क्या अनामिका बापस आएगी? पार्ट -2
Summery “हम्म” उसने कप में चीनी मिलाते हुए कहा,अंकित की नजर उसकी उंगलियों पर जा पड़ी,कितनी पतली और खूबसूरत हैं.. तभी अंदर से उसे कुछ लोगों के बातचीत करने की आवाज सुनाई दी…शायद दो या तीन लोग आपस मे बात कर रहे हो जैसे,उसे लगा कोई बाहर आने को है शायद, Language: Hindi buy on amazon Read Excerpt 2. खूबसूरत झूमर ठीक सिर के ऊपर जगमगा रहा था,डिज़ाइन ऐसी कि जैसे पानी की बूंदे ठीक उसके ऊपर गिरने वाली हों,सफेद कलर से पेंट किया हुआ पूरा बंगला दूधिया रोशनी से नहाया हो जैसे… “क्या लेना पसंद करेंगे, चाय या कॉफी ?” अनामिका ने अगर ना टोका होता तो शायद उसी रोशनी में अभी और खोया रहता. “चाय”…उसने जवाब दिया और वो मुस्कुराते हुए, सामने बनी एक लंबी गैलरी में चली गयी, खूबसूरत झूमर के नीचे पड़े ,सेविन सीटर सोफे से उसने यूँ ही अंदाज लगाया कि बड़ा परिवार हो शायद ,सोफे के पीछे एक घुमावदार चौड़ी सी सीढिया ऊपर की ओर जाते हुए थीं..ऊपर कुछ बन्द गेट दिखे ..बेड रूम होंगे शायद ,और सीढ़ियों के पीछे एक लंबी सी गैलरी जहां अनामिका गयी है अभी ..तो किचन है वहाँ.. मन ही मन यूँ घर का निरीक्षण करने पर उसने हल्की सी डांट लगा दी खुद को.. “शुगर कितनी लेंगे आप “? अनामिका ने चाय की ट्रे गोल कांच की टेबल पर रखते हुए पूछा “दो चम्मच” उसे आश्चर्य हुआ कि अनामिका के आने का तनिक भान तक ना हुआ “दो च… म्मच मतलब टू स्पूनस ..आर यू श्योर? उसने अपनी आंखें बड़ी करते हुए पूछा “मुझे मीठा बहुत पसंद है” उसे फौरन लगा कि कम बताना चाहिए था “हम्म” उसने कप में चीनी मिलाते हुए कहा,अंकित की नजर उसकी उंगलियों पर जा पड़ी,कितनी पतली और खूबसूरत हैं.. तभी अंदर से उसे कुछ लोगों के बातचीत करने की आवाज सुनाई दी…शायद दो या तीन लोग आपस मे बात कर रहे हो जैसे,उसे लगा कोई बाहर आने को है शायद, अनामिका के पेरेंट्स हों शायद या कोई भी परिवारीजन ,वो खुद को संभाल के बैठ गया और गेट की तरफ ताकने लगा “क्या हुआ” अनामिका ने पूछा “शायद आपके पेरेंट्स या कोई फैमिली मेंबर अ ..वो मुझे लगा” उसने लॉबी की तरफ बने एक गेट की तरफ इशारा करते हुए कहा “पेरेंट्स…हा हा हा..वो .तो कजिन की शादी में गये हुए हैं ..घर मे तो कोई नहीं सिवाय मेरे” उसने हँसते हुए कहा “ओह ,लेकिन मुझे कुछ आवाज सी सुनाई दी अभी” अंकित ने अचरज से कहा क्यूँकि उसने साफ आवाज सुनी थी “आप को ऐसे ही लगा होगा, तो …कल से क्लास स्टार्ट करें” “जी बिल्कुल..वैसे क्या सबसे ज्यादा मुश्किल लगता है आपको हिस्ट्री में”?अंकित ने कप उठाते हुए पूछा,उसने मन ही मन कहा ,शायद वो आवाजें सुनना मन का वहम ही हो “जी ..रिलेटिड डेट्स ..कभी लगता है सारी डेट्स याद हो गयी हैं तो कभी ये आपस मे ऐसी मिक्स होती हैं कि मेरा सारा कॉन्फिडेंस ही लूज़ हो जाता है” “कमाल है,मैंने तो सुना लड़किया डेट्स याद रखने में बहुत एक्सपर्ट होती हैं,यहां तक कि किसी ने कब और कौन सी बात कही सब याद रहता है उन्हें” अंकित ने मुस्कुरा कर कहा, तो अनामिका बोली “ये सब बेकार की बातें हैं, किसने कहा आपसे?याद रहती हैं तो रहती हैं,और नही, तो नहीं ..इसमे भला लड़के या लड़की होने का क्या कनेक्शन?” “हम्म..बात तो ठीक है, बिल्कुल सही कहा आपने ,तो ..और क्या प्रॉब्लम होती है हिस्ट्री में” “राजा या बादशाह तो मुझे याद रहते हैं, लेकिन उनके डायनेस्ट्री से जुड़े छोटे लोग,दूसरी डायनेस्ट्री में मिक्स कर देती हूं मैं अक्सर” बड़े नाटकीय भरे अंदाज में उसने कहा तो अंकित को हँसी आ गई “और आसान क्या लगता है”? “बाकी की पूरी हिस्ट्री मुझे याद रहती है” “ठीक है,पहले हम डायनेस्ट्री पर ही काम करेंगे,ताकि आप बिना वीजा किसी को भी,किसी और की डायनेस्ट्री में ना भेजें” उसके इस तरह कहने पर अनामिका जोर से हंस दी,तेज़ रोशनी में उसकी हँसी और उसके मोतियों से दांत ,अंकित को बहुत खूबसूरत दिखे “ठीक ,तो कल से आपकी क्लास स्टार्ट, इसी वक्त, क्या.. यहीं? अंकित ने अटकते हुए पूछा “यहाँ कोई प्रॉब्लम है आपको”अनामिका बोली “नहीं ..