श्री साई सच्चरित्र के अनुसार साई बाबा भगवान दत्तात्रेय अवतार हैं! दत्तात्रेय भगवान सयुक्त रूप से भगवान ब्रम्हा, विष्णु और शिव हैं!
साई बाबा ( सी. 1838-15 अक्टूबर 1918 ) जिन्हें शिरडी साई बाबा के नाम से जाना जाता है! उनके भक्त/ अनुयायी उन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं! तो कुछ उन्हें संत कह कर सबोधित करते हैं!
उन्होंने सब धर्मों को समान माना!शिरडी की टूटी- फूटी मस्जिद को द्वारकामाई का नाम दिया! और उसे ही निवास स्थान बनाया!
वो जितने प्रेम से वो गीता और महाभारत के संस्कृत श्लोक सुनाते थे उतने ही प्रेम से कुरान की आयते पढ़ा करते थे!
श्री साई सच्चरित्र और उनके बारे में लिखी सभी पवित्र किताबों, धारावाहिक और पिक्चरों के मुताबिक, अगर कोई शिव भक्त सच्ची निष्ठा से उनके दर्शन के लिए शिरडी पहुँच तो उसे साई बाबा में शिव के रूप में दिखे!
तो किसी को राम के रूप में, किसी को ब्रम्हा तो किसी को कृष्ण के रूप , जिसने उन्हें भगवान के जिस रूप में देखना चाहा, बाबा उसे उसी रूप में दिखे! कितने ही भक्तों ने अपने अनुभव साझा किए जिसमें उन्होंने साई बाबा में अपने इष्ट देव के दर्शन किये!
वो अपने कंधे पर कपड़े की एक झोली टांग कर रखते थे और हाथ में एक चिमटा और एक कटोरा रखते थे!
हर दिन 5 घर भिक्षा मांगते थे और जो भी मिलता था उसमें से एक तिहाई सबसे पहले उपेक्षित पशु और पक्षियों को खिलाते थे जैसे -कौवा, कुत्ता आदि और उसके बाद में बचा हुआ भोजन वो खुद ग्रहण करते थे!
उन्होंने द्वारकामाई में एक धूनी जलायी थी, जो आज तक प्रज्ज्वलित है! इसी धूनी की रख्या/ राख को वो अपने पीड़ित भक्तों को देते थे! जिससे असाध्य रोग और पीड़ा आश्चर्यजनक रूप से सही हो जाते थे! आज भी शिरडी में दर्शन के लिए पहुंचे भक्तों को उस धूनी की राख्या प्रसाद स्वरूप मिलती है!
उनके भक्तों का विश्वास है कि पूर्ण श्रद्धा से इस पुण्य राख्या का प्रसाद ग्रहण करते ही किसी भी समस्या में तुरंत आराम मिल जाता है!
साई बाबा को बागवानी का भी बड़ा शौक था! वो हर दिन पेड़ पौधों को सींचा करते थे! उन्होंने एक बागीचा भी बनाया था!
ऐसा माना जाता है कि बाबा ने लेंडी बाग नामक एक बगीचे की देखभाल की थी, जिसका नाम लेंडी नामक एक नदी के नाम पर रखा गया था जो पास में बहती थी।

साई बाबा का असली नाम/ Real name of Sai Baba
साई बाबा का असली नाम तो आज भी अज्ञात ही है! कोई भी नहीं जानता! लेकिन,
सन 1858 में, जब वो एक बारात के साथ शिरडी पहुंचे तो बारात का स्वागत खंडोवा मंदिर के पुजारी म्हालसापती ने किया,
उनके मुंह से अनायास उन्हें देखकर ‘साई बाबा’ शब्द निकल गया! उसके बाद से उन्हें साई बाबा के नाम से ही जाना गया!
“साई बाबा” का शाब्दिक अर्थ ‘पवित्र पिता’/ संत पिता’ होता है!
-हालांकि कुछ सोर्स ये दावा करते हैं कि साई बाबा का असली नाम हरिबाबू भुसारी था
-उनके पिता का नाम गंगाभाऊ या गोविंद भाऊ और माता का नाम देवकी अम्मा या देवगिरि अम्मा था
-साईं बाबा के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के शिरडी में उनका एक विशाल समाधी मंदिर है.
साई बाबा का जन्म और स्थान!
ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि साई बाबा का जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गाँव में हुआ था!
उनका जन्म एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था! बाद में एक सूफी फकीर ने उन्हे गोद ले लिया था!
यहाँ पर साई बाबा का एक मंदिर भी है! जिसमें उनके उपयोग किए कुछ बर्तन और सामान आदि भी रखे हुए हैं!
