सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 30
30. “वही लंबे बालों वाली लड़की” आकाश धीरे से बुदबुदाया! “जो तुम्हें सड़क पर दिखी थी ?” “हाँ .. “ “ठीक है, उसके पास जाओ आकाश! उसका चेहरा देखने की कोशिश करो” सुरेंद्र धीरे से बोले “मैं जा रहा हूँ उसके पास ..” कुछ पल शांति छाई रही और अचानक “आ…कां…क्षा…” आकाश चीखा, और उसके चीखते ही गिरिराज के हाथ से कॉफी का मग छिटकर नीचे गिर पड़ा। जिसकी आवाज से आकाश की आँखे खुल गयी। “ओह्ह! बेबकूफ…बेबकूफ” सुरेंद्र बुरी तरह गिरिराज की ओर देखते हुए झल्लाये। “क्या किया मैंने?…तुमने देखा नहीं उसने आकांक्षा का नाम लिया…और मेरे हाथ से…” “एक कॉफी का मग नहीं संभाला जाता तुमसे…सारी मेहनत खराब कर दी।” सुरेंद्र गुस्से में बोले “चलो! चलो! फिर से करते हैं” “नहीं !अब नहीं हो सकता!” “क्यों?” “क्योंकि पहले दिमाग को नहीं पता होता तो वो आसानी से बात मान लेता है। लेकिन अब दिमाग कॉन्शियस है. अब नहीं सुनेगा.” “आकांक्षा ….वो मुझे ऐसे क्यों दिखी?” आकाश बुदबुदाया “सुनो आकाश! कुछ और मत सोचो बस्स ये जान लो कि हम तुम्हारी समस्या हल कर सकते हैं। मैं अगले सेशन के लिए तुम्हें जल्द बुलाऊंगा, अभी तुम जाओ और किसी और काम पर ध्यान लगाओ, बेहद जरूरी है तुम्हारे लिए।” सुरेंद्र ने आकाश की पीठ थपथपाते हुए कहा। “क्या ही काम करूंगा अब…”आकाश निराश आवाज में बोला और कमरे से बाहर निकल गया। “कुछ करो..इसके लिये.” सुरेंद्र ने गिरिराज की ओर देखकर गंभीरता से कहा। *** “क्यों नहीं जा सकतीं भला? पढ़ी-लिखी हो समझदार हो कभी ना कभी तो शुरुआत करनी ही होती है” सूरज अपनी आवाज तेज करते हुए बोले। डाइनिंग टेबल पर लगा हुआ नाश्ता शायद ऐसे ही रहने वाला था। शुरुआत करने से पहले ही सूरज ने आकांक्षा को शहर से बाहर जाकर एक प्रोजेक्ट सँभालने की जिम्मेदारी दे दी थी। “लेकिन पापा! मुझे कुछ तो आइडिया होना चाहिए ना?” आकांक्षा ने कहना चाहा। “मुझे कुछ नहीं सुनना। परसों जा रही हो बस्स! “क्या ?” इस बार आकांक्षा के साथ-साथ सूरज की पत्नी और बड़ी बेटी ने भी अपन आश्चर्य व्यक्त किया। “ये रही फ्लाइट की टिकट।”सूरज ने टिकट्स आकांक्षा की प्लेट के पास रख दीं। “अब जब ठान ही चुके हो तो कम से कम मुझे साथ जाने दो।” सूरज की पत्नी ने कहा। “नहीं! तुम नहीं, कोई और जाएगा इसके साथ” सूरज ने धीमी आवाज में कहा। “कौन पापा?” “जो साथ जाएगा वो वहीं एयरपोर्ट पर मिलेगा” सूरज अपनी चेयर से उठे और दो कदम चले ही थे कि एक ख्याल आते ही रुक गए। “तुम जा रही हो, इसका पता हम तीनों के अलावा किसी चौथे व्यक्ति को नहीं चलना चाहिए, खासतौर पर अकांक्षा, मैं तुमसे कह रहा हूँ” “पापा?” “मैंने आज तक तुमसे कुछ भी करने को नहीं कहा है। उम्मीद है मेरी बात का ख्याल रखोगी” सूरज का इस तरह से बोलना आकांक्षा के चेहरे पर तनाव तो ले आया था। लेकिन उसने इसके जवाब में कुछ कहा नहीं। *** “मैं नहीं जाऊंगा गिरी अंकल! मुझमें नहीं है ताकत उस ..उस अनी की वीरगाथाएं सुनने की…जिन्हें सुना सुनाकर आकांक्षा मेरा सांस लेना दूभर कर देगी।” आकाश गुस्से में बोला। “बस्स इतना ही सोच पा रहे हो? अभी शायद तुम्हें एहसास नहीं है कि एक छोटी प्रॉब्लम की वजह से तुम अपनी जिंदगी को जहन्नुम बनाने की तैयारी मे हो?” गिरिराज बड़े धीमी आवाज में बोलते हुए आकाश के सामने खड़े हो गए थे। “क्या मतलब, अंकल” “मतलब ये …”गिरिराज आगे कुछ बोल पाते इससे पहले ही आकाश का मोबाइल बज उठा। आकाश ने गिरिराज को रुकने का इशारा किया “एक मिनट अंकल” और फ़ोन पिक किया। उर्मिला का कॉल था! “हाँ बुआ जी…जी…क्या हुआ! बस्स दो मिनट दीजिये मैं अभी आया! अभी आया” “क्या हुआ?” आकाश के चेहरे पर आए तनाव ने गिरिराज को आशंकाओं से भर दिया था। “बुआ की तबियत खराब हो गयी है” वो घबराहट में बोला “क्या? चलो मेरे साथ” गिरिराज जल्दी से अपनी गाड़ी की ओर लपकते हुए बोले! *** “पैनिक अटैक था। शायद कोई तनाव है, जिसे किसी से शेयर नहीं कर पा रहीं हैं” डॉक्टर उर्मिला जी के लिए मेडिसन लिखते हुए बोल रहे थे। “तनाव?” सुनकर, गिरिराज का चेहरा गंभीर हो गया। जब तक ये दोनों घर पहुंचे, उर्मिला जमीन पर वेसुध सी पड़ी थीं। और ये दोनों उन्हें उठाकर हॉस्पिटल ले आये थे। डॉक्टर के केबिन से निकलकर आकाश, उर्मिला के बेड के पास गया। और उसने उर्मिला का हाथ खुद के हाथ में लेते हुए पूँछा”अब कैसा महसूस कर रहीं हैं बुआ जी?” “ठीक…”फिर उनकी नजर बाहर की ओर चली गयी जहाँ गिरिराज दुबके से खड़े थे, और उनकी