सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 24

24. आकाश को निढ़ाल होते देख गिरिराज ने दौड़ते हुए उसे थाम लिया। “तुम्हारी भलाई इसी में है कि चले जाओ यहां से…वरना ”  गिरिराज ने गुस्से में उन लड़कों से कहा! “वरना क्या बुढ्हे?” उनमें से एक लड़का बोला “वरना ये कि,  तुम्हारे पूरे खानदान की चप्पले घिसवा दूँगा लेकिन जमानत नहीं मिलने दूँगा” गुस्से में जब गिरिराज ये बोले तो तीनों लड़कों ने एकदूसरे की ओर देखा और सिथिल पड़ गये,  “लगता है पुलिस डिपार्टमेंट से है” तीनों में से एक बोला “होगा हमें क्या? हमने इसे अच्छा मजा चखा दिया है …चलो” दूसरा बोला “ना…अभी हिसाब बराबर नहीं हुआ” ये बात कहने वाला वो लड़का था, जिसने सबसे ज्यादा थप्पड़ खाए थे आकाश से “समझ काकू… किसी और दिन हिसाब चुकता करेंगे, मौका देखकर…अभी चल” दूसरे लड़के ने उसके कंधे पर हाथ रखकर समझाते हुए कहा। और तीनों वहाँ से चले गये गिरिराज की कोरी धमकी काम कर गयी थी, लड़कों के वहाँ से हटते ही गिरिराज ने आकाश को सहारा देने के लिये टेक्सी वाले को बुला लिया। *** पेनकिलर इजेक्शन लगने के बाद भी आकाश दर्द से कराह रहा था। “डॉक्टर साहब! कोई चिंता की बात तो नहीं ना?” गिरिराज ने आकाश का चेकअप कर रहे डॉक्टर से पूँछा। “ये बात आप तीसरी बार पूंछ रहे हैं गिरिराज जी” डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोला “माफ कीजिये डॉक्टर साहब…वो जरा” गिरिराज झेंप गए “चिंता मत कीजिये हल्की चोटें तो आयी हैं लेकिन टेंशन वाली कोई बात नहीं” डॉक्टर ने आत्मीयता से गिरिराज का कंधा थपथपाया और अगले पेशेंट को चेक करने चले गये। ” अपनी आँखो से ना देखता तो यकीन करना मुश्किल था कि तुम मारपीट में भी,,,”छत की ओर उदासी से घूरते आकाश का ध्यान बटानें के लिये गिरिराज ने ऐसे ही बोल दिया। ” मारपीट उन लोगों ने शुरू की थी अंकल! यकीन कीजिये मेरा, गलती उनकी थी और वो मुझे दोषी बनाने पर तुले थे! प्लीज यकीन कीजिये मेरा” छत से अपनी नजरें हटा कर उसने गिरिराज से बहुत ही डरी हुई आवाज में कहा। “अरे आकाश मैनें तो ऐसे ही कह दिया तुम इतने इमोशनल क्यों हो गये” गिरिराज ने महसूस किया कि शायद उन्होने गलत ही प्रश्न कर दिया। “डरुं ना तो क्या करुँ अंकल, सबकुछ खो चुका हूं मैं, कहीं आप भी नाराज हो गये तो! मेरे पास क्या रह जायेगा?” “क्या बात है आकाश? बताओ मुझे” गिरिराज, आकाश के डूबे स्वर से डर गये थे। “आपने सही कहा था अंकल! सच में देर हो गयी” आकाश हॉस्पिटल की छत पर ही नजरें टिकाये डूबे स्वर में बोल रहा था। “आकाश क्या हुआ है …मुझे बताओ?” गिरिराज ने स्टूल से उठ कर आकाश के ऊपर झुकते हुए पूँछा। “ “आपने कहा था ना कि मैं आकांशा को प्रपोज कर दूँ “ गिरिराज ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया  “आज जब मैं उसके शोरूम पहुँचा तो अनी उसे प्रपोज कर रहा था…और आकांक्षा ने उसे हां भी बोल दिया” ये सुनकर गिरिराज से कुछ कुछ कहते ना बना, वो बापस चुपचाप स्टूल पर बैठ गये। “अंकल?” “हम्म्म्म “ “अब क्या सलाह देंगें आप?” “….” “कुछ लोग होते ही बदकिस्मत हैं! ईश्वर उन्हें कुछ नहीं देता .. कुछ नहीं…बल्कि जो था वो भी मैं अपनी बेबकूफी से गंवा बैठा…राघव चाचा के अतीत में ऐसा उलझा कि अपना वर्तमान …अपनी आकांक्षा खो बैठा” “ऐसे हार नहीं मानते आकाश! बदकिस्मत नहीं हो तुम…बल्कि तुम तो खास हो “लगता है, बुआ का असर हो गया है आप पर भी” आकाश की इस बात पर कुछ ना बोलते हुए गिरिराज झेंपते हुए चुप हो गए! “वो भी यही कहतीं हैं …कि मैं खास हूँ! हुम्म! खास का तो नहीं पता लेकिन सबसे बदकिस्मत जरुर हूँ …नहीं तो राघव चाचा …एक मिनट….ये मैं कैसे भूल गया” कुछ याद करते हुए आकाश उठ कर बैठ गया। “क्या हुआ?” उसके चौंकने से गिरिराज भी चौंक गये। “राघव चाचा जी की मौत की वजह वो कांता! कांता! वो दुष्ट औरत आज भी जिन्दा है…मैं उस वक़्त भी उसके पास जा रहा था लेकिन उसी वक़्त मैं बापस आ गया ….