साई बाबा के जन्म और स्थान का सबसे प्रामाणिक आधार सत्य साई बाबा के द्वारा दिए गए बयान को माना गया है –
सत्य साई बाबा को शिरडी साई बाबा का अवतार माना गया है! उनके अनुसार -साई बाबा का जन्म 27 सितंबर, वर्ष 1830 स्थान पाथरी गाँव में ही हुआ था!
ऐसे ही उनके जन्म की अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन साई बाबा संस्थान ट्रस्ट इसका विरोध करता है!
ट्रस्ट के अनुसार, साई बाबा के जीवन पर सबसे अधिक प्रामाणिक पुस्तक ‘श्री साई सच्चरित्र’ है!
जो गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित है और इस पुस्तक में साई बाबा के जन्म और जन्मस्थान के बारे में कुछ नहीं लिखा ! इसलिए साई बाबा संस्थान ट्रस्ट पाथरी को साई बाबा का जन्मस्थान मानने से इनकार करता है!
पूरे इतिहास में किए गए कई दावों के बावजूद, शिरडी साईं बाबा का जन्मस्थान और जन्मतिथि अज्ञात है। मूल श्री साईं सत चरित्र के चौथे अध्याय के ओवी संख्या 113 के अनुसार,
“कोई भी साईं बाबा के माता-पिता, जन्म या जन्म स्थान को नहीं जानता था।” इन वस्तुओं के संबंध में बाबा से कई बार पूछताछ और प्रश्न करने के बावजूद अभी तक कोई संतोषजनक उत्तर या जानकारी नहीं मिल पाई है।
कुछ भक्तों द्वारा जब साईं बाबा से उनके माता-पिता और मूल के बारे में पूछा गया तो बाबा ने यह कहते हुए निश्चित उत्तर देने में अनिच्छा व्यक्त कर दी कि जानकारी महत्वहीन है।
साई बाबा पर सबसे प्रमाणित पुस्तक!
साई बाबा के जीवन पर सबसे अधिक प्रामाणिक पुस्तक ‘श्री साई सच्चरित्र’ है! जो गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित है!
साई बाबा पर लेटेस्ट सीरियल!
वैसे तो साई बाबा पर अनेक पिक्चर और धारावाहिक बन चुके हैं, लेकिन सबसे लेटेस्ट धारावाहिक मेरे साई है
जिसे sony tv पर प्रसारित किया गया (सितंबर 2017 – जुलाई 2023)
साई बाबा शिरडी में कब देखा गया ?
कुछ कहानियों के अनुसार, वे 1854 में पहली बार शिरडी आए थे, तब वे सोलह वर्ष के थे! लेकिन फिर वे 3 वर्षों के लिए गायब हो गए, इन तीन वर्षों में वे कहाँ थे या उन्होंने क्या किया इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है!
कुछ कहानियों के अनुसार वो इस दौरान कई संत महात्माओं के साथ रहे उन्होंने बुनकर का कार्य भी किया!
शिरडी में बापसी!
साई बाबा 1858 में वापस लौटे। और फिर समाधि तक शिरडी में ही रहे! उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे ध्यान लगाना शुरू किया, ऐसा माना जाता है कि उस नीम की पत्तियों का स्वाद आज भी मीठा होता है!
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एक छोटा सा गाँव ‘धूपखेड़े’ था, जिसमें चाँद भाई नाम के एक आदमी रहते थे जो उस गाँव के पटेल थे। एक दिन उनका घोड़ी खो गई। चाँद भाई ने उसे गाँव में हर जगह ढूँढने के बाद लगभग 14 कोस (लगभग 42 किमी) तक ढूँढा लेकिन वे निराश हो गए, घोड़ी कहीं नहीं मिली!