ओर देख रहे थे। उर्मिला ने आकाश को इशारे से कुछ कहा, “वो बुला रही हैं आपको” आकाश ने गिरिराज के पास आकर कहा। “मुझे …नहीं मुझे कैसे?” “वो सच में आपको बुला रही हैं, अंदर जाइये।” अंकित ने मुस्कुराते हुए गिरिराज के कंधे पर हाथ रखा और बाहर निकल गया। गिरिराज बेहद सधे कदमों से अंदर गए और उर्मिला के बेड से कुछ दूरी पर जाकर चुपचाप खड़े हो गए। “मैं ठीक हूँ! इतनी जल्दी पीछा नहीं छुटने वाला मुझसे” उर्मिला हल्का सा मुस्कुरा कर बोलीं। “हे! ऐसे मत कहो!” “यहां आकर बैठो! कुछ बात करनी है” “मुझसे” गिरिराज को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ। “हाँ.. बैठो” गिरिराज, उर्मिला के बेड के पास पड़े स्टूल पर बैठ गए। “तुम्हारी गले की चैन कहाँ है? कभी गले में दिखती ही नहीं” उर्मिला से ये सुनकर, गिरिराज की आंखें डबडबा गयी। “आह!कब से! कब से इंतजार कर रहा था। कि तुम्हारा ध्यान कभी तो जाए इस ओर।…देर से ही सही..तुम्हें याद तो आया” “तो बताओ क्यों नहीं पहनी?” “इसीलिए, कि तुम्हारा ध्यान जाए। तुम पूँछों बस्स। इसी बहाने बोलो कुछ और जब अब पूंछ लिया है तो आज ही में पहन लूंगा।” गिरिराज खुशी से सरोबार थे। “हाँ, पहन लेना। जब इतरा कर चलते हो ना। तो अच्छे लगते हो।” उर्मिला का इतना कहना था कि गिरिराज के शरीर में खून का दौरा दोगुनी गति से दौड़ने लगा। उन्हें खुद को संभाले रखना मुश्किल लगा। “मैं..मैं कुछ खाने के लिए लाता हूँ” वो दरवाजे की ओर लपके। लगता है उर्मिला ने अब
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 29
“जी… सही सुना आपने! मिस्टर राव कोमा से बाहर आ गये हैं” डॉक्टर ने मुस्कुरा कर अपनी बात दोहरा दी। बैशाली ने जल्दी से सूरज को फोन लगाकर अपने कान पर रखा, और दौड़ते हुए हॉस्पिटल के दरवाजे से राव सर के कमरे तक पहुंची। “…आप ठीक हैं?” राव सर को होश में देखकर उसका गला रुंध गया और जुबान इन शब्दों से ज्यादा कुछ नहीं बोल पाई। अब तक रोके हुए आँसूं आँखो से झर-झर बहने लगे। “रोओ मत बेटी! बदकिस्मती का क्या किया जा सकता है” राव सर धीरे से बोले फिर उन्होने उठना चाहा! डॉक्टर ने आगे बढ़कर उनकी मदद की लेकिन ये क्या! पूरी ताकत लगा कर भी वो उठ नहीं पा रहे थे। “डॉक्टर मैं उठ नहीं पा रहा हूँ …” “थोड़ा धैर्य रखिये…शरीर को एक्तिविटी करने में समय लगेगा। ” डॉक्टर ने उन्हें ढ़ाढस बँधाया। सुबह से शाम हो गयी…कई चेकअप हुए तब जाकर डॉक्टर एक निष्कर्ष पर पहुँचे और उन्होने जानकारी दी। “सॉरी, फिलहाल आप चल नहीं पायेंगे” डॉक्टर इतना ही कह पाये कि “नहीं” बैशाली जोर से चीख पड़ी। “प्लीज उम्मीद बनाए रखिये। कई ऐसे केस हुए हैं जिनमें पेशेंट थोड़े टाइम के बाद चले हैं! हम आपके लिए भी ऐसी उम्मीद कर रहे हैं!” डॉक्टर ने अपनी बात पूरी की ” मैं अपाहिज हो गया हूँ ….मेरे पैरों में जान नहीं है” मिस्टर राव डर से बार- बार दोहरा रहे थे। अब तक सूरज भी, नवीन के साथ पहुँच गया था। “तन या मन में से कुछ तो ठीक हो। अगर दोनो ही ठीक ना हो.. तो इस बोझ भरी जिंदगी का क्या औचित्य? मुझे मौत चाहिये डॉक्टर…मुझे मौत चाहिये…नहीं चाहिये ऐसा जीवन जिसमें कोई उम्मीद ना हो” मिस्टर राव जोर से चीखे। “एक उम्मीद है पापा” वैशाली के इन शब्दों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। “और इस उम्मीद को आपकी बहुत जरुरत है.. ” वैशाली बहुत सधे शब्दों में बोली। कमरे में मौजूद सभी लोगो की नजरें अब वैशाली पर थीं। कुछ पलों के लिये अजब कौतूहल का माहौल बन गया था। वो कुछ क्षण जानबूझकर चुप रही शायद इस कश्मकस में कि उसे कहना चाहिए या नहीं, फिर उसके चेहरे पर सख्ती के भाव आ गये। और वो बोली, “मैं प्रेग्नेंट हूँ पापा…मेरे पेट में राहुल का बच्चा पल रहा है….” वैशाली की इस खबर से सब चौंक पड़े। “क्या सच?” राव सर भावुक हो गये। “हम्म! ये सच है” वैशाली ने आश्वस्त किया। इस खबर से राव सर के चेहरे पर आशा का संचार हो गया था! वहीं सूरज और नवीन एक दूसरे की ओर हैरत से देखा। “स्साला” इंस्पेक्टर नवीन दाँत पीसते हुए धीरे से फुसफुसाया। मिस्टर राव को जीने की उम्मीद मिल गयी थी। हॉस्पीटल से घर आते ही उन्होने कम्पनी का जायजा लिया। और वैशाली के हरेक निर्णय की तारीफ करते हुए, सूरज को अधिकार सहित कम्पनी का सी. ई.ओ. बना दिया। *** कुछ महिने बीत जाने बाद जब वैशाली ने अपने दूसरे बेटे को जन्म दिया। राव सर नन्हें बच्चे को निहारते हुए बोले। “बहु बेटा, मैं नहीं चाहता कि राहुल की कोई भी आदत इस बच्चे में आए” “मैं भी यही चाहती हूँ पापा! मैं अपने बच्चे को आप की तरह बनाना चाहती हूँ ..