आज कांता बचेगी नहीं मेरे हाथों” गुस्से में आकाश ने अपने हाथ में लगी ड्रिप निकाल फेंकी और फुर्ती से बेड से नीचे कूद पड़ा। “आकाश कहाँ जा रहे हो मुझे बताओ तो सही?” “बस्स कुछ मत पूछिये इस वक़्त अंकल” आकाश तेजी से दरवाजे की ओर लपका और सड़क पर दौड़ने लगा। “आकाश! रुको! ” गिरिराज उसके पीछे भागे। आकाश तेजी से दौड़ रहा था। गिरिराज उसका पीछा नहीं कर पा रहे थे। “ऑटो!” गिरिराज ने हाथ देकर एक ऑटो रोका और जल्दी से उसमें बैठ गये “वो लड़का देख रहे हो ना?” “हाँ जी “ “बस्स उसके पीछे ले लो रिक्शा जल्दी …जल्दी करो…आज ना जाने क्या कर बैठे ये लड़का” ड्राइविंग सीट पर हाथ मारते हुए हड़बड़ाकर बोले गिरिराज। ” ज…जी” ड्राइवर ने ऑटो की स्पीड बढ़ा दी। जल्दी ही ऑटो आकाश के नजदीक पहुंच गया। “आकाश! आकाश! बैठो आकर “ “मुझे मत रोकिये अंकल” “मैं कहाँ रोक रहा हूँ …जो चाहते हो उसमें साथ दूँगा…लेकिन आकर बैठो तो सही ” गिरिराज ने मनुहार की लेकिन आकाश बिना सुने भागता रहा, फिर गिरिराज ने ऑटो वाले को धीरे चलने को कहा…और धीमी स्पीड में ऑटो साथ-साथ चलने लगा। फिर आकाश जब एक तंग गली की ओर मुड़ा तो गिरिराज को ऑटो वाले को पैसे देकर विदा करना पड़ा। और वो पैदल आकाश के साथ हो लिए। बेहद घनी गली में ढ़ेर सारे बच्चे शोर मचाते धमा चौकड़ी काट रहे थे। और औरते रोजमर्रा के काम से निपट कर बातचीत में मशगूल थीं। वहाँ ये दोनों अजूबे से लग रहे थे। “आ..कांता?” 3-4 औरतें किसी खास टॉपिक पर बात करने में मशगूल थी, कि आकाश की आवाज से चौंक गयी। “कौन कांता?” साड़ी के पल्लू को सिर पर ओढ़ते हुए एक औरत ने उल्टा प्रश्न दाग दिया। “आ… वो यहीं रहती थी …मेरा मतलब! रहतीं थीं”  “एक मिंट…”कुछ याद करते हुए एक औरत बोली ” कहीं वयी कांता तो नहीं…जिनकी एक बड़ी सुन्दर भहू थी?” आकाश ने सहमति में सिर हिलाया। “हां याद आया रेशमा नाम था उसका… किले जैसे घर थो?” “जी वही…आप बता सकतीं हैं कि कहाँ

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 23

23.  आकाश शोरूम के बाहर खड़ा था, अनी को आकांक्षा के साथ देखकर उसका वो उत्साह खत्म हो गया था, जिस उत्साह से वो आया था ! आखिर ये अनी का बच्चा इतना मुस्कुरा क्यों रहा है? ऐसा क्या कह रहा है, जिसे सुनकर आकांक्षा भी मुस्कुरा रही है? आकाश बाहर खड़े होकर सोच रहा था! बाहर से बस्स देखा ही जा सकता था, सुना नहीं! आकाश के हाथ का प्रेशर शोरुम के दरवाजे पर लगे हैंडल पर बढ़ता जा रहा था। अगले ही पल वो हैंडल टूट कर उसके हाथ में आ गिरा। ‘इसकी तो’ दाँत पीसता सा वो शोरूम के अंदर दाखिल हुआ! लेकिन, लेकिन उसी वक्त आकांक्षा को बोलते देख चुपचाप खड़ा हो गया। “अनी …तुम समझते क्यों नहीं?” आकांक्षा के लहजे में बनावटी खीज थी! “मुझे अब कुछ नहीं समझना बस्स तुम्हारी हां सुननी है, अच्छा खासा हूँ, ठीक-ठाक दिखता भी हूँ, तुम्हें पसंद भी हूँ तो फिर ना करने का क्या मतलब? एक्सेप्ट करों ना मेरा लव प्रपोजल… हां बोलो ना आकांक्षा” अनी मनुहार करता हुआ बोला “ओह्ह! अच्छा! ओके आई एक्सेप्ट..बस्स” आकांक्षा ने मुस्कुराते हुये कहा और आकांक्षा की इस मुस्कान ने आकाश के मन को गुस्से के उबाल से भर दिया, वो बौखलाया सा वहाँ से बाहर निकला और बाइक में किक मारकर वहां से निकल आया !  “हे कौन था यहाँ!” आकांक्षा  दरवाजे की ओर  बढ़ी “कोई भी तो नहीं” अनी चिढ़ गया था! उसे इस वक़्त किसी भी इन्सान तो क्या कीट- पत्ंगे तक की मौजूदगी मंजूर नहीं थी। ” मुझे लगा शायद! शायद आकाश था…” वो डूबी आवाज में बोली “हो भी तो क्या फर्क पड़ता है” अनी खीज गया था। सही तो कहता है अनी, हो भी आकाश … तो क्या फर्क पड़ता है? अगर सुन भी लिया हो तब भी कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिये लेकिन …लेकिन “कल मिलते हैं आकांक्षा!” अनी शोरूम से बाहर निकलने से पहले बोला, उसकी आवाज से आकांक्षा चौंक गयी। “अ हाँ ठीक है” वो खोई सी बोली “तुम ठीक तो हो?” ” हां अनी …कल मिलते हैं ना”वो जबर्दस्ती मुस्कराई ” साला ..” बाहर निकलते वक़्त दरवाजे को जोर से मारता हुआ अनी बुदबुदाया। *** आकाश की बाइक तेज स्पीड में सड़क पर दौड़ रही थी, लेकिन आकाश की आँखों में आकांक्षा की वो तस्वीर छप गयी थी जिसमें आकांक्षा, अनी की ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। तभी एक जोरदार टक्कर की आवाज हुई। और आकाश कुछ समझ पाता इससे पहले ही आकाश की बाइक घिसटती हुई सड़क के किनारे जा लगी। “आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह” हाँफते हुए आकाश ने बामुश्किल बाइक को खुद के ऊपर से हटाया। और जैसे ही लड़खड़ाते हुआ उठा कि खुद की पीठ पर एक जोरदार बार मेहसूस हुआ। “आह”वो पलटा, तीन लड़के उसी की ओर गुस्से में घूर रहे थे। “क्यों बे ज्यादा चर्वी चढ़ी है तुझे हां, तेज स्पीड बाइक में अचानक ऐसे ब्रेक कौन मारता है वे?”