तभी, उनकी नजर एक फकीर पर पड़ी जो एक आम के पेड़ के नीचे बैठे थे! फकीर के सिर पर एक टोपी थी, जिसने एक ‘कफ़नी’ (लंबा वस्त्र) पहना हुआ था और एक ‘सटका’ (छोटी छड़ी) था।
चाँद भाई उन्हें देखकर प्रभावित हुए लेकिन एक झिझक उन्हें उन फकीर के पास जाने से रोक रही थी, तभी फकीर ने उन्हें इशारे से अपने पास बुलाया, और उनके हाथ में पकड़ी हुई काठी के बारे में पूछा। चाँद भाई ने दुखी होकर उत्तर दिया कि यह उनकी घोड़ी विजली की है जो खो गई है। फकीर ने चिंतित चाँद भाई से पास के नाले के पास अपने खोए हुए घोड़े को खोजने के लिए कहा।
चाँद भाई के मन ने तर्क किया कि 14 कोस दूर खोई हुई घोड़ी यहाँ कैसे हो सकती है, लेकिन फकीर से तर्क करने का साहस नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने नाले के पास जाकर देखा तो उनकी घोड़ी वहाँ घास चार रही थी! उन्होंने आवाज लगाई और घोड़ी दौड़ते हुई उनके पास आ गई! चाँद भाई खुशी से अपनी घोड़ी लेकर फकीर के सामने आ गए और इससे पहले कि वो कुछ बोलते फकीर ने पूँछा
,”क्यों घोड़ी मिल गई ना? अब थोड़ा आराम कर लो”
चाँद भाई ने घोड़ी को एक पेड़ से बांध दिया और उसी के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे, तभी उन्होंने देखा
कि उन फकीर ने एक चिलम तैयार कर ली है, जिसके लिए आग और पानी दोनों चाहिए! लेकिन, वहाँ ना तो आग थी ना पानी, चाँद भाई सोचने लगे कि ये चिलम सुलगाई कैसे जाएगी?
अगले ही पल आश्चर्य से उनकी आँखें खुली रह गईं, जब उन्होंने देखा कि फकीर ने अपना चिमटा जमीन पर पटका तो वहाँ जल की धारा फूट पड़ी! और जब अग्नि की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने उसी चिमटे से जमीन में से एक धधकता हुआ अंगारा निकाल लिया ! और अपनी चिलम तैयार कर ली! ये इतनी सहजता से हुआ जैसे उन्होंने अंगारा अगीठी से निकाला हो!
चाँद भाई समझ गए कि ये या तो बहुत पहुंचे हुए फकीर है या भगवान का कोई अवतार!
चाँद भाई ने उन फकीर के पॉव पकड़ लिए और तभी छोड़े जब उनसे अपने घर चलने की हामी भरवा ली!
फकीर चाँद भाई के घर चले गए, चाँद भाई और उनके परिवार ने उनकी बहुत सेवा की! चाँद भाई के घर उन फकीर के लिए आने -जाने वालों का तांता लगा रहता!
चाँद भाई के साथ शिरडी पहुंचे साईं बाबा
एक दिन चाँद भाई के साले की शादी का निमंत्रण आया तो चाँद भाई ने उन फकीर से अपने साथ चलने की विनती की! जिसे उन फकीर ने स्वीकार कर लिया! बारात शिरडी जानी थी।
जब बारात शिरडी आई, तो खंडोबा के मंदिर के पास भगत म्हालसापति के खेत में एक बरगद के पेड़ के पास पहुंची। भगत म्हालसापति ने फकीर को उतरते देखा और उनसे कहा “या साईं” (स्वागत है साईं)। यह सुनकर अन्य लोग भी फकीर को साईं कहकर पुकारने लगे और तब से वे “साईं बाबा” के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
साई बाबा की पोशाक का रहस्य!
साई बाबा को हमेशा कफ़नी और कपड़े की पगड़ी पहने ही देखा गया है, उनकी पोशाक से जुड़ा एक रहस्य उनकी भक्त जिनका नाम रामगीर बुआ था, ने उजागर किया, उनके अनुसार,” जब साई बाबा 1858 में शिरडी आए थे, तब उनकी पोशाक एक एथलीट की तरह थी, और उनके बालों की लंबाई कमर से नीचे तक थी, बालों को उन्होंने खुला रखा था! फिर मोहिद्दीन तंबोली के साथ कुश्ती मैच हारने के बाद ही साई बाबा ने कफनी और कपड़े की टोपी पहनी थी।
साई बाबा के निकटतम भक्त!
श्यामा, म्हाळसापती, बायजाबाई, माधवराव देशपांडे, तात्या कोते, काकासाहेब दीक्षित, हेमाडपंत, बुटी, दासगणू, लक्ष्मी बाई शिंदे, नानावली, अब्दुल बाबा, नानासाहेब चांदोरकर शामिल हैं। कुछ भक्त प्रसिद्ध आध्यात्मिक हस्ती बन गए, जैसे साकोरी के उपासनी महाराज । साईं बाबा की मृत्यु के बाद, उनके भक्तों ने उपासनी महाराज को दैनिक आरती अर्पित की, उन्होंने १० वर्षों के भीतर दो बार शिरडी का दौरा किया!
साईं बाबा की महासमाधी!