नहीं.. वो आप अकेली है तो शायद आपको या आपके पेरेंट्स को ऑकवर्ड आई मीन अ ..अ” “आप ज्यादा सोचते हैं..बेफिक्र रहिये किसी को कोई प्रॉब्लम नहीं… आप को तो कोई प्रॉब्लम नहीं ना? आप भरोसे के लायक हैं ना”? उसने तनिक शरारत भरे अंदाज़ में मुस्कुराते हुए पूछा “बिल्कुल.. कैसी बात कर दी आपने,में यकीनन बहुत शरीफ हूँ “ अंकित मन ही मन ये सोचकर डर गया कि, उसे कहीं अनामिका ने खुद को देखते हुए जान तो नहीं लिया… “आपने फीस नहीं बताई” “प्लीज़ मुझे शर्मिंदा ना करें,जिस तरह से आपने मुझे सही वक़्त पर बचाया इसका एहसान तो जिंदगी भर ना चुका पाऊँगा, आपकी हरसंभव मदद करके, मुझे खुशी ही होगी” “फिर भी” “बाद में देखते हैं” अंकित ने बात लम्बी ना खींचने की वजह से ये बोल दिया,और लगभग दौड़ते हुए घर की ओर भागा जितने समय वो अनामिका के साथ रहा,उसे अपनी परेशानी याद भी न रही,कहीं आंटी,अंकल जी को ना मना पाई तो उसे कहीं रहने का इंतज़ाम करना होगा,और जेब मे वही अनामिका के दिये हुए हज़ार रुपये और कुछ चिल्लड़ ही पड़े हैं ,हे ईश्वर अंकल जी मान गए हों,अब वो खुद को संयत महसूस कर रहा है,कुछ काम करेगा ..कुछ भी..लेकिन अब खाली बैठ केवल दुख नहीं मनाएगा, ना जाने क्यों आज सा उत्साह खुद में उसने, मां की मौत के बाद पहली बार महसूस किया है…दौडता हुआ अंकित घर के बाहर पहुंच कर रुक गया…कोई सामान बाहर न दिखा उसे,जल्दी से डोर बेल बजाई तो घनश्याम जी ने दरवाजा खोला,चश्मा नाक पर टिकाये वो उसे बड़े गुस्से में दिख रहे थे “अंकल जी वो… मेरा सामान,अ ..आंटी जी कहाँ हैं”?अंकित ने डरते डरते पूछा “और कहाँ होंगी,खाना बना रहीं हैं अपने लाडले के लिए” वो खीजते हुए बोले और अंदर चले गए लेकिन जाते हुए जो बड़बड़ाए अंकित ने सुन लिया ‘ना
क्या अनामिका बापस आएगी? पार्ट-1
पार्ट – 1 by Sonal Johari Summery आवाज उसके कानों में पड़ी तो नजर उधर ही घूम गयी ..जरा सी दूरी पर एक लड़की फ़ोन पर बात कर रही थी ..हिस्ट्री का नाम सुना तो उसके ठीक सामने चला गया..थोड़ी सी हील वाली सेंडिल और नीलेंथ स्कर्ट के साथ वाइट टॉप ..कमर से थोड़े ऊपर तक खुले बाल और मोबाइल हाथ मे लिए वो किसी से मनुहार कर रही थी…यूँ खुद की ओर एक लड़के को घूरते देखा तो Language: Hindi buy on amazon Read Excerpt “दरवाजा खोल.. अंकित “ “मैं कहता हूँ ..खोल दरवाजा” बहुत देर से दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे घनश्याम लेकिन अंकित दरवाजा नहीं खोल रहा था। घनश्याम मकानमालिक थे और अंकित उनके यहां किरायेदार है और 6 महीने से किराया नही दे पाया था इसीलिए आज घनश्याम बहुत नाराज थे और उनकी ये नाराजगी समझ कर ही अंकित डर की वजह से गेट नहीं खोल रहा था. “ठीक है मत खोल ..मैं भी देखता हूँ कब तक गेट नही खोलता तू यही बैठा रहूँगा दरवाजे के बाहर ” घनश्याम बरामदे में पड़े एक स्टूल पर बैठ गए. “अरे ..कभी मेरी भी तो सुना करो ..इतनी गुस्सा अच्छी नहीं.. हालात तो समझो उसकी..अच्छा मैँ ही ऊपर आती हूँ” घनश्याम की पत्नी अंकित से खास स्नेह रखती थीं खुद का कोई बच्चा ना होने के कारण उसे खुद के बेटे जैसा मानती थीं “खबरदार, जो ऊपर आयीं ..अभी -अभी तो तुम्हारा पैर ठीक ही हुआ है..वही नीचे रहो..