तीनों लड़कों में सबसे आगे खड़े लड़के ने गुस्से में बोलते हुए आकाश का कॉलर पकड़ लिया। “तेरी वज़ह से नई कार पे डेन्ट पड़ गया है!” पास ही खड़े दूसरे लड़के ने दाँत पीसते हुए आकाश के मुँह पर पंच मारने को हाथ  बढ़ाया ही था कि, आकाश ने फुर्ती दिखाते हुए उसका हाथ पकड़ लिया। अब तक वो संभल गया था और पूरा माजरा भी समझ गया था, तेज स्पीड में चलती अपनी बाइक की ना तो उसने लेन बदली थी ना ही स्पीड कम की थी, उसे तो ये तक नहीं पता था कि वो जा कहाँ रहा था। “चर्वी मुझे नहीं! तुम लोगों को चढ़ी है इसलिए गलती खुद की है और थोप मुझ पर रहे हो” आकाश ने बोलते-बोलते एक लात दे मारी थी उस हाथ उठाने वाले लड़के को इतने में कॉलर पकड़े हुए लड़के ने आकाश का गला और कस लिया और इससे पहले कुछ वो कुछ कर पाता, आकाश ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए खुद के गले तक आती हुई उसकीं बांहो में बीच में करके पूरी ताकत से झटक दिये। लड़का कराहता हुआ अलग हट गया। अब तक चुपचाप खड़े तीसरे  लड़के ने होशियारी दिखाते हुए पास ही पड़ी एक पेड़ की लकड़ी उठायी और आकाश की ओर उछाली, आकाश ने दोनों हाथों से उस लकड़ी को पकड़ा और उसी लड़के की ओर धक्का देने लगा। इस मौके का फायदा बाकी दोनों लड़कों ने उठाया और दोनों ओर से आकाश पर लात-घूंसे बरसाने लगे। आकाश ने जोर से धक्का देकर उस लड़के को नीचे गिराया लेकिन वो लकड़ी नहीं फेन्की, दायें तरफ वाले लड़के की पीठ पर उसी लकड़ी से लड़के की पीठ पर एक जोरदार चोट की जिससे वो छिटक  कर दूर हट गया। आकाश ने लकड़ी फेंक दी। और वो उस लड़के की ओर बढ़ा, ना जाने क्यों उसे उसमें अनी का चेहरा दिखने लगा और आकाश को इस वक़्त अपने अंदर बहुत ताकत भी महसूस हो रही थी। “दूर रह उससे..वो मेरी है…सुना मेरी है वो” गुस्से में चीखते हुए आकाश ने उस लड़के पर थप्पड़ों की बरसात सी कर दी थी। वहाँ अब इतनी भीड़ जुट गयी थी। वाहनों का निकलना मुश्किल हो गया था। “क्या हुआ इतनी भीड़ क्यो लगी है?” अचानक टैक्सी रुक्ने पर उसमें बैठे गिरिराज ने ड्राइवर से पूँछा। “पता करके आता हूं ” ड्राइवर टैक्सी से निकलते हुए बोला “सुनिये भाई साहब? यहां इतनी भीड़ क्यों जुटी है क्या हुआ है?” गिरिराज ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए एक आदमी से पूँछा “भाई साहब कुछ लड़के आपस में मारपीट कर रहें हैं ये आजकल के लड़के भी…ना जाने क्या हो गया है आजकल की जेनरेशन को” गहरे अफसोस के साथ उस आदमी ने जवाब दिया।  और गिरिराज टैक्सी से निकलकर उसी ओर बढ़ गये जहाँ ये मारपीट हो रही थी। “तेरी हिम्मत कैसे हुई उसे प्रपोज करने की” आकाश अब तक हावी था उस लड़के पर, और बाकी के दोनो लड़कों ने इस बार एकसाथ वार करने को ठान ली थी। इसलिए दोनों उस लकड़ी के साथ आकाश की ओर बढ़ रहे थे। वो कुछ कर पाते इससे पहले ही! “रुको!” एक जोरदार आवाज गूँजी, दोनों लड़कों के साथ-साथ आकाश भी रुक गया। “खबरदार जो एक कदम भी आकाश की ओर बढ़ाया

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 22

___________________________________________ 22. “क्या कहा तुमने अभी?” राघव ने आकाश के बिल्कुल पास आकर तेज आवाज में पूँछा। आकाश ने असमंजस की स्थिति में गिरिराज की ओर देखा। लेकिन गिरिराज को खुद समझ  में नहीं आ रहा था, कि क्या बोलें! “तुमने रेशमा के बारे में अभी-अभी क्या कहा?” राघव ने फिर से पूँछा लेकिन आकाश ने कोई जवाब नहीं दिया ! “मुझे जबाव दो आकाश …बोलो…कहाँ है रेशमा?” राघव ने इस बार आकाश के कन्धे झिंझोड़ दिये “वो नहीं रहीं….” वो धीरे से बोला “क्या?…क्या बकते हो…मैं नहीं मानता…झूठ है ये” राघव एकदम डूबी हुई आवाज में बोला! “आपको मानना होगा चाचा जी…पहले ही आप बहुत भ्रम में रह चुके हैं, अब आप को सच स्वीकार कर लेना चाहिये” ” वो कैसे मर सकती है…नहीं …नहीं…झूठ है ये” राघव को खड़े रह पाना मुश्किल लगा वो जमीन पर निढ़ाल सा बैठ गया। “बस्स बहुत हुआ…इस भ्रम की स्थिति से बाहर आइये चाचा जी…सालों पहले ही मौत हो गयी है उनकी” आकाश चीख कर बोला… “कैसे मान लूँ …मैं कैसे मान लूँ?…जब तक मैं प्रमाण ना देख लूँ… कैसे मान लूँ?” “ठीक है..