अगस्त 1918 में, शिरडी साईं बाबा ने अपने कुछ भक्तों से कहा कि वह जल्द ही “अपना देह छोड़ देंगे”। सितंबर के अंत में उन्हें तेज बुखार हुआ और उन्होंने खाना बंद कर दिया। जैसे-जैसे उनकी हालत बिगड़ती गई, उन्होंने अपने शिष्यों से उन्हें पवित्र ग्रंथ सुनाने के लिए कहा, हालाँकि उन्होंने आगंतुकों से मिलना भी जारी रखा। 15 अक्टूबर 1918 को, उसी वर्ष विजयादशमी उत्सव के दिन, साई ने महासमाधी ली।
उनके पवित्र देह को शिरडी के बूटी वाडा में दफनाया गया और वहा श्री साई की अलौकिक एवं अविनाशी तुर्बत का निर्माण किया गया, जो बाद में एक पूजा स्थल बन गया जिसे आज श्री समाधि मंदिर या शिरडी साईं बाबा मंदिर के रूप में जाना जाता है।
साई बाबा की कुछ शिक्षाएं!
– मुझ पर भरोसा रखो, आपकी प्रार्थनाओ का उत्तर दिया जाएगा।
– मैं तुम्हारे साथ हूं, चाहे तुम मुझ पर विश्वास करो या नहीं।
– निष्क्रिय मत रहो; काम करो, भगवान का नाम लो, धर्मग्रंथ पढ़ो।
-सबका मालिक एक
-श्रद्धा और सबुरी
-साई बाबा जाति -वादि के घोर विरोधी थे और धर्म आदि के नाम पर उत्पीड़न के भी वे घोर विरोधी थे!
उन्होंने कहा-
“जब तक कोई रिश्ता-नाता न हो, कोई कहीं जाता नहीं। यदि कोई मनुष्य या प्राणी तुम्हारे पास आये, तो उन्हें अभद्रतापूर्वक न भगाओ, बल्कि उनका अच्छे से स्वागत करो और उनके साथ उचित आदर-सत्कार करो। यदि आप प्यासे को पानी, भूखों को रोटी, नंगों को कपड़े और अजनबियों को बैठने और आराम करने के लिए अपना बरामदा देंगे तो श्री हरि (भगवान) निश्चित रूप से प्रसन्न होंगे। अगर कोई आपसे पैसा चाहता है और आप देना नहीं चाहते तो न दें, लेकिन उस पर कुत्ते की तरह न भौंके।”
-”तुम्हें मेरी तलाश में कहीं जाने की जरूरत नहीं है. आपके नाम और रूप को छोड़कर, आपमें, साथ ही सभी प्राणियों में, अस्तित्व की भावना या अस्तित्व की चेतना मौजूद है। वह मैं हूँ’। यह जानकर, तुम मुझे अपने भीतर और सभी प्राणियों में देखते हो। यदि आप इसका अभ्यास करते हैं, तो आपको सर्वव्यापकता का एहसास होगा और इस प्रकार आप मेरे साथ एक हो जायेंगे।”
-सभी से प्यार करें, सभी की सेवा करें, हमेशा मदद करें, कभी चोट न पहुंचाएं, सभी प्राणी एक हैं। उनमें अंतर न करें, अपने गुरु को साक्षात् भगवान और उनके शब्दों को शास्त्र मानकर पूजा करें।
साई बाबा के सबसे पहले भक्त और पूजा!
स्थानीय खंडोवा मंदिर के पुजारी म्हालसापती साई बाबा के पहले भक्त बने, फिर धीरे-धीरे शिरडी का एक छोटा समूह और फिर पूरी शिरडी उनकी भक्त बन गई!
वैसे तो उनके भक्त पूरे भारत में हैं फिर भी शिरडी के साईं बाबा शिरडी के अलावा महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात राज्यों में विशेष रूप से पूजनीय हैं और पूजे जाते हैं।
शिरडी में साईं बाबा मंदिर!

साईं बाबा का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शिरडी नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बहुत पवित्र स्थल है और हर साल लाखों लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
शिरडी मुंबई से लगभग 240 किलोमीटर और पुणे से लगभग 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ साईं बाबा का समाधि स्थल भी है, जिसे श्रद्धा और सबुरी का प्रतीक माना जाता है।
शिरडी में साईं बाबा मंदिर में प्रतिदिन औसतन 25000 तीर्थयात्री आते हैं। और धार्मिक उत्सवों के दौरान यह संख्या 2,00,000 तक पहुँच सकती है।
साई बाबा के समय से चली आ रही रीति- रिवाजो के अनुसार साई मंदिर में दिन मे 4 आरतियाँ आयोजित की जाती हैं!