वैसे कोई नाम सोचा आपने इसका?” वैशाली एक अर्से बाद मुस्कुरा रही थी। “हम्म्म्म ….अन्तस” “बहुत सुन्दर नाम है पापा…” वैशाली ने बच्चे को उठाकर राव सर को थमा दिया। “मेरा अनी” वो जोर से हँसे। ## “मैडम जी! मैडम जी!” कुक की आवाज से वैशाली की तंद्रा टूटी वो अतीत से बापस वर्तमान में लौट आई। “क्या हुआ?” वैशाली ने साड़ी के पल्लू से जल्दी से अपनी आँखे पोछ लीं। “अनी बाबा बुला रहे हैं आपको” “अच्छा! चलो आती हूँ “ “मॉम, मैं आकांक्षा को छोड़ने जा रहा हूँ ” वैशाली को अपनी ओर आते देख अनी बोला “इतनी जल्दी?” “वो आकांक्षा को कुछ काम है” “मैं तो कोई बात ही नहीं कर पाई आकांक्षा से। चलो अगली बार सही। अच्छा! आती रहना बेटी! तुम्हारा आना बहुत अच्छा लगा” वैशाली ने कहा तो आकांक्षा ने स्वीकृति में सिर हिलाते हुए नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिये। *** “आकाश! आकाश! तुम सुन रहे हो ना?” गिरिराज, आकाश के गाल थपथपा रहे थे। वो आकाश को जैसे-तैसे गाड़ी में डालकर अपने दोस्त सुरेन्द्र के यहां ले आये थे। “हम्म्म अं.. क.. ल…” बेहोशी में बुदबुदाया आकाश। “शुक्र है!” गिरिराज ने राहत की सांस ली। “अरे यार! क्या जाहिलों की तरह तुम उसके गाल थपड़ियाये जा रहे हो! हटो जरा! मुझे देखने दो” सुरेन्द्र आगे आते हुए बोले। “आकाश तुम ठीक हो ना? जानते हो कौन लाया है तुम्हें यहाँ?” सुरेन्द्र ने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूँछा। “गिरि अंकल” आकाश धीरे से बोला “हम्म! क्यों गिरि! तुमने बस्स ग्राउंड फ्लोर का ही घर बनवाया है ना?” “क्या तुम तंज कस रहे हो मुझ पर?” “ओह्ह! औंधी खोपड़ी हो तुम भी गिरि! बस्स जानना चाहता था कि कितनी उँचाई से गिरा है ये? कहीं शरीर के किसी अन्दरूनी हिस्से में चोट ना आयी हो यही डर है” “चोट आयी होती तो होश मे होता ये? फिर मैं इसे यहां लाता या किसी इमरजेंसी में ले जाता?” “ओह्हो! हरेक बात जानना जरुरी है इसके बारे में गिरि इसलिये पूँछा” “एक-एक बात बता दी है मैनें तुम्हें इसके बारे में …अब कौन सा प्रश्न बाकी रह गया है?” गिरिराज थोड़े चिढ़ से भरे हुए थे इसलिए खीज रहे थे। “ठीक है! समझ गया! देखो वहाँ तुम्हारे लिये कॉफी रखी है…जाओ चुपचाप बैठकर उसका आनंद लो (धीमी आवाज में) कैसे भी मुँह बन्द तो हो तुम्हारा” कमरे के कोने में रखी कॉफी की ओर इशारा करते हुए सुरेन्द्र, आकाश की ओर बढ़े। और उन्होने कमरे की रोशनी बेहद मद्धम कर ली। सिर्फ हल्की रोशनी आकाश के शरीर पर ही पड़ रही थी। ” अच्छा सुन! शान्त रहना! हम अभी इसे हिप्नोटाइज करेंगे” “क्या अभी…. लेकिन उसे चोट लगी है .. और ?” “श्ह्ह्ह्ह शान्त!” हाथ के इशारे से गिरिराज को चुप रहने का इशारा किया। और पेंडुलनुमाँ एक चीज उठा ली। “अपनी आँखे खोलो और मुझे देखो आकाश! धीरे से आँखे खोलो आकाश” आकाश ने अपनी आँखे खोल दी। “तुम्हें
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 28
28 अनी के दादा जी को अपनी ओर ऐसे आश्चर्य से देखते हुए आकांक्षा असमंजस से अनी की ओर देखती है। “क्या हुआ दादू? आपने आकांक्षा को पहले कहीं देखा है क्या?”अनी ने पूँछा “यकीन नहीं होता! कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा?” वो बुदबुदाये! “दादू?” अनी ने फिर कहा “बेटी!क्या नाम है तुम्हारा?” उन्होंने आकांक्षा से पूँछा “आकांक्षा” आकांक्षा मुस्कराई। “हम्म्म..बहुत प्यारा नाम है, जाओ अनी, आकांक्षा को अपनी मां से मिलवाओ” “जी दादू” अनी खुशी से उछला, और आकांक्षा का हाथ पकड़ कर घर के अंदर जाने को मुड़ गया। तभी, उसके दादू ने उसे आवाज लगा दी! “अनी! सुनो जरा!” “हाँ दादू” भागते हुए उन तक आया अनी “ये लड्की सिर्फ तुम्हारी दोस्त ही है या फिर?” पूंछने के साथ ही उन्होंने अपनी अनुभवी आँखें अनी के चेहरे पर टिका दीं। “वो दादू!” अनी नजरें नीची कर शरमाया। “जीते रहो…अच्छी लड्की है! मन की बात कहने में देर मत लगाना” उनकी अनुभवी आँखे ताड़ गई थीं! अनी खुशी से छलाँगे सी भरता आकांक्षा के पास जाकर खड़ा हो गया। “चलो अंदर! मॉम से मिलवाता हूँ! “उसने तेज आवाज लगायी “मॉम!” जिसे सुनकर वैशाली सामने आ गयी। “मॉम ये आकांक्षा! मेरी दोस्त” अनी ने परिचय कराया, आकांक्षा ने नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिये। “खुश रहो बेटी, बहुत सुन्दर हो तुम…” “थैंक यू आँटी” “अनी! आकांक्षा को अपना घर नहीं दिखाओगे?” वैशाली ने अनी से कहा। “श्योर मॉम” “तब तक मैं कुछ खाने का इन्तजाम करवाती हूँ ” वैशाली वहाँ से निकलकर किचिन तक गई, कुक को कुछ अच्छा पकाने की हिदायत दे ही रही थीं कि तेज आवाज हुई और वो चौंक कर लॉवी की ओर दौड़ी। *** “थोड़ा बहुत अजीब हो तो झेल भी लूँ ..