सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 18
18. “चलो मेरे साथ” गिरिराज ने आकाश का हाथ पकड़ा और उसे बाहर की ओर ले जाने लगे “अरर ” आकाश की प्रतिक्रिया को गिरिराज बिल्कुल अनसुना करके उसे खींचते हुए बाहर ले गये और लगभग धक्का सा मारते हुए उसे अपनी ओपन जीप में बैठा दिया और खुद स्टीयरिंग संभाल ली। “तुम्हें पता है ना, नागेन्द्र की लाश को कौन से कब्रिस्तान मे दफनाया है उर्मिला ने …. तो चलो रास्ता बताओ” गिरिराज की ये अकारण नाराज़गी आकाश के समझ से परे थी, फिर भी वो चुपचाप बैठकर रास्ता बताने लगा “आगे से लेफ्ट लीजिये…..और चलते रहिये “अब इस गोल चक्कर से अन्दर की ओर “हाँ बस सीधे “अब राइट लिजिये …यहाँ से बस्स 10 मिनट और “ बस्स यहीं रोक दीजिये…” कहने के साथ ही आकाश जीप से कूद कर से उतर गया, और भागकर एक कब्र के पास पहुँच गया, “ये …यहां दफनाया है नागेन्द्र की लाश को….रुकिये (आकाश ने इधर-उधर देखा और एक फावड़ा उठाया, और वो उसे कब्र पर मारता उससे पहले ही, आगे बढ़कर गिरिराज ने उसे रोक दिया) “इसकी जरुरत नहीं, जो देखना था मुझे, देख लिया….जिस आत्मविश्वास से तुम कह रहे हो…कोई शक की गुंजाइश ही नहीं कि नागेन्द्र की लाश इसी कब्र में है…” “तो अब?” “चलो, सबसे पहले मुझे उर्मिला के पास ले चलो …पहले ही बहुत देर कर दी है मैनें …अपने ही हाथों अपने प्रेम और खुशियों का गला घोंट दिया है मैनें …माफी का हकदार भी नहीं हूँ मैं” गिरिराज दुखी होकर बोले “वो माफ कर देंगी आपको, चिंता मत कीजिये.. “आकाश मुस्करा कर बोला। *** “बुआ जी…जल्दी बाहर आइये” आकाश ने घर में घुसते ही आवाज लगा दी “आकाश..आ गये…तुम तो मिलने गये थे लेकिन जैसे बश ही गये राघव के पास” उर्मिला सीढिय़ां उतरते हुए बोली और आकाश के गले लग गयीं, गले लगते ही उनकी नजर गिरिराज पर चली गयी जो आकाश के पीछे खड़े थे…उर्मिला हैरान सी आकाश से छिटककर थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गयीं “क्या हुआ..अच्छा…(गिरिराज की ओर इशारा करके) इन्हें देखकर हैरान हैं आप?.ये गिरि अंकल हैं, आपसे कुछ बात करने आये हैं” “मुझसे क्या बात करनी…मैं इन्हें जानती भी नहीं…मैं क्या बात करूँगी” उर्मिला घबरा कर बोलीं “घर के बाकी लोग कहाँ हैं” आकाश ने उनकी बात को अनसुना कर के पूँछा “रोहित किसी लड्की से मिलाने ले गया है सब को” “समझ गया…किससे मिलाने ले गया है..ठीक है, आइये गिरि अंकल आपको बुआ का कमरा दिखाऊं” बोलता हुआ आकाश ऊपर जाने वाली सीढियां चढ़ गया। उसके पीछे गिरिराज भी चला गये। “अरे मेरा कमरा क्यों? बोलती हुई उर्मिला भी उनके पीछे-पीछे आ गयी। गिरि यहां आकाश के साथ कैसे? उनके दिमाग में ये बात घूम रही थी, उनके ऊपर जाते ही आकाश उनके कमरे से बाहर निकला और छत के कोने में जाकर खड़ा हो गया। “कैसी हो उर्मिला?” गिरिराज ने पूँछा “तुम यहां कैसे…आकाश को क्या बताया है तुमने…और तुम जो हमेशा दूर भागते रहे हो मुझसे, आज यहां आकर मेरा हाल पूँछ रहे हो….मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा” “हम्म जानता हूँ बहुत से सवाल हैं तुम्हारे पास, लाजिमी भी है, देखो उर्मी “ अपने लिये सालों बाद गिरिराज से खुद के लिये उर्मी सुनकर उनके दिल की धड़कन बढ़ गयी…गिरिराज इसे भांप भी गये..और आगे बोले “हाँ उर्मी, पहले ही बहुत देर हो चुकी है…पागल था उस वक़्त जो आँखो से देखा सच मान लिया और भाग गया, तुम अकेली हर परिस्थिती से लड़ती रही..फिर भी…जब भी मौका मिला तुम मुझे समझाने की कोशिश भी करती रहीं…लेकिन मैं तुम्हारे छिन जाने का गम ही मनाता रहा…और इस गम में इतना डूबा कि कुछ और देखा ही नहीं…ना सुना …जो काम मुझे करना चाहिये था तुमने किया…तुमने उस जानवर को मारा…जबकि उसे मुझे मारना चाहिये था उस…उस नागेन्द्र को “ “तुम्हें कैसे पता कि नागेन्द्र को मैनें मारा…. ” उर्मिला घबराई सी बोली “मुझे सब पता चल गया है” “लेकिन कैसे?” “बस्स ये समझो कि ईश्वर की मर्जी है हमें मिलाने की…और उसने जरिया बनाया है आकाश को…” “आकाश को?” “हाँ! मैं नहीं जानता कैसे ..उसकी कोई तीसरी आँख खुली है या उसे ईश्वर ने सपने में सब दिखाया ..वो खुद नहीं जानता! लेकिन ये चमत्कार है कि उसने सब अपनी आँखो से देखा है…..