- काकड़ आरती (सुबह की आरती) 04:14 बजे
- मध्याह्न आरती (दोपहर की आरती) 12:00 बजे
- धूप आरती (शाम की आरती) 06:30 बजे
- शेज आरती (रात्रि आरती) 10;00 बजे
साई बाबा के वचन-
1. जो शिरडी आएगा । आपद दूर भगाएगा ।
2. चढ़े समाधि की सीढ़ी पर । पैर तले दुःख की पीढ़ी पर ।
3. त्याग शरीर चला जाऊँगा । भक्त हेतु दौड़ा आऊँगा ।
4. मन में रखना दृढ़ विश्वास । करे समाधी पूरी आस ।
5. मुझे सदा जीवित ही जानो । अनुभव करो सत्य पहचानो ।
6. मेरी शरण आ खाली जाए । हो कोई तो मुझे बताए ।
7. जैसा भाव रहा जिस मन का । वैसा रूप हुआ मेरे मन का ।
8. भार तुम्हारा मुझ पर होगा । वचन न मेरा झूठा होगा ।
9. आ सहायता लो भरपूर । जो माँगा वह नहीं है दूर ।
10. मुझ में लीन वचन मन काया । उसका ऋण न कभी चुकाया ।
11. धन्य धन्य व भक्त अनन्य । मेरी शरण तज जिसे न अन्य ।
साई के चमत्कारों और अनुभवों से जुड़ी कुछ अनोखी कहानियाँ-
साई के चमत्कारों और अनुभवों से जुड़ी इतनी कहानियाँ और प्रसंग हैं जिन्हें साझा करना असंभव है! हर दिन उनके ना जाने कितने ही भक्तों को साई बाबा के चमत्कारों का अनुभव होता रहता है!
ऐसा संभव ही नहीं है कि एक समर्पित भक्त उन्हें सच्चे मन से याद करे और उनसे सहायता मांगे और उन्हें सहायता ना मिले! ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जब बाबा ने अप्रत्याशित रूप से अपने भक्तों को दर्शन दिए और उनकी मदद की है और अब भी करते हैं!
ऐसे ही कुछ अनुभवों का जिक्र हम यहाँ कर रहे हैं –
1-मीठी चाय

ये घटना उन दिनों की जब साई बाबा शशरीर हमारे बीच शिरडी में मौजूद थे!
उन दिनों, “महेश दास नाम के एक मजदूर भाई थे, उन्होंने शिरडी के बारे में खूब सुना था, तो उनकी बड़ी इच्छा हुई वहाँ जाकर साई बाबा के दर्शन की, लेकिन पैसे की तंगी इतनी थी कि जाने की कोई संभवना नजर नहीं आती थी!
उन्होंने बहुत सोचा विचारा लेकिन घर का भी कोई ऐसा खर्च नहीं था, जिसमें कटौती करके वो पैसे बचाने की सोच भी पाते
फिर बहुत सोच विचार करने के बाद उन्होंने अपने घर के खर्च में से उन्होंने चीनी को हटा दिया, जबकि उन्हें ज्यादा मीठी चाय बड़ी पसंद थी,
लेकिन अब वो फीकी चाय पीते या पीते ही नहीं! जो भी मीठी चीजे होती वो उन्हें फीका ही खाते- पीते साथ ही वो अब वो ज्यादा मजदूरी करने लगे ताकि थोड़े और पैसे जुटा सके!
अपने इन अथक प्रयासों से आखिरकार उन्होंने कुछ महीनों बाद इतना पैसा इकठ्ठा कर लिया कि अब वो शिरडी जा सकते थे! महेश दास बहुत खुशी और उत्साह से शिरडी जाने को तैयार हो गये!
एक लंबी यात्रा के बाद जब महेश दास शिरडी पहुंचे, तो देखा द्वारकमाई के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी थी, महेश दास भी पीछे खड़े हो गये और प्रसन्नता से अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे!
इतने में साई बाबा के परम भक्त श्यामा, जो हमेशा साई बाबा के साथ ही रहते थे, महेश दास के पास आए और बोले ”चलो भाई तुम्हें साई ने बुलाया है”
महेश दास को खुद के कानों पर भरोसा ना हुआ, तो उन्होंने श्यामा से पूँछा
”क्या मुझे बुलाया है?”
“हाँ हाँ तुम्हें” श्यामा ने प्रसन्नता से कहा
तो महेश दास झिझकते हुए द्वारका माई के अंदर पहुँचें, और जैसे ही साई बाबा को देखा तो झुककर उन्हें प्रणाम किया, साई ने मुसकुराते हुए उनसे पूँछा,
“कैसे हो महेश?”