तुम्हारी शह से ही, इसके कान पर जूं नहीं रेंगती मेरे कुछ भी कहने की” घनश्याम ने डांटते हुए रोक दिया सरोज को,शरीर से गोल मटोल सरोज ने अपना पैर सीढ़ी पर रखा ही था कि पीछे हटा लिया, हाल ही में पैर में फ्रेक्चर होने की वजह से उन्हें दो महीने बेड रेस्ट पर रहना पड़ा और अभी चलना फिरना शुरू ही किया था “ठीक है नहीं आती ,पर तुम तो आओ नीचे” सरोज ने मनुहार करते हुए कहा “तुमने सुना नहीं शायद ..जब तक ये दरवाजा नहीं खोलेगा ..मुझे मेरे किराये के पैसे नहीं देगा ..नहीं आऊंगा” खीजते हुए घनश्याम को देख सरोज फुसफुसा कर बोलीं “शर्म नहीं आती तुम्हें,एक तो उसकी माँ नहीं रहीं और ऊपर से नौकरी चली गयी..और तुम हो…कि पैसे चाहिए” “पता है भागवान …लेकिन उनको गए पाँच महीने बीत गए हैं..तुम्हे तो कोई भी पागल बना दे..जरा प्यार से ये लड़का बात क्या कर लेता है तुमसे, तुम तो बेकार में ही भावुक हुई जाती हो ..ये नहीं समझ आता कि ये बेबकूफ़ समझता है तुम्हें” झुंझलाए से घनश्याम गले मे पड़े गमछे से पसीना पोछते हुए बोले… “हे राम बड़ी गर्मी है यहाँ”.. आज की रात और रह ले..कल तुझे बाहर न निकाला तो कहना” बोलते हुए घनश्याम जीने से नीचे उतर आए.पचपन छप्पन साल उम्र रही होगी .घनश्याम की..एक छोटी सी कपड़े की दुकान थी उनकी और स्वभाव से चिड़चिड़े और गुस्सैल थे वही उनकी पत्नी सरोज गेंहुए रंग की गोल मटोल सी शांत और भावुक महिला थीं.. अगले ही दिन घनश्याम एक तगड़े से आदमी को साथ ले आये जिसे देखकर सरोज ने प्रश्नवाचक निगाहों से घनश्याम की ओर देखा लेकिन घनश्याम ने अनदेखा कर दिया…और सीधे सीढ़ियों से ऊपर चले गए . “देख ये रहा कमरा… तोड़ इसे और जो भी सामान है निकाल कर फेंक दे” उसी तगड़े से आदमी को आर्डर सुना वो वहीं स्टूल पर बैठ गए…सरोज भी सीढिया चढ़ आ गयीं थीं.. “सुनो जी..ये ठीक नहीं ..वो अभी है भी नहीं और किसी के घर को उसकी अनुपस्थिति में खोलना.नहीँ ठीक नहीं” सरोज हर सम्भव कोशिश कर रही थीं लेकिन घनश्याम अपनी जिद पर थे “किसी का घर नहीं है ये सिवाय मेरे ..समझीं तुम..और तुम आयीं क्यों ऊपर ?..पूरे पांच हज़ार रुपये खर्च हुए हैं तुम्हारे पैर पर अब तक , लेकिन तुम्हे कोई फर्क नहीं” इतने में ही दरवाजा टूट गया..और अंकित का सामान फेंका जाने लगा अंकित ने सड़क से आते हुए जब ये देखा तो दौड़ता हुआ आया लेकिन सब नज़ारा देख ठिठक कर रह गया…कुछ नही बोला सामान के नाम पर कुछ खास था भी नहीं.. कुछ बर्तन ,एक छोटा सा सिलेण्डर,कुछ डिब्बे ..अंकित अपने कमरे में गया और बचे हुए कपड़े समेट एक चादर में बाँध कर पोटली बना ली और सरोज के पैर छूने झुका तो बिना बोले ही उन्होंने अपनी विवशता जताई..लाल बड़ी सी बिंदी के थोड़ा नीचे दोनों तरफ छोटी सी दो आंखों में उसने अपने लिए ममता देखी “आप ने हमेशा मेरी माँ ना होते हुए भी मेरी माँ का फ़र्ज़ निभाया..लेकिन मैं आपके लिए कुछ ना कर सका..आपसे मिलने आता रहूँगा और फ़ोन भी करूँगा” और ये बोल अंकित तेज़ कदमों से बाहर निकल गया ,सरोज ने घनश्याम की तरफ देख कर कहा “आज के बाद मुझसे बात मत करना ..हमेशा पैसा पैसा करते रहते हो ..हुम्” और नीचे उतर गयीं.. . ….घर के पास ही सारा सामान सड़क के किनारे रख अंकित ये सोच अफसोस में था कि अगर थोड़ी मनुहार कर ली होती तो घर के अंदर होता इस वक़्त ,ज्यादा पढ़ा लिखा इंसान कोई छोटा काम भी नहीं कर सकता और उसे झुकना भी नहीं आता.. क्या जरूरत थी इतना पढ़ने की पोस्ट ग्रेजुएट हिस्ट्री में…अपने समय का कॉलेज टॉपर और हालात ये कि दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं..यू तो एक प्राइवेट इंटर कॉलेज में जॉब चल रही थी उसकी.कि माँ का देहांत हो गया…घर गया तो पूरे महीने गम और अवसाद से बाहर ही ना आ पाया..और जब बापस हिमाचल आया तो, बिना सूचना इतनी लंबी छुट्टी के कारण उसे जॉब से बाहर निकाल दिया गया.और अब यहाँ बोर्ड के एग्जाम के बाद कॉलेज बन्द हैं… “प्लीज बात कीजिये ना..आप..मुझे लाना है.. गोल्ड मेडल हिस्ट्री में “ ये आवाज उसके कानों में पड़ी तो नजर उधर ही घूम गयी ..जरा सी दूरी पर एक लड़की फ़ोन पर बात कर रही थी ..हिस्ट्री का नाम सुना तो उसके ठीक सामने चला गया..थोड़ी सी हील वाली सेंडिल और नीलेंथ स्कर्ट के साथ वाइट टॉप ..कमर से थोड़े ऊपर तक खुले बाल और मोबाइल हाथ मे लिए वो किसी से मनुहार कर रही थी…यूँ खुद की ओर एक लड़के

