करते इससे पहले ही एम्बुलेंस आ गयी थी… *** आई.सी.यू. में भर्ती कर लिया गया राघव को…और बाहर सब चिंता में थे। तभी अचानक एक तेज तमाचे की आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया! “अगर तुम्हें कैसे भी सच्चाई पता लग भी गयी थी, तो क्या जरुरत थी राघव भईया को बताने की? देख लिया ना नतीजा? जाने कितने सालों बाद मैनें उन्हें खुश देखा था…कितनी खुशी से वो हम सबको लेकर आये थे …इस घर में मेरे साथ रहना चाहते थे…लेकिन” तभी उनकी नजर पास ही खड़े गिरिराज पर चली गयी, वो गुस्से में बोलीं,”इसे तो इतनी समझ नहीं..लेकिन तुम तो समझदार हो कम से कम..अब और क्या चाहते