महेश दास को बड़ी हैरानी हुई कि साई बाबा उनका नाम पहले से ही जानते हैं, वो अभी ये सोचकर खुश हो ही रहे थे कि साई बाबा ने श्यामा से कहा,
” श्यामा, महेश दास के लिए एक अच्छी सी चाय तो बनवाओ और देखना उसमें चीनी की मात्रा अधिक होनी चाहिए, महेश को मीठी चाय बड़ी पसंद है, और इन्होंने बहुत दिनों से मीठी चाय नहीं पी है”
ये सुनते ही महेश दास अत्यंत भावुक हो गए और उनकी आँखों से खुशी के आसू निकलने लगे, वो भाव विभोर होकर बाबा के चरणों में बैठ गए!खुशी में उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकल पा रहा था और साई उन्हें प्रेम से मुसकुराते हुए देखते रहे! साई तो अंतर्यामी हैं उनसे क्या छिपा है!
सबका मालिक एक!
2-जीवन दान मिला
गाजियाबाद की तानिया की जिंदगी में सब कुछ ठीक -ठाक चल रहा था, कि अचानक उनके घर में अशान्ति और दुख के बादल छा गए, जब उनके पिता की हार्ट ब्लोकेज की समस्या उजागर हुई! डॉक्टर के अनुसार तुरंत ओपन हर्ट ऑपरेशन के जरूरत थी, जबकि उनके पिता ऑपरेशन कराने को तैयार नहीं थे!
जब भी कोई उन्हें समझाने की कोशिश करता वो कहते अगर ऑपरेशन हुआ तो मैं पहले ही नहीं मर जाऊंगा!
ये सुनकर सब परिवारिजन और भी दुखी हो जाते! एक -एक पल डर में गुजर रहा था! और परिवार के सदस्य भयभीत थे! कोई ऐसा बीच का रास्ता नहीं सूझ रहा था जिसमें ऑपरेशन भी ना कराना पड़े, और इस बीमारी से निजात भी मिल जाए! सभी परिवारीजन एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास उम्मीद में दौड़ रहे थे!
इसी बीच एक और विकट स्थिति पैदा हो गई, नई रिपोर्ट में पता चला कि ब्लोकेज एक नहीं बल्कि एक से अधिक हैं, ये जाकर सबका धैर्य जवाब दे गया और स्थति बेहद दुखद हो गई!
लेकिन तानिया और उनका पूरा परिवार साई बाबा को अपने इष्ट देव के रूप में पूजते थे! और उन्हीं से अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार मनौतियाँ मांग रहे थे!
आखिरकार कुछ ही दिनों में एक जानकार ऐसे निकल आए जिन्होंने बताया कि उनकी पहचान हिमाचल के एक टॉप हार्ट सर्जन से है, वो जरूर सही और अच्छी सलाह देंगे! उन जानकार सज्जन की वजह से डॉक्टर से मिलने का अपॉइंटमेंट आसानी से मिल गया
वहाँ जाने से पहले तानिया अपने पिता को सपरिवार सहित साई बाबा के मंदिर ले गई! हिमाचल जाकर उन डॉक्टर ने कुछ टेस्ट अपनी निगरानी मे कराए और रिपोर्ट आने के बाद परिवार को पहली तसल्ली तब मिली जब पता चला कि एक ही ब्लोकेज है अधिक नहीं हैं! तो सबने राहत की सांस ली!
अचानक से ऐसा होना साई बाबा का ही चमत्कार था!
फिर उन डॉक्टर ने ही स्थिति को जानने के बाद सलाह दी कि ऐसी स्थति में ओपन हार्ट ना कराकर आप टावी भी करा सकते हैं जो नई टेक्नोलॉजी है जिसके सफल होने के चांसेस भी अधिक है, और इससे मरीज को शारीरिक परेशानी भी नहीं होती!
परिवार के सदस्य ये सुनकर खुश हो गए लेकिन अगले ही पल उनकी खुशी उदासी में फिर बदल गई जब इस प्रक्रिया में खर्च होने वाली रकम के बारे में पता चला!
परिवार के सदस्यों के चेहरों पर उभर आई चिता को डॉक्टर भाँपते हुए कहा” एक बड़े सरकारी हॉस्पिटल में मेरे डॉक्टर मित्र हैं, टॉप हर्ट सर्जन हैं, उन्होंने ऐसे कई ऑपरेशन किए हैं सभी सफल रहे हैं और क्योंकि वो हॉस्पिटल सरकारी है आपका बजट आधे से भी कम खर्च होगा!
सबके चेहरे एक उम्मीद से फिर खिल गए, डॉक्टर भी मिल गए, उनका वर्ताव भी बहुत सहयोगात्मक रहा और नियत तिथि पर ऑपरेशन हुआ और सफल रहा! अब तानिया जी के पिता जी एकदम स्वस्थ हैं!