नहीं पता कैसे… लेकिन उसी ने मुझे खोज निकाला और मेरी गलती का एहसास दिलाया और सब सच बताया” “क्या ?” उर्मिला ये सुन कर भौचक थीं। “हम्म…देखो उर्मिला! मैं माफी तो नहीं मांगता क्योंकि मेरी गलती माफी के लायक ही नहीं …बस्स ये समझो कि लाख नाराजगी सही लेकिन प्रेम तुम्हीं से किया और तुमसे वफादारी भी निभायी..तुम नहीं मिली तो किसी और को भी नहीं अपनाया … मुझे स्वीकार कर लो” “अब ???” वो सवालिया नजरों से गिरिराज को देखते हुए बोली “जानता हूँ तुम्हारी नाराजगी… और तुम्हारे सभी गिले -शिकवे सुनना भी चाहता हूँ …साल दो साल तो नाराजगी सुनने में ही निकल जायेंगे…तुम कहती रहना मैं सुनता रहूँगा…सोचता हूँ क्यों ना गिरीश और राघव से बात करके शादी कर लें?” खुशी से ओत- प्रोत गिरिराज बिना रूके सब बोलते जा रहे थे! “शा …दी?” “हाँ शादी …देखो ना इस वक़्त भी तुम्हारे दिमाग में यही आ रहा होगा कि कहीं आकाश ना जाये ..कहीं सब लोग लौट ना आये …अगर किसी ने मुझे यहां देख लिया तो क्या होगा… है ना ? तो तुम शिकायत भी कैसे कर पाओगी और कैसे मैं सुन पाऊंगा! तो शादी करके रहते हैं ना” “नहीं गिरि…तुमने सोचा भी कैसे? कि मैं तुमसे शादी करूँगी” उर्मिला से ये सुनते ही गिरिराज का दिल डूब गया “माफ नहीं कर पाओगी ….है ना?” उसने डूबे स्वर में पूँछा “हुम्म…कभी नाराजगी ही नहीं रही तो माफी कैसी?” “क्या…तुम्हें कभी कोई नाराजगी नहीं रही मुझसे?” गिरिराज ने हैरानी से पूँछा “हाँ ..नहीं रही…. होती तो जब-जब तुम्हे देखा यूँ पीछे-पीछे क्यो दौड़ती? मैं तो बस्स इतना चाहती थी जो गलतफहमी है तुम्हारे मन में वो कैसे भी खत्म कर सकूँ, तुम्हें सच बता सकूँ बस्स” “जो हुआ बहुत बुरा हुआ..सब मेरा कसूर था…जो वक़्त चला गया वो तो बापस नहीं आ सकता …लेकिन हम अपना आज तो जी सकते हैं ना उर्मिला…जिंदगी के ये बचे
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 17
उस दिन आपने कपड़े किस रंग के पहने थे..याद कीजिये उस दिन लाल शर्ट पहनी थी आपने …अरे मैं तो ये भी बता सकता हूँ कि जिस दिन बुआ से पार्क में मिले थे उस दिन उनके चले जाने के बाद भी आप वहाँ करीबन 20 मिनट बैठे रहे थे… ये तो बुआ नहीं बता सकती ना मुझे ““कैसे जानते हो तुम ये सब?..मुझे साफ-साफ बताओ” गिरिराज आवेग में आते हुए बोले “वही तो…मुझे भी समझ नहीं आ रहा लेकिन मैनें ये सब कल रात देखा खुद अपनी आँखो से”“सालों पहले की घटनाएं? कल …पता भी है क्या बकवास किये जा रहे हो?” गिरिराज घोर हैरानी में सोफ़े से उठकर खड़े हो गए थे! 17. “आकाश! अरे भई सूरज सिर पर चढ़ आया है! कब तक सोओगे?” ये आवाज सुनकर आकाश ने धीरे से अपनी आँखे खोल दी। सामने खिचड़ी वालों वाले, आँखों पर चश्मा चढ़ाये हल्के गुस्से में राघव उसे दिखे। आकाश खुशी से चीख पड़ा “राघव चाचू ” खुद के लिये चाचू शब्द सुनकर राघव चौंक गया। “क्या हुआ कोई सपना देखा है क्या? उठ जाओ शोरूम नहीं जाना? मैं कुछ खाने का इन्तजाम करता हूँ तुम्हारे लिये” सपना? तो क्या सपना देखा था मैनें ? राघव चाचा को उनके जवानी के दिनों में देख कर आ रहा हूँ और बुआ…क्या सच मे सपना ही देखा था मैनें, ऐसा सपना? “आकाश, अभी तक यहीं बैठे हो? समझ नहीं आता आखिर तुम इस कमरे में आते क्यो हो…देखो जमीन पर ही सो गये थे” बोलते हुए राघव ने आकाश को चाय का कप पकड़ा दिया। और कप पकड़ते हुए भी आकाश, राघव को किसी अचंभे की तरह देख रहा था “क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या?” आकाश को खुद की ओर घूरते देख राघव ने पूँछा “आप हमेशा मेरा ख्याल रखते हैं” आकाश भावुक होकर बोला और राघव से लिपट गया “अरे क्या हुआ..अच्छा अच्छा अब तैयार भी हो जाओ ” हँसते हुए राघव ने आकाश की पीठ थपथपा दी। *** “आकाश काम समझ आ रहा है ना तुम्हें?” आकाश के शोरूम में घुसते ही आकांक्षा ने पूँछा ” हाँ सब समझ आ रहा है” आकाश ने कहीं खोये हुए स्वर में जवाब दिया और अपनी सीट पर बैठ गया। आकाश का ऐसा ठंडा रवैया देखकर आकांक्षा वहाँ से चली गयी। और आकाश फिर अपने ख्यालों में खो गया क्या सपना था…सपना कैसे हो सकता है सो भी इतना लम्बा सपना!खासतौर से उन्हीं घटनाओं से जुड़ा हुआ कैसे हो सकता है ..कैसे सम्भव है ये…बुआ ने नागेन्द्र की हत्या की थी..एकदम सही किया ऐसे कमीनो के साथ ऐसा ही होना चाहिये..कितनी बहादुर हैं मेरी बुआ! और राघव चाचा कितने हैण्डसम और इंटेलीजेंट! मेथ्स का टॉपर होना इतना आसान नहीं और कैसे भुल सकता हूँ की वो बहादुर भी थे क्या पीटा उस दुकानदार और सिक्योरिटी वालों को! “ (मुस्कुराते हुए) वाह। और एक मैं हूँ जो ना तो राघव चाचा की तरह हूं, ना ही बुआ की तरह बहादुर हूँ! ना ही पढ्ने में होशियार ..