प्रमाण चाहिये ना अपको …मैं अभी प्रमाणित करता हूँ” आकाश ने इधर-उधर देखा और घर में मरम्मत काम के चलते फावड़ा और कुदाल रखी ही हुई थी, उसने कुदाल उठायी और दौड़ता हुआ राघव के कमरे में जाकर पिछले दरवाजे पर कुदाल से पूरी ताकत से वार कर दिया। वहाँ मौजूद एक भी शख्स ऐसा नहीं था जिसके मन में तरह-तरह के सवाल ना उठ रहे हों लेकिन कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। सब बस चुपचाप देख रहे थे। गिरिराज ने भी कुदाल उठा ली और आकाश की मदद करने लगे। दोनों मिलकर पूरी ताकत से वार कर रहे थे…थोड़ी देर में ही लकड़ी का वो मजबूत दरवाजा कई टुकड़ों में टूटकर गिर गया। अब दीवार दिख  रही थी। जो उस दरवाजे को बन्द करने के लिये बनवायी गयी थी। आकाश पूरी ताकत से उस दीवार पर वार करने लगा और गिरिराज उसका साथ दे रहे थे। “माँ ने बनवायी थी ये दीवार…” राघव धीरे से बुदबुदाया तो उर्मिला ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर आत्मीयता भरा हाथ रख दिया “माँ …अगर इस वक़्त जीवित होतीं तो आकाश से कितना नाराज होतीं” इस बार गिरीश धीरे से बोले। “जब से तुम्हारे बाऊ जी गये थे बोलती ही कहाँ थी वो बेचारी…छ: सात महिने का वक़्त मुश्किल से बीता होगा …और वो भी इस दुनिया से चल बसीं …आह” गिरीश के पास ही खड़ी उनकी पत्नी लता गहरी आह भरते हुए बोली। घुटनो जितनी दीवार टूट गयी थी..आकाश दीवार के उस पार चला आया…और गिरिराज भी…आकाश ने कुछ पल जमीन की ओर देखते हुए कुछ सोचा, और बोला, “ये जगह होनी चाहिये”  “ठीक है” गिरिराज बोलने के साथ ही आँगन में आये और दो फावड़े लेकर बापस दीवार फलांगते हुए आकाश के पास जाकर उन्होने एक फावड़ा उसे सौंप दिया। और दूसरे से खुदाई करने लगे। अब दोनों जमींन पर खुदाई कर रहे थे। और बाकी सब अब तक असमंजस में थे सिवाय राघव के …क्योंकि राघव डरे हुए थे। दोनो जमींन पर फावड़ा चला रहे थे…मिट्टी का ढेर लग गया था..तभी एक ‘खट्ट’ की आवाज के साथ दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और अपने-अपने फावड़े चलाना रोक दिया… और अब हाथों से मिट्टी हटाने लगे। थोड़ी देर में ही एक हड्डियों का ढाँचा दिखा, आकाश ने उसे निकाला और फिर उठाकर कमरे में लाकर रख दिया… “आह…” “ओह्ह ये क्या?” सबके मुँह से निकल पड़ा। इतने में गिरिराज ने एक छोटा सा  शरीर का ढाँचा लाकर उस बड़े हड्डियों के ढांचे के पास रख दिया। “ये रहा सुबूत…रेशमा जी और उनके बेटे की मौत का” आकाश हाँफते हुए बोला। इतनी मेहनत से वो थक चुका था! “बहुत देर से ये तमाशा देख रहा हूँ! तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए …मैं पूंछता हूँ आकाश क्या है ये सब?”  गिरीश गुस्से में बोले। “मुझे अफसोस है चाचा जी…लेकिन ये भयानक सच्चाई आपको कुबुल करनी होगी” गिरीश की बात को बिल्कुल अनसुना कर आकाश, राघव से बोला। “आखिर कैसे किसी भी ढांचे को सामने रख कर तुम ये कह सकते हो कि रेशमा और उसके बेटे की …” आगे के शब्द गिरीश से कहते ना बने। राघव बहुत धीरे से चलता हुआ आया और नीचे बैठ गया…फिर उसने उस कंकाल की ऊँगली में पड़ी अंगुठी को धीरे से छुआ “वो बीच की ऊँगली में मेरी ही दी हुई अंगूठी पहनती थी….ये रेशमा ही है..मेरा दिल कुबूल कर रहा है” फिर पास ही रखे छोटे कंकाल को छुआ, ” मेरा बेटा….मेरा बेटा…मैं किसी को नहीं बचा पाया…कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा मैने तुम दोनों को! और तुम दोनों इतने पास थे मेरे..किसने किया ये? …छोडूंगा नहीं उसे! बताओ आकाश किसने किया ये? किसने मेरी दुनिया उजाड़ दी .. ” राघव गुस्से में चीखते हुए बोले, जबकि उनकी आँखें आसुओं से भरी हुई थीं! उनका पूरा शरीर कांपने लगा…और फिर जल्दी ही पसीने से भीग गया। “राघव! तुम्हारे चाचा जी को हार्ट अटैक आ रहा है…” गिरिराज बोले “क्या” “मैं एम्बुलेन्स के लिये कॉल करता हूँ ” गिरिराज फोन पर नम्बर डायल करने लगे “आकाश ….आकाश …”बहुत कठिनता से बोले राघव ‘चाचा जी …आप ठीक हैं ना?” आकाश उन्हें अपने हाथों में संभालते हुए बोला “आकाश …आकाश …”दर्द से कराहते हुए उन्होनें अपने सीने पर हाथ रखा “गिरि अंकल! एम्बुलेंस ….” आकाश चीखा “आती ही होगी…मैं फिर से कॉल करता हूँ ” गिरिराज दुबारा कॉल करते इससे पहले ही एम्बुलेंस आ गयी थी… *** आई.सी.यू. में भर्ती कर लिया गया राघव को…और बाहर सब चिंता में थे।  तभी अचानक एक तेज तमाचे की आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया! “अगर तुम्हें कैसे भी सच्चाई पता लग भी गयी थी, तो क्या जरुरत थी राघव भईया को बताने की? देख लिया ना नतीजा? जाने कितने सालों बाद मैनें उन्हें खुश देखा था…कितनी खुशी से वो हम सबको लेकर आये थे …इस घर में मेरे साथ रहना चाहते थे…लेकिन” तभी उनकी नजर पास ही खड़े गिरिराज पर चली गयी, वो गुस्से में बोलीं,”इसे तो इतनी समझ नहीं..लेकिन तुम तो समझदार हो कम से कम..अब और क्या चाहते

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:21