तानिया जी इस घटना के बारे में कहती हैं, “जहाँ सभी उम्मीदें खो चुकीं थीं, वहाँ उन सज्जन का अचानक से आकर हमारी मदद करना, वो भी ऐसे कि फिर हमें कहीं और जाने की किसी और से पूंछने की जरूरत ही नहीं रही और पिता जी को फिर से एक नया जीवन मिला, ये सिर्फ और सिर्फ साई बाबा का ही चमत्कार था!
इस घटना के बाद तानिया जी का और उनके परिवार का साई बाबा पर विश्वास और भी गहरा हो गया!
ॐ साई राम!
3-जब अनजान रास्ते पर हुए साई बाबा के दर्शन!

अमर भाई ने बड़ी मेहनत और लंबे समय के प्रयास के बाद एक कार खरीदी, तो तय किया कि सभी परिवारीजनो के साथ सबसे पहले कुछ तीर्थ स्थानों के दर्शन किए जाए!
सभी जगह के दर्शन बेहद सुगमता के साथ हो गए, सभी बड़ी प्रसन्नता के साथ घर बापसी कर रहे थे, और लाख कोशिश के बाबजूद रात हो गई थी! तभी, अचानक एक सुनसान और पिछड़े इलाके के रास्ते पर कार बंद हो गई, अमर भाई ने अपनी समझ के अनुसार जितनी कोशिश करनी थी कर ली! लेकिन कार स्टार्ट नहीं हो रही थी!
अमर भाई ने नई- नई कार चलाना सीखा था, तो उन्हें बहुत अधिक अनुभव भी नहीं था, जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था अमर भाई के साथ- साथ उनकी माता जी और बहनों को अनजान डर घेरने लगा था!
तब सभी ने तय किया कि किसी भी होटल में रात के लिए ठहरना सही रहेगा! लेकिन मुश्किल की बात ये थी, वहाँ से दूर -दूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा था! इस अविकसित और पिछड़े रास्ते पर मोबाइल से भी कुछ मदद नहीं मिल पा रही थी!
इतनी रात में अंजान जगह होटल ढूँढने ना तो किसी बहन को भेजा जा सकता था ना ही माता जी को ! और इन तीनों को कार में अकेला छोड़कर खुद अमर भाई का भी मन कहीं जाने को नहीं मान रहा था !
अमर भाई की माता जी साई बाबा पर अटूट श्रद्धा रखती थी, उन्होंने ही सबको धीरज बँधाते हुए कहा, चिंता मत करो साई बाबा जरूर हमारी मदद करेंगे! धीरे- धीरे एक घंटा बीत गया, वहाँ से कोई भी गाड़ी नहीं गुजरी!
अब तो हताशा और डर सब पर हावी होता जा रहा था और इस वक्त सभी बस साई बाबा का ही नाम जप रहे थे!
थोड़ी देर बाद एक ट्रक आता दिखाई दिया लेकिन उसमें बैठे लोगों का हल्ला- गुल्ला सुनकर अमर भाई का मन उनसे मदद लेने को तैयार नहीं हो पाया! इसलिए उन्होंने उस ट्रक को रुकने का इशारा नहीं किया! और ट्रक पास से निकल गया इससे मदद तो नहीं मिली लेकिन, एक नया डर पैदा हो गया कहीं उस ट्रक में सवार लोग बुरे ना हों जो बापस आकर उन पर हमला कर दें! अब डर के साथ-साथ अनिष्ट की आशंका ने उन सबको घेर लिया!
एक- एक मिनट घंटों की तरह गुजर रहा था, अमर भाई रात के समय सफर करने की अपनी गलती समझते हुए हताश होकर खुद को ही उल्टा -सीधा बोल रहे थे! उनकी माता जी बार -बार उन्हें धीरज रखने को कह रही थी, हालांकि वो भी डरी हुई थीं लेकिन साई बाबा पर उन्हें पूर्ण भरोसा था!
कुछ मिनट बाद ही एक कार उन्हें अपनी ओर आती हुई दिखाई दी, जैसे ही वो कार अमर भाई की कार के पास आई उसमें किसी ने भीतर लाइट जला दी, जिससे पता लगा कि उसमें एक बुजुर्ग, एक महिला और एक बच्ची बैठी थी और अमर भाई की उम्र के ही सज्जन कार को चला रहे थे!
अमर भाई की बहनें और माँ एक साथ बोलीं, अमर भाई इस कार को रोककर मदद लो, अमर भाई ने भी अपनी पुरजोर कोशिश की लेकिन कार आगे निकल गई, सभी फिर निराशा में डूब गए!