लेकिन मेरा मन इसे सपना मानने को तैयार नहीं और ये सब हकीकत भी नहीं हो सकता…उफ्फ कैसी उलझन है …क्या करुँ ….. क्या करुँ…क्या कोई मदद कर सकता है इसमें मेरी…(अचानक चौंक कर) हां एकदम ठीक! दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। “दीदी, अपना शोरूम सम्भालिये मुझे एक जरुरी काम से जाना है” आकाश वहाँ से भागता हुआ बोला “अरे लेकिन …” आकाँक्षा की बड़ी बहिन की आवाज को बिल्कुल अनसुना कर दिया आकाश ने। *** “सपने में यही जगह थी यही! लेकिन (एक बिल्डिंग की ओर देखते हुए) सिर्फ़ एक फ्लोर का घर बना हुआ था.. हो सकता है बदल गया हो” खुद में बुदबुदा ही रहा था आकाश कि नजर सामने खड़े दो लोगों पर गयी जो आपस में अखबार देखते हुए किसी हिसाब-किताब में व्यस्त थे। “काश ये ओ.एस.आर के शेयर मैनें दस साल पहले भी ले लिये होते तो आज मैं करोड़पति होता” उनमे से एक बोला “भई तब पैसे ही कहाँ होते थे” दूसरा बोला “सुनिये ….सुनिये” कहता हुआ आकाश उनके पास चला गया। “कहिये” “यहां इस बिल्डिंग की जगह एक छोटा सा मकान बना था! जिसमें एक लड़का रहता था आ …नाम था गिरिराज..क्या आप कुछ जानते हैं इस बारे में” “कौन हो तुम”उनमे से एक ने आश्चर्य से पूँछा “ज जी मैं उनके दोस्त का बेटा हूँ और उनके दोस्त जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं अपने अन्तिम समय में वो गिरिराज जी से मिलना चाहते हैं” एक ही साँस मे आकाश बोल गया! आखिर मुझे ये अजीव झूठी कहानी कहने की जरुरत क्या थी-आकाश अपना सिर खुजलाते हुए बुदबुदाया! “ओह्ह सुनकर दुख हुआ…” आकाश की कहानी काम कर गयी थी। “लेकिन ये तो काफी पुरानी बात है…लगभग 26 या 27 साल हो गये होंगे! तब गिरि यहां रहता था!” “जी वो हल्का मन मुटाव हो गया था ना…उन दोनो के बीच..तो” “हम्म हम्म समझ गया…चलो मैं खुद ही छोड़ आता हूँ आपको” वो बोला और आकाश के साथ चलने लगा “तब बेचारे का दिल टूट गया था..पढ़ाई बीच में छोड़कर वो चला गया …बाद मे ये सब उसके मित्र सुरेन्द्र ने बताया मुझे, जब वो गिरिराज का सामान लेने आया। मेरे कमरे का किराया बाकी था गिरिराज पर, लेकिन कहता कैसे? इंसानियत भी कोई चीज़ होती है, लेकिन लगभग 4 -5 साल बाद गिरिराज बापस आ गया! मेरे पैर छूकर बोला ‘इन्जीनियर बन गया हूँ’ और पगला मुझे किराया देने लगा” चलते -चलते बोल रहे थे वो सज्जन और सच में उसकी आँखों के किनारे भीग गये! जो उन्होंने आकष से छिपा कर पोंछ लिये “ये लो आ पहुँच गए, वो काला दरवाजा …खटखटाओ तो जरा..आ ही गया हूँ तो मैं भी मिल लूँ ” उन सज्जन ने कहा तो आकाश ने आगे बढ़कर दरवाजा खटखटा दिया। आकाश अब भी असमंजस की स्थिति मे ही था। थोड़ी देर में दरवाजे पर हल्की सी आहट हुई और दरवाजा खुल गया अपनी आँखे बड़ी कर देख रहा था आकाश, वो गिरिराज ही थे। “अरे मास्टर जी! आइये …आइये” गिरिराज उस आदमी को देखकर बोले जो आकाश को लेकर आया था। “बस्स किसी और दिन आऊँगा फिलहाल तो इन महाशय को छोड़ने
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 16
16. “अरे यार देखो तुम्हारे टकराने की वजह से मेरी बोतल छलक गयी और देखो कितनी सारी शराब फैल गयी” राघव के बोलने का आकाश पर कोई असर नहीं हुआ वो तो बस्स घूर रहा था! “ऐसे क्या घूर रहे हो..वो देखो कितनी शराब फैल गयी है” राघव ने जमींन की तरफ ऊँगली का इशारा किया तो आकाश ने देखा, मुश्किल से बोतल के ढक्कन जितनी शराब गिरी हुई थी ! वो मुस्करा गया! “पता है कितनी कीमती है ये ?” “कितनी?” “ऐसी-वैसी नहीं है ये बड़े बड़े ड्रम में भरकर इसे जहाजो में रखकर समुंद्र के रास्ते पूरे यूरोप में घुमाया जाता है “ “यूरोप में ….