21. “कौशल्या, तुमने राघव के कमरे में ये अचानक दीवार क्यो बनवा दी ?” नारायण ने गुस्से में पूँछा “जरुरत थी” कौशल्या, नारायण से मुँह फेर कर बोलीं “कैसी जरुरत ?” “मैं नहीं चाहती, कि मेरा बेटा उस दरवाजे को देखे और दुखी हो जाये…दरवाजा बन्द रहेगा तो वो जल्दी ही इस सब से उबर जायेगा” “अच्छा? तुम्हें पहले से कैसे पता चल गया कि ये सब होने वाला है …कि रेशमा…और आनन फानन में तुमने दीवार भी बनवा दी” कौशल्या को अचानक अपनी गलती का एहसास हुआ, ये सवाल भी उठ सकता है, ये बात उनके दिमाग में क्यों नही आयी? “कुछ पूंछ रहा हूँ कौशल्या…जवाव दो…क्या छिपा रही हो मुझसे…बो..लो” चीख पड़े नारायण “मैं …मैं क्या छिपाऊंगी …कुछ भी तो नहीं” “समझ गया…ऐसे नहीं बोलोगी…ठीक है …मैं दीवार तुड़वाता हूँ “ “नहीं तुम्हें मेरी कसम….” कौशल्या ने घबराकर नारायण की बाँह पकड़ ली। “तुमने तो मेरे शक को यकीन में बदल दिया कौशल्या” नारायण निराशा भरी आवाज में बोले..और नारायण के ये बोलते ही कौशल्या का सब्र का बाँध टूट गया और वो निढ़ाल सी जमीन पर बैठीं और आँसुओ से रोने लगी। “मुझे बचा लो…मुझसे अपराध हो गया है…मैं क्या करुँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा” “कौशल्या मुझे बताओ…सब सच- सच बताओ..” नारायण की बात को बिल्कुल अनसुना करके वो बस्स रोती रहीं। “देखो कौशल्या!रोने से कुछ हल नहीं निकलने वाला …मुझे बताओ क्या किया है तुमने …इससे पहले हम किसी बड़ी मुसीबत में फँस जाये …कौशल्या बताओ मुझे” कौश्ल्या ने जल्दी से आँसूं पोंछे और हांफते हुए बोलीं “तुम सब संभाल लोगे ना?” “क्या इसके सिवाय कोई और चारा है?…अब बोलो?” “देखो, हम दोनों ही परेशान थे उस …उस रेशमा से… “हम्म..” “मैं उसकी सास से मिली…और मैनें उससे इस क्लेश को खत्म करने के लिये कहा” “उस कांता से मिली तुम?” “हम्म ….” ” फिर….?” “उसे उत्साहित करने को मैनें उसे थोड़े पैसे भी दिये” इसे सुनकर नारयण ने अपनी आँखे तरेरी “मैं क्या करती मुझे डर लग रहा था कि कहीं …कहीं…राघव उससे व्याह कर लेता तो…हम कहीं के ना रहते…” “अच्छा, फिर?” “फिर क्या …मुझे क्या पता था कि (फुसफुसाकर) वो पागल औरत उसका कत्ल करवा देगी.. “(आश्चर्य से)क्या…?” “इतना ही नहीं…उस पागल औरत ने उसकी और उसके बेटे की लाश को हमारे घर के पिछवाड़े …राघव के कमरे का जो पिछला दरवाजा खुलता है ना…वहाँ दफन करवा दिया है…” डर और हैरत से नारायण ने अपने दोनों हाथ खुद के मुँह पर रख लिये “इसलिए मुझे वो दीवार बनवानी पड़ी….सुनो, मेरा दिल बड़ा  घबरा रहा है…आह..अगर मुझे जरा सा भी एहसास होता कि वो पागल और कमक्ल औरत… “वो कमअक्ल और पागल अयं ..या तुम? (नारायण गुस्से से चीखे) यकीन नहीं होता कि तुम ऐसा भी कर सकती हो…कोई और मुझे तुम्हारे बारे में बताता तो यकीन नहीं होता  …लेकिन  ..” “मेरा यकीन करो…मैनें उससे ऐसा नहीं कहा था….मैं तो बस्स ये चाहती थी कि उसे कहीं दूर भेज दे या किसी के साथ भेज दे, बस वो राघव की जिंदगी से अलग हो जाए, मैं तो बस खानदान की इज्जत बचाना चाहती थी” “तुमने जो किया उससे हजार बार अच्छा होता कि राघव उस रेशमा से व्याह ही कर लेता” “ये क्या कह रहे हो…? “सच कह रहा हूँ …ना सही अपराध …लेकिन तुम? इस अपराध की भागीदार हो कौशल्या” नारायण आवेग में चीखे “(आश्चर्य से) क्या?” “हाँ …सही कह रहा हूँ ” फिर नारायण ने जल्दी से लकड़ी की आलमारी खोली और कुछ पैसे निकालकर अपनी जेब में रख लिये। “कहाँ जा रहे हो?” अभी दो ही कदम बढ़ाए होंगे नारायण ने कि कौशल्या ने उनका हाथ पकड़ लिया “पुलिस चौकी” बड़े तटस्थ भाव से नारायण ने जवाव दिया ” पुलिस चौकी. ?” “मुझे लगता है सब कुछ कबूल करना ही हमें इस मुसीबत से बाहर निकाल सकता है” “नहीं …नहीं…नहीं मैं तुम्हें हरगिज पुलिस चौकी नहीं जाने दूँगी…सबके सामने पुलिस मुझे पकड़ कर ले जायेगी…हाय कितनी बेइज्जती हो जाएगी” कौशल्या ने नारायण को रोकने के लिये उनकी बाँह कसकर पकड़ ली थी! “मुझे जाने दो कौशल्या…घबराओ मत… मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा” नारायण ने आश्वासन देते हुए कौशल्या का हाथ खुद की बाँह पर से छुटाया लेकिन कौशल्या ने उनकी बाँह और भी कस कर पकड़ ली। “नहीं …नहीं..