लेकिन ये…खुद को ऐसा बेबस पंछी महसूस कर रहा हूँ जो जितना जाल से निकलने की कोशिश करता है…उतना ही फँसता जाता है” बुरी तरह से झल्लाया हुआ आकाश अपनी सारी खिसियाहट गिरिराज के सामने निकाल रहा था। वो गिरिराज से मिलने उनके घर ही आया था और इस वक़्त दोनों छत पर खड़े थे। “शोरूम क्यों नहीं जाते तुम आजकल?” पूरी तरह से आकाश की बात को अनसुना करने का नाटक करते हुए गिरिराज ने धीरे से पूँछा। “सचमुच ये आप ही हैं ना?” आकाश उनके इस रवैये से हैरान रह गया “क्या करुँ वहाँ जाकर ? अपनी मोहब्बत का जनाजा देखूँ? फिर एकाएक आकाश की तेज आवाज धीमी हुई…और वो बुदबुदाया “कोई उम्मीद नहीं बची…मैं जिन्दा क्यों हूँ?” “तुम समझते क्योँ नहीं आकाश?” अब तक उसकी ओर पीठ करके खड़े हुए गिरिराज पलटे। लेकिन देर हो गयी थी। गिरिराज का कलेजा मुंह को आ गया! आकाश ने छत से छलांग लगा दी थी! “आ….काश! ” गिरिराज जोर से चीखे और तेजी से नीचे की ओर दौड़े। *** वैशाली ने देखा, ड्राइंग रुम में लगी राहुल की तस्वीर नीचे गिर गयी थी…कांच टूट गया था इसी की तेज आवाज हुई थी। “मैडम जी! वो तेज हवा चल रही है ना.. इसी वज़ह से गिर गयी होगी” कुक भी वैशाली के साथ दौड़ता हुआ ड्राइंग रुम तक आ गया था। “हम्म” वैशाली ने राहुल की तस्वीर उठायी और बापस दीवार पर टाँग दी। कुक ने फर्श पर गिरा कांच साफ करना शुरू कर दिया। इस समय राहुल की तस्वीर सामने आना वैशाली को अतीत में खींच ले गया। वो मंजर उसकी आँखों के सामने घूम गया जब राहुल जीवित था और अंततः उससे शादी के लिये राजी हो गया था। ## (पार्ट 2 का हिस्सा) “सब लोग जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ, रिसेप्शन में कोई कमी नहीं रहनी चाहिये..और अभी तो कितना काम बाकी है ..” राव सर इंतज़ाम देखते हुए तेज़ आवाज में बोले… “आप चिंता मत कीजिये सर, सारा काम रिसेप्शन से पहले खत्म हो जाएगा” मैनेजर उन्हें आश्वासन देता हुआ बोला। राहुल को टैरिस पर अकेले खड़ा देखकर, वैशाली ने पूँछा, “यहाँ ऐसे चुपचाप अकेले क्यों खड़े हो” “यूं ही…ऐसे अचानक कोर्ट में शादी हो जाएगी सोचा नहीं था” राहुल ने वैशाली की ओर बिना देखे कहा “शादी कोर्ट में हो या मंडप में क्या फर्क पड़ता है…हम्म लेकिन धूमधाम से शादी नहीं हो पायी .. उसका अफसोस हो रहा होगा… है ना?” राहुल ने वैशाली की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया..तो वैशाली फिर बोली “इस बात की फिक्र मत करो राहुल…कल का रिशेप्शन बहुत धूमधाम वाला होगा तुमने देखा ना.. अंकल कितनी खुशी से रिशेप्शन की तैयारी कर रहे हैं…” वैशाली खिलखिलाने लगी। “हम्म सो तो है…अंकल बहुत खुश हैं…और देख रहा हूँ.. तुम भी बहुत खुश दिख रही हो” राहुल चुभती नजर से वैशाली को देखते हुए बोला..राहुल की ऐसी चुभती नजर से वैशाली घबरा गई “राहुल जो हुआ सो भूल जाओ ना…चलो एक नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करते हैं” वैशाली की मनुहार ने राहुल को शान्त कर दिया। राहुल ने उसे एक सरसरी नजर से देखते हुए कहा, “हम्म …सही कहती हो…” “क्या… सच..?.” वैशाली को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी बात राहुल इतनी आसानी से मान जाएगा “हम्म एकदम सच…आओ तुम्हें हमारा कमरा दिखाता हूँ” राहुल को ऐसे सामान्य देखकर वैशाली ने तसल्ली की सांस ली ओह्ह अब सब सही हो जायेगा सोचते हुए वो उसके साथ चल दी। “देखो अंकल ने हमारे लिये ये रुम कितनी खुबसूरती से डेकोरेट कराया है” राहुल कमरे का दरवाजा खोलते हुए बोला “वाह! बहुत सुन्दर” रोशनी और फूलों से सजे हुए कमरे को देखकर वो अपनी ऐड़ियों पर घूम गयी। “आओ इस शाम को यादगार बना दें” राहुल ने उसे अपनी ओर खींचा “नहीं राहुल! अभी नहीं…रिशेप्शन हो जाने दो…” वो खुद को पीछे की ओर धकेलते हुए बोली। “..जब कोर्ट में शादी हो चुकी है तो क्या फर्क पड़ता है आज या फिर कल” राहुल ने आगे बढ़कर लाइट बन्द कर दी। “लेकिन…राहुल” “श्हहह चुप रहो” राहुल ने पास आते हुए उसका हाथ तेजी से पकड़ लिया। *** कौन जानता था कि अगले दिन ऐसी मनहूसियत आने वाली है…उसका बेटा जो कि एक नन्ही सी जान था। छत से फेंक दिये जाने से ऐसे मांस के लोथड़ों में तब्दील हो जायेगा। ना जाने कितने ही घंटें वो गम में डूबी बैठी रही थी। उसे यकीन था