क्यों भला?” आकाश ने उत्सुकता से पूँछा “क्याआ यार इतना भी नहीं जानते ताकि इसमें इतना शानदार स्वाद आये …इस शराब में समुंद्र की खुशबू मिली हुई है…समझ रहे हो ना?” “जी मुझसे गलती हो गयी माफ कर दीजिये” आकाश खुशी से ओत प्रोत होकर बोला, वो राघव को इस रूप में देखकर अभिभूत था “हम्म किया…माफ किया” कहता हुआ राघव एक दीवार की मुंन्डेर पर बैठ गया “बहुत धन्यवाद, माफ करने के लिये, वैसे बहुत कीमती थी आपकी शराब” आकाश भी मुस्कुराता हुआ उसके पास बैठ गया। “तो और क्या ऐसे ही…वैसे पहले कभी देखा नहीं तुम्हें यहाँ …आज क्या पहली बार आये हो?” ” आ… वो…” क्या ही कहे आकाश कुछ समझ नहीं पा रहा था “हम्म समझता हूँ जरुर तुम्हारी जिंदगी भी किसी लड़की की वज़ह से उलझ गयी होगी! हैं ना?” “अ …” “.. ये लड़कियाँ भी जिससे प्यार करेंगी उसके लिये सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हो जायेंगी लेकिन, जिससे प्यार करेंगी उसी लड़के की बात नहीं मानेगीं …अरे क्या फर्क पड़ता है ना हो कोई राजी तो …लेकिन नहीं, रजामन्दी चाहिये तो मेरे माँ, बाऊ जी की (फिर कुछ सोचते हुए) क्या तुम्हें भी पीनी है?” “ना… नहीं ” अब भला अपने चाचा के साथ तो नहीं पी सकता आकाश ने ये सोचते हुए ना कर दी “तो क्या इस शराब की दुकान के बाहर जूस पीने आये थे” “अरे मैं तो इधर से …बस्स ऐसे ही …वो” “अरे क्या यार! वो, मैं, ये कर रहे हो …समझ गया संकोच कर रहे हो… ये लो पी लो…बात कहने में आसानी होगी” बोलते-बोलते राघव ने बोतल से थोड़ी शराब आकाश के मुँह में उड़ेल दी! “अब अच्छा लग रहा है ना?”राघव ने पूँछा “ज …जी ….” आकाश ने झेंपते हुए जवाब दिया ! तो राघव जोर से हंसा फिर अचानक चुप हो गया और उसके चेहरे पर उदासी घिर गई ! “क्या हुआ राघव चा…” क्या कहकर बुलाना चाहिए इन्हें, आकाश थोड़ा कन्फ्यूज हो गया, तभी, राघव ने कहा “तुम नाम कैसे जानते हो मेरा?” राघव के पूंछने पर आकाश सकपका गया। फिर खुद ही कुछ सोचते हुए बोला “ओह्ह जरुर अखबार में पढ़ा होगा और मेरा फोटो भी देखा होगा, है ना?” “जी ” आकाश ने जल्दी से बोलते हुए हामीं मे सिर हिला दिया “हम्म… ये पूरा शहर पहचानता है मुझे…मेथ्स का टॉपर हूँ मैं (दो उंगलियाँ दिखा कर) और दो साल से लगातार कॉलेज भी टॉप किया है मैनें ..पहली और दूसरी साल का ऐसा कौन सा मेथ्स का सवाल था जो राघव यूँ (चुटकी बजाते हुए) चुटकी में हल ना कर दे…लेकिन अब … अब देखो जब से उसे देखा है… एक सवाल…एक भी सवाल हल नहीं होता …एक भी नहीं .ना जाने क्या हो गया है ….सोचता था शादी कर ये ये चैप्टर बन्द कर दूँ ..और फिर अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान लगा दूँ ….लेकिन …कहाँ कुछ इतना आसान है… ना रेशमा शादी को मानती है ना माँ बाऊ जी समझते हैं …बताओ शराब ना पियू तो करुँ क्या? (फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद) सुनो तुम्हारा नाम क्या है” “…अ …आ” आकाश फिर कन्फ्यूज हो गया! ” क्या यार इतना क्या सोचते हो…खैर ये बताओ तुम कितना पढ़े हो?” “मैं क्या ही पढूंगा आपकी तरह ना तो मैं टॉपर हूँ ना ही किसी काम में माहिर, मेथ्स तो बहुत दूर की बात है…मुझे तो इतिहास, भूगोल, अग्रेंजी, साहित्य कुछ भी समझ नहीं आता” “हम्म… मतलब आर्ट्स के स्टूडेंट हो?” “अरे काहे का स्टूडेंट…पाँच साल से बी.ए.जैसी परीक्षा पास नहीं कर पा रहा हूँ ” आकाश बहुत हताशा के स्वर मे बोला “क्या…क्या कहा …पाँच साल से बी. ए.की परीक्षा हा हा हा ओह्ह्ह्ह हा हा हा हा ओह हा हा” राघव दिल खोल कर हँसा कितने ही लोग आकाश पर हँसे थे, लेकिन आज राघव का हंसना बुरा तो बहुत दूर की बात रही बल्कि एक सुखद एहसास ही दे रहा था आकाश को, वो राघव को हँसते देख खुद भी मुस्कुरा रहा था। ” हा हा हा “ कितने हेन्ड्सम दिख रहे हैं चाचा जी-आकाश, राघव को हँसते हुए देखकर सोचने लगा “समझ गया तुम्हारी हालत” “अच्छा ! क्या ?” “ये कि तुम ये परीक्षा पास करना ही नहीं चाहते..कोई इंटरेस्ट जो नहीं है तुम्हारा और ..ये परीक्षा तुमसे दवाव में करवायी जा रही है.. अब जब मन ही नहीं है तो तुम पढ़ ही नहीं पा रहे हो तो, भला पास कैसे होओगे? ..बोलो सही कह रहा हूँ ना?” “हुम्म” आकाश ने बहुत प्रभावित होकर हामी में सिर हिला दिया, शायद पहली बार उसकी हालत का किसी ने सही आकलन किया था। “और मना इसलिए नहीं कर नहीं पा रहे क्योंकि अपनों से लड़ना सबसे मुश्किल काम है…ना तो आप उन्हे छोड़ सकते हैं…ना ही उनके खिलाफ जंग लड़ सकते हैं ! बस्स ऐसे ही घुटते रह सकते हैं…ये माता- पिता भी हमें पालते हैं बड़ा करते हैं…खूब प्यार करते हैं और जब हम बड़े हो जाते हैं….तो वो इस सब की कीमत बसूलते हैं.. .बच्चो की खुशी के लिये अपनी खुशी कुर्वान् करने का उनका दावा दहेज की चमक या खुद की आत्मसंतुष्टी के आगे इतना फीका पड़ जाता है कि बच्चों की आँखो के आँसूं और खुशी कुछ नहीं दिखता इन्हें……हम दोनों की कहानी लगभग एक जैसी ही है…तुमसे कोई गहरा नाता लगता है मेरा” राघव की बात को बड़े ध्यान से सुन रहा आकाश इस अन्तिम बात से चौंक गया और उसे आश्चर्य से देखने लगा! “ऐसे क्या देख रहे हो…तुम्हें क्या