पुलिस नहीं…सुनो क्या कोई और उपाय नहीं?” “कौशल्या … हाथ छोड़ो मेरा” “नहीं…नहीं…पुलिस नहीं” कौशल्या एक बच्चे की तरह बिलख पड़ी। और बाहर से देखता और सुनता आकाश कौशल्या का ये रूप देखकर भावुक हो गया। अगले ही पल! नारायण के कदम डगमगाये और वो जमीन पर लुढ़क गये “हें क्या हुआ…क्या हुआ” (कौशल्या चीखीं) अरे कुछ बोलो ना क्या हुआ …आह क्या करुँ (फिर कमरे के दरवाजे से जोर से आवाज लगायी) “गि…री…श…रा…घ..व … अरे! जल्दी आओ…देखो तुम्हारे बाऊ जी को क्या हुआ?” “क्या हुआ बाऊ जी को?” गिरीश भागते हुए आये “पता नहीं …देख जरा” कौशल्या, नारायण की हथेलियाँ मलने लगीं। नारायण की आँखे लाल हो गयी थीं और वो बेहद कष्ट में दिख रहे थे। “मैं डॉक्टर को बुला कर लाता हूँ ” गिरीश उनकी हालत देख तेजी से बाहर की ओर भागा! “घबराओ मत…गिरीश गया है डॉक्टर को लाने…अभी डॉ आता ही होगा” कौशल्या उनकी हथेलियाँ मलते हुए रोने लगीं।  अचानक नारायण ने कौशल्या का हाथ इतनी कस कर पकड़ा जैसे दुनियाभर की ताकत अचानक से उनके हाथों में आ गयी हो … और अगले ही पल एकदम शिथिल छोड़ दिया। कौशल्या के दिमाग में उस अनहोनी की अशंका कौंध गयी जिसे वो स्वीकार करने को एकदम तैयार नहीं थी। कि तभी, “डॉक्टर साहब जल्दी देखिए” गिरीश डॉक्टर को ले आये थे। डॉक्टर, नारायण का चेकअप कर रहे थे और कौशल्या जड़ बनीं खड़ी थीं जो डॉक्टर कहने वाला था वो पहले ही जान चुकीं थीं। परिवार के सभी लोग अब तक उस कमरे में इकट्ठा  हो चुके थे। “गिरीश जी, इनमें कुछ नहीं बचा” डॉक्टर निराशा से अपना सिर ना में हिलाते हुए बोला “मत…लब?…क्या मतलब आपका?…ये अभी एकदम ठीक थे…अभी कुछ पल पहले ही” गिरीश घोर आश्चर्य में था “मेरे आने से पहले ही ये इस दुनिया से जा चुके हैं…” डॉक्टर ने गहरी संवेदना से गिरीश का कंधा थपथपाया और जल्दी

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट:20

20. खिड़की से कूद कर जैसे ही आकाश बाहर निकला, बदहवास सा एक ओर भागा, फिर ख्याल आया कि उसे तो मन्दिर जाने का रास्ता पता ही नहीं है, कुछ बच्चे उस रैली की  ओर देखकर बड़े खुश होकर तालियां बजा रहे थे। “सुनो बेटा, मन्दिर जाने का रास्ता कौन सा है?” उसने पूँछा  “कौन सा मन्दिर?” बच्चे बोले  कौन सा मन्दिर? हां ये तो सच मे कनफ्यूजिंग है कितने ही मन्दिर होंगे कैसे पता चले कि रेशमा जी कौन से मन्दिर गयीं होगीं “बच्चो यहां से सबसे पास जो मन्दिर हो, वहाँ जाने का रास्ता बताओ” “अरे वो तो यहीं है, यहां से सीधे इसी रास्ते पर चले जाओ अपने आप दिख जायेगा” “ठीक है बच्चो…”आकाश पूरी तेजी से उसी ओर भागा, थोड़ी देर में ही एक छोटा सा लाल रंग का मन्दिर उसे दिख गया, वो भागता हुआ मन्दिर के अन्दर गया, जहाँ दो-चार लोग ही थे और वो सारे आदमीं और लड़के, आकाश ने दौड़ते हुए मन्दिर के आसपास देखा लेकिन कोई नहीं दिखा। वो फिर आगे की ओर जाने वाली सड़क पर इधर-उधर देखता हुआ भागने लगा। सामने एक पेड़ों की लम्बी कतार नजर आ रही थी और उसी के ओट में चलते कुछ लोग सिर पर कोई बोझ उठाये हुए थे। ‘कहीं यही तो दीना और उसके साथी तो नहीं?’ ये ख्याल आते ही आकाश पूरी ताकत से भागते हुए उन पेड़ों की कतार को पार कर गया और उन तीनों के सामने जा पहुँचा। दीना हाथ में एक बड़ा सा गड़ासा पकड़े हुआ था और सबसे आगे-आगे चल रहा था उसके पीछे दो आदमी अपने सिर पर एक बड़ी सी बोरी उठाये हुए थे। उन्हें देखकर आकाश का गुस्सा उबाल मारने लगा। “कहाँ हैं रेशमा?”आकाश ने दीना के सामने जाकर गुस्से से पूँछा दीना ने जल्दी से अपने गड़ासा कंधे पर पड़े हुए गमछे में छुपा लिया। “बोरी में क्या है।?” आकाश ने पूँछा “फसल है, अभी अभी काटी है…(फिर अपने साथियों की ओर देखते हुए) चलो जल्दी-जल्दी चलो”दीना नजरें चुराते हुए बोला “फसल? इतनी सुबह-सुबह ? अच्छा जरा दिखा तो” आकाश ने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा “वो …जरा जल्दी में हम” दीना बड़ी फुर्ती से पास से निकलने ही वाला था कि आकाश ने उसे गर्दन से पकड़ते हुए पीछे की ओर खींच लिया। “किसे बनाता है कमीने…..रेशमा जी कहाँ है…बोल?” “कौन रेशमा …मैं नहीं जानता” दीना खुद को छुड़ाते हुए बोला “कमीने तुझे नहीं पता कि रेशमा कहाँ हैं …तुझे?..बनता है मेरे सामने….क्या किया तूने उनके साथ …बो…ल” आकाश ने उसे एक जोरदार घूँसा मारा और आगे बढ़ कर बोरी खोलने लगा। उसी वक़्त दीना ने अपने दोनों साथियों को इशारा कर दिया और अकाश कुछ समझ पाता उससे पहले ही वो दोनों उस पर टूट पड़े, आकाश को सँभलने तक का मौका नहीं दिया, और लात-घूंसो की बरसात कर के आकाश को लहू-लुहान कर दिया।  जब तीनों आश्वस्त हो गये कि आकाश बेहोश हो गया है तो दीना ने उन दोनों को आकाश को पीटने से रोक दिया। ” बस्स करो..