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 27
27. “यकीन नहीं होता…ये तो! ये तो! अंकित है….अरे हाँ ये अंकित है” हैरत से आँखें फैलाये घनश्याम बुदबुदा रहे थे। “क्या.. सूरज आया है? ओह्ह! कितने समय बाद” अंदर से सरोज आ गयीं थीं “अरे सामने से हटो तो सई” उन्होने घनश्याम को परे सरका दिया और जैसे ही नजर सामने पड़ी वो जैसे जम गयीं। “हाय! क्या सपना देख रही हूँ मैं …ये तो… अंकित (सरोज ने अपने दोनों हाथ मुँह पर रख लिये, वो पलकें झपकाना भूल गयीं थीं। “मैं जानती थी! मेरा दिल हमेशा कहता था कि तू जरुर आएगा…मेरा अंकित लौट आया है” रोती हुई सरोज आगे बढ़ी और आकाश से कस कर लिपट गयीं। “. अह… सुनिये …गलत समझ रहीं हैं आप मुझे, हटिये..” आकाश कसमसाया लेकिन सरोज कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थीं। उन्होने आकाश की शर्ट को कस कर पकड़ लिया था और वो खुशी से रो रही थीं। “मैनें कहा दूर हटिये मुझसे आँटी” ताकत लगाते हुए आकाश ने सरोज को खुद से दूर हटा दिया। “आँटी नहीं…माँ ही बोल ना बेटा…जमाना हो गया अपने लिये माँ सुने…अच्छा!आ भीतर आ! आकर देख तेरा कमरा वैसा ही है अब तक…क्या मजाल जो कोई भी चीज हटायी हो मैनें या किसी और को तेरे सामान में हाथ लगाने दिया हो” सरोज खुशी से लबरेज, आकाश का हाथ पकड़कर अंदर की ओर खीचतें हुए ले आयीं। घनश्याम बस्स अपलक आकाश को देखे जा रहे थे। सूरज बार- बार अपनी नम होती आँखें पोछ लेते, और गिरिराज बस्स सबकुछ देखने और समझने की कोशिश कर रहे थे। “ये देख! तेरे कमरे की चाबी” एक सुनहरी सुन्दर सी डिब्बी से सरोज ने एक चाबी निकाली। “तू अपना कमरा देख, तब तक मैं तेरे पसंद के लड्डू बनाती हूँ …अरे सुनो! जरा ऊपर से वो बेसन का डिब्बा निकालो तो ..या रहने दो! तुम जब तक यहां से हिल-हिल कर चलोगे ना, तब तक सूरज डिब्बा उठा भी देगा! (सूरज से मुखातिब होकर) सूरज?” “हाँ हाँ अभी निकालता हूँ” सूरज किचिन में चला गया। “सबसे पहले मैं अपने अंकित को उसका कमरा दिखाऊंगी…फिर ढ़ेर सारी बातें करेंगे” सरोज ने आगे बढ़कर अंकित की बाँह पकड़ी और धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगीं। पीछे-पीछे गिरिराज और सूरज भी चल दिये। “ये देख! जैसा छोड़ा था तूने, तेरा कमरा आज भी वैसा ही है, चाहें किसी ने कुछ भी कहा हो लेकिन मैनें यकीन नहीं किया, मेरा मन कहता था तू आएगा…और देख तू आ गया” सरोज जोश और खुशी से लबरेज थीं। पूरे कमरे को सरसरी नजर से देखती हुईं आकाश की आँखें एक दीवार पर लटकी धुंधली तस्वीर पर जाकर टिक गयीं। वो पास गया और कील पर टँगी तस्वीर निकाल ली। एक पुराना फोटो, जिसमें किसी पेड़ के नीचे खड़ा अंकित मुस्कुरा रहा था। “ये फोटो कब खींचा गया मेरा? और इतने फिट कपड़े तो मैं कभी नहीं पहनता” असमंजस में बुदबुदाया आकाश! “याद नहीं तुझे? उन दिनों तू जिम जाने लगा था…बड़ा खुश रहता था” सरोज चहकते हुए बोलीं। “मैं अपनी जिंदगी में कभी जिम नहीं गया…ये सब हो क्या रहा है?”आकाश ने जवाब दिया तो सरोज जल्दी से एक लकड़ी की आलमारी की ओर बढ़ी और उसे खोलते हुए बोलीं, “ये देख! यही वाली टी शर्ट पहनी है तूने फोटो में…मैने अभी परसों ही तेरे कमरे की सफाई की है, दीपावली आने वाली है ना” सरोज ने फोटो में पहनी हुई टी शर्ट निकाली और आकाश के सामने लाते हुए उसकी तह खोल दी। ये सब देखकर आकाश का सिर चकराने लगा था। धीरे-धीरे उसने अपने कदम पीछे की ओर बढ़ाने शुरू कर दिये, तेजी से कमरे से बाहर निकला और सीढ़ियाँ उतर गया। “आकाश! ” गिरिराज ने उसे जाते देख आवाज दी, और उसके पीछे पीछे नीचे उतरे, लेकिन तेज दौड़ने में आकाश का मुकाबला करना इतना आसान नहीं था। सरोज समेत सब दरवाजे तक भागते से आये, इतने मे आकाश आँखों से ओझल हो गया था। सरोज की आँखे आँसुओं से भर गयीं। “परेशान मत होइये! उसे अभी सब समझने में समय लगेगा” सूरज ने सरोज को संभालते हुए कहा “मेरी ही गलती थी, मैं बोलती ही जा रही थी, मैने उसे बोलने का मौका नहीं दिया। कितनी सालों बाद आया था वो, कितनी मिन्न्ंतों के बाद! और मैं उसकी आवाज तक नहीं सुन पायी..