कौन थे शिरडी के साई बाबा? Shirdi Sai Baba
श्री साई सच्चरित्र के अनुसार साई बाबा भगवान दत्तात्रेय अवतार हैं! दत्तात्रेय भगवान सयुक्त रूप से भगवान ब्रम्हा, विष्णु और शिव हैं! साई बाबा ( सी. 1838-15 अक्टूबर 1918 ) जिन्हें शिरडी साई बाबा के नाम से जाना जाता है! उनके भक्त/ अनुयायी उन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं! तो कुछ उन्हें संत कह कर सबोधित करते हैं! उन्होंने सब धर्मों को समान माना!शिरडी की टूटी- फूटी मस्जिद को द्वारकामाई का नाम दिया! और उसे ही निवास स्थान बनाया! वो जितने प्रेम से वो गीता और महाभारत के संस्कृत श्लोक सुनाते थे उतने ही प्रेम से कुरान की आयते पढ़ा करते थे! श्री साई सच्चरित्र और उनके बारे में लिखी सभी पवित्र किताबों, धारावाहिक और पिक्चरों के मुताबिक, अगर कोई शिव भक्त सच्ची निष्ठा से उनके दर्शन के लिए शिरडी पहुँच तो उसे साई बाबा में शिव के रूप में दिखे! तो किसी को राम के रूप में, किसी को ब्रम्हा तो किसी को कृष्ण के रूप , जिसने उन्हें भगवान के जिस रूप में देखना चाहा, बाबा उसे उसी रूप में दिखे! कितने ही भक्तों ने अपने अनुभव साझा किए जिसमें उन्होंने साई बाबा में अपने इष्ट देव के दर्शन किये! वो अपने कंधे पर कपड़े की एक झोली टांग कर रखते थे और हाथ में एक चिमटा और एक कटोरा रखते थे! हर दिन 5 घर भिक्षा मांगते थे और जो भी मिलता था उसमें से एक तिहाई सबसे पहले उपेक्षित पशु और पक्षियों को खिलाते थे जैसे -कौवा, कुत्ता आदि और उसके बाद में बचा हुआ भोजन वो खुद ग्रहण करते थे! उन्होंने द्वारकामाई में एक धूनी जलायी थी, जो आज तक प्रज्ज्वलित है! इसी धूनी की रख्या/ राख को वो अपने पीड़ित भक्तों को देते थे! जिससे असाध्य रोग और पीड़ा आश्चर्यजनक रूप से सही हो जाते थे! आज भी शिरडी में दर्शन के लिए पहुंचे भक्तों को उस धूनी की राख्या प्रसाद स्वरूप मिलती है! उनके भक्तों का विश्वास है कि पूर्ण श्रद्धा से इस पुण्य राख्या का प्रसाद ग्रहण करते ही किसी भी समस्या में तुरंत आराम मिल जाता है! साई बाबा को बागवानी का भी बड़ा शौक था! वो हर दिन पेड़ पौधों को सींचा करते थे! उन्होंने एक बागीचा भी बनाया था! ऐसा माना जाता है कि बाबा ने लेंडी बाग नामक एक बगीचे की देखभाल की थी, जिसका नाम लेंडी नामक एक नदी के नाम पर रखा गया था जो पास में बहती थी। साई बाबा का असली नाम/ Real name of Sai Baba साई बाबा का असली नाम तो आज भी अज्ञात ही है! कोई भी नहीं जानता! लेकिन, सन 1858 में, जब वो एक बारात के साथ शिरडी पहुंचे तो बारात का स्वागत खंडोवा मंदिर के पुजारी म्हालसापती ने किया, उनके मुंह से अनायास उन्हें देखकर ‘साई बाबा’ शब्द निकल गया! उसके बाद से उन्हें साई बाबा के नाम से ही जाना गया! “साई बाबा” का शाब्दिक अर्थ ‘पवित्र पिता’/ संत पिता’ होता है! -हालांकि कुछ सोर्स ये दावा करते हैं कि साई बाबा का असली नाम हरिबाबू भुसारी था -उनके पिता का नाम गंगाभाऊ या गोविंद भाऊ और माता का नाम देवकी अम्मा या देवगिरि अम्मा था -साईं बाबा के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के शिरडी में उनका एक विशाल समाधी मंदिर है. साई बाबा का जन्म और स्थान! ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि साई बाबा का जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गाँव में हुआ था! उनका जन्म एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था! बाद में एक सूफी फकीर ने उन्हे गोद ले लिया था! यहाँ पर साई बाबा का एक मंदिर भी है! जिसमें उनके उपयोग किए कुछ बर्तन और सामान आदि भी रखे हुए हैं! साई बाबा के जन्म और स्थान का सबसे प्रामाणिक आधार सत्य साई बाबा के द्वारा दिए गए बयान को माना गया है – सत्य साई बाबा को शिरडी साई बाबा का अवतार माना गया है! उनके अनुसार -साई बाबा का जन्म 27 सितंबर, वर्ष 1830 स्थान पाथरी गाँव में ही हुआ था! ऐसे ही उनके जन्म की अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन साई बाबा संस्थान ट्रस्ट इसका विरोध करता है! ट्रस्ट के अनुसार, साई बाबा के जीवन पर सबसे अधिक प्रामाणिक पुस्तक ‘श्री साई सच्चरित्र’ है! जो गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित है और इस पुस्तक में साई बाबा के जन्म और जन्मस्थान के बारे में कुछ नहीं लिखा ! इसलिए साई बाबा संस्थान ट्रस्ट पाथरी को साई बाबा का जन्मस्थान मानने से इनकार करता है! पूरे इतिहास में किए गए कई दावों के बावजूद, शिरडी साईं बाबा का जन्मस्थान और जन्मतिथि अज्ञात है। मूल श्री साईं सत चरित्र के चौथे अध्याय के ओवी संख्या 113 के अनुसार, “कोई भी साईं बाबा के माता-पिता, जन्म या जन्म स्थान को नहीं जानता था।” इन वस्तुओं के संबंध में बाबा से कई बार पूछताछ और प्रश्न करने के बावजूद अभी तक कोई संतोषजनक उत्तर या जानकारी नहीं मिल पाई है। कुछ भक्तों द्वारा जब साईं बाबा से उनके माता-पिता और मूल के बारे में पूछा गया तो बाबा ने यह कहते हुए निश्चित उत्तर देने में अनिच्छा व्यक्त कर दी कि जानकारी महत्वहीन है। साई बाबा पर सबसे प्रमाणित पुस्तक! साई बाबा के जीवन पर सबसे अधिक प्रामाणिक पुस्तक ‘श्री साई सच्चरित्र’ है! जो गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित है! साई बाबा पर लेटेस्ट सीरियल! वैसे तो साई बाबा पर अनेक पिक्चर और धारावाहिक बन चुके हैं, लेकिन सबसे लेटेस्ट धारावाहिक मेरे साई है जिसे sony tv पर प्रसारित किया गया (सितंबर 2017 – जुलाई 2023) साई बाबा शिरडी में कब देखा गया ? कुछ कहानियों के अनुसार, वे 1854 में पहली बार शिरडी आए थे, तब वे सोलह वर्ष के थे! लेकिन फिर वे 3 वर्षों के लिए गायब हो गए, इन तीन वर्षों में वे कहाँ थे या उन्होंने क्या किया इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है! कुछ कहानियों के अनुसार वो इस दौरान कई संत महात्माओं के साथ रहे उन्होंने बुनकर का कार्य भी किया! शिरडी में बापसी! साई बाबा 1858 में वापस लौटे। और फिर समाधि तक शिरडी में ही रहे! उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे ध्यान लगाना शुरू किया, ऐसा माना जाता है कि उस नीम की पत्तियों का स्वाद आज
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 32
32. “तुमने बताया नहीं, कि तुमने पापा से ऐसा क्या कहा है, जो उन्होने यहां भेज दिया तुम्हें?” आँख खोलते ही आकांक्षा ने खुद को अलग करते हुए पूँछा। “मैनें उनसे झूठ कुछ भी नहीं कहा, हां! लेकिन जब उन्होने मुझ पर अपना भरोसा जताया तो मैने मना भी नहीं किया, और अब जो भी कर सकता हूँ उसके लिये पूरी कोशिश करूँगा।” “कोशिश?..”