कोई नया लफड़ा नहीं चाहिये ..छोड़ दो इसे ऐसा ही” “आखिर ये क्यों पूंछ रहा है रेशमा के बारे में?” दीना के एक साथी ने फुसफुसाकर पूँछा “क्या मालूम…खैर…अब पूंछने लायक नहीं रहा …चलो यहां से…कांता ने हमसे छिपे रहने को कहा है ” दीना ने कहा और फिर तीनों वहाँ से भाग गये। थोड़ी देर बाद आकाश को होश आने लगा ..तब उसे दर्द का एहसास हुआ ..वो कराहता हुआ पड़ा रहा थोड़ी देर तक…फिर हिम्मत करके खड़ा हुआ और धीरे-धीरे चलने लगा, थोड़ी देर चलने के बाद उसे दो मकानों के बीच बनी छोटी सी गली में कांता किसी से बातें करती हुई दिखीं, आकाश उसी ओर मुड़ गया। “ये क्या कह रही हो…मैने मुसीबत खत्म करने के लिये कहा था…कत्ल करवाने के लिये नहीं” ये कौशल्या थीं जो दाँत पीसते हुए कांता को डांट रही थीं। “दादी जी ” कौशल्या को देखकर चौंकता हुआ आकाश दीवार के सहारे से टिक कर खड़ा हो गया “मैने आपकी मुसीबत हमेशा के लिये खत्म कर दी, आपको तो मेरा एहसान मानना चाहिये, और आप हैं कि ….”कांता तपाक से बोली “चुप्प …पागल औरत! कितना बड़ा बबाल कर दिया तूने, एहसास भी है…हे भगवान अब मैं क्या करुँ?” “कैसे एहसास नहीं होगा…अपनी बहू के साथ-साथ पोता भी तो खोया है मैनें ” कांता के ये बोलते ही कौशल्या का ही नहीं बल्कि आकाश का मुँह भी खुला का खुला रह गया। “क्या?” कौशल्या सदमे से जमीन पर बैठ गईं! और आकाश ने खुद का हाथ अपने मुँह पर रख लिया। “मैनें उस गधे से बस्स रेशमा को मारने के लिये….”कांता ने इतना बोला ही था कि “चुप…चुप खबरदार जो ये शब्द तेरी जुबां पर कभी दुबारा भी आया तो….”कौशल्या ने उसे तेजी से डपट दिया ” लेकिन मेरा पोता भी तो उस करमजली  के साथ था…उन लोगों के काम में अड़चन डाल रहा था.. इसलिये उन लोगों ने उसे भी …हाय मैं कहीं की ना रही” कांता ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना दायां हाथ खुद के माथे पर मारा,  आकाश गुस्से से तिलमिला गया और ‘जो होगा देखा जाएगा ‘ सोचते हुए उसकी ओर एक कदम बढ़ाया ही था कि ठिठक गया। कौशल्या उठ कर खड़ी हुईं। और बड़े सख्त आवाज में बोली “जो होना था सो हो गया, अब यूँ हाथ पैर छोड़ने से कोई फायदा नहीं होने वाला …ये बताओ …उन दोनों की…अ …उन दोनों की ओह्ह ” कौशल्या लाख चाहने के बाबजूद भी वो शब्द अपनी जुबां पर नहीं ला पा रही थीं जो उन्हें इस वक़्त सबसे ज्यादा परेशान कर रहे थे। “किसका मुँह देखकर काटूगीं ये बची जिंदगी ” कांता निढ़ाल सी जमीन पर बैठ गयी थी। और उसे ऐसे हाल में देखकर कौशल्या की चिंता बढ़ गयी थी “कांता…कांता संभालों खुद को…ये बताओ दोनों की लाशें कहाँ हैं?” कौशल्या ने कांता के सामने बैठते हुए उसके दोनों कंधे हिलाते हुए पूँछा “वो सेठानी जी। आपके घर के पिछले दरवाजे के आगे जो जगह है ना… वहीं पर ” कांता रोते हुए बोली “क्या…?” सुनकर कौशल्या की आँखे फट गयीं। और गुस्से में आकर कौशल्या ने एक जोरदार चाँटा कांता के मुँह पर

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सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 19

“उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पैरों पर तेजी से कुरेदा हो…उसने सामने देखा तो…वो छाया झुकी हुई थी और उसके सूखे और खुरदरे हाथ आकाश के पैरों पर थे। “ना…ना…अह्ह..आह्ह” आकाश डर, घबराहट के लिजलिज़े एहसास से कुलबुलाया! और अगले ही पल उस छाया ने आकाश को हवा में उठा दिया“अह्ह..अह्ह.. ना…नहींss…नहींsss” डर से आकाश के मुँह से निकला फिर उस छाया ने आकाश को चकरी की तरह गोल गुमाया और एक गोले की तरह हवा में उछाल दिया। “आह्ह्हह” आकाश के मुँह से चीख निकल गई!” 19. “अ …आ …”डर की वजह से आकाश की हालत खराब थी, उसने कुछ बोलना चाहा लेकिन आवाज गले के बाहर ही नहीं निकली! अब वो हवा में थोड़ी और ऊपर उठ गयी थी…और उसने अपने लकड़ी जैसे लम्बे और सूखे हाथ हवा में उठा लिये थे  और अगले ही पल..  तेज हवा चलने लगी  …आकाश का पूरा शरीर जैसे जाम हो गया था बस्स आँखें ही थी जो उस छाया पर टिकी हुईं थीं !अब हवा तूफान में बदल गयी थी …और एक तेज “भड़ाक” की आवाज के साथ वो जाम पड़ा हुआ कमरे का पिछला दरवाजा भी खुल गया था..अब इतनी तेज हवा में आँखे खोले रख पाना मुश्किल हो गया था आकाश के लिये, हालांकि वो आँखे खुली रखने की पूरी कोशिश कर रहा था। इसी वक़्त उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पैरों पर तेजी से कुरेदा हो…उसने सामने देखा तो…वो छाया झुकी हुई थी और उसके सूखे और खुरदरे हाथ आकाश के पैरों पर थे। “ना…ना…अह्ह..