आह्ह्हह” सरोज सुबकते हुए बोलीं। “मैं वादा करता हूँ वो जल्दी लौटेगा आँटी …और आपसे ढ़ेर सारी बातें करेगा…यकीन कीजिये मेरा…फिर आप रो क्यों रही हैं? सोचिए तो ये कितनी खुशी की बात है कि आपका अंकित लौट आया है ?” सूरज की बात से सहमत सरोज ने जल्दी से अपने आँसू पोंछ लिये। “हां सही कहते हो सूरज, मेरा अंकित बापस आ गया है …लेकिन मैं उसे कुछ खिला भी नहीं पायी” “तभी तो! कुछ ऐसे बना लिजिये जो ज्यादा दिनों तक बना रखा रहे, ताकि जब अंकित आये तो आप खाना बनाने की फिक्र किये बिना उससे बैठ कर बात कर सकें। ” सूरज ने उनका मन बहलाने को बोला। “हां सही कहते हो। जब वो दुबारा आएगा मैं उसे तरह-तरह के पकवान खिलाऊगीं, मैं कुछ बनाती हूँ उसके लिये” वो मुस्कुराते हुए किचिन में चली गयीं। और सरोज के हटते ही। अब तक मूक दर्शक बने घनश्याम सूरज के पास जाकर खड़े हो गये। और आँखों में अनगिनत प्रश्न लेकर घनश्याम ने अपना हाथ सूरज के कंधे पर रख कर बोले, “लेकिन! सूरज!” “मैं समझ रहा हूँ, दुनियाभर के प्रश्न हैं आपके पास.. लेकिन फिलहाल इतना ही कह सकता हूँ अंकल, कि ये अंकित का दूसरा जन्म है, ईश्वर ने हमारी दुआएं कुबूल की हैं, अब हमें बहुत धैर्य से काम करते हुए उसे सब याद दिलाना होगा” सूरज की बात पर घनश्याम ने अपना सिर सहमति में हिला दिया और वो भावुक होकर सूरज के गले लग गये, ये पहली बार हुआ था। *** आकाश के जाने के बाद, गिरिराज जानबूझकर रुक गये थे ताकि सूरज से इस विषय में बात कर सकें। सूरज ने उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाया और एक शान्त सी जगह पर गाड़ी से उतरकर दोनों बात करने के इरादे से एक पेड़ के नीचे बैठ गये। “कहीं आप मुझे कोई सिरफिरा तो नहीं समझ रहे हैं?” सूरज
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 26
26. दोनों की नजर एकसाथ दरवाजे की ओर गयी। “सूरज अंकल!” आकाश, सूरज को अचानक यहां देखकर थोड़ा हैरान हो गया था! “सूरज अंकल नहीं…सिर्फ सूरज कहो (फिर जैसे कुछ याद आ गया हो, खुद के बालों पर हाथ फेरते हुए) क्या करुँ इस उम्र का…इस गुजरे वक़्त का” सूरज लड़खड़ाते कदमों से आकाश की ओर बढ़ा। “कौन हैं ये?” गिरिराज ने बुदबुदाते हुए पूँछा “आकांक्षा के पिता” आकाश ने धीरे से जवाब दिया। “आकाश! तुम्हारा नाम अंकित है! और मैं, सबसे करीबी दोस्त हूँ तुम्हारा! याद करो …मैं सूरज! मैं तुम्हारा दोस्त हूँ वही जिगरी यार” आकाश ने घबराकर गिरिराज की ओर देखा। “जब मैनें तुम्हें पहली बार देखा था, तभी मैं पहचान गया था! तुम्हें याद नहीं आ रहा ना कुछ? कोई बात नहीं! समय लगे शायद!” सूरज आकाश के खाली बेड पर बैठ कर कहीं ख्यालों में खोते हुए आगे बोले। ” सालों पहले जब नर्स ने मुझे पिता बनने की खबर सुनाते हुए वो नन्हीं सी जान, मेरी दूसरी बेटी मुझे सौंपी तो मैं अपनी बेटी का चेहरा देख कर काँप गया था, उस वक़्त तो यही लगा कि जिंदगी में इतनी बड़ी घटना घट चुकी है शायद ये उसका असर हो, इसलिए हरेक लड़का अंकित और लड़की अनामिका दिखती है मुझे..लेकिन नहीं! जैसे-जैसे मेरी बेटी बड़ी होती गयी वो हुबहू अनामिका जैसी दिखने लगी ….लाख ना चाहो लेकिन नियति…उसे कोई कैसे बदले? मैं समझ गया कि मेरा इस दुनियाँ में होने का उद्देष्य क्या है! मैं चाहकर भी उसके साथ कभी बेटी जैसा व्यवहार नहीं कर पाया, उसे अमानत की तरह पाला और उसकी हरेक इच्छा पूरी की। जैसे-जैसे समय गुजरा मुझे यकीन हो गया कि अनामिका है तो अंकित भी होगा! लेकिन कहाँ? और मैं कैसे मिलूंगा उससे? बस जब भी कहीं अंकित नाम सुनता, दौड़ा जाता ! लेकिन अंकित कहीं नहीं मिला। …. लेकिन देखो! फिर हालात ऐसे बने कि अंकित खुद व खुद मेरे सामने आ गया” “अरे कौन अंकित? कौन? और ये सब आप मुझे क्यों सुना रहे हैं?” आकाश झुंझलाकर बीच में ही तेज आवाज में बोल पड़ा। “तुम! तुम हो अंकित” सूरज ने तटस्थ आवाज में कहा। तो आकाश ने अपने दोनों हाथ जोड़े और बोला, “अंकल मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ, बहुत! ना जाने कैसे, बस पागल नहीं हुआ, प्लीज मुझे बख्स दीजिये! पहले ही ना जाने कितने सवाल हैं जिनके, कोई जवाब नहीं हैं मेरे पास! और ना ही जवाब मिलने की कोई उम्मीद है” “कभी हिरन देखा है?” सूरज ने सवाल दागा तो आकाश और गिरिराज ने एक दूसरे की ओर देखा फिर आश्चर्य से सूरज की ओर देखने लगे। “कस्तूरी की खुशबू से परेशान वो हिरन उस खुशबू की तलाश में हमेशा इधर-उधर भागता रहता है… सारी उम्र, लेकिन उसे पता ही नहीं होता कि वो कस्तूरी उसी के अंदर होती है..