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 15
15. “हे भगवान! अब मैं क्या करुँ?” आकाश घबराकर मन ही मन बोला, और फिर से अन्दर की ओर झांककर देखने लगा! ” ये तो बड़ा अच्छा हो गया रास्ते का काँटा खुद -ब-खुद हट गया…तो अब कैसी देरी?” नागेन्द्र बेशर्मी से बोलते हुए उर्मिला के और नजदीक खिसक आया। “हे ईश्वर ये बुआ चुप क्यों हैं…नहीं …नहीं जो होगा देखा जायेगा मैं अब खुद को नहीं रोक सकता” गुस्से में बुदबुदाता आकाश घर में घुसने के लिये आगे बढ़ा ही था कि अन्दर के नजारे ने उसे खुद को रोकने के लिये मजबूर कर दिया। अब तक बुत सी बनी उर्मिला ने फुर्ती से किचिन में रखा चाकू उठा लिया था और पूरी ताकत से पीछे खड़े नागेन्द्र पर चला दिया। “आह्ह” नागेन्द्र जोर से चीखा। उर्मिला पीछे की ओर पलटी और गुस्से में उसने इस बार पूरी ताकत से पूरा चाकू का सिरा नागेन्द्र के पेट में घुसा दिया….दर्द और आश्चर्य से भरा नागेन्द्र, उर्मिला को किसी अजूबे की तरह देख रहा था। “क्या कहा था नाजुक बदन …नाजुक नहीं हूँ… मैं नहीं हूँ नाजुक…ले देख” गुस्से में भरी उर्मिला तेज आवाज में बोली और नागेन्द्र की उसी चोटिल जगह पर उसने दूसरी बार चाकू घोंप दिया “पागल हुई है क.. क्या ..आहह” नागेन्द्र लड़खड़ाते शब्दों में बोलते हुए उर्मिला की ओर लपका और जवाब में उर्मिला ने इस बार तीसरा बार नागेन्द्र की उसी चोट पर कर दिया…”आह्ह…छोडूंगा नहीं तु…झे ” गुस्से में भरा नागेन्द्र चीखता हुआ नागेन्द्र उर्मिला को पकड़ने के लिये आगे बढा लेकिन दर्द की वजह से लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा। फिर गुस्से में भरी उर्मिला जैसे खुद के आपे से बाहर हो गयी…और एक के बाद नागेन्द्र पर बार करने लगी…और तभी रुकी जब नागेन्द्र का शरीर सिथिल पड़ गया…जब उसके शरीर ने कोई प्रतिक्रिया करना बन्द कर दिया …तो एकाएक जैसे उर्मिला को होश आया …उसने चाकू एक तरफ फेंक दिया और वहीं नागेन्द्र की लाश के पास बैठ गयी.. फटी आँखो से वो नागेन्द्र की लाश को ऐसे देख रही थी जैसे ये कृत्य उसने किया ही ना हो! उधर, बाहर खड़ा आकाश भी खुद के मुँह पर हाथ रखे अतिरिक्त रूप से आँखे खोले सकते में खड़ा था। उर्मिला, नागेन्द्र की लाश को देख रही थी और आकाश, उर्मिला को… कुछ पल सब एकदम शान्त रहा सिवाय तेज तूफानी हवा के ….बस्स वही शोर मचा रही थी। और पानी की जब एक बड़ी बूंद आकाश के हाथ पर गिरी तब वो चौंक कर होश में आया “ओह्ह बेचारी बुआ…मुझे उनकी मदद करनी चाहिये कैसे करुँ?…कैसे ? ” इधर उधर देखते हुए उसकी नजर पास ही खड़े एक सब्जी के ठेले पर गयी …और वो कुछ सोचता इससे पहले ही एक लड़के ने वो अपना आखिरी सामान उठाते हुए ठेले को उर्मिला के घर के सामने खड़ा कर दिया और उस पर रखी बोरी उठायी और यूं ही हवा में उछाल दी…जो उर्मिला के आँगन मे जाकर गिरी “हाहाहा” लड़का मौसम के सुहाने होने से खुश हुआ और भागता सा वहाँ से चला गया। बोरी के गिरने से सकते में बैठी हुई उर्मिला चौंक गयी फिर हरकत में आते हुए उर्मिला ने बोरी को कुछ पल देखा और फिर उसने बोरी उठायी और नागेन्द्र की लाश को बोरी में डालने लगी! ये बड़ी मशक्कत का काम था लेकिन थोड़ी देर की भरसक कोशिश के बाद उसने लाश को बोरी में डाल लिया था फिर उसका सिरा बान्ध कर वो बोरी को खींचते हुए घर के बाहर ले आयी और सामने खड़े ठेले पर रख दिया, उसने खुद को एक कम्बल से लपेटा और ठेले को धकेलते हुए ले जाने लगी! “शाबाश ये हुई ना बात” आकाश उत्साह में भरा धीरे से बोला ….और उर्मिला के पीछे चलने लगा। लगभग आधे घंटे भर की कवायद के बाद उर्मिला उस ठेले को गालियों और फिर सड़क से निकालती हुई एक सुनसान जगह ले आई थी, जो श्मशान था.. ………….(पार्ट -1का हिस्सा) और अब मूसलाधार बारिश होने लगी थी…धुप्प अंधेरे में अब मात्र बिजली चमकने का ही सहारा था…उर्मिला ने अंधेरे में ही इधर उधर देखने की कोशिश की..बिजली चमकी..और बिजली की चपलता से ही उसने अपने ऊपर पड़ा कम्बल उतार फेंका …. ठेले के नीचे बनी एक लकड़ी की पट्टी पर रखा फावड़ा उसने उठाया और बड़े सधे कदमों से कुछ दूरी नापी …. बिजली फिर चमकी और कब्रिस्तान का वो माहौल उसे डरा गया..