इतने में क्या देखते हैं कि वही कार बापस उनकी ओर आ रही है, कार चला रहे सज्जन ने पूँछा, क्या आपको मदद चाहिए? अमर भाई ने उनसे मदद की गुहार की, और अगले ही पल वो सज्जन अपनी कार से उतर कर अमर भाई की कार को चेक करने लगे, मात्र 10 मिनट की कोशिश के बाद ही गाड़ी ठीक हो गई और स्टार्ट भी हो गई!
अमर भाई के साथ -साथ उनकी बहनों और माँ ने उन सज्जन को बहुत दुआओं के साथ धन्यवाद दिया!
तो उन सज्जन ने बताया, मैँ तो शायद अपनी कार को इतने सुनसान रास्ते पर आपकी मदद के लिए नहीं रोकता लेकिन मेरे दादा ने मुझसे बड़ी सख्ती से आपकी मदद करने को कहा तो मैं उनकी बात नहीं टाल सका!
सभी ने उन सज्जन को धन्यवाद दिया, और वो चले गए, फिर अमर भाई ने जल्दी से अपनी कार स्टार्ट की और जल्दी से आगे बढ़ा दी! थोड़ा आगे बढ़ने के बाद अमर भाई की माता जी ने कहा, जिन बाबा ने हमारी मदद की, हममे से किसी के दिमाग में भी उन बाबा को देखने या उनसे मिलकर धन्यवाद देने का ख्याल भी नहीं आया ये तो बिल्कुल अच्छा नहीं हुआ!
अमर भाई ने इस पर अपनी सहमति देते हुए तय किया कि उन बाबा से मिलकर हम सबको उन्हें धन्यवाद कहना चाहिए! लेकिन तभी, घोर आश्चर्य हुआ, वो कार उस सड़क पर ना तो आगे थी और ना ही कहीं पीछे दिख रही थी!
‘कार कहाँ गई?’ सब एक साथ आश्चर्य से बोले, तभी, अमर भाई की माता जी बोलीं, आह! मुझे यकीन है, वो साई बाबा ही थे, मैंने सुना है अपने भक्तों की मदद करने वो कहीं भी किसी भी रूप में आते हैं!
सभी की आँखें प्रेम से छलक गईं, अभी हुई घटना पर यकीन करना मुश्किल लग रहा था! रोमांच से सबके रोगटे खड़े हो गए थे! सभी ने एक साथ साई बाबा के नाम का जयकारे लगाए! और घर की ओर कूच की!
इसके बाद परिवार का हर सदस्य साईं बाबा को अपने इष्ट के रूप में पूजने लगा!
ॐ साई राम!
कैसे पहुँचें शिरडी?
अगर आप इस पवित्र स्थान के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं! तो शिरडी जाने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं!
दिल्ली और मुंबई समेत कई शहरों से शिरडी के लिए डायरेक्ट ट्रेन और हवाई सेवा उपलब्ध है!
शिरडी के लिए सीधी उड़ानें किन शहरों से हैं?
बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, इंदौर, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, कोलकाता, लखनऊ, चंडीगढ़, पटना, श्रीनगर, मुंबई इन शहरों से शिरडी के लिए उड़ानें इंडिगो और स्पाइसजेट एयरलाइंस से मिलती हैं.!
दिल्ली से शिरडी जाने वाली ट्रेन कौन सी है?
सबसे तेज चलने आली ट्रेन दिल्ली एनडीएलएस से रात 10:25 बजे चलती है और सुबह 6:40 बजे शिरडी एसएनएसआई पहुंचती है.
साई बाबा की Date of birth/जन्म तिथि क्या है ?
ऐसा माना जाता है कि साई बाबा का जन्म 27 सितंबर, वर्ष 1830 स्थान पाथरी गाँव में ही हुआ था!
साई बाबा की Death कब हुई थी/ उन्होंने महासमाधि कब ली?
15 अक्टूबर 1918 को साई बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया! और महासमाधी ली।
आप शिरडी जाने और ठहरने के विकल्प को लेकर अगर उलझन में हैं तो ट्रेवल एजेंट की मदद ले सकते हैं!
अगर आपने भी कभी उनकी महिमा का अनुभव किया हो और आप उसे हमसे साझा करना चाहें तो अपने कॉमेंट के जरिए हमें जरूर बताएं! हम आपसे संपर्क करेंगे और आपके अनुभव को शब्दों में पिरोकर इस ब्लॉग का हिस्सा बनाएंगे! ऐसा करके हम खुद को खुशकिस्मत महसूस करेंगे!
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