आह्ह” आकाश डर, घबराहट के लिजलिज़े एहसास से कुलबुलाया और अगले ही पल उस छाया ने आकाश को हवा में उठा दिया “अह्ह..अह्ह.. ना…नहींss…नहींsss” डर से आकाश के मुँह से निकला फिर उस छाया ने आकाश को चकरी की तरह गोल गुमाया और एक गोले की तरह हवा में उछाल दिया। “आह्ह्हह” आकाश के मुँह से चीख निकल गई! *** “उर्मिला ..ओ। उर्मिला “ “राघव भैया की आवाज है ये तो…”उर्मिला आवाज सुनकर आश्चर्य से बुदबुदायी और सीढियों की ओर लपकी “उर्मिला! घर में नहीं हो क्या ?” राघव ने फिर से कहा! “राघव भैया ” उर्मिला की आँखे अविश्वास से खुली थी। राघव दरवाजे पर खड़ा था, ये महज दूसरी वार था जब राघव गिरीश के घर में आया था।  इससे पहले वो सिर्फ़ तब आया था जब गिरीश ने उसे गृह प्रवेश के वक़्त मिन्न्ंते करके बुलाया था। सब यही सोचते कि राघव को किसी से मिलने जुलने में कोई रुचि नहीं है, और उसके शराब पीकर आजादी से रहने में कोई खलल ना पड़े इसलिये वो किसी से कोई सम्बंध रखना नहीं चाहता, तो वक्त के साथ -साथ खुद की जिंदगी में सिमटते चले गए! “यकीन नहीं हो रहा है ना? ” उर्मिला को खुद की ओर घूरते देख राघव ने कहा, और फिर हँसते हुए खुद के पास आने का इशारा किया। उर्मिला दौड़ कर राघव के गले लग गयी! “कैसी है मेरी बहन?” “अब याद आयी है मेरी?” भावुकतावश उर्मिला की आँखों से आँसूं निकलने लगे। “क्या ही कहूँ …स्वार्थी दुनिया का असर तेरे भाई पर भी आ गया था शायद, नहीं तो अपनी छोटी बहन को कोई ऐसे ही नहीं छोड़ देता है …या फिर ऐसे कहूं तो गलत नहीं होगा कि खुद से ज्यादा गिरीश भईया पर भरोसा था मुझे कि वो तेरा ख्याल रख लेंगे…क्योंकि मुझे तो खुद में ही डूबे रहने से  फुरसत नहीं..और इस स्वार्थीपन में नाइंसाफ़ी हो गयी तेरे साथ “ “नाइंसाफ़ी?” “हम्म्म….चाहे ना कहे तुम, लेकिन जानता हूँ जो सुख खुद के घर में है वो और कहां?” “ऐसा मत सोचिए…मैं खुश हूँ यहाँ ….कोई नाइंसाफ़ी नहीं हुई आपसे.. आप मुझसे मिलने आये यही मेरे लिये बहुत खुशी की बात है?” “गलत कहते हैं लोग, कि एक वक़्त के बाद कोई साथ नहीं देता …बहिनें हमेशा साथ देतीं हैं। मुझे ही देखो …क्या मैं इस लायक हूँ कि मुझे कोई काम दे? लेकिन, लगातार मुझे कोई ना कोई काम मिलता रहता है … जानती है क्यों?” “क्यों?” “क्योंकि मेरी बहन मेरे लिये लगातार भगवान से प्रार्थना जो करती रहती है…” “राघव भइया ” उर्मिला खुशी मे सुबक रही थी “अपने घर चल उर्मिला वहाँ आराम से रहना…जैसे चाहें वैसे!..कोई रोकने-टोकने वाला नहीं…और देख ना कब से हम भाई – बहिन साथ भी नहीं रहे” उर्मिला कुछ ना बोलकर बस्स खुशी के आंसुओं के साथ रोती रही और राघव उसके सिर पर हाथ फेरता रहा, तब तक गिरीश और बाकी परिवारीजन भी आ गये थे। “राघव? ….राघव चाचा जी? “सब एक साथ बोले “गिरीश भईया, कैसे हैं आप? राघव गिरीश को देखकर बोला “वो छोड़ो कि कैसा था…तुम्हें यहाँ देखकर बेहद खुश हूँ! आखिरकार तुम्हें नशे से फुरसत मिली…और अपने भाई की याद आयी “गिरीश ने खुश होकर कहा ” उर्मिला को लेने आया हूँ भईया”राघव गिरीश के पावँ छूते हुए बोला “क्या उर्मिला को ….वहाँ रखोगे…जहाँ हर वक़्त तुम नशे में धुत्त पड़े रहते हो…कौन लेगा इसकी जिम्मेदारी?” “मै  लूँगा…जानता हूँ आपको यकीन नहीं होगा लेकिन मैनें शराब पीना छोड़ दिया है…लगभग एक महिने से” “मैं नहीं मानता! किसे मूर्ख बना रहे हो?” “आप चाहें  तो आकाश से पूंछ लिजिये” “आकाश से..ओह्ह! वो कौनसा कम  है…मुझसे कहा घूमने जा रहा हूँ चाचा जी..देखो अभी तक पलटा ही नहीं…कौन जाने तुमने उसे भी नशे की आदत डाल दी हो…उसके माता-पिता को तो पहले ही उससे कोई उम्मीद ना थी…मुझे तो डर है कि कहीं वो खानदान का दूसरा राघव ना बन जाये..” गिरीश के इन शब्दों ने राघव के चेहरे की खुशी को गायब कर दिया “कम से कम तुम दो वक़्त की रोटी तो कमा रहे हो … आकाश तो वो भी नहीं” गिरीश ने आगे तंज कसा “भइया! आकाश शराब नहीं पीता …और बेफिक्र रहिये वो दूसरा राघव नहीं बनेगा…वो बेहद सुलझा हुआ और गंभीर है और हाँ फिलहाल बापस इसलिये नहीं आया कि उसने वहाँ एक शोरूम में मैनजर की जॉब कर ली है” राघव तनिक सपाट अंदाज में बोला, और ये सुनकर सबके चेहरे खिल गये। कि आकाश ने जॉब कर ली है “क्या ..आकाश जॉब कर रहा है….यकीन नहीं होता” गिरीश हैरत से बोले “सच है ये…खैर मैं घर में मरम्मत का काम

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