उसकी नाभि में” “तो? कहना क्या चाहते हैं आप?” आकाश खीजा गिरिराज बिना कुछ बोले बहुत ध्यान से बस्स सूरज के एक-एक शब्द को सुन रहे थे। “मैं कुछ कहना नहीं चाहता बल्कि तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ, आकांक्षा के प्रति तुम्हारा ये प्रेम अभी का नहीं है…बल्कि पिछले जन्म का है” “ओह्ह! और आप उस समय भी जिन्दा थे और आज भी…क्योंकि आप इन्सान कहाँ आप तो देवदूत हैं…हैं ना?” शायद अश्वतथामा हैं आप! कहते-कहते आकाश रुक गया, एहसास हुआ उसे कि गुस्से में ज्यादा बोल गया! “रुक क्योँ गए? (सूरज उसकी उलझन भांप गये) प्रश्न करो तभी तो जवाब मिलेंगे…हाँ.. हाँ मैं तब जीवित था। और तुम्हारे जाने के बाद भी जीवित रहा..इसीलिये तो इतना उम्रद्राज दिखने लगा हूँ… अकेला मैं ही था जिसने अनामिका को देखा था” “कौन अनामिका? मैं किसी अनामिका को नहीं जानता” आकाश फिर खीजा। “ठीक है ना सही अनामिका का… लेकिन अंकित के होने का एहसास मैं तुम्हें दिलाकर रहूँगा” सूरज कड़क आवाज में बोला। “क्या …क्या मतलब?” आकाश के बोलने का कोई जवाब ना देकर सूरज ने आकाश का हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींचने लगा। “अररर” आकाश ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन नहीं छुड़ा पाया। “अंकल” आकाश ने गिरिराज की ओर देखा। लेकिन गिरिराज ने आकाश को सूरज के साथ चलने का इशारा कर दिया। और आकाश ने खुद को सिथिल छोड़ दिया। सूरज, आकाश का हाथ पकड़े हॉस्पीटल से बाहर निकाल लाया और फिर लगभग धक्का सा देते हुए कार में बैठा दिया। “कितना बिल आया है?” गिरिराज दौड़ते हुए हॉस्पिटल की डेस्क पर पहुँचे। “अ एक मिनट” नर्स बोली और डेस्कटॉप पर चेक करने लगी। “जल्दी कीजिये…जल्दी” “और ये डिस्चार्ज का फॉर्म भी भरना होगा, आपने डॉक्टर से पूँछ लिया है ना?” ” ये लिजिये! बिल अमाउंट और फॉर्म खुद भर लिजिये, डिटेल्स आपके पास होंगी” गिरिराज ने रुपए डेस्क पर रखे और गाड़ी की ओर दौड़े। “सर लेकिन फॉर्म आपको भरना होगा, सुनिये!” नर्स ने तेज आवाज में कहा लेकिन गिरिराज ने पूरी तरह अनसुना कर दिया। और दौड़ते से जाकर कार में बैठ गये। “ना जाने अब कौन सी नई मुसीबत आने वाली है! ओह्ह थक गया हूँ मैं” पिछ्ली सीट पर बैठा आकाश झुंझलाया तो गिरिराज ने उसे आँखों ही आँखों में शान्त रहने का इशारा कर दिया। कार की अगली सीट पर सूरज बैठे थे और ड्राइवर तेज स्पीड में कार चला रहा था। *** सूरज ने एक घर के बाहर कार रुकवाई और दरवाजे पर लगी डोर वेल को तीन से चार बार जल्दी-जल्दी बजा दिया। “हाँ हाँ आ रहा हूँ ..पैरों में कोई पहिये नहीं लगे हैं मेरे, लोगों को डोर वेल बजाने तक के मैनर्स नहीं हैं… बताईये हद्द है ” घर के भीतर से एक बुजुर्ग आदमी की खीजी हुई ये आवाज दरवाजे पर खड़े इन तीनों लोगों को बाहर तक सुनाई दी, सूरज ने सबसे नजरें चुराते हुए डोर वेल से फौरन अपना हाथ हटा लिया। “अरे सूरज! कितने दिनों बाद…आओ ..आओ अंदर आओ (अंदर की ओर आवाज देते हुए) अरे सुनती हो! सूरज आया है” दरवाजा खोलते ही बड़ी खुशी से बोले वो, झुंझलाहट की जगह खुशी बिछ गयी थी उनके चेहरे पर। “जिसे मिलाने लाया हूँ उसे देखकर आपके होश उड़ जायेंगें अंकल” सूरज की आँखों में खुशी चमक रही थी। “अच्छा! फिर तो जल्दी करो,
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 25
25. “आकाश!” चीखते हुए वो चाय एक तरफ फेंक कर वो आकाश की ओर दौड़े! दो-तीन लड़के हॉकी के साथ आ गये थे और आकाश को पीटने लगे। ये वही लड़के थे जिनके साथ आकाश की झड़प हुई थी कार और बाइक के टकराने पर। “रुक जाओ” गिरिराज तेज आवाज में चीखे। लड़कों ने सुनकर भी अनसुना कर दिया, और आकाश तो जैसे सरेंडर था उन लड़कों के सामने। लड़के उस पर हॉकी से लगातार वार कर रहे थे और आकाश पिट रहा था। वो बुरी तरह जख्मी हो गया था। लेकिन पलट कर वार करना तो दूर की बात है वो खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं कर रहा था। “मैने कहा रुक जाओ! रुक जाओ!” गिरिराज एक लड़के की हॉकी को पूरी ताकत से पकड़ते हुए चीखे। ना जाने क्या हुआ तीनों को, वो एकसाथ रुक गये। “एक पहला और आखिरी मौका देता हूँ ..भाग जाओ वरना बहुत पछताओगे…सच कहता हूँ जिंदगी जहन्नुम ना बना दी तो मेरा नाम गिरिराज नहीं” गुस्से में बोलते हुए गिरिराज ने हाथ में पकड़ी हुई हॉकी को जोश में बोलते हुए जैसे ही जोर से जमीन पर पटका, उनका ये रूप देख तीनों ने एक दूसरे को चलने का इशारा किया और फौरन चलते बने। “आकाश! ओह्ह्ह!” आकाश के सिर से बहते खून को देखकर गिरिराज के मुँह से निकला, उन्होंने जल्दी से एक कार रुकवायी और आकाश को उसमें बिठाकर कारवाले से हॉस्पिटल चलने के लिये बोल दिया। *** “डॉक्टर! इसे कब तक होश आएगा?” आकाश का चेकअप करते डॉक्टर से गिरिराज ने पूँछा। “चोटें गहरी हैं, लेकिन उम्मीद है शाम तक पेशेंट को होश आ जाना