उसने हल्का सा मुँह सिकोड़ा। तभी उन दोनो के पास एक कार आकर रुकी। “अनुराग सर ने आप लोगों को ड्रॉप करने के लिये बोला है” कार की ड्रॉइंविंग सीट पर बैठे लड़के ने कहा। आकाश कुछ बोल पाता इससे पहले ही आकांक्षा कार में बैठ गयी। फिर आकाश भी चुपचाप बैठ गया। थोड़ी देर बाद ही आकांक्षा के मोबाइल पर अनी का कॉल आने लगा। आकांक्षा का फोन सीट पर उन दोनो के बीच में ही रखा था जिससे आकाश की नजर मोबाइल की ओर चली गयी और स्क्रीन पर अनी का नाम देखकर आकाश का मूड खराब हो गया। “हैलो!अनी” “चलो नाम तो याद है” उधर से तंज भरी आवाज मे अनी ने जवाब दिया। “ऐसे क्यों बोल रहे हो?” “तो और कैसे बोलूं? दो दिनों से कहाँ हो तुम? क्या मुझे बताना भी जरुरी नहीं समझा?” फोन स्पीकर पर तो नहीं था, लेकिन अनी की आवाज सुनाई पड़ रही थी। और लाख ना चाहने के बाद भी आकाश ये बातचीत सुनने के लिए मजबूर था। “वो अनी कुछ काम था, इसलिए बाहर आना पड़ा।” “कौन सा काम? बाहर कहाँ? कहाँ हो तुम?” “क्या मैं तुमसे थोड़ी देर बाद बात करुँ अनी ? आकांक्षा तिरछी नजर से आकाश को देखते हुए बोली। ” कम से कम इतना तो बताओ कि हो कहाँ?” “अनी मैनें कहा ना!” “ठीक है” गुस्से मे अनी ने फोन पटक दिया। “तुम कह रहे थे ना, मैं अपनी परेशानी तुमसे शेयर कर सकती हूँ ” आकांक्षा ने बाहर की ओर देख रहे आकाश से कहा। “हाँ बेशक” “अनी और मेरा रिश्ता छिपा नहीं है तुमसे” आकाश ने हामीं में सिर हिला दिया। “पापा ने किसी से भी कुछ कहने से मना किया है। जबकि अनी को कुछ भी ना बताना उसके मन में अपने लिये शंका ही पैदा करना है। ना जाने क्या सोचे” “हुँ” “अजीब उलझन है मैं क्या करुँ, क्या तुम्हारे पास कोई सोल्युशन है मेरी इस प्रॉब्लम का?” “मुझे तो कोई प्रॉब्लम नहीं लगती इसमें” आकाश हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला। “क्या? कैसे?” ” तुम्हारे पापा ने तुम्हें यहां भेज कर कोई ज्यादती की है क्या तुम पर?” “ना नहीं तो” “वो तुम्हें आगे बढाने के लिये, कुछ सिखाने के लिये ही तो ये कर रहे हैं, क्या तुम्हारी जिंदगी के 3 से 4 दिन भी तुम्हारी भलाई के लिये भी वो तुमसे नहीं ले सकते?” “ऐसा तो नहीं! मैं तो बस! बस” “रही बात अनी की तो! क्या वो तुम पर इतना भी भरोसा नहीं कर सकता? भरोसे की नीवं इतनी कमजोर है जो दो दिन भी नहीं टिक सकती?” अभी कुछ मिनट पहले गहरी उलझन में पड़ी आकाँक्षा ये सुनकर अब एकदम हल्का महसूस करने लगी थी। उसने इस बात को ऐसे सोचा ही नहीं। “यही होटल है ना?” कार रोकते हुए उस लड़के ने पूँछा। “हाँ! यही!” कार रुकते ही आकाश तेजी से बाहर निकला और आकांक्षा के लिए कार का दरवाजा खोलते हुए बोला, “आकांक्षा! तुम जाओ रिलेक्स करो शायद तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं” “ऐसी भी कोई तबियत खराब नहीं!बस्स हल्का सा कोल्ड है! तुम नहीं आओगे?” आकांक्षा ने बड़े नर्म लहजे में पूँछा “नहीं। मुझे कुछ काम है, तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ ” *** “तरस गया हूँ तुम्हे हँसते हुए देखने के लिये उर्मिला” गिरिराज ने गहरी आवाज में कहा। और उनके बोलने से ही जैसे उर्मिला को ध्यान आया कि वो गिरिराज के गले लग कर खड़ी हैं। वो फुर्ती से उनसे अलग हुईं और उनकी ओर पीठ करके खड़ी हो गयीं। “अगर ये वो शरमा जाने वाली शर्म है तो मुझे एतराज नहीं। लेकिन.. लेकिन.. इसके अलावा कोई और भावना है तो सरासर बेज्जती है मेरी” गिरिराज ने वैसी ही ठहराव भरी आवाज में कहा। ये सुन कर उर्मिला ने अपनी साड़ी का पल्लू कस कर पकड़ा और खुद के सिर पर ओढ़ लिया। इसे गिरिराज ने बड़े गौर से मुस्कुराते हुए देखा। लेकिन वो फिर भी उनकी ओर पीठ करके ही खड़ी रहीं ! “ठीक है! तो चलता हूँ ! अपना ख्याल रखना और डॉक्टर की दी हुई दवा लेती रहना” गिरिराज दो कदम बढ़े और वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गये। और उनके जाने की सुनकर उर्मिला तेजी से उनकी ओर मुड़ गईं। “ये हुई ना बात! तुम्हें