अन्धेरे में उसे आस पास की कँटीली झाड़ियां और पेड़ खुद के पास सरकते से महसूस हुए, सांय सांय करती रात में कई आँखे खुद की ओर घूरती महसूस हुई..उसने खुद का सिर झटका और खुद को मजबूत किया फिर… उसने खड्डा खोदना शुरू कर दिया…बार- बार बिजली चमकने से उसे खड्ढे की गहराई दिख जाती…ना जाने कहाँ की असीम शक्ति उसके हाँथो में आ गयी थी, वो पागलों की तरह जमीन पर फावड़ा चला रही थी…..अब उसके नाजुक हाथ छिल गए थे…खून बहने लगा था उनमें से ….और घण्टों की कड़ी मेहनत के बाद जब फिर बिजली चमकी तो इस बार वो खड्ढे की गहराई को देख आश्वस्त हो गयी…उसने फावड़े को एक ओर फेंक दिया फिर हाँफते हुए ठेले को ठेलते हुए उस खड्ढे तक लायी और बोरे का सिरा खड्ढे की ओर झुकाकर सिरे पर बंधी गाँठ को खोल दिया..’धम्म’ की आवाज के साथ लाश उस खड्ढे में गिर पड़ी, बिजली फिर चमकी और इस दूधिया रोशनी में उर्मिला के चेहरे पर नफरत और घृणा के भाव स्पष्ट रुप से थे..वो हाँफती सी फिर उठी और मिट्टी से उस खड्डे को भरने लगी थकान के कारण कई बार गिर पड़ती, लेकिन जल्दी से उठती और अपने काम पर लग जाती. बहुत देर की मशक्कत के बाद ये काम खत्म हुआ…काम खत्म कर उसने अपना चेहरा आसमान की ओर उठा दिया जिस पर तेज़ पानी की बूंदें गिरने लगी जो उसे आराम का अनुभव दे रही थीं, वो कुछ देर वैसी ही बैठी, फिर उठी और उसने पानी के तालाब में उस ठेले को धकेल दिया..और एक दिशा में दौड़ गयी..उसे इस बात का भान तक ना था कि आकाश लगातार उसके साथ बना रहा है… जैसे ही उर्मिला वहाँ से गयी आकाश ने कोई कमी
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 14
आकाश को ऐसा लग रहा था…जैसे किसी सुरंग के रास्ते पत्थरों के ऊपर से उसे घसीटते हुए कोई तेजी से उसे लिये जा रहा हो…और ये क्रम कुछ पल ऐसे ही चल रहा था…और कुछ मिनट चलता रहा। आकाश निढ़ाल हो गया था। और…फिर, अचानक सब शान्त हो गया आकाश का शरीर एकाएक ठहर गया …उसे कुछ पल तक तो इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि वो रुक गया है, वो डर से आँखें बन्द किये पड़ा रहा….फिर पीठ पर कुछ ठंडा और गिज़गिजा सा एहसास हुआ और उसने धीरे से आँखे खोली….धुप्प अन्धेरा कुछ नज़र नहीं आ रहा था। खुद की पीठ पर ठंडे एहसास ने उसे उठने को मजबूर कर दिया ….’अह्ह क कहाँ हूँ मैं’ वो खुद में ही बुदबुदाया…फिर इधर-उधर हाथों से टटोला लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था। ‘क्या मर चुका हूँ मैं?..और अगर मर चुका हूँ तो क्या है ये ? वो डर से फिर बुदबुदाया तभी आकांक्षा का चेहरा उसकी आँखो के सामने घूम गया ‘तो क्या आकांक्षा से कभी भी नहीं मिल पाऊंगा मैं? ये ख्याल आते ही वो वो जोर से चीखा ‘नहींssss…” ‘###’ उसी वक्त ऐसा लगा कोई बिल्कुल पास खड़ा होकर जोर- जोर से साँस ले रहा हो “क….कौन?” बोलने के साथ ही वो पीछे की ओर घूम गया और जवाब में हवा का एक तेज झोंका उसके पास से गुजर गया ‘ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ‘की एक तेज आवाज हुई और ऐसा लगा जैसे कोई एक ओर से दूसरी ओर सरपट भागा हो….आकाश का दिमाग और शरीर सुन्न की अवस्था में ही थे अब तक.. और अब तो वो पागलों की तरह अन्धेरे में ही आँखे फ़ाड़े देखने की कोशिश कर रहा था। तभी ना जाने कहाँ से एक हल्की रोशनी उस जगह नजर आयी और उस रोशनी की वजह से ही वो बड़ी परझायीं अब आकाश को दिख गयी… वो निश्तेज आँखो से उसे ही देख रही थी “क कौ …न हो तुम?” लाख डर के बाबजूद भी वो पूँछ बैठा और जवाव में उस परछाईं ने अपना एक हाथ एक दिशा में उठा दिया, आकाश की आँखे उसी दिशा में घूम गयी जहाँ मिट्टी के ढेर पर एक फावड़ा रखा था ‘फावड़ा’ वो आश्चर्य से धीमी आवाज में बुदबुदाया! इतने में उस परछायीं के चेहरे पर रोष के भाव उभरे और वो आकाश की ओर बढ्ने लगी…” ..न …नहीं …नहीं” आकाश अपने कदम पीछे की ओर् बढ़ाते हुए डर से बुदबुदाया लेकिन वो हवा में रेंगती सी उसकी ओर बढ़ती जा रही थी।..अब भी अन्धेरा था ..लेकिन बेहद हल्की सी रोशनी और उस पर ही नजर जमाए रखने का नतीजा था शायद कि वो साफ नजर आ रही थी आकाश को। दीवार आ गयी थी और अब आकाश के कदम पीछे नहीं बढ़ पा रहे थे और अब तक वो परछायी बिल्कुल पास आ गयी थी … ‘मुझे इसी क्षण मौत क्यों नहीं आ आती…’-आकाश का कलेजा मुँह को आ गया था ..