चाहिये…देखते हैं” ये बोलकर डॉक्टर जैसे ही हटे, गिरिराज ने उर्मिला को कॉल कर दिया। कुछ ही मिनट में उर्मिला हॉस्पीटल पहुंच गई। तेज गति से चलते हुए वो आकाश के कमरे की ओर बढीं, और जैसे ही नजर गिरिराज पर गयी उनके कदम अपने आप रुक गये। उर्मिला की ये कश्मकश देखकर गिरिराज उर्मिला की ओर बढ़े और धीरे-से बोले “चिंता की कोई बात नहीं है शाम से पहले उसे होश आ जायेगा…तुम यहां रुको, मैं बाहर जाता हूँ” “हाँ उसे जल्दी होश आएगा! लेकिन तुम? तुम्हें होश कब आएगा?” हॉस्पीटल के उस कमरे के बाहर एक कदम ही बढ़ा पाया होगा गिरिराज ने, कि उर्मिला के इन शब्दों ने उन्हें रोक दिया। “मैं समझा नहीं” गिरिराज ने असमंजस की स्थिति में पूँछा “समझे नहीं.. या समझना नहीं चाहते?” “जो भी कहना चाहती हो खुल कर कहो” “मैंने तुमसे जाने की प्रार्थना की थी, बाबजूद इसके तुम अभी तक रुके हो, इसका क्या मतलब है, गिरि? मुझे डर है कि आकाश की इस हालत के लिये कहीं तुम जिम्मेदार तो नहीं?” उर्मिला की बात सुनकर गिरिराज की त्योरियां चढ़ गई। “ना सही रिश्ते का…कम से कम इंसानियत का तो सोच लेतीं उर्मिला, तुम्हें लगा भी कैसे? कि मैं आकाश को कोई नुकसान पहुँचाने के बारे में सोच भी सकता हूँ” “हुम्म, तुम अपनी सोच की तो बात ना ही करो तो बेहतर है” “ऐसा भी क्या कर दिया है मैनें? पता तो चले?” “अच्छा! तुम्हें क्या लगता है कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुमने आकाश के साथ अपना भावनात्मक रिश्ता क्यों बनाया है ? इसीलिए ना, कि तुम मेरे आस-पास बने रहो ..बोलो अगर इसमें झूठ है तो?” ये सुनकर गिरिराज, उर्मिला की ओर अपनी पीठ करके खड़े हो गये। “ये सच है कि शुरुआत में मैंने ऐसा सोचा जरूर था…लेकिन वक्त के साथ अब बहुत भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता हूं आकाश के साथ, उसे जरुरत भी है मेरी” बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया गिरिराज ने। “हुँ! उसे पता नहीं ना अभी, कि जिस दिन उसे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरुरत होगी, उसी दिन तुम उसे छोड़कर भाग जाओगे” “उर्मिला” गिरीराज की आवाज उँची हो गई थी। “सच चुभता है गिरि?” लेकिन उर्मिला संयत आवाज में ही बोलीं! “मेरे उस गुनाह की सजा देकर तुम मुझे उस पाप के भार से मुक्त क्यों नहीं कर देतीं, जिसमें रहते -रहते मेरा खुद दम घुट रहा है?” “मैं कौन होतीं हूँ सजा देने वाली? और फिर मैं किस हक से सजा सुना सकतीं हूँ तुम्हें?” “कौन सा हक नहीं है तुम्हारा? क्या तुम नहीं जानतीं, कि तुम्हारे अलावा ना तो कोई मेरा था और ना है, फिर क्या दुनियाभर के सामने आग के चारो ओर घूमने से ही रिश्ते बन सकते हैं?…मुझे नहीं लगता कि भावनाओं को इन प्रोपगन्डों की कोई भी जरुरत है…मुझे कभी पसंद ही नहीं आए ये फिजूल के .प्रोपगन्डे ..ना ही इनसे मुझे कोई फर्क पड़ता है! .. लेकिन तुम उर्मी.. “मत कहो मुझे उर्मी” चीख पड़ीं उर्मिला ” …तुम्हें प्रोपगन्डों से फर्क नहीं पड़ता…तुम्हें? काश ये सच होता.. “झूठ क्या है इसमें?” “अच्छा ! अगर नहीं पड़ता फर्क तो मेरी इन्गेज्मेंट वाले दिन क्यों भागे थे, बोलो…प्रोपगन्डा ही था ना इन्गेज्मेंट का! तब क्यों? जिस दिन मैनें तुम्हारे चेहरे से नकाब हटाया उस दिन कितनी मिन्नतें की मैनें तुम्हारी लेकिन तुम नहीं रुके..क्या चाहती थी मैं? बस्स कुछ बताना ही तो चाहती थी लेकिन तुम उस दिन भी भाग गये….क्यों? गिरिराज तेजी से घूमे और जोर से अपने दोनों हाथ दीवार पर मार दिये। “भूल हो गई मुझसे.. बड़ी भूल!” वो खीजते हुए बोले “नहीं!भूल नहीं! असल में तुम समझते थे कि मैं शादीशुदा हूँ ..इसलिये बात नहीं करना चाहते थे…अगर तुम्हारी नजर में आग के चारो ओर फेरे लगा लेना महज प्रोपगन्डा है, तब तो तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए था, तब क्यों बात नहीं की मुझसे? और अब, जब तुम्हें ये पता लगा कि मैं अकेली हूँ तो तुम्हारे भीतर मुझे अपनाने की इच्छा जाग गयी! अपनी सुविधा के अनुसार बदल जायें वो सिद्धांत नहीं होते गिरि…” “हम्म्म्म.. हम्म” गिरिराज के पास उर्मिला के इस तर्क का कोई जवाब नहीं था….वो बाहर की ओर देखने लगे। तुम्हें कैसे समझाऊँ, सच नहीं है ये उर्मिला, सच तो ये था कि तुम मेरी पूरी दुनियाँ थीं और जब अपनी ही आँखों से मैंने अपनी दुनिया उजड़ते देखी तो ऐसा बिखरा कि आज तक खुद को संभाल नहीं पाया, फिर उस भयानक सच का सामना कैसे कर पाता, कैसे तुम्हें किसी और की जिंदगी का हिस्सा