क्या लगा कि सालों से इन्तजार कर रहे इस हलवे को ऐसे ही छोड़ दूँगा ? उर्मिला मुस्कुराये बिना नहीं रह पाईं! गिरिराज आगे बोले, “इन्तजार का दर्द मुझसे पूंछो। ये मौत से भी ज्यादा दर्दनाक होता है। ऐसा घाव जो हमेशा रिसता रहता है। लेकिन ना तो इस पर कोई मरहम लग सकता है और ना ही इस दर्द से मुक्ति मिलती है … “गिरि… “फिर मैं ही तो अकेला नहीं, तुमने भी तो यही दर्द सहा है। सो भी मुझसे ज्यादा … “गिरि” उर्मिला की आँखें गीली हो गयीं। “सुनो उर्मिला! देखो वक़्त हमें वहीं ले आया है। जहाँ से हम बिछड़े थे। देखो! वही आँगन, वही घर, वही किचिन, और तुम्हारे हाथ का वही हलवा! ऐसा नहीं लगता जैसे! जैसे किसी ने पॉज का बटन दवा दिया था। और अभी- अभी रि-स्टार्ट कर दिया हो?” “हाँ! सही कह रहे हो” उर्मिला कहीं खोयी से बोलीं। ” पहला निवाला मुझे अपने हाथों से खिलाओ (गिरिराज ने हलवे की प्लेट उर्मिला को थमा दी) और उर्मिला ने एक चम्मच हलवा लेकर गिरिराज के मुँह में खिला दिया। “इतनी सालें हो गयीं लेकिन तुम्हारे हाथों से बनाये गये हलवे का स्वाद वही है। बदला नहीं है। यकीन ना हो तो खाकर देखो” कहने के साथ ही उन्होने एक चम्मच में थोड़ा हलवा लेकर उर्मिला के मुँह में रख दिया। “तुम्हें यकीन ना हो लेकिन, सच तो ये है कि आज मेरा भी व्रत टूटा है, उर्मिला “ “मतलब?” “मतलब ये! हम जब भी अहाते
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 31
31 डॉक्टर ने उर्मिला को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया था। और वो अपना सामान पैक कर रही थीं। रूम के बाहर खड़े गिरिराज उन्हें देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वो धीमी आवाज में बोले “वो! आकाश को अचानक जाना पड़ गया… तो” “हाँ! आ गया था उसका फोन। मैने कहा कि मैं ठीक हूँ मेरे लिये परेशान ना हो और हूँ भी तो ठीक!” बिना गिरिराज की ओर देखे उन्होने जवाब दिया, और अपना सामान बैग में रखती रहीं। “अगर इजाजत दो, तो क्या मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूँ?” गिरिराज ने संकोच करते हुए पूँछा। उर्मिला ने उन्हें एक नजर देखा और हामीं में सिर हिला दिया। उर्मिला के इजाजत देते ही उन्होनें आगे बढ़कर बैग उठाया और फुर्ती से कार की पिछ्ली सीट पर रखकर आगे की सीट का दरवाजा खोल दिया। उर्मिला आकर कार में बैठ गयीं। “कुछ खाओगी? भूख लगी होगी ना?” गिरिराज स्टीयरिंग संभालते ही बोले, के रोम-रोम से खुशी झलक रही थी। “हाँ! लेकिन, घर जाकर ही कुछ हल्का-फुल्का खाकर थोड़ा आराम करूँगी” “अच्छा! ठीक है” गिरिराज ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। और कुछ मिनट बाद बोले, “ये गाड़ी लिये हुए कुछ महिंने ही हुए हैं, लेकिन इसकी पूजा आज फलीफूत हो पाई है” गिरिराज, उर्मिला की ओर तिरछी नज़र से देखते हुए बोले। “अच्छी गाड़ी है” वो मुस्कराई, गिरिराज के कहने का आशय समझ गयीं थीं। “उर्मिला?” “हम्म” “बुरा ना मानो! तो एक बात पूँछू “ “हम्म” “जो हुआ बेशक मेरी नासमझी के कारण हुआ। लेकिन फिर भी ये अपराधबोध मुझे जीने नहीं देता.. कोई सजा देकर मुक्त कर दो मुझे, तो दिल को तसल्ली मिल जाये” “कोई सजा नहीं देनी अब गिरि! जो हुआ सो हुआ, जो बीत गया है उसे कोई नहीं बदल सकता, फिर मुझे लगता है तुम्हें सजा मिल भी चुकी है!” “तो क्या ये मान सकता हूँ कि तुम्हारी नाराजगी दूर हुई?” उर्मिला ने इसके उत्तर में कुछ नहीं कहा, तो गिरिराज से भी कुछ बोलते ना बना। दोनों के बीच खामोशी छायी रही। जब तक उर्मिला का घर ना आ गया। गिरिराज ने जल्दी से निकल कर उर्मिला की तरफ का दरवाजा खोल दिया। “बैग?” वो उतरते ही धीरे से बोलीं “हम्म!