एक मुर्दे के सड़ने जैसी सड़ाध.. और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी ….दोनो का एहसास एक साथ हुआ उसे….फिर उस छाया ने अपना काला और सूखा हुआ हाथ आकाश के हाथ को पकड़ने के लिये आगे बढ़ाया तभी… “आह्ह्ह्ह्ह” वो पूरी ताकत से चीखा और बेसुध होकर गिर पड़ा। *** आकाश को अपने चेहरे पर एक तेज रोशनी मेहसूस हुई और उसने आँखे खोल दी…धूप खिली थी…आसमान साफ था …कुछ पंछी उड़ रहे थे…उसने लेटे-लेटे ही अपने दाहिनी ओर देखा प्लास्टर उघड़ी एक दीवार दिख रही थी! जो बहुत पुरानी हो गयी थी….फिर बायीं ओर देखा एक किलेनुमाँ किसी घर की दीवार थी…ऐसा लगता था जैसे किसी ने पुराने किलो से प्रभावित होकर अपना घर वैसा ही बनाने की कोशिश की हो और इस प्रयास में घर का नक्शा ही खराब कर दिया हो..और उसे अचानक तेज बदबू मेहसूस हुई ‘ये बदबू कहां से आ रही है’ सोचते हुए उसने नजर खुद के पास नजर डाली..एक गन्दा नाला बह रहा था ये उसकी बदबू थी…और अब खुद को देखा …वो उसी नाले के पास लेटा था ‘हें मैं यहां क्या कर रहा हूँ …?”ये ख्याल आते ही उसे रात वाली घटना याद आ गयी और वो फुर्ती से उठ कर खड़ा हो गया… दोनों तरफ दीवारों से घिरी ये एक संकरी सी गली थी “कहाँ हूँ मैं …ये सब हो क्या रहा है मेरे साथ” उसने खुद का सिर पकड़ लिया…तभी एक कागज उड़ता हुआ ठीक उसके पैरों के पास गिरा “भैया, क्या वो कागज उठा देंगे…मेरा प्रश्न पत्र है” खूबसूरत सोलह -सत्रह की एक लड़की ने आकाश के पैरों कर पास पड़े एक कागज की ओर इशारा किया…और अब चौकनें की बारी आकाश की थी! वो पागलों की तरह आँखे खोले उस लड़की को देखे जा रहा था। ‘उर्मिला बुआ….’ हैरत से आकाश के मुँह से निकला “उठा देंगे क्या?” वो फिर से बोली….आकाश ने झुक कर खुद के पैरों के पास पड़ा पेपर उठाया और उस लड़की की ओर बढ़ा दिया “थैंक यू ” वो मुस्कुरा कर बोली तभी एक लड़का उस लड़की के पास आया और बोला “चले उर्मी?” और वो लड़की उस लडके का हाथ पकड़ कर वहाँ से चली गयी। “ये तो ….ये तो गिरि है…..हां यार ये गिरि है…ठीक वैसा जैसा मैने इसे इसके जवानी के दिनों वाले फोटो में देखा था….अरे यार ये हो क्या रहा है” आकाश ने हैरत से अपने सिर के बाल पकड़कर खींच लिये। फिर जब उन दोनों को वहाँ से जाते देखा तो पीछे-पीछे हो लिया। गिरिराज एक ढ़ीला-ढ़ाला पेंट और शर्ट पहने था जबकि उर्मिला हरे रंग का कुर्ता सलवार जिस पर उसने गुलाबी चुनरी ओढ़ रखी थी। “तुम्हें नहीं लगता उर्मी कि हमें अपने घरवालों को बता देना चाहिये” गिरिराज बोला “नहीं गिरि, मुझे बहुत डर लगता है” उर्मिला घबराकर बोली “डर किस बात का …हमनें कोई चोरी की है क्या? प्रेम करना कोई पाप है क्या? और फिर आज नहीं तो कल पता लगना ही है” “क्या हम कुछ और दिन नहीं रुक सकते गिरि? “ “दिनो की क्या बात करती हो उर्मी मैं तो सात जन्म रुक सकता हूँ …लेकिन तुम्हारे घरवाले… वो नहीं रुकेंगे ना …मैने सुना है तुम्हारे राघव भैया कोई लड़का देख रहे हैं
सीजन: 2-क्या अनामिका बापस आएगी -पार्ट: 13
13. “कौन हो तुम?”नीरज ने जमीन पर पड़े-पड़े ही उससे पूँछा जो गुस्से में फुफकारता उसके सामने खड़ा था, और जवाव में उसने एक जोरदार लात नीरज के मुँह पर दे मार दी जिससे नीरज कराह उठा ! “अरे वो तो छोटे मालिक हैं ना …” थोड़ी दूरी पर खड़ा कोई नीरज को देख कर तेज आवाज में बोला और आस-पास खड़े तीन-चार लोग उसी ओर दौड़ पड़े और नीरज को पीटने वाले लड़के को पकड़ लिया। “रुको कोई उसे कुछ नहीं करेगा” नीरज ने उन लोगों को हुक्म दिया इतने में एक आदमी ने आगे बढ़कर नीरज को उठने में सहारा दिया और उन लोगों से बोला ” इसे पुलिस स्टेशन ले जाओ…(फिर नीरज से ) और छोटे मालिक आपको इसी वक़्त घर चलना होगा” “नहीं …मुझे इससे बात करनी है” नीरज गुस्से में बोला “समझने की कोशिश कीजिये, इलेक्शन नजदीक हैं अगर ऐसे हुलिये में किसी ने आपकी एक तस्वीर भी खींचकर अखबार में निकाल दी, तो बड़े मालिक की छवि पर असर पड़ सकता है…घर चलिये अपना हुलिया ठीक कर लिजिये… फिर मैं खुद आपको पुलिस स्टेशन लेकर आऊँगा …मौके की नजाकत समझिये” नीरज के पिता के बेहद नजदीकी इस आदमी ने जब नीरज को ये कहा तो नीरज से कुछ कहते ना बना और वो चुपचाप जाकर कार में बैठ गया। और वो तीन आदमी उस लडके को नजदीकी पुलिस स्टेशन ले गए। “हिम्मत है तो छोड़कर दिखाओ मुझे …साले के दाँत ना तोड़ दूं तो कहना…अबे भागता कहाँ है” वो लड़का चीखते हुए बोला। *** “साला अमीर बाप की बिगड़ी औलाद…छोड़ो मुझे मार डालूंगा उसे” वो पुलिस स्टेशन में घुसते हुए भी जोर से चीख रहा था …सिपाहियों ने उसे जेल ले जाकर बैरक में डाल दिया। इतने में ही उसका फोन बजा “हैलो, पता है यहाँ क्या हुआ है?”उधर से आकाश की आवाज आयी “मेरे भाई पहले तू सुन कि यहाँ क्या हुआ है, तेरा भाई जेल में है” “क्या ? जेल में …जेल में क्या कर रहा है तू?”आकाश हैरत से बोला “पिकनिक मनाने आया हूँ “ “रोहित! क्या बकवास किये जा रहा है यार तू” “शुरुआत किसने की ?” “ठीक है मेरी गलती… अब ये बता हुआ क्या?” “वो कमीना… वो वंटी “ “कौन वंटी?” “अरे वही विधायक का आवारा लड़का और कौन…तुझे बताया तो था उसके बारे में” रोहित खीजा “ओह्ह हाँ याद आया…वो जो तेरी दीक्षा के साथ घूम रहा था” आकाश याद करते हुए बोला “हाँ वही कमीना …पहले वो दीक्षा के साथ घूम रहा था और अब…अब राई के साथ… “क्या?” आकाश हैरत से बोला “हाँ “ “यकीन नहीं होता .. “ “मुझे कुछ हो जाये, तो संभाल लेना, क्योंकि उसका खून तो मैं करके ही रहूँगा ” रोहित दाँत पीसता हुआ बोला “पागल हुआ है क्या? कोई भी पागलपन मत करना, मैं आ रहा हूँ “ “तू? तुझे गढ़े मुर्दे उखाड़ने से फुर्सत मिले तब ना…”रोहित फिर खीजा “मैनें कहा ना आ रहा हूँ,…मैं इसी वक़्त यहाँ से निकल रहा हूँ “ “ठीक है” कहकर रोहित ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया। *** आकाश और नीरज के पुलिस स्टेशन पहुँचने का समय एक ही रहा। इस वक़्त तीनों ही एक दूसरे को घूर रहे थे शायद इस असमंजस में कि बोलने में कौन पहल करे। रोहित, नीरज को देखकर दाँत पीस रहा था, वहीं नीरज उसे ऐसे देख रहा था जैसे देखने भर से याद आने वाला हो कि वो है कौन, और आकाश एक बार रोहित को देखता तो दूसरी बार नीरज को… “तुम ही बँटी हो ?”आखिरकार आकाश ने पहल की “हाँ …लेकिन आपको मेरा ये नाम कैसे पता?” नीरज आश्चर्य से बोला “क्यों ? तू मिनिस्टर है क्या साले?”रोहित गुस्से में चीखा फिर आकाश की ओर देखकर बोला “मुझे बाहर निकलवा यहाँ से फिर देखता हूँ इसे” “राई को कहाँ लेकर गये थे तुम?” आकाश ने प्रश्न दागा “कहीं भी लेकर जाऊँ मेरी मर्जी…तुम लोगों को क्यों बताऊँ? और एक मिनट तुम लोगो का राई से क्या कनेक्शन है? और इसने …मुझे मारा क्यों?” नीरज भी जोर से बोला “मार ही तो नहीं पाया तुझे…निकलने दे यहाँ से फिर देख …अरे आकाश इससे बहस मत कर मुझे बाहर निकलवा यहां से यार” “एक मिनट! चुप रहेगा” आकाश ने रोहित को चुप कराया और नीरज से बोला “हम राई के भाई हैं …अब बोलो कहाँ ले गये थे तुम उसे…” “ओह्ह… तो आप लोग राई के भाई हैं…”नीरज ने आश्चर्य और राहत की मिली-जुली प्रतिक्रिया दी “कुछ पूछा गया है तुमसे?”आकाश ने चुभती नजर से नीरज की ओर देखते हुए कहा “राई को मैनें कॉलेज से पिक करके घर छोड़ा…” “क्यों …किसलिए…तू होता कौन है उसे घर छोड़ने वाला?”रोहित चीखा “एक मिनट मैं बात कर रहा हूँ ना” आकाश ने रोहित को फिर रोका “जूठ नहीं कहूँगा …मैं राई से प्यार करता हूँ ..आप लोग उसके भाई हैं..जैसे चाहे आजमा लें मुझे…मैं हर तरह से उसके लायक हूँ और इसे साबित करने के लिये कोई भी परीक्षा देने के लिये तैयार हूँ ” नीरज अपना बोलने का लहजा नर्म करते हुए आत्मविश्वास से बोला “तेरी इतनी हिम्मत…मार डालूंगा मैं इसे …निकालो मुझे यहां से बाहर” रोहित बैरक की सलाखों को हिलाते हुए बोला। “शर्म नहीं आती आं …एक तरफ राई से प्यार का रिश्ता बता रहा रहे हो और दूसरी तरफ दीक्षा के साथ घूमते फिरते हो..मैं तो ये सोचकर हैरान हूँ .. इतनी बेशर्मी तुम जैसे लोगों में आती कहाँ से है… आकाश गुस्से से बोला “आप दीक्षा को कैसे जानते हैं?” नीरज ने हैरानी से पूँछा “अरे यार..इसको कैसे जानते हैं?उसको कैसे जानते हैं?…सुनो कान खोलकर …दीक्षा इसकी गर्लफ्रेंड है ये जो दिख रहा है ना इस जेल के अन्दर इसकी…राई इसकी बहिन है..और ये दोनों कजिन है मेरे..और तू इस शहर के विधायक का बेटा है तो तुझे लगता है तू कुछ भी करेगा मतलब तू एक साथ दो-दो लड़कियों को धोखा दे…. “रुक जाइये..क्या बोलते जा रहे हैं आप” नीरज ने आकाश को बीच में ही टोक दिया “ “दीक्षा मेरी बहिन है…”नीरज थोडी तेज में बोला तो रोहित और आकाश ने हैरत से एक दूसरे की ओर देखा “हें …लेकिन वो तो उस पी जी में रहती है, उसने कभी