अच्छा!” गिरिराज ने पिछ्ली सीट पर रखा बैग उठाया और धीरे से घर के मेन दरवाजे पर रख दिया। “चाय पीकर जाना गिरि” वो मुड़े ही थे, कि उर्मिला की आवाज ने जैसे उनके कदमों पर ब्रेक लगा दिये। गिरिराज के पैर तो पैर साँस भी मानो रुक सी गयी। उर्मिला ने चाय के लिये बोला है। मुझसे कहीं सुनने में भूल तो नहीं हो गयी। “उम्म, कुछ कहा क्या?” दुबारा कन्फ़र्म कर लेना सही लगा उन्हें। “हाँ! मैने कहा चाय पीकर जाना, ज्यादा देर नहीं लगेगी!अभी बनाती हूँ” उर्मिला मुस्कुराती हुई किचिन से बोली। “अच्छा!” आँगन में पड़ी कुर्सी पर गिरिराज धीरे से बैठ गये।मन में एक अजीब सी खुशी की लहर दौड़ गयी। ये हो क्या रहा है छोटे-छोटे अंकुर से क्यों फूट रहे हैं शरीर के रोम-रोम से। गिरिराज ने अपने ही हाथ आपस में कस कर पकड़ लिये। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि चाय बनने में घंटे दो घंटे निकल जाये। इन पलों को जीने का सपना मैने सालों साल देखा है। ओह्ह ये कितना खुशनुमा है। वो कनखियों से किचिन में काम करती उर्मिला को बार-बार देखते हुए सोच रहे थे। और जैसे ही लगता कि उर्मिला मुड़ने वालीं हैं वो अपनी नजर जमीन पर गढ़ा देते। जब तक उर्मिला किचिन में रहीं वो उन्हें ऐसे ही देखते रहे! “ये लो गिरि, पहले ये हलवा खाओ” उर्मिला ने एक छोटी प्लेट उनकी ओर बढा दी। “हलवा?” “हाँ! इस हलवे ने सालों इन्तजार किया है तुम्हारा गिरि” “मैं समझा नहीं?” “उस बुरे हादसे के दिन जब तुमने नागेन्द्र को मेरे घर में देखा था। उस दिन मैं तुम्हारे लिये हलवा ही बना रही थी।” उर्मिला ने अपनी आँखों के किनारे पोंछ लिये। “क्या?” गिरिराज आश्चर्य से उर्मिला को देख रहे थे। “हाँ…ठीक उस दिन से इस हलवे को इन्तजार था तुम्हारा, और सिर्फ इसे ही नहीं! मैने भी उस दिन से हलवा नहीं खाया गिरि” गिरिराज की आँखे आँसुओं से भर गयी और आँखों से आँसूं निकलने लगे जो जल्दी ही रोने में तब्दील हो गए। “अरे!गिरि!” उर्मिला भी चकित थीं। गिरिराज ऐसे भी रो सकते हैं, उन्होनें आगे बढ़कर धीरे से गिरिराज की पीठ पर हाथ रख दिया। लेकिन गिरिराज का रोना कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ गया। ये सालों का गुबार था जो आज शायद पहली बार ऐसे बाहर निकल रहा था। उर्मिला ने इस समय कुछ कहना भी सही नहीं समझा। अब, दोनों एकदूसरे के सामने खड़े थे और एकदूसरे की आँखों से बहते आँसुओं को देख रहे थे। कुछ पल बाद गिरिराज ने आगे बढ़कर उर्मिला के थोड़े नजदीक खड़े हो गये। “गलती की होती तो माफी मांगते हुए मुझे सोचना ना पड़ता उर्मिला, लेकिन गुनाह की तो माफी भी नहीं होती। मैं! हम दोनों का ही दोषी हूँ” “बस करो गिरि! कितनी माफी मांगोगे” “तो क्या करुँ!सजा देकर मुक्त भी तो नहीं करती तुम मुझे उर्मिला” दोनों ने ध्यान नहीं दिया था। कि इस कहने और सुनने के क्रम में वो एक-दूसरे के बेहद करीब खड़े हो गए थे। “सजा नहीं! एक कभी ना टूटने वाला वादा कर सको तो करो गिरि” “तुम बोलो तो उर्मिला। बोलकर तो देखो” “चाहें जो जाये लेकिन अब मुझे छोड़कर कभी मत जाना, गिरि” ये सुनकर गिरिराज ने उर्मिला का हाथ पकड़ा और उन्हें अपनी ओर हल्का सा खींचते हुए सीने से लगा लिया। “कभी नहीं! हरगिज नहीं!और अब तो एक पल नहीं! दूर ना जाने का वादा तो उसी पल कर लिया था जब आकाश तुमसे मिलाने मुझे यहां लाया था!” “सच?” “हां बिल्कुल! ये तो तुम्हें कहने की जरुरत ही नहीं है। तुमसे दूर होकर तो मैं एक मिनट भी नहीं जी सकता उर्मिला! नहीं जी सकता! बस माफ कर दो मुझे!माफ कर दो! अब कभी एक पल को भी अकेला नहीं छोडूंगा” अब दोनों ही रोते हुए भी एक स्वर्ग जैसा सुख महसूस कर रहे थे। ना जाने कितनी ही देर दोनों ऐसे ही खड़े रहे, एक